Saturday, January 11, 2025

श्रीखण्ड महादेव कैलास यात्रा-8/ 9 किमी की ढलान के बाद बराठी नाले में अद्भुत स्नान

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19 जुलाई शुक्रवार (रात 11.46)

20 जुलाई 24 शनिवार (प्रात: 9.00)

के-2 हाईट्स बागा सहरन


इस वक्त हम जाओ गांव से 14 किमी उपर बागा सहरन नामक स्थान पर सुबह की तैयारियों में जुटे हैं। हम यहां बीती शाम 7.30 पर पंहुचे थे। रात 11.46 पर डायरी लिखने की कोशिश की थी,लेकिन थकान और नींद इतनी ज्यादा थी कि 4 लाइन भी नहीं लिख पाया। इसलिए अब कल का पूरा घटनाक्रम आज लिख रहा हूं।


कल की सुबह थाचडू बेस कैम्प के शुरुआती टेण्ट से हमने करीब 8.15 पर चलना शुरु किया था। थाचडू से बराठी नाले तक 12 किमी लगातार खतरनाक ढलान पर उतरना था। मुझे पहाड से उतरना हमेशा मजेदार लगता है। लेकिन मेरा दांया घुटना कुछ दिक्कत देता हुआ लग रहा था। मैने इटोरिकोक्सिब टेबलेट खाई। हम सब लोग चले लेकिन आज मेरे पास ट्रेकिंग वाली स्टिक नहीं थी। मेरी छडी मैने आशुतोष को दे दी थी। लगातार नीचे उतरना था,कहीं डेढ फीट और कहीं दो से ढाई फीट के स्टेप बन रहे थे। घुटने में तकलीफ थी। उतरने के दौरान एक जगह मेरा पिछला पैर फिसल गया और वही दाया घुटना बुरी तरह मुड गया,लेकिन मैं चलता रहा। खून गर्म था इसलिए चलता रहा। हांलाकि मेरी गति काफी धीमी थी।


जाते वक्त हम थाटीविल में रुके थे। उससे नीचे खुम्बा में पत्रकारिता की पढाई कर री अंजली की दुकान पर भी हम रुके थे। सुबह थाचडू से बिना कुछ खाए पिए चले थे। मेरी इच्छा थी कि अंजली की दुकान पर ही कुछ नाश्ता करुंगा। मेरे अनुमान के विपरित काफी देर से थाटीविल की वो दुकान आई,जहां हमने पहली रात गुजारी थी। जाते वक्त खुम्बा से थाटीविल पंहुचने में डेढ घण्टा लगा था,इसलिए मेरा अंदाजा था कि 45 मिनट में मैं खुम्बा पंहुच जाउंगा। मैं करीब 10.30 पर खुम्बा पंहुचा। प्रकाश पहले से वहां मौजूद था। उतरते वक्त वही सबसे आगे था। मेरे खुम्बा पंहुचने के कुछ ही समय बाद दशरथ जी वहां पंहुच गए। मैने वहां दाल चावल खाए और चाय पी। 


हम करीब ग्यारह बजे वहां से चले। मेरे घुटने की तकलीफ अब बढ गई थी। इसलिए एक गोली और खा ली। यहां से आगे बढे। प्रकाश फिर सबसे आगे चल रहा था। थोडा आगे बढे तो मेरा बाया घुटना भी तकलीफ देने लगा। दशरथ जी और मैं साथ साथ ही चल रहे थे। आखिरकार मैने बाएं घुटने में कैप लगाने का फैसला किया। दशरथ जी ने अपने पैर में पहनी हुई नी कैप मुझे दिया। हम लोग अब तेजी से उतर रहे थे। करीब 12.15 बजे हम बराठी नाले पर पंहुच गए। 


बेहतरीन स्वच्छ जल का नाला,वैसे इसे नाला नहीं नदी कहना चाहिए,बह रहा था। नाला हमारे इलाके में बडी नाली को कहते है जिसमें गन्दा पानी बहता है,लेकिन पहाडों के नाले,नाले नहीं होते बल्कि छोटी नदिया होती है। बेहतरीन स्वच्छ कांच जैसा पानी बह रहा था। बहुत तेज बहाव था,लेकिन नहा सकने जैसे स्थान भी थे। जब हम वहां पंहुचे तो वहां प्रकाश नीचे नाले में उतरकर नहाने की तैयारी में दिखाई दिया। मैं दशरथ जी और प्रकाश हम तीनों ही नीचे नाले में उतरने और उस कांच जैसे साफ पानी की तेज बहती जलधारा में उतर गए। इस वक्त तक हम करीब नौ किमी चल चुके थे। इस बहती धारा में स्नान करने से 9 किमी चलने की पूरी थकान दूर हो गई। करीब 45 मिनट में नहा धोकर जब फिर से उपर चढे तो आदित्य आता हुआ दिखाई दिया। बराठी नाले पर जूना अखाडा के साधुओं का भण्डारा था। जहां बिना दूध की गुड वाली चाय मिल रही थी। हमने मठरी,चक्की और चाय का आनन्द लिया। 


हम चार लोग पंहुच चुके थे,लेकिन आशुतोष का कहीं पता नहीं था। यह तय किया कि दशरथ जी और आदित्य आगे जाएंगे। मैं और प्रकाश आशुतोष का इंतजार करेंगे। हम लगभग एक घण्टा इंतजार करते रहे,तब बडा खस्ताहाल आशुतोष वहां पंहुचा। उसकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो रही थी। भण्डारे के एक टेण्ट में वह लेट गया। करीब 15-20 मिनट लेटने के बाद उसे पेन किलर टेबलेट दी और ढाई बजे हम वहां से आगे बढे।


इस भण्डारे से सीधे लोहे की 131 सीढियां चढना थी। सीढियां चढ कर उपर पंहुचे। सिंहगाड अब नजदीक ही था। बराठी नाले का मुख्य भण्डारा इससे भी पहले आना था। कुछ ही आगे बढे लेकिन आशुतोष चल नही पा रहा था। एक और भण्डारा आया,जहां खीर,हलवा और सब्जी पुडी बंट रही थी। इस भण्डारे पर जाकर आशुतोष ने कहा उसे चक्कर आ रहे हैं। भण्डारे से थोडा आगे एक दुकान में उसे लिटाया। मैने भण्डारे में जाकर खीर और हलवा खाया। लौटकर आया,लेकिन आशुतोष महाराज उठने को तैयार नहीं थे। मुझे पहले लगा था कि यदि हम अपनी चाल से चलते तो 2.30- 3.00 बजे तक जाओ पंहुच जाते,लेकिन अब हमें हर हाल में आशुतोष को अपने साथ लेकर जाना था।


आशुतोष को उस दुकान में चाय पिलाई,वह धीरे धीरे उठने को तैयार हुआ,लेकिन तभी बारिश शुरु हो गई। 15-20 मिनट और रुके। बारिश धीमी हुई तब आगे बढे। कुछ देर बाद फिर जो भण्डारा आया उसने तबियत मस्त कर दी। भण्डारे में गोलगप्पे और खीर बंट रही थी। गोलगप्पे बेहद शानदार थे। गोलगप्पे खाकर आगे बढे। तब बराठी नाले का वो भण्डारा आया,जहां उपर जाते वक्त हमने सब्जी पुडी खाई थी। 

यहां से धीरे धीरे सिंहगाड तक पंहुचे। सिंहगाड में प्रवेश करते ही जलजीरा और आम का जूस पिलाया जा रहा था। आशुतोष को बीपी कम या शुगर कम होने की आशंका थी। पहले उसने जूस पिया। फिर उसे धीरे धीरे मेडीकल कैम्प तक लेकर आए। वहां डाक्टर ने चैक किया और उसे फुलफिट करार दिया। यहीं इस यात्रा का प्रसिध्द जलेबी पकौडे वाला लंगर था,जहां मैने भी एक जलेबी और पकौडे खाए। अब यहां से जाओ मात्र तीन किमी दूर था। लेकिन हमारी गति बेहद धीमी थी। आगे बढे,फिर एक भण्डारे पर रुके जहां चाय पिलाई गई। यहां से आगे बढे। हम करीब 5.45 पर पहाड से नीचे आ गए। यहां से सडक़ शुरु हो गई थी। मोबाइल नेटवर्क तो काफी पहले से आ गया था। दशरथ जी को फोन किया कि वे गाडी लेकर हमें लेने आ जाएं। इस बीच आशुतोष की घर पर भी बात हो गई और पिता जी के ठीक होने की खबर भी मिल गई। कुछ देर इंतजार करने के बाद दशरथ जी गाडी लेकर आ गए।  


हम गाडी में सवार हुए। जाओ के उसी भण्डारे में पंहुचे,जहां पहले दिन रजनीश गुप्ता वकील सा.से मुलाकात हुई थी।  उन्ही की सलाह पर बागा सहरन के निकलना था। गुप्ता जी से मुलाकात हुई,उन्होने प्रसाद और कैलेण्डर भेंट किए। वहां से चले,बेहद खराब रोड,12 किमी का रास्ता और यहां शानदार के-2 हाईट्स में आकर रुक गए।

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