-तुषार कोठारी
देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव का शोर है और भाजपा समेत सारे राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में जुटे है। इन चुनावों में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का मुद्दा भी सुनाई दे रहा है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के मुद्दे पर भाजपा को छोडकर तमाम राजनीतिक दल चुप्पी साधे हुए है। विपक्षी दलों की हालत सांपु छछून्दर वाली हो रही है। यहां तक कि भाजपा के नेता विपक्षी दलों को खुली चुनौती भी दे रहे है कि अगर उनमें दम हैं तो वे कहें कि वे अनुच्छेद 370 फिर से ले आएंगे। भाजपा के रणनीतिकार जानते है कि किसी विपक्षी नेता की अब ये ताकत नहीं है कि वे अनुच्छेद 370 को फिर से लाने की बात कह सके। यहां तक कि कश्मीर दोनो प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी भी अब इस मुद्दे पर मौन साध कर बैठ गए हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
नेशनल कान्फ्रेन्स और मेहबूबा मुफ्ती की पीडीपी कश्मीर में परंपरागत प्रतिद्वंदी रहे है और बरसों बरस तक एक दूसरे को आडे हाथों लेते रहे हैं। जब अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया था,तो ये दोनो ही शत्रु दल अपनी शत्रुता भूलकर एक साथ आ गए थे। आपको याद होगा कश्मीर का गुपकार अलायंस या गुपकार गैंग। दोनो ही पारंपरिक शत्रुओं ने कई दिनों तक कश्मीर में अनुच्छेद 370 को वापस लाने की प्रतिज्ञाएं की थी। लेकिन कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त हुए अभी पूरे पांच साल भी नहीं बीते है,इन दोनो पार्टियों का 370 वाला राग बन्द हो चुकाहै। ये दोनो ही दल अव अपना अलायंस तोडकर अलग अलग मुकाबले में आ चुके है और अनुच्छेद 370 का मुद्दा कहीं गायब हो गया है।
इतना बडा चमत्कार हुआ कैसे? अपनी बरसों बरस की दुश्मनी भूल कर अनुच्छेद 370 के नाम पर साथ आए ये दोनो दल आखरी सांस तक अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए लडते रहने की बातें करते थे,लेकिन वे अब सबकुछ भूल चुके है और एक दूसरे से लडने को तैयार हो चुके है। इस चमत्कार के पीछे का जो रहस्य है वो कश्मीर के बीते पांच सालों में बदली हुई परिस्थितियों का है।
याद कीजिए 5 अगस्त 2019 का वह दिन जिस दिन संसद में गृहमंत्री ने अचानक ही कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा की थी। ये घोषणा पूरे देश के लिए बहुत बडे आश्चर्य का विषय थी। राष्ट्रवादी विचार वाले लोगों के लिए यह सुखद विषय था तो राष्ट्रविरोधी भावनाएं रखने वालों के लिए बहुत बडा झटका था। राष्ट्रवादी विचारों से जुडे लोगों को कश्मीर से 370 हटने की खुशी तो थी,लेकिन उन्हे कहीं ना कहीं ये डर भी सता रहा था कि कहीं कश्मीर में कोई बडा बवाल ना हो जाए।
राष्ट्रवादी विचारों के लोगों को महबूबा मुफ्ती और दूसरे नेताओं के वो बयान भी याद थे कि अगर अनुच्छेद 370 के साथ छेडछाड की गई तो कश्मीर में तिरंगे को कोई कन्धा देने वाला नहीं मिलेगा। राष्ट्रविरोधी विचार रखने वालों को भी उम्मीद थी कि कश्मीर के लोग सड़कों पर उतर आएंगे और ऐसा बवाल होगा कि सरकार को छठी का दूध याद आ जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
इन पंक्तियों के लेखक ने अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मात्र 35 दिनों के बाद 10 सितम्बर 2019 को कश्मीर की यात्रा की थी। वो मोहर्रम का दिन था,जब इन पंक्तियों का लेखक अपने कुछ मित्रों के साथ लेह से कारगिल द्रास और गुलमर्ग होते हुए श्रीनगर पंहुचा था। श्रीनगर और कश्मीर की स्थिति को लेकर जो खबरें टीवी और अखबारों में बताई जा रही थी,उनमें यह दिखाया जा रहा था कि वहां के सामान्य लोग सरकार के इस फैसले से बिलकुल भी सहमत नहीं है और लोगों में भारी नाराजगी है। इसी के विरोध के चलते लोगों ने अपना कारोबार स्वैच्छिक रुप से बन्द कर रखा है।
इसी तरह के समाचारों के प्रभाव के चलते कश्मीर के भीतरी हिस्सों में जाने में डर सा था। लेकिन लेखक जब श्रीनगर पंहुचा,तो वहां के हालात देखकर सारे भ्रम दूर हो गए। समाचारों में बताया जा रहा था कि लोगों ने नाराजगी के चलते स्वैच्छिक बन्द रखा है। श्रीनगर की दुकानें वैसे तो बन्द दिखाई दे रही थी,लेकिन सभी दुकानों पर शटर को थोडा उठाकर कारोबार धडल्ले से जारी था। सब्जी,फल,दूध,दवाई किराना आदि सारे व्यवसाय बडे आराम से चल रहे थे। इतना ही नहीं सड़कों पर पुरुषों के अलावा महिलाएं,बच्चियां और बच्चे सामान्य रुप से दिखाई दे रहे थे। सड़कों पर अध्र्दसैनिक बलों की भारी तैनाती थी,लेकिन सामान्य लोगों के चेहरों पर कहीं कोई तनाव नजर नहीं आ रहा था। श्रीनगर के बाहरी हिस्से से लाल चौक तक घूमने के दौरान ही यह साफ हो गया था कि आम कश्मीरी को अनुच्छेद 370 हटने से कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन नेताओं को दिखाने के लिए दिखावे के तौर पर सबकुछ बन्द रखा जा रहा है।
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के कुछ ही दिनों बाद घाटी में सबकुछ सामान्य होने लगा। इन्ही दिनों में घाटी के राजनैतिक दलों की हैसियत भी सामने आ गई कि आम कश्मीरी लोगों पर उनका कोई प्रभाव नहीं है। ये नेता सिर्फ बयानों में बन्दर घुडकियां दे सकते है,लेकिन इनके आव्हान पर आम लोग सडकों पर नहीं उतरतेे।
इस दौर में एक तरफ तो राजनैतिक दलों की पोलपट्टी उजागर हो रही थी,तो दूसरी ओर आम कश्मीरी को समझ में आने लगा था कि जिस अनुच्छेद 370 को उनके जीवन मरण का प्रश्न बताया जाता था उससे आम लोगों के जीवन पर कोई असर नहीं पडता है। उसका बुरा प्रभाव सिर्फ उन नेताओं पर पड रहा है,जिनके पास राजनैतिक ताकत होती थी। इसी अनुच्छेद 370 के कारण वे बरसों से अरबों खरबों की काली कमाई कर पा रहे थे। आम कश्मीरी को यह भी समझ में आने लगा था कि अनुच्छेद 370 वास्तव में उनके विकास को रोकने का साधन था ना कि उनके लाभ वाला प्रावधान था।
देखते ही देखते कश्मीर बदलने लगा। सीमा पर सरकार की सख्ती के कारण विदेशी आतंकियों की घुसपैठ रुकी। साथ ही राजनैतिक दल की आड में आतंकियों को प्रश्रय देने वाले दलों पर शिकंजा कसा गया,उनकी फण्डिंग रुकी,तो पत्थरबाजी भी बीते वक्त की बात हो गई। देखते ही देखते कश्मीर में पर्यटकों की संख्या बढने लगी और उसका सीधा सीधा फायदा आम कश्मीरियों को मिलने लगा। उनके जीवन स्तर में सुधार आने लगा। महज साढे चार सालों में आज कश्मीर पूरा बदल चुका है। वहां सिनेमाघर खुल चुके है। पर्यटकों की संख्या नए रेकार्ड कायम कर रही है। फिल्मों की शूटिंग के लिए फिल्मोद्योग से जुडे लोग पंहुच रहे है। आम कश्मीरी अब पूरी तरह समझ गया है कि अनुुच्छेद 370 उनके लाभ के लिए नहीं बल्कि उनके शोषण के लिए था।
यही वजह है कि आज आम चुनाव में भाजपा के नेता तो चुनौतियां दे रहे हैं कि कोई दल 370 वापस लाने का वादा करके दिखाए। लेकिन दूसरी तरफ सारे विपक्षी दल इस पर चुप्पी साधे हुए है। वे जानते है कि अगर उन्होने कोई ऐसी बात मुंह से निकाल दी तो देश के पहले से नाराज मतदाता और ज्यादा भडक जाएंगे। इतना ही नहीं कश्मीर के दोनो प्रमुख राजनीतिक दलों को भी इसका एहसास है। उन्हे यह भी पता है कि अब आम कश्मीरी भी 370 की वापसी नहीं चाहता। इसीलिए वे भी चुप्पी साधे बैठे है।
कुल मिलाकर यही वो वजह है जो इस बार भाजपा को 370 सीटे हासिल करने का आ्त्मविश्वास दे रही है। कश्मीर सहित पूरा देश ये तो बता चुका है कि अनुच्छेद 370 हटने से पूरा देश खुश है। अगर चुनाव के नतीजे भी इसी दिशा में जाते है,तो यह भी प्रमाणित हो जाएगा कि मतदाता मोदी को पुरस्कृत करने को तैयार है।
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