Tuesday, June 7, 2011

पर्यटन की आड में देश में बढता तबलीगी खतरा


दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद अमरिका जहां लादेन के कुख्यात आतंकी संगठन अल कायदा के विश्वव्यापी नेटवर्क को नष्ट करने की योजनाओं में जुटा है वहीं पाकिस्तान में हुए आत्मघाती हमलों के बाद अलकायदा की सक्रियता के संकेत भी मिले है। अलकायदा के नेटवर्क को ध्वस्त करने की मुहिम के दौरान अमेरिका के जांचकर्ताओं के हाथ कुछ ऐसे तथ्य भी लगे है जिनसे यह मालूम पडता है कि अल कायदा के आतंकी, किसी न किसी रुप में तबलीगी जमातों का उपयोग अपने हित में करते थे।
यह भी तथ्य सामने आए है कि तबलीगी जमातों का उपयोग आतंकी संगठन अपना आधार बढाने में कर सकते है और पूर्व में भी कर चुके है। इतना ही नहीं तबलीगी जमात के सदस्यों के आतंकी संगठनों में सक्रिय होने की जानकारियां भी सामने आई है।
इन तथ्यों के सामने आने के बाद, मुस्लिम धर्म के वास्तविक स्वरुप के प्रचार के लिए भारत से शुरु हुए तबलीगी आन्दोलन की भूमिका को लेकर अब प्रश्नचिन्ह खडे होने लगे है। आतंकी हमलों की मार झेल रहे भारत के लिए भी तबलीगी जमातें खतरे का बायस बन सकती है और यह खतरा पर्यटकों के रुप में सामने आ रहा है।
तबलीगी आन्दोलन की शुरुआत भारत से ही हुई थी। आज यह आन्दोलन विश्व के डेढ सौ ज्यादा देशों तक फैल चुका है। मुस्लिम धर्म के वास्तविक स्वरुप का प्रचार करने के लिए शुरु किए गए इस आन्दोलन के फैलने में इसके प्रचारकों की ही प्रमुख भूमिका है। तबलीगी जमातें मीडीया की कोई मदद नहीं लेती। बल्कि ये मीडीया को बडी व्यापकता से नकारती है और जमात के सदस्य व्यक्तिगत सम्पर्कों पर ही पूरा जोर देते है। तबलीगी जमात के सदस्यों को उनके पहनावे और रहन सहन से बेहद आसानी से पहचाना जा सकता है। जमात के लोग मुस्लिम धर्म के विशेष पहनावे से सजे होते है। ये लोग उंचा पाजामा,घुटनों से नीचे तक आने वाला कुर्ता और गोल टोपी पहनते है। अनिवार्यत: दाढी रखते है। इतना ही नहीं तो इनकी पेशानियों पर रोजाना पांच वक्त की नमाज पढने के चिन्ह भी साफ दिखाई दे जाते है।
तबलीगी आन्दोलन की शुरुआत 1926 में हुई थी। राजस्थान के मेवात ईलाके के राजपूतों को जब बलात धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम बनाया गया,तब मुस्लिम धर्म अपनाने के बावजूद वे लोग अपनी परंपराएं नहीं भूले और अपनी पुरानी परंपराओं का पालन करते रहे। इन मेवाती मुस्लिमों की पुरानी भारतीय पहचान भुलाकर मुस्लिम पहचान को कायम रखने के लिए मुहम्मद इलियास खान्दलवी ने तबलीगी जमात प्रारंभ की। तबलीगी जमात का मुख्य कार्य परिवर्तित मुस्लिम लोगों को इस्लाम की शिक्षाएं देना और इस्लामी रीति रिवाजों के मुताबिक जीवन यापन करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना था।
तबलीगी जमात के सदस्य स्वयं के कार्य और व्यवहार से अन्य मुस्लिमों के लिए प्रेरणा का काम करते थे। धीरे धीरे यह आन्दोलन भारत के अन्य हिस्सों में फैला। 1946 में इसका विस्तार किया गया और देखते ही देखते मात्र दो दशकों में यह दुनिया के कई देशों तक पंहुच गया। आज दुनिया के डेढ सौ देशों में तबलीगी जमातें काम कर रही है। साउथ वेस्ट एशिया,साउथ ईस्ट एशिया,अफ्रीका,यूरोप और नार्थ अमेरिका आदि कई देशों में आज तबलीगी जमातें सक्रीय है।
तबलीगी जमातों के सदस्य समूह में अपने स्थान से अन्य स्थानों या प्रदेशों में जाते है। जमात का पूरा समूह किसी मस्जिद में निवास करता है और इसके सदस्य मुस्लिम परिवारों में घर घर जाकर व्यक्तिगत सम्पर्क करके लोगों को इस्लामी रीति रिवाजों से जीवन यापन के लिए प्रोत्साहित करते है। जमातें एक एक स्थान पर पन्द्रह दिन या एक महीना या इससे भी अधिक अवधि तक रुकती है और इस अवधि में उनका भोजन इत्यादि भी मुस्लिम परिवारों में ही होता है।
भारत में विभिन्न प्रान्तों से तबलीगी जमातें अन्य प्रान्तों को जाती है। जमात के लोग जिस शहर में जाते है वहां के कुछ प्रमुख व्यक्तियों के सम्पर्कसूत्र लेकर वहां पंहुचते है और वही सम्पर्क सूत्र आगे उनके मस्जिद में निवास व भोजन आदि की व्यवस्था करते है।
तबलीगी आन्दोलन के दुनियाभर में फैलने के बाद अब जमातें एक देश से दूसरे देशों को भी जाने लगी है। अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर पनपे मुस्लिम आतंकवाद के लिए भी तबलीगी जमातों का सिलसिला बेहद लाभदायक होना ही था। हांलाकि शुरुआती दौर में यह माना गया था कि तबलीगी जमातों का आतंकवादी नेटवर्क से कोई लेना देना नही है लेकिन तबलीगी जमातों का कामकाज जिस तरह से होता है उसमें यह तो साफ ही था कि आतंकवादी चाहे तो उन्हे जमातों से काफी मदद हासिल हो सकती है। जमात में शामिल होकर कोई भी व्यक्ति आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है और लम्बे समय तक छुपा हुआ भी रह सकता है। इसी के चलते अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए ने तबलीगी जमात को आतंकवाद के सहयोगी संगठनों की ए-2 श्रेणी में रखा था और इनकी गतिविधियों पर नजरें भी रखी जाती थी। ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद हुए खुलासों ने इन आशंकाओं को सही साबित कर दिया है।
गुआंतनामों की जेल में बंद आतंकियों से हुई पूछताछ के बाद आतंकी नेटवर्क से जुडी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं अमेरिका के हाथ लगी है। इन आंतकियों में से दो दुर्दान्त आतंकवादी तो तबलीगी जमात के ही सदस्य थे। उन्होने जमात के सदस्य रहते हुए ही सारी आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया।
तबलीगी जमातों के सम्बन्ध में सामने आइ नई जानकारियों के बाद यह विषय लम्बे समय से आतंकवाद से पीडीत भारत के लिए भी गंभीर हो चुका है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि तबलीगी जमातें एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में तो जाती ही है,अब एक देश से दूसरे देशों में भी तबलीगी जमातें जाने लगी है। भारत में आने वाले विदेशी पर्यटकों के आंकडों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि पर्यटकों के रुप में बडी संख्या में विदेशी जमातें भारत में आने लगी है। हांलाकि इस मामले में अभी तक कोई अधिकारिक आंकडे उपलब्ध नहीं है क्योकि जमात के तमाम सदस्य भारत में पर्यटन वीजा(टूरिस्ट वीजा)पर आते है और इस वजह से उनकी गिनती पर्यटकों के रुप में होती है।
भारत के पर्यटन उद्योग के सम्बन्ध में जब भी कोई बात होती है विदेशी पर्यटकों की बढती संख्या का हवाला देकर पर्यटन उद्योग के विकास की दुहाई दी जाती है। लेकिन यादि आंकडों को सूक्ष्मता से परखा जाए तो वास्तविकता ठीक विपरित प्रतीत होती है। पर्यटन उद्योग से होने वाली आय वस्तुत:पर्यटकों द्वारा खाने पीने और ठहरने पर व्यय की गई राशि से होती है। मजेदार बात यह है कि पर्यटक वीजा पर भारत आने वाले तबलीगी जमात के सदस्यों से इस तरह की कोई आय भारत को नहीं होती। जमात के सदस्य अपने ही देश की एयर लाईंस से भारत में आते है। भारत में आने के बाद वे सीधे उस स्थान पर जाते है जहां उन्हे रुकना होता है। वहां जाने के लिए भी वे आमतौर पर सामान्य दर्जे में यात्रा करते है। जहां उन्हे रुकना होता है वहां वे किसी होटल में नहीं ठहरते बल्कि मस्जिद को अपना ठिकाना बनाते है और खान पान निशुल्क रुप से लोगों के घरों में करते है। इस तरह उनके आने से केवल पर्यटकों की संख्या के आंकडो में तो वृध्दि होती है लेकिन देश को एक भी रुपए की आय नहीं होती।
पर्यटन के आंकडों पर नजर डाली जाए तों,सबसे ताजे आंकडों के मुताबिक विदेशों से एक वर्ष की अवधि के दौरान पर्यटक के रुप में भारत आने वाले व्यक्तियों की संख्या 5.37 लाख थी। पर्यटन विभाग के शासकीय आंकडों के मुताबिक इनमें सर्वाधिक संख्या यूएसए से आने वालों की 15.43 प्रतिशत थी जबकि दूसरे स्थान पर यूके के नागरिक थे। यूके के नागरिकों का प्रतिशत 14.66 था। इसके बाद देंखें तो चौंकाने वाले आंकडे नजर आते है। बांग्लादेश जैसे गरीब देश पर्यटकों की संख्या के मान से तीसरे नम्बर पर है। यहां से 10.06 प्रतिशत नागरिक पर्यटक वीजा पर भारत आए। श्रीलंका जैसा गरीब देश चौथे स्थान पर है। श्रीलंकाई नागरिकों की संख्या 4.27 प्रतिशत थी। मलेशिया से भी 2.22 प्रतिशत नागरिक पर्यटन वीजा पर भारत में आए।
इस तथ्य को कोई समान्य व्यक्ति भी समझ सकता है कि अमेरिका इग्लैण्ड,फ्रांस,जर्मनी,जापान जैसे विकसित देशों से भारत आने वाले नागरिक वास्तव में घूमने फिरने के लिए भारत में आते होंगे लेकिन बांग्लादेश,श्रीलंका और मलेशिया जैसे गरीब देशों में रहने वाले गरीब लोगों के पास क्या इतनी धनराशि होगी कि वे भारत में घूमने आएंगे। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि इन देशों से आने वाले लोगों में बडी संख्या उन लोगों की है जो विदेश यात्रा पर धनराशि खर्च करने की हैसियत नहीं रखते लेकिन फिर भी भारत में आए तो निश्चय ही उनका उद्देश्य कुछ और होगा। सीधी सी बात है इनमें बडी संख्या तबलीगी जमातियों की रही होगी। विदेशी जमातों के आने का सिलसिला अब भी जारी है। इन जमातों की आड में अवांछित व्यक्तियों का देश में प्रवेश कोई बडी बात नहीं है। ऐसी स्थिति में भारत को इस मुद्दे पर भी सतर्क हो जाना चाहिए। उंचे पजामे और नीचे कुर्ते वाले इन जमातियों में भारत को चुनौती देने वाले खतरे भी आ रहे है। पर्यटन उद्योग के आंकडों में से जमातियों को अलग करके आंकडें बनाए जाए और जमातियों के आंकडे अलग रखे जाए तो देश इस खतरे का आकलन आसानी से कर पाएगा।

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