Tuesday, June 17, 2014

हम कब खेलेंगे फुटबाल?


-तुषार कोठारी
इन दिनों पूरी दुनिया पर फुटबाल विश्व कप का खुमार छाया हुआ है। भारत में फुटबाल की लोकप्रियता नहीं के बराबर है और फुटबाल के इस सर्वाधिक लोकप्रिय खेल में भारत की कोई हैसियत नहीं है। लेकिन चूंकि पूरी दुनिया फुटबाल के नशे में झूम रही है,इसलिए भारत के समाचार माध्यम टीवी और अखबारों में भी फुटबाल विश्व कप को लेकर रोजाना खबरें और विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे है।

ये हम भारतीयों की मजबूरी या आदत है कि जो पूरी दुनिया कर रही हो,उसे हमे भी करना पडता है। वरना हम भारतीय तो क्रिकेट के दीवाने है। क्रिकेट में हम विश्व की अग्रणी  टीमों में है और एकाधिक बार विश्व विजेता भी बन चुके है। ये अलग बात है कि दुनिया का कोई भी पूर्णरुपेण विकसित या अग्रणी देश क्रिकेट नहीं खेलता। क्रिकेट विश्व के उन गिने चुने देशोंमें खेला जाता है,जहां अंग्रेजों का राज रहा था। इसके विपरित फुटबाल वो खेल है,जिसके दुनिया में सबसे ज्यादा प्रशंसक है। दुनिया के लगभग 190-200 देशों में फुटबाल खेला जाता है और इसके विश्व कप में भाग लेने के लिए पहले योग्यता के आधार पर चयन होता है। फुटबाल के विश्व कप में दुनिया की चयनित 32 टीमों को जगह मिलती है और इन बत्तीस टीमों के बीच मुकाबलों के बाद विश्व विजेता का चयन होता है।
सवाल यह है कि एक सौ पच्चीस करोड की आबादी वाले इस देश में फुटबाल के ऐसे  ग्यारह खिलाडी क्यो नहीं मिलते जो कम से कम भारत को विश्व कप के लिए क्वालीफाई  तो करवा दें। इस सवाल का जवाब ढुंढने के लिए हमे थोडा पीछे जाना होगा।
जीवन में खेल का महत्व क्या है और खेल क्यो जरुरी है? जब इन प्रश्नों पर विचार किया जाता है,तो ध्यान में आता है कि मानव शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक गतिविधियां आवश्यक है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के व्यायाम किए जा सकते हैं या खेलों के जरिये शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। व्यायाम में नीरसता सी होती है,लेकिन खेलों में हार-जीत का उत्साह और मनोरंजन का तत्व रहता है। इस वजह से खेल,व्यायाय का सबसे उपर्युक्त विकल्प है। कुल मिलाकर खेलों का मुख्य महत्व यही है। खेल भावना जैसे गुण विकसित होना और हार-जीत को एक भाव से ग्रहण करने जैसे गुण खेलों के सहउत्पाद है। दुनिया में जितने भी विभिन्न प्रकार के खेल है,उनमें शारीरिक क्रियाकलाप वाले तमाम खेलों की यही खासियत है। फुटबाल,हाकी,टेनिस या बैडमिन्टन जैसे खेलों से निरन्तर जुड कर कोई भी व्यक्ति अपने शरीर को स्वस्थ रख सकता है।
खेलों में भारतीय खेल एक और बडी विशीष्टता लिए हुए है। अधिकांश विदेशी खेलों के लिए महंगे खेल उपकरणों की आवश्यकता होती है,लेकिन अधिकांश भारतीय खेल ऐसे है,जिन्हे बिना किसी उपकरण के खेला जा सकता है। कबड्डी और खो-खो जैसे खेलों में मैदान और खिलाडियों के अलावा अन्य किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं होती। इस तरह के लगभग सभी खेलों की समयसीमा भी काफी छोटी होती है और खेल बडी तेज गति से खेले जाते है। फुटबाल और हाकी जैसे खेल तो मात्र डेढ-दो घण्टों में पूरे हो जाते है। मैदान में मौजूद हर खिलाडी को अपनी पूरी ताकत झोंकनी होती है।
लेकिन दुनिया में कुछ गिने चुने खेल ऐसे भी है,जिनका स्वस्थ रहने से कोई सीधा सीधा ताल्लुक नहीं है। कुछ खेल ऐसे है,जो अभिजात्य वर्ग के अहं को संतुष्ट रखने के लिए बनाए गए है। इनमें से प्रमुख खेल क्रिकेट है। प्रारंभिक दिनों में क्रिकेट अंग्रेज शासकों और राजा महाराजाओं का खेल था,जिसमें अभिजात्य वर्ग के अहं को संतुष्ट किया जाता था। बालर बाल फेंकता था और बेट्समेन बाल को हिट करता था। मैदान में दूर गई हुई बाल वापस लाने के लिए बाकायदा नौकर तैनात रहते थे। क्रिकेट ऐसा खेल था जिसमें खिलाडी का ज्यादा दौडने भागने की जरुरत भी नहीं होती थी। अर्थात इस खेल का शरीर के स्वस्थ रहने से कोई ज्यादा संबंध भी नहीं था। आज भी क्रिकेट खेलकर कोई स्वस्थ नहीं रह पाता बल्कि क्रिकेट खेलने के लिए शारीरिक क्षमताओं को बढाना पडता है। इतना ही नहीं इस खेल में दो टीमों के कुल बाईस खिलाडियों में से नौ तो हर वक्त मैदान से दूर होते है। मैदान पर मौजूद  कुल तेरह खिलाडियों में से एक समय पर कभी भी पूरे तरह लोग सक्रीय नहीं होते। क्रिकेट के मैदान पर एक समय में दो बेट्समेन,बालर,विकेट कीपर और एक,दो या तीन फील्डर से अधिक लोगों के सक्रीय होने की जरुरत ही नहीं होती। शुरुआती दौर में तो क्रिकेट का एक मैच पांच या छ: दिनों तक चलता रहता था और कई बार अन्त में बिना किसी फैसले के मैच समाप्त हो जाता था। हांलाकि अब समय बचाने के लिहाज से ट्वेंटी-ट्वेंटी शुरु हो गए है,लेकिन फिर भी इस खेल में उतनी तेजी नहीं है,जितनी कि फुटबाल या हाकी में।
भारत और अंग्रेजों की गुलामी में रहे अन्य देशों में चूंकि क्रिकेट शासकों का खेल रहा,इसलिए सामान्य व्यक्ति इस खेल में भाग लेकर अपने आप को विशीष्ट मानता था। यही वजह रही कि भारत और कुछेक अन्य देशों में  क्रिकेट लोकप्रिय होता गया। चूंकि क्रिकेट की लोकप्रियता बढती रही इसलिए सरकारों ने भी क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों को उपेक्षित करना शुरु कर दिया। आज देश में हालत यह है कि क्रिकेट के तमाम खिलाडी तो स्टार माने जाते है,लेकिन अन्य खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को महत्व नहीं दिया जाता। देश में फुटबाल,हाकी,टेनिस,बैडमिन्टन जैसे खेलों की राष्ट्रीय स्तर पर टीमें तो है,लेकिन इन खेलों के खिलाडियों को क्रिकेटरों के मुकाबले न तो धन मिलता है और ना ही लोकप्रियता।
फुटबाल दुनिया का नम्बर एक खेल है। लेकिन देश में पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों के अलावा यह कहीं भी अधिक लोकप्रिय नहीं है। स्कूल-कालेजों में छात्रों को क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहन मिलता है,लेकिन हाकी और फुटबाल जैसे खेलों में भाग लेने वालों को हतोत्साहित किया जाता है। नतीजा यह है कि फुटबाल में भारत की रैंकिंग 142 वीं है। फुटबाल के विश्वकप में भारत की टीम खेलने का तो सपना भी नहीं देखा जा सकता।
बदलते वक्त में क्या अब यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि यदि हमें दुनिया से होड करना है,तो दुनिया के साथ चलना होगा। डेढ दर्जन से भी कम देशों में खेले जाने वाले क्रिकेट की बजाय करीब दो सौ देशों में खेले जाने वाले फुटबाल  और ओलम्पिक में खेले जाने वाले अन्य खेलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि हम भारतीय खेलों को स्कूली स्तर से लोकप्रिय बनाने का प्रयास करें तो जल्दी ही हमारे भारतीय खेल भी दुनिया में जगह बना सकते है।

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