राजस्थान यात्रा नवंबर 1999
रतलाम-जैसलमेर-रतलाम
इस यात्रा में हम चार मित्र मै,कमलेश पाण्डेय,अनिल मेहता और राजेश घोटीकर मोटर साइकिलों से गए थे। यूथ होस्टल्स आफ इण्डिया की नेशनल डेजर्ट सफारी में हिस्सा लेने के लिए हम लोग रतलाम से निकले थे। यह यात्रा हमने मेरी राजदूत (175 इलेक्ट्रानिक) और कमलेश की यामाहा आरएक्स-100 से की थी। इस यात्रा में पहले विनय कोटिया जाने वाला था,लेकिन एन वक्त पर उसका कार्यक्रम रद्द हुआ और उसके स्थान पर राजेश घोटीकर हमारे साथ हो गया।
13 नवंबर 1999
पोकर होटल-जोधपुर रात 9.15 पर
कल (12 नवं)रतलाम से निकलते निकलते देर हो गई और दोपहर 1.00 बजे रतलाम छोडा । देर से निकलने की वजह से यह तय था कि कम दूरी तय की जा सकेगी,लेकिन रात तक औसत ठीक हो चुका था।
रतलाम से नामली परमार (एचएस परमार) से मिलते हुए जावरा और मन्दसौर पंहुचे। मन्दसौर में अशोक झलौया से भेंट कर शाम करीब साढे पांच पर नीमच लगे और बिना रुके निम्बाहेडा चपलोत के घर पंहुच गए। नाश्ते का भरपूर इंतजाम था,लेकिन इच्छा नहीं थी। चाय पीकर थोडी मिठाई चख कर आधा घण्टा गुजारा और वहां से रवानगी मंगलवाड। मंगलवाड निम्बाहेडा से 20-22 किमी है। उम्मीद थी कि यहां रेस्ट हाउस होगा,लेकिन नहीं था। मंगलवाड में पता चला कि 11-12 किमी दूर भटेवर में रात्रि विश्राम हो सकता है। वहां रेस्ट हाउस था,लेकिन भूतबंगले जैसा। वहंा लाईट नहीं थी। वहां से फिर 14 किमी आगे वल्लभगढ में रेस्ट हाउस था। इस बीच ढाबे पर खाा खाया और वहीं रात 10.30 हो गई। वहां से करीब 10.45 पर वल्लभगढ पंहुचे। रेस्ट हाउस में बिना कंबल के रात गुजारी। सुबह सात बजे उठे और ब्रेडबटर के साथ चाय नाश्ता और ठीक नौ बजे वहां से रवाना हुए।
वल्लभगढ से नाथद्वारा पंहुचना था,और इसी दौरान दुर्घटना हो गई। अनिल के सिर में चोट लगी। चोट मामूली थी। नाथद्वारा में दर्शन किए। ड्रेसिंग कराई और 11.45 पर नाथद्वारा से पाली के लिए। पाली यहां से सौ किमी है,लेकिन एक शार्टकट से हम 80 किमी में पाली पंहुचे और पाली से 70 किमी जोधपुर। पाली में नाश्ता किया और शाम ठीक 5.45 पर जोधपुर पंहुच गए। जोधपुर में घुसते ही दैनिक भास्कर के नम्बर ढूंढे। जगदीश शर्मा को फोन किया और भास्कर पंहुचे। जगदीश खासा मददगार रहा। होटल की व्यवस्था के साथ साथ उसने जैसलमेर के भास्कर प्रतिनिधि को हमारे बाबत फोन भी कर दिया। सुबह जोधपुर देखकर पोखरण और रामदेवरा जाना है।
15 नंवबर 1999
पोकरण 11.30
जोधपुर का किला और उम्मेद भवन देखते देखते दोपहर एक बज गया था,लेकिन हम 2 घण्टे पहले जोधपुर छोडना चाहते थे। खैर कल दोपहर 2.00 बजे जोधपुर छोडा और पोकरण के लिए रवाना हुए।
पोकरण से करीब 70 किमी पहले दोनो गाडियों में रिजर्व लग गया। किस्मत अच्छी थी,देचू पंहुचे,जहां पैट्रोल मिल गया। देचू से पोकरण 50 किमी है। हम बडी आसानी से शाम साढे सात बजे पोकरण आए और रेस्ट हाउस में बडी आसानी से दो रुम ले लिए।
परमाणु विस्फोट स्थल (एटोमिक एक्सप्लोजन स्पाट) देखने की जुगाड में यहां टंगे है। अब लगता है कि रात तक जैसलमेर पंहुच पाएंगे।
16 नवंबर 1999
(यूथ होस्टल कैम्प सुबह आठ बजे)
कल शाम छ: बजे जैसलमेर पंहुच गए। पोकरण से 30 किमी दूर खेतोलाई है। खेतोलाई में 58 इंजीनियर के क्षेत्र में परमाणु विस्फोट हुआ था। यह स्थान खेतोलाई से 4 किमी आगे है। हम खेतोलाई गांव पंहुचे। खेतोलाई छोटा सा गांव है,जहां स्वास्थ्य केन्द्र आंगनवाडी आदि है। सेना के 58 इंजीनियर पंहुचने के बाद हमने कमाण्डिंग आफिसर से बात करने की कोशिश की। वहां पीए से बात हुई। पाए ने बताया कि रक्षा मंत्रालय से कोई सूचना नहीं मिली है। हम कुछ देर गुजार कर जैसलमेर पंहुच गए। जैसलमेर शहर घूमे। भास्कर के विमल शर्मा से केम्प में ही मुलाकात हुई। केम्प में मिलाने के बाद यूथ होस्टल्स आफ इण्डिया ने हमें जे-३ ग्रुप दिया जबकि हम जे-5 के थे। अब हम यहां से सीधे सम पंहुचेंगे और वहां से ट्रेकिंग में शामिल होंगे।
17-11-1999
कल दोपहर जैसलमेर घूमने के बाद हन वायएचएआई केम्प पंहुचे। जैसलमेर किला,पैलेस,जैन मन्दिर ,पटवा हवेली,नथमल हवेली और सालमसिंह हवेली देखने के बाद बस की छत पर सवार होकर शाम करीब पांच बजे सम पंहुचे। सम के रेतीले टीलों पर सनसेट देखने के लिए पंहुचे। रात में राजस्थानी लोकसंगीत व नृत्य देखे।
20-11-99 जैसलमेर सुबह 9.00 बजे
सम में 17 नवंबर की सुबह साढे पांच बजे उठे और कैमल सफारी की तैयारी में लग गए। कैमल सफारी 16 किमी की थी। सम से सुदासरी। सुदासरी में बर्ड्स सैंचुरी है। यहां राजस्थान का राज्य पक्षी घोडावण (खरमोर) पाया जाता है। बर्ड्स सेंचुरी में हम लोग 2 बजे करीब पंहुचे। ऊं ट की सवारी देखने में तो बडी अच्छी लगती है,लेकिन लम्बी दूरी तय करने में तकलीफ हो जाती है। हमने अपना ऊं ट खुद चलाया।
सुदासरी से अगली सुबह यानी 18 नवंबर को पैदल ट्रेकींग 16 किमी की थी,खुरी तक के लिए। हम सबसे पहले निकले और जंगल में रास्ता भी भटक गए। रास्ते में बरणा गांव के एक ग्रामीण ने छाछ पिलाई,जो लम्बे समय तक याद रहेगी। शाम करीब 6.00 बजे खुरी पंहुचे। पैरों में छाले पड गए थे और शरीर थक चुका था। रात को कैम्प फायर के बाद करीब दस बजे सोये। पहली बार कैम्प फायर में हिस्सा लिया,ताकि लोग पहचान लें।
19 नवंबर की सुबह बस से फिर जैसलमेर आ गए और करीब साढे बारह बजे तनोट माता के लिए निकले। तनोट माता राजस्थान (भारत) का अंतिम हिस्सा है। मंदिर पर पाकिस्तान द्वारा गिराए गए बम यहां फूट नहीं पाए और इस चमत्कार के कारण बीएसएफ ने मन्दिर की व्यवस्था खुद संभाल ली। तनोट एक सौ बीस किमी है। तनोट में पता चला कि हम लोंगेवाला पोस्ट भी जा सकते है,इससे हमें 20 किमी ज्यादा चलना पडेगा। हम लोंगेवाला पोस्ट जा पंहुचे। यहां पाक सेना से छीना गया एक टैंक और वाहन रखे गए है। लोंगोवाला देखने के बाद हम लौटे और ठीक आठ बजे रात फिर जैसलमेर पंहुच गए। स्टेशन पर भोपालियों को छोडने आए और रात्रि विश्राम स्टेशन के ही रिटायरिंग रुम में कि
21-11-1999 सिवाना
कल जैसलमेर छोडते छोडते देर हो गई। हम करीब 11.30 पर जैसलमेर से निकल पाए। गाडी तेजी से चलाते हुए बाडमेर पंहुचना था,लेकिन पैट्रोल खत्म हो गया। जैसे तैसे शिव नामक गांव में मिलावट वाला पैट्रोल मिला। हम करीब साढे तीन बजे बाडमेर पंहुचे। यहां से साचोर जाना था,लेकिन यहां के भास्कर प्रतिनिधि शंकर गोली को चूंकि जगदीश शर्मा ने हमारी सूचना दे दी थी,अत: वह बाडमेर के बाहरी चौराहे पर हमारा इंतजार कर रहा था। शंकर गोली ने हमे सलाह दी कि हम सांचोर की बजाय बालोतरा चले जाएं। इससे हम जैन तीर्थ नाकोडा भैरव के दर्शन कर पाएंगे। बालोतरा,बाडमेर से 110 किमी है। बालोतरा का भास्कर प्रतिनिधि अमृत सिंघवी के फोन नम्बर हमें शंकर गोली ने दिए थे। नतीजतन अमृत सिंघवी ने बालोतरा से 35 किमी आगे सिवाना रेस्ट हाउस पर हमारे ठहरने का इंतजार कर दिया था। बालोतरा पंहुचने से पहले खेड गांव में रणछोडराय का विशाल और प्राचीन मन्दिर है जो करीब एक हजार साल पुराना है। इस मन्दिर के दर्शन के बाद बालोतरा से नाकोडा भैरव पंहुचे। नाकोडा भैरव 12 किमी है। विशाल जैन तीर्थ पहाडियों के बीच बसा है। हम रात करीब साढे आठ बजे नाकोडा पंहुचे थे और 9.15 पर रवाना हुए। फिर बालोतरा होते हुए सिवाना आए। यहां बम्ह कुण्ड भी है। ब्रम्हा जी के दर्शन करते हुए रात साढे दस बजे सिवाना आए और शानदार डाक बंगलो में ठहरे। अब आज आबू पंहुचना है।
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दो दिन आबू रुककर आबू से अम्बा जी(पावागढ) होते हुए बिना रुके सीधे रतलाम पंहुचे। हम संभवत: 24 नवंबर 1999 को मध्यरात्रि के समय रतलाम पंहुचे थे।
या। अब जैसलमेर से निकलने की तैयारी।
रतलाम-जैसलमेर-रतलाम
इस यात्रा में हम चार मित्र मै,कमलेश पाण्डेय,अनिल मेहता और राजेश घोटीकर मोटर साइकिलों से गए थे। यूथ होस्टल्स आफ इण्डिया की नेशनल डेजर्ट सफारी में हिस्सा लेने के लिए हम लोग रतलाम से निकले थे। यह यात्रा हमने मेरी राजदूत (175 इलेक्ट्रानिक) और कमलेश की यामाहा आरएक्स-100 से की थी। इस यात्रा में पहले विनय कोटिया जाने वाला था,लेकिन एन वक्त पर उसका कार्यक्रम रद्द हुआ और उसके स्थान पर राजेश घोटीकर हमारे साथ हो गया।
13 नवंबर 1999
पोकर होटल-जोधपुर रात 9.15 पर
कल (12 नवं)रतलाम से निकलते निकलते देर हो गई और दोपहर 1.00 बजे रतलाम छोडा । देर से निकलने की वजह से यह तय था कि कम दूरी तय की जा सकेगी,लेकिन रात तक औसत ठीक हो चुका था।
रतलाम से नामली परमार (एचएस परमार) से मिलते हुए जावरा और मन्दसौर पंहुचे। मन्दसौर में अशोक झलौया से भेंट कर शाम करीब साढे पांच पर नीमच लगे और बिना रुके निम्बाहेडा चपलोत के घर पंहुच गए। नाश्ते का भरपूर इंतजाम था,लेकिन इच्छा नहीं थी। चाय पीकर थोडी मिठाई चख कर आधा घण्टा गुजारा और वहां से रवानगी मंगलवाड। मंगलवाड निम्बाहेडा से 20-22 किमी है। उम्मीद थी कि यहां रेस्ट हाउस होगा,लेकिन नहीं था। मंगलवाड में पता चला कि 11-12 किमी दूर भटेवर में रात्रि विश्राम हो सकता है। वहां रेस्ट हाउस था,लेकिन भूतबंगले जैसा। वहंा लाईट नहीं थी। वहां से फिर 14 किमी आगे वल्लभगढ में रेस्ट हाउस था। इस बीच ढाबे पर खाा खाया और वहीं रात 10.30 हो गई। वहां से करीब 10.45 पर वल्लभगढ पंहुचे। रेस्ट हाउस में बिना कंबल के रात गुजारी। सुबह सात बजे उठे और ब्रेडबटर के साथ चाय नाश्ता और ठीक नौ बजे वहां से रवाना हुए।
वल्लभगढ से नाथद्वारा पंहुचना था,और इसी दौरान दुर्घटना हो गई। अनिल के सिर में चोट लगी। चोट मामूली थी। नाथद्वारा में दर्शन किए। ड्रेसिंग कराई और 11.45 पर नाथद्वारा से पाली के लिए। पाली यहां से सौ किमी है,लेकिन एक शार्टकट से हम 80 किमी में पाली पंहुचे और पाली से 70 किमी जोधपुर। पाली में नाश्ता किया और शाम ठीक 5.45 पर जोधपुर पंहुच गए। जोधपुर में घुसते ही दैनिक भास्कर के नम्बर ढूंढे। जगदीश शर्मा को फोन किया और भास्कर पंहुचे। जगदीश खासा मददगार रहा। होटल की व्यवस्था के साथ साथ उसने जैसलमेर के भास्कर प्रतिनिधि को हमारे बाबत फोन भी कर दिया। सुबह जोधपुर देखकर पोखरण और रामदेवरा जाना है।
15 नंवबर 1999
पोकरण 11.30
जोधपुर का किला और उम्मेद भवन देखते देखते दोपहर एक बज गया था,लेकिन हम 2 घण्टे पहले जोधपुर छोडना चाहते थे। खैर कल दोपहर 2.00 बजे जोधपुर छोडा और पोकरण के लिए रवाना हुए।
पोकरण से करीब 70 किमी पहले दोनो गाडियों में रिजर्व लग गया। किस्मत अच्छी थी,देचू पंहुचे,जहां पैट्रोल मिल गया। देचू से पोकरण 50 किमी है। हम बडी आसानी से शाम साढे सात बजे पोकरण आए और रेस्ट हाउस में बडी आसानी से दो रुम ले लिए।
परमाणु विस्फोट स्थल (एटोमिक एक्सप्लोजन स्पाट) देखने की जुगाड में यहां टंगे है। अब लगता है कि रात तक जैसलमेर पंहुच पाएंगे।
16 नवंबर 1999
(यूथ होस्टल कैम्प सुबह आठ बजे)
कल शाम छ: बजे जैसलमेर पंहुच गए। पोकरण से 30 किमी दूर खेतोलाई है। खेतोलाई में 58 इंजीनियर के क्षेत्र में परमाणु विस्फोट हुआ था। यह स्थान खेतोलाई से 4 किमी आगे है। हम खेतोलाई गांव पंहुचे। खेतोलाई छोटा सा गांव है,जहां स्वास्थ्य केन्द्र आंगनवाडी आदि है। सेना के 58 इंजीनियर पंहुचने के बाद हमने कमाण्डिंग आफिसर से बात करने की कोशिश की। वहां पीए से बात हुई। पाए ने बताया कि रक्षा मंत्रालय से कोई सूचना नहीं मिली है। हम कुछ देर गुजार कर जैसलमेर पंहुच गए। जैसलमेर शहर घूमे। भास्कर के विमल शर्मा से केम्प में ही मुलाकात हुई। केम्प में मिलाने के बाद यूथ होस्टल्स आफ इण्डिया ने हमें जे-३ ग्रुप दिया जबकि हम जे-5 के थे। अब हम यहां से सीधे सम पंहुचेंगे और वहां से ट्रेकिंग में शामिल होंगे।
17-11-1999
कल दोपहर जैसलमेर घूमने के बाद हन वायएचएआई केम्प पंहुचे। जैसलमेर किला,पैलेस,जैन मन्दिर ,पटवा हवेली,नथमल हवेली और सालमसिंह हवेली देखने के बाद बस की छत पर सवार होकर शाम करीब पांच बजे सम पंहुचे। सम के रेतीले टीलों पर सनसेट देखने के लिए पंहुचे। रात में राजस्थानी लोकसंगीत व नृत्य देखे।
20-11-99 जैसलमेर सुबह 9.00 बजे
सम में 17 नवंबर की सुबह साढे पांच बजे उठे और कैमल सफारी की तैयारी में लग गए। कैमल सफारी 16 किमी की थी। सम से सुदासरी। सुदासरी में बर्ड्स सैंचुरी है। यहां राजस्थान का राज्य पक्षी घोडावण (खरमोर) पाया जाता है। बर्ड्स सेंचुरी में हम लोग 2 बजे करीब पंहुचे। ऊं ट की सवारी देखने में तो बडी अच्छी लगती है,लेकिन लम्बी दूरी तय करने में तकलीफ हो जाती है। हमने अपना ऊं ट खुद चलाया।
सुदासरी से अगली सुबह यानी 18 नवंबर को पैदल ट्रेकींग 16 किमी की थी,खुरी तक के लिए। हम सबसे पहले निकले और जंगल में रास्ता भी भटक गए। रास्ते में बरणा गांव के एक ग्रामीण ने छाछ पिलाई,जो लम्बे समय तक याद रहेगी। शाम करीब 6.00 बजे खुरी पंहुचे। पैरों में छाले पड गए थे और शरीर थक चुका था। रात को कैम्प फायर के बाद करीब दस बजे सोये। पहली बार कैम्प फायर में हिस्सा लिया,ताकि लोग पहचान लें।
19 नवंबर की सुबह बस से फिर जैसलमेर आ गए और करीब साढे बारह बजे तनोट माता के लिए निकले। तनोट माता राजस्थान (भारत) का अंतिम हिस्सा है। मंदिर पर पाकिस्तान द्वारा गिराए गए बम यहां फूट नहीं पाए और इस चमत्कार के कारण बीएसएफ ने मन्दिर की व्यवस्था खुद संभाल ली। तनोट एक सौ बीस किमी है। तनोट में पता चला कि हम लोंगेवाला पोस्ट भी जा सकते है,इससे हमें 20 किमी ज्यादा चलना पडेगा। हम लोंगेवाला पोस्ट जा पंहुचे। यहां पाक सेना से छीना गया एक टैंक और वाहन रखे गए है। लोंगोवाला देखने के बाद हम लौटे और ठीक आठ बजे रात फिर जैसलमेर पंहुच गए। स्टेशन पर भोपालियों को छोडने आए और रात्रि विश्राम स्टेशन के ही रिटायरिंग रुम में कि
21-11-1999 सिवाना
कल जैसलमेर छोडते छोडते देर हो गई। हम करीब 11.30 पर जैसलमेर से निकल पाए। गाडी तेजी से चलाते हुए बाडमेर पंहुचना था,लेकिन पैट्रोल खत्म हो गया। जैसे तैसे शिव नामक गांव में मिलावट वाला पैट्रोल मिला। हम करीब साढे तीन बजे बाडमेर पंहुचे। यहां से साचोर जाना था,लेकिन यहां के भास्कर प्रतिनिधि शंकर गोली को चूंकि जगदीश शर्मा ने हमारी सूचना दे दी थी,अत: वह बाडमेर के बाहरी चौराहे पर हमारा इंतजार कर रहा था। शंकर गोली ने हमे सलाह दी कि हम सांचोर की बजाय बालोतरा चले जाएं। इससे हम जैन तीर्थ नाकोडा भैरव के दर्शन कर पाएंगे। बालोतरा,बाडमेर से 110 किमी है। बालोतरा का भास्कर प्रतिनिधि अमृत सिंघवी के फोन नम्बर हमें शंकर गोली ने दिए थे। नतीजतन अमृत सिंघवी ने बालोतरा से 35 किमी आगे सिवाना रेस्ट हाउस पर हमारे ठहरने का इंतजार कर दिया था। बालोतरा पंहुचने से पहले खेड गांव में रणछोडराय का विशाल और प्राचीन मन्दिर है जो करीब एक हजार साल पुराना है। इस मन्दिर के दर्शन के बाद बालोतरा से नाकोडा भैरव पंहुचे। नाकोडा भैरव 12 किमी है। विशाल जैन तीर्थ पहाडियों के बीच बसा है। हम रात करीब साढे आठ बजे नाकोडा पंहुचे थे और 9.15 पर रवाना हुए। फिर बालोतरा होते हुए सिवाना आए। यहां बम्ह कुण्ड भी है। ब्रम्हा जी के दर्शन करते हुए रात साढे दस बजे सिवाना आए और शानदार डाक बंगलो में ठहरे। अब आज आबू पंहुचना है।
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दो दिन आबू रुककर आबू से अम्बा जी(पावागढ) होते हुए बिना रुके सीधे रतलाम पंहुचे। हम संभवत: 24 नवंबर 1999 को मध्यरात्रि के समय रतलाम पंहुचे थे।
या। अब जैसलमेर से निकलने की तैयारी।
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