Friday, July 17, 2015

From KanchanJanga to Cherapunji यात्रा वृत्तान्त-12 कंचनजंगा से चेरापूंजी की बरसातों तक

(30 दिसम्बर 2011 से 12 जनवरी 2012)
देश के उत्तरपूर्वी ईलाके को देखने की बरसों पुरानी इच्छा जनवरी 2012 में तब पूरी हुई,जब हम लोगों ने सिक्किम से लेकर भूटान और उत्तरपूर्व तक जाने का कार्यक्रम बनाया। यह कार्यक्रम इसलिए भी बन गया,क्योकि नरेन्द्र शर्मा को तबादला इप्का ने सिक्किम में कर दिया था। इसी मौके का फायदा उठाने के लिए हमने यह कार्यक्रम बनाया। इस यात्रा की एक खासियत यह भी थी इसमें जीवन में पहली बार हवाई यात्रा भी की। इस यात्रा में हमने सिक्किम,भूटान,असम और मेघालय के कई शहरों को छुआ। यह यात्रा 2011 के आखरी दिनों में शुरु हुई। डायरी लिखने का क्रम पांच दिन बाद मेघालय की राजधानी शिलांग पंहुचने के बाद शुरु हुआ।
इस यात्रा में हम 30 दिसम्बर 2011 की रात को ट्रेन से नई दिल्ली पंहुचे थे और अगले दिन यानी 31 दिसम्बर को हवाई जहाज द्वारा सिक्किम के बागडोगरा एयरपोर्ट पर उतरे थे। साल की आखरी रात का जश्न
हमने गंगटोक के एक होटल में मनाया और अगले दिन यानी नए साल के पहले दिन गंगटोक से रवाना होकर भूटान की तरफ चल पडे थे। भूटान में हम राजधानी थिम्फू तक नहीं जा पाए थे। बाद मे न्यू अलीपुर द्वार रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड कर हम गुवाहाटी पंहुचे थे। यह यात्रा कुल 12 दिनों की थी। इस यात्रा में हम चार लोग,मै,आशुतोष,संतोष त्रिपाठी और राजेश घोटीकर रतलाम से निकले थे,जबकि सिक्किम से नरेन्द्र शर्मा हमारे साथ हो गया था।

5 जनवरी 2012 रात 10 बजे
हालीडे होम शिलांग

कल रात 4 जनवरी को शिलांग पंहुचने के बाद सीधे हालीडे होम पहुंचे। हमारी गाडी के ड्राइवर ने ट्रैफिक जाम के दौरान यह पेशकश की थी कि वह हमे अच्छे होटल में रुकवा देगा। उसके होटल का किराया 5 लोगों के लिए कम से कम डेढ हजार रु.था। हम इतना खर्च करना नहीं चाहते थे। रास्ते भर शिलांग के अफसरों से मोबाइल पर बात करते रहे। डीसी या कहे कलेक्टर से मेरी बात हुई तो उन्होने सर्किट हाउस के लिए साफ मना कर दिया,लेकिन हालीडे होम जानेकी सलाह दी। कलेक्टर की सलाह पर ही हम हालीडे होम पंहुचे। हमारे ड्राइवर ने कहा कि हम चाहे कोशिश कर लें,हमको यहां जगह नहीं मिलेगी। फिर भी हम यहां पंहुचे और यहां की मैनेजर बी.खरकमीनी से काफी अनुनय विनय करके कलेक्टर का जिक्र करके हमने यहां कमरा हासिल कर लिया। हम शिलांग में भरचक सोए। ऐसे सोए कि सुबह 9.30 पर उठे।

6 जनवरी 2012(सुबह 6.50)
हालीडे होम शिलांग

कल यानी 5 जनवरी को सुबह देरी से उठे तो बडे धीरे धीरे नहाते धोते करीब साढे बारह बजे यहां से पैदल निकले। शिलांग के मुख्य बाजार  पोलिस बाजार में घुमते हुए एक अग्रवाल होटल में मसाला डोसा,छोले भटूरे का नाश्ता किया। यहां गरम जलेबियां भी बन रही थी। उत्तर भारत की कई मिठाईयां भी यहां मौजूद थी। बाजार में मुंगफलियां बेचने वाले थे और सिकी हुई मुंगफलियां बेच रहे थे। बाजार दूसरे प्रदेशों के बाजारों जैसा ही था। हम बाजार घूमते हुए यहां के डीसी आफिस पंहुचे।कलेक्टर जिसे यहां डीसी(डेप्यूटी कमिश्नर) कहा जाता है,ने दोपहर दो बजे मिलने का समय दिया था। डीसी श्री जे.लिगदोह से थोडे इंतजार के बाद मुलाकात हुई। उनसे शिलांग की प्रशासनिक चुनौतियों पर चर्चा की। श्री लिंगदोह ने बताया कि ट्रैफिक यहां की मुख्य समस्या है। सड़कों का चौडीकरण करना बेहद कठिन है। कलेक्टर ने हमें चेरापूंजी में रुकने को कहा और सर्किट हाउस में हमारी व्यवस्था करवाई। डीसी से मिलने के बाद हम हालीडे होम के ही पास वार्ड लेक पंहुचे। यहां आधे घण्टे बोटिंग के बाद जब निकले तो शाम 5 बजे अंधेरा होने लगा था। हम फिर से पोलिस बाजार पंहुचे। यहां हरिओम होटल नामक मारवाडी होटल में मध्यप्रदेश जैसा भोजन किया। अब ठण्ड और बढ गई थी। दिनभर तो ठण्ड थी ही। धूप निकलने पर थोडी राहत मिलती थी,लेकिन धूप के जाते ही ठण्ड असर दिखाने लगती थी। रात को तो टोपी भी पहनना पडी। रात को ही पोलिस बाजार में टैक्सी स्टैण्ड पर चेरापूंजी जाने व आने के लिए चौंतीस सौ रुपए में टैक्सी तय की। इस ड्राइवर का नाम भी संजय शाह है। यहां मारुति 800,आल्टो जैसी गाडियां टैक्सी में चलती है। हम आल्टो में चेरापूंजी जाएंगे। संजय शाह आठ बजे हालीडे होम पंहुचेगा। हम लोग अब निकलने की तैयारी में है।
6 जनवरी 2012 (रात 8.55)
चेरापूंजी सर्किट हाउस

आज सुबह साढे पर हमारा टैक्सी ड्राइवर संजय शाह हालीडे होम पर पंहुच गया था। उसके आने के पन्द्रह मिनट बाद ही हम लोग निकल गए। हालीडे होम का एक कमरा हमने छोड दिया,एक कमरा सामान के लिए कब्जे में रखा। एक दिन का जरुरी सामान संतोष के बैग में रख कर हम लोग चेरापूंजी के लिए रवाना हो गए। ड्राइवर ने एक मारवााडी होटल में हमे सब्जी पूडा का नाश्ता कराया जिसे हमने भोजन के हिसाब से किया। यहां से हम चर्च के लिए गए। ये विशालकाय चर्च है। चर्च के भीतर बाइबिल के कथानक चित्रों में वर्णित है।चर्च को देखने के बाद हम झू देखने गए। झू देखने के बाद चैरापूंजी के लिए रवाना हुए। टैक्सी में चले। ड्राइवर ने सबसे पहले एक झरना दिखाया।हमने बेहद नीचे उतर कर झरना देखा। फोटो और विडीयो भी बनाया। आगे बढे,हमारे ड्राइवर ने एक और स्पाट दिखाया। जिसे कल्कई फाल कहते है। यहां कहानी देखी कि कल्काई नाम की एक महिला के पति ने उससे बेवफाई की और कल्कई के पहले पति से पैदा हुई बच्ची को मार दिया,इसलिए कल्कई ने इसी झरने पर आत्महत्या कर ली। इसी वजह से झरने का नाम कल्कई फाल पड गया। यहां से आगे बढे तो हम पंहुचे रामकृष्ण मिशन पर। हम बेहद आश्चर्यचकित थे कि मेघालय के दूरस्थ इलाके में रामकृष्ण मिशन भी है। जहां की ९५ प्रतिशत आबादी इसाई हो चुकी है,वहां रामकृष्ण मिशन का होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। हमने काफी चर्चा की। जानकारी ली। यहां आरकेएम कई सारे स्कूल और अस्पताल चलाता है।
7 जनवरी 2012 (सुबह 6.15)
चेरापूंजी सर्किट हाउस

कल रामकृष्ण मिशन देखने के बाद चेरापूंजी के तीन स्पाट और बाकी थे। उससे पहले हम रास्ते में सर्किट हाउस पर रुके। वहां ठहरने की व्यवस्था की जानकारी लेने के बाद हम मानसर गुफा देखने गए। यह गुफा करीब एक सौ चालीस फीट लम्बी है। इसमें घुसकर निकलना बडा अच्छा अनुभव है। पर्यटकों की सुविधा के लिए इसमें लाइट्स लगा दी गई है। इसमें कई स्थानों पर उंकडूं बैठ कर निकलना पडता है। सेवन सिस्टर्स फाल देखने गए लेकिन अभी ये फाल सुखा हुआ था। इसमें एक साथ सात झरने गिरते है। इसके बाद इको गार्डन पंहुचे। इको गार्डन से यदि मौसम साफ हो तो बांग्लादेश  की सीमा भी नजर आती है। इको गार्डन में घूमते हुए शाम के पौने पांच बज गए थे और अब जल्दी ही अंधेरा भी होने वाला था। सर्किट हाउस पंहुचे। यहां चेरापूंजी की एसडीओ मिस बी रानी से मुलाकात हुई। एसडीओ से संक्षिप्त चर्चा हुई।
चेरापूंजी भ्रमण के दौरान यहां कोयले का उत्खनन भी देखा। इन पहाडों के नीचे भारी मात्रा में कोयला मौजूद है। यहां कोयले की खुदाई मशीनों से नहीं होती बल्कि स्थानीय लोग खुदाई करते है। वे पहाड में करीब तीन फीट ऊं चाई की सुरंग बनाते है और भीतर खोदते जाते है। हमने कुछ बेहद गहरी सुरंगे बनी हुई देखी। एक सुरंग पर चार पांच लोग काम करते है। एक व्यक्ति खुदाई करता है,शेष कोयला बाहर निकालते है। कोयला बाहर निकालने के लिए ट्राली का उपयोग किया जाता है। वे एक दिन में करीब एक ट्रैक्टर ट्राली कोयला निकाल लेते है।
चैरापूंजी देश का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है। बचपन से इसका नाम हम सुनते रहे है। एक साल में 480 इंच बारिश का रेकार्ड चेरापूंजी के नाम पर दर्ज है। इस लिहाज से यहां हर महीने करीब 40 इंच वर्षा होती है। हमारे ड्राइवर ने बताया कि अभी दो दिन पहले ही यहां बारिश हो रही थी। लेकिन हमें मौसम सूखा मिला। दिसम्बर 11 और जनवरी 12 के ये कुछ दिन चेरापूंजी के लिए सूखे रहे है। ये करीब तीस किमी में फैला इलाका है। जब बारिश शुरु होती है तो कई बार महीने भर तक लगातार बारिश होती है। यहां के निवासी बारिश में भी अपने कामकाज यथावत जारी रखते है। उन्हे इस बारिश की आदत हो चुकी है। यदि इतनी बारिश हम जैसे लोगों को झेलना पड जाए तो जनजीवन बुरी तरह अस्त व्यस्त हो सकता है,लेकिन यहां ऐसा नहीं है। बारिश के दौरान यहां चारों तरफ गहरी धुंध छा जाती है और बारिश के चलते ज्यादा दूरी तक देखा भी नहीं जा सकता। ऐसे मौसम में गाडी चलाना भी बेहद कठिन हो जाता है। कल चेरापूंजी घुमने के बाद हमें लगा कि यदि अब बारिश शुरु हो जाए तो हम भी चेरापूंजी की बारिश देख सकेंगे,लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
7 जनवरी 2012(रात 10.10)
कल पूरा दिन चेरापूंजी घुमे थे। आज सुबह 8.30 पर हमने चेरापूंजी छोड दिया। यहां से हम क्लीन विलेज और कुछ अन्य स्थान देखने के लिए निकल पडे। चेरापूंजी से 60 किमी शिलांग की ओर आने के बाद,जब शिलांग 20 किमी दूर रह जाता है,वहीं से क्लीन विलेज का रास्ता है। क्लीन विलेज का नाम हिन्दी में बोलना कठिन है। इंग्लिश में इसका नाम (रूड्ड2द्य4ठ्ठठ्ठशठ्ठद्द) है। इस गांव से कुछ किमी अलग लिवाई () नामक गांव है। पहले हम लिवाई गांव गए। इस गांव में बरगद जैसे एक वृक्ष की जडों से एक नदी पर प्राकृतिक रुप से बना हुआ पुल देखा। यह वास्तव में अद्भुत है। एख ही पेड की जडों से न सिर्फ पुल बना है,बल्कि पुल की रैलिंग भी बनी है। कार पार्किंग से यह स्थान काफी नीचे है। नीचे कई कच्ची सीढियां या कहें कच्चे रास्तों से होकर जब यहां पंहुचे तो देखकर आनन्द आ गया।यह वास्तव में प्रकृति का चमत्कार है। लिविंग रूट ब्रिज देखने के बाद हम क्लीनेस्ट विलेज पंहुचे। यहां पेडों पर बने रेस्ट हाउस देखे। बांसों का उपयोग कर पेडों के उपर बनाए गए ये कमरे वास्तव में बेहद सुन्दर हैं। इसका एक रात का किराया पन्द्रह सौ से तीन हजार तक का है। इन्हे देखने की भी फीस है। यहां से निकल कर स्काई व्यू पाइंट देखा। यह भी अद्भुत रचना है।  कुछ पेडों के बीच में बांसों का उपयोग कर काफी ऊं चाई पर बांसो का ही मचान बनाया गया है। यह मचान जमीन से करीब 70 फीट उपर है।  यह पूरा पेडों पर और बांसों पर टिका है। इस मचान से पहाडियों के पीछे बसा बांग्लादेश साफ नजर आता है। क्लीन विलेज में ही एक खासी परिवार द्वारा घर में ही चलाए जा रहे होटल में हमने चावल का भोजन किया।
इस दौरान एक रोचक घटना और हुई। कल चेरापूंजी जाते समय,हम लोग एक झरना देखने रुके और नरेन्द्र ने अपने गीले अण्डरवियर बनियान कार की छत पर सूखने डाल दिए थे। जब कार से आगे बढे तो वह अपने कपडे उठाना भूल गया। उसके कपडे छत पर से उड कर सड़क पर जा गिरे। दस-बीस किमी आगे जाने पर,पीछे से आ रहे एक टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि कपडे गाडी पर से उड गए है। अब कोई चारा नहीं था। बहरहाल नरेन्द्र ने कहा कि  कपडे लौटते वक्त मिल जाएंगे। बडा कमाल यह हुआ कि जब आज हम उस जगह से लौट रहे थे,उसके कपडे सड़क किनारे पडे हुए मिल गए। जिसे उसने उठाकर रख लिया।
बहरहाल शाम को चार बजे के आसपास हम शिलांग पंहुचे। शिलांग भारतीय वायुसेना का पूर्वी मुख्यालय भी है। यहां आईएएफ का संग्रहालय भी है,जहां वायुसेना की तमाम जानकारियों के साथ साथ कुछ पुराने विमान भी रखे है। इन विमानों के साथ फोटो लेने के बाद हम हालिडे होम लौटे। हमने एक कमरा पहले से ही हमारे पास रखा था,दूसरा कमरा यहां आते ही मिल गया। शाम के 6 बज चुके थे। अंधेरा हो चुका था। बाजार यहां ८ बजे बन्द हो जाता है। जल्दी जल्दी बाजार पंहुचे। खरीददारी की और अगली सुबह 8 बजे गुवाहाटी रवाना होने की तैयारी के साथ अब सोने की तैयारी कर रहे हैं।
8 जनवरी 2012 (सुबह 6.30)
हालीडे होम शिलांग

यात्रा अब अंतिम पडाव की ओर है। कल गुवाहाटी से हमें ट्रेन में बैठना है,जो सीधे हमे रतलाम ले जाएगी। आज सुबह आठ-साढे आठ  पर टैक्सी से गुवाहाटी के लिए रवाना होंगे। करीब चार घण्टे के सफर के बाद हम गुवाहाटी  पंहुचेंगे। यहां दिन में कामाख्या व अन्य स्थानों पर जाने के बाद रात को वहीं सोएंगे और 9 जनवरी को ट्रेन पकडेंगे। हमारा आरक्षण रंगिया से है,लेकिन हम गुवाहाटी से ही ट्रेन में सवार होंगे।
9 जनवरी 2012(सुबह 7.00 बजे)
होटल आरती गुवाहाटी

कल सुबह आठ बजे शिलांग से गुवाहाटी के लिए निकले। रविवार होने की वजह से हालीडे होम की मैनेजर खरकमिनी से मुलाकात नहीं हो पाई। शेयरिंग वाली टाटा सूमो में सवार हुए तो दोपहर सवा बजे गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के पास बने टैक्सी स्टैण्ड पर गाडी पंहुचे। यहां सामान टिका कर होटल में रुकने की जगह की तलाश में लगे,जो करीब डेढ घण्टे बाद इस होटल पर आकर खत्म हुई।यहां रुम लेने के बाद ब्रम्हपुत्र नदी के बीच में बने उमाशंकर मन्दिर जाने के लिए निकले।
यह मन्दिर ब्रम्हपुत्र नदी के बीच एक टापू पर बना है। कहते है शंकर जी ने पार्वती से कहा कि वे यदि सुबह से पहले यहां से नहीं निकल ेतो फिर उन्हे सदा यहीं रहना होगा। आधी रात के बाद नारद जी ने मुर्गा बन कर बांग दे दी और शंकर फिर यहीं रह गए।
उमाशंकर मन्दिर पंहुचने तक अंधेरा घिर आया था। अंधेरे में ही वापस लौटे और भोजन कर के सौ गए। अब ट्रेन के सफर की तैयारी है।
9-01-2012  (दोपहर 2.00)
(ओखा-गुवाहाटी-ओखा द्वारका एक्सप्रेस ट्रेन में)

यात्रा अपने अंतिम दौर में है। हम लोग ट्रेन में है। हमारी तीन बर्थ एक कम्पार्टमेन्ट में है और दो दूसरे कंपार्टमेन्ट में है। न्यू जलपाईगुडी में दो नए यात्री आएंगे। अगर वे राजी हो गए तो हम पांचों एक कंपार्टमेन्ट में होंगे। यात्रा के इस दौर में,पिछले दस दिनों की यादें हैं,संस्मरण हैं,जानकारियां हैं। हमारे साथ आर्मी का एक सूबेदार है,जिससे हमने नार्थ इस्ट के बारे में कई जानकारियां जुटाई।
हम लोग सुबह छ:-साढे छ: पर जागे। गुवाहाटी का बाजार घुमे। एक देसी दुकान पर सब्जी पुडी का नाश्ता किया। ठण्डे पानी से नहा कर निकले। यहां गुवाहाटी में शिलांग जैसी ठण्ड नहीं थी।गुवाहाटी पंहुचकर ही कई दिन बाद इनर और जर्किन खोली थी। रात को भी इनर की जरुरत नहीं पडी। सुबह सबसे पहले संतोष जी ने ठण्डे पानी से नहाने की हिम्मत जुटाई। हमने भी हिम्मत जुटाई और आखिरकार सारे लोग ठण्डे पानी से नहा लिए।
सवा दस बजे हम लोग रेलवे स्टेशन पंहुच गए। हमारा टिकट रंगिया से था। हमने टीसी से आग्रह किया कि हम गुवाहाटी से ही थ्रीटायर एसी में बैठ जाए। वह राजी हो गया। हम लोग थ्री टायर एसी में बैठ गए। गुवाहाटी के प्लेटफार्म न 6 पर गाडी खडी थी। हम लोग ट्रेन पर पंहुचे और अपनी बर्थ पर पंहुच गए।
10 जनवरी 2012 (सुबह 7.45) ट्रेन मेंट्रेन का दूसरा दिन। ट्रेन के डिब्बे में 21 घण्टे गुजार चुके है। इस यात्रा में हमने सिक्किम,भूटान और उत्तर पूर्व के 7 में से 2 राज्य देेखे। हर जगह अलग अनुभव,अलग यादें। भूटान की सीमा से लगा पहाडी राज्य सिक्किम हिन्दू बंहुल राज्य है। पहाडी इलाकों की ही तरह यहां महिलाएं अधिक सक्रीय है। दुकानों पर,व्यापार में महिलाओं का प्रभाव ज्यादा है।
 सिक्किम की राजधानी गंगटोक का मुख्या बाजार शिमला के माल रोड से ज्यादा खूबसूरत है। चाय नाश्ते की दुकानों व होटलों पर यहां गर्म पानी पीने को दिया जाता है। गंगटोक काफी उंचाई पर है। यहां ठण्ड बहुत है। अधिकांश लोग मांसाहारी है।
 दूसरी ओर भूटान के फुनशिलोंग शहर में हमने देखा कि अधिकांश महिला पुरुष अपने पारंपरिक व पहने रहे है। महज दस किलोमीटर में दुनिया बदल जाती है।सीमा का अंतिम गांव जयगांव और फुनशिलांग एक दूसरे से मिले हुए है। जैसे ही भूटान के द्वार से भीतर हम प्रवेश करते हैं,सबकुछ बदल जाता है। भारतीय रुपए की जगह भूटानी मुद्रा आ जाती है। हांलाकि यहां दोनो मुद्राएं चलती है। भूटान बौध्द देश है। जहां अभी राजशाही सफलतापूर्वक चल रही है। अधिकांश दुकानों पर राजा के फोटो लगे हुए हैं। सड़कों पर भी राजा व नई रानी के पोस्टर लगे हुए है। सुन्दरता सिक्किम में भी थी और यहां भी है। यहां दुखदायी बात यह दिखी कि गौमांस की दुकानें नजर आई।
फुनशिलांग नीचे मैदानी शहर है और वास्तविक भूटान पहाड की उंचाई पर है। वहां जाने के लिए परमिट लेना पडता है। हमने परमिट ले लिया लेकिन हमारे वाहन का परमिट छुट्टी होने की वजह से नहीं बन पाया। हम थिम्फू नहीं जा पाए। हमने सोचा,बगैर परमिट के जहां तक जा सकते है,वहीं तक जाएं। हम वाहन लेकर चले और करीब २५ किमी दूर चैकपोस्ट पर हमे रोक दिया गया। लौटते समय एक स्थान पर भूटान उत्सव मना रहे कुछ भूटानी परिवारों को देखा। पुरुष स्कर्ट जैसे पारंपरिक परिधान में तीरंदाजी कर रहे थे। महिलाएं भी अपनी पारंपरिक आकर्षक वेशभूषा में पेड के चारो ओर घेरा बनाकर नृत्य कर रही थी। ये सभी लोग भूटान के उच्चमध्यम वर्गीय लोग थे,जो व्यवसायी और नौकरी करने वाले थे। रविवार और राजकीय अवकाश होने की वजह से वे भूटान उत्सव का आनन्द ले रहे थे। भूटान में भी महिलाओं का रुतबा ज्यादा है। यहां खुलापन
ंभी अधिक है। एक टेबल पर शराब और बीयर आदि सजी हुई थी।महिला पुरुष बेहिचक इसका उपयोग कर रहे थे।
उत्तर पूर्वी राज्य वास्तर में कठिन है। गौहाटी इसका प्रवेश द्वार है। पूरे उत्तर पूर्वी इलाके का सड़क से भ्रमण किसी भी हालत में पन्द्रह दिनों से कम का प्रोजेक्ट नहीं हो सकता। पहाडी सड़कें घूम घूम कर चलती है। हर राज्य की अलग कहानी है। हर जनजाति अपने को ही विशीष्ट मानती है। मेघालय में खासी,गारो और जैयन्तिया जनजाति है। 95 प्रतिशत आबादी ईसाई हो चुकी है। यहंा तक  कि खासी भाषा की लिपि भी रोमन ही है। महिलाओं को दबदबा इतना अधिक है कि अचल सम्पत्ति की मालिक महिलाएं ही होती है। पुरुष नहीं। शादी के बाद पुरुष,महिला के घर आता है। महिलाओं के लिए दो-तीन पति छोडना सामान्य बात है। सरकारी नौकरियों,व्यापार आदि में महिलाओं का कब्जा है। खासी समुदाय के लोग अपनी वास्तविक भारतीय पहचान भूल चुके है और खे खुद को इसाई मानते है। यही हाल अन्य जनजातियों का भी है। अंदरुनी गांवों तक ईसाईयत का ही असर है। कुछ दो-चार प्रतिशत हिन्दू खासी बचे होंगे तो उन्हे ठूंठ पाना मुश्किल है। रामकृष्ण मिशन द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में भी ९५ प्रतिशत ईसाई बच्चे ही पढते हैं।
गुवाहाटी में सुबह नाश्ते  के बाद मिठाई खाने गए मेरे मित्रों ने डंखल का एक पैकेट खरीदा। इस पर रतलामी का टैग लगा हुआ है। गुवाहाटी या उत्तरपूर्व में रतलाम को कोई नहीं जानता,लेकिन सेव पर रतलामी लिखा होना रतलाम वालों के लिए एक बडी उपलब्धि है। डंखल का स्वाद भी अच्छा था। हांलाकि ये डंखल रतलाम की बराबरी के नहीं थे। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि ये डंखल,दिसपुर के एक उद्योग में बने थे।
11 जनवरी 2012 (सुबह 9.45)
ट्रेन में
यात्रा का अंतिम दिन। कुछ ही घण्टों में हम घर पर होंगे। 12 दिन की इस यात्रा में हमने पांच हजार किमी से ज्यादा का सफर किया। इस यात्रा में हमने प्लेन,ट्रेन और वाहन सभी का उपयोग किया। देश का यही दूरस्थ अंचल था जिसे देखने की चाहत लम्बे समय से थी। हांलाकि नार्थ ईस्ट में हम केवल असम और मेघायल ही देख पाए। मणिपुर,नागालैण्ड,त्रिपुरा,मिजोरम और अरुणाचल हम नहीं जा पाए। इस यात्रा में हमने दिल्ली,पं.बंगाल,सिक्किम,भूटान और नार्थ ईस्ट के आसाम और मेघालय का दौरा किया। नार्थ-ईस्ट के बचे हुए राज्य किसी अगली यात्रा में देखेंगे। ट्रेन अब कोटा पंहुच रही है। ऐसा लग रहा है जैसे मध्यप्रदेश की दहलीज पर आ गए है। अगली यात्रा तक के लिए अलविदा।

No comments:

Post a Comment

अयोध्या-3 /रामलला की अद्भुत श्रृंगार आरती

(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे )  12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)  साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43   अयोध्या की यात्रा अब समाप्...