(10 जुलाई 24 से 22 जुलाई 24 तक)
शुरूआती सफर
10 जुलाई 2021 बुधवार (रात 11.30)
प्रिन्स गेस्ट हाउस (सवाई माधोपुर राज.)
हमारी ये यात्रा प्रारंभ हो चुकी है। इस बार लक्ष्य है श्रीखण्ड महादेव का दर्शन करना। इस वक्त हम सवाई माधोपुर से कुछ ही दूर यहां प्रिन्स गेस्ट हाउस में रुके है। एटलेन एक्सप्रेस वे ठीक सामने है,कल सुबह इसी एटलेन से दिल्ली और आगे का सफर करेंगे।
श्रीखण्ड महादेव की यात्रा का पैशन पिछले दो तीन सालों से था,इसलिए इस बार दो-तीन महीनो पहले ही एक्टिव हो गए थे। पता चला कि यात्रा जुलाई में होगी,इसलिए यात्रा की तैयारियां जून से शुरु कर दी थी। पहली बार इस यात्रा के लिए पोंचू,ट्रैकिंग स्टिक,हेड लाइट जैसी सारी चीजें आनलाइन मंगवाई। जैसे ही यात्रा का रजिस्ट्रेशन शुरु हुआ,हम सभी ने रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया। हम सभी ने यात्रा के पहले दिन यानी 14 जुलाई का ही रजिस्ट्रेशन करवाया है।
इस यात्रा में मेरे साथ दशरथ पाटीदार,प्रकाश राव पंवार और मन्दसौर से आशुतोष नवाल है।
यात्रा के प्रारंभ का दिन 10 जुलाई तय किया गया था। 10 जुलाई को 10 बजे रतलाम से निकलने की योजना थी। इन तैयारियों के बीच दशरथ जी ने गौमुख यात्रा में मिले आदित्य को भी फोन लगाया। उसने भी रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। वह भी हमे 13 जुलाई को जाओ गांव में मिलेगा।
हमारी यात्रा आज सुबह 8.45 पर शुरु हुई,जब वैदेही मुझे छोडने आफिस पर आई। आई दादा के चरण स्पर्श करके हम निकले तो 8.50 पर आफिस पंहुच गए। 9.30 पर दशरथ जी और डा.दिनेश राव भी आ गए। प्रकाशराव ने पहले ही कह दिया था कि वह दस बजे पंहुचेगा,लेकिन वह भी दस बजे से पहले आफिस पर आ चुका था। आफिस पर डा. दिनेश राव सभी के लिए पोहे कचोरी,जलेबी का नाश्ता ले आए। आफिस पर हमे बिदाई देने डा. दिनेश के अलावा गामड पहलवान और प्रतिमाताई भी आ गए थे। ठीक 9.50 पर हम आफिस से निकल गए।
रतलाम से निकले तो ठीक 11.30 पर हम मन्दसौर पंहुच गए। हम लोग प्रकाशराव की स्विफ्ट डिजायर से चले थे,जो कि हमे मन्दसौर में बदलना थी। प्रकाशराव की गाडी पैट्रोल की है,जबकि हम डीजल गाडी से जाने वाले थे। मन्दसौर में आशुतोष के सिटी आफिस पर वह गाडी मौजूद थी,जिससे हमे यात्रा करना थी। वहां पंहुचते ही हमने अपना लगेज दूसरी गाडी में सैट किया।
मन्दसौर में मेल मुलाकात,स्वागत सत्कार के बाद 12.40 पर चले। सीतामउ से हमें एटलेन एक्सप्रेस वे पर चढना था,इससे ठीक पहले एक और विदाई समारोह हुआ। मन्दसौर से हमे छोडने 5-6 लोग सीतामउ आए थे।
करीब 1.45 पर हम एटलेन पर चढे। केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एटलेन की कल्पना की थी। हांलाकि अभी भी ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है। लेकिन जितना बना है,वह भी अद्भुत है। हमने एटलेन एक्सप्रेस वे पर ही दोपहर का भोजन किया। महंगा भोजन,लेकिन फिर भी मजेदार था। एटलेन कोटा से काफी पहले समाप्त हो जाता है। एटलेन छोडकर नीचे उतरे। फिर टू लेन पर चलते हुए यहां सवाई माधोपुर के बिलकुल नजदीक आ गए। रात के 9 बज चुके थे। हमे पता था कि अगर एटलेन पर चढ गए तो फिर पता नहीं रात कहां गुजारेंगे। इसीलिए होटल की तलाश शुरु कर चुके थे। यहीं प्रिन्स गेस्ट हाउस मिल गया। जो मुख्य सडक़ से करीब पांच सौ मीटर भीतर है,लेकिन बढिया है। यहां भोजन किया।
इस बीच एक नई समस्या सामने आ गई। आशुतोष के पिता जी का स्वास्थ्य पिछले 4-6 दिनों से ज्यादा खराब हो रहा है। उन्हे कमजोरी बहुत ज्यादा है। वे पिछले दो तीन दिनों में दो बार गिर चुके है। हमने आशुतोष को यात्रा निरस्त करने को भी कहा था,वह भी चाहता था,लेकिन उन्होने जबर्दस्ती उसे यात्रा पर भेजा। अभी रात को भी उनकी कमजोरी के समाचार मिल रहे है। हम लोगों ने आशुतोष को सलाह दी है कि यदि वह लौटना चाहता है,तो लौट जाए। फिर ये तय किया कि सुबह का अपडेट लेकर आगे का तय करेंगे।
फिलहाल हम इस गेस्ट हाउस में आ चुके है और अब सोने की तैयारी है।
दूसरा दिन
11 जुलाई 24 गुरुवार (प्रात: 8.55)
प्रिन्स गेस्ट हाउस सवाई माधोपुर(राज)
इस वक्त हममें से आधे यानी मैं और प्रकाश राव तैयार हो चुके है। नवाल सा. और दशरथ जी तैयार हो रहे है।
हम लोग एक्सप्रेस वे के बहुत नजदीक है। यहां से निकलेंगे तो सीधे एक्सप्रेस वे पर चढेंगे और फिर शिमला तक लगातार शानदार हाईवे पर चलेेंगे।
इस यात्रा के लिए हम लोगों ने कई दिनों से तैयारियां की है। शारीरिक भी और उपकरणों की भी। सभी के लिए पोचू,हेडलाइट और स्टिक्स मंगवाई गई है। मैने रकसक बैग और जूते भी मंगवाए है। अन्य लोगों ने भी इस ट्रैकिंग के लिए विशेष जूते मंगवाए है। हमें 18500 फीट की उंचाई तक जाना है इसलिए सारे साधन मजबूत होना जरुरी है।
यहां प्रिन्स गेस्ट हाउस के बगल में बंजारों का एक डेरा बन रहा है। तीन चार महिलाएं अपने तंबू लगाने की तैयारियां कर रही हैं। 4-5 नन्हे नंगे बच्चे इधर उधर दौड रहे हैं। इनके आदमी शायद काम पर गए हुए हैं। मैं काफी देर तक इन महिलाओं को देख रहा था। गृहस्थी के नाम पर उनके पास एक चारपाई,तंबू लगाने का प्लास्टिक,कुछ बाल्टियां,बांस जैसी चीजें है। बारिश के इस मौसम में ये लोग कैसे रहेंगे यही सोचता रहा। महिलाएं 25 से 30 की आयु की होगी,लेकिन भारतीयता से भरपूर। पैरो में चांदी के कडे,हाथों में चूडियां,नाक में नथ,कानों में एक नहीं कई कई बालियां। मुझे अच्छा लगा कि इनकी भारतीयता अभी छिनी नहीं है।
अब हम यहां से निकलने की तैयारी में है और उम्मीद है कि आज हम हिमाचल प्रदेश में प्रवेश कर जाएंगे।
11 जुलाई 24 (रात11.00)
होटल पैरामाउण्ट कालका
इस वक्त हम चण्डीगढ शिमला हाईवे पर कालका से मात्र दो किमी बाहर हाईवे के ही इस होटल में रुके हुए हैं। पहले मैने कोशिश की थी,कालका के सर्किट हाउस में रुकने की। पहले एक बार यहां सर्किट हाउस में हम रुक चुके है। बेहद शानदार सर्किट हाउस है। लेकिन आज हमे वहां बुकींग नहीं मिल पाई। हमारा अंदाजा शाम 7 बजे तक यहां पंहुचने का था,लेकिन हम करीब 8 बजे यहां पंहुचे और रुक गए। अच्छा होटल है,यहां ढाई हजार रु. में हमने दो एसी कमरे टीवी वाले लिए है। अब तक हम 1050 किमी का सफर पूरा कर चुके है।
आज का सफर हमने सुबह 10 बजे सवाई माधोपुर के प्रिन्स होटल में पराठे खाने के बाद शुरु किया था। यहां से 8 लेन एक्सप्रेस वे मात्र तीन चार किमी दूर है और हम सीधे 8 लेन पर चढ गए। 8 लेन रोड जबर्दस्त है। मोदी सरकार और नितिन गडकरी ही ये काम कर सकते थे। यहां से दिल्ली की दूरी 350 किमी है। 8 लेन पर प्रतिघण्टा सौ किमी की दूरी आसानी से तय होती है। 120 किमी प्रति घण्टा की रफ्तार कार के लिए मान्य है। आप सौ एक सौ दस पर भी चलेंगे तो एक घण्टे में सौ किमी चल जाएंगे। ऐसा लगता है जैसे हम अमेरिका में चल रहे हैं। तीन घण्टों में ही हम 8 लेन एक्सप्रेस वे से वेस्टर्न पैरिफेरल रोड पर आ गए। ये पैरिफेरल रोड भी चमत्कार है। अब आपको दिल्ली के खतरनाक ट्रैफिक में घुस कर दिल्ली पार नहीं करना पडती। 113 किमी का वेस्टर्न पैरिफेरल रोड भी एक सवा घण्टे में पार हो गया और हम दिल्ली अम्बाला चण्डीगढ हाईवे पर आ गए। दोपहर करीब तीन बजे भोजन के लिए एक देसी ढाबे पर रुके। दाल रोटी का भोजन किया और आगे बढ गए। हमारा लक्ष्य कालका पंहुचने का था,जहां हम सही समय पर आ गए। यहां से हिमाचल की पहाडियां नजर आने लगी है। हिमाचल प्रदेश मात्र कुछ किमी ही दूर है। सुबह यहां से चलेेंगे तो हिमाचल प्रदेश के पहाडी रास्तों का मजा लेते हुए शाम तक जाओ गांव पंहुच जाएंगे।
आज के दिन हमने करीब 650 किमी की दूरी तय की है। कल पहाडी घुमावदार रास्तों का मजा लेते हुए जाओ पंहुचने की कोशिश करेंगे।
शुभ रात्रि.......।
तीसरा दिन
12 जुलाई 2024 शुक्रवार (प्रात: 9.00)
होटल पैरामाउण्ट,कालका
इस वक्त मेरे अलावा प्रकाश राव और नवाल सा. तैयार हो चुके हैं। दशरथ जी तैयार हो रहे हैं। हम जल्दी ही यहां से रवाना हो जाएंगे।
बीती रात हमने कालका के बाहर इस होटल में गुजारी है। ये कालका वही स्थान है,जहां से शिमला के लिए हैरिटेज नेरो गेज ट्रैन चलती है। अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र में रेलवे लाइन बिछाई थी,जो आज पर्यटकों के आकर्षण का बडा केन्द्र है। इस रेलवे लाइन के पहाडी घुमाव और पहाडियों के बीच बनाए गए पुल गजब के है।
कालका,कालका माता के कारण प्रसिध्द है। यहां कालका माता का मन्दिर और गुरुद्वारा एक ही परिसर में स्थित है। जो श्रध्दालु कालिका माता के दर्शन करने जाते है,वे गुरुद्वारे में भी जरुर मत्था टेकते है। सिखो में अलगाव की भावनाएं पनपाई जा रही है,लेकिन ऐसे स्थानों का क्या करेंगे जहां मन्दिर और गुरुद्वारा एक ही परिसर में है। इन्हे कैसे अलग करेंगे?
(अगला भाग पढ़ने के लिए यंहा क्लिक करें)
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