Sunday, December 9, 2018

Gangotri Goumukh Yatra 1/भागीरथ का तपस्या स्थल और भागीरथी का उद्गम स्थल गंगौत्री

(यात्रा वृत्तान्त-28/ गंगौत्री गौमुख यात्रा 05 सितम्बर 2018 से)

सडक़ का सफर,दिल्ली से बचकर

पहला दिन
05 सितम्बर 2018 (बुधवार) रात 8.45
होटल राम पैलेस पावटा (जयपुर से 80 किमी आगे)


3 महीने और आठ दिन बाद,फिर से नई यात्रा पर। इस बार हमारा लक्ष्य है,गंगौत्री से उपर गौमुख ग्लैशियर और तपोवन तक ट्रैकिंग करने का। हमारी यह यात्रा आज सुबह साढे नौ बजे रतलाम से शुरु हुई। रतलाम से मेरे साथ दशरथ जी पाटीदार और प्रकाश राव पंवार,दशरथ जी की नई मारुति ब्रिजा से निकले और सैलाना से हमने अनिल मेहता को साथ लिया। रतलाम से छ: सौ किमी चल कर जयपुर से करीब अस्सी किमी आगे दिल्ली हाई वे के इस होटल राम पैलेस में हम रुके हैं। यह स्थान पावटा कहलाता है।

इस बार की यात्रा में कई उतार चढाव आए। पहले हम पांच लोग तैयार थे। हम चारों के अलावा मन्दसौर से आशुतोष नवाल भी हमारे साथ आने वाला था,लेकिन आखरी दिनों में वह इंकार करने लगा। अब हम चार रह गए थे। बीच में टोनी ने लेह जाने की बात रखी,लेकिन बाद में वह भी फिसल गया। आशुतोष का प्रोग्राम रद्द होने के बाद राजेश घोटीकर ने भी जाने की इच्छा जताई,लेकिन हमने यह सोचकर उसे रोका कि गाडी में चार लोग रहेंगे तो बडे आराम से जा पाएंगे,पांच लोगों में तकलीफ आएगी। राजेश को बुरा भी बहुत लगा। मुझे भी बुरा लगा,लेकिन आखिरकार हम चारों ही निकले।
सुबह साढे नौ पर इ खबरटुडे के आफिस से हमारी यात्रा शुरु हुई। सैलाना में अनिल बिलकुल तैयार था। अभी हमसैलाना के पैलेस तक पंहुचे थे कि अनिल को यादा आया कि वह चश्मा घर पर ही भूल आया है। गाडी रोकी। अनिल किसी की बाइक लेकर चश्मा लेने घर गया और चश्मा लेकर आया। इससे पहले हमने राजू की दुकान पर गाडी की विण्ड स्क्रीन पर प्रेस के स्टिकर चिपकवाए। सैलाना में जहां रुके थे,वहीं दशरथ जी के एक परिचित की दुकान थी,वहां चाय पीना पडी। आखिरकार साढे दस बजे सैलाना से चले तो पिपलौदा जावरा होकर करीब पौने बारह बजे मन्दसौर पंहुचे।मन्दसौर में गुरु एक्सप्रेस के आफिस पर आशुतोष,मनीष धभाई और अन्य मित्र लोग हमारा इन्तजार कर रहे थे। गुरु एक्सप्रेस के आफिस पर हार पहना कर हमारा स्वागत सत्कार किया गया। चाय पीकर वहां से निकले। अब रास्ते में किसी से मिलना जुलना नहीं था। निम्बाहेडा के जरा पहले एक पाटीदार ढाबे पर अनिल के घर से आए पराठे ,ढाबे की दाल सब्जी के साथ खाए। यहां से अब बिना रुके चले।
होटल राम पैलेस (रात 10.55)
हम भोजन करके आ चुके है। इस होटल में भोजन की व्यवस्था नहीं है। भोजन यहां से करीब तीन सौ मीटर दूर ढाबे पर मिलता है,जहां शानदार गेंहू की रोटियां,दाल और पालक की सब्जी का भोजन करके हम लौटे। अब सोने की तैयारी है।

दूसरा दिन
6 सितम्बर 2018 गुरुवार/रात 12.00
होटल दीप/चम्बा (उत्तराखण्ड)

आज का दिन शाम के बाद बडा भारी गुजरा। हमारी सुबह बढिया हुई थी। सुबह नौ बजे,नाश्ता करने उसी ढाबे पर पंहुचे थे,जहां रात को भोजन किया था। ढाबे पर पंहुचकर पूछा,तो उसने कहा कि नाश्ता नहीं है। भोजन तैयार है।  भोजन में हमने तवे की रोटी और बेसन गट्टे की सब्जी मंगवाई। मूलत: यह नाश्ता ही था,लेकिन हमने तो इसी को भोजन समझा। साढे नौ बजे भोजन करके निकले। हमारा लक्ष्य था हरिद्वार। हमने दिल्ली छोडकर रोहतक होते हुए हरिद्वार जाने की योजना बनाई थी। यह साठ किमी लम्बा रास्ता था,लेकिन हम दिल्ली से बचना चाहते थे।  हांलाकि यह रास्ता हमारे लिए भारी साबित हुआ। रोहतक वाले रास्ते में रोहतक से कुछ आगे तक तो कोई दिक्कत नहीं थी,लेकिन मुजफ्फर नगर से साठ किमी पहले भीतरी ग्रामीण टूटा फूटा रास्ता था। ये साठ किमी हमको बहुत भारी पडे। झज्जर होते हुए हम रोहतक से सीधे निकल गए। इस बार हमने रोहतक में पं.संदीप पाठक को फोन तक नहीं किया। रोहतक के बाहर से ही बायपास पकड कर हम निकल गए।
हम शाम करीब 5.25 पर हरिद्वार पंहुच गए। हरिद्वार से कुछ पहले आईजी संजय गुंजियाल सा.से बात हो गई। उन्होने कन्फर्म कर दिया कि हम गंगौत्री जा सकते है। यही नहीं उन्होने गंगौत्री और आगे भोजवासा में हमारे ठहरने का इंतजाम भी करवा दिया। आज की रात के लिए भी उन्होने पूछा था,लेकिन मैने कहा कि हम जहां पंहुचेंगे,वहां मैनेज कर लेंगे।
हम सात बजे ऋ षिकेश से निकले। अभी अंधेरा हुआ नहीं था। झुटपुटा हुआ था। हम चले,हमारी इच्छा थी कि पहाड पर थोडा और उपर चढ कर रुकेंगे। ऋ षिकेश तक एक तरह से मैदान ही है। पहाड इससे आगे है। हम पहाड पर पंहुच गए। रास्ते में बार बार बिजली चमकती हुई दिख रही थी। हरिद्वार और ऋ षिकेश की लाईटें  अब हमें नीचे नजर आने लगी थी। थोडी ही देर में नरेन्द्र नगर आया। रास्ता नरेन्द्र नगर के बाहर से ही आगे जा रहा था। हम आगे बढ गए। थोडा आगे जाकर एक जगह हम रास्ता भटक गए,लेकिन जल्दी ही पलट कर सही रास्ते पर आ गए।
नरेन्द्र नगर तक और इससे आगे का रास्ता बेहद खराब था। रास्ते में कई जगह लैण्ड स्लाईड के कारण सडक़ संकरी हो चुकी थी। कई जगह फोरलेन का काम चालू था। सडक़ पर कई जगह कीचड भी था। अब आठ बज चुके थे। हमने रात रुकने के लिए होटलों की तलाश शुरु कर दी। पुराने ड्राइवर सुभाष पाल को फोन लगाकर उससे पूछा। सुभाष ने बताया कि होटल अब सीधे चम्बा में ही मिलेगा।  बीच में फकोट,ब्रम्हखाल आदि स्थानो पर भी होटल मिल सकते है,लेकिन चम्बा बडी जगह है। हमने कोशिश की। बीच में कई जगहों पर रुक कर होटल ढूंढे,लेकिन रुकने की जगह कहीं नहीं मिली। रात 9.50 पर चम्बा पंहुचे। चम्बा के मुख्य चौराहे पर दो तीन होटल देखे। फिर एक दो दूसरे होटल भी देखे। आखिरकार रात दस बजे चम्बा के मुख्य चौराहे पर ही इस दीप होटल में बेहद महंगे बारह सौ रु.में दो कमरे लिए। होटल में आ गए तो पता चला कि भोजन बनाने वाले रेस्टोरेन्ट रात दस बजे बन्द हो जाते है। पौने ग्यारह बजे दशरथ जी एक रेस्टोरेन्ट से खाना पैक करवा कर लाए। यह रेस्टोरेन्ट भी बस बन्द ही होने वाला था। हमने रात साढे ग्यारह बजे भोजन किया। फिर थोडा टहलने निकले। मैं दशरथ जी और अनिल आसपास टहल कर आए। अब तक ठण्ड महसूस नहीं हो रही थी। अब सोने की तैयारी।
कल हमें गंगौत्री पंहुचना है।

तीसरा दिन
07 सितम्बर 2018 (शुक्रवार)
सुबह 7.30
होटल दीप चम्बा (उत्तराखण्ड)

कल का सफर,ऋ षिकेश के बाद बडा ही खतरनाक और परेशानी भरा हो गया था।
ऋषिकेश से पहाड शुरु होते ही जगह जगह लैण्ड स्लाइड की वजह से सडकें संकरी हो चुकी थी। सडक़ों पर कीचड की भरमार थी। हमें उम्मीद नहीं थी कि रात को रुकने की व्यवस्था में इतनी देर हो जाएगी। हम चाहते थे कि सात साढे सात तक चलें और फिर रुक जाए। लेकिन साढे सात के बाद रुकने की कोई ढंग की जगह ही नहीं मिली। और हमें हरिद्वार से 85 किमी चल कर यहां चम्बा तक आना पडा। चम्बा में भी महंगा होटल लेना पडा। हांलाकि ये होटल वाला अभी भाव कम कर देता,लेकिन हमें पहले ही भाव तार कर लेना चाहिए था। हमने गलती यह की,कि भाव पूछकर दूसरे होटल देखने चले गए। जब लौट कर आए,तो होटल वाला समझ चुका था कि हमें कोई और जगह नहीं मिली है,इसलिए वह भाव कम करने को राजी ही नहीं हुआ। आखिरकार हमें बारह सौ रुपए में दो कमरे लेना पडे।
दीप होटल में ही तल मंजिल पर रेस्टोरेन्ट है। रात को उशका भोजन खत्म हो गया था। रात को जब मैं पूछने गया था तो पता चला था कि होटलें रात दस बजे ही बन्द हो जाती है। हमने बगल के एक होटल से खाना पैक करके मंगवाया था। मैदे की तंदूरी रोटियां चीठी,रबर जैसी हो गई थी। कोई भी ठीक से भोजन नहीं कर पाया। बहरहाल सोते सोते रात की बारह बज गई थी।
गंगौत्री यहां से 206 किमी दूर है। शाम तक हम गंगौत्री पंहुच जाएंगे।
7 सितम्बर 2018 (रात 10.45)
होटल शिव पैलेस,गंगौैत्री धाम

हम शाम करीब साढे छ: बजे गंगौत्री पंहुच गए थे। यहां आते ही स्थानीय पुलिस से सम्पर्क किया। आईजी गुंजियाल सा.की वजह से यहां पहले ही संदेश आया हुआ था। चौकी के सारे कर्मचारी सतर्क हो गए। हमारे ठहरने की व्यवस्था इस होटल में की गई थी। हम होटल में आ चुके है। सुबह ट्रेकिंग के लिए रवाना होना है। अब दिन भर की कहानी...।
सुबह 9.00 बजे
चम्बा में होटल दीप के कमरों से तैयार होकर निकले। सवा नौ हो चुके थे। इसी होटल में नीचे रेस्टोरेन्ट था। आलू पराठे,सब्जी का नाश्ता किया। पौने दस बजे होटल से रवाना हुए। चम्बा से करीबबीस किमी आगे निकल गए,अचानक दशरथ जी को लगा कि हम गलत रास्ते पर हैं। एक पुलिस वाले से पूछा तो उसने बताया कि गंगौत्री का रास्ता पीछे छूट गया है। पलट कर लौटे तो फिर से 20 रास्ता पूछा। पता चला चम्बा से एक किमी आगे बढकर रास्ता पलटता है। अब फिर से चम्बा से चले। गंगौत्री का मोड नजर आया। इसी मोड से गंगौत्री के सही रास्ते पर चले। यहां से उत्तर काशी एक सौ दस किमी था और गंगौत्री दो सौ छ: किमी। रास्ता बढिया था। बीच में दो तीन स्थानों पर लैण्ड स्लाइडिंग नजर आई। हम पहाडी रास्तों पर सर्पिली सडक़ पर चलते हुए करीब ढाई बजे उत्तर काशी पंहुच गए। उत्तर काशी में बिना रुके आगे बढे। उत्तर काशी से करीब दस किमी आगे एक पैट्रोल पंप नजर आया,जहां लिखा हुआ था कि इसके आगे पैट्रोल पंप नहीं है। यहीं दशरथ जी ने गाडी में डीजल डलवाया। मैने थोडा सा आगे एक दुकान देखी जहां चाय मैगी आदि उपलब्ध थे। सवा तीन बजे यहां रुके । दो प्लैट मैगी बनवाई। प्रकाश व अनिल ने मैगी खाने से इंकार कर दिया। हम यहां से आगे बढे। आईजी गुंजियाल सा.का मैसेज आ चुका था कि गंगौत्री और आगे भोजवासा में रुकने की व्यवस्था हो चुकी है। गंगौत्री के लिए हर्षील एस ओ को बताया गया था। हम चलते रहे। हर्षील से करीब बीस किमी पहले लैण्ड स्लाइडिंग हुई थी। यहां रास्ता साफ किया जा रहा था। यहां करीब आधा घण्टा रुकना पडा। हर्षील मुख्य रास्ते से कुछ हटकर था। हम सीधे गंगौत्री के लिए बढ गए। रास्ता ठीक था। एक तरफ पहाड,दूसरी तरफ गहराई में भागीरथी नदी। सर्पिले रास्तों पर आगे बढे। अब सेवफल के बगीचे नजर आने लगे थे। पेडों पर सेवफल लदे हुए। सडक़ किनारे सेवफल बेचने वाले बैठे हुए थे। एक जगह रुक कर सेवफल खरीदे और सेवफल खाते हुए आगे बढे।
हमारा सफर शाम करीब साढे छ: बजे गंगौत्री धाम पर आकर खत्म हुआ। अभी तक हम गरम इलाके में थे। यहां ठण्ड है। आते ही पुलिस चौकी ढूंढी। चौकी पर हमारे आने की सूचना पहले से थी। हमारे रुकने की और आगे की व्यवस्था पहले से तैयार थी। होटल के कमरों में आकर सामान टिकाया और ंगगौत्री मन्दिर के दर्शन के लिए चल पडे।
मंदिर में दर्शन किए। पास में भागीरथी नदी जबर्दस्त तूफानी वेल से बह रही है। इसके घाट पर खडे होने में भी डर लगता है। घाट पर पंहुचे और फोटो लिए। भागीरथी का शोर इतना तेज है कि आपस में बात करने के लिए चिल्लाना पडता है। दर्शन करके होटल पर लौटे,भोजन किया। इस वक्त रात के सवा ग्यारह बज रहे है। अनिल खर्राटे भर रहा है।घर पर आई और वैदेही से बात हो गई है। प्रकाश जी और दशरथ जी पास के कमरे में सौ रहे है।
सुबह आठ बजे तैयार होने का निर्णय किया है। तैयार होकर गौमुख के लिए प्रस्थान करेंंगे।
चित्तौडगढ,भीलवाडा होते हुए हम करीब पांच बजे के आसपास अजमेर के नजदीक पंहुच चुके थे। अजमेर से पहले एक होटल पर चाय पी। फिर चले तो सीधे जयपुर पार कर दिल्ली हाई वे पर पौने नौ बजे इस होटल पर आ पंहुचे। हम जयपुर से अस्सी किमी आगे आ चुके थे।















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