- तुषार कोठारी
सोनू निगम ने जो कहा है,बिलकुल सही है। उन्होने वही कहा है,जो बारह वर्ष पहले उच्चतम न्यायालय कह चुका है। देश के नागरिक हर सुबह उन ध्वनियों को सुनने के लिए बाध्य है,जो वे सुनना नहीं चाहते। देश के किसी भी कोने में,किसी भी शहर के किसी भी हिस्से में सुबह आपकी नींद किसी मस्जिद की अजान की आवाज से ही खुलेगी। क्या यह अजान सुनने के लिए हर व्यक्ति बाध्य है?
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2005 में विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए है। वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति न्यायमूर्ति आरसी लाहौटी और न्यायमूर्ति अशोक भान ने एक सिविल अपील का निराकरण करते हुए रात दस बजे से सुबह छ: बजे के बीच लाउड स्पीकर या ध्वनि विस्तारक यंत्र के उपयोग को पूर्णत: प्रतिबन्धित कर दिया है। अपने इस आदेश में उच्चतम न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि मन्दिर,मस्जिद या गुरुद्वारों पर भी यह प्रतिबन्ध लागू रहेगा। न्यायमूर्तिगण ने स्पष्ट किया है कि पुराने दिनों में जब लाउड स्पीकर का आविष्कार नहीं हुआ था,तब भी मस्जिदों में अजान होती थी,और मन्दिरों में भजन गाए जाते थे। इसलिए लाउड स्पीकर कोई धार्मिक अनिवार्यता नहीं है। अपने इस महत्वपूर्ण आदेश में उच्चतम न्यायालय ने साफ किया था कि किसी नागरिक को उसकी इच्छा के बगैर कुछ भी सुनाना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। इस निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी उंची मीनार या दीवार पर सड़क की ओर मुह करके लाउड स्पीकर नहीं लगाए जा सकते। माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय में गीता,कुरआन और बाइबिल के उध्दरणों से यह स्पष्ट किया है कि कोई भी धर्म किसी अन्य धार्मिक विश्वास रखने पर जबर्दस्ती करने की इजाजत नहीं देता है। ऐसी स्थिति में धर्मस्थलों पर लाउड स्पीकर लगा कर तेज आवाज में अजान देना या भजन गाना उचित नहीं है। इस पर प्रतिबन्ध आवश्यक है।
उच्चतम न्यायालय के इस फैसले का सबसे बडा असर तो यह हुआ कि चुनाव के दिनों में चुनावी सभाएं और रोड शो आदि रात दस बजे से पहले समाप्त होने लगे है। आदर्श आचरण संहिता लागू रहने की दशा में प्रशासन ध्वनि विस्तारक यंत्र के प्रतिबन्ध को भी सख्ती से लागू करता है। परिणाम यह है कि अब बडे बडे नेताओं की चुनावी सभा या रोड शो रात दस बजे से पहले अनिवार्यत: बन्द कर दिए जाते है।
अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति वाले हमारे देश में चुनाव प्रचार पर तो उच्चतम न्यायालय का आदेश लागू हो गया,लेकिन धार्मिक स्थलों पर इसे लागू करने में सरकारें डरती रही। देश की किसी भी मस्जिद या मन्दिर पर लगे लाउडस्पीकरों को सरकारों या प्रशासन ने नहीं रोका। यहां तक कि मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी इस बारे में कभी विचार तक नहीं किया गया और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों की हर दिन धज्जियां उडती रही। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों की धज्जियां अब भी हर दिन उडाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों को लागू करने के लिए हर तरह की ताकत झोंक देने वाले शासन और प्रशासन की हिम्मत,इस फैसलें को लागू करवाने के मामले में टूट गई। देश का हर नागरिक सुबह सवेरे मस्जिदों की अजान सुनने के लिए मजबूर है। सुबह तो ऐसा लगता है कि हम किसी मुस्लिम देश में आ गए है,जहां हर दिशा से सिर्फ अजान की ही आवाज सुनाई देती है।
सोनू निगम ने सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश वाली बात दोहराई है। तीन तलाक और चार शादियों जैसे मुद्दों के साथ साथ अब इस मुद्दे पर भी ध्यान दिया जाना जरुरी है। तीन तलाक और चार शादी पर तो अभी निर्णय होना बाकी है,लेकिन धार्मिक स्थलों से लाउड स्पीकर हटाने का आदेश तो बारह साल पहले जारी हो चुका है। ऐसे फैसले लागू करना शिवराज जैसे नेताओं के बस की बात नहीं है। लेकिन अब उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने से यह उम्मीद बंधी है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन करवाया जाएगा। अगर उच्चर प्रदेश में यह लागू हुआ तो फिर शिवराज जैसे नेता भी शायद इसे लागू करने को राजी हो जाएंगे।
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