- तुषार कोठारी
आत्महत्या को विश्व के सभी प्रमुख धर्मों द्वारा निन्दनीय और कायरता भरा कृत्य माना गया है। कारण चाहे जो हो,आत्महत्या को किसी भी तरह महिमामण्डित नहीं किया जा सकता। आत्महत्याओं के आंकडों का विश्लेषण यह बताता है कि आत्महत्या के कारण हमेशा व्यक्तिगत होते है। व्यक्ति जब अवसाद के चरम स्तर पर पंहुच जाता है,तब वह आत्महत्या जैसा कदम उठाता है और इसीलिए आत्महत्या को कायरताभरा कृत्य माना जाता है। इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ कि किसी व्यक्ति ने राष्ट्रीय या सामाजिक मुद्दों को लेकर आत्महत्या की हो। आरक्षण जैसे मुद्दोंं को लेकर कुछ व्यक्तियों द्वारा किए गए आत्मदाह जैसे मामलों को आत्महत्या की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। आत्महत्या की घटना व्यक्ति एकान्त में अकेलेपन की स्थिति में ही करता है। मनोविज्ञानियों का सुविचारित मत है कि अवसाद की चरम अवस्था में आत्महत्या का विचार कर रहे व्यक्ति के पास यदि कोई अन्य व्यक्ति पंहुच जाता है,तो वह आत्महत्या के विचार से विरत हो जाता है। आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कृत्य को केवल राजनीतिक फायदे के लिए ही महिमा मण्डित किया जा सकता है,किसी अन्य वजह से नहीं।
राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो (नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो एनसीआरबी ) के आंकडें आत्महत्या के मामले में चौंकाने वाले है। एनसीआरबी ने फिलहाल 2014 तक के आंकडें प्रस्तुत किए है। वर्ष 2015 को समाप्त हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है,इसलिए इसका विश्लेषण फिलहाल उपलब्ध नहीं है। लेकिन वर्ष 2004 से 2014 के एक दशक के दौरान देश भर में हुआ आत्महत्याओं के आंकडें और उनका विश्लेषण कई नई जानकारियों को सामने लाता है।
एनसीआरबी के आंकडें बताते है कि वर्ष 2004 से 2014 के इस एक दशक में आत्महत्या की प्रवृत्ति में वृध्दि हुई है। वर्ष 2004 में जहां 1,13,697 लोगों ने आत्महत्या की थी,वहीं 2014 में आत्महत्या की संख्या बढकर 1,33,666 हो गई थी। इस प्रकार इस दशक में आत्महत्या की वृध्दि दर 15.8 प्रतिशत रही। अगर आत्महत्याओं के आंकडों के प्रदेशवार देखा जाए,तो सर्वाधिक आत्महत्याओं वाला प्रदेश महाराष्ट्र रहा है। यहां वर्ष 2014 में कुल 16,307 लोगों ने आत्महत्या की थी। देश में हुई कुल आत्महत्याओं में यदि देखा जाए तो महाराष्ट्र 12.4 प्रतिशत के साथ प्रथम स्थान पर रहा। दूसरे नम्बर पर तमिलनाडू (12.2 प्रतिशत),तीसरे पर पं.बंगाल( 10.9 प्रतिशत),चौथे पर कर्नाटक( 8.3 प्रतिशत) और पांचवें नम्बर पर तेलंगाना ( 7.3 प्रतिशत ) रहा। आत्महत्याओं के मामले में ये पांचों प्रान्त सबसे आगे रहे हैं। देश में हुई कुल आत्महत्याओं में से 51.1 प्रतिशत आत्महत्याएं इन पांच राज्यों में हुई है,जबकि शेष 24 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेशों में 48.9 प्रतिशत आत्महत्याएं हुई। जिस युवक की आत्महत्या को लेकर बवाच मचा है,उस तेलंगाना प्रदेश में आत्महत्या की दर प्रति एक लाख में एक के हिसाब से 26.5 रही है और तेलंगाना इस लिहाज से देश में चौथे स्थान पर रहा है। जबकि संपूर्ण देश की आत्महत्या की दर मात्र 10.6 रही है।
दएनसीआरबी द्वारा इन आंकडों का और भी अधिक विश्लेषण किया गया है। वर्ष 2014 में हुई कुल 1,31,666 आत्महत्याओं में पुरुष महिला का अनुपात 67.7 और 32.3 का रहा है। अर्थात आत्महत्या करने वालों में 67.7 प्रतिशत पुरुष थे,जबकि महिलाओं का प्रतिशत 32.3 था। इस वर्ष आत्महत्या करने वालों में 89,129 पुरुष थे,जबकि महिलाओं की संख्या 42,521 थी।
आंकडे यह भी दर्शाते है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति सबसे ज्यादा युवाओं में ही है। आयु समूह के आधार पर किए गए विश्लेषण के मुताबिक आत्महत्या करने वालों में 18 वर्ष से 45 वर्ष के बीच की आयु वालों की संख्या सबसे अधिक थी। इनमें भी 18 से 30 वर्ष के आयु समूह वालों का प्रतिशत 34.1 था,जबकि 30 से 45 वर्ष आयू समूह के लोग दूसरे स्थान पर रहे। इनका प्रतिशत 32.2 था। इस तरह कुल आत्महत्या करने वालों में से 66.3 प्रतिशत लोग 18 से 45 वर्ष आयू समूह के थे।
एनसीआरबी के आंकडों के मुताबिक अनपढ लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति पढे लिखे लोगों से कम है। वर्ष 2014 में जिन लोगों ने आत्महत्या की,उनमें से निरक्षर मात्र 14.3 प्रतिशत थे,जबकि शेष 70.4 प्रतिशत पढे लिखे थे। 14.3 प्रतिशत लोगों की जानकारी उपलब्ध नहीं थी। इन पढे लिखे लोगों में भी उच्च शिक्षितों में आत्महत्या की दर अधिक रही। आंकडों के मुताबिक मीडील तक शिक्षा पाए हुए लोगों का प्रतिशत 39.2 था जबकि उच्च शिक्षितों का प्रतिशत भी इसके आसपास ही अर्थात 35.7 प्रतिशत था।
एनसीआरबी के आंकडें आत्महत्या करने के तरीकों पर भी प्रकाश डालते है। वर्ष 2014 में आत्महत्या करने वालों में से सर्वाधिक 41.8 प्रतिशत लोगों ने फांसी लगाकर अपनी जान दी। जहर खाकर जान देने वाले दूसरे नम्बर पर थे। 26 प्रतिशत लोगों ने जहर खाकर जान दी। स्वयं को आग लगाकर खत्म करने का तरीका कम लोकप्रिय है। मात्र 6.9 प्रतिशत लोगों ने स्वयं को आग लगाकर अपनी इहलीला समाप्त की। ट्रेन के नीचे आकर 2.6 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की,वहीं किसी बिल्डिंल या वाहन से कूदकर जान देने वालों का प्रतिशत मात्र 1.1 रहा। शेष लोगों ने अपना जीवन समाप्त करने के लिए कुछ अन्य तरीकों का उपयोग किया।
अब गौर किया जाए,आत्महत्या के कारणों पर। एनसीआरबी के आंकडे बताते है कि आत्महत्या करने का सबसे बडी कारण अन्य पारिवारिक विवाद है। आत्महत्या करने वालों में से 21.7 प्रतिशत लोगों ने अन्य पारिवारिक कारणों से आत्महत्या की। बीमारी आत्महत्या की दूसरी बडी वजह है। किसी लाइलाज बीमारी से परेशान व्यक्ति आत्महत्या में राहत तलाशता है। बीमारी की वजह से आत्महत्या करने वालो का प्रतिशत 18 प्रतिशत है। अन्य कारणों को देखें तो वैवाहिक विवादों के कारण 5.1 प्रतिशत,प्रेम सम्बन्धों के कारण 3.2 प्रतिशत,नशा या ड्रग एडिक्शन की वजह से 2.8 प्रतिशत,परीक्षा में फेल होने की वजह से 1.8 प्रतिशत,बेरोजगारी की वजह से 1.7 प्रतिशत,गरीबी के कारण 1.3 प्रतिशत,संपत्ति विवाद के कारण 0.8 प्रतिशत और किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु के कारण आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 0.7 है। अन्य कारणों से आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 33.2 रहा है। जबकि से 12.4 प्रतिशत आत्महत्या के मामले ऐसे हैं,जिनमें आत्महत्या का कारण स्पष्ट नहीं हो सका।
आंकडे और विश्लेषण सामने है। किसी विश्वविद्यालय के किसी होस्टल में खुद को फांसी लगा लेने वाला कोई छात्र किसी भी जाति का हो,आत्महत्या निन्दनीय ही होती है। हांलाकि यह भी सच है कि प्रत्येक आत्महत्या के पीछे एक दुखद कहानी छुपी होती है। असहनीय दु:ख के कारण उपजे अवसाद की वजह से ही आत्महत्या की जाती है। एक आत्महत्या पर पिछले कई दिनों से हो हल्ला मचा रहे लोगों से पूछा जाना चाहिए कि देश में हर साल हो रही सवा लाख आत्महत्याओं में से उन्हे एक ही जिक्र के काबिल क्यो लगती है? क्या इसलिए कि वह एक देशद्रोही की फांसी का विरोध करने वाले की थी?
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