Friday, February 25, 2022

रतलाम- इतिहास के झरोखे से : कुलिश

 शहर के विख्यात शिक्षाविद,साहित्यकार,कवि और प्रखर वक्ता रहे स्व.भंवरलाल भाटी ( 15 अप्रैल 1926- 14 मार्च 2010) की एक और पहचान ईतिहासकार की भी थी। स्व.श्री भाटी
ने वर्ष 1995 में दैनिक भास्कर के लिए रतलाम नगर का ईतिहास अपनी विशीष्ट शैली में लिखा था। यह रोचक स्तंभ स्व.भाटी ने कुलिश के उपनाम से लिखा था। आलेख,कविता इत्यादि स्व.श्री भाटी कुलिश के उपनाम से ही लिखा करते थे। रतलाम-इतिहास के झरोखे से शीर्षक से स्व.श्री भाटी के इस स्तंभ में रतलाम की स्थापना से लगाकर आधुनिक रतलाम बनने तक का पूरा इतिहास अत्यन्त ही रोचक शैली में लिखा है। पिछले कई ïवर्षों से स्व.श्री भाटी द्वारा रचित यह इतिहास उपलब्ध नहीं हो पा रहा था,लेकिन स्व.श्री भाटी के स्नेहपात्र रहे श्री हरीश व्यास ने इसे सहेज कर रखा था। स्व.श्री भाटी द्वारा लिखित इस इतिहास को डिजीटल फार्म में सुरक्षित करने का सुअवसर श्री व्यास के सौजन्य से प्राप्त हुआ है।

Sunday, February 13, 2022

हिजाब प्रकरण-खत्म नहीं होंगे,अब बढते जाएंगे इस तरह के विवाद


 -तुषार कोठारी


कर्नाटक के उडुपी में एक स्कूल से शुरु हुए हिजाब विवाद की आग अब देश के कई कोनों तक फैल चुकी है। यहां तक कि मध्यप्रदेश में भी कहीं कहीं इसकी आहट आने लगी है। मामला हाईकोर्ट में है। लेकिन यह मान लेना कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह विवाद थम जाएगा,बिलकुल सही नहीं होगा। वास्तविकता यह है कि देश में अब इस तरह के बेसिरपैर वाले या कहें बेवजह के विवाद अब बढते जाने वाले है। दस मार्च को यदि उत्तर प्रदेश में दोबारा योगी सरकार बन गई तो ऐसे अवांछित विवादों की बाढ आना तय है। विवाद की असल वजह हिजाब या धर्म पर प्रहार नहीं है,बल्कि मोदी विरोधियों के हाथ आया एक नया हथियार है।

Saturday, February 12, 2022

बलात्कार और पाक्सो एक्ट के प्रावधानों में जरुरी है तर्कसंगतता,बेवजह सजा भुगतने को विवश है हजारों युवा

 -तुषार कोठारी


दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के बाद पूरे देश में हुए प्रदर्शनों और मीडीया के लगातार हंगामे के बाद जहां सरकार ने बलात्कार सम्बन्धी कानूनों में कडे प्रावधान किए वहीं बच्चों के साथ होने वाले लैैंगिक अपराधों पर नियंत्रण के लिए देश में पाक्सो (प्रोटेक्शन आफ चिल्र्डन्स फ्राम सैक्सुअल आफेन्स एक्ट) लागू किया गया। दोनो ही घटनाएं वर्ष 2012 में हुई। तब से लेकर दस वर्ष गुजर चुके है। इन दस वर्षों में इन कानूनों के कुछ कठोर और अतार्किक प्रावधानों ने समाज में नई समस्याएं उत्पन्न कर दी है। दस वर्षों के अनुभव का सबक यही है कि इन दोनों कानूनों में तर्कसंगतता लाना आवश्यक हो गया है। पाक्सो एक्ट के अस्तित्व में आने से देश भर में पाक्सो एक्ट के मामलों की बाढ आ गई है और बडी संख्या में नवयुवक जेलों में बन्द है। सबसे दुखद पहलू यह है कि इनमें से बडी संख्या ऐसे युवकों की है जो उस लडकी के बलात्कार की सजा भुगत रहे है,जो उसी के घर में,उस की पत्नी की हैसियत से बच्चों को पाल रही है।

जारी है जुमलो के जरिये जनता का जनादेश जीतने का जतन

 -तुषार कोठारी देश की सरकार बनाने के आम चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके है। पिछले कई दशकों में शायद यह पहली बार ही हो रहा है कि देश भर में बहस ...