Tuesday, December 27, 2016

Kailash Mansarovar Yatra-2 कैलाश मानसरोवर यात्रा-2 (19 अगस्त-22 अगस्त)

19 अगस्त 2016 शुक्रवार

केएमवीएन टीआरएच अलमोडा/ रात 8.25


आज का पूरा दिन बसों में हिचकोले खाते हुए और स्वागत कराते हुए गुजरा है। हमारे दल के सभी यात्री ठीक समय पर बस में सवार होने के लिए अपनी डोरमैट्री से नीचे आ चुके थे। गुजराती समाज के मुख्यद्वार पर तीर्थयात्रा विकास समिति दिल्ली सरकार और कैलाश मानसरोवर यात्रा समिति के सदस्यों द्वारा यात्रियों के स्वागत का कार्यक्रम रखा गया था। पहले एक पण्डित ने पूजा अर्चना की और तब वहां मौजूद सदस्यों ने एक एक यात्री को तिलक लगाकर केसरिया दुपट्टे औढाए। इस मौके पर यात्रियों को कुछ धार्मिक पुस्तकें व अन्य उपहार भी दिए गए। यहां पर तीर्थयात्रा विकास समिति के चेयरमेन कमल बंसल व उनके साथ दिखाई देने वाली दो महिलाएं भी थी। आज ये सभी हंसते मुस्कुराते हुए यात्रियों को बिदा कर रहे थे।

यहां से बस चालू हुई। अभी बस ने पच्चीस मीटर की दूरी भी तय नहीं की थी,कि उसका एक पहिया बैठ गया। ड्राईवर ने जैक चढाकर उसे कामचलाउ बनाया। इसमें करीब 45 मिनट लग गए। यात्रा दल के लाइजनिंग आफिसर आईजी संजय गुंजियाल भी हमारे साथ ही सफर कर रहे थे। यहां से बस आगे बढी। कुछ दूरी पर पंहुचे थे कि हमारे लिए दूसरी बस आ गई। हम नई बस में सवार हो गए। ये बस भी वाल्वो लक्जरी बस ही थी। बस दिल्ली से रवाना हुई तो गाजियाबाद के होटल वैस्ट व्यू पर जाकर रुकी,जहां हमारे स्वागत व अल्पाहार का इंतजाम था। यहां भी कैलाश मानसरोवर यात्रा सेवा समिति बनी हुई है,जिसके सदस्यों ने प्रेमपूर्वक छोले भटूरे का नाश्ता करवाया। इससे पहले स्वागत समारोह हुआ,जिसमें यूपी सरकार के मंत्री व कुछ अन्य वीआईपी मौजूद थे। यहां भी सदस्यों को कुछ धार्मिक पुस्तकें और एक-एक टी शर्ट भेंट किया गया।
करीब नौ बजे गाजियाबाद से चले तोरुद्रपुर की पुलिस लाईन में पंहुचे,जहां पुलिस विभाग द्वारा उनके आईजी और हमारे एलओ का स्वागत समारोह रखा गया था। यहां भजिये का नाश्ता कराया गया। रुद्रपुर से हमारी एक यात्री साथी डा.रजनीश बत्रा भी बस में सवार हुई। वे मेडीकल कराने के बाद सीधे रुद्रपुर चली गई थी,राखी मनाने। आज वे रुद्रपुर से हमारे साथ शामिल हो गई। यहां से बस आगे बढी। करीब ढाई बजे हम काठगोदाम पंहुचे। यहां भोजन की व्यवस्था थी। भोजन व्यवस्था पुलिस विभाग के द्वारा ही की गई थी। यहां दोपहर का भोजन करके करीब साढे तीन बजे यहां से निकले। यहां भी भोजन के पहले भजन और स्वागत का कार्यक्रम था।
भोजन के तुरंत बाद चले। अब हमारी मंजिल अलमोडा थी। बीच में नीम करौरी बाबा का आश्रम भी आया,जहां रुक कर दर्शन किए।काठगोदाम के बाद पहाडों का सिलसिला शुरु हो जाता है। अब हमारी गाडी पहाडों पर उंचाई चढती जा रही थी। काफी उंचाई चढने के बाद अब गाडी उतराई पर थी। अब हम अलमोडा की ओर बढने लगे थे। रास्ते में बारिश शुरु हो चुकी थी। अलमोडा पंहुचने पर हमारा स्वागत बारिश ने किया। केएमवीएन के टीआरएच के सामने हमारी गाडी रुकी।
टीआरएच सामने ही था,लेकिन काफी उंचाई पर। इधर बारिश हो रही थी। मैं कैमरे के बैग व नमकीन की थैली लेकर उपर चढा। हमारे दोनो बैग आशुतोष को लाने थे। केएमवीएन का रेस्ट हाउस काफी बडा व सुव्यवस्थित है। पति पत्नी को एक एक रुम दिया गया,जबकि अन्य लोग एक कमरे में तीन रखे गए। कमरे सर्वसुविधा युक्त है। कमरे में आकर मन प्रसन्न हो गया।आते ही कैमरे की बैटरी और मोबाइल को चार्जिंग पर लगाया और अब भोजन की तैयारी। कल सुबह छ: बजे निकलने के निर्देश है। सुबह चार बजे उठना होगा। कल शाम अंधेरा होने से पहले धारचूला पंहुचना है। परसों से ट्रेकिंग शुरु होगी।
भोजन से पहले एलओ श्री गुंजियाल ने दल के सभी यात्रियों को सुबह छ: बजे तैयार रहने के निर्देश दिए। साथ ही यह जानकारी भी ली कि किसे क्या चाहिए? घोडा और पोर्टर हमें धारचूला से करने होंगे।

20 अगस्त 2016 शनिवार

केएमवीएन टीआरएच अलमोडा/सुबह 5.00


सुबह छ: बजे रवाना होना है। इसलिए सुबह 4 बजे हुई। हमारे कमरे की तीसरा साथी डेनमार्क से आया हुआ प्रतीक उपाध्याय तैयार होकर कमरे से निकल चुका है। आशुतोष स्नान कर रहा है और मैं बाथरुम खाली होने के इंतजार में डायरी लिख रहा हूं। बीती रात एक कमरे में तीन लोगों को रहने की व्यवस्था दी गई थी। हमारा तीसरा साथी प्रतीक मूलत: बडोदरा का निवासी है,लेकिन फिलहाल डेनमार्क में पीएचडी कर रहा है। मैने उससे पूछा था कि उसकी रिसर्च का विषय क्या है? उसने बताया था कि वह एलोपैथी दवाईयों .........

20 अगस्त 2016 शनिवार

केएमवीएन धारचूला/रात 11.45


अलमोडा में सुबह डायरी लिखते हुए अचानक छोडना पडी। हमें लगा था कि सुबह छ: बजे बस का टाइम है। कुछ कन्फ्यूजन था। टाइम पांच बजे का दिया गया था। यहीं गडबड हो गई। छ: का टाइम समझ कर आराम से डायरी लिख रहा था। अचानक कहा गया कि आप लेट हो। स्नान कैंसल किया। जैसे थे,वैसे ही निकलने को तैयार हो गए। इसी हडबडी में यात्रा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु पासपोर्ट और विदेशी मुद्रा कमरे में ही भूल कर निकल गया।  गनीमत थी कि केएमवीएन के केयर टेकर ने आधे रास्ते में ही लाकर दे दिया,वरना  डूब मरने जैसी हालत हो जाती। बहरहाल बैग लेकर दौडा,तो बैग खुल गया। सारा सामान बिखर गया। सामान जमाया और बस की ओर दौडा। मैं कभी भी भी नहीं चाहता कि मेरी वजह से किसी को इंतजार करना पडे। बस पर पंहुचते ही आईजी साहब से माफी मांगी। उन्होने कहा कोई बात नहीं,लेकिन ये अपराध बोध काफी देर तक मेरे साथ रहा।
दिनभर में तीन चार स्वागत समारोह हुए। यहां पंहुचते -पंहुचते शाम के पौने आठ हो गए थे। 8.10 पर यहां के केएमवीएन मैनेजर ने प्रवचन दिया,जो 8.50 तक चला। फिर भोजन। सबसे बडी मशक्कत थी,बैग को फिर से जमाना। दिल्ली में पैक हुए बैग हमें यहां मिले थे। कल ट्रैकिंग करना है,इसलिए नए सिरे से सामान निकाला। बैग को पुन: प्लास्टिक बैग में पैक किया। ये सब करने में रात के पौने बारह हो चुके है। कल सुबह सात बजे तैयार होना है। 5 बजे उठना है। इसलिए विस्तार से डायरी कल लिखुंगा। शुभ रात्रि.....।

21 अगस्त 2016 रविवार

केएमवीएन टीआरएच धारचूला  / सुबह 5.30


बीती रात धारचूला पंहुचने के बाद सोते सोते रात के बारह बज गए थे। यहां पंहुचने के बाद अपने बैग खोलना सामान निकालना और बैग को फिर से पैक करना,ये बडी मशक्कत का काम था। अब ये बैग हमें कल यानी 22 अगस्त को मिलेंगे।
कल के दिन की शुरुआत अलमोडा से निकलकर गोलू  देवता के मंदिर में दर्शनों से हुई थी। अलमोडा से करीब सात किमी दूर गोलू देवता को कुमाऊं के लोग न्याय का देवता मानते है। जिसकी कहीं सुनवाई ना हो रही हो,वह यहां आवेदन लिख कर देता है। ये मजेदार जगह है। इस मन्दिर में हजारों घण्टियां बन्धी हुई है। जिसकी मनोकामना पूरी हो जाती है वह यहां फीस के रुप में घण्टी बांधता है। मनोकामना पूरी करने के लिए बाकायदा अर्जी लिखी जाती है। ये अर्जियां यहां बांधी जाती है। लडकी का वैवाहिक जीवन सुखी करने से लेकर कोर्ट कचहरी और नौकरी में तरक्की जैसी तमाम बातों के लिए लोग अर्जियां लिख कर बांधते है। कई लोग तो बाकायदा स्टाम्प पेपर पर अर्जियां लिख कर बांधते है।
गोलू देवता के दर्शन कर आगे बढे। आगे रास्ते में एक रेस्टोरेन्ट में आलू पराठे का नाश्ता किया। दोपहर करीब डेढ बजे हम डीडीहाट पंहुचे,जहां केएमवीएन ने तिलक लगाकर यात्रियों का स्वागत किया। यहां भोजन की व्यवस्था थी। भोजन करके निकले तो आईटीबीपी के मिरथी बेस कैम्प पर हमारे स्वागत का कार्यक्रम था।
हमारा स्वागत कुमाऊं के लोकनृत्य झोरिया से किया गया। मिरथी में स्थित देवी के दर्शनों के बाद लोकनर्तक नाचते गाते हमें लेकर आगे बढे। मिरथी में सभी यात्रियों का ग्रुप फोटो लिया जाता है। ग्रुप फोटो के बाद में बेस कैम्प में फिर से यात्रियों को कुछ निर्देश,कुछ सम्बोधन आईटीबीपी के अधिकारियों ने दिए। यहां नाश्ते का भी प्रबन्ध था। यहां के स्टोर से मैने एक बैकपैक (बैग) खरीदा। यह बैग 380 रु. का था। असल में मेरे बैग के साथ अटैच बैग बेहद छोटा साबित हो रहा था और ट्रैकिंग के लिए थोडे बडे बैग की जरुरत थी,जिसमें तमाम जरुरी चीजें आसानी से समा सकती थी।
बहरहाल,यहीं धारचूला में हमें आगे की यात्रा के लिए पौनी,पोर्टर लेना थे। केएमवीएन के रेस्ट हाउस के बाहर लडकों की भीड थी। एक लडके अज्जू गुंजियाल ने कहा कि यदि हम सीधे उसे कर लेंगे तो वह कम रुपए लेगा,क्योंकि यदि हम ठेकेदार के माध्यम से किसी को करेंगे तो ठेकेदार उनसे रकम छीन लेता है। हमने उसे इंतजार करने को कहा। यहां केएमवीएन अधिकारियों की ब्रीफींग के दौरान एक ठेकेदार को बुलाया गया था,लेकिन यह भी कहा गया था कि हम उसके माध्यम से पोर्टर लेने को बाध्य नहीं थे। हमने उसी लडके  को तय करने की ठानी,जिसने खुद सम्पर्क किया था। आज उसे सुबह जल्दी बुलाया है।
आज हमें सुबह सवा आठ तक तैयार होने को कहा गया है,लेकिन कल के अनुभव को देखते हुए हम तय समय से काफी पहले तैयार होना चाहते हैं। इसीलिए जल्दी उठ चुके है और सात बजे तक तैयार होकर हम बासर निकल जाएंगे।आज की ट्रैकिंग के लिए मैने रेडचीफ के जूते निकाले है। रतलाम से आने के बाद आज ही मैं कपडे भी बदलने वाला हूं। यहां ठण्ड बिलकुल नहीं है। कल शाम तक उंचाई बढने पर हल्की ठण्ड हो सकती है।इसके लिए इनर वियर रख लिया है।
हम केएमवीएन गेस्ट हाउस के दूसरी मंजिल के कमरे में है। कमरे की खिडकी खोलते ही सामने काली नदी अपने रौर्द्र रुप में बहती हुई दिखाई दे रही है। यहां आने के समय से काली नदी के तेज बहाव का शोर लगातार सुनाई दे रहा है। अब पूरे रास्ते यह नदी हमारे साथ ही होगी। कई लोग इसे काली गंगा भी कहते है। यह नदी आगे चल कर गंगा में ही मिलती है। कुछ का तो यह भी कहना है कि वास्तविक गंगा यही है क्योकि यही ओम पर्वत और कैलाश से निकली है। बहरहाल इस खिडकी का दृश्य बडा ही अद्भुत है। हांलाकि अब आगे निरंतर इन्ही दृश्यों को देखते हुए चलना है।

21 अगस्त 2016 / रात 8.45

केएमवीएन टीआरएच सिरखा

8400 फीट


आज का दिन हमारी पहली परीक्षा थी,जिसे हमने विशेष योग्यता के साथ पास किया। सुबह ठीक 7 बजे हम लोग बैग पैक करके पूरी तरह तैयार होकर बाहर निकल गए। घर पर वैदेही,सौ.आई और प्रतिमा ताई से फोन पर बात करके बता दिया कि अब आगे मोबाइल काम नहीं करेगा।
साढे सात पर नाश्ता मिला। शानदार इडली सांभर,पोहे का नाश्ता। मैने तो जम कर दबाया। छ:-सात इडली खाई,पोहे भी नहीं छोडे। चाय पी। अब हम ट्रैकिंग के लिए तैयार थे। बीती रात जब यहां पंहुचे थे,तो हमसे कहा गया था कि केएमवीएन के ठेकेदार से ही पौनी पोर्टप बुक करें,लेकिन जब बाहर निकला,तो एक लडके ने मुझसे कहा आप रसीद मत कटाओ ,हम कम रुपए में आपका काम करेंगे। मैने उसे परखने का मन बनाया। मैने कहा,मै सुबह तुम्हे लूंगा। सुबह मैने उस लडके,जिसका नाम अज्जु गुंजियाल था,से सम्पर्क किया। कल वह कह रहा था कि वह हमारे एलओ सा.का पोता है। सुबह उसने एक नए लडके से मिलवाया,जिसका नाम प्रतीक था। एक प्रतीक,प्रतीक उपाध्याय डेनमार्क से इस यात्रा में आया था। मैने उस लडके प्रतीक से बात की,उसे तय किया और ले लिया। आशुतोष और मैने तय किया था कि हम घोडे नहीं लेंगे। पोर्टर भी सिर्फ एक ही लेंगे। एक बैग और कैमरा हमें खुद लेकर चलना था। हम इसी व्यवस्था में सिरखा के लिए चले।
सुबह करीब नौ बजे जीप से पांगला के लिए निकले। हमें बताया गया था कि पांगला 35 किमी दूर है। रास्ता बेहद खराब था,या यूं कह सकते है कि था ही नहीं। लेकिन दृश्यावलियां बडी अद्भुत थी। सड़क तो थी नहीं,लेकिन रास्ते में जगह जगह झरने बह रहे थे। ये दृश्य आजकल के मोबाइल गेम्स में आने वाले दृश्यों जैसे थे। इस पूरी तरह से टूटे फूटे रास्ते पर हमारी जीप चली। संयोग से हमारी जीप में केएमवीएन के मैनेजर एडवेंचर टूरिज्म गिरधर मण्डाल भी मौजूद थे। रास्ते भर वे हमें केएमवीएन के बारे में विस्तार से बताते रहे। मण्डाल जी ने बताया कि तीस हजार रु.में नई दिल्ली से आदि कैलाश और वापस दिल्ली तक की यात्रा कराई जाती है। आदि कैलाश भी कैलाश से मिलती जुलती स्थितियों में स्थित है। मैने सोचा कि चीनियों को 72 हजार रु.देने से अच्छा है कि अपने क्षेत्र के लोगों को आदि कैलाश की यात्रा कराई जाए।
पांगला से करीब पौन किमी पहले काली नदी के एक पुल के बाद कीचड के कारण गाडियां फंस रही थी।हमारी गाडी के ड्राइवर समेत कई ड्राइवरों ने प्रयास कर लिया,लेकिन गाडियां यहां से निकल ही नहीं पा रही थी। ड्राइवरों ने कहा कि अब आप लोग पैदल ही निकल लीजिए। पांगला तक का पौन किमी का सफर हमने अपने पूरे सामान के साथ किया। पांगला में हमारा पोर्टर साथी प्रतीक आ गया। भारी बैग उसे थमाया। हल्का बैग आशुतोष ने सम्हाला। कैमरा मेरे पास था। पांगला में फिर स्वागत का कार्यक्रम था। स्वागत निपटा कर चले। शुरुआती एक किमी रास्ता तो गांव के भीतर से ही था,जो कि काफी संकरा और चढाई भरा था।
चिलचिलाती धूप हमें परेशान कर रही थी। उंचाई पर चलने से ज्यादा परेशानी धूप की थी। हमारी पदयात्रा साढे ग्यारह बजे शुरु हुई थी। सूर्य देवता पूरे जलाल पर थे। पसीना पानी की तरह बह रहा था। हम चल रहे थे। करीब नौ किमी का यह रास्ता ज्यादातर बेहद संकरा है। जिसमें दो ढाई फीट से ज्यादा चौडाई नहीं है। खडी चढाई है। चलने वालों को तोडने जैसा रास्ता है। हमारे साथी एक दूसरे के पैरों की मालिश कर रहे है,पर मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं है।
करीब पौने दो बजे हम सिरखा के नजदीक रुंह गांव में पंहुचे। यहां ग्रामीणजन एक उत्सव मना रहे थे। जिसमें ढोलक की थाप पर लोकगीत गाए जा रहे थे और महिला पुरुष नृत्य कर रहे थे।  हमारे एलओ गुंजियाल सा.भी यहां मौजूद थे। कई यात्रियों ने इस नृत्य का आनन्द लिया। मैने भी विडीयो बनाया। उत्सव मना रहे लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि यह हरियाली अमावस्या या हरियाली तीज जैसा मौसम को पूजने का त्यौहार है। जिसमें लोग नाचते गाते हैं। देवता को मदिरा चढाई जाती है,जिसे हर कोई महिला पुरुष सभी खुल कर सेवन करते है। उत्सव मना रहे लोग यही प्रसाद लेकर आ गए। उन्होने सभी यात्रियों को यह प्रसाद लेने का आग्रह किया। कुछ झिझके,कुछ हिचके। मैने तो बिंदास प्रसाद ग्रहण किया। फिर आशुतोष वहां पंहुचा तो उसे भी प्रसाद चखाया। इस दौरान हमारे कई सारे यात्री साथी यहां नृत्य का आनन्द ले चुके थे।
यहां से सिरखा महज आधे घण्टे की दूरी पर था। कुछ चढाई थी,फिर लगभग समतल रास्ता था। गांव यहीं से नजर आ रहा था। इसलिए बडी आसानी से यहां सिरखा आ गए।  यहां पंचायत भवन में फिर से स्वागत समारोह आयोजित था,जहां शानदार पकौडों और चाय की व्यवस्था थी।
यहां पंहुचा तो एलओ,आईजी गुंजियाल जी ने बताया कि इस पूरे इलाके में ियों की ही सत्ता चलती है,हांलाकि संतान के साथ नाम पिता का ही चलता है। लद्दाख में तो संतान के साथ मां का नाम लगता है। गुंजियाल सा.ने बताया कि इस क्षेत्र में विवाह के लिए वर पक्ष मदिरा की बोटलें लेकर वधुपक्ष के पास प्रस्ताव लेकर जाता है। यदि वधु पक्ष ने बाटलें लेकर पी ली,तो इसका मतलब है कि रिश्ता स्वीकार है। यदि बाटलें बिना खोले लौटा दी गई,तो इसका अर्थ है कि रिश्ता अस्वीकार है और अगर बाटलें बिना खोले रख ली गई तो इसका मतलब है कि प्रस्ताव विचाराधीन है। उन्होने बताया कि इस पूरे क्षेत्र में शिक्षा को पर्याप्त महत्व दिया जाता है और हर कोई पढता है। उच्च शिक्षा तक भी हर कोई पंहुचता है।
स्वागत समारोह निपटा कर कैम्प पर पंहुचे। हमें उपर की ओर डोरमैट्री मिली थी। जिसमें तनु मित्तल,प्रतीक उपाध्याय,हैदराबाद के दुखबन्धु जी,किशोर बोईदार जी,तुषार रंजन जी,चैन्नई के मुरुगाभूपति समेत कई लोग थे। हमने यहां अपना सामान टिकाया। फौरन दोपहर का भोजन किया। करीब एक डेढ घण्टे आराम किया। शाम पांच बजे हमारा पोर्टर प्रतीक आ गया। मैं शाम को फ्रैश हुआ। चड्डी बनियान और मोजे धोए।  हमने हमारे पोर्टर से कहा था कि हमारे लिए प्रसाद की व्यवस्था करके रखे। उसने  हमारी व्यवस्था कर दी। हमने प्रसाद लिया और गांव की तरफ फोन करने चले। इसी दौरान रास्ते में राजस्थान के आईपीएस हिंगलाज दान और उनके साथी लखन दान मिल गए। पता चला वे भी हमारे ही साथी थे। फिर हम चार लोगों की महफिल काफी देर चक चली। रात करीब आठ बजे हम कैम्प पर लौटे। भोजन किया। भोजन के बाद अपनी डोरमैट्री में आ गए। फिर डायरी के साथ।
कल हमें करीब अठारह किमी ट्रैकिंग कर गाला तक जाना है। सुबह पांच बजे निकलना है। अभी रात के 9.20 हो चुके हैं। घर पर वैदेही आई और ताई से बात हो चुकी है। डायरी में सारा वृत्तान्त लिखा जा चुका है। पांच बजे निकलने के लिए साढे तीन पर उठना होगा। इसलिए अब सो जाना चाहिए। सोने से पहले पांव में मालिश करने की भी इच्छा है।
शुभ रात्रि.......।

22 अगस्त 2016 सोमवार
केएमवीएन टीआरएच सिरखा/ सुबह 4.30
...........

22 अगस्त 2016/सोमवार

केएमवीएन टीआरएच गाला/ रात 9.00

7680 फीट


सुबह ठीक 5.14 पर हम लोग अपने गाइड/पोर्टर प्रतीक के साथ गाला के लिए निकल पडे थे। सुबह 3.20 का अलार्म भरा था,क्योंकि 5 बजे हमें निकलना था। ठीक 5.14 पर हम चल पडे। शुरुआत में कुछ ढलान थी। करीब पौन किमी। इसके बाद जो चढाई शुरु हुई वह करीब सवा पांच किमी की थी। रास्ते में जंगल चट्टी नामक स्थान पर नाश्ते की व्यवस्था थी। जहां से चढाई शुरु हुई थी,वहां घना जंगल पेड पौधे थे। सुबह अभी हुई नहीं थी,इसलिए धूप नहीं थी। करीब पौने आठ बजे हम जंगल चट्टी पंहुच चुके थे। यहां गरमागरम रोटियां,जो चूल्हे पर बन रही थी,भांग और पोदीने की चटनी का शानदार अल्पाहार किया। कुछ देर बाद रोटियों की जगह पुडियों ने ले ली। चटनी भी खत्म हो गई। लेकिन हमारा नाश्ता पूरा होने को था। यहां से करीब एक किमी और खडी चढाई थी। यह चढाई एक किमी बाद एक टाप पर जाकर खत्म हुई। हम सुबह नौ बजे इस टाप पर पंहुचे थे। यहां उंचाई दस हजार पांच सौ फीट की थी,जिसे हाई एल्टीट्यूड कहा जाता है। यहां से आगे बढे। आगे करीब पांच किमी तक लगातार ढलान थी। ढलान आपके पांव तोडती है। राम राम करके यह ढलान पार की। रास्ते में एक स्थान पर मार्ग पर से तेज झरना बह रहा था। एसडीआरएफ के जवान वहां मौजूद थे,उन्होने एक लकडी का फट्टा इसे पार करने के लिए लगा रखा था। इस पर से चलकर इस तेज झरने को हमें पार करना था। हमने बडी आसानी से इसे पार कर लिया,हांलाकि यह देखने में बेहद खतरनाक नजर आ रहा था।
पांच किमी ढलान उतरने के बाद केएमवीएन कैम्प से करीब ढाई किमी पहले सिमखोला गांव पडता है। हम करीब साढे ग्यारह बजे सिमखोला पंहुच गए थे। यहां चाय पीने के लिए रुके। यहीं हमारी मुलाकात गिरधर मण्डाल जी से हो गई। गिरधर मण्डाल केएमवीएन में एडवेंचर टूरिज्म के मैनेजर है। कल हम लोग काफी सारी चर्चाएं करते रहे थे। मैने गिरधर जी से कहा कि आप हमारी चिंता नहीं कर रहे हो। गिरधर जी हमें एक परिवार में ले गए जहां उन्होने अपना पारंपरिक प्रसाद हमें दिया। परंपरा के सम्मान के खातिर हमने प्रसाद ग्रहण किया।
सिमखोला से चले तो ढाई किमी चल कर करीब दो बजे हम केएमवीएन के कैम्प पर पंहुचे। यहां भोजन तैयार था। शानदार भोजन। कढी पकौडा,राईं आलू की सब्जी,रोटी और अचार। कैम्प पर आकर करीब पन्द्रह-बीस मिनट आराम किया। फिर भोजन किया। भोजन करके लौटे। पैरों पर तेल की मालिश की। पैरों की हालत बेहद खराब हो चुकी थी। घुटने,पिण्डली,पंजे,सब कुछ बुरी तरह से दर्द कर रहे थे। जांघे दर्द कर रही थी। पैरों पर मालिश की तो बेहतरीन नींद आई। करीब डेढ घण्टे की नींद के बाद सवा चार बजे नींद खुली। धीरे से उठा। पांच बजते बजते फ्रैश हुआ। बडी खुशी की बात यह थी कि यहां वेस्टर्न स्टाइल की टायलेट उपलब्ध थी। साथ ही गर्म पानी भी था। शौच के बाद गर्म पानी से स्नान किया। सारी थकान जैसे गायब हो गई। पैरों ने भी दर्द करना बंद कर दिया। तैयार हुआ,तभी हमारे एल ओ गुंजियाल सा. कमरे के बाहर आकर अन्य यात्रियों से चर्चा करने लगे। मैं भी इस चर्चा में शामिल हो गया। आशुतोष भी स्नान करने चला गया था। वह लौट कर आया। कल हमारे मित्र बने लखन दान जी और एसएसपी हिंगलाज दान जी भी वहीं थे। हिंगलाज जी तो आज हमारे साथ नहीं आए,लेकिन लखन दान जी हमारे साथ थे। हमारा गाइड प्रतीक और उसके दोस्त सौरभ और लोकेश भी हमारे साथ थे। ये तीनों लडके पढाई करते है। अपना सारा खर्चा खुद उठाते है। छुट्टियों में पोर्टर बनकर कमाई करते है। हम तीनों से बातें करते रहे। जब लौटे तो पता चला कि हमारे साथी यात्रीगण भजन आदि कर रहे है। हम सीधे भोजन करने पंहुच गए। भोजन करके लौटे.तब पता चला कि भजन कर रहे यात्री अब भोजन कर रहे हैं। हम कमरे में आकर सैटल हुए तभी एलओ श्री गुंजियाल सा.कमरे में आए। वे भी भोजन करके ही आए थे। इधर उधर की बातें हुई। मैने बताया कि रास्ते में मुझे तीन-चार बार बिच्छू घांस काटी है। ये बिच्छू घांस शरीर को छूते ही जलन करती है,जैसे बिच्छू ने काटा हो। लेकिन मुझे यहां के लोगों ने बताया कि यह बहुत लाभप्रद है। गुंजियाल सा.ने भी कहा कि यह बहुत फायदेमंद है। उन्होने इस बात पर भी खुशी जाहिर की कि मैं यात्राएं लिखता हूं। उन्होने कहा कि वे भी यह पढना चाहते है। मैने कहा कि यात्रा पूरी होने पर इसकी लिंक भेज दुंगा। मैने उन्हे बताया कि आज की यात्रा में जैसे तैसे पूरी कर पाया। उनका कहना था कि मैने बहुत अच्छी ट्रैकिंग की है और आगे भी कोई दिक्कत नहीं आएगी।
गुंजियाल सा.बिदा हुए और मैने डायरी निकाली। अब इस हाल के हमारे तमाम साथी सौ चुके हैं। सबसे बाद में पंहुचे भुवनेश्वर के दुखबन्धु जी,तुषारकांत जी के पैरों की मालिश कर रहे हैं। मेरे नामराशि तुषारकांत जी कल भी मेरी बगल में थे,आज भी मेरे पास है। वे सो चुके है। दुखबन्धु जी का कहना है कि उनका जिक्र भी इस यात्रा वृत्तान्त में किया जाए। अब मेरे कक्ष का हर व्यक्ति सो चुका है। कल हमें फिर  सुबह  पांच बजे चल पडना है। करीब पांच किमी की सीधी ढलान है। कहते है कि चार हजार चार सौ चौवालिस सीढियां उतरना है। मैने तय किया है कि नी कैप लगाकर जाउंगा। अब रात के साढे नौ हो चुके है। सुबह सवा तीन बजे उठना है। अब सोने की तैयारी। शुभ रात्रि।

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