Sunday, July 10, 2016

despite Modi Government kashmir returns in 90's decade मोदी सरकार के बावजूद नब्बे के दशक में लौटता कश्मीर

-तुषार कोठारी

कहीं पुराने रास्ते पर तो नहीं लौट रहा है कश्मीर। कश्मीर से आ रही खबरें बेहद डरावनी है। अमरनाथ यात्रा रुकी
हुई है। एक आतंकी के जनाजे में हजारों की भीड उमड रही है और अमरनाथ यात्रियों के साथ मारपीट कर पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगवाए जा रहे हैं। यह सब कुछ तब,जबकि जम्मू काश्मीर की सत्ता में स्वयंभू तौर पर सर्वाधिक राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा साझेदार है। डर का सबसे बडा कारण भी यही है कि केन्द्र में पूर्ण बहुमत के साथ आसीन भाजपा के जम्मू काश्मीर की सत्ता में साझेदार होने के बाद अगर कश्मीर में अमरनाथ यात्री असुरक्षित है तो क्या स्थिति 1990 जैसी ही नहीं हो गई है।

 जम्मू कश्मीर के आंतकवाद का सबसे बुरा दौर नब्बे का दशक माना जाता है,जबकि आतंकवाद को चरम पर पंहुचा दिया गया था। गैर मुस्लिमों खासतौर पर काश्मीरी पण्डितों पर बर्बर अमानुषिक अत्याचार किए जा रहे थे और पुलिस और सेना ना जाने कहां छुपे बैठे थे। आतंकियों को अत्याचार की खुली छूट दे दी गई थी। जब कश्मीर के गैर मुस्लिमों और पण्डितों को यह तथ्य ध्यान में आया कि खुद सरकार ही आतंकियों की सरपरस्त है और उन्हे बचाने वाला कोई नहीं है,तब पण्डितों ने मजबूरन पलायन शुरु कर दिया। तब से लेकर आज तक वे अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए है।  कश्मीर लगभग हाथ से निकल गया था। श्रीनगर से राज्य की राजधानी भी हटा ली गई थी। इसे जम्मू लाया गया था। सबकुछ खत्म हो जाने के बाद तत्कालीन केन्द्र सरकार की आंखे खुली थी और जगमोहन को सारे अधिकार देकर राज्यपाल बनाकर वहां भेजा गया था। ये जगमोहन का ही साहस था कि आज कश्मीर देश में बना हुआ है। जगमोहन ने कई कडे कदम उठाए थे,जिसमें कई कई दिनों तक देखते ही गोली मारने के आदेश लागू करने जैसे कदम भी शामिल थे। तब कहीं जाकर कश्मीर के कथित रुप से भटके हुए लोगों को कुछ अकल आई थी और वहां शांति स्थापित होना शुरु हुई थी। इसके बाद केन्द्र सरकार के प्रयासों के चलते वहां लोकतंत्र की पुन: स्थापना की कोशिशें चालू हुई और धीरे धीरे चुनाव प्रक्रिया शुरु हुई। राज्य की चुनाव प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी बढने लगी। पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत सत्तर प्रतिशत तक जा पंहुचा था। इसी तथ्य से यह उम्मीद भी जगी थी कि कश्मीर के आम लोग आतंकवाद से उब चुके है और अब विकास के रास्ते पर चलने को तैयार है।
  इसी के साथ सबसे बडा क्रान्तिकारी बदलाव यह आया था कि जम्मू काश्मीर की सत्ता में भाजपा भी भागीदार बनी थी। हांलाकि भाजपा को कश्मीर घाटी में कोई जनसमर्थन नहीं मिला है। भाजपा को मिली तमाम सीटे जम्मू क्षेत्र से मिली है। जबकि पीडीपी ने कश्मीर घाटी में जीत हासिल की है। भाजपा के सत्ता में भागीदार होने से और साथ ही साथ 56 इंच की छाती वाले मोदी जी के पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनने से देश के हर नागरिक को उम्मीद बंधी थी कि अब जम्मू कश्मीर के हालात पूरी तरह सामान्य हो जाएगें और आतंकवादियों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा।
लेकिन जो दृश्य सामने आ रहे वे बेहद भयावह है। दस लाख रुपए के इनामी आतंकी के एनकाउण्टर पर घाटी में जिस तरह की भीड उमडी है उससे लगता है कि आज भी बडी संख्या में वहां के लोग भारत विरोधी है। जिस तरह अमरनाथ यात्रियों के साथ मारपीट की घटना हुई और उनसे पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगवाए गए,उससे नब्बे का दशक दोबारा याद आता है। यह बात ध्यान देने वाली है कि अमरनाथ यात्रा के दौरान घाटी की सुरक्षा व्यवस्था बेहद कडी कर दी जाती है। चप्पे चप्पे पर अध्र्दसैनिक बलों की तैनाती होती है। ऐसे में यदि अमरनाथ यात्रियों के साथ मारपीट की घटना हुई है,तो इसका यही अर्थ है कि केन्द्रीय बलों ने या तो लापरवाही बरती है या उन्हे जानबूझकर यात्रियों की सुरक्षा से दूर रखा गया है। अमरनाथ यात्रा के दौरान यात्रियों की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी केन्द्रीय बलों के जिम्मे रहती है और राज्य की पुलिस का इसमें कोई हस्तक्षेप२ नहीं होता। हो सकता है कि इस वर्ष व्यवस्था में बदलाव कर दिया गया हो। गृहमंत्रालय इस खुशफहमी में जी रहा हो कि कश्मीर में भाजपा सरकार होने की वजह से वहीं की पुलिस इमानदारी से अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा करेगी और इसी वजह से केन्द्रीय बलों की तैनाती कम संख्या में की गई हो।
बहरहाल, केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार होने के साथ ही कश्मीर में भी भाजपा के सरकार में शामिल होने के बावजूद यदि अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा में ढील बरती गई है,तो यह भाजपा नेतृत्व के लिए डूब मरने जैसा मुकाम है और बेहद शर्मनाक है। इन्ही घटनाओं में ये डरावने संकेत भी छुपे है कि सत्ता के लालच में भाजपा राष्ट्रद्रोही तत्वों को अनदेखा कर रही है और इसके दूरगामी दुष्परिणाम देश को भुगतने पड सकते है।
2014 के आम चुनाव में देश के मतदाता ने जिन उम्मीदों के लिए 56 इंच के सीने वाले मोदी जी को वोट दिया था,वे ईद पर नवाज शरीफ को मुबारकबाद देने में व्यस्त है और अमरनाथ यात्रियों को मारपीट कर उनसे पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगवाए जा रहे है। अब बडा सवाल यह है कि क्या कश्मीर की सत्ता में भाजपा की भागीदारी इसी तरह जारी रहेगी? केन्द्र की भाजपा सरकार कश्मीर में कडे कदम उठाने से कब तक हिचकती रहेगी? क्या यही मोदी जी का करिश्माई और दबंग नेतृत्व है?

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