-तुषार कोठारी
इस मौके पर याद कीजिए करीब तीन साल पहले 21 नवंबर 2013 की घटना। देश में यूपीए की तथाकथित बहादुर सरकार थी। जेल में फांसी की सजा पा चुका पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब बन्द था। अचानक सुबह सवेरे एक चैनल और थोडी ही देर में तमाम चैनलों ने कसाब को फांसी देने की खबर चलाना शुरु कर दी। सरकार ने गुपचुप तरीके से कसाब को फांसी दी और फिर धीरे से यह खबर टीवी चैनलों को लीक कर दी गई। जल्दी ही टीवी चैनलों पर देश के विद्वतजन और विशेषज्ञ आतंकवाद,फांसी जैसे मुद्दों पर बहस मुबाहसे करते नजर आने लगे। तमाम चैनलों पर देश की बहादुरी के कसीदे पढे जाने लगे।
इस मौके पर याद कीजिए करीब तीन साल पहले 21 नवंबर 2013 की घटना। देश में यूपीए की तथाकथित बहादुर सरकार थी। जेल में फांसी की सजा पा चुका पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब बन्द था। अचानक सुबह सवेरे एक चैनल और थोडी ही देर में तमाम चैनलों ने कसाब को फांसी देने की खबर चलाना शुरु कर दी। सरकार ने गुपचुप तरीके से कसाब को फांसी दी और फिर धीरे से यह खबर टीवी चैनलों को लीक कर दी गई। जल्दी ही टीवी चैनलों पर देश के विद्वतजन और विशेषज्ञ आतंकवाद,फांसी जैसे मुद्दों पर बहस मुबाहसे करते नजर आने लगे। तमाम चैनलों पर देश की बहादुरी के कसीदे पढे जाने लगे।