-तुषार कोठारी
मध्यप्रदेश में बीते दिनों भडके किसान आन्दोलन के बाद अब यह सवाल हर ओर सिर उठाने लगा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में क्या होगा? क्या शिवराज का जादू अब समाप्त होने लगा है? क्या भाजपा लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी का रेकार्ड बना पाएगी? इस तरह के सवाल उठ रहे हैं इसका सीधा सा अर्थ यही है कि अब प्रदेश की परिस्थितियां बदलने लगी है। जनता में किसी न किसी स्तर पर सरकार के प्रति नाराजगी है। यही वजह है कि भाजपा के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे है।
ऐसा लगता है कि वर्ष 2013 में मिली ऐतिहासित सफलता ने ही शिवराज के असर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐतिहासिक सफलता के कारण उपजे अतिआत्मविश्वास ने मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन और सरकारी मशीनरी को बुरी तरह से प्रभावित किया। अति आत्मविश्वास का पहला असर तो भाजपा संगठन पर पडा। जिस पार्टी में संगठन सदा ही सत्ता से भारी हुआ करता था,उस भाजपा में आज संगठन सत्ता की चकाचौंध में नदारद सा हो गया है। संगठन को हाशिये पर डाल दिया गया है। इसी वजह से कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का कांग्रेसी रोग अब भाजपा में भी जडे जमा चुका है।
चूंकि संगठन का महत्व कम हुआ,तो शासन पर अफसरशाही हावी होने लगी। सरकारी अफसरों को फीडबैक को ही अधिक महत्व दिया जाने लगा। संगठन के फीडबैक पर तो सरकार ने कान देना ही बंद कर दिया। प्रदेश की राजधानी से लेकर नीचे ग्रामपंचायत तक सरकार पर अफसरशाही का असर साफ नजर आने लगा है। भाजपा के वार्ड स्तर के कार्यकर्ता से लेकर जिलास्तर के पदाधिकारियों का प्रशासन पर असर नहीं के बराबर हो चुका है। कार्यकर्ताओं और जनता के छोटे छोटे काम पहले जहां भाजपा के नगर स्तर के नेताओं के फोन से हो जाया करते थे,उन्ही छोटे छोटे कामों के लिए अब रिश्वत देना जरुरी हो चुका है।
प्रदेश की वर्तमान वास्तविक स्थिति पर नजर डाले तो स्पष्ट हो जाएगा कि वर्तमान में चल रही सरकार जनता और कार्यकर्ताओं से पूरी तरह कटी हुई सरकार है। सरकार का जनता से कोई सरोकार नहीं बचा है। सरकार उतना ही और वही जानती है,जो उसके अफसर बताते है। इसी का नतीजा मध्यप्रदेश में किसान आन्दोलन के रुप में सामने आया है। शिवराज अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में अपनी लोकलुभावन योजनाओं के कारण देशभर में चर्चित रहे। लेकिन आज यही सारी योजनाओं सिर्फ दिखावा बन कर रह गई है। धरातल पर वास्तविकता यह है कि योजनाओं का क्रियान्वयन सिर्फ कागजों पर हो रहा है और वास्तविक लोगों तक इसका लाभ पंहुच ही नहीं पा रहा है।
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना हो या मध्यान्ह भोजन योजना। स्कूली बच्चियों को साइकिल देने की योजना हो या गरीबों को सस्ता राशन देने की योजना। इन तमाम योजनाओं के ढोल बहुत पीटे जा रहे है,लेकिन जमीनी हकीकत बिलकुल अलग है। कन्यादान योजना में शासन की ओर से दिए जाने वाले उपहारों की गुणवत्ता नदारद हो गई है। कई मामले ऐसे भी सामने आ चुके हैं जिनमें पहले से विवाहित जोडों की फिर से शादी कराई गई है। स्कूलों में बांटे जाने वाले मध्यान्ह भोजन की गुणवत्ता केवल पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के दिन खाने लायक होती है,क्योंकि इस दिन मंत्री और अफसर स्कूलों में जाकर भोजन करने का प्रदर्शन करते है। आम दिनों में नन्हे बच्चों को इतना घटिया खाना परोसा जा रहा है,जिसे कुत्ते भी खाने से इंकार कर देते है। स्कूली बच्चियों की दी जाने वाली साइकिलों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। प्रदेश के तमाम शहरों में गरीबों की वास्तविक संख्या से तीन गुने गरीबी रेखा के राशन कार्ड अस्तित्व में है। वास्तव में जिन गरीबों को सस्ते राशन की जरुरत है,उनके राशन दुकान पंहुचने से पहले ही सारा सरकारी राशन ब्लैक में बिक जाता है।
चूंकि पूरी सरकार पर अफसरशाही हावी हो चुकी है,तो इसका असर नीचे जिला और तहसील कार्यालयों तक साफ नजर आता है। तहसील और कलेक्टर कार्यालयों के अधिकारी कर्मचारी बिना रिश्वत कोई काम करने को राजी नहीं है। यहां तक कि भाजपा के पदाधिकारियों को भी रिश्वत देकर अपने काम करवाना पड रहे है। सत्तापक्ष के निर्वाचित विधायकों तक की सुनवाई नहीं हो रही है। रतलाम ग्रामीण के भाजपा विधायक को रतलाम जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के अडियल रवैये से तंग आकर धरने पर बैठना पडा। सत्तापक्ष के विधायक के धरने के बावजूद सरकार ने कार्यपालन अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा बडे जोर शोर से चालू की गई सीएम हेल्पलाइन योजना भी अब दिखावे भर के लिए रह गई है। इस योजना में आनलाइन आने वाली शिकायतों को अब अफसर सिर्फ इधर से उधर दौडाते रहते है। इनके वास्तविक निराकरण की चिन्ता कोई नहीं करता। मुख्यमंत्री दो-चार महीने में दिखाने भर के लिए कुछ शिकायतों का स्वयं निराकरण जरुर कर देते है,लेकिन इससे अधिकांश जनता को कोई लाभ नहीं होता। रतलाम के जिस कार्यपालन अधिकारी को हटाने के लिए सत्तापक्ष के विधायक को धरना देना पडा,वह विधायक के धरने से तो नहीं हटा,लेकिन संयोग से उसी भ्रष्ट अधिकारी की शिकायत सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से खुद सीएम ने सुन ली। जैसे ही मामला सीएम के सामने आया,उक्त अधिकारी को सस्पैण्ड कर दिया गया। यही हाल सरकारी दफ्तरों में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई का हो चुका है। अफसर शिकायतों को इधर से उधर घूमाने भर में रुचि लेते है,लेकिन शिकायतों का निराकरण नहीं हो पाता।
सरकार के इस कार्यकाल को तीन चौथाई समय गुजर गया है,लेकिन सरकार ने कार्यकर्ताओं की कोई सुध नहीं ली। जिला स्तर पर सरकारी विभागों की विभिन्न समितियों में की जाने वाली नियुक्तियों को भाजपा ने पूरी तरह भुला ही दिया। इन नियुक्तियों की वजह से जहां कार्यकर्ताओं को कुछ मिलने की खुशी मिलती थी,वहीं सरकारी महकमों पर भाजपा कार्यकर्ताओं की नजर भी रहती थी। इसके कारण कई अन्य कार्यकर्ताओं और आम लोगों के काम आसानी से हो जाते थे। लेकिन भाजपा के प्रदेश स्तर के नेताओं ने अपने अपने पद लेने के बाद सत्ता का लाभ नीचे तक पंहुचाने में कोई रुचि ही नहीं ली।
बहरहाल, शिवराज की तीसरी पारी में भाजपा के कार्यकर्ताओं से लेकर आम जनता तक सभी परेशान है। सरकारी प्रचार माध्यमों में मुख्यमंत्री का मुस्कुराता चेहरा देखकर परेशान कार्यकर्ता और नागरिक अब चिढने लगे है। उन्हे इस बात पर गुस्सा आता है कि समस्याएं पहले से अधिक विकराल हो रही है,फिर भी मुख्यमंत्री मुस्कुरा रहे हैं। कार्यकर्ताओं की मजबूरी यह है कि वे खुलकर बोल नहीं सकते,लेकिन जब भी उन्हे मौका मिलता है,वे अपना जादू दिखा ही देते है। राजनैतिक तौर पर भले ही भाजपा किसान आन्दोलन के लिए कांग्रेस को कोसे,लेकिन वास्तविकता यह है कि गांव गांव में फैला यह आन्दोलन भाजपा के कार्यकर्ताओं ने ही फैलाया था। कांग्रेस के पास तो अब इतना नेटवर्क बचा ही नहीं है। फिलहाल तो सिर्फ एक आन्दोलन में सरकार की असफलता प्रमाणित हुई है। बचे हुए समय में यदि स्थितियों को ढंग से नहीं संभाला गया तो कोई बडी बात नहीं कांग्रेस के अस्तित्वहीन होने के बावजूद कार्यकर्ता और जनता कोई बडा उलटफेर कर दे।
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