Sunday, April 26, 2015

यात्रा वृत्तान्त-7 शबरी कुंभ (11,12 और 13 फरवरी 2006)

12 फरवरी 06 - सूरत बस डिपो(शाम 4.00)
दुविधा से बचने के लिए कल शबरी कुंभ में जाने का पक्का निर्णय कर लिया था। 10 फरवरी की आधी रात को भोपाल से लौटने के बाद यह तय कर लिया था कि आने वाले 4 दिनों की जबर्दस्त दुविधा से बचने का यह अच्छा उपाय होगा और इसलिए  दो हजार का जूता खाते हुए भी जाने का मन बन गया। 11 फरवरी की सुबह मा.प्रभाकर जी का चेकअप कराकर फ्री होते होते दोपहर दो बज गए। 2 बजे जब स्टेशन पर टिकट लेने पंहुचे तो बडी आसानी से आज सुबह की जनता में 3 रिजर्वेशन मिल गए।
सुबह साढे छ: बजे ट्रेन पकडना सबसे मुश्किल काम है लेकिन और कोई चारा नहीं था। रात को नलू आत्या का जाना भी तय हो गया। योजना ये बनाई थी कि रात को जल्दी सो जाएंगे लेकिन हर बार की तरह रात को टीवी चालू करने की गलती कर ली और न्यूज देखते देखते रात के ढाई बज गए। सुबह पांच बजे का अलार्म लगाकर सोया। ऐसे में नीन्द आती नहीं है। पता नहीं नींद आई या नहीं,पांच बजे अलार्म बजने लगा और उठकर स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा। सुभाष नायडू और नरेन्द्र शर्मा भी वहीं आ गए। सुभाष अपने स्कूटर से और हम आटो से स्टेशन पंहुचे। रिजर्वेशन कन्फर्म,ट्रेन चलने के आधे घण्टे बाद तत्काल सोने का उपक्रम किया। नींद बडौदा में खुली। बातें करते करते दोपहर ढाई बजे सूरत आ पंहुचे।
 जैसी कि उम्मीद थी,स्टेशन पर शबरी कुंभ का कोई सहायता केन्द्र जरुर होगा। स्टेशन पर न सिर्फ सहायता केन्द्र मिला बल्कि उसे देखते ही अकल्पनीय सुव्यवस्था का अंदाजा भी लग गया। सभी कार्यकर्ता शबरी कुंभ की केसरिया बनियान पंहने हुए थे। जैसे ही उनसे पूछताछ की,फौरन एक स्वयंसेवक हमें स्टेशन के दूसरी ओर बने पाण्डाल तक छोडने साथ आ गया। पाण्डाल पर भोजन,चाय,पानी इत्यादि सारी व्यवस्था उपलब्ध थी। छोटे बच्चों से लेकर बडें तक सेवा में जुटे थे। पाण्डाल में आधे पौन घण्टे तक रुकने के दौरान आधा दर्जन कार्यकर्ताओं ने भोजन और चाय के बारे में पूछताछ की। पाण्डाल में भोजन करने के बाद नजदीक के बस डिपो पर आए और शबरी कुंभ की बस अब चल पडी है।
14 फरवरी 2006 दमण
(सुबह साढे नौ बजे)
दमण के होटल में पंहुचने के पहले तक सिवाय चलते रहने के कुछ नहीं किया। 12 फरवरी को सूरत से चली बस ने रात नौ बजे शबरी धाम में उतारा था। वहां उतरते ही पहला काम आई दादा को ढूंढने का था।
-------------------------------------------------------------------------------------
शबरी कुंभ की यात्रा के दौरान डायरी इतनी ही लिख सका था। मुझे याद आता है कि शबरी धाम में रात नौ बजे बस से उतरने के बाद हमें आई दादा को ढूंढना था,क्योकि नलू आत्या साथ में थी। उन्हे आई दादा के पास छोडना था। बस से उतरने के बाद देखा तो शबरी मन्दिर पर जबर्दस्त भीड थी। पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि ठहरने के स्थान वहां से थोडी दूर है। घने जंगल में कच्ची सड़क बनाई गई थी। सड़क पर बल्लियां गाड कर उन पर स्ट्रीट लाईट्स की व्यवस्था की गई थी। करीब एक किमी दूरी तक तो सड़क के दोनो ओर दुकानें सजी हुई थी,लेकिन इसके आगे दुकानें नदारद थी और घना जंगल नजर आने लगा था। कुछ आगे शबरी कुंभ का केन्द्रीय कार्यालय था,जहां बाबा मौर्य का कार्यक्रम हो रहा था। हमें उस कार्यक्रम में हिस्सा लेना था,लेकिन पहले आत्या को छोडना जरुरी था। शबरी कुंभ में अलग अलग प्रान्तों से आए लोगों के ठहरने के लिए अलग अलग नगर बनाए गए थे। शबरी मन्दिर से मध्यप्रदेश का नगर करीब सात किमी दूर था। वहां पंहुचने के लिए पैदल चलने के अलावा कोई साधन नहीं था। अपना सामान लाद कर सात किमी चलना बेहद मुश्किल था,लेकिन और कोई चारा भी नहीं था। पैदल चलते चलते करीब एक घण्टे बाद हम वहां पंहुचे। मध्यप्रदेश के लिए दो नगर बनाए गए थे। बडे बडे पाण्डाल लगाए गए थे,जिनमें हजारों लोग सो रहे थे। प्रत्येक नगर के मुख्यद्वार पर एक-दो कार्यकर्ता
प्रत्येक आने जाने वाले की जानकारी रजिस्टर में दर्ज भी कर रहे थे। हमने आई दादा को ढूंढने की बहुत कोशिश की,लेकिन उनका कोई पता नहीं चला। आखिरकार थकहार कर हमने तय किया कि रात तो यहीं गुजारी जाए और ढूंढने का काम सुबह शुरु किया जाए। इस निर्णय पर पंहुचने के बाद भोजन की चिन्ता की। भोजन के पाण्डाल वहां से करीब दो किमी दूर थे। वहां पंहुचकर अत्या के लिए भोजन ले कर आए और फिर हम लोग घुमने निकले। शबरी कुंभ में जगह जगह एलसीडी स्क्रीन लगाए गए थे,जिन पर बाबा मौर्य का कार्यक्रम प्रसारित हो रहा था। कार्यक्रम देखते रहे और रात करीब बारह बजे सोये। सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हुए और फिर यह तय किया कि वापस सूरत पंहुचा जाए। वहां से अत्या को बडौदा या उज्जैन के लिए रवाना किया जाए। बडी मुश्किल से सूरत के लिए बस मिली और सूरत पंहुचे।
सूरत में बिलकुल फिल्मों की तरह घटना हुई। आई दादा को रात भर ढूंढ रहे थे। सूरत रेलवे स्टेशन पर पंहुचे तो आई दादा वहीं मिले। नलू अत्या को उनके साथ किया और हम वहां से रवाना हो गए। फिर यह विचार किया कि अब कहां जाए. तब यह तय हुआ कि दमण चला जाए। सूरत से वापी के लिए ट्रेन पकडी और वापी से टैक्सी कर दमण पंहुच गए। दमण में किला,छोटी दमन,बडी दमण,देवका बीच आदि स्थानों पर घूमे। एक रात दमण में रुके और वहां से रतलाम के लिए रवाना हो गए।

No comments:

Post a Comment

अयोध्या-3 /रामलला की अद्भुत श्रृंगार आरती

(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे )  12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)  साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43   अयोध्या की यात्रा अब समाप्...