यात्रा वृत्तान्त-26 त्रिपुरा सुन्दरी के दरबार से देवाधिदेव के विश्रामस्थल उनाकोटि तक
(त्रिपुरा मिजोरम यात्रा 27 फरवरी से 9 मार्च 2018)
देश के उत्तर पूर्वी राज्यों को देखने की इच्छा के चलते पूर्वोत्तर क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की। सेवन सिस्टर कहलाने वाले सात राज्यों में से पांच राज्यों के भ्रमण मैं कर चुका था। अब केवल त्रिपुरा और मिजोरम शेष रह गए थे। इस बार इन दोनो राज्यों में भी घूम लिए और इसी के साथ पूर्वोत्तर का भ्रमण पूरा हुआ। इस यात्रा की योजना भी दो-तीन माह पूर्व ही बन गई थी। हवाई टिकट भी बुक करवा लिए गए थे। टिकट बुकींग के समय यह ध्यान ही नहीं रहा कि होली औस रंगपंचमी भी इन्ही दिनों में पहडने वाली है। यह जानकारी टिकट बुक करने के बाद ही मिल पाई थी। परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2018 की होली हमने त्रिपुरा में मनाई,जबकि रंगपंचमी का दिन त्रिपुरा से मिजोरम जाने की यात्रा में गुजरा। इस यात्रा की डायरी,तो यात्रा के दौरान ही लिखता रहा था,लेकिन इसे कम्प्यूटर पर लाने की शुरुआत आज 16 मार्च 2018 से की।
28 फरवरी 2018 बुधवार (दोपहर 1.00)
होटल ब्रज,पहाडगंज नई दिल्ली
इस वक्त हमें कोलकाता से अगरतला की उडान में होना था,लेकिन हम दिल्ली में समय काट रहे हैं। अभी,कल घर से लाए हुए पराठे,सब्जी और सेव का भोजन किया है। फिलहाल चाय का इंतजार हो रहा है।
ये यात्रा शुरुआत से ही कुछ छोटी,छोटी और कुछ बडी दिक्कतों के साथ शुरु हुई थी। उत्तर पूर्व के सारे इलाके हम देख चुके है। केवल त्रिपुरा और मिजोरम बाकी थे। इसकी योजना बनते बनते,निकलने की तारीख 27 फरवरी तय हुई। तीन महीने पहले ही फ्लाईट और ट्रेन के टिकट बुक करवा लिए थे। इस यात्रा में हम चार लोग आए हैं। मैं,दशरथ जी पाटीदार,संतोष जी त्रिपाठी और अनिल मेहता।
इस यात्रा पर खतरे मण्डराने लगे थे। 18 फरवरी को रामद्वारे के महन्त श्री गोपालदास जी का निधन हो गया। साधु सन्तों का मृत्योत्तर कार्यक्रम सत्रहवें दिन किया जाता है। सत्रहवां दिन 6 मार्च को पड रहा था। हांलाकि पहली गडबडी तो यात्रा के दिन तय करने में ही हो गई थी। यह ध्यान ही नहीं रहा कि होली 2 मार्च और रंगपंचमी 6 मार्च की है। इन्ही दिनों में यात्रा तय कर टिकट करवा लिए थे। बाद में जब ध्यान आया तो मन को पक्का किया कि चलो इस बार होली नहीं मनाएंगे। घूमेंगे फिरेंगे। लेकिन अब संकट स्व.महन्त जी की सत्रहवी का था।बडे आयोजन में मेरी उपस्थिति आवश्यक होती। लेकिन रंगपंचमी की ही वजह से यह तय हुई कि सत्रहवीं का कार्यक्रम बेहद संक्षिप्त रखा जाए और बाद में किसी दिन मेला आयोजित किया जाए। चूंकि अब आयोजन छोटा होने वाला था इसलिए यात्रा रद्द होने से बच गई।
लेकिन छुपे खतरे अब भी मौजूद थे। रतलाम से दिल्ली का आरक्षण अभी नहीं हुआ था। वेटिंग के टिकट थे। लेकिन कल सुबह चारों आरक्षण कन्फर्म हो गए।
अब हम ट्रेन में सवार होने को तैयार थे।हम चारों शाम पांच बजे आफिस पर एकत्रित हो गए। तभी पता चला कि ट्रेन एक घण्टा बीस मिनट लेट चल रही है। हम निश्चिन्त थे। ट्रेन 7.20 पर आने वाली थी। हम बडे आराम से पौने सात के करीब स्टेशन पंहुचे। बडे आराम से प्लेटफार्म की तरफ चले,लेकिन तभी पता चला कि ट्रेन तो आ चुकी है। हम प्लेटफार्म पर पंहुच गए थे। हमारा कोच बी-1 ट्रेन में सबसे पीछे था। अभी हमने चलना शुरु ही किया था कि ट्रेन चल पडी। हमारे सामने जो कोच था,हम उसी में चढ गए। कल ट्रेन में भारी भीड थी। स्लीपर कोच में भी पैर धरने को जगह नहीं थी। हमें अपना सामान लेकर डब्बों के भीतर भीतर चलते हुए सबसे पीछे जाना था। मैं और संतोष जी साथ में थे। दशरथ जी और अनिल किसी दूसरे कोच में चढे थे। खुशी यही थी कि ट्रेन नहीं छूटी थी,वरना त्ता नहीं क्या होता? खैर,डब्बों में भारी भीड की वजह से ट्रेन के भीतर सामान लेकर चलना बेहद कठिन था। आधा घण्टा इंतजार करते रहे। नागदा स्टेशन पर उतरकर अपने कोच में पंहुचे। फिर भोजन किया।
आज की सुबह तो और भी ज्यादा उलझनों वाली परेशानी भरी रही। ट्रेन करीब एक घण्टा देरी से दिल्ली पंहुची। पहले सोचा कि स्टेशन पर ही फ्रैश हो जाए,लेकिन एसी वोटिंग रुम पहाडगंज की ओर था। हमें अजमेरी गेट की तरफ मैट्रो स्टेशन जाना था। अजमेरी गेट की तरफ आईआरसीटीसी का वीआईपी वेटिंग लाउंज नजर आया। वहां पंहुचे तो पता चला कि प्रति व्यक्ति 190 रु. लगेंगे। हमने सोचा कि इसी का उपयोग कर लेते है,लेकिन वहां पंहुचे तो पता चला कि स्नान करने के 190 रु.प्रति व्यक्ति और देना पडेंगे। यानी प्रति व्यक्ति करीब चार सौ रुपए। यह महंगा सौदा था। हम मैट्रो स्टेशन की ओर चल पडे। मैट्रो स्टेशन पर टी-3 के टिकट लिए और मैट्रों में सवार हो गए। एयरपोर्ट स्टेशन पर उतरे। ट्रेन चल पडी तो ध्यान में आया कि एक बैग ट्रैन में ही छूट गया है। बैग के लिए पहले सीआईएसएफ के सुरक्षाकर्मियों को बताया और फिर मैट्रो के कर्मचारियों को। वहीं फ्रैश हो रहे थे कि मैट्रो कर्मचारी का फोन आया कि आपका बैग द्वारिका सैक्टर 21 पर उतार लिया गया है। आप वहां जाकर बैग ला सकते है। अभी हमारे पास समय था। मैं और दशरथ जी फिर मैट्रों में सवार हुए,द्वारिका पंहुचे,वहां से बैग लिया और वापस लौटे। इसी बाच एक एसएमएस आ चुका था। हमारी फ्लाईट टी-3 से नहीं बल्कि टी-1 डी से थी। अभी पौने नौ हो चुके थे और हमें नौ पांच तक चैक इन करना था।
हम टी-3 से फिर मैट्रो में सवार हो कर एक स्टेशन पीछे एयरोसिटी स्टेशन पंहुचे। वहां से टी-1 की बस चलती है। बस में सवार हो कर टी-1 डी पंहुचे। इण्डिगो के काउण्टर तक पंहुचते पंहुचते 9.20 हो चुके थे। काउण्टर पर पंहुचते ही वहां के कर्मचारियों ने साफ इंकार कर दिया। उनका कहना था कि फ्लाईट लॉक हो चुकी है। अब कुछ नहीं हो सकता। हम हक्के बक्के रह गए। अब कोई रास्ता नहीं था। काफी अनुनय विनय करने के बावजूद भी कोई हल नहीं निकला। इण्डिगो कर्मियों ने सुझाव दिया कि कल की फ्लाईट देख लें। अगले दिन की फ्लाईट के लिए हमें बीस हजार रु.अतिरिक्त देना थे। और कोई चारा नहीं था।. मरता क्या न करता की तर्ज पर ह राशि चुकाई। एक मार्च का टिकट लिया।
अब क्या करें...? वापस लौट कर एक दिन यहीं गुजारना होगा। फिर से मैट्रो पकडी। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आए। दशरथ जी और संतोष जी को सामान के साथ अजमेरी गेट साईड पर रोक कर मैं और अनिल रुकने की व्यवस्था करने के लिए चले। पहले तो स्टेशन के वेटिंग रुम की तलाश की। वहां आधे घण्टे की मशकक्कत के बाद पता चला कि कोई व्यवस्था नहीं है। पहाडगंज की ओर बाहर आए। कई होटल तलाशने के बाद हमारी खोज इस होटल पर आकर समाप्त हुई। यहां तीन बेड वाला कमरा बारह सौ रु. में मिल गया। फिर संतोष जी को फोन किया कि वे यहां आ जाए। सारा सामान उन्ही के पास था। संतोष जी और दशरथ जी आटो करके इधर पंहुचे। दोपहर के साढे बारह हो चुके थे। अब तक हमने सिर्फ एक-एक कप चाय पी थी। सभी लोग बुरी तरह थक चुके थे। कमरे में आए। कल का लाया हुआ भोजन अभी बचा है। मटर की सब्जी और पराठे का भोजन किया। चाय पी। दशरथ जी और संतोष जी अब खर्राटे भर रहे हैं। मैं डायरी लिख रहा हूं। अनिल टीवी देख रहा है।
हमारी मूर्खता की खबर वैदेही के जरिये रतलाम पंहुच चुकी है। दिन में नींद निकालने के बाद शाम को संभव हुआ तो लालकिला देखने जाएंगे। कल सुबह पांच बजे यहां से निकलना होगा। फ्लाईट के लिए सुबह सात बजे पंहुचना है।
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