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स्वामी विवेकानन्द के वेलूड मठ में
10 मार्च 2018 शनिवार (सुबह 7.40)
नई दिल्ली रेलवे रिटायरिंग रुम,अजमेरी गेट
बीती रात बहुत देर हो गई थी। नींद आने लगी थी। अभी उठने में भी देरी हो गई है। हमें हजरत निजामुद्दीन से गाडी पकडना है। यहां से आठ बजे निकलने का टार्गेट है। देखते है क्या होता है?बहरहाल,हम वेलूड मठ में थे। वेलूड मठ,स्वामी विवेकानन्द यहीं से बने और यहीं उन्होने अंतिम सांस ली। अब यह बहुत बडा परिसर है। रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय भी यहीं है। वेलूड मठ पंहुचे। भीतर प्रवेश करते ही बाई ओर श्री रामकृष्ण और रामकृष्ण मिशन को दर्शाने वाली प्रदर्शनी है। यहां पांच रु.टिकट है। टिकट लेकर भीतर गए। रामकृष्ण परमहंस,सारदा मां,स्वामी विवेकानन्द और आरके मिशन के अन्यान्य संतों के जीवन से जुडी तमाम वस्तुओं का यहां प्रदर्शन किया गया है।
इससे आगे बढे तो बाई तरफ ही विशाल रामकृष्ण मन्दिर है। इसके दूसरी ओर यानी कि सामने रामकृष्ण मिशन का प्रशासनिक कार्यालय आदि भवन है।
राम कृष्ण मन्दिर बडा ही भव्य मन्दिर है। भीतर रामकृष्ण परमहंस की प्रतिमा है।इसके पीछे की ओर वह कमरा है,जिसमें स्वामी विवेकानन्द जी रहा करते थे और जहां उन्होने अंतिम सांस ली।
10 मार्च 2018 (सुबह 9.50)
ह.निजामुद्दीन-त्रिवेन्द्रम एक्स.कोच न. बी-2/25,26
हमारे प्लेटफार्म पर पंहुचने के बाद ट्रेन आई। मैने ट्रैन का विडीयो बनाया। ट्रेन के कोच में सवार हो गए। हमारे रिजर्वेशन कन्फर्म हो चुके है और शाम 8.20 पर हम रतलाम में होंगे।कल वैलूड मठ में स्वामी विवेकानन्द का कमरा देखने के बाद उनका मन्दिर भी देखा। मन्दिर के ठीक पीछे गंगा का विशाल पाट है। गंगा का गंगौत्री से शुरु हुआ सफर यहीं कोलकाता में समाप्त होता है। यहां गंगा का पाट काफी चौडा है। गंगा में क्रूज इत्यादि भी चल रहे थे। इस वक्त शाम के पांच बज रहे थे। हमे जल्दी एयरपोर्ट लौटना था। जल्दी जल्दी बाहर निकले। गेट पर आकर एक ओला कैब बुक की। यह गाडी ट्रैफिक में फंसी हुई थी,करीब पौने छ: बजे यह हमारे पास पंहुची। करीब पैतालिस मिनट तक कोलकाता की सडक़ों पर घूमने के बाद हम एयरपोर्ट पर पंहुचे। काली मन्दिर से एयरपोर्ट के लिए जो सडक़ है,वह शायद शहर के बाहर बनाई गई है,इसलिए ट्रैफिक जाम का कोई झंझट नहीं था। बडी आसानी से एयरपोर्ट पंहुच गए। बडे आराम से भीतर आए। सुरक्षा जांच करवा कर भीतर चले गए। हमारी फ्लाईठ गेट न.24 से थी,जिसे बदलकर 23 बी से ले जाया जा रहा था। करीब 7.50 पर जेट एयरवेज की बसें गेट पर आई जो हमें विमान तक ले गई। यह एक बडा विमान था। सुबह विमान में नाश्ता दिया गया था इसलिए उम्मीद थी कि अभी भोजन भी दिया जाएगा। प्लेन में घूसते ही फ्लाइट अटैन्डेन्ट से मैने पूछा कि खाना-वाना खिलाओगे क्या? उसने कहा बिलकुल। हम जाकर अपनी सीटों पर बैठ गए। थोडी ही देर में भोजन पेश किया गया। दाल चावल,मिक्स वेज और केक। स्वादिष्ट भोजन था,भूख भी लगी थी। इसके बाद चाय काफी भी थी।
खाते पीते जल्दी ही समय निकल गया। रात साढे दस पर हमारा विमान दिल्ली एयरपोर्ट पर उथरा। लगैज लेकर निकलते निकलते ग्यारह बज गए थे। मैट्रो मिलेगी या नहीं इसका संशय था। जल्दी जल्दी मैट्रो स्टेशन पंहुचे। आखरी मैट्रो आने वाली थी। ट्रेन के टिकट लिए और ट्रेन में सवार हो गए। मात्र पच्चीस मिनट में नई दिल्ली स्टेशन पर थे। पौने बारह बज चुके थे। मैट्रो स्टेशन से निकलकर मुख्य स्टेशन पर पंहुचे,जहां रिटायरिंग रुम में दो कमरे बुक थे। कमरों में सामान टिका कर बाहर बने आईआरसीटीसी के कैन्टीन पर पंहुचे और हल्का भोजन किया। रात को सोते सोते 2.10 हो गए थे।
सुबह जल्दी उठना था,लेकिन नींद सात बजे खुली। बडी तेजी से नित्यकर्म निपटा कर स्नानादि से निवृत्त होकर सवा आठ बजे वहां से निकल पडे। ओला कैब 20 मिनट में आना थी,इसलिए पचास रु.अधिक देकर ढाई सौ रुपए में टैक्सी में सवार हुए। ठीक नौ बजे हम हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर थे। यहां आईआरसीटीसी के रैा में मसाला डोसा और आलू पराठे का भरपेट नाश्ता किया। चाय भी पीना थी,लेकिन काफी इंतजार के बाद भी चाय नहीं मिली। हम भीतर प्लेटफार्म पर आ गए। यहां चाय पी और कुछ ही देर में ट्रेन आ गई। हम ट्रेन में सवार हो चुके है।
और इस तरह विचित्रताओं से भरी यह यात्रा समाप्त हुई। इसकी शुरुआत में एक बैग भूले थे,जिसे हमने फिर हासिल कर लिया था। फिर प्लेन मिस किया और भारी कीमत चुका कर अगले दिन के टिकट लिए। रेलवे की गलती से ट्रेन छूटी।इसी बीच टोनी की सेल्फी स्टिक भी गुमा दी। बाकी का सारा सामान सलामत है।
देश का पूर्वोत्तर वाला पूरा हिस्सा में घूम चुका हूं। पूर्वोत्तर के सातों राज्यों को देख चुका हूं। ये सातों राज्य पास पास होते हुए भी बेहद जटिल और भिन्नताओं से भरे हुए है। असम घुसपैठिये मुसलमानों से परेशान है। यही परेशानी अरुणाचल को भी झेलना पड रही है। मणिपुर हिन्दू राज्य है,लेकिन नगा आतंकियों की वजह से अशांत है। त्रिपुरा हिन्दू राज्य है और इश बार वहां हिन्दुत्व का जागरण भी हो गया है। मेघालय,मिजोरम और नागालैण्ड पर ईसाईयों का कब्जा हो गया है। हांलाकि इन राज्यों में भाजपा के प्रवेश के बाद अब ये भी देश की मुख्य धारा में मिलते जा रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में अभी पर्यटन के दोहन की अपार संभावनाएं है। सभी राज्यों की आपसी कनेक्टिविटी बेहद खराब है। इस पर काफी कुछ किया जाना है। सडक़ें ठीक नहीं है। वाहनों की व्यवस्था ठीक नहीं है।लेकिन प्रकृति ने यहां बहुत कुछ लुटाया है। सुन्दरता बहुत है। व्यक्तियों में भी और प्रकृति की भी। यदि केन्द्र की सरकारें इस तरफ पहले से ध्यान दे रही होती तो ये इतने अबूझ नहीं होते,जितने अभी हैं। हांलाकि अब मोदी जी की नीति के कारण ये विकास के पथ पर बढ चले हैं। वह दिन अब दूर नहीं जब मध्यप्रदेश और दक्षिण भारत के युवा घूमने के लिए पूर्वोत्तर जाने की योजनाएं बनाने लगेंगे।
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