भारत के आखरी छोर पर बसे दुनिया के दूसरे सबसे बडे बौध्द मठ तवांग तक
पंहुचना अपने आप में दुष्कर कार्य है। देश के सुदूर उत्तर पूर्व में तिब्बत
या वर्तमान में कथित तौर पर चीन की सीमा से सटे तवांग शहर को यहां के
विशाल बौध्द मठ की वजह से भी पहचाना जाता है। इस मठ के प्रमुख गुरु तुलकु
रिनपोचे का कहना है कि तिब्बत स्वतंत्र होकर रहेगा। तिब्बत की स्वतंत्रता
पूरी दुनिया के लिए जरुरी है। तिब्बत की स्वतंत्रता का संघर्ष तब तक जारी
रहेगा जब तक कि तिब्बत पूर्णत:स्वतंत्र नहीं हो जाता।
अरुणाचल यात्रा के दौरान तवांग पंहुचने पर जब हम बौध्द विहार पंहुचे तो इसकी विशालता और सुन्दरता ने मंत्रमुग्ध कर दिया। विहार परिसर में बौध्द भिक्षुओं की वेशभूषा में नन्हे बच्चों से लेकर युवा तक नजर आ रहे थे। इन्ही में से एक युवा भिक्षु से मठ के प्रमुख के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि मठ के प्रमुख गुरु रिनपोचे हैं,जो अभी मठ में ही मौजूद है। जब गुरु रिनपोचे के दर्शनों की इच्छा जाहिर की तो उनके एक शिष्य ने बताया कि वे अभी भोजन कर रहे है और इसके बाद प्रार्थना में व्यस्त हो जाएंगे। लेकिन जब गुरु रिनपोचे को हमारे बारे में ज्ञात हुआ वे सहर्ष दर्शन देने को तैयार हो गए।
बौध्द भिक्षुओं के पारंपरिक परिधान में जब गुरु रिनपोचे सामने आए तो मुखमण्डल पर तपस्या और आध्यात्म का तेज स्पष्टत:दिखाई दे रहा था। जब उनके चरणस्पर्श कर उनसे चर्चा की तो उनकी सहजता से मन अभिभूत हो गया। गुरु रिनपोचे ने तवांग मठ की जानकारी देेते हुए बताया कि मठ की स्थापना पांचवे दलाई लामा की इच्छा से वर्ष 1680 में मेराक लामा लोर्डे ग्यात्सो द्वारा की गई थी। इस मठ की स्थापना की कथा भी अत्यन्त रोचक है। पहले यह मठ तिब्बत में ही बनाया जाना था। उस समय तवांग
भी तिब्बत का ही भाग था। मठ के लिए स्थान के चयन की समस्या को मेराक लामा लोर्डे ग्यात्सो के घोडे ने हल की थी। कथा के अनुसार,मेराक लामा मठ के लिए स्थान का चयन नहीं कर पा रहे थे। स्थान की चिन्ता में ही वे जब एक बार प्रार्थना करने गए,तब उनका घोडा गायब हो गया। घोडे की खोजबीन की गई तो घोडा उस स्थान पर मिला जहां आज तवांग मठ स्थापित है। गुरु रिनपोचे ने बताया कि ता का अर्थ होता है घोडा और वांग का अर्थ चयन। इस तरह तवांग का अर्थ ही घोडे द्वारा चुना गया स्थान है।
तवांग मठ की जानकारी देते हुए गुरु रिनपोचे ने बताया कि इस मठ में सात सौ बौध्द भिक्षुओं के रहने की व्यवस्था है। वर्तमान में करीब छ:सौ से अधिक भिक्षु व अन्य व्यक्ति यहां रहते है। इस मठ में करीब दो सौ बच्चों के कक्षा आठवीं तक के अध्ययन और निवास की व्यवस्था है। गुरु रिनपोचे ने बताया कि बौध्द धर्मावलम्बी अपने एक पुत्र को धर्म की सेवा के लिए प्रदान कर देते है। इन बच्चों को तवांग मठ में धार्मिक शिक्षा के साथ स्कूली शिक्षा भी दी जाती है। कक्षा आठवीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए इन बच्चों को अन्यान्य स्थानों पर भेज दिया जाता है। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ये बच्चे लौट आते है और मठ में ही या अन्यत्र कहीं भी अपनी रुचि के अनुसार धर्म के काम में लग जाते है।
मठ में सैकडों वर्ष पुराने ग्रन्थों को सहेज कर रखा गया है। यहां के ग्रन्थालय में चार सौ वर्ष से भी पुराने बौध्द ग्रन्थों का संकलन है। इनमें बडी संख्या में हस्तलिखित ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त मठ में एक संग्रहालय भी बनाया गया है,जिसमें तवांग मठ से सम्बन्धित दुर्लभ फोटो,धार्मिक वस्तुएं अनेक प्राचीन महत्व की वस्तुओं को संग्रहित किया गया है।
गुरु रिनपोचे ने बताया कि 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया था,तब दलाई लामा तिब्बत से सीधे यहीं पंहुचे थे और यहां रुके थे। दलाई लामा कई बार यहां आ चुके है। इस मठ का जीर्णोध्दार 1997 में चौदहवें दलाई लामा के करकमलों से हुआ था। इस मठ में देश के कई विख्यात जननेता,अनेक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति आ चुके है।
अरुणाचल यात्रा के दौरान तवांग पंहुचने पर जब हम बौध्द विहार पंहुचे तो इसकी विशालता और सुन्दरता ने मंत्रमुग्ध कर दिया। विहार परिसर में बौध्द भिक्षुओं की वेशभूषा में नन्हे बच्चों से लेकर युवा तक नजर आ रहे थे। इन्ही में से एक युवा भिक्षु से मठ के प्रमुख के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि मठ के प्रमुख गुरु रिनपोचे हैं,जो अभी मठ में ही मौजूद है। जब गुरु रिनपोचे के दर्शनों की इच्छा जाहिर की तो उनके एक शिष्य ने बताया कि वे अभी भोजन कर रहे है और इसके बाद प्रार्थना में व्यस्त हो जाएंगे। लेकिन जब गुरु रिनपोचे को हमारे बारे में ज्ञात हुआ वे सहर्ष दर्शन देने को तैयार हो गए।
बौध्द भिक्षुओं के पारंपरिक परिधान में जब गुरु रिनपोचे सामने आए तो मुखमण्डल पर तपस्या और आध्यात्म का तेज स्पष्टत:दिखाई दे रहा था। जब उनके चरणस्पर्श कर उनसे चर्चा की तो उनकी सहजता से मन अभिभूत हो गया। गुरु रिनपोचे ने तवांग मठ की जानकारी देेते हुए बताया कि मठ की स्थापना पांचवे दलाई लामा की इच्छा से वर्ष 1680 में मेराक लामा लोर्डे ग्यात्सो द्वारा की गई थी। इस मठ की स्थापना की कथा भी अत्यन्त रोचक है। पहले यह मठ तिब्बत में ही बनाया जाना था। उस समय तवांग
भी तिब्बत का ही भाग था। मठ के लिए स्थान के चयन की समस्या को मेराक लामा लोर्डे ग्यात्सो के घोडे ने हल की थी। कथा के अनुसार,मेराक लामा मठ के लिए स्थान का चयन नहीं कर पा रहे थे। स्थान की चिन्ता में ही वे जब एक बार प्रार्थना करने गए,तब उनका घोडा गायब हो गया। घोडे की खोजबीन की गई तो घोडा उस स्थान पर मिला जहां आज तवांग मठ स्थापित है। गुरु रिनपोचे ने बताया कि ता का अर्थ होता है घोडा और वांग का अर्थ चयन। इस तरह तवांग का अर्थ ही घोडे द्वारा चुना गया स्थान है।
तवांग मठ की जानकारी देते हुए गुरु रिनपोचे ने बताया कि इस मठ में सात सौ बौध्द भिक्षुओं के रहने की व्यवस्था है। वर्तमान में करीब छ:सौ से अधिक भिक्षु व अन्य व्यक्ति यहां रहते है। इस मठ में करीब दो सौ बच्चों के कक्षा आठवीं तक के अध्ययन और निवास की व्यवस्था है। गुरु रिनपोचे ने बताया कि बौध्द धर्मावलम्बी अपने एक पुत्र को धर्म की सेवा के लिए प्रदान कर देते है। इन बच्चों को तवांग मठ में धार्मिक शिक्षा के साथ स्कूली शिक्षा भी दी जाती है। कक्षा आठवीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए इन बच्चों को अन्यान्य स्थानों पर भेज दिया जाता है। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ये बच्चे लौट आते है और मठ में ही या अन्यत्र कहीं भी अपनी रुचि के अनुसार धर्म के काम में लग जाते है।
मठ में सैकडों वर्ष पुराने ग्रन्थों को सहेज कर रखा गया है। यहां के ग्रन्थालय में चार सौ वर्ष से भी पुराने बौध्द ग्रन्थों का संकलन है। इनमें बडी संख्या में हस्तलिखित ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त मठ में एक संग्रहालय भी बनाया गया है,जिसमें तवांग मठ से सम्बन्धित दुर्लभ फोटो,धार्मिक वस्तुएं अनेक प्राचीन महत्व की वस्तुओं को संग्रहित किया गया है।
गुरु रिनपोचे ने बताया कि 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया था,तब दलाई लामा तिब्बत से सीधे यहीं पंहुचे थे और यहां रुके थे। दलाई लामा कई बार यहां आ चुके है। इस मठ का जीर्णोध्दार 1997 में चौदहवें दलाई लामा के करकमलों से हुआ था। इस मठ में देश के कई विख्यात जननेता,अनेक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति आ चुके है।
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