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कहानी को वहां ले जाता हूं जहां छोडी थी।
लैंगपुई एयरपोर्ट से जट एयरवेज की हमारी उडान उडी। मजा तब आया,जब जेट एयरवेज वालों ने नाश्ता सर्व किया। वडा पाव और चाय। ये हमलोगों के लिए बेहतरीन गिफ्ट था। हम सुबह साढे आठ बजे पुडी सब्जी खाकर चले थे। करीब सवा बजे कोलकाता पंहुचना था। हल्की भूख सभी को लगी थी। वडा पाव और चाय ने मजा ला दिया।हमें उम्मीद बंध गई कि शाम की फ्लाइट में भी कुछ ना कुछ खाने को मिलेगा।
दोपहर सवा बजे कोलकाता एयरपोर्ट से बाहर निकले। दक्षिणेश्वर काली मन्दिर जाने के लिए औला कैब बुक की। कुछ ही देर में औला कैब आ गई। ओला कैब ने हमें मन्दिर क्षेत्र के पास उतार दिया। पहले हम गलत रास्ते पर चले। फिर एक इ रिक्शा ले लिया। पचास रु.में उसने हमें 2.10 पर दक्षिणेश्वर काली मन्दिर परिसर में छोड दिया। अपने मोबाइल,कैमरा,लैपटाप और जूते आदि जमा कर हम 2.20 पर फ्री हुए तो दर्शन की लाइन में लग गए। पता चला कि मन्दिर के पट दोपहर तीन बजे तक खुलेंगे। 2.25 से तीन बजे तक लाइन में खडे रहे। अब तक हमारे पीछे काफी लम्बी लाइन लग चुकी थी। ठीक तीन बजे सिक्यूरिटी वालों ने बाहर के दरवाजे पर बांधी हुई रस्सी खोली। भीतर मन्दिर में गए। फिर गर्भगृह के सामने लाइन लग गई थी। यहां पता चला कि गर्भगृह के पट साढे तीन पर खुलेंगे। तेज धूप के कारण नीचे पत्थर बेहद गर्म थे। खडे रहने में पैर जल रहे थे,लेकिन और कोई चारा नहीं था। हमारे पीछे अब लाइन और भी ज्यादा लम्बी हो चुकी थी। जैसे तैसे साढे तीनं बजे और काली माता के दर्शन हुए। प्रसाद भी मिला। काली मन्दिर परिसर में बाहर की ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग के मन्दिर बने हुए है। इनमें से एक मन्दिर में दर्शन किए। मन्दिर के पीछे ही गंगा बह रही है। गंगा के किनारे जाकर गंगाजल को माथे से लगाया। दशरथ जी और अनिल सामान वापस ले रहे थे। मैं और संतोष जी परिसर में ही गेट के पास बनी दुकान में कचौडी खाने पंहुच गए। पता चला कि यहां की कचौडी,पूडी जैसी होती है,जिसमें थोडा सा नाममात्र का मसाला भरा होता है,साथ में दाल देते हैं। दो प्लेट कचौडी मंगवाई तो पता चला कि प्रत्येक प्लेट में आठ पुडियां और दाल है। हमने सोचा कि हमारे साथी आएंगे तो आधा बंट जाएगा लेकिन वे तब आए जब पुडियां खत्म होने को थी। उनके लिए दो प्लेट कचौडी फिर मंगवाई। चाय पीने की इच्छा थी,लेकिन समय कम था। चार प्लेट कचौडी के अस्सी रुपए का भुगतान करके एक इ रिक्शा में सवार हुए,जिसने हमें बसस्टैण्ड पर छोडा। यहां से डेढ सौ रुपए में आटो रिक्शा लिया जिसनें हम चारों को वेलूड मठ छोडा।
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जय काली कलकत्ते वाली के दरबार में
9 मार्च 2018 शुक्रवार (रात 2.00 बजे)
नई दिल्ली वेटिंग रुम अजमेरी गेट
जब रतलाम में यात्रा का कार्यक्रम बनाया था तभी,अजमेरी गेट की तरफ के रेलवे रिटायरिंग रुम में दो एसी कमरे आनलाईन बुक करवा लिए थे। हांलाकि हमारे कमरे में एसी काम नहीं कर रहा है,गीजर भी बडी मुश्किल सेचालू हुआष खैर सुबह आठ बजे यहां से निकल जाना है।कहानी को वहां ले जाता हूं जहां छोडी थी।
लैंगपुई एयरपोर्ट से जट एयरवेज की हमारी उडान उडी। मजा तब आया,जब जेट एयरवेज वालों ने नाश्ता सर्व किया। वडा पाव और चाय। ये हमलोगों के लिए बेहतरीन गिफ्ट था। हम सुबह साढे आठ बजे पुडी सब्जी खाकर चले थे। करीब सवा बजे कोलकाता पंहुचना था। हल्की भूख सभी को लगी थी। वडा पाव और चाय ने मजा ला दिया।हमें उम्मीद बंध गई कि शाम की फ्लाइट में भी कुछ ना कुछ खाने को मिलेगा।
दोपहर सवा बजे कोलकाता एयरपोर्ट से बाहर निकले। दक्षिणेश्वर काली मन्दिर जाने के लिए औला कैब बुक की। कुछ ही देर में औला कैब आ गई। ओला कैब ने हमें मन्दिर क्षेत्र के पास उतार दिया। पहले हम गलत रास्ते पर चले। फिर एक इ रिक्शा ले लिया। पचास रु.में उसने हमें 2.10 पर दक्षिणेश्वर काली मन्दिर परिसर में छोड दिया। अपने मोबाइल,कैमरा,लैपटाप और जूते आदि जमा कर हम 2.20 पर फ्री हुए तो दर्शन की लाइन में लग गए। पता चला कि मन्दिर के पट दोपहर तीन बजे तक खुलेंगे। 2.25 से तीन बजे तक लाइन में खडे रहे। अब तक हमारे पीछे काफी लम्बी लाइन लग चुकी थी। ठीक तीन बजे सिक्यूरिटी वालों ने बाहर के दरवाजे पर बांधी हुई रस्सी खोली। भीतर मन्दिर में गए। फिर गर्भगृह के सामने लाइन लग गई थी। यहां पता चला कि गर्भगृह के पट साढे तीन पर खुलेंगे। तेज धूप के कारण नीचे पत्थर बेहद गर्म थे। खडे रहने में पैर जल रहे थे,लेकिन और कोई चारा नहीं था। हमारे पीछे अब लाइन और भी ज्यादा लम्बी हो चुकी थी। जैसे तैसे साढे तीनं बजे और काली माता के दर्शन हुए। प्रसाद भी मिला। काली मन्दिर परिसर में बाहर की ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग के मन्दिर बने हुए है। इनमें से एक मन्दिर में दर्शन किए। मन्दिर के पीछे ही गंगा बह रही है। गंगा के किनारे जाकर गंगाजल को माथे से लगाया। दशरथ जी और अनिल सामान वापस ले रहे थे। मैं और संतोष जी परिसर में ही गेट के पास बनी दुकान में कचौडी खाने पंहुच गए। पता चला कि यहां की कचौडी,पूडी जैसी होती है,जिसमें थोडा सा नाममात्र का मसाला भरा होता है,साथ में दाल देते हैं। दो प्लेट कचौडी मंगवाई तो पता चला कि प्रत्येक प्लेट में आठ पुडियां और दाल है। हमने सोचा कि हमारे साथी आएंगे तो आधा बंट जाएगा लेकिन वे तब आए जब पुडियां खत्म होने को थी। उनके लिए दो प्लेट कचौडी फिर मंगवाई। चाय पीने की इच्छा थी,लेकिन समय कम था। चार प्लेट कचौडी के अस्सी रुपए का भुगतान करके एक इ रिक्शा में सवार हुए,जिसने हमें बसस्टैण्ड पर छोडा। यहां से डेढ सौ रुपए में आटो रिक्शा लिया जिसनें हम चारों को वेलूड मठ छोडा।
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