- तुषार कोठारी
देश की जनता यह बात बहुत अच्छे से समझती है कि कालेधन का कैंसर देश के शरीर के प्रत्येक अंग तक फैल चुका है। कालेधन का यह कैंसर एडवान्स स्टेज पर पंहुच चुका था और इसे दूर करने के लिए बडी सर्जरी जरुरी थी। कैंसर जैसी बडी बीमारी का जब भी आपरेशन किया जाता है,शरीर को कुछ कष्ट तो झेलना हीकालेधन को समाप्त करने के लिए मोदी जी द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक से तिलमिलाएं नेता,राजनीतिक दल और काला धन के धनकुबेर इस मुहिम को रोकने के लिए तरह तरह के हथकण्डे अपनाने में जुट गए हैं।
वे जानते है कि इस मुहिम को रोकने के लिए पहली जरुरत जनता को भडकाने की है। एक बार जनता भडक गई,तो सबकुछ ठीक हो सकेगा। बैंकों और एटीएम के बाहर शांति से खडी जनता को भडकाने के लिए संसद के भीतर नेता और संसद के बाहर मीडीया के एक वर्ग द्वारा जो कुछ किया जा रहा है,वह हास्यास्पद सा है। कालेधन के खिलाफ छेडी गई इस लडाई को वे खोखले तर्को,थोथी भाषणबाजी और झुठे तथ्यों से हराने की कोशिश में जुटे है। इसमें कई सारे वे लोग भी शामिल हो गए है,जो स्वयं ही स्वयं को बुध्दिजीवी का दर्जा देते है।
आठ नवंबर की रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अचानक की गई नोटबंदी की घोषणा के बाद चार पांच दिन तो कालेधन के कुबेरों की स्थिति बेहोशी में चले जाने जैसी हो गई थी। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि इस मास्टर स्ट्रोक से कैसे निपटे। करीब एक सप्ताह गुजरते गुजरते उनकी चेतना वापस लौटी और धीरे धीरे उन्होने इस मुहिम को गलत साबित करने के लिए खोखले तर्कों और झूठे तथ्यों के सहारे थोथी भाषणबाजी का आधार तैयार किया।
कुछ सालों पहले गांधी टोपी लगाने वाले अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में शामिल होकर स्वयं को इमानदार बताते हुए दिल्ली की सत्ता हथिया चुके अरविन्द केजरीवाल से लेकर लगातार दस सालों तक दुनियाभर के घोटाले कर अरबों खरबों की काली कमाई कर चुके कांग्रेसी नेताओं तक सारे लोगों ने अपने अपने स्तर पर इस मुहिम की खिलाफत शुरु की। मीडीया के एक वर्ग को इससे जोडा गया,जो रुपए लेने के लिए कुछ घण्टे लाइन में खडे होने को दुनिया का सबसे बडा कष्ट बताने में जुट गए। वे भूल गए कि इस देश की जनता,जियो की सिम मुफ्त में पाने के लिए घण्टों न सिर्फ लाइन में खडे रहने को तैयार हो जाती है,बल्कि डण्डे पडने पर भी शिकायत नहीं करती। देवताओं के प्रति अपनी आस्था के चलते तिरुपति और महाकाल जैसे मन्दिरों के बाहर दर्शनार्थी कुछ घण्टो नहीं बल्कि दिन दिन भर लाइन में खडे रहते हैं। कुछ सालों पहले तक तो,शक्कर और केरोसीन के लिए राशन दुकानों के बाहर घण्टों लोग लाइन में खडे रहा करते थे। आज भी बिजली का बिल भरने और सार्वजनिक नलों पर पानी भरने के लिए लोग लाइन में लगे रहते है। रेलवे का रिजर्वेशन काउण्टर भी इसी का उदाहरण है,जहां हर रोज लोगों को घण्टों लाइन में लगना पडता है।
लाइन में खडे लोग जब भडकने को तैयार नहीं हुए तो फिर खोखले तर्कों और झूठे तथ्यों का सहारा लिया जाने लगा। दिल्ली विधानसभा में आप पार्टी की एक महिला विधायक अपने भाषण में कह रही थी कि नोटबन्दी के दिन से एक दिन पहले भाजपा की बंगाल इकाई ने करोडों रुपए बैंक में जमा किए। विधायक महोदया,बडे गर्व से एकाउण्ट नम्बर भी बता रही थी। पहले कांग्रेस में रही और अब आप पार्टी में आई ये महिला नेत्री इतनी सी बात नहीं समझ पाई कि रुपए बैंक में जमा कर देना ही उन रुपयों के सही होने का प्रमाण था। ये करोडों रुपए नोटबंदी के बाद भी जमा करवाए जा सकते थे,क्योंकि एकाउन्टेड राशि के जमा करने पर अब भी कोई पाबन्दी नहीं है। मोदी जी की लडाई उस रकम के खिलाफ है,जो छुपाई जाती है। बैंक में जमा की जाने वाली कोई भी रकम छुपी हुई नहीं होती।
संसद में भी ऐसे ही हास्यास्पद तर्क दिए जा रहे थे। संसद में कांग्रेस की ओर से आनन्द शर्मा ने कई सारे खोखले तर्क पेश किए। उन्हे सबसे बडा दुख तो इसी बात का था कि देश की जनता को लाइन में खडा कर दिया गया। जब लाइन में खडे लोगों को ही इससे कोई परेशानी नहीं है,तो नेताओं के इस पर हायतौबा मचाने से क्या होने वाला है। कांग्रेस के ये नेता जी संसद में पूछ रहे थे कि इतना बडा कदम बिना तैयारी के कैसे उठा लिया गया। वे असल में यह चाहते थे कि कम से कम मोदी जी इसका कोई इशारा तो उन्हे दे देते ताकि वे अपने कालेधन को बचाने की कोई जुगत लगा पाते। अरविन्द केजरीवाल जैसे नेताओं को भी कुछ ऐेसे ही कष्ट है। केजरीवाल कह रहे है कि बडे उद्योगपतियों को यह जानकारी लीक कर दी गई और उन्हे फायदा पंहुचाया गया। कहने को तो केजरीवाल स्वयं आयकर विभाग के अधिकारी रह चुके हैं। लेकिन उनकी बातों से ऐसा लगता है कि या तो वे बिना योग्यता के भ्रष्टाचार के सहारे आयकर अधिकारी बने थे,या फिर केवल राजनीति के लिए झूठ बोल रहे हैं। इतनी सी बात को साधारण समझ वाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि यदि किसी उद्योग को प्रारंभ करने में कोई रकम लगाई गई है,तो आखिरकार वह एकाउन्टेड रकम ही है। उद्योग में इन्वेस्ट की गई राशि कितनी भी हो,आखिरकार उससे होने वाली आय पर नजर रखने की अनेक व्यवस्थाएं है। कंपनी संचालन के लिए अनेक नियम कानून है,जिनके तहत कोई कंपनी काम करती है। जियो मोबाइल या पेटीएम जैसी कंपनी में निवेश की गई राशि को कालाधन बताना यही दर्शाता है कि या तो वे नासमझ है या जानबूझकर भ्रम फैलाने के लिए झूठ बोल रहे है।
वर्तमान स्थिति को देखकर साधारण समझ वाला आम आदमी भी यह समझ रहा है कि जिस किसी के पास कालाधन था,वह अब रद्दी हो गया है। कालाधन रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा है कि वह किसी न किसी तरह इस रकम को नई करेंसी में बदल ले। नई करेंसी इतनी मात्रा में उपलब्ध ही नहीं है,कि उसे काले धन से बदला जा सके। यही वजह है कि लोग जनधन खातों और किसान क्रेडिट कार्ड के खातों में अपना काला धन जमा करने की फिराक में है। इसके बावजूद वे सफल नहीं हो पा रहे हैं। आम आदमी इसी बात से खुश है कि काली कमाई और काले धन्धे वालों के बुरे दिन आ गए है। यही वजह है कि आम आदमी लाइन में खडे रहने को तैयार है। एक आम आदमी को अपना जीवन चलाने के लिए बहुत थोडे रुपयों की जरुरत होती है। देश का आम मध्यमवर्गीय व्यक्ति साढे चार हजार रुपए में बडी आसानी से पन्द्रह दिन गुजार सकता है। निम्रवर्गीय व्यक्ति की जरुरत तो इससे भी कम है। इतनी रकम अब लगभग सभी के पास पंहुच चुकी है। लोगों को पूरा भरोसा है कि एक बार कालेधन का कैंसर देश के शरीर से दूर हो जाएगा,तो देश की सेहत सुधर जाएगी। देश की सेहत सुधरेगी तो इसका सीधा फायदा गरीब और मध्यमवर्ग को मिलेगा।
पडता है। कैंसर पेशेन्ट को लम्बे समय तक अस्पताल में रहना पडता है। रोगी को इलाज कराने के लिए कई तरह के परहेज भी करने पडते है। अब जब कालेधन के कैंसर की सर्जरी की जा रही है,तो कुछ दिनों तक व्यापार व्यवसाय प्रभावित होने और लाइन में लगने जैसी तकलीफें तो झेलना ही पडेगी। देश के लोगों को कुछ दिनों का अभाव और तकलीफें सहने की भी पर्याप्त आदत है। याद कीजिए,जब भी कहीं कफ्र्यू जैसी नौबत आती है,तो लोग कई कई दिनों तक घरों में कैद हो जाते है और उनका रोजमर्रा की जीवन पूरी तरह अस्तव्यस्त हो जाता है। घर में दूध और सब्जी जैसी अतिआवश्यक वस्तुएं भी नहीं पंहुच पाती है। लोग उन परिस्थितियों को भी झेल जाते है,तो अभी तो सिर्फ कुछ घण्टे लाइन में लगना पड रहा है।
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