Thursday, March 10, 2016

Char Dham Tour यात्रा वृत्तान्त - 21 चार धाम की तीर्थयात्रा

उत्तराखण्ड के चार धाम यानी बद्रीनाथ,केदार नाथ,गंगौत्री और यमुनोत्री। इन्हे छोटे धाम भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख चार धामों में बद्रीनाथ धाम भी एक है। माना यह जाता है कि बद्रीनाथ का धाम पूरा करने के लिए इन चारों स्थानों पर जाना जरुरी है। वैसे चार धामों में उत्तर में बद्रीनाथ,दक्षिण में रामेश्वरम,पूर्व में उडीसा में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में गुजरात में सोमनाथ शामिल है। उत्तराखण्ड के चार धामों की पारिवारिक तीर्थ यात्रा सितम्बर 2015 में पूरी की। इस तीर्थयात्रा में हम पांच मित्र मै,दशरथ जी पाटीदार,आशुतोष नवाल जी,संतोष त्रिपाठी जी और नरेन्द्र शर्मा जी सपत्नीक शामिल थे।
हम दस वयस्कों के अलावा चार बच्चे भी शामिल थे। सबसे छोटा अक्षत नवाल,फिर चिन्तन कोठारी और अंजली पाटीदार और संतोष जी का बालक विनीत। इस तरह हम कुल चौदह लोग इस यात्रा में शामिल थे। यह यात्रा 1 सितम्बर 15 को शुरु हुई और पन्द्रह सितम्बर को रतलाम पंहुचकर समाप्त हुई।

2 सितम्बर 2015 मंगलवार (दोपहर 12.40)बलसाड-हरिद्वार ट्रेन(कोच न.एस-4/37)

वर्ष 2015 की गर्मियां बिना यात्रा के गुजर गई थी। कारण यह था कि इन गर्मियों में चिन्तन की मूंज थी। यह सोचा था कि गर्मियों में यात्रा नहीं हो पाई है,तो आगे कोई योजना बनाएंगे। जुलाई के दौरान संतोष जी ने चार धाम यात्रा का प्रस्ताव रखा। शर्त यह थी कि उनका जन्मदिन  10 सितम्बर यात्रा के बीच में मनाया जाए। यात्रा तय होने लगी। यह तय हुआ कि चार धाम यात्रा है तो पत्नियों के साथ की जाए। शुरुआती दौर में मेरे साथ,दशरथ जी,संतोष जी और आशुतोष राजी हुए। यात्रा की तिथी एक सितम्बर तय करके रेलवे का आरक्षण करवाया। शुरुआत में इस यात्रा में कुल 8 वयस्क और चार बच्चे शामिल थे। बाद में नरेन्द्र शर्मा जी भी राजी हो गए। उनका भी आरक्षण करवाय। रतलाम से हरिद्वार का आरक्षण नहीं हो पाया,फिर भी कुल 10 वयस्क और चार बच्चों में 12 सीटें उपलब्ध थी। रात आसानी से गुजर गई।
इस यात्रा में मेरे साथ सौ.वैदेही,चिंतन,दशरथ जी,उनकी धर्मपत्नी श्रीमती तुलसी,भतीजी अंजली,संतोष जी व श्रीमती भारती त्रिपाठी व उनका पुत्र विनीत,आशुतोष नवाल,श्रीमती रश्मि नवाल व उनका पुत्र अक्षत और नरेन्द्र शर्मा व श्रीमती सुनीता शर्मा,इस तरह कुल 10 वयस्क और 4 बच्चे कुल चौदह लोग शामिल है।
 बीती रात रतलाम के सभी लोगों ने सवा दस बजे इ खबर टुडे पर पंहुचना तय किया था। आशुतोष को मन्दसौर से आना था। श्रीमती नवाल को चांद देखकर उपवास खोलना था। वे रात 9.15 रतलाम पंहुचे। मेरे घर पर भाभी ने उपवास तोडा,भोजन किया। रात 10.55 पर ट्रेन की रवानगी थी। ट्रेन सही समय पर चली।  सारे लोग सुव्यवस्थित ट्रेन पर पंहुच गए थे। ट्रेन सही समय पर चली। हम शाम चार बजे तक हरिद्वार पंहुच जाएंगे। हरिद्वार में हमने एक धर्मशाला बुक कर ली है। यह वैष्णो धर्मशाला,हर की पौडी के बिलकुल नजदीक है। गाडी भी लगभग तय है। हरिद्वार पंहुचने पर गाडी वाले से चर्चा करेंगे।

3 सितम्बर 2015 बुधवार (सुबह 6.15)वैष्णो देवी धर्मशाला,हरिद्वार

हमारी ट्रेन 2 सितम्बर की शाम करीब साढे चार बजे हरिद्वार पंहुची थी। मित्रों की सलाह पर पहले ही फोन से वैष्णो देवी धर्मशाला में कक्ष आरक्षित करवा लिए थे। साइकिल रिक्शा को पचास-पचास रु.देकर यहां पंहुचे। यह धर्मशाला हर की पौडी के बेहद नजदीक है। यही इसकी खासियत है।
धर्मशाला में अपने कक्ष संभाल कर,फ्रैश होकर गंगा स्नान के लिए निकले। मैं और वैदेही पीछे रह गए थे। चिन्तन,अन्य सभी के साथ पहले निकल गया था। जब मै और वैदेही गंगा पर पंहुचे,तो हमे कोई नजर नहीं आया। काफी देर तक सब लोगों को खोजते रहे। इसी बीच तेज बारिश हो गई। हर की पौडी पर स्थित एक गंगा मन्दिर में हमने शरण ली। काफी देर तक मन्दिर में खडे रहे। मन्दिर में भारी भीड हो गई थी। यह एक छोटा सा मन्दिर था। इसी दौरान वैदेही ने एक पोलिथिन का जुगाड मन्दिर के पण्डित जी से कर लिया। इस पौलिथिन में वैदेही का बैग,मेरा पर्स व मोबाइल आदि सुरक्षित कर हम बरसते पानी में बाहर निकले। अब हमने तय कर लिया था कि यदि कोई नहीं मिला तो कपडों समेत गंगा में डुबकी मार लेंगे। वही किया। गंगा मैया में डुबकी मार कर बाहर निकले,तब तक गंगा आरती शुरु हो गई थी। भीगे कपडों के साथ गंगा आरती में शामिल हुए। हमारे कपडे,टावेल आदि चिंतन के पास थे। चिंतन मिल नहीं रहा था। गंगा आरती देखने के बाद चलने लगे तो आशुतोष का फोन आ गया। हमने बताया कि हम धर्मशाला पंहुच रहे हैं। धर्मशाला पंहुचकर कपडे बदले। तब तक पत चला कि चिंतन,गंगा स्नान के बाद उन लोगों से भी बिछड गया था। वह सीधे धर्मशाला पंहुच गया था और वे लोग उसे ढूंढ रहे थे। हांलाकि चिंतन धर्मशाला पर पंहुच गया था,इसलिए उनकी चिंता दूर हो गई थी।
मंगलवार को रतलाम के नामली में मुख्यमंत्री का कार्यक्रम था। धर्र्मशाला में सूखे कपडे पहने कि उसी वक्त भोपाल से सीएम की खबर के लिए फोन आ गया। मैने पत्रकारों से बात की और मोबाईल से मेल फारवर्ड कर खबर वहां भेज दी। रात करीब साढे आठ पर सभी लोग भोजन के लिए पंहुचे और साढे नौ पर वापस आए। रात को हम मित्र लोग फिर से हर की पौडी पंहुचे,जहां हमने सेल्फी फोटो खींचे और रात साढे दस के पहले धर्मशाला लौट आए।
ड्राइवर किशन से कल आते ही बात हो गई थी। वह सुबह साढे सात पर आएगा। इस वक्त हम फिर से गंगा स्नान पर जाने की तैयारी में है। गंगा स्नान से लौट कर आठ बजे तक चार धाम की यात्र पर रवाना होने का इरादा है।

3 सितम्बर 2015 बुधवार रात 9.50होटल डीपीन पैलेस स्यानी चट्टी 

सुबह निकलने में कुछ देरी हो गई थी। सब लोग तैयार थे। किशन तय समय पर आ गया था। उसने बताया कि गाडी तैयार है। फिर भी थोडी देर हुई। धर्मशाला से बस तक जाने के लिए करीब आधा किमी पैदल चले। फिर आटो किया और बस के ठिकाने पर पंहुचे। बस ड्राइवर  का नाम सुभाष था। किशन ने सुभाष को सब बातें समझाई। हरिद्वार से चले। पहले ऋ षिकेश में यात्रियों का रजिस्ट्रेशन करवाना था। अन्तर्राज्यीय बस अड्डे पर कम्प्यूटरीकृत रजिस्ट्रेशन होते है। रजिस्ट्रेशन करवाया। बस स्टैण्ड के सामने ही एक घटिया से होटल में मैदे के घटिया आलू पराठे खाए और सवा ग्यारह बजे यात्रा के लिए रवाना हुए। जौलीग्रान्ट,देहरादून,मसूरी होते हुए कैम्प्टी फाल को बस में से बैठे बैठे देखा। यह फाल मसूरी आने वाले पर्यटकों के लिए है। चार धाम के यात्रियों को बस में बैठे बैठे ही दिखाया जाता है। हरिद्वार से हमारा पहला लक्ष्य यमुनौैत्री था,जो कि हरिद्वार से 186 किमी दूर है। इस यात्रा में पूरा दिन लगना था। चूंकि ग्यारह बजे नाश्ता करके निकले थे,इसलिए भोजन में देर की और करीब पौने तीन बजे नैनबाग के एक होटल में भोजन के लिए रुके। यहां भोजन में ज्यादा चाईस नहीं होती। उडद चने की दाल और आलू की सब्जी अक्सर उपलब्ध होती है। रोटी मैदे की होती है। शाम साढे सात बजे यमुनौत्री के आखरी पडाव जानकी चट्टी/हनुमान चट्टी से करीब दस किमी पहले स्यानी चट्टी पर ड्राइवर सुभाष ने गाडी रोक दी।
इस साल यात्री बेहद कम है। हमारे साथ मात्र 5-6 गाडियां और पंहुची है। तमाम होटल खाली है। ड्राइवरों ने पहले ही स्यानी चट्टी में रुकना तय कर लिया था। इसलिए यहां रुक गए। भीड नहीं है,इसलिए मात्र तीन सौ रु.में रुम ले लिए। भोजन में लौकी की सब्जी मिल गई। दाल और सब्जी का भोजन कर रात सवा नौ बजे कक्ष में आ गए। सारे लोग अब सो चुके है।
सुबह पांच बजे निकलने का लक्ष्य है। चार बजे उठना होगा,तब पांच बजे निकल सकेंगे। कल पंाच किमी की खडी चढाई करना है,तब यमुनौत्री पंहुचेंगे।

4 सितम्बर 2015 शुक्रवार (दोपहर पौने चार बजे)जानकी चट्टी(बस में)

सुबह चार बजे उठे। पांच बजे निकलने की योजना थी,लेकिन निकलते निकलते पौने छ: हो गए थे। सारा सामान बस में चढाकर स्यानी चट्टी से निकले और करीब चौदह किमी चल कर जानकी चट्टी आ गए। सुबह पौने सात बजे जानकी चट्टी की वाहन पार्किंग से चलना शुरु किया।  वैसे तो जानकी चट्टी से यमुनौत्री 5 किमी है,लेकिन हमारी पार्किंग एक किमी दूर थी। इस तरह हमे छ: किमी चलना था। चलना शुरु करने के समय ही वैदेही घबरा गई और दो खच्चर किराये पर ले लिए। प्रति खच्चर पांच सौ रु.की दर से खच्चर मिले। वैदेही और सुनीता खच्चर से चली। बाकी लोग पैदल चले। पांच किमी का यह रास्ता बेहद खडी चढाई वाला और बेहद कठिन है। हमें उपर यमुनौत्री पंहुचने में करीब चार घण्टे लगे। हम करीब पौने ग्यारह और ग्यारह के बीच यमुनौत्री पंहुच गए थे। चिंतन और विनीत सबसे पहले पंहुचे थे।यहां पंहुचते ही गर्म पानी के कुण्ड में स्नान के लिए उतरे। ये पानी थकान दूर कर देता है। करीब आधे घण्टे कुण्ड में स्नान के बाद यमुनौत्री मन्दिर में जाकर पूजा अर्चना की। यहां रतलाम का पण्डा प्रमोद मिला,उसने सभी की पूजा कराई। अपनी पोथी में सभी आगन्तुकों के नाम पते दर्ज किए। यमुनौत्री मन्दिर के पास ही हनुमान मन्दिर में दर्शन किए। पूजा अर्चना के बाद फिर से लौटने की योजना बनाई। मन्दिर से नीचे उतर कर जूता स्टैण्ड से जूते लिए और बाहर निकल कर एक होटल में आलू पराठे और राजमा चावल खाकर भूख मिटाई। करीब एक बजे उतरना शुरु किया। उतरने के वक्त वैदेही,अक्षत और अंजली खच्चर से लौटे। चिंतन और विनीत इस बार भी सबसे आगे आए। उतरना आसान था,लेकिन उतरते वक्त पैरों को अधिक कष्ट होता है। करीब साढे तीन बजे हम बस पर पंहुच गए। इस वक्त तीन बजकर पचास मिनट हो रहे है। सभी लोग आ चुके है। सिर्फ शर्मा दम्पत्ति का आना बाकी है। उन्ही का इंतजार चल रहा है।
 यमुनौत्री का यह मेरा दूसरा फेरा था। पहली बार हम पांच मित्र कार से आए थे और यहां के फारेस्ट रेस्ट हाउस में रुके थे। उस वक्त यमुनौत्री के पट भी नहीं खुले थे और रास्ते में कई जगह बर्फ थी। ठण्ड भी कडाके की थी। इस बार ठण्ड भी बिलकुल कम है। सितम्बर के महीने  में यात्रियों की संख्या बेहद कम है। कई होटल धर्मशालाओं में ताले लगे हुए हैं। फिर भी रास्ते में कई यात्री समूह मिले। भोपाल से 40 यात्रियों का एक जत्था आया हुआ है। चार धाम यात्रा का पहला धाम आज पूरा हुआ।
अब यहां से निकल कर गंगौत्री के रास्ते में कहीं रुकेंगे। रात्रि विश्राम के बाद कल गंगौत्री के लिए रवाना होंगे।
वैदेही की तबियत खराब चल रही है। उसे गोलियां खा कर काम करना पड रहा है।

5 सितम्बर 2015 शनिवार सुबह 6.15अनाम होटल ब्रम्हखाल

कल शाम यमुनौत्री से लौटने में शर्मा दम्पत्ति को काफी देर हो गई। उनके लौटते ही सभी लोग वहां से चल पडे। बस करीब साढे चार पर जानकी चट्टी से चली। वहां से करीब ४४ किमी बडकोट तक उसी रास्ते पर जाना था। बडकोट से गंगौत्री के लिए उत्तरकाशी जाना पडता है। उत्तरकाशी की दूरी अधिक थी। ड्राइवर ने पहले कहा था कि उत्तरकाशी ही रुकेंगे,लेकिन देर अधिक हो रही थी। बडकोट से ग्यारह किमी राडी टाप नामक ऊं चाई पर चढते रहे। वहां से करीब 20 किमी दूर ब्रम्हखाल नामक स्थान से पांच किमी पहले इस अनाम होटल पर ड्राइवर ने गाडी रोकी और शाम करीब साढे सात पर हम यहां रुक गए। रात को जल्दी भोजन किया और सो गए। अब यहां से गंगौत्री दर्शन कर लौटने की तैयारी है। गंगौत्री यहां से करीब 160 किमी है।

5 सितम्बर 2015 शनिवार (रात 11.30)होटल नीलकण्ठ पैलेस ( उत्तरकाशी)

सुबह ब्रम्हखाल से चले तब ड्राइवर सुभाष को अपनी गाडी में कुछ काम करवाना था। सुबह करीब नौ बजे उत्तरकाशी पंहुचे। ड्राइवर सुभाष ने कहा कि यहां प्राचीन काशी विश्वनाथ मन्दिर है,जिसके दर्शन करना चाहिए। काशी विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन किए। उत्तरकाशी,वास्तविक काशी का प्रतिरुप है। काशी में दो नदियों का संगम है। यहां उत्तरकाशी में भी अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम है। परशुराम ने यहीं अपनी माता का सिर काटा था। उत्तरकाशी में जब ड्राइवर सुभाष गाडी ठीक करवा रहा था,जब हम लोग नाश्ता करने पंहुच गए। तंदूरी आलू पराठे खाकर हम 10.50 पर उत्तरकाशी से निकले। रास्ते में गंगौत्री से करीब 30 किमी  पहले हर्षिल नामक गांव पडता है। राज कपूर की राम तेरी गंगा मैली की शूङ्क्षटंग यहीं हुई थी। ड्राइवर हमे बता रहा था कि डाकघर कौन सा था और मंदाकिनी कहां नहाई थी। खतरनाक पहाडी रास्तों पर चलते हुए करीब ढाई बजे गंगौत्री पंहुचे। पहले हमें बताया गया था कि दोपहर दो से चार के बीच मन्दिर बंद रहता है,लेकिन आज जन्माष्टमी की वजह से मन्दिर खुला था। वहां पंहुचते ही पहले गंगा मन्दिर में दर्शन किए। दर्शन से निकले तो,बाहर प्रांगण में स्थानीय ग्रामीणजनों का सामूहिक नृत्य जिसे रासू नृत्य कहा जाता है,चल रहा था। वैदेही उसमें शामिल हुई,तो अन्य महिलाएं भी शामिल हो गई। पुरुष भी शामिल हो गए। चिंतन ने विडीयो भी बनाया। फिर पण्डे के साथ गंगा के तट पर पंहुचे। पूजा अर्चना की। पण्डे की बही में नाम पता दर्ज कराया। फिर रतलाम के पण्डे से भेंट हुई तो उसकी बही में भी नाम पता दर्ज कराया। दर्शन कर पूजा अर्चना कर निकले तो करीब पौने चार बज चुके थे। वैदेही को भूख लगी थी। अन्य लोगों को भी भूख लग आई थी। एक होटल में सारे लोग समोसे और पकौडे खा रहे थे। वैदेही ने दाल चावल खाने की इच्छा जताई। बगल के एक होटल में वैदेही,मैने और आशुतोष ने चावल खाए। बस पर पंहुचे। साढे चार पर बस वहां से रवाना हुई। ड्राइवर ने पहले ही बता दिया था कि रात्रि विश्राम नीलकण्ठ होटल में करेंगे। यहां पंहुचते-पंहुचते पौने नौ बज गए।  रास्ते में सेवफल के एक बााग में रुके। सभी ने यहां फोटों खिंचाए।  फिर एक जगह रुक कर सेवफल व नासपति खरीदी।
रात पौने नौ पर होटल पंहुचने के बाद सवा दस बजे भोजन किया और रात करीब पौने ग्यारह बजे कैम्प फायर किया। कैम्प फायर में सभी ने अपनी प्रस्तुतियां दी। होटल के अन्य रहवासी हमारी धमाल देखकर परेशान थे। रात 11.20 पर कैम्प फायर समाप्त किया और सोने की तैयारी में लग गए।
ये होटल बहुत अच्छा है। कमरे अच्छे है। कमरे के ठीक सामने मां गंगा प्रवाहित है। गंगा के प्रवाह का शोर हर वक्त सुनाई देता है। रात के पौने बारह बज चुके हैं। सुबह सात बजे केदारनाथ के लिए रवाना होने का लक्ष्य है। दो धाम पूरे कर चुके है। सभी लोग प्रसन्न और अभिभूत है। सुबह केदार नाथ के रास्ते पर रवाना होने से होगी।

6 सितम्बर 2015 रविवार (सुबह 5.45)होटल नीलकण्ठ पैलेस  उत्तरकाशी

  चार धाम यात्रा में से दो धाम हम पूरे कर चुके है। यमुनौत्री और गंगौत्री के दर्शन हम कर आए हैं। इन धामों के दर्शन करने के बाद अपने पूर्वजों के प्रति मन गर्व से भर जाता है। हजारों लाखों सालों से हिमालय की इन ऊंची चोटियों में अत्यन्त दुर्गम स्थानों पर इन तीर्थो की स्थापना के पीछे जरुर यही उद्देश्य रहा होगा कि प्रत्येक भारतवासी अपने देश की इस अप्रतिम प्राकृतिक सुषमा को देखे। अपने देश को पहचानने का इससे श्रेष्ठ तरीका हो ही नहीं सकता। इतना ही नहीं,पूर्वजों की जानकारी या रेकार्ड रखने की व्यवस्था भी इन दुर्गम स्थानों पर करवाई गई। इन तीर्थों पर पण्डे पुरोहित,पूरे देश की जानकारियां अपनी पुस्तकों में दर्ज करते है। यमुनौत्री और गंगौत्री में तो यह परंपरा शायद देर से शुरु हुई,लेकिन बद्रीनाथ और हरिद्वार में पण्डो के पास हजारों साल का रेकार्ड होना बताते हैं। यह अद्भूत व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। हमने भी गंगौत्री व यमनौत्री में अपना नाम दर्ज करवाया। इन दोनो स्थानों पर पण्डे जिलावार बंटे हुए है। वे अपने प्रभार के जिले से आए यात्रियों को पहचान लेते है और उनकी पूजा पाठ करवाते है। इन तीर्थों की बडी खासियत यह भी है कि पण्डे पुरोहितों की लूटपाट नहीं है। वे श्रध्दा जगाते है और आपकी दक्षिणा पर कोई टिप्पणी नहीं करते,बल्कि आशीर्वाद ही देते है। दोनो स्थानों के पण्डों का कहना था कि उनके पास तीस चालीस वर्षों का रेकार्ड है। इसके पूर्व का रेकार्ड दुर्घटनाओं में नष्ट हो गया। लेकिन वे कहते है कि बद्रीनाथ और हरिद्वार में हजारों सालों का रेकार्ड सुरक्षित है। देश के अनेक लोगों को अपनी वंशावली की जानकारी इन्ही पण्डों से मिलती है।
 आज हमें केदारेश्वर के लिए रवाना होना है। सुबह सात बजे निकलने का निश्चय है। मुझे लगता है कि हम कल यानी सोमवार को ही केदारनाथ धाम पंहुचेंगे। सबसे बडा संयोग यह है कि कल श्रावण का अंतिम सोमवार है और इस शुभ दिन केदारनाथ के सामने पंहुचने से बडा सौभाग्य और कोई नहीं हो सकता। मजेदार बात यह है कि सोमवार को केदारनाथ  पंहुचने के लिए हमने कोई विशेष प्रयास नहीं किए,बल्कि यह अपने आप ही व्यवस्थित होता गया और हम श्रावण के अंतिम सोमवार को अपने निर्माता के सामने पंहुचने वाले है।


7 सितम्बर 2015 सोमवार (सुबह 6.30)
उत्तरांचल टूरिस्ट लाज,रामपुर (उत्तराखण्ड)

केदारनाथ बाबा की वास्तविक यात्रा अब शुरु होगी। कल सुबह सवा सात बजे उत्तरकाशी से निकले। सोनप्रयाग तक का दो सौ किमी का रास्ता बेहद कठिन है। कई जगह से सड़क गायब हो चुकी है। लैण्ड स्लाइडिंग जारी है। इस रास्ते को पार करने में सारा दिन लग गया। उत्तरकाशी के नीलकण्ठ पैलेस होटल में सुबह सवेरे पोहे का नाश्ता करके निकले थे,इसलिए एक बजे तक तो निरन्तर चलते रहे। दोपहर एक बजे बाद भूख लगने लगी। भोजन की तलाश करीब दो घण्टे तक चलती रही। सड़क पर कई होटल वालों ने भोजन देने से इंकार कर दिया।
 सन 2013 की त्रासदी का असर,उत्तरांचल में हर कहीं नजर आता है। गंगौत्री,यमुनौत्री में यात्रियों की संख्या अत्यन्त कम थी। इस रास्ते पर भी कम यात्री जा रहे है। इसलिए होटल वाले भोजन तैयार नहीं रखते। आर्डर देने पर बनाने वाले एक-दो होटलों को छोडकर करीब तीन बजे एक होटल पर रुके। यह होटल वाला भोजन बनाने को तैयार था,लेकिन इसमें समय लगना था। सभी लोगों का भूख से बुरा हाल हो रहा था। बहरहाल एक घण्टे के इंतजार के बाद अच्छा भोजन मिला और सबने डट कर भोजन किया।
यहां से आगे बढे। अगस्तमुनि नामक कस्बे में रुक कर एटीएम से रुपए निकाले। अब तक की चर्चा के मुताबिक सभी ने जाने के लिए हैलीकाफ्टर से जाना तय किया था। इसके लिए गुप्त काशी में रुकना पडता। गुप्त काशी में पूछताछ से पता चला कि दो दिन से मौसम खराब था इसलिए हैलीकाफ्टर उड नहीं पाया। इसलिए अभी 108 वेटिंग चल रही है। केवल एक हैलीकाप्टर चलता है,जो एक बार में 5 लोगों को ले जाता है। ये स्थिति देखकर तय हुआ कि अब पैदल ही चला जाए। इसलिए गुप्तकाशी से चल कर सोनप्रयाग के नजदीक रामपुर में आ गए।
त्रासदी से पहले केदारनाथ का पैदल मार्ग 14 किमी का था। चारों धामों में सबसे लम्बा रास्ता यही था,हांलाकि यहां चढाई उतनी खडी नहीं थी,जितनी यमुनौत्री की है। लेकिन त्रासदी के बाद अब पैदल मार्ग करीब 22 किमी का हो गया है। पहले पैदल मार्ग गौरीकुण्ड से था। लेकिन अब सोनप्रयाग से ही पैदल जाना होता है। सोनप्रयाग से गौरीकुण्ड का रास्ता त्रासदी में पूरी तरह नष्ट हो गया। केदारनाथ जाने से पहले मेडीकल चैकअप कराना जरुरी है। यहां पंहुचकर सभी ने तय किया कि आने-जाने के लिए खच्चर का ही उपयोग किया जाए। अब सभी लोग खच्चर से ही यात्रा करेंगे,ताकि आज ही शाम तक दर्शन करके वापस लौट आएं। अब निकलने की तैयारी है।

8 सितम्बर 2015 मंगलवार (सुबह 8.15)उत्तराचंल टूरिस्ट लाज,रामपुर

कल का दिन पूरी यात्रा में सबसे भारी दिन रहा। कल श्रावण का अंतिम सोमवार था। हम सुबह छ: बजे लाज से स्नान आदि करके निकले और यहां से चार किमी दूर सोनप्रयाग तक बस से पंहुचे। सोनप्रयाग से केदारनाथ की यात्रा प्रारंभ होती है। सोनप्रयाग में मेडीकल चैकअप करवाना होता है। प्रशासन की व्यवस्था बेहद लचर थी। मेडीकल के लिए एक डाक्टर तैनात था,जब कि यात्री सैंकडों की तादाद में थे। डाक्टर केवल प्रमाणपत्र पर साइन करके सीलें लगा रहा था। लेकिन इसमें भी काफी समय लग रहा था और भीड काफी हो रही थी। धक्कामुक्की के बीच बडी मुश्किल से हमने मेडीकल करवाए और यात्रा के लिए निकले। बडी जद्दोजहद के बाद बीती रात यह तय कर लिया था कि सभी लोग यह यात्रा खच्चरों से करेंगे। प्रति खच्चर आने जाने का किराया बत्तीस सौ रुपए है। खच्चरों का मालिक हमारे होटल वाला ही था,इसलिए उसी के खच्चरों से चले।
केदारनाथ की यात्रा करीब साढे आठ पर शुरु हुई। त्रासदी के बाद की यात्रा पहले की तुलना में दुर्गम हो गई है। पहले यात्रा मार्ग गौरीकुण्ड से था और 14 किमी लम्बा था। 2013 की त्रासदी में सौनप्रयाग गौरीकुण्ड का मार्ग नष्ट हो गया और अब सोनप्रयाग से ही पैदल चलना पडता है। अब यह यात्रा 22 किमी की है। रास्ते में कई सीधी खडी चढाईयां है। मार्ग बेहद खतरनाक है। खच्चर पर खडी चढाई या उतराई अत्यन्त डरावनी होती है। मेरे जीवन में खच्चर पर यात्रा करने का यह पहला मौका था। रास्ता भी बेहद लम्बा था। कच्चे रास्ते में कई जगह  उपर से गिरते पहाडी झरनों के कारण पानी बह रहा था। देखने में यह दृश्य अत्यन्त मनोहारी लगता है लेकिन उतना ही खतरनाक भी होता है। करीब 10 किमी की यात्रा के बाद भीमपल्ली नामक जगह पर घोडा रोका गया। जहां 10-15 मिनट का आराम मिला। भीमपल्ली के बाद का रास्ता तो और भी कष्टदायक है। उपर केदारनाथ पंहुचते पंहुचते दोपहर के डेढ बज गए। केदारनाथ मन्दिर के पट तीन बजे बन्द हो जाते है। खच्चरों के रुकने के स्थान से केदारनाथ मन्दिर करीब डेढ किमी दूर है। केदारनाथ में कडाके की ठण्ड तो थी ही,हमारे पंहुचते ही वर्षा भी शुरु हो गई। बर्फीले पानी की बौछारे तीर सी लग रही थी। चिंता यह थी कि कहीं पट बन्द ना हो जाए। पानी की बौछारों के साथ केदार बाबा के मन्दिर में पंहुचे। वहां एक पण्डित ने पूजापाठ करवाया और स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन किए। मंंदिर के पीछे की वह शिला भी देखी जिससे 2013 के जलजले में भी मन्दिर सुरक्षित रहा।
 पूजा अर्चना के बाद,रतलाम के पण्डित की बही में अपना वंश दर्ज कराया। इस पण्डित ने रतलाम आकर ग्यारह सौ रु.दक्षिणा का वचन भी ले लिया। पण्डे को रतलाम के बारे में विस्तृत ज्ञान है। वह हर वर्ष दिसम्बर में रतलाम आता है। उसका दावा है कि उसके पास तीन सौ वर्षों का रेकार्ड दर्ज है।
अब लौटने का समय था। साढे तीन पर फिर से खच्चरों पर सवार हुए। वापसी जाने से कई गुना अधिक कष्टदायक थी। खच्चर पर बैठकर खडी उतरना बेहद कष्टदायक होता है। नीचे आते आते शाम के सात बज गए।
हमारे लिए यह दिन और भी कठिन था। श्रावण सोमवार का उपवास होने के कारण हमने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। मैने और वैदेही ने दिनभर में कुल दो सेवफल खाए और दो बार चाय पी थी।
नीचे आने पर पता चला कि तमाम महिलाएं गुस्से से भरी हुई है। महिलाएं रो रही थी। वैदेही नाराज थी और रो रही थी।
मेरे साथ रास्ते में बडी चोट हुई। जाने के समय भीमपल्ली में जहां विश्राम के लिए रुके थे,वहीं खच्चर वाले ने खच्चर को ल_ मारा। खच्चर तो घूम गया और ल_ का वार मेरे दाहिने घुटने पर लगा। मेरा घुटना दर्द करने लगा। लौटते समय भी इसी लगी हुई जगह पर दो बार चोट लगी।
शाम को सात बजे सोनप्रयाग उतरे। वहां से गाडी में सवार होकर रामपुर पंहुचते पंहुचते पौने आठ हो गए। यहां आकर सबलोग कमरों में जाकर निढाल हो गए। किसी में उठने की शक्ति नहीं बची थी। होटल वाले ने भोजन तैयार कर रखा था,लेकिन आधे ही लोगों ने भोजन किया। बाकी तो भूखे ही सो गए। सबकी पीठ,कमर,पु_े बुरी तरह दुख रहे थे।
आज सुबह आठ बजे उठे। मेरी पीठ बुरी तरह अकडी हुई है और दर्द हो रहा है। कमर के पिछले हिस्से में,खच्चर की काठी की रगड लग लग कर त्वचा झुलस सी गई है और गांठे पड गई है। हाथ की हथेलियां भी दर्द में है। आज का दिन कोई जल्दबाजी नहीं है। इस वक्त सब लोग मनोरंजन कर रहे है। दशरथ जी संतोष जी को योग करवा रहे हैं।

9 सितम्बर 2015 बुधवार सुबह 8.30होटल नीलकण्ठ,चोपता (तुंगनाथ)

कल रामपुर से सुबह आराम से उठे और करीब साढे दस पर तैयार होकर निकले। ड्राइवर सुभाष की सलाह पर त्रियुगी नारायण,चोपता आदि स्थानों पर अतिरिक्त शुल्क देकर जाने की हमने सहमति जताई।
इसी योजना के तहत रामपुर से निकले और फिर सोनप्रयाग से 14 किमी दूर त्रियुगी नारायण मन्दिर पंहुचे। कथा यह है कि शिव पार्वती का विवाह इसी स्थान पर हुआ था और तभी से यहां अखण्ड धूनी जल रही है। यह वही यज्ञवेदी है,जिसके चारो ओर शिव पार्वती ने फेरे लिए थे। उस समय गणेश जी का जन्म नहीं हुआ था,इसलिए नारायण को साक्षी मानकर विवाह किया गया था। त्रियुगी नारायण मन्दिर में रतलाम के पण्डे से पूजा अर्चना करवाई। उसकी बही में अपना आना भी दर्ज कराया।
त्रियुगी नारायण मन्दिर से उतरे और चल पडे चोपता की ओर। फिर से गुप्त काशी पंहुचे,जो सोनप्रयाग से 25 किमी दूर है। जाते वक्त भी गुप्तकाशी से ही होकर गए थे,लेकिन तब रुके नहीं थे। इस बार रुके। यहां काशी विश्वनाथ का मन्दिर है। कहते है पाण्डव जब स्वर्गारोहण के लिए जा रहे थे,पहले उन्हे शिव के दर्शन करना थे। शिव अन्तर्धान हो गए। वे गुप्त रुप से रहने लगे और यहां पाण्डवों ने उन्हे खोजा था। तब से यह गुप्त काशी कहलाती है।
गुप्त काशी से चोपता के लिए रवाना हुए। यह करीब 55 किमी दूर है। यह बेहद ऊंचा स्थान करीब बारह हजार फीट की उंचाई पर है। यहां से तुंगनाथ मन्दिर जाने का रास्ता है। केदारनाथ के पांच रुपों में से तुंगनाथ तीसरा रुप है। चोपता से तुंगनाथ मन्दिर साढे तीन किमी दूर उंचाई पर है। कल की थकान से पीडीत सभी लोगों ने तय किया था कि तुंगनाथ महादेव को नीचे से ही नमस्कार करेंगे,उपर नहीं जाएंगे।
नीचे चोपता में कोई कसबा नहीं है। मात्र चार-छ: होटलें है। रहने व खाने की व्यवस्था है। यहां पंहुचते पंहुचते शाम की आठ बज गई थी। कडाके की ठण्ड थी। यहां आकर नीलकण्ठ होटल पर भाव ताव करके चार सौ रु.के भाव पर पाांच कमरे लिए। यहां लाइट भी जनरेटर से चलती है और आती जाती रहती है। यहां कमरों में इमर्जेंसी लाइट भी दी जाती है। इसे इस क्षेत्र का मिनी स्विटजरलैण्ड भी कहा जाता है। कई पर्यटक यहां नाइट कैम्पिंग करने आते है। हरिद्वार के टूर आपरेटर चोपता में नाईट कैम्पिंग का इंतजाम करते है। हांलाकि यह बहुत खर्चीला है। ड्राइवर रास्ते में बता रहा था कि यहां सूर्योदय के समय के नजारे पल पल बदलते है। उसे देखने का अपना ही मजा है।
मैं सुबह 5.20 पर उठा और करीब छ: बजे कमरे से बाहर आ गया। अभी सूर्योदय होने ही वाला था। मैं चप्पले पहने हुआ था। तुंगनाथ महादेव के रास्ते में बाई ओर बर्फ से ढंकी चोटियां नजर आ रही थी। सूर्य की पहली किरणों के साथ सचमुच पल पल प्रकृति के रंग बदल रहे थे। इन अदुभुत नजरों को मोबइल कैमरे में कैद करने के लिए मै उपर चढता गया। मै फोटो खींचते खींचते करीब एक किमी उपर चला गया। मुझे लगा कि तुंगनाथ आसानी से जाया जा सकता है। लेकिन तभी ध्यान आया कि पैरों में चप्पलें है और पैर सुन्न पडने लगे है। उपर से दशरथ जी को फोन किया,उनका कहना था कि हमें नौ बजे निकलना है ताकि समय पर बद्रीनाथ पंहुच कर रात्रि विश्राम वहीं करें। पौने सात बज चुके थे। मेरे पैर ठण्डे हो रहे थे। अगले मात्र पन्द्रह मिनट में मै नीचे आ गया। अब यहां से नाश्ता कर निकलने की तैयारी है।
 उत्तराखण्ड के चार धामों में से तीन धाम सकुशल निर्विघ्र पूरे हो चुके है। प्रमुख धाम बद्रीविशाल है। देश के प्रमुख चार धामों में से एक धाम बद्रीविशाल है। आदि शंकराचार्य ने यहीं सर्वज्ञ पीठ का आरोहण किया था और अपना मठ स्थापित किया था। स्वर्ग का रास्ता भी यहीं से होकर है। हेमकुण्ड साहिब भी इसी रास्ते में है और फूलों की घाटी भी। अगला पडाव वहीं है।

चोपता (दोपहर 11.00 बजे)

योजना चोपता से सुबह नौ बजे निकल जाने की थी। सभी लोग तैयार भी हो चुके थे। लेकिन इसी बीच दशरथ जी,आशुतोष और नरेन्द्र की इच्छा तुंगनाथ मन्दिर तक जाने की हो गई। तुंगनाथ जाने के लिए इन तीनों के अलावा श्रीमती सुनीता शर्मा और तीन बच्चे चिंतन,विनीत और अंजली भी तैयार हो गए। मै तो आधे रास्ते जाकर लौटा था,इसलिए मैने साफ इंकार कर दिया। अब मै,वैदेही,संतोष जी,उनकी धर्मपत्नी,श्रीमती नवाल,अक्षत और श्रीमती पाटीदार यहीं नीचे उनके आने का इंतजार कर रहे हैं। सुबह यहां आलू पराठे का नाश्ता हम कर चुके है। सारा सामान गाडी में जमा चुके है। तुंगनाथ गई टीम के लौटते ही यहां से निकल पडेंगे। तुंगनाथ जाने वाले सात लोग जाते वक्त खच्चरों से गए है। आते वक्त पैदल आने की योजना बनाकर गए हैं।

10 सितम्बर 2015 गुरुवार (सुबह 9.15)नन्दादेवी होटल बद्रीनाथ धाम

तुंगनाथ दर्शन को गए सातों लोग दोपहर करीब बारह बजे नीचे उतर कर आए। आने के साथ ही होटल पर भजिए और फ्राय चावल का नाश्ता या भोजन किया और दोपहर सवा बजे चोपता से बद्रीनाथ के लिए रवाना हुए। चोपता से बद्रीनाथ करीब 150 किमी दूर है। पहले योजना थी कि बद्रीनाथ रात रुकेंगे। फिर जब कुछ लोग तुंगनाथ गए,तो लगा कि अब समय पर बद्र्रीनाथ नहीं पंहुच पाएंगे। लेकिन जब चोपता से चले और करीब 6 बजे जोशीमठ पंहुच गए,तो फिर यही तय हुआ कि रात बद्रीनाथ में ही गुजारी जाए।
जोशीमठ से बद्रीनाथ का 40 किमी का रास्ता बेहद खतरनाक हो चुका है। पिछले दिनों हुई तेज बारिश के कारण जमकर लैण्ड स्लाइङ्क्षडग  हुई और कुछ स्थानों पर सड़क बह गई। जोशीमठ से उपर चले और अंधेरा घिर आया। अंधेरे में कठिन चढाई,जर्जर सड़क। रास्ते भर तबाही के मंजर दिखाई देते रहे। फिर भी धीरे धीरे आगे बढते रहे और रात सवा आठ पर बद्रीनाथ पंहुच गए।
यहां इस होटल में कमरे लिए। भोजन किया और सुबह जल्दी मंदिर पंहुचने के लिए जल्दी ही सो गए।
आज सुबह संतोष जी और दशरथ जी तो 4 बजे ही मन्दिर के लिए निकल गए। जबकि मै और आशुतोष करीब सवा पांच बजे होटल से मन्दिर के लिए निकले। होटल के कमरे की पिछली खिडकी से बद्रीनाथ मन्दिर के दर्शन होते है। मन्दिर नजदीक ही है। हम स्नान के कपडे आदि लेकर चले थे। मन्दिर के बाहर गर्मपानी का कुण्ड है। कडाके की ठण्ड में इस कुण्ड में स्नान करके व पहने और मन्दिर में प्रवेश किया। मन्दिर में जल रही अखण्ड धूनी पर हवन किया। मन्दिर में सुबह साढे सात तक विशेष पूजा हो रही थी,इस वजह से भीतर प्रवेश बन्द था। साढे सात पर पट खोले गए और भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करते ही भगवान बद्रीनाथ की आरती हुई।  करीब एक सवा घण्टे मन्दिर के भीतर नंगे पैर घूमते रहने से पैर सुन्न पड रहे थे। मन्दिर में प्रवेश,पूजा पाठ के बाद करीब नौ बजे होटल लौट आए।
यहां से माणा बार्डर जाकर लौटने की तैयारी है। आज संतोष जी का जन्मदिन भी है। सभी ने  उन्हे जन्मदिन की बधाई दी।
आज हम चार धाम की यात्रा पूरी कर चुके है। अब हमें नीचे लौटना है। हरिद्वार और ऋ षिकेश में एक दिन घूम कर रतलाम की ओर जाएंगे।

11 सितम्बर 2015 शुक्रवार (सुबह 6.30)महालक्ष्मी पैलेस होटल लांगसू

कल सुबह बद्रीनाथ मन्दिर में दर्शन के बाद करीब नौ बजे लौटे। होटल के सामने स्थित रेस्टोरेन्ट में भोजन जैसा नाश्ता किया और करीब सवा दस बजे वहां से चल पडे। हमारा अगला लक्ष्य था माणा बार्डर। यह गांव बद्रीनाथ से करीब साढे तीन किमी दूर है और भारतीय सीमा का अंतिम गांव है। इसके बाद करीब साठ किमी तक कोई गांव नहीं है और फिर तिब्बत (चीन) की सीमा शुुरु हो जाती है।
माणा गांव में सरस्वती नदी का उद्गम है। भीम शिला है। कहते है कि जब पाण्डव स्वर्गारोहण के लिए चले तो सरस्वती के तेज बहाव को देखकर द्रोपदी ने कहा कि वह नदी पार नहीं कर पाएगी। तब भीम ने एक बडे शिलाखण्ड को उठाकर पुल की तरह रख दिया। हांलाकि द्रोपदी फिर भी आगे नहीं जा पाई और यही समाप्त हो गई। सरस्वती नदी यहां से बद्रीनाथ तक दिखाई देती है और फिर विलुप्त या अदृश्य हो जाती है। इसी गांव में व्यास गुफा है,जहां महामुनि वेदव्यास ने गणेश जी को बुलाकर महाभारत लिखवाया था। गणेश जी ने शर्त रखी थी कि उनकी कलम रुकना नहीं चाहिए। तब व्यास जी ने शर्त रखी कि गणेश जी कोई भी श्लोक तभी लिखेंगे जब उसे समझ लेंगे। इसी माणा गांव में भारत की आखरी चाय की दुकान है। यह दुकान व्यास गुफा के नजदीक है। यहां हमने चाय भी पी। फोटो भी लिए। गणेश गुफा देखी।
माणा गांव में व्यास गुफा के लिए काफी खडी चढाई पडती है। खडी चढाई,धूल और गरमी की वजह से वैदेही यहां नहीं आ पाई।
हम दोपहर करीब साढे बारह बजे माणा गांव से चले। ड्राइवर सुभाष को मैने पहले ही बता दिया था कि मुझे शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ में जाना है। शंकराचार्य मठ नीचे जोशीमठ में है,जहां छ: महीने भगवान बद्रीनाथ की पूजा होती है। जोशीमठ नजदीक आया तो फिर मैने ड्राइवर को याद दिलाया कि शंकराचार्य मठ जाना है। ड्राइवर ने कहा कि मठ बहुत उंचाई पर है हमारा काफी समय खराब होगा,आपको कोई मजा नहीं आएगा। उनसे हर कोशिश की कि हम ना जाए,लेकिन हम नहीं माने।
आदि गुरु शंकराचार्य ने करीब २६ सौ वर्ष पूर्व जोशीमठ में तपस्या की थी। उस समय जिस वृक्ष के नीचे उन्होने तपस्या की थी,वह आज भी मौजूद है। उसे कल्पवृक्ष कहा जाता है। वैसे यह शहतूत का पेड है। आमतौर पर शहतूत के पेड इतने लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकते,लेकिन शंकराचार्य की तपस्या का असर है कि कल्प वृक्ष आज भी खडा है। यहीं पर स्फटिक शिवलिंग के दर्शन भी किए।  जगदगुरु शंकराचार्य स्वरुपानन्द सरस्वती इस समय मठ में नहीं थे। हमने शंकराचार्य की मूल गादी के दर्शन किए। आदि शंकराचार्य ने ही नारद कुण्ड से बद्रीनारायण की प्रतिमा निकालकर बद्रीनाथ धाम की पुनस्र्थापना की थी। इससे पहले बौध्दों ने बद्रीनाथ मन्दिर को क्षतिग्रस्त करके प्रतिमा को नारद कुण्ड में डाल दिया था। इसलिए बद्रीनाथ में और हिन्दू धर्म में आदिगुरु शंकराचार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
दोपहर करीब चार बजे जोशीमठ से आगे बढे। चमौली में रुक कर ड्राइवर ने गाडी में कुछ काम करवाया। इससे पहले पीपलकोठी में रुक कर सभी लोगों ने नाश्ता आदि किया। चमौली से निकले तो छ: बज गए थे। अंधेरा होने को था। पहले ड्राइवर कर्णप्रयाग तक जाना चाहता था,लेकिन उससे काफी पहले यहां लांगसू में इस होटल को देखकर उसने गाडी रोकी। कमरे ठीक ठाक थे। यहां रुके।
संतोष जी का जन्मदिन था,इसलिए भोजन के बाद छोटा सा कार्यक्रम किया गया,जिसमें चिन्तन और अंजली ने गीत गाया। नरेन्द्र ने गाना गाया। मैने कविता सुनाई और रात करीब सवा ग्यारह बजे सब सोने के लिए रवाना हुए।
अब निकलने की तैयारी। हरिद्वार यहां से करीब दो सौ किमी है। हमे शाम तक पंहुचना है।

12 सितम्बर 2015 शनिवार (शाम 6.45)होटल सिटी हार्ट,जोधामल रोड,हरिद्वार

कल सुबह आठ बजे लंगासू ने निकल पडे थे। रुद्र प्रयाग में संस्कृत एवं वेद महाविद्यालय के प्राचार्य पं. राम प्रसाद जी से मिलने की इच्छा थी। प्रतिमा और आई पिछली बार जब आए थे,तब उनका परिचय हुआ था। यात्रा के दौरान भी दो-तीन बार उनसे मोबाइल पर चर्चा हो गई थी। हम करीब दस बजे रुद्रप्रयाग पंहुचे। यहां अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है और संगम पर ही भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर है। इसी परिसर में पं. उपाध्याय जी का महाविद्यालय भी है। ड्राइवर सुभाष पाल ने मंदिर के नीचे गाडी रोकी। वहीं एक दुकान पर नाश्ते का आर्डर दिया और मन्दिर में चले गए। मेरी पं. उपाध्याय जी से मुलाकात हुई। उन्होने बताया कि उनके महाविद्यालय की एक शाखा बद्रीनाथ में भी है। यहां कक्षा नौंवी से एमए तक संस्कृत और वेद का अध्यापन करवाया जाता है। वर्तमान में करीब दो सौ छात्र पढ रहे हैं। उत्तराखण्ड में संस्कृत के लिए काफी काम हो रहा है। उत्तराखण्ड में सौ के करीब संस्कृत विद्यालय है,जिनमें करीब साठ महाविद्यालय है। पं. उपाध्याय जी को उज्जैन सिंहस्थ में आने का निमंत्रण देकर,चाय पीकर नीचे आए। पराठे और सब्जी का नाश्ता किया।
हमारी अगली मंजिल ऋ षिकेश थी। कल ऋ षिकेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी कार्यक्रम  था। हमे डर था कि रास्ते बंद होंगे। हम करीब तीन बजे पंहुचे,लेकिन रास्ते खुले हुए थे। सौ रुपए में एक गाइड कर लिया,जो कि गलत निर्णय था। गाइड किसी काम नहीं आया। कुछेक मन्दिर देखे। लक्ष्मण झूले पर जाकर फोटो लिए। हरे रामा हरे कृष्णा वाले इस्कान की दुकान से नवग्रह,रुद्राक्ष और स्फटिक की महंगी मालाएं खरीदी। ये खरीददारी करीब चौबीस सौ रुपए की पडी। सभी ने लगभग ऐसी ही खरीददारी की। लक्ष्मण झूले पर घूमघाम कर करीब पौने छ: बजे फिर से बस में सवार हुए।  ड्राइवर से किसी अच्छे होटल में ठहराने को कहा था। शाम आठ बजे जब हरिद्वार पंहुचे,ड्राइवर सीधे यहीं गाडी लाया। होटल थोडा महंगा जरुर था,लेकिन सर्वसुविधायुक्त था। कमरे लिए। कमरों में पंहुचकर फ्रैश हुए और भोजन के लिए निकल पडे।
पहाडों की ठण्डक अब दूर हो चुकी थी। यहां हरिद्वार में जबर्दस्त गरमी और उमस है।
शनिवार की सुबह आठ बजे गंगा स्नान से शुरु हुई। होटल के सामने ही गंगा जी प्रवाहित हो रही है। कपडे लेकर घाट पर पंहुचे और गंगा में स्नान किया। सुबह करीब दस बजे सभी लोग मनसा देवी चण्डी देवी के लिए निकले। प्रति व्यक्ति 270 रु.का प्रीमियम टिकट लिया। इसमें मनसा माता और चण्डी देवी दोनो ही स्थानों पर रोप वे से पंहुचना व मनसा देवी से चण्डी देवी तक बस से आना जाना शामिल होता है। ये वीआईपी टिकट होता है,जिसमें शीघ्रता से रोप वे पर ले जाया जाता है।
आज सुबह से हरिद्वार में जानलेवा गरमी और उमस है। पसीने से तरबतर हम रोप वे से मनसा देवी पंहुचे। मनसा देवी का रास्ता तो हर की पौडी के नजदीक ही है,जबकि चण्डी देवी के लिए गंगा पार कर दूर जाना पडता है।मंसा देवी के दर्शन कर कंपनी की टेम्पो ट्रेवलर में चण्डी देवी के दर्शन के लिए पंहुचे। कहते है आदि गुरु  शंकराचार्य ने इस स्थान की खोज कर यहां मन्दिर स्थापित किया था। यहां चण्डी देवी की स्वयंभू प्रतिमा है। यहां चण्डी देवी ने शुंभ निशुंभ का वध किया था और यहीं आकर अंतध्र्यान हो गई थी। दोपहर करीब ढाई बजे चण्डी देवी के दर्शन कर लौटे। इसी पर्वत पर हनुमान जी की माता अंजनी देवी का भी मन्दिर है। माता अंजनी ने यहां तपस्या की थी।
दोपहर ढाई बजे नीचे आकर हर की पौडीवाली सडक पर ही एक होटल में भोजन किया। भोजन के बाद आशुतोष व नरेन्द्र सपत्नीक होटल लौट गए। शेष बचे हम लोग एक आटो कर भारत माता मन्दिर व अन्य मन्दिर देखने पंहुचे।
भारत माता मन्दिर स्वामी सत्यमित्रानन्द जी गिरी ने बनवाया है। इस सात मंजिले मन्दिर के तल मंजिल पर भारत माता की प्रतिमा और विशाल मानचित्र बनाया गया है। अन्य मंजिलों पर देवी देवताओं के अतिरिक्त भारत के देशभक्त सपूत क्रान्तिकारी,संत,सती नारियां आदि को एक एक मंजिल पर स्थान दिया गया है। यहां हजारों लोग इस मन्दिर को देखने आते है। मन्दिर में सभी की सुन्दर मूर्तियां है।
इसके अलावा वैष्णो देवी मंदिर व शीशमहल जैसे मन्दिर भी देखे। अब हम थक चुके थे। गंगा आरती का समय हो रहा था। आटो वाले को हर की पौडी चलने को कहा। लेकिन वह हर की पौडी से काफी दूर छोडकर चला गया। अब हर की पौडी और होटल दोनो ही समान दूरी पर थे। शनिश्चरी अमावस्या होने की वजह से आज घाटों पर भारी भीड दिखाई दे रही थी। मैने और वैदेही ने तो सीधे कमरे पर लौटने का फैसला किया,जबकि दशरथ जी और संतोष जी सपरिवार गंगा आरती देखने हर की पौडी पंहुच गए। यहां कमरे पर आकर मैने स्नान किया और अब डायरी के साथ। कल दोपहर बारह बजे ट्रेन है। तब होगा वापसी का सफर।

13 सितम्बर 2015 रविवार सुबह नौ बजे
होटल सिटी हार्ट हरिद्वार

कल शाम को कमरे में लौटने के बाद पहले स्नान किया। इसी दौरान ड्राइवर सुभाष पाल का फोन आ गया। उसे आठ बजे मिलने को बुलाया। वह आया,तो अपने बच्चों प्रांजल और आस्था को साथ लेकर आया। सबसे मुलाकात हुई । ड्राइवर सुभाष हमारे लिए मिठाई चन्द्रकला और रबडी भी लेकर आया था। शनिवार रात का भोजन हमने इसी होटल में करने का निश्चय किया था। होटल की छत पर किचन और भोजन की व्यवस्था है। भोजन स्वादिष्ट था। कल हमारे सफर की आखरी रात थी। वैसे आखरी रात आज ट्रेन में गुजरेगी।
 पूरी चार धाम यात्रा बडी आनन्ददायी रही। चौदह लोगों के बडे समूह के बावजूद कहीं कोई दिक्कत या समस्या नहीं आई। शुरुआती दौर में कुछ महिलाओं व बच्चों को बस में उल्टी होने की समस्या आई थी। इस दिक्कत का पहले से अंदाजा था,इसलिए गोलियां पहले ही ले रखी थी। यह समस्या धीरे धीरे कम भी हुई। इसके अलावा किसी को कोई बडी दिक्कत नहीं आई। सभी का स्वास्थ्य भी अच्छा रहा।अब हरिद्वार से रतलाम चलने की तैयारी है।
आज भी सुबह गंगा स्नान के साथ हुई। सुबह का भोजन भी इसी होटल में करने का निर्देश दे दिया है। ट्रेन का समय दोपहर पौने एक बजे का है। देहराहून एक्सप्रेस में २६ घण्टों की यात्रा करना है। कल का दिन रतलाम में होगा। अगली यात्रा की योजना तैयार होने लगी है।यह जनवरी में होगी । इस बार मित्रों के साथ नागालैण्ड मणिपुर की यात्रा का इरादा है। अगली यात्रा तक के लिए बिदा.........।

वेद महाविद्यालय की जानकारियां
भारतीय चतुर्धाम वेद भवन न्यास द्वारा संचालित श्री 108 स्वामी सच्चिदानन्द वेद भवन संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग।
शाखा बद्रीनाथ धाम महाविद्यालय में वेद,
व्याकरण,ज्योतिष,साहित्य,पुराण के साथ आधुनिक विषय जैसे हिन्दी राजनीति,अर्थशा,समाज शा,इतिहास आदि का अध्यापन किया जाता है। रुद्रप्रयाग में करीब एक सौ अस्सी छात्र है।
शासन द्वारा दो अध्यापन नियुक्त है,जबकि छ: अध्यापक न्यास द्वारा नियुक्त है।
 उत्तरांचल में करीब सौ विद्यालय,जिनमें से 46 महाविद्यालय स्तर के। विश्वविद्यालय एक,जो कि हरिद्वार में है।
नेपाल के कई बडे अधिकारी,रुद्रप्रयाग के इसी महाविद्यालय से निकले है। देश के कई राज्यों उत्तर प्रदेश,गुजरात समेत वेस्ट इण्डीज,नेपाल  आदि देशों के छात्र भी यहां आते है।
प्राचार्य- डॉ.रामप्रसाद उपाध्याय
मो.9456367923
ड्राइवर सुभाष पाल
21,देवपुरा आश्रम,हरिद्वार।
मो. 0410330049

















































































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