(भुवनेश्वर पुरी यात्रा 23 दिसम्बर 2012 से 31 दिसम्बर 2012)
भारत के चार धाम में से एक जगन्नाथ पुरी की यह यात्रा अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन के चलते संभव हो पाई। अधिवेशन के लिए मेरे अधिवक्ता साथी,दीपक जोशी,प्रकाश राव पंवार,और संतोष त्रिपाठी जाने को तैयार थे। आखरी समय पर वकालात की पढाई कर रहा विजयसिंह पंवार भी हमारे साथ जाने को तैयार हो गया और उसे हम बगैर रिजर्वेशन के हमारे साथ ले गए। यह यात्रा 23 दिसम्बर 2012 को प्रारंभ हुई और हम लोग 31 दिसम्बर 2012 को रतलाम लौटे।
24 दिसम्बर 2012 सोमवार
(ट्रेन में)
रविवार 23 दिसम्बर का पूरा दिन यात्रा की तैयारियों में गुजरा था। पूर्व निर्धारित योजना के मुताबिक 23 की शाम ठीक पांच बजे संतोष जी की मारुति वैन से उज्जैन के लिए रवाना हुए। शाम करीब सवा सात पर उज्जैन पंहुचे। सीधे रेलवे स्टेशन पंहुचकर अपना सामान क्लाक रुम में जमा कराया और पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक मधुकर (आशुतोष मधुकर) के आफिस में पंहुचे। लेकिन यहां गडबड हो गई।घोंसला और घटिया में कुछ देर पहले ही सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी थी,इसलिए मधुकर को वहां जाना पडा और हम बैरंग लिफाफों की तरह स्टेशन की ओर लौटे। इसी बीच ध्यान आया कि लेपटाप कार में ही रह गया है। फौरन सतीश को फोन लगाया और वापस बुलाया। सतीश ने आकर लैपटाप दिया और बताया कि वह सैलाना के सीएमओ जीवनराय माथुर को उज्जैन में ही छोडकर जा रहा है। बाद में काफी देर तक माथुर के फोन आते रहे। मैने भी कहा कि सतीश फोन ही नहीं उठा रहा है। बहरहाल उज्जैन के मित्र नरेन्द्र कछवाय ने अमन पैलेस होटल में फ्रेश होने की व्यवस्था कर दी थी। वहां से तैयार होकर ट्रेन के लिए रवाना हुए। नायडू (सुभाष नायडू) का टिकट कन्फर्म हो चुका था,लेकिन हमारे साथ जा रहे विजय का टिकट वेटिंग में ही था। बहरहाल ट्रेन में कोई दिक्कत नहीं आई। भोजन किया। टीसी ने विजय को भी एडजस्ट कर लिया और भोजन के एसी थ्री टायर के कोच में सौ गए। नायडू अपने कोच में पंहुच गया।
24 दिसम्बर 2012
नागपुर रेलवे स्टेशन
सुबह साढे आठ बजे नागपुर स्टेशन पंहुच गए । विनय (विनय कोटिया) का फोन आ गया था। थोडी ही देर में विनय भी पंहुच गया। नित्यकर्मऔर स्नान आदि से निवृत्त होकर अल्पाहार के लिए स्टेशन से बाहर निकले और 15 मिनट की पैदल यात्रा कर एक प्रसिध्द दुकान पर पंहुचे। यहां नाश्ता चाय किया और फिर स्टेशन लौटे। भोजन भी बाहर के एक होटल से पैक करवा लिया। हमारी ट्रेन कुछ देरी से रवाना हुई। दोपहर करीब 12 बजे ट्रेन रवाना हुई। हम पांच यानी मै,संतोष त्रिपाठी,प्रकाश राव पंवार,दीपक जोशी और विजय सिंह की चार सीटें कन्फर्म हो चुकी थी। तीन बर्थ बी-2 में थी,जबकि एक बी-1 में। टीसी ने हमें एक ही जगह एडजस्ट कर दिया।
चलती ट्रेन में लैपटाप पर बाबा मौर्य का भीलवाडा कार्यक्रम का विडीयो लगया,जिसे सबने बडे चाव से देखा। करीब ढाई घण्टे का यह विडीयो देखकर सभी आनन्दित है। ट्रेन पुरी की ओर दौड रही है। कल सुबह हम पुरी में होंगे,जहां अधिवक्ता परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन है और हम चार वकील इसी के लिए वहां जा रहे हैं।
25 दिसम्बर 2012 मंगलवार
भुवनेश्वर (रात साढे ग्यारह बजे)
भुवनेश्वर की केआईआईटी यूनिवर्सिटी के होस्टल में रात साढे ग्यारह पर मै लैपटाप की बेरुखी के साथ डायरी से मुखाबित हूं।
12.45- थोडी देर नेट सेटर चला। एक खबर अपलोड कर दी। फिर फिल्म देखने लगे। अब सोने के समय पूरा दिन याद आ रहा है।
24 दिसम्बर को ट्रेन में गुजारी रात का अंत सुबह करीब साढे दस बजे पुरी स्टेशन पर हुआ। स्टेशन पर ही स्नान आदि से निवृत्त होकर करीब बारह बजे बाहर निकले। भूख जोरों की लगी थी। स्टेशन के ठीक सामने एक पकौडे के ठेले पर पकौडों का आनन्द लिया। वहां से आटो में सवार होकर चार धाम में से एक जगन्नाथ धाम मंदिर पंहुचे। आटो से उतरते ही एक पण्डा सामने पडा,जिसने 51 रु.में दर्शन कराने की पेशकश की। विश्वनाथ नामक इस पण्डे के साथ जगन्नाथ भगवान के दर्शन किए और यहां से पैदल ही समुद्र के लिए रवाना हुए। काफी दूर पैदल चलने के बाद जैसे तैसे समुद्र नजर आया। तेज लहरों को देखते ही थकान जैसे दूर हो गई और लहरों से खेलने का मन बन गया। करीब एक डेढ घण्टे लहरों से खेलने के बाद फिर स्टेशन आए,सामान उठाया और बसस्टेण्ड पंहुचे। यहां पंहुचते ही भुवनेश्वर की बस मिल गई। बस में सवार होकर करीब 7.45 शाम को भुवनेश्वर स्टेशन पंहुचे,जहां अधिवेशन स्थल पर जाने के लिए बस उपलब्ध थी।
आज पूरे दिन भोजन नहीं कर पाए थे। यहां पंहुचने पर पंजीयन कराने और कक्ष प्राप्त करने में एक डेढ घण्टा और लग गयाा। कक्ष में आकर फ्रैश हुए और भोजन किया। फिर लैपटाप के साथ माथाफोडी। एक खबर अपलोड कर फिल्म देख ली। अब सोने की तैयारी।
28 दिसम्बर 2012 (सुबह 7.30)
केपी-5 होस्टल भुवनेश्वर
26 दिसम्बर को अधिवेशन का उद्घाटन दोपहर ढाई बजे था। सुबह अल्पाहार करके बाहर निकले। समय का उपयोग करते हुए हम आटो लेकर लिंगराज मन्दिर के लिए रवाना हुए। यह स्थान भुवनेश्वर में ही है। भव्य लिंगराज मन्दिर ढाई हजार वर्ष पुराना है। इसकी भव्यता और सुन्दरता देखकर मन प्रसन्न हो गया।
अधिवेश के उद्घाटन से ठीक पहले हम लौट आए। अधिवेशन का उद्घाटन उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एके पटनायक ने किया। अधिकांश वक्ताओं ने अंग्रेजी में संबोधन दिया। उद्घाटन के बाद रात्रि भोजन किया। यह तय कर लिया था कि अगले दिन कोणार्क देखा जाएगा।
27 दिसम्बर- सुबह जल्दी उठ कर तैयार हुए और अल्पाहार के बाद यहां से निकले। सिटी बस में कल्पना चौक पंहुचे,जहां से कोणार्क के लिए बस मिलती है। कल्पना चौक यहां से 15 किमी दूर है। कल्पना चौक पर कोणार्क की बसों में भारी भीड थी। गुजरात के कुछ अभिभाषक भी वहां मिल गए। हमने मिलकर एक टाटा मैजिक किराए पर ली और दोपहर करीब डेढ बजे कोणार्क पंहुच गए। पूरे विश्व में प्रसिध्द इस विशाल प्राचीन मन्दिर को देखकर मन अभिभूत हो गया। यहां की शिल्प मूर्तियों के ढेरों फोटों खींचे और शाम करीब सात बजे होस्टल लौटे। आज दोपहर डेढ बजे अधिवेशन का समापन होगा। इसके बाद नन्दन वन और उदयगिरी की गुफाएं देखने की तैयारी है।
30 दिसम्बर 2012
ट्रेन में (सुबह 7.50)
वापसी की यात्रा शुरु हो चुकी है।हमारे टिकट थ्री एसी में थे,लेकिन वेटिंग क्लियर नहीं हुई। बीती शाम जब रिजर्वेशन का चार्ट बन गया,और टिकट कन्फर्म नहीं हुए,हम केआईआईटी के होस्टल में अगली सुबह की चिन्ताओं के साथ तैयारी कर रहे थे। पहली चिन्ता यह थी कि केआईआईटी से स्टेशन कैसे जाएंगे? इस समस्या का हल होस्टल के रिसेप्शन पर मौजूद कर्मचारियों ने कर दिया। उन्होने रात को ही दो आटो वालो को तय कर दिया था,जो सुबह हमे स्टेशन ले आए। स्टेशन पर भी यात्रा की चिन्ता में ही बैठे थे। 6.50 पर ट्रेन आई। ट्रेन में जनरल कोच पूरी तरह खाली थे और हम जनरल कोच में ही चढ गए। यहां बडे आराम से बैठे है।
28 दिसम्बर- अधिवेशन के समापन सत्र से पहले सुबह नौ से साढे नौ तक पूर्व और पूर्वोत्तर विधिक समस्याएं विषय पर सत्र था। इस सत्र में बेहद उपयोगी जानकारियां मिली। अधिवेशन में पूर्वोत्तर राज्यों के भी अधिवक्ता आए थे। उन्होने अपने क्षेत्र के बारे में विस्तार से जानकारियां दी।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश जी सोनी थे। उनसे मिलने की कोशिश की। भीडभाड में केवल नमस्कार हो पाया। समापन सत्र में सुरेश जी ने बेहद विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान दिया। इसी मंच पर कलिंग इंस्टीट्यूट आफ इण्डस्ट्रियल टैक्नालाजी के संस्थापक डॉ.अच्युत सामन्ता भी मौजूद थे।
डॉ.अच्युत सामन्ता बेहद विशीष्ट व्यक्ति है। अत्यन्त गीब परिवार से आए डॉ.सामन्ता ने कीट का पूरा साम्राज्य खडा किया है। कीट में बीटेक और एमटेक के कई कोर्सेज है। कीट के होस्टल में 25 हजार छात्रों के आवास भोजन की व्यवस्था है। यहां अनेक विदेशी छात्र पढने आते हैं। इससे बडी बात यह है कि डॉ. सामन्ता केआईआईटी (कीट) के साथ केआईआईएस (कीस)नामक संस्था चलाते हैं। इसके अन्तर्गत वे संपूर्ण उडीसा,छत्तीसगढ,बंगाल आदि राज्यों के अत्यन्त निर्धन वनवासी बच्चों को यहाां लाते है और उनके निशुल्क शिक्षण,आवास,भोजन ,वादि की व्यवस्था करते है। फिलहाल करीब 20 हजार वनवासी बच्चे यहां रहते हैं। जिन्हे एलकेजी से एमटेक तक की शिक्षा दी जाती है और यहीं उन्हे नौकरियां भी मिल जाती है। श्री सामन्ता ने अपने मार्मिक उद्बोधन में कहा कि विगत 20 सालों से वे लगातार इस अभियान में लगे है। मात्र एक कमरे में 5 हजार की राशि से शुरु किए गए उनके संस्थान की गूंज आज पूरे संसार में है। श्री सामन्ता आज भी दो कमरों के मकान में रहते है।
अधिवेशन के समापन के बाद कमलेश जी से भेंट की। सोनी जी से मिलने का प्रयास किया,लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई। भोजन के बाद दोपहर करीब तीन बजे धौलागिरी स्थित पीस पगौडा देखने गए। कीट स्क्वायर से पीस पगौडा के लिए सीधी सिटी बस मिल गई। पीस पगौडा बौध्द स्तूप है। इसके पीछे शिव मन्दिर है। धौलागिरी के अलावा यहां से और आगे खण्डगिरी की पहाडियां हैं,जहां बौध्द गुफाएं है,लेकिन हम वहां नहीं जा पाए। उडीसा में शाम का अंधेरा शाम साढे पांच बजे शुरु हो जाता है और छ: बजे तक पूरी तरह अंधियारा छा जाता है। शाम हो चुकी थी। हम वापस लौटे। बस काा इंतजार कर रहे थे,लेकिन आटोवाला ठीक कीमत पर छोडने को राजी हो गया। रात करीब नौ बजे होस्टल पंहुचे और सोये। इससे पहले अधिवेशन के समापन सत्र की खबर भी इ खबरटुडे पर अपलोड की।
29 दिसम्बर- 29 को योजना यह थी कि पूरा दिन पुरी में गुजारेंगे। हमारा रेलवे का टिकट पुरी से था। पहले योजना यह थी कि 29 की रात भी पुरी में गुजारी जाए लेकिन पुरी के एसडीएम से फोन पर चर्च हुई तो पता चलाा कि वहां भारी भीडभाड है और होटल इत्यादि भरे पडे हैं। इधर केआईआईटी होस्टल में रुकने में कोई समस्या नहीं थी। तब यही निर्णय किया कि दिनभर पुरी में घूमघाम कर रात्रि विश्राम भुवनेश्वर में ही किया जाए। चूंकि ट्रेन भुवनेश्वर होते ही जाना थी,इसलिए गाडी भुवनेश्वर से पकडने की योजना बनाई। हमारे रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं थे,इसलिए यह भी सोचा कि तत्काल कोटे में आरक्षण करवाया जाए। तत्काल का आनलाइन आरक्षण दस बजे शुरु होता है,इसलिए दस बजे तक कक्ष पर ही रुके। लेकिन आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर काफी दबाव था और काफी कोशिशों के बावजूद हम आरक्षण नहीं करवा पाए। करीब साढे दस बजे कीट कैम्पस से डीटीएश की सिटी बस पकड कर कल्पना चौक पंहुचे,जहां से पुरी की बस मिलती है। राज्य का संग्रहालय भी यहीं स्थित है। पिछले दो तीन दिनों से रोज इसमें जाने की चर्चा हो रही थी। आज आखरी दिन था इसलिए सबसे पहले म्यूजियम देखने का ही फैसला किया। सुबह करीब ग्यारह बजे म्यूजियम के बाहर केन्टीन में बैक समोसा और चाय का नाश्ता करने के बाद म्यूजियम में घुसे। एक खासियत
यह थी कि 29 दिसम्बर ही म्यूजियम का स्थापना दिवस था,इसलिए यहां समारोह आयोजित था। हमारे पास समय की कमी थी,इसलिए बेहद जल्दी जल्दी म्यूजियम देखा। म्यूजियम काफी विशाल है और इसे देखने में तीन-चार घण्टे लगते है,लेकिन हम मात्र डेढ घण्टे में यहां से निकल आए। 12.45 के करीब पुरी के लिए बस में सवार हुए। भुवनेश्वर से पुरी का रास्ता करीब डेढ घण्टे का है। हम ढाई बजे पुरी पंहुचे। सबसे पहले सीधे समुद्र पंहुचे। बीच की तेज लहरों में नहाने की मित्रों की बडी इच्छा थी। करीब एक घण्टे समुद्र स्नान करते रहे। मेरी स्नान की कोई इच्छा नहीं थी। मेरा लक्ष्य शंकराचार्य मठ देखना था। यहां से आटो में सवार होकर शंकराचार्य मठ पंहुचे। मठ अत्यन्त नजदीक है,लेकिन रास्तों की जानकारी नहीं होने के कारण आटोवाले को साठ रुपए देने पडे।
आदि शंकराचार्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व स्थापित मठ को देखकर मन प्रसन्न हो गय। शंकराचार्य परंपरा तभी से अखण्ड रुप से जारी है। पुरी के गोवर्धन मठ में आदिगुरु से अब तक 145 शंकराचार्य विराजित हो चुके है। वर्तणान में स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महराज यहां विराजित है। शंकरचार्य जी के दर्शनों की इच्छा थी,लेकिन वे उज्जैन गए हुए थे।
गोवर्धन मठ से निकल कर बाजाार में आए। यहां के सूती हाथकरघा व अच्छे और सस्ते है। हमने यहाां साडियां कुर्ते शाल आदि खरीदी। शाम के साढे पांच बज चुके थे। अंधेरा घिरने लगा था। जगन्नाथ भगवान के दर्शन किए,प्रसाद लिया और करीब साढे छ: बजे भुवनेश्वर के लिए बस पकडने गए। 6.45 पर बस चली,जिसने हमे साढे आठ बजे भुवनेश्वर के कल्पना चौक पर छोडा। यहंा से कीट कैम्पस पंहुचने में करीब एक घण्टा लगता है। हमे लगा कि भोजन कहां मिलेगा,इसलिए कल्पना चौक से ही एक होटल से तंदूरी रोटी और सब्जी पैक करवाा ली। रात दस बजे होस्टल पंहुचे। सुबह जाना है,इसलिए सामान आदि पैक करने और भोजन आदि करने में रात के बारह बज गए। सुबह पांच बजे उठे और ठीक साढे पांच पर हमे लेने के लिए आटो मौजूद थे।
ट्रेन के इस जनरल कोच का पूरा कम्पार्टमेन्ट हमारे कब्जे में है। उम्मीद यह है कि इस ट्रेन के जनरल कोच 3में अधिक लोग आएंगे नहीं। शाम तक हो सकता है रिजर्वेशन कोच ें जगह मिल जाए। तब तक सफर आसानी से चल रहााहै,चलेगा और हम नए के ठीक एक दिन पहले रतलाम पंहुच जाएंगे।
भारत के चार धाम में से एक जगन्नाथ पुरी की यह यात्रा अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन के चलते संभव हो पाई। अधिवेशन के लिए मेरे अधिवक्ता साथी,दीपक जोशी,प्रकाश राव पंवार,और संतोष त्रिपाठी जाने को तैयार थे। आखरी समय पर वकालात की पढाई कर रहा विजयसिंह पंवार भी हमारे साथ जाने को तैयार हो गया और उसे हम बगैर रिजर्वेशन के हमारे साथ ले गए। यह यात्रा 23 दिसम्बर 2012 को प्रारंभ हुई और हम लोग 31 दिसम्बर 2012 को रतलाम लौटे।
24 दिसम्बर 2012 सोमवार
(ट्रेन में)
रविवार 23 दिसम्बर का पूरा दिन यात्रा की तैयारियों में गुजरा था। पूर्व निर्धारित योजना के मुताबिक 23 की शाम ठीक पांच बजे संतोष जी की मारुति वैन से उज्जैन के लिए रवाना हुए। शाम करीब सवा सात पर उज्जैन पंहुचे। सीधे रेलवे स्टेशन पंहुचकर अपना सामान क्लाक रुम में जमा कराया और पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक मधुकर (आशुतोष मधुकर) के आफिस में पंहुचे। लेकिन यहां गडबड हो गई।घोंसला और घटिया में कुछ देर पहले ही सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी थी,इसलिए मधुकर को वहां जाना पडा और हम बैरंग लिफाफों की तरह स्टेशन की ओर लौटे। इसी बीच ध्यान आया कि लेपटाप कार में ही रह गया है। फौरन सतीश को फोन लगाया और वापस बुलाया। सतीश ने आकर लैपटाप दिया और बताया कि वह सैलाना के सीएमओ जीवनराय माथुर को उज्जैन में ही छोडकर जा रहा है। बाद में काफी देर तक माथुर के फोन आते रहे। मैने भी कहा कि सतीश फोन ही नहीं उठा रहा है। बहरहाल उज्जैन के मित्र नरेन्द्र कछवाय ने अमन पैलेस होटल में फ्रेश होने की व्यवस्था कर दी थी। वहां से तैयार होकर ट्रेन के लिए रवाना हुए। नायडू (सुभाष नायडू) का टिकट कन्फर्म हो चुका था,लेकिन हमारे साथ जा रहे विजय का टिकट वेटिंग में ही था। बहरहाल ट्रेन में कोई दिक्कत नहीं आई। भोजन किया। टीसी ने विजय को भी एडजस्ट कर लिया और भोजन के एसी थ्री टायर के कोच में सौ गए। नायडू अपने कोच में पंहुच गया।
24 दिसम्बर 2012
नागपुर रेलवे स्टेशन
सुबह साढे आठ बजे नागपुर स्टेशन पंहुच गए । विनय (विनय कोटिया) का फोन आ गया था। थोडी ही देर में विनय भी पंहुच गया। नित्यकर्मऔर स्नान आदि से निवृत्त होकर अल्पाहार के लिए स्टेशन से बाहर निकले और 15 मिनट की पैदल यात्रा कर एक प्रसिध्द दुकान पर पंहुचे। यहां नाश्ता चाय किया और फिर स्टेशन लौटे। भोजन भी बाहर के एक होटल से पैक करवा लिया। हमारी ट्रेन कुछ देरी से रवाना हुई। दोपहर करीब 12 बजे ट्रेन रवाना हुई। हम पांच यानी मै,संतोष त्रिपाठी,प्रकाश राव पंवार,दीपक जोशी और विजय सिंह की चार सीटें कन्फर्म हो चुकी थी। तीन बर्थ बी-2 में थी,जबकि एक बी-1 में। टीसी ने हमें एक ही जगह एडजस्ट कर दिया।
चलती ट्रेन में लैपटाप पर बाबा मौर्य का भीलवाडा कार्यक्रम का विडीयो लगया,जिसे सबने बडे चाव से देखा। करीब ढाई घण्टे का यह विडीयो देखकर सभी आनन्दित है। ट्रेन पुरी की ओर दौड रही है। कल सुबह हम पुरी में होंगे,जहां अधिवक्ता परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन है और हम चार वकील इसी के लिए वहां जा रहे हैं।
25 दिसम्बर 2012 मंगलवार
भुवनेश्वर (रात साढे ग्यारह बजे)
भुवनेश्वर की केआईआईटी यूनिवर्सिटी के होस्टल में रात साढे ग्यारह पर मै लैपटाप की बेरुखी के साथ डायरी से मुखाबित हूं।
12.45- थोडी देर नेट सेटर चला। एक खबर अपलोड कर दी। फिर फिल्म देखने लगे। अब सोने के समय पूरा दिन याद आ रहा है।
24 दिसम्बर को ट्रेन में गुजारी रात का अंत सुबह करीब साढे दस बजे पुरी स्टेशन पर हुआ। स्टेशन पर ही स्नान आदि से निवृत्त होकर करीब बारह बजे बाहर निकले। भूख जोरों की लगी थी। स्टेशन के ठीक सामने एक पकौडे के ठेले पर पकौडों का आनन्द लिया। वहां से आटो में सवार होकर चार धाम में से एक जगन्नाथ धाम मंदिर पंहुचे। आटो से उतरते ही एक पण्डा सामने पडा,जिसने 51 रु.में दर्शन कराने की पेशकश की। विश्वनाथ नामक इस पण्डे के साथ जगन्नाथ भगवान के दर्शन किए और यहां से पैदल ही समुद्र के लिए रवाना हुए। काफी दूर पैदल चलने के बाद जैसे तैसे समुद्र नजर आया। तेज लहरों को देखते ही थकान जैसे दूर हो गई और लहरों से खेलने का मन बन गया। करीब एक डेढ घण्टे लहरों से खेलने के बाद फिर स्टेशन आए,सामान उठाया और बसस्टेण्ड पंहुचे। यहां पंहुचते ही भुवनेश्वर की बस मिल गई। बस में सवार होकर करीब 7.45 शाम को भुवनेश्वर स्टेशन पंहुचे,जहां अधिवेशन स्थल पर जाने के लिए बस उपलब्ध थी।
आज पूरे दिन भोजन नहीं कर पाए थे। यहां पंहुचने पर पंजीयन कराने और कक्ष प्राप्त करने में एक डेढ घण्टा और लग गयाा। कक्ष में आकर फ्रैश हुए और भोजन किया। फिर लैपटाप के साथ माथाफोडी। एक खबर अपलोड कर फिल्म देख ली। अब सोने की तैयारी।
28 दिसम्बर 2012 (सुबह 7.30)
केपी-5 होस्टल भुवनेश्वर
26 दिसम्बर को अधिवेशन का उद्घाटन दोपहर ढाई बजे था। सुबह अल्पाहार करके बाहर निकले। समय का उपयोग करते हुए हम आटो लेकर लिंगराज मन्दिर के लिए रवाना हुए। यह स्थान भुवनेश्वर में ही है। भव्य लिंगराज मन्दिर ढाई हजार वर्ष पुराना है। इसकी भव्यता और सुन्दरता देखकर मन प्रसन्न हो गया।
अधिवेश के उद्घाटन से ठीक पहले हम लौट आए। अधिवेशन का उद्घाटन उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एके पटनायक ने किया। अधिकांश वक्ताओं ने अंग्रेजी में संबोधन दिया। उद्घाटन के बाद रात्रि भोजन किया। यह तय कर लिया था कि अगले दिन कोणार्क देखा जाएगा।
27 दिसम्बर- सुबह जल्दी उठ कर तैयार हुए और अल्पाहार के बाद यहां से निकले। सिटी बस में कल्पना चौक पंहुचे,जहां से कोणार्क के लिए बस मिलती है। कल्पना चौक यहां से 15 किमी दूर है। कल्पना चौक पर कोणार्क की बसों में भारी भीड थी। गुजरात के कुछ अभिभाषक भी वहां मिल गए। हमने मिलकर एक टाटा मैजिक किराए पर ली और दोपहर करीब डेढ बजे कोणार्क पंहुच गए। पूरे विश्व में प्रसिध्द इस विशाल प्राचीन मन्दिर को देखकर मन अभिभूत हो गया। यहां की शिल्प मूर्तियों के ढेरों फोटों खींचे और शाम करीब सात बजे होस्टल लौटे। आज दोपहर डेढ बजे अधिवेशन का समापन होगा। इसके बाद नन्दन वन और उदयगिरी की गुफाएं देखने की तैयारी है।
30 दिसम्बर 2012
ट्रेन में (सुबह 7.50)
वापसी की यात्रा शुरु हो चुकी है।हमारे टिकट थ्री एसी में थे,लेकिन वेटिंग क्लियर नहीं हुई। बीती शाम जब रिजर्वेशन का चार्ट बन गया,और टिकट कन्फर्म नहीं हुए,हम केआईआईटी के होस्टल में अगली सुबह की चिन्ताओं के साथ तैयारी कर रहे थे। पहली चिन्ता यह थी कि केआईआईटी से स्टेशन कैसे जाएंगे? इस समस्या का हल होस्टल के रिसेप्शन पर मौजूद कर्मचारियों ने कर दिया। उन्होने रात को ही दो आटो वालो को तय कर दिया था,जो सुबह हमे स्टेशन ले आए। स्टेशन पर भी यात्रा की चिन्ता में ही बैठे थे। 6.50 पर ट्रेन आई। ट्रेन में जनरल कोच पूरी तरह खाली थे और हम जनरल कोच में ही चढ गए। यहां बडे आराम से बैठे है।
28 दिसम्बर- अधिवेशन के समापन सत्र से पहले सुबह नौ से साढे नौ तक पूर्व और पूर्वोत्तर विधिक समस्याएं विषय पर सत्र था। इस सत्र में बेहद उपयोगी जानकारियां मिली। अधिवेशन में पूर्वोत्तर राज्यों के भी अधिवक्ता आए थे। उन्होने अपने क्षेत्र के बारे में विस्तार से जानकारियां दी।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश जी सोनी थे। उनसे मिलने की कोशिश की। भीडभाड में केवल नमस्कार हो पाया। समापन सत्र में सुरेश जी ने बेहद विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान दिया। इसी मंच पर कलिंग इंस्टीट्यूट आफ इण्डस्ट्रियल टैक्नालाजी के संस्थापक डॉ.अच्युत सामन्ता भी मौजूद थे।
डॉ.अच्युत सामन्ता बेहद विशीष्ट व्यक्ति है। अत्यन्त गीब परिवार से आए डॉ.सामन्ता ने कीट का पूरा साम्राज्य खडा किया है। कीट में बीटेक और एमटेक के कई कोर्सेज है। कीट के होस्टल में 25 हजार छात्रों के आवास भोजन की व्यवस्था है। यहां अनेक विदेशी छात्र पढने आते हैं। इससे बडी बात यह है कि डॉ. सामन्ता केआईआईटी (कीट) के साथ केआईआईएस (कीस)नामक संस्था चलाते हैं। इसके अन्तर्गत वे संपूर्ण उडीसा,छत्तीसगढ,बंगाल आदि राज्यों के अत्यन्त निर्धन वनवासी बच्चों को यहाां लाते है और उनके निशुल्क शिक्षण,आवास,भोजन ,वादि की व्यवस्था करते है। फिलहाल करीब 20 हजार वनवासी बच्चे यहां रहते हैं। जिन्हे एलकेजी से एमटेक तक की शिक्षा दी जाती है और यहीं उन्हे नौकरियां भी मिल जाती है। श्री सामन्ता ने अपने मार्मिक उद्बोधन में कहा कि विगत 20 सालों से वे लगातार इस अभियान में लगे है। मात्र एक कमरे में 5 हजार की राशि से शुरु किए गए उनके संस्थान की गूंज आज पूरे संसार में है। श्री सामन्ता आज भी दो कमरों के मकान में रहते है।
अधिवेशन के समापन के बाद कमलेश जी से भेंट की। सोनी जी से मिलने का प्रयास किया,लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई। भोजन के बाद दोपहर करीब तीन बजे धौलागिरी स्थित पीस पगौडा देखने गए। कीट स्क्वायर से पीस पगौडा के लिए सीधी सिटी बस मिल गई। पीस पगौडा बौध्द स्तूप है। इसके पीछे शिव मन्दिर है। धौलागिरी के अलावा यहां से और आगे खण्डगिरी की पहाडियां हैं,जहां बौध्द गुफाएं है,लेकिन हम वहां नहीं जा पाए। उडीसा में शाम का अंधेरा शाम साढे पांच बजे शुरु हो जाता है और छ: बजे तक पूरी तरह अंधियारा छा जाता है। शाम हो चुकी थी। हम वापस लौटे। बस काा इंतजार कर रहे थे,लेकिन आटोवाला ठीक कीमत पर छोडने को राजी हो गया। रात करीब नौ बजे होस्टल पंहुचे और सोये। इससे पहले अधिवेशन के समापन सत्र की खबर भी इ खबरटुडे पर अपलोड की।
29 दिसम्बर- 29 को योजना यह थी कि पूरा दिन पुरी में गुजारेंगे। हमारा रेलवे का टिकट पुरी से था। पहले योजना यह थी कि 29 की रात भी पुरी में गुजारी जाए लेकिन पुरी के एसडीएम से फोन पर चर्च हुई तो पता चलाा कि वहां भारी भीडभाड है और होटल इत्यादि भरे पडे हैं। इधर केआईआईटी होस्टल में रुकने में कोई समस्या नहीं थी। तब यही निर्णय किया कि दिनभर पुरी में घूमघाम कर रात्रि विश्राम भुवनेश्वर में ही किया जाए। चूंकि ट्रेन भुवनेश्वर होते ही जाना थी,इसलिए गाडी भुवनेश्वर से पकडने की योजना बनाई। हमारे रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं थे,इसलिए यह भी सोचा कि तत्काल कोटे में आरक्षण करवाया जाए। तत्काल का आनलाइन आरक्षण दस बजे शुरु होता है,इसलिए दस बजे तक कक्ष पर ही रुके। लेकिन आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर काफी दबाव था और काफी कोशिशों के बावजूद हम आरक्षण नहीं करवा पाए। करीब साढे दस बजे कीट कैम्पस से डीटीएश की सिटी बस पकड कर कल्पना चौक पंहुचे,जहां से पुरी की बस मिलती है। राज्य का संग्रहालय भी यहीं स्थित है। पिछले दो तीन दिनों से रोज इसमें जाने की चर्चा हो रही थी। आज आखरी दिन था इसलिए सबसे पहले म्यूजियम देखने का ही फैसला किया। सुबह करीब ग्यारह बजे म्यूजियम के बाहर केन्टीन में बैक समोसा और चाय का नाश्ता करने के बाद म्यूजियम में घुसे। एक खासियत
यह थी कि 29 दिसम्बर ही म्यूजियम का स्थापना दिवस था,इसलिए यहां समारोह आयोजित था। हमारे पास समय की कमी थी,इसलिए बेहद जल्दी जल्दी म्यूजियम देखा। म्यूजियम काफी विशाल है और इसे देखने में तीन-चार घण्टे लगते है,लेकिन हम मात्र डेढ घण्टे में यहां से निकल आए। 12.45 के करीब पुरी के लिए बस में सवार हुए। भुवनेश्वर से पुरी का रास्ता करीब डेढ घण्टे का है। हम ढाई बजे पुरी पंहुचे। सबसे पहले सीधे समुद्र पंहुचे। बीच की तेज लहरों में नहाने की मित्रों की बडी इच्छा थी। करीब एक घण्टे समुद्र स्नान करते रहे। मेरी स्नान की कोई इच्छा नहीं थी। मेरा लक्ष्य शंकराचार्य मठ देखना था। यहां से आटो में सवार होकर शंकराचार्य मठ पंहुचे। मठ अत्यन्त नजदीक है,लेकिन रास्तों की जानकारी नहीं होने के कारण आटोवाले को साठ रुपए देने पडे।
आदि शंकराचार्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व स्थापित मठ को देखकर मन प्रसन्न हो गय। शंकराचार्य परंपरा तभी से अखण्ड रुप से जारी है। पुरी के गोवर्धन मठ में आदिगुरु से अब तक 145 शंकराचार्य विराजित हो चुके है। वर्तणान में स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महराज यहां विराजित है। शंकरचार्य जी के दर्शनों की इच्छा थी,लेकिन वे उज्जैन गए हुए थे।
गोवर्धन मठ से निकल कर बाजाार में आए। यहां के सूती हाथकरघा व अच्छे और सस्ते है। हमने यहाां साडियां कुर्ते शाल आदि खरीदी। शाम के साढे पांच बज चुके थे। अंधेरा घिरने लगा था। जगन्नाथ भगवान के दर्शन किए,प्रसाद लिया और करीब साढे छ: बजे भुवनेश्वर के लिए बस पकडने गए। 6.45 पर बस चली,जिसने हमे साढे आठ बजे भुवनेश्वर के कल्पना चौक पर छोडा। यहंा से कीट कैम्पस पंहुचने में करीब एक घण्टा लगता है। हमे लगा कि भोजन कहां मिलेगा,इसलिए कल्पना चौक से ही एक होटल से तंदूरी रोटी और सब्जी पैक करवाा ली। रात दस बजे होस्टल पंहुचे। सुबह जाना है,इसलिए सामान आदि पैक करने और भोजन आदि करने में रात के बारह बज गए। सुबह पांच बजे उठे और ठीक साढे पांच पर हमे लेने के लिए आटो मौजूद थे।
ट्रेन के इस जनरल कोच का पूरा कम्पार्टमेन्ट हमारे कब्जे में है। उम्मीद यह है कि इस ट्रेन के जनरल कोच 3में अधिक लोग आएंगे नहीं। शाम तक हो सकता है रिजर्वेशन कोच ें जगह मिल जाए। तब तक सफर आसानी से चल रहााहै,चलेगा और हम नए के ठीक एक दिन पहले रतलाम पंहुच जाएंगे।
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