Friday, December 23, 2016

Kailash Mansarovar Yatra -1 कैलाश मानसरोवर यात्रा-1

यात्रा वृत्तान्त - 23

कैलाश मानसरोवर यात्रा

सनातन से सीधे संवाद का स्थान


बचपन से लगे यात्राओं के शौक और पिछले करीब डेढ दशक में देश के लगभग सभी कोनो में भ्रमण के दौरान हर बार यह इच्छा सताती थी कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा करना है। लेकिन जब भी इस यात्रा का मन होता,यात्रा का खर्चीला होना इस इच्छाओं को वहीं रोक देता था। पिछले कुछ समय से पैरों में हलकी दिक्कतें भी शुरु हो गई। तब और लगने लगा कि अब कैलाश मानसरोवर जाने के लिए अधिक समय नहीं बचा है। लेकिन जैसा कि मेरे साथ होता आया है,मैने जो भी इच्छा की,प्रभु ने उसे पूरा किया।
इस बार सबकुछ होता चला गया। व्यय की व्यवस्था भी हुई और जाने का कार्यक्रम भी बना। जब योग बनते है,तो सारी समस्याएं स्वत: समाप्त होने लगती है। जिस दिन यात्रा का आनलाईन आवेदन कर रहा था,उस दिन मन के किसी कोने में यह डर था कि कहीं यात्रा शुरु होने के पहले कोई ऐसा व्यवधान ना आ जाए,जिसकी वजह से यात्रा रद्द करना पडे। सौ.आई और दादा पिछले कुछ महीनों में गंभीर रुप से बीमार हुए थे और दोनो ही को अलग अलग समय पर अस्पताल में भर्ती करना पडा था। हांलाकि आवेदन के समय दोनो ही ठीक थे,लेकिन वृध्द लोगों का स्वास्थ्य कब क्या दृश्य दिखा दे कोई नहीं जानता। यही स्थिति मेरे साथी आशुतोष के साथ भी थी। लेकिन कैलाशपति चाहते थे कि हम उनके घर तक पंहुचे। इसलिए यात्रा के शुरु होने से समाप्त होने तक ऐसी कोई समस्या सामने नहीं आई। यात्रा के लिए हमने दो उपलब्ध रास्तों में से उत्तराखण्ड वाला कठिन रास्ता चुना था। नया रास्ता सिक्किम के नाथू ला पास से होकर जाता है और इसमें पूरी यात्रा वाहनों से की जाती है। जबकि उत्तराखण्ड के रास्ते में करीब दो सौ किमी पैदल यात्रा करना होती है। इनमें से काफी सारी दूरी कम आक्सिजन वाले हाई एल्टीट्यूड में तय करना पडती है और यह आपकी क्षमताओं की पूरी परीक्षा लेती है। बहरहाल,हमारी यह यात्रा 14 अगस्त 2016 की रात को रतलाम से शुरु हुई थी। हम कैलाश मानसरोवर यात्रा के अंतिम अठारहवे जत्थे में शामिल थे। इस जत्थे में कुल 38 लोग शामिल थे,जिनमें आठ महिलाएं भी शामिल थी। यह जत्था एक तरह से लघु भारत था,क्योकि इसमें दक्षिण से लेकर उत्तर और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के राज्यों से लोग आए थे। यात्रा से लौटने के बाद मन्दसौर में जाकर आशुतोष के साथ भगवान पशुपतिनाथ का मानसरोवर के जल से अभिषेक किया। यहां मन्दसौर के लोगों द्वारा भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया था। रतलाम में महाराष्ट्र समाज ने यात्रा के लिए मेरा अभिनन्दन किया। इसके बाद मेरे मित्रों ने कुछ संस्थाओं को साथ लेकर सम्मान समारोह आयोजित किया,जिसमें स्नेह भोज भी रखा गया। वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के मित्रों ने भी मेरा सम्मान किया। यात्रा से लौटने के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा का एक छोटा वृत्तान्त समाचार पत्रों के लिए लिखा था। जो कि भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक एलएन स्टार में प्रकाश भैय्या भटनागर जी ने प्रकाशित किया। यह वृत्तान्त अत्यन्त सुन्दर रंगीन चित्रों के साथ प्रकाशित हुआ। इन्दौर से प्रकाशित दैनिक स्वदेश में भी इस वृत्तान्त को रंगीन पृष्ठों पर प्रकाशित किया गया। मेरे ब्लाग पर यह उपलब्ध है ही। लेकिन यात्रा के दौरान प्रतिदिन के घटनाक्रम का चित्रण करती मेरी यात्रा डायरी को कम्प्यूटर में लाकर आनलाईन करने की शुरुआत आज 8 अक्टूबर 2016 शनिवार को हो पाई है। डायरी का वर्णन अत्यन्त विस्तृत है,इसलिए यह कितने दिनों में पूरी हो पाएगी,यह अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता।

15 अगस्त 2016 सोमवार

गुजराती समाज सदन नई दिल्ली सुबह 10.30


इस विशीष्ट यात्रा में मै और आशुतोष नवाल आए हैं। सत्तरवी स्वतंत्रता वर्षगांठ का दिन। आज का सूरज हमारे लिए नई दिल्ली में उगा।राजधानी एक्सप्रेस ठीक 8.30 पर नई दिल्ली स्टेशन पंहुची।स्वतंत्रता दिवस समारोह की वजह से आज मैट्रो,कई सड़कें,आटो इत्यादि बंद है। साढे तीन सौ रुपए में आटो करके हम यहां पंहुचे। यहां आने के बाद यह देखकर बडी निराशा हुई कि मानसरोवर यात्रियों को डोरमैट्री में ठहराया जाता है। हांलाकि यह डोरमैट्री एसी है,लेकिन जगह इतनी कम है कि व्यायाम नहीं किया जा सकता।
यहां आए। अब यहां अन्य यात्रियों से परिचय हो रहा है। नासिक से रिटायर्ड बिजली इंजीनियर रतन भावसार जी,बैंगलौर से युवा व्यवसायी तनु मित्तल,राजस्थान डीडवाना के शिक्षक दम्पत्ति महावीर राखेचा जी और मनीषा राखेचा जी आदि से अब तक परिचय हो गया है। एक पार्थसारथी जी है जो आठवीं बार मानसरोवर जा रहे हैं। राखेचा दम्पत्ति पिछले वर्ष भी 18 वीं बेच में ही थे। इस बार फिर जा रहे हैं। और भी ऐसे लोग है जो पहले जा चुके है। आज का दिन परिचय में ही गुजरना है। मेडीकल टेस्ट कल होगा। तब तक कोई काम नहीं है।

दोपहर 12.45

गुजराती समाज सदन में,दिल्ली सरकार द्वारा यात्रियों के ठहरने और खाने की व्यवस्था की जाती है। आज शाम को भोजन व्यवस्था मिलेगी। दोपहर का भोजन हमने,यहीं के केन्टीन में किया,जहां 60 रु.में पंजाबी थाली( 4 रोटी,दाल,चावल,सब्जी,दही) आदि दिए जाते है। दिल्ली में आज तेज गरमी है। भोजन के बाद कुछ दूर टहलने के लिए निकले,लेकिन गर्मी के कारण जल्दी ही लौट आए। अब यहां कमरे में डायरी के साथ हूं। इस वक्त,इस यात्रा के लिए की गई कोशिशों की याद आ रही है। मानसरोवर यात्रा के आवेदन की अंतिम तिथी 20 अप्रैल थी। मैने आशुतोष से पूछा। मैने आशुतोष को कहा था कि अगर वो नहीं भी आता है,तो मेरा जाना तय है। यात्रा का निर्णय लेने से पहले मुझे लगने लगा था कि मेरे पैर कमजोर हो रहे है। मुझे लगा कि जो कुछ करना है,वह कर लेना चाहिए। अगर मैं अभी नहीं गया तो शायद मेरे पैर आगे इजाजत नहीं देंगे। आशुतोष के हां कहने के बाद हम दोनो के आनलाइन आवेदन प्रस्तुत कर दिए। आनलाईन आवेदन के स्वीकृत होने की जानकारी मुझे मई में मिली और हमें तीसरे जत्थे के लिए चयनित किया गया था। वह यात्रा 16 जून को शुरु होने वाली थी। लेकिन अभी हमें यात्रा के लिए तैयार होना था। मैने बैच परिवर्तन का अनुरोध किया और हमें आखरी बैच 18 वीं बैच मिल गई। यह यात्रा पन्द्रह अगस्त को शुरु होना थी।
बैच बदलने से इस दुर्गम कठिन यात्रा की तैयारी के लिए मेरे पास 1 जून से कुल 75 दिनों का समय था। यात्रा सम्बन्धी मार्गदर्शिका  और आनलाईन जानकारियां पढने से यह ध्यान में आ चुका था कि मेरा वजन अधिक है। आशुतोष का तो इससे भी अधिक था। विदेश मंत्रालय की मार्गदर्शिका उसे भी मिल चुकी थी। उसने भी अपने स्तर पर तैयारियां शुरु कर दी थी। मैने 75 दिनों का कार्यक्रम बनाया। मैं 8-10 किलो वजन कम करना चाहता था। 75 दिनों की इस तैयारी में कई व्यवधान भी आए। वजन घटाने के कार्यक्रम के तहत सबसे पहले मैने शक्कर का उपयोग पूरी तरह बन्द कर दिया। चाय व दूध बिना शक्कर के। मिठाई बिलकुल बन्द। सुबह के तेरह सूर्यनमस्कार के साथ साथ शाम को पौदल घूमना भी शुरु कर दिया।शाम का भ्रमण 40 मिनट से अधिक समय तक ले जाना था। भोजन भी नियंत्रित किया। सुबह 4 और शाम को दो रोटी। चावल बंद। ये सारे प्रयास शुरु किए। लेकिन जैसा कि होता आया है,व्यवधान भी आते ही रहे। पहला महीना ठीक रहा। शाम का भ्रमण कम था,जिसे धीरे धीरे बढाकर मैं 35 मिनट तक ला चुका था। एक महीना गुजरा और पहला व्यवधान आया। 30-31 जून को मैं भोपाल गया। कार ड्राइविंग या बिस्तर की गडबडी की वजह से मेरी कमर अकड गई। कमर अकडने से सुबह का व्यायाम बन्द हो गया। पैदल घूमना मैने जारी रखा। कमर को ठीक करने के प्रयास भी जारी रखे। कमर थोडी ठीक हुई,लेकिन पूरी व्यवस्थित होते होते पूरा महीना गुजर गया। इस बीच वैदेही को 18 जुलाई को एमएसडब्ल्यू की परीक्षा देने सेंधवा जाना पडा। बारिश को देखते हुए मैने आखरी के 20-25 दिन,जिम में ट्रेडमिल पर पदयात्रा करने की योजना बनाई और जिम जाना शुरु कर दिया। आखरी तक पंहुचते पंहुचते कुछ छोटे मोटे व्यवधान और भी आए। लेकिन इस सारी मशक्कत का नतीजा 5 किलो वजन कम होने के रुप में सामने आया। मेरा वजन 84 किलो था। अब 79 किलो हो चुका था। एकाध महींने के अंतराल से मिलने  वाले हर व्यक्ति को मुझमें फर्क नजर आता है। उम्मीद है कि यात्रा से लौटने तक शरीर और भी फिट हो जाएगा। करीब 5 किलो वजन और कम हो जाएगा।
बहरहाल,ढाई महीने की तैयारी के बाद आज हम दिल्ली आ चुके है। मानसरोवर की यात्रा बताएगी कि ढाई महीेने की इस मेहनत का क्या लाभ मिलता है?

रात 10.00

यहां आकर एक नई जानकारी मिली। चूंकि यहां हमें डोरमैट्री में ठहराया गया था,हमने सोचा अलग से रुम ले लें। रिसेप्शन पर जाकर पूछा।  उसने रुम का किराया 300,500 और 700 बताया। मैं निश्चिन्त था कि एक कमरा ले लेंगे तो सुबह कोई दिक्कत नहीं आएगी।  यहां डोरमैट्री में 20 से ज्यादा यात्रियों के लिए मात्र 2 शौचस्थान है। जिनमें से एक का फ्लश खराब है। पानी की उपलब्धता भी कम है। कभी भी नलों से पानी गायब हो जाता है। अभी इस वक्त भी नलों में पानी नहीं है।
रिसेप्शन पर शाम को गए। वहां दो महिलाएं मौजूद थी। कमरे की मांग करने पर उन्होने पूछा कि क्या आप गुजराती हो,मैने कहा नहीं,हम एमपी से है। उन्होने कहा कि यहां सिर्फ गुजरातियों को ही कमरा दिया जाता है,फिर वह चाहे जो हो,भले ही मुसलमान हो। मैने कहा हम किराया दे रहे है,रुम उपलब्ध है,फिर क्या दिक्कत है? उन महिलाओं का कहना था कि आप गुजरात से नहीं होतो आप को कमरा नहीं दिया जाएगा। मैने कहा गुजराती समाज के किसी पदाधिकारी का नम्बर दे दीजिए। उन्होने इंकार कर दिया। हम लोग दिल्ली तीर्थ यात्रा विकास मण्डल के मेहमान थे। इसके चेयरमेन कमल बंसल है। वे भी अपने कक्ष में मौजूद थे। जब उनसे बात की,तो उनका रवैया बडा ही असहयोगात्मक था। उनका कहना था कि बरसों से यात्री इसी व्यवस्था में जा रहे है,आपको क्या दिक्कत है। मैने पूछा कि क्या प्रदेश के आधार पर भेदभाव उचित है,उनका कहना था कि यहां  तो ऐसा ही होता है।
थक हार कर मैने विदेश मंत्री विदिशा की सांसद सुषमा स्वराज तक यह खबर पंहुचाने के लिए पहले मेरे फेसबुक पर सन्देश लिखा,फिर आशुतोष का ट्विटर एकाउन्ट बनाकर ट्विट भी किया। फेसबुक पर मैसेज करने की वजह से रतलाम और आसपास के क्षेत्रों में यह चर्चा चली और खबरें भी बनाई गई। इधर,हमारे साथ एक गुजराती बन्दा भी है। हमने उससे कहा कि वह कमरा बुक कर ले। उसका कहना था कि जब वह कमरा बुक करने गया,उससे कहा गया कि आप मानसरोवर यात्री हो आप को कमरा नहीं दिया जाएगा। आखिरकार हम इसी डोरमैट्री में सो रहे हैं। सुबह आठ बजे मेडीकल चैकअप के लिए जाना है। सुबह साढे पांच पर उठना होगा,ताकि सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए। केवल 1 शौचस्थान से 20 लोगों को काम निपटाना है। देखते हैं कैसे होता है? यह भी देखना है कि सुषमा जी को किया गया ट्विट और एफबी सन्देश क्या असर दिखाता है?

16 अगस्त 2016 मंगलवार

गुजराती समाज सदन/सुबह 5.30


आज की सुबह दिल्ली हार्ट एण्ड लंग्स इंस्टीट्यूट की थकाऊ और बोरियत भरी मेडीकल जांचों के साथ शुरु हुई। हमे बताया गया था कि सुबह साढे सात बजे बस लग जाएगी और खाली पेट ही जाना होगा। सुबह साढे सात पर निकलने के लिए सुबह पांच बजे उठे और स्नानादि से निवृत्त होकर साढे सात पर बस में सवार हो गए। बस कुछ ही देर में डीएचएलआई जा पंहुची. यह बहुत बडा सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल है।जाते ही कागजी कार्यवाही और धनराशि की वसूली की गई। केएमवीएन वालों ने वीजा शुल्क के चौबीस सौ रु. और पासपोर्ट लिया,तो अस्पताल वालों ने इकतीस सौ रुपए लिए।  सभी यात्रियों को दो दलों में बांटा गया। एक ग्रुप को रेड रिबन लगा दी गई,जबकि दूसरे ग्रुप को ग्रीन रिबन। ग्रीन रिबन वालों का ब्लड व यूरिन सैम्पल लेते ही उन्हे नाश्ता करवा दिया गया,जबकि रेड रिबन वालों को सारी जांचों के बाद नाश्ता करने को कहा गया। मैं और आशुतोष रेड रिबन ग्रुप में थे। ब्लड व यूरिन सैम्पल लेने के बाद चेस्ट शेविंग की गई और इसीजी किया गया। यहीं वजन ऊं चाई और बीपी भी नापा गया। हैरानी की बात थी कि यहां की मशीन में मेरा वजन 83 किलो निकला,जबकि घर की मशीन पर 79 किलो था। आशुतोष का बीपी कुछ बढा हुआ आया। इसीजी के बाद फेफडों की जांच के लिए ले जाया गया। कम्प्यूटर से जुडी एक नली में जोर से फूंक मारने होती है और जोर से सांस खींचना होती है। मुझे तो पहली ही बार में ओके कर दिया गया,जबकि आशुतोष को दूसरी बार में ओके किया गया। यहां से एक्सरे के लिए ले गए। सबसे आखरी में टीएमटी की बारी थी। यहीं सबसे थकाउ और बोरिंग भरा इंतजार था। करीब दो घण्टे इंतजार के बाद सबसे अंत में मेरा नम्बर आया। सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। भूख से बुरा हाल हो रहा था। सर में भारीपन आने लगा था,तब कहीं जाकर मेरा नम्बर आया।करीब पन्द्रह मिनट के टीएमटी टेस्ट के बाद बाहर निकला और पौने एक बजे नाश्ता नसीब हुआ। नाश्ते में दो इडली और चाय थी। एक पनीर पकौडा खरीद कर खाया। तब मामला ठीक हुआ। इसके तुरंत बाद एक डाक्टर ने हाई एल्टीट्यूड सिकनेस पर जानकारियां दी और इसके बाद लंच की व्यवस्था थी। यह सब निपटते निपटते तीन बज गए। करीब साढे तीन पर गुजराती समाज सदन लौटे।
यहां कल से बीएसएनएल का थ्री जी नेट कनेक्शन गडबड है। आशुतोष के सुझाव पर एयरटेल की सिम में डाटापैक डलवाया,तब कहीं जाकर ट्विटर और व्हाट्स एप से जुड पाया। यहां अपने बिस्तर पर आने के बाद से ट्विटर और व्हाट्सएप की मशक्कत में ही उलझा रहा। अब शाम होने लगी है। थोडा बाहर घूमने जाने का इरादा है। कल सुबह फिर आईटीबीपी वाले मेडीकल टेस्ट लेंगे। इसके लिए फिर से साढे सात पर जाना है। लेकिन अल्पाहार करने जाना है,इसलिए समस्या कम होगी।
कल गुजराती सदन की समस्या को लेकर सुषमा जी को ट्विट और एफबी पर मैसेज किए थे,लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। अभी देखते है कि इसमें क्या किया जा सकता है।

17 अगस्त 2016 बुधवार

गुजराती समाज/ शाम 4.50


आज का पूरा दिन आईटीबीपी के आधार हास्पिटल में गुजरा। सुबह की शुरुआत आज भी साढे पांच पर जगरण के साथ हुई। भीडभाड के बावजूद मुझे नित्यकर्म के लिए इंतजार नहीं करना पडा। गुजराती समाज के केन्टीन में सुबह सात बजे पोहे जलेबी और गोटे का नाश्ता करके हम ठीक सवा सात बजे बस के इंतजार में खडे हो गए। ठीक साढे सात पर बस रवाना हुई,जो करीब दो घण्टे की यात्रा के बाद आईटीबीपी अस्पताल पंहुची। अस्पताल के कान्फ्रेन्स रुम में चूंकि मेडीकल में अभी समय था,हमारे एलओ संजय गुंजियाल ने सभी से परिचय लिया। इसी दौरान आईटीबीपी अस्पताल की ओर से एक फार्म भरने को दिया गया। कल डीएचएलआई में जो जांचे हुई थी,वे सभी यहां भेज दी गई थी। यहां के विशेषज्ञ डाक्टरों को इस पर अंतिम निर्णय लेना था।
आईटीबीपी वालों की प्रक्रिया अभी जारी थी। इसी बीच एक कैलाश मानसरोवर यात्री गुलशन कुमार ने मानसरोवर यात्रा पर लिखी एक छोटी पुस्तिका और यात्रा के दौरान काम आने वाली छोटी छोटी लेकिन जरुरी चीजों का एक पाउच सभी यात्रियों को भेंट किया। गुलशन कुमार ने 2011 में कैलाश यात्रा की थी। उनके पाउच में सरसों तेल,चाकलेट्स,फस्र्ट एड की सामग्री,इत्यादि वस्तुएं थी। इसके बाद कैलाश मानसरोवर सेवा समिति के सदस्यों पदाधिकारियों ने मानसरोवर यात्रा के सम्बन्ध में जानकारियां दी। समिति की ओर से सदस्यों को कमर में बांधने वाला पाउच और शिवस्तुति  जैसी कुछ पुस्तकें भेंट की। इसी दौरान यात्रा के लिए आवश्यक समितियां बनाई गई। इसमें लगेज समिति,भोजन समिति,ट्रांसपोर्ट समिति,वित्त समिति,रेस्क्यू समिति आदि बनाई गई। मुझे और आशुतोष को रेस्क्यू समिति में लिया गया है।
अभी आईटीबीपी वालों की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। उन्होने 4-6 यात्रियों को शुरु किया। हमारी अठारहवीं बेच के सभी सदस्य मेडीकल टेस्ट में फिट कर दिए गए थे।  भोजन की  व्यवस्था कैलाश मानसरोवर सेवा समिति की ओर से की गई थी। मेडीकल में फिट होने के बाद अस्पताल में ही भोजन कराया गया। भोजन के बाद आईटीबीपी के रेस्क्यू विशेषज्ञओं ने दुर्घटना की स्थिति में प्रारंभिक बचाव के तरीके सिखाए। मानव डमी की सहायता से घायल या बीमार व्यक्ति को कृत्रिम श्वास देने के तरीके सिखाए गए। मैने डमी पर इसे करके भी देखा।
करीब पौने तीन बजे आईटीबीपी हास्पितल में हमारा काम समाप्त हो चुका था। तीन बजे बस में सवार हुए और ट्रैफिक जाम में फंसते फंसाते शाम पौने पांच बजे गुजराती सदन वापस लौटे। अब यहां कोई विशेष काम नहीं है। कल सुबह हमें आठ बजे विदेश मंत्रालय की ब्रीफींग में जाना है,जहां केएमवीएन को तीस हजार रु.यात्रा व्यय जमा करना है। इसी के साथ डालर,आरएमबी आदि भी कल ही लेने होंगे। रात को बैग जमा कर परसों की यात्रा की तैयारी करना होगी।
अभी शाम बाकी है। मैं और आशुतोष समय का सदुपयोग करते हुए लाल किला देखने जाना चाहते हैं।


18 अगस्त 2016 गुरुवार

गुजराती सदन (दोपहर 2.00)


आज की सुबह भी पिछले दो दिनों की तरह थी। फर्क ये था कि आज समय कुछ ज्यादा था।आज हमें सुबह आठ बजे तैयार होना था। सुबह कुछ से उठा और साढे सात तक स्नान से निवृत्त होकर दो मंजिल नीचे उतर कर नाश्ते के लिए पंहुच गया। आज भी नाश्ते में पोहे थे। रतलाम से लाई हुई सेव अब असर दिखा रही थी। भुवनेश्वर से आए दुखबन्धु जी व अन्य लोगों ने भी सेव का आनन्द लिया। आठ बजे हमारी बस विदेश मंत्रालय के लिए रवाना हुई। जहां अपने परिचयपत्र दिखाकर हमें प्रवेश दिया गया। विदेश मंत्रालय के प्रवेश द्वार के नजदीक ही मीडीया कक्ष में ब्रीफींग होना थी। इस सुसज्जित हाल में ग्रुप के सभी लोगों ने अपने फोटो खिचवाए। ग्रुप फोटो भी बनाए गए। यहां की ब्रीफींग में विदेश मंत्रालय के ईस्ट एशिया डिविजन के डायरेक्टर सुजीत घोष आईटीबीपी के ले.कर्नल अमित कुमार और बारहवीं बैच के एलओ श्री मजूमदार ने यात्रा के सम्बन्ध में जानकारियां दी। फिर से वही दौर चला। हाई एल्टीट्यूड से बचने,सावधानी रखने आदि की सलाहें दी गई। जानकारियां दी गई। ब्रीफींग के बाद केएमवीएन के लोगों ने प्रत्येक यात्री से यात्रा व्यय के तीस हजार रु.लिए व सभी को पैंतीस हजार रु.की रसीदें दी गई। पांच हजार रु.पूर्व में रजिस्ट्रेशन के वक्त जमा कर लिए गए थे।  दल के सदस्यों से तीन तीन हजार रु.मार्ग व्यय के लिए वित्त कमेटी ने भी जमा किए। यात्रा के लिए तैयार करवाए गए एफिडेविट व इण्डेमनिटी बांड आदि लेकर सभी के पासपोर्ट उन्हे लौटा दिए गए। इस सारी गतिविधि में करीब साढे ग्यारह बज गए। करीब पैंतालिस मिनट में हम फिर से गुजराती सदन लौट आए।
सुबह मुझे गले में इन्फेक्शन होता महसूस हुआ था।मैने विचार किया कि मुझे हल्की एंटीबायोटिक ले लेना चाहिए। मैं दवाईयां लेने जाने लगा तो भुवनेश्वर के बैंक अधिकारी किशोर बोहीदार जी मेरे साथ आ गए। उन्हे भी दवाईयां लेना थी। हम करीब डेढ किमी चलकर मैट्रो स्टेशन के दूसरी तरफ पंहुचे,जहां दवाई की दुकान मिली। दवाईयां लेने के बाद लौटे। फिर मैने और आशुतोष ने भोजन किया।
हमें कल सुबह छ:बजे,यहां से अलमोडा के लिए निकलना है। इसके लिए साढे पांच बजे तैयार होना है। इसका मतलब सुबह करीब साढे तीन बजे उठना होगा। जाने से पहले सामान को दो हिस्सों में बांटना है। बडा बैग लोड होकर जाएगा,जो सीधे धारचूला में वापस मिलेगा। छोटे बैग में दो दिन की जरुरत की चीजें ले जाना है। बडे बैग को प्लास्टिक के बोरे में पैक करके भेजना है,ताकि वह बारिश से सुरक्षित रहे। प्लास्टिक के बोरे और रस्सी आ चुकी है।
आज ही शाम को रुपयों को डालर और चीनी मुद्रा युवान में बदलना है। यह व्यवस्था यहीं उपलब्ध कराई जाएगी। हमें 901 अमेरिकन डालर प्रति व्यक्ति चीनी सरकार को देना है। चीनी क्षेत्र के खच्चर व कुली का शुल्क चीनी मुद्रा में देना होगा। वैसे हमने तय किया है कि पूरी यात्रा पैदल करेंगे। खच्चर नहीं लेंगे। कुली  भी दोनो लोगों में एक ही लेंगे। जिससे कि यात्रा का पूरा आनन्द लिया जा सके।
धारचूला तक तो बस से जाना है। वहां अधिक ठण्ड भी नहीं होगी,इसलिए अभी गर्म कपडों की जरुरत नहीं है। अभी तो सिर्फ अण्डर वियर्स लेने से ही काम चल जाएगा। बडे जूते और मोजे निकालने की भी जरुरत नहीं है।

रात 10.15

दोपहर को अपना सामान पोलिथिन बोरे में पैक करने के बाद गुजराती समाज सदन पर आए दिल्ली सरकार के व्यक्ति से डालर और युवान चेंज करने का काम किया। करीब 72 हजार में 901 डालर और दस हजार रु. में एक हजार युवान लिए। हमने तय किया था कि हम खच्चर नहीं लेंगे। केवल कुली लेंगे। चीनी सीमा में एक कुली के लिए आठ सौ युवान का रेट था। हमने दो कुली और कुछ अतिरिक्त खर्च के हिसाब से दो हजार युवान लिए।
हमें बताया गया था कि शाम 7 बजे दिल्ली सरकार की ओर से बिदाई कार्यक्रम है,जिसमें दिल्ली के यात्रियों को पच्चीस पच्चीस हजार रु.और अन्य यात्रियों को चार-चार हजार रु.दिए जाने है। हम कार्यक्रम के बताए गए समय पर पंहुच गए। कार्यक्रम स्थल यहीं गुजराती समाज की दाहीनी ओर था। एक डोम लगाकर मंच बनाया गया था। एक भजन पार्टी थी,जो भजन गा रही थी। भजन पार्टी ने 7 की बजाय 7.45 पर भजन शुरु किए और करीब 8.45 पर दिल्ली सरकार के अतिथि के रुप में वैभव शर्मा आए,जो आप के पूर्व प्रवक्ता और पूर्व मंत्री थे। तीर्थ यात्रा विकास समिति के दिल्ली सरकार के चैयरमेन कमल बंसल भई मौजूद थे। भाषण सिर्फ वैभव शर्मा का हुआ,जिसने आप सरकार की ईमानदारी की तारीफ की और कहा कि पहले यात्रियों को चार हजार रु. का सामान दिया जाता था,अब पारदर्शिता लाने के लिए चार हजार नगद दिए जा रहे हैं। हांलाकि कमल बंसल का व्यवहार हमारे साथ बेहद घटिया था। रात करीब सवा नौ बजे भोजन शुरु हुआ। मुझे तो भोजन में शामिल मावा बाटी का मावा थोडा खराब हो चुका लगा। मैने एक कौर खाने के बाद उसे नहीं खाया। भोजन के बाद उपर डोरमैट्री में आए। बैग तो पहले ही पैक था।अब सोने की तैयारी है। इससे पहले डायरी लिख रहा हूं। सुबह तीन बजे उठना है,ताकि पांच बजे तैयार हो सकूं।

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