यात्रा-वृत्तान्त अयोध्या (राम जन्मभूमि कारसेवा)
बाइस
साल पहले विश्व भर के अरबों हिन्दुओं द्वारा पूजित प्रभू श्रीराम की
अयोध्या स्थित जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवा
प्रारंभ हुई थी। इस कारसेवा के दौरान कारसेवकों ने अदम्य साहस और वीरता का
परिचय देते हुए बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर दिया और राम जन्म भूमि को विदेशी
आक्रमणों के चिन्हों से मुक्त कर दिया। अयोध्या की इस कारसेवा में रतलाम
से भी हजारों कारसेवक गए थे। कारसेवा के दौरान तुषार कोठारी द्वारा लिखी गई
यात्रा डायरी कारसेवा का आंखोदेखा विवरण प्रस्तुत करती है।
दिनांक 29 नवंबर 1992 (रविवार)
फिर
उसी मोड़ पर,सारा देश,सारा समाज,हम और वे सब जो इससे,रामजन्म भूमि आन्दोलन
से जुडे रहे हैं। अवध एक्सप्रेस में रात नौ बजे रतलाम से लाए हुए भोजन
पैकेटों के भरपूर उपयोग के बाद उपरी बर्थ पर बैठे। फिर याद आ रही है वह
यात्रा जब शिलान्यास के लिए मात्र 7 लोग रतलाम से चले थे। उस समय की स्थिति
और आज। ऐसे लग रहा है जैसे इतिहास फिर से स्वयं को दोहराएगा। लेकिन कुछ
परिवर्तनों के साथ। शिलान्यास के समय आन्दोलन प्रथम चरण में ही था। वातावरण
भी कम था और संख्या भी कम थी। फिर जब शिलापूजन के बाद कारसेवा हुई तो ऐसा
लगा जैसे सारा देश राममय हो।कारसेवा जैसे तैसे रुकी। देशभर में चली राम लहर
चार प्रान्तों की भाजपा सरकार बनने और संसद में सवा सौ सीटें दिलवाने
मात्र के काबिल साबित हुई। तब संघ परिवार ने उस संघर्ष को अस्तित्व की लडाई
मान कर आर पार का संघर्ष माना। सारा संघ परिवार सारी शक्ति के साथ कारसेवा
में झोंका गया था। और अब फिर से वही स्थिति है। अंतर है तो इतना कि
वातावरण पूर्वापेक्षा कम है ङ्क्षतु कारसेवकों की संख्या बढी है। ऐसा लगता
है कि संगठन के स्तर पर मजबूती बढी है। फिलहाल 6 दिसम्बर की कारसेवा का
मसला 2.77 एकड की अधिगृहित भूमि और भजन पूजन जैसे मुद्दों पर उलझाया जा रहा
है। उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायालय को कारसेवा न होने देने का आश्वासन
अप्रत्यक्ष रुप से देकर ६ दिसम्बर तक सरकार बचा ली है। ऐसा लगता है कि उस
दिन अंतत: 2.77 एकड की भूमि पर कारसेवा करने निर्णय के बाद यह संघर्ष
शांतिपूर्वक टल सकता है।ट्रेन गति पकड रही है,मित्रों की चर्चाएं दो बार अंताक्षरी खेल चुकने और हा हू करने के बाद फिर से चल रही है। कल सुबह होगा लखनऊ ,नई हवा,नई परिस्थितियां,नया वातावरण और उनमें पुराने हम।
दिनांक 30 नवंबर 1992 सोमवार
लखनऊ
स्टेशन। जाना पहचाना परिचित। ग्यारह बजे वहां पंहुचे और तत्काल अयोध्या के
लिए ट्रेन में। भारी भीड,पूरी गाडी कारसेवकों से भरी हुई। ट्रेन की छत पर
यात्रा करने का प्रथम आनन्द। धीरे धीरे रुकती रुकाती ट्रेन शाम करीब 7.30 बजे अयोध्या पंहुची और स्टेशन से अपनी वाहिनी के साथ पूर्व सूचना के
अनुसार,श्रीराम कथा कुंज जन्मस्थान परिसर पंहुचे। वहां कहा गया कि हमें
कारसेवक पुरम पंहुचना है। थके हारे वहां पंहुचे। सामान इत्यादि रख कर
जन्मस्थान की ओर गए। लौटे और अच्छी खासी ठण्ड में कनाते बिछा कर सोए। अब तक
वातावरण ज्यों का त्यों है। सारे देश में चाहे तनाव हो यहां शांति ही है।
कारसेवकों की संख्या का अंदाजा फिलहाल नहीं लग पाया है। अंदाज है कि 25 हजार लोग आ चुके है। फिर भी इस बार की खासियत यह है कि यहां व्यवस्था बनी
हुई है। बाहर से आने वाले जत्थों की संख्या ली जा रही है और बिना परिचय
पत्र के प्रवेश निषेध है।
1 दिसम्बर 1992 मंगलवार
नई
सुबह। आर्द्रता ज्यादा होने की वजह से मुंह से भाप बहुत निकलती है। सुबह
सरयू पर स्नान के बाद लौटे। दिन भर जन्मभूमि और गलियों में घुमते रहे। धीरे
धीरे अयोध्या में कारसेवकों की भीड बढती जा रही है। अब लगता है कि संख्या
बढने से व्यवस्था चरमरा जाएगी। दोपहर के समय जब जानकीघाट स्थान के बाबा
रामलखन दास जी मिले,यह लगभग तय कर लिया था कि अपनी व्यवस्था वहीं की जाए।
दोपहर तीन बजे फिर से कारसेवकों को नए स्थान पर भेजा गया। देवरहा बाबा नामक
स्थान के लिए जब सभी अपना सामान लेकर निकले,हम लोग इधर आ गए। रात बडी
अच्छी गुजरी।खुले स्थान पर ठण्ड के मौसम में सोना बडा कठिन हो जाता है।
यहां कमरे में ठण्ड कम है। ओस भी नहीं है,जो बिस्तर गीला कर दे। अयोध्या
धीरे धीरे रंग में आती जा रही है। पिछली बार भगवा लुगी ढूंढे नहीं मिल रही
थी,इस बार लगभग हर दुकान पर लुंगिया टंगी हुई है। यहां के व्यापारी भी अब
मौके का फायदा उठाना सीख गए है। राम जन्मभूमि आन्दोलन के गीतों की आडियो
कैसेटों की बिक्री भी काफी बढ गई है। आन्दोलन की स्थितियां भ्रमपूर्ण होती
जा रही है। उ.प्र.भाजपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय को कारसेवा न होने देने
का आश्वासन दे दिया है। विहिप अधिकारी कारसेवा की घोषणाएं कर रहे है। बीच
में प्रतीकात्मक कारसेवा की बातें भी हो रही है। एक आम कारसेवक संशय में
घिरा है और क्रोधित प्रतीत हो रहा है। कहते है कि दक्षिण क्षेत्र से आए
कारसेवक अधिक उद्वेलित है। स्थितियां अगले एक दो दिन में साफ होंगी। पता
नहीं क्यों आजकल मुझे इन चीजों का असर कम होता है। तटस्थ भाव से देख रहा
हूं,देखें क्या होता है?
2 दिसम्बर 1992 बुधवार
सुबह
मन्दिर से निकलकर सीधे सरयू गए। बीच में सुलभ काम्प्लेक्स पर झगडा किया।
जबर्दस्ती उसमें घुसे। फिर एक नई बात। हममे से कई लोग अयोध्या के टाकीज में
फिल्म देखने पंहुचे। गांव में गांव जैसी टाकीज। अयोध्या यूं तो बडा फैला
हुआ है किंतु धार्मिक नगरी होने से यहां उतना आकर्षण नहीं है। ले-दे के एक
विडीयो टाकीज है,वह भी काफी पुराने जमाने का,जिसमें बेंचे लगी हुई है।
दोपहर बाद जन्मस्थान पंहुचे,तो वहां सभा चल रही थी। महंत अवैधनाथ,विनय
कटियार,आचार्य धर्मेन्द्र,गिरिराज किशोर जी आदि ने भाषण दिए। वक्ताओं ने
कहा कि कारसेवा किसी भी कीमतपर नहीं रुकेगी और काम वहीं से शुरु होगा जहां
रुका था। कारसेवक काफी बढ गए हैं। व्यवस्थाएं बदली जा रही है,ताकि बनी रहे।
लेकिन लगता है कि अगले दिनों में ध्वस्त हो जाएगी। मन्दिरों से अपील की जा
रही है कि वे कारसेवकों को ठहराए। इधर के पेपर्स में पूरे पन्ने अयोध्या
से रंगे है। समाचार पत्रों के अनुसार,ऐसा रास्ता ढूंढा जा रहा है,जिससे
न्यायालय के फैसले की अवमानना भी ना हो और कारसेवा भी हो जाए। वैसे सभा के
बाद भ्रम दूर हुए है किंतु कारसेवकों के मन के किसी कोने में अविश्वास भी
है कि शायद कारसेवा ना हो।
3 दिसम्बर 1992 गुरुवार
कल
रात पता चला था कि आज भोजन व्यवस्था का दारोमदार रतलाम जिले पर है।
प्रात:आठ बजे से बडा भक्तमाल पर पंहुचे। कटे आलुओ को धोया और लगभग ग्यारह
बजे से वितरण प्रारंभ कर दिया। अयोध्या की व्यवस्थाओं से सीधे परिचय का यह
पहला दौर था। एक डेढ बजे के करीब तैय्यार किया हुआ भोजन पुडी व चावल समाप्त
हो गया। फिर से पुडियां बनने लगी और हमलोग दो ढाई बजे चाय पान के लिए
खिसके। घण्टे भर बाद लौटे। पता चला कि व्यवस्था भंग हो गई है,लूटपाट सी हो
रही है। आधे घण्टे किंकत्र्तव्यविमूढ रहने के बाद अपनी क्षमताएं समेट कर
मैं उठा,साथी जुटे और अंतत: व्यवस्था सम्हाल ली गई। भोजनार्थियों का तांता
लगा हुआ था। जैसे तैसे शाम पांच बजे सुबह का भोजन निपटा। अंत में हम
कार्यकर्ताओं ने भोजन किया और शाम के भोजन को सुव्यवस्थित करने का इरादा ले
हम हटे। आज अशोक जी सिंघल की जन्मस्थान पर सभा थी। हम व्यवस्था में लगे
होने से जा नहीं पाए। शाम का भोजन अनुभवी हाथों से हुआ और सुव्यवस्थित
तरीके से हम लोगों ने दो घण्टे में भोजन निपटाया। मैं स्वयं अनुमान नहीं
लगा पा रहा हूं कि कितने कारसेवकों ने भोजन किया। एक बात जरुर है कि
व्यवस्था बरकरार रखने के लिए अनुशासन आवश्यक है और यह भूख ही थी जिसने
अनुशासन उत्पन्न किया। दिन भर में स्थितियों में खास रद्दोबदल नहीं हुआ।
जानकारियां मिली कि आज की सभा में सिंघल जी कुछ नरम रुख अपना रहे थे। जबकि
कल के तेवर तीखे थे। कारसेवकों को अनुशासन और संयम की कसमें भी सभा में
खिलाई गई। लगता है कि अंतत: यह कारसेवा बीच का रास्ता ढूंढकर संपन्न करा ली
जाएगी।
4 दिसम्बर 1992 शुक्रवार
कल
की भोजन व्यवस्था में खराब हुआ कपडों को धोने सरयू पर जाना जरुरी था। सुबह
नई ट्रेक पेन्ट व शर्ट आदि धोए। लौटे और निर्मल जी कमलेश आदि सो गए। मैं
अनिल,जीतेन्द्र.संजय हमलोग फैजाबाद घूमने चले गए। फैजाबाद अच्छा विस्तृत
शहर है। आज यहां युवा इंकाईयों की सद्भावना रैली थी। संयोग ही था कि हम
हिन्दू देवस्थान छोड सिराजुद्दौला का मकबरा देखने पंहुच गए। जिसके
मुख्यद्वार पर 25-30 युवा इंकाई भाषणबाजी कर रहे थे। हास्यास्पद बात यह कि
यहां पुलिस उनसे चार गुनी थी। फैजाबाद में भी कारसेवकों का दबाव बढ रहा है।
कारसेवकों के भोजन इत्यादि का प्रबन्ध यहां के लोग कर रहे हैं। फिर भी
खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता प्रभावित नहीं हुई है। इधर अयोध्या में चाय से
भोजन तक सभी की क्वालिटी खराब हो गई है और भाव बढ गए हैं। हांलाकि पिछले
परिचय और जानकारियों की वजह से हमें बढे हुए भाव नहीं देना पडते। फैजाबाद
से खा-पी कर लौटे और दोपहर को जानकीघाट बडा स्थान आकर सौ गए। शाम को
उठे,फिर जन्मभूमि का चक्कर,भीड काफी बढ गई है। धक्कामुक्की,नारों का शोर
सबकुछ बढ गया है। रात 8 बजे लौटे। मालूम हुआ आज देवरहाबाबा छावनी पर रात की
चौकीदारी करना है। शाल इत्यादि लेकर पंहुचे। प्रान्त प्रमुख राधेश्याम जी
पारिख के साथ अलाव जलाकर चौकीदारी करते सारी रात काटी। उन्होने बताया कि कल
कारसेवा की रिहर्सल करना है। आज पता चला कि कारसेवकों की भीड किस तरह आ
रही है। रात ही रात में करीब पांच हजार कारसेवक हमारे सामने से गुजरे।
मध्यप्रदेश के करीब आधे होंगे। कुछ को छावनी में ठहरा दिया गया। अब छावनी
में पैर धरने की जगह नहीं है। कुछ लोग अव्यवस्था से रुष्ट है। अपशब्द कह
रहे हैं। हम कुछ नहीं कर सकते है। सभी बारह स्थानों पर ठहरने की व्यवस्था
है। सभी स्थानों पर कारसेवकों की ऐसी ही भीड पड रही है। विहिप ने और
कारसेवकों से न आने की अपील की है। अब तक लगभग ढाई लाख कारसेवक यहां पंहुच
चुके है। सुबह लगभग 5 बजे ड्यूटी समाप्त हुई। रतलाम के टेण्ट में सोए। सुबह
साढे आठ बजे उठे।
5 दिसम्बर 1992 शनिवार
सूचना
थी कि 9 बजे पूरा मध्यप्रदेश एकत्र होगा। हम चूंकि रात को सोये नहीं
थे,इधर प्रातर्विधि से निपटते निपटने दस बज गए। हम पंहुचे,पता चला
जन्मस्थान के हर मार्ग पर केवल कारसेवक है। हमने दौड लगाई। लोगों के
अपरिचित रास्तों से दौडते भागते हम जन्मस्थान परिसर के भीतर पंहुच गए। पीछे
रामकथा कुंज परिसर में कारसेवकों के आने का क्रम जारी था। अब यह स्पष्ट हो
गया है कि कल क्या होगा? कारसेवकों को निर्देश दिया गया है कि वे एक-एक
मुट्ठी पवित्र मिट्टी लेकर आएंगे। अब स्थिति ऐसी बनती जा रही है कि कारसेवा
का उत्साह ठण्डा पडता जा रहा है। संघर्ष की संभावनाएं टल सी गई है। बीच का
रास्ता ढूंढ लिया गया है। कानून भी नहीं टूटेगा कारसेवा भी हो जाएगी। अनेक
लोग निराश है,अनेक क्रोधित है,अनेक इस विषय से अनभिज्ञ है। किंतु परिवर्तन
साफ नजर ता है। कल तक हनुमान गढी से जन्मभूमि तक की तंग गलियां और दूसरी
सड़कें नारों से गर्म रहती थी।आज ऐसा लग रहा है,जैसे मेले की भीड हो,कोई
उत्साह नहीं,नारे नहीं। लेकिन फिर भी कल तक बहुसंख्यक लोग नेतृत्व के इस
निर्णय को आत्मसात कर ही लेंगे। हमारे मन्दिर के महाराज लोग बेकदर क्षुब्ध
है। वे चाह रहे है कि जन्मस्थान के अतिरिक्त दूसरी मजारें तोड दी जाए। कुछ
घण्टे और हैं,देखते है क्या होता है? शांतिपूर्वक ही निपट जाएगा
सबकुछ,बशर्ते कोई अनहोनी न हो। नरसिंहा राव जीते नहीं तो विहिप भी हारी
नहीं। लेकिन इस बीच भावुक कारसेवक निराश होने लगे है। कुछ रा.स्व.संघ को
गालियां दे रहे है। उनका कहना है कि ठण्डे छींटे संघ ने डाले है। मेरे
विचार से तात्कालिक रुप से यह लगभग ठीक निर्णय है। विहिप यदि दूसरी योजना
भी रखती तो शायद समस्या सुलझा ली जाती क्योंकि अब समस्या से राजनैतिक लाभ
उठाने के आरोप तेज हो रहे है और लोगों के मन में भी जमने लगे है। यह समय है
जब इसे निपटा दिया जाना चाहिए था। अब देरी संगठन के लिए घातक हो सकती है।
खैर,वे क्या सोच रहे है यह मुझे नहीं मालूम लेनि जनमत के लिहाज से आंदोलन
के इस मोड पर कोई न कोई ठोस उपलब्धि हासिल करना जरुरी था। जोकि यह कारसेवा
नहीं है। इन्हे शायद आगामी 11 तारीख के निर्णय का इंतजार है,जिसे ये अपने
पक्ष में होने का मान रहे है। यह भी संभव है कि प्रधानमंत्री और विहिप में
अण्डर टेबल अण्डरस्टैण्डिंग हो गई हो ताकि 11 तारीख का फैसला पक्ष में हो
जाए।
9 दिसम्बर 1992 बुधवार
वापसी
का सफर। ट्रेन में कारसेवकों की भीड। एक एक बर्थ पर दो दो लोग सोये और
सुबह के वक्त सेव परमल के नाश्ते के साथ हमारी अवध एक्सप्रेस रतलाम की और
दौडी जा रही है। यादों की ट्रेन उसी गति से विपरित दिशा में भागती जा रही
है।
6 दिसम्बर 1992 रविवार
6
दिसम्बर की सुबह,5 तारीख को खोजे गए रास्ते से हम लोग करीब दस बजे
जन्मभूमि मन्दिर के पीछे की ओर बढ रहे थे। सुबह नाश्ता आदि कर जानकीघाट
मन्दिरसे निकले। कल ही मन्दिर से लौटते वक्त हमने पीछे का रास्ता ढूंढा था।
हम लोग आगे बढे कि अचानक तेज पुलिस सायरन ने हमे एक ओर कर दिया। देखा तो
गाडियों का एक लम्बा काफिला चला आ रहा था। सभी लोग किनारे पर हो गए। आगे एक
ट्रेक्टर रास्ते के बीच खडा था,जिसकी वजह से काफिला रुका। पुलिस
एस्कार्ट्स ने उसे हटाया। इस वक्फे में हमने जाना कि काफिले में विपक्षी
नेता लालकृष्ण आडवाणी है। जन्मभूमि मन्दिर के ठीक पीछे के चौराहे से जमी
कुछ भीड के कारण काफिला कुछ धीमा हुआ। फिर जैसे ही कारों की गति बढी,हम
उसके साथ दौड़ पडे। इस तेजी की भागदौड में हम बिछड गए। मैने निर्मल जी से
फोटो खींचने को कहा। उन्होने दौडते हुए आडवाणी जी का फोटो खींचा। जन्मभूमि
के इस ओर के प्रवेशद्वार पर पुलिस का तगडा इंतजाम था। यहां आकर काफिला
रुका। जिसमें से भाजपा अध्यक्ष डॉ.जोशी,विपक्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी,विहिप
महासिचव अशोक जी सिंघल,रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह मा.हौ.वे शेषाद्री उतरे।
हमने सोचा कि हम भी इनकी भीडभाड में परिसर में प्रविष्ट हो जाएंगे। लेकिन
यह संभव नहीं हुआ। वीरेन्द्र राठोड आडवाणी जी के साथ प्रविष्ट होने में सफल
हो गया। आखिरकार हम बचे हुए लोग सीता रसोई महल के उपर चढे। आखरी
मंजिल,जोकि तीसरी है,हम लोग बन्दरों की तरह उछल उछल कर पंहुचे। उपर
मै,निर्मल जी,तेजसिंह,अशोक,संजय पंवार आदि पंहुचे थे। 10.30 बजे का वक्त,हम
तीसरी मंजिल की दीवार से जन्मभूमि मन्दिर का बांया हिस्सा देख रहे है।
वहां से रामकथा कुंज का कुछ हिस्सा दिखता है। जहां केवल लोगों के सिर दिखाई
दे रहे है। कारसेवकों का विशाल समुदाय कारसेवा के लिए एक एक मुट्ठी रेत लेकर
आया है। 10.30पर अचानक इस ओर दर्शनार्थियों के मन्दिर में जाने के लिए
लगे पाइप्स पर कुछ कारसेवक घुसते है और उसे तोडने की कोशिश करते है। पुलिस
असहाय हो जाती है। फिर संघ के नेकरधारी स्वयंसेवक और व्यवस्था के कुछ साधु
उन्हे खदेडते है। कारसेवकों ने एक हल्ला फिर बोला। उसे फिर नाकाम कर दिया
गया। जन्मभूमि की अधिगृहित भूमि को घेरे रामदीवार पर पीएसी के जवानों के
साथ संघ के स्वयंसेवक खडे हैं। पहले व्यवस्थाएं तोडने की कोशिश को देखते
हुए स्वयंसेवकों की संख्या पहरे पर बढाई जा रही है और पीएसी कम कर दी जाती
है।11.15 पर फिर शान्ति दिखाई दे रही है। हम उपर है,सभा शुरु हो गई है। 15 मिनट बाद फिर हो हल्ला शुरु होता है,जो पांच मिनट में बन्द कर दिया जाता है। 11.35-11.40 पर अशोक जी सिंघल जन्मभूमि मन्दिर परिसर में घुसते है। उन्होने एक चक्कर लगाया,फिर दूसरा चक्कर लगाया,फिर उल्टी ओर घूम कर आधा चक्कर लगाया। 11.45 पर अचानक मैं उपर से देखता हूं अनेक कारसेवक मन्दिर के सामने की बैरिकैटिंग पर चढे हुए दिखाई देते है। मैं उपर दौडता हूं। पुलिस ने निगरानी के लिए तीसरी मंजिल पर बने कमरे में चौकी सी बनाई है। मैं निर्मल जी से कैमरा लेकर उपर दौडा,वहां खडे पुलिस कर्मियों और महिला पुलिस से मेरी बहस हुई। कैमरे की नजर से मैने देखा कारसेवक बैरिकैटिंग पार कर गुबंद तक पंहुच गए है। मैने दो फोटो लिए। तूफान की तरह मैं नीचे भागा। दो छलांगों में हम नीचे आ गए। दूसरी मंजिल की कूद लगभग 15 फीट की थी। मैने उसे महसूस करने से अपने आपको रोका। मै दौडा। जन्मभूमि परिसर के भीतर शायद एक एंगल दायें
घुटने से टकराया। क्षणाध्र्द में मैने सोचा कि यदि में रुका तो फिर नहीं पंहुच पाउंगा। मैं सीधा हुआ और फिर मन्दिर के सामने के हिस्से में जहां लोगों ने छ फीट की ऊं चाई को पाटने के लिए लकडी की निसरनी रखी थी। उस पर कुछ लोग है। मै साइड से छलांग मारकर उपर चढता हूं। अन्दर पंहुच कर देखा कि कई लोग हाथ में बल्लियां और बैरिकेटिंग के पाइप लेकर ढांचे को तोडने में व्यस्त है। मैं कैमरा निकाल कर फोटो लेना शुरु करता हूं। दो-तीन फोटो के बाद मैं फिर बाहर आता हूं। मुझे डर है कि कहीं बाहर गोलीबारी की स्थिति ना हो। ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। कुछ फोटो बाहर लिए। मै फिर भीतर पंहुचा,अलग अलग स्थानों के फोटो ले रहा हूं। रील देखता हूं। 34 पर पंहुच गई है। बाहर निकला। मन्दिर के पीछे जाने पर पीछे से फोटो लेने की इच्छा हुई। तीनों गुंबदों का फोटो लिया। घूम कर देखा तो सीता रसोई के पीछे खाली स्थान पर पुलिसकर्मी कतारबध्द खडे है। उनके फोटो के लिए कोशिश करता हूं,तभी तेजू रोकता है। मैं फिर भी फोटो ले ही लेता हूं। अचनाक एक आदमी झपटा,मुझसे कैमरा छीनने की कोशिश की। मै दौडा,आगे सारे लोग मुझे मारने को तैयार है। अंतत: रुकना पडता है,तभी पीछे से एक लाठी गर्दन पर लगी। पलट कर देखा,तब तक दूसरा वार कंधे पर हुआ। इसी बीच कोई कैमरा छीन कर भागा। निर्मल जी पास आकर पूछने लगे क्या हुआ? मैने उनहे कैमरा लाने को कहा। मैं अपने कारसेवक होने का प्रमाणपत्र प्रवेशिका हाथ में लिए भीडभाड से बाहर निकला। अशोक मेरे साथ कुछ दूर आया। मै जानकीघाट के लिए चलने लगा। पीछे सुनसान गली में पंहुचने पर पीछे से जीतेन्द्र आता दिखा। मैने कैमरे के बार ेमें पूछा। उसने कैमरे की सलामती की खबर दी। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं कारसेवा में सफल हो गया। पीछे से तेजू,निर्मल जी भी आ गए। हमलोग जानकी घाट की ओर चले। रास्ते में लोगों को बताया कि ढांचा ध्वस्त हो गया है,वे मिठाई खिलाते है। जानकीघाट के महन्त व अन्य महात्माओं को वर्णन सुनाते है,वे भी खुश है। वे हमें फलाहार करने को कहते है। हम फ्रैश होकर फलाहार करके फिर जन्मभूमि मन्दिर लौटे।
जन्मभूमि परिसर में भीड काफी बढ गई है। एक गुंबद ध्वस्त किया जा चुका है। लोग उत्साहित है। एक दूसरे से गले मिल रहे है,बधाईयां दे रहे है। पहले जब कारसेवक मन्दिर में घुसे थे,उनसे बाहर आने की अपीले की जा रही थी। अब मंचीय नेताओं ने ध्वस्ता करने का निर्णय कर लिया है। वे मंच से नारे लगा रहे है,भाषण दे रहे है। 3.55 पर दूसरा गुंबद ध्वस्त किया गया। गेती फावडे और बैरिकेटिंग के पाइप तोडने में इस्तेमाल किए जा रहे है। हमारा एक साथी अनिल सुबह से बिछडने के बाद से नहीं मिला है। हम अस्पताल में भी देख आए है। सैकडों लोग घायल हुए है,4 लोगों की इस महत कार्य में मृत्यु हो गई है। दो लोगों की मलबे में दबने से व दो की चोटों से मृत्यु हुई है। अनिल को ढूंढ रहे है। इधर 1.35 पर पहला व 3.55 पर दूसरा गुंबद ध्वस्त हो चुका है। बीच वाला गुंबद कुछ ज्यादा मजबूत है। टूट नहीं रहा। मंच से उमा श्री भारती एक धक्का और दो,बाबरी ढांचा तोड दो के नारे बुलन्द कर रही है।
आखिरकार 4.45 पर बाबरी ढांचा पूरी तरह ध्वस्त हो गया। लोग खुशी से पागल हो गए हैं। पुलिस वाले श्री राम की जयजयकार करने लगे। अब मलबा हटाने का क्रम जारी है। हम लौटने का निर्णय लेते हैं। अनिल भी मिल गया है और हम थके मांदे लौट रहे हैं। अयोध्या में दीवाली मनाई जा रही है। बम फोडे जा रहे है। कुछ सीआरपी वालों ने हमसे कहा था कि जल्द से जल्द काम निपटा दो। जो पूरा हो चुका था। हम सभी सोच रहे थे कि यह यात्रा पूर्णत: सार्थक रही। अब हम कह सकते है कि हमने कारसेवा की और शुरुआती दौर में पहले पहल हम शामिल थे। जानकीघाट पंहुच 7.40 की बीबीसी सुनते है। भारतीय समाचारों में कहा जा रहा है कि ढांचे की बाहरी दीवार को क्षति पंहुचाने की कोशिश की गई और पुलिस ने बल प्रयोग किया। हम जानते है कि यह झूठ है। रात 11.00 बजे बीबीसी के अनुसार दंगे भडकना शुरु हो गए है और सांप्रदायिक संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाएगा। फैजाबाद में कफ्र्यू लगा दिया गया है। केन्द्र सरकार ने 50 कंपनियां और उपलब्ध कराई है। मुख्यमंत्री और एलके आडवाणी इस्तीफा दे चुके है। प्रदेश सरकार भंग कर दी गई है। उधर जन्मभमि से लगातार कारसेवकों को बुलाया जा रहा है। हम फिर रात 11.30 बजे जन्मभूमि पंहुचते है। वहां अनवरत कारसेवा शुरु है।
7 दिसम्बर 1992 सोमवार
7-12-1992 चालू हो गई है। मन्दिर का मलबा हटाया जा रहा है और साथ ही नए मन्दिर का निर्माण प्रारंभ है। रामलला की मूर्तियां फिर से स्थापित कर दी गई है। रात 4.00 बजे हम लौटते है। सुबह नौ बजे तक सोने के बाद उठकर मन्दिर का बालभोग(खिचडी) खाते है। हम फिर जन्मभूमि लौटे। काम जारी है। कारसेवक अब जाने लगे है। 18 स्पेशल गाडियां लगाई गई है। दंगों की आग तेज हो गई है। विश्व भर में प्रतिक्रियाएं हो रही है। यहां अयोध्या में शांति है। दोपहर बारह साढे बारह बजे हम फिर जानकीघाट आ गए। दोपहर के समाचार सुनने के बाद हमें भोजन करना ही था कि अचानक खबर आई कि जन्मभूमि पर सीआरपी का कब्जा हो गया है। सभी को वापस बुलाया है। हम दौडते हुए वहां पंहुचे। पूरा परिसर कारसेवकों से भरा हुआ है,सीआरपी नजर नहीं आ रही। आचार्य धर्मेन्द्र मंच से कह रहे है कि हमने सीआरपी को दिखा दिया है कि हमारी फौज भी क्विक एक्शन लेती है। फिर उन्होने कहा कि अब कारसेवक लौट सकते है। शाम 4 बजे तक मन्दिर की लगभग 6 फीट उंची दीवार खडी कर दी गई है। सीढीयां भी बनाई जा चुकी है। हम निश्चिंत होकर लौटते है।
सारे घटनाक्रम पर चर्चाएं चल रही है। हमारे ग्रुप में इसे पूर्व नियोजित माना जा रहा है। किन्तु अब ऐसा लगता है कि संघ,विहिप और भाजपा में कारसेवा के स्वरुप को लेकर अंतर्विरोध उभरे होंगे और विहिप के किसी एक धडे ने यह कार्रवाई प्रारंभ करवाई। हम बेहद थक चुके है। लौट कर भोजन की जुगाड की। बडे भक्तमाल में जाकर विहिप की व्यवस्था में भोजन किया। 7.30 से फिर समाचार सुनने रेडियों के पास बैठे। सरकारी समाचार अयोध्या के कफ्र्यू में सीआरपी के फ्लैगमार्च होने की बात कह रहे है। हमें इस पर हंसी आती है। इधर अयोध्या आधी खाली हो गई है। अंधेरा घिर आया है। हम रात 11 वाली बीबीसी न्यूज सुनते है। उसमें सही स्थिति दी गई कि ढांचा ध्वस्त कर मन्दिर निर्माण प्रारंभ हो गया है। हममें से अधिकांश थक कर सो गए है। हम फिर से जन्मभूमि जाने का मन बनाते है। बाहर आने पर ऐसा लगा कि सारी अयोध्या सूनी हो गई है। अधिकांश कारसेवक जा चुके है। पता चला कि देवरहा आश्रम में रुके मध्यप्रदेश के कारसेवकों को कारसेवकपुरम शिफ्ट कर दिया गया है। हम जन्मभूमि पंहुचे।
आश्चर्यनजक सन्नाटा। सारा राम कथाकुंज खाली,माईक बन्द। मन्दिर पर मात्र 10-12 लोग।जिनमें से दो चार वहां मलबा हटाने में अब भी जुटे थे। हम इसे विहिप की गहरी चाल मानकर प्रसन्न होते है। जैन विडीयो द्वारा परिसर की विडीयो शूटिंग की जा रही है। मैने निर्मल जी से कहा कि मौके का लाभ लेकर वे भी फोटो ले ले।
निर्मल जी ने डरते डरते फोटो लिया। तभी एक व्यक्ति ने इसका विरोध किया। उन्होने उसे बताया कि वे कारसेवक है और फोटो लेने की मनाही नहीं है। वह व्यक्ति कहता है कि यह बात पुरानी हो गई है। परिसर पर अब पुलिस का कब्जा है। हम फिर राम कथाकुंज की ओर गए। खुदाई से निकले पत्थर और मूर्तियां लावारिस पडे थे। दो चार कमरों में गिने चुने कार्यकर्ता सोये हुए थे। हम लौटने लगे। एक सीआरपी के कर्मचारी ने हमें कहा कि हम इक्के दुक्के ना घुमे। कफ्र्यू सख्त हो गया है। हम वहां से कारसेवक पुरम पंहुचे,जहां राधेश्याम जी ने हमें चौकीदारी पर बैठा लिया। बची खुची रात अलाव के साथ गुजारी। प्रात: 9.30 बजे मुंह धोने बाहर आए।
8 दिसम्बर 1992 मंगलवार
सुबह
नौ साढे का वक्त,सरकारी नल पर मुंह धोते धोते देखा आचार्य धर्मेन्द्र,ऋ
तुंभरा जी,महंत नृत्यगोपाल दास और परमानन्द जी एक कार में बैठकर रवाना हुए ।
साध्वी ऋ तुंभरा मेकअप किए हुए और सलवार सूट पहने हुए थे। रहस्यमय बात थी।
हाथ मुंह धोकर लौटे तो पता चला कि सभी को तत्काल निकल जाने के निर्देश दिए
गए है। आडवाणी और जोशी गिरफ्तार हो चुके हैं। दिल्ली की एक टैक्सी वहां
नजर आई,जिसमें पुलिस के अधिकारी बैठे थे। यह भी रहस्यमय बात थी। स्नान करके
हम कारसेवक पुरम पंहुचे। पता चला अशोक जी सिंघल और विनय जी कटियार यहीं से
गिरफ्तार किए गए है। वह गाडी जो हमे दिखी थी,वही उन्हे लेने आई थी। पवैया
जी भी दिखे,वे भी आज निकल रहे है। हम वापस लौटे। जानकी घाट मन्दिर पर भोजन
कर महन्त जी के साथ फोटो खींचे और सामान उठाकर वापसी के लिए चलना प्रारंभ
किया। स्टेशन पर 2.35 पर गाडी थी,जो पंहुचने के पहले ही निकल गई थी। वहां
से राज्य शासन द्वारा की गई फ्री बस व्यवस्था से लखनऊ चले। शाम 6.30 पर
लखनऊ स्टेशन पंहुचे। अवध एक्सप्रेस में जगह करने के प्रयास किए। स्टेशन पर
कारसेवकों की जबर्दस्त भीड थी। नारों का शोर थम चुका था। ट्रेन में बैठे।
जगह की जुगाड कर ली गई और रात कट गई।अब नवागत की चर्चाओं के साथ अटकलों का दौर जारी है। जो रतलाम पंहुचने पर ही शायद थमेगा। वहीं पता चलेगा कि आगे क्या होगा?फिलहाल वहां कफ्र्यू होने की संभावना है। ट्रेन चल रही है। समय चल रहा है। दुनिया चल रही है,लेकिन देश में अब बाबर के आक्रमण का गंदा चिन्ह नहीं है। दंगे हो रहे है। मुस्लिम लोग अपनी धर्मान्धता में झगडालू हो गए है। खैर स्थितियां अब बदली है इसलिए दंगों की चिन्ता कम है। विचारों की श्रृंखला बढती जा रही है। यह सब अब रतलाम में होगा कि आगे होना क्या है?
अयोध्या की इस कारसेवा में रतलाम जिले से करीब पांच हजार कारसेवक पंहुचे थे। मेरे साथ जानकीघाट बडा स्थान मन्दिर में करीब आठ मित्र ठहरे थे। इनमें कमलेश पाण्डेय,निर्मल कटारिया,अनिल मेहता,संजय पंवार,हेमन्त शर्मा,तेजसिंह हाडा,अशोक ललवानी,जीतेन्द्र राठौड और अनिल व्यास शामिल थे।
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