19 सितम्बर 2017 मंगलवार (दोपहर 3.50)
इ खबरटुडे आफिस रतलाम
यात्रा के अंतिम हिस्से में व्यस्तताएं इतनी अधिक रही कि डायरी से जुडने का मौका ही हाथ नहीं आया। बीती रात डेढ बजे रतलाम पंहुचने के बाद आज दोपहर को यह मौका मिल पाया है। अब स्मृतियों को पीछे वहां तक ले जाता हूं जहां से डायरी छोडी थी।
17 सितम्बर 2017
ऋषिकेश के पुलिस रेस्टड हाउस से निकलते निकलते साढे तीन हो गए थे। मुझे तीन नन्दा दीप लेने थे,जो रेस्टहाउस के बाहर ही सड़क पर मिल गए। ये नन्दादीप लेकर हम निकलने को तैयार हो गए। हमें बताया गया था कि मसूरी पंहुचने में ढाई से तीन घण्टे लगेंगे। गाडी चल पडी। रास्ते भर राफ्टिंग और राफ्ट पलटने की बातें होती रही। देहरादून में एक निर्माणाधीन फ्लायओव्हर के कारण जाम में फंसे,और भई रास्तों में उलझे। देर होती गई और हम शाम करीब साढे सात पर मसूरी पंहुचे। मसूरी देहरादून शहर खत्म होने से पहले ही एक उंची पहाडी पर बसा प्रसिध्द पर्यटन स्थल है। अभी देहरादून शहर खत्म भी नहीं होता है कि मसूरी की चढाई शुरु हो जाती है। करीब पैंतीस किमी का पहाडी रास्ता तय करके मसूरी पंहुचे। मसूरी के फेमस मालरोड पर ही उंचाई पर पुलिस रेस्ट हाउस है। शाम के वक्त मालरोड पर चार पहिया वाहनों का प्रवेश बन्द कर दिया जाता है। लेकिन मसूरी एसओ का फोन आ गया था। हमारे लिए बैरिकेटिंग खोल दिए गए । हम रेस्ट हाउस पंहुचे। आईजी सा.के
साढे सात तक आने की सूचना थी,लेकिन वे सवा नौ के करीब आए। पूरे एक साल और आठ दिनों के बाद मुलाकात हुई। बडी गर्मजोशी से हुई। हम लोग तो पहले ही उनकी वीआईपी व्यवस्थाओं से अतिप्रसन्न थे। आईजी सा.के साथ फोटो लिए। जगजीत भी उनके साथ था। उसके बाद बातें होती रही। मिलने जुलने का सिलसिला आधी रात के बाद रात दो बजे तक चला। दुनियाभर के विषयों पर चर्चा हुई। यह भी हुआ कि अगली बार आईजी सा कोई ट्रैकिंग प्रोग्राम बनाएंगे तो मुझे और आशुतोष को सूचना देंगे ताकि हम भी उसमें शामिल हो सके। रात दो बजे संजय गुंजियाल जी और जगजीत रवाना हुए। उन्हे देहरादून पंहुचना था। ये रास्ता पैंतालिस मिनट का था।
इधर हमें भी कई दिनों बाद अच्छे से सोने का मौका मिला था। पहले सोचा था कि मसूरी से सुबह नौ बजे तक रवाना हो जाएंगे लेकिन नौ बजे तक सौ कर उठे। नहाते धोते साढे दस बज गए। करीब ग्यारह बजे यहां से रवाना हुए। अब वापसी की यात्रा शुरु हो रही थी। महेश जी की उनके एक परिचित डबराल जी से चर्चा हुई थी। डबराल जी देहरादून के भाउवाला
गांव में रहते है। किसान संघ के प्रान्तीय पदाधिकारी है। उनके पिता बडे नेता और विधायक रहे हैं। हमारा भोजन डबराल जी के यहां था। उन्होने एक बजे का समय दिया था। देहरादून में क्लिफ क्लाइंबर के शोरुम का पता जगजीत ने दिया था। हम चाहते थे कि ट्रैकिंग में जो बैग्स ले गए थे,वैसे बैग्स खरीद लैं। ट्रैकिंग वाले बैग मिलेट कंपनी के थे। शो रुम पर पता चला कि उनकी कीमत दस हजार रु.से भी ज्यादा थी। जगजीत भाई भी शो रुम पर पंहुच गए थे। फिर से जगजीत भाई से मुलाकात हुई। उनसे बिदा लेकर भाउवाला गांव के लिए चले। जिन डबराल सा.के यहां भोजन था,वे हमें किसान संघ के जिला पदाधिकारी के घर पर ले गए,जहां श्राध्द का कार्यक्रम था। हम सभी का भोजन वहीं हुआ। लेकिन इस सबमें हमारे ढाई घण्टे बिगड गए। हम साढे चार पर यहां से आगे बढे। यहां से पांवटा साहब होकर रोहतक का सीधा रास्ता था। रोहतक दो सौ अस्सी किमी था। सड़क बेहद शानदार छ:लेन वाली थी। रोहतक में पं.संदीप पाठक हमारा इंतजार कर रहे थे। रोहतक पंहुचते पंहुचते रात की साढे नौ हो गई। भोजन करने में रात का डेढ बज गया। रोहतक में पण्डित जी का घर देखा। घर पंहुचकर चाय पी। बहन किरण से मुलाकात हुई।
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इ खबरटुडे आफिस रतलाम
यात्रा के अंतिम हिस्से में व्यस्तताएं इतनी अधिक रही कि डायरी से जुडने का मौका ही हाथ नहीं आया। बीती रात डेढ बजे रतलाम पंहुचने के बाद आज दोपहर को यह मौका मिल पाया है। अब स्मृतियों को पीछे वहां तक ले जाता हूं जहां से डायरी छोडी थी।
17 सितम्बर 2017
ऋषिकेश के पुलिस रेस्टड हाउस से निकलते निकलते साढे तीन हो गए थे। मुझे तीन नन्दा दीप लेने थे,जो रेस्टहाउस के बाहर ही सड़क पर मिल गए। ये नन्दादीप लेकर हम निकलने को तैयार हो गए। हमें बताया गया था कि मसूरी पंहुचने में ढाई से तीन घण्टे लगेंगे। गाडी चल पडी। रास्ते भर राफ्टिंग और राफ्ट पलटने की बातें होती रही। देहरादून में एक निर्माणाधीन फ्लायओव्हर के कारण जाम में फंसे,और भई रास्तों में उलझे। देर होती गई और हम शाम करीब साढे सात पर मसूरी पंहुचे। मसूरी देहरादून शहर खत्म होने से पहले ही एक उंची पहाडी पर बसा प्रसिध्द पर्यटन स्थल है। अभी देहरादून शहर खत्म भी नहीं होता है कि मसूरी की चढाई शुरु हो जाती है। करीब पैंतीस किमी का पहाडी रास्ता तय करके मसूरी पंहुचे। मसूरी के फेमस मालरोड पर ही उंचाई पर पुलिस रेस्ट हाउस है। शाम के वक्त मालरोड पर चार पहिया वाहनों का प्रवेश बन्द कर दिया जाता है। लेकिन मसूरी एसओ का फोन आ गया था। हमारे लिए बैरिकेटिंग खोल दिए गए । हम रेस्ट हाउस पंहुचे। आईजी सा.के
with IG Sanjay Gunjiyal & Jagjeet in Masoori Police rest house |
इधर हमें भी कई दिनों बाद अच्छे से सोने का मौका मिला था। पहले सोचा था कि मसूरी से सुबह नौ बजे तक रवाना हो जाएंगे लेकिन नौ बजे तक सौ कर उठे। नहाते धोते साढे दस बज गए। करीब ग्यारह बजे यहां से रवाना हुए। अब वापसी की यात्रा शुरु हो रही थी। महेश जी की उनके एक परिचित डबराल जी से चर्चा हुई थी। डबराल जी देहरादून के भाउवाला
गांव में रहते है। किसान संघ के प्रान्तीय पदाधिकारी है। उनके पिता बडे नेता और विधायक रहे हैं। हमारा भोजन डबराल जी के यहां था। उन्होने एक बजे का समय दिया था। देहरादून में क्लिफ क्लाइंबर के शोरुम का पता जगजीत ने दिया था। हम चाहते थे कि ट्रैकिंग में जो बैग्स ले गए थे,वैसे बैग्स खरीद लैं। ट्रैकिंग वाले बैग मिलेट कंपनी के थे। शो रुम पर पता चला कि उनकी कीमत दस हजार रु.से भी ज्यादा थी। जगजीत भाई भी शो रुम पर पंहुच गए थे। फिर से जगजीत भाई से मुलाकात हुई। उनसे बिदा लेकर भाउवाला गांव के लिए चले। जिन डबराल सा.के यहां भोजन था,वे हमें किसान संघ के जिला पदाधिकारी के घर पर ले गए,जहां श्राध्द का कार्यक्रम था। हम सभी का भोजन वहीं हुआ। लेकिन इस सबमें हमारे ढाई घण्टे बिगड गए। हम साढे चार पर यहां से आगे बढे। यहां से पांवटा साहब होकर रोहतक का सीधा रास्ता था। रोहतक दो सौ अस्सी किमी था। सड़क बेहद शानदार छ:लेन वाली थी। रोहतक में पं.संदीप पाठक हमारा इंतजार कर रहे थे। रोहतक पंहुचते पंहुचते रात की साढे नौ हो गई। भोजन करने में रात का डेढ बज गया। रोहतक में पण्डित जी का घर देखा। घर पंहुचकर चाय पी। बहन किरण से मुलाकात हुई।
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