Tuesday, October 11, 2022

मणिमहेश यात्रा-4-बारिश भी बर्फबारी भी,फिर भी हो गए मणिमहेश के दर्शन

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29 अगस्त 2022 सोमवार (शाम 5.55) 

डल झील  मणि महेश

हम इस वक्त मणि महेश कैलास की डल झील के पास में एक टेण्ट में रुके है। मेरे तीन साथी डा.राव,आशुतोष और प्रकाश खच्चरों पर सवार होकर यहां आए हैैंं। मैैं और दशरथ जी पैदल यहां पंहुचे है।


कहानी सुबह से शुरु करता हूं। बीती रात हम धन्छो में रुके थे। सुबह जल्दी निकलने की योजना थी। यह तय हो चुका था कि तीन साथी घोडों से जाएंगे और हम दो पैदल जाएंगे। घोडे वाले हमें डरा रहे थे कि बहुत कठिन यात्रा है और आपको डल झील तक पंहुचने में रात हो जाएगी। 


सुबह छ: बजे मैैं उठा। बाहर निकल कर फ्रैश होने की व्यवस्था देखी। मुझे बताया गया कि पीछे व्यवस्था है। अच्छे से टेम्परेरी बने हुए टायलेट थे। साफ सफाई भी अच्छी थी। ठीक सवा सात पर हमने ट्रेकिंग प्रारंभ कर दी। अगला पडाव सुन्दरासी था। किसी ने बताया 4 किमी,किसी ने पांच किमी और किसी ने 6 किमी। हम चल पडे। बेहद खडी सीधी चढाई। मेरा अंदाजा था कि अगर 4 किमी दूर होगा तो 4 घण्टे लगेंगे। खडी चढाई में 1 घण्टे में 1 किमी से ज्यादा नहीं चल पाते। हम चलते रहे। सुन्दरासी का लंगर नीचे से ही नजर आ रहा था। हम जिस पहाड पर चढ रहे थे,उसी पहाड पर लगातार चढना था। सुन्दरासी का रास्ता लगातार खडी चढाई के साथ चलता रहा। हमें हर सौ डेढ सौ कदम पर रुक कर अपना आक्सिजन लैवल सैट करना पड रहा था। 


खैर,हम साढे गाय्रह बजे सुन्दरासी पंहुच गए। हमारे साथ पठानकोट का सोहनलाल(सोनू टेलर) भी चल रहा था,जो चौदहवीं बार मणि महेश जा रहा था। उसी ने बताया कि सुन्दरासी से गौरीकुण्ड दो ढाई घण्टे का रास्ता है।


हमने सुन्दरासी के लंगर में नाश्ता किया। मैने दो पुडी और सब्जी ली। दशरथ जी ने चार पुडी खाई। रास्ते में एक लंगर पर   उबले काले चने भी बांटे जा रहे थे। बहरहाल बात सुन्दरासी से गौरीकुण्ड के रास्ते की चल रही थी।हम सुन्दरासी से चले तो कठिन चढाई चढते हुए दोपहर दो बजे गौरीकुण्ड पंहुच गए।


गौरीकुण्ड से मणिमहेश डल झील का रास्ता मात्र एक डेढ किमी यानी एक डेढ घण्टे का था। हम वहां तीन बजे तक पंहुच सकते थे। गोरी कुण्ड में मैने विडीयो बनाए। अभी तक मौसम शानदार था। धूप आ जा रही थी। लेकिन गौरीकुण्ड पंहुचने के बाद दशरथ जी ने चाय पीने की इच्छा जताई। हमारे पोर्टर लक्ष्मण ने कहा कि आगे भण्डारे पर चलो। लेकिन दशरथ जी ने बताया कि फीकी चाय दुकान पर ही मिलेगी। उसी दुकान पर चाय पीने के लिए रुक गए। वहीं बात चली तो मणि महेश के पुजारी और उनकी धर्मपत्नी मिल गए। बात से बात चली तो मणिमहेश गौरीकुण्ड की कथा के बारे में पूछा। फिर मैने उनका विडीयो भी बनाया। हम करीब 2.20 पर गौरी कुण्ड से निकल गए। गौरीकुण्ड उस पहाड का सबसे उपरी हिस्सा है,जिस पर हम लगातार दो दिन से चढ रहे थे। हम गौरीकुण्ड में चाय पीकर दुकान के बाहर निकले। इतनी देर में धूप गायब हो चुकी थी और पूरे पहाड पर कोहरे ने कब्जा जमा लिया था। हम थोडा ही आगे बढे तो पानीकी बून्दे टपकने लगी।


देखते ही देखते बारिश तेज होने लगी।हमने बैग खोलकर बरसाती निकाली। मैने जर्किन और टोपा बैग में रखा और बरसाती पहन ली। अभी हम सौ मीटर ही चले थे कि ओले गिरने लगे। ओले तेज हो गए। एक बार तो मन हुआ कि पीछे लौट कर गौरीकुण्ड चला जाए। लौट कर कुछ कदम चले भी,लेकिन अचानक से ओले गिरना बन्द हो गया। फिर हमने बरसाती पानी में ही आगे बढने का फैसला किया और आगे बढे। जल्दी ही हम डल झील पर पंहुच गए।


डल झील पर पंहुचने के साथ ही मणि महेश कैलास के प्रथम दर्शन भी हो गए। आसमान पूरी तरह साफ था और मणिमहेश कैलास के पूरे दर्शन हो रहे थे। मणिमहेश कैलास पर्वत पर शिवलिंग और नन्दी महाराज स्पष्ट दृष्टिगोचर होते है। इसके अलावा ध्यानस्थ महात्मा भी नजर आते है। कई बार ये पूरा पर्वत ऐसा नजर आता है मानो शिव जी तपस्या में रत हो।


मणिमहेश के दर्शन करके आगे बढे। अब बडा सवाल हमारे साथियों की खोज का था। एन्ट्रीगेट पर दशरथ जी ने कहा कि मैैं आगे बढकर उन्हे ढूंढता हूं। मैैं पीछे जा रहा था। दशरथ जी को बडी जल्दी सारे लोग मिल गए,लेकिन मैैं अपने साथियों को ढूंढ रहा था। मैैं बरसाती पहना हुआ था और इस वजह से चलने में कठिनाई हो रही थी। एक अन्य यात्री की मदद से मैने बरसाती उतारी। फिर एक दुकान पर बैग टिकाया और साथियों को ढूंढना शुरु किया।  करीब आधे घण्टे की मशक्कत के बाद सभी लोग एक टेण्ट में आराम करते मिले। मैैं भी टेण्ट में आ गया।


फिर दो बार मणि महेश के दर्शन हो गए। अब मुझे कुछ भी खाना पीना नहीं था। अब सोने की इच्छा हो रही थी। अभी शाम हुई है। देखते है आगे क्या होता है...? 


ृ29 अगस्त 2022 सोमवार

डल झील मणिमहेश

मेरे पैर पूरी तरह ठण्डे हो चुके थे। बारिश में जूते मोजे गीले हो गए थे। यहां आकर एक घण्टा कम्बल में पैर दबाकर बैठा। फिर बाहर निकला। कैमरा मेरे पास नहीं था। इसलिए डा.राव के मोबाइल से विडीयो बनाया। अब थोडा वर्णन डल झील का। डल झील के चारों ओर बैरिकैटिंग की गई है। जहां हम रुके है,इसके विपरित दिशा में एक स्थान स्नान के लिए निर्धारित है। उसी के पास में त्रिशूल लगाए गए हैं। जैसे मध्यप्रदेश के चौरागढ में त्रिशूल चढाने की परम्परा है,वैसे ही यहां भी मन्नत लेकर त्रिशूल चढाए जाते हैैं। हम जब झील की परिक्रमा कर रहे थे,उसी वक्त संध्या आरती भी हो रही थी। आरती का विडीयो बनाया।


यहां डल झील के चारो ओर परिक्रमा पथ बनाया गया है। इसके बाहर दुकानें लगी हुई हैष कुछ साधुओं ने अपने डेरे भी लगाए है। कई सारी दुकानें लगाई गई है,जहां रात्रि विश्राम की व्यवस्था है। दो तीन भण्डारे भी चल रहे हैैं। डल झील के आसपास तंबूओं के शहर जैसा नजारा है। बाहर कडाके की ठण्ड है। ऐसे में बाहर जाना समझदारी की बात नहीं है। अब सिर्फ सोने का काम बाकी है,ताकि सुबह जल्दी उठकर निकल सकें। मणि महेश कैलास के दर्शन तो यहां आते ही हो गए थे। यहां आने के बाद भी दो तीन बार बादल छंटे और मणिमहेश के दर्शन हो गए।बादल ना हो तो पर्वत पर शिवलिंग नन्दी तपस्या करते महादेव इत्यादि स्पष्ट नजर आते हैैं। यह भी कहा जाता है कि कभी किसी समय रात के वक्त मणि चमकती है। मणिमहेश में रात के वक्त मणि का चमकना बडा चमत्कार है। हजारों लोग इसके विडीयो भी बना चुके है। अब जिसकी श्रद्धा होगी वह रात भर मणि देखने के लिए जागेगा।


हम सुबह जल्दी यहां से निकलना चाहते है। हमे पन्द्रह किमी का रास्ता पार करना है। देखते है क्या होता है..?  

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