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8 सितम्बर 2018 शनिवार/ शाम पांच बजे
जीएमवीएन गेस्ट हाउस,भोजवासा (गौमुख मार्ग)
चौदह किमी का बेहद कठिनाईभरा ट्रैक पूरा करके हम शाम करीब साढे चार बजे भोजवासा पंहुचे। सभी की सभी की हालत बेहद खराब हो चुकी है। इस वक्त सभी लोग जीएमवीएन(गढवाल मण्डल विकास निगम) के रेस्ट हाउस में बिस्तरों के हवाले है। अभी अभी गर्मागर्म चाय पी है। सभी की हालत ऐसी है कि कोई भी बिस्तर से हिलना तक नहीं चाहता है।
आज के दिन की शुरुआत ट्रेकिंग की तैयारी से हुई। हमने आठ बजे निकलने का तय किया था। लेकिन हमें ट्रैकिंग शुरु करते करते दस बज गए। पुलिस वालों ने दो पोर्टर भेज दिए थे। इनके नाम नवीन और टेकराज है। दोनो ही नेपाली है। हमारे कुल चार बैग दोनो पोर्टरों ने उठा लिए। ठीक दस बजे हम होटल से निकले। गंगौत्री से निकलते ही एकदम खडी चढाई थी,लेकिन यह ज्यादा लम्बी नहीं थी।
करीब दो मिकी आगे कनखू नामक स्थान पर फारेस्ट विभाग का चैकपोस्ट है। हम करीब आधे घण्टे में कनखू पंहुच गए थे। लुधियाना का एक बन्दा आदित्य भी गौमुख जाना चाहता था,लेकिन वह अकेला था,इसलिए उसे परमिट नहीं दिया जा रहा था। वह भी हमारे साथ हो गया था। कनखू तो हम आधे ही घण्टे में पंहुच गए थे। कनखू पोस्ट पर पुलिस द्वारा हमारे लिए मैसेज भेज दिया गया था इसलिए हमें कोई औपचारिकता नहीं करना पडी। वैसे यह क्षेत्र गौमुख अभयारण्य घोषित है,इसलिए यहां प्रत्येक व्यक्ति को फारेस्ट विभाग से परमिट लेना पडता है। एक दिन में अधिकतम कुल डेढ सौ व्यक्तियों को ही परमिट दिया जाता है। हमने पता किया तो मालूम चला कि एक दिन में पूरे ढेढ सौ परमिट जारी होने की घटना बरसों में कभी हुई होगी। बहरहाल यहां कुछ देर रुके।
कनखू से चीडबासा सात किमी है। चीड बासा में एक दुकान है,जहां चाय नाश्ता आदि मिलता है। चीडबासा तक का ट्रेक भी आसान नहीं था। बीच बीच में रास्ता बना हुआ था,तो कहीं लैण्ड स्लाईड के कारण रास्ते बेहद खतरनाक हो चुके थे। इस रास्ते में हमारे दाईं ओर सौंकडों फीट नीचे भागीरथी पूरे वेग के साथ बह रही थी। रास्ता कहीं कहीं मात्र एक डेढ फीट ही चौडा है। जरा सा पैर चूका तो आपकी हड्डियों तक का पता नहीं लग सकता।
इस बार की ट्रैकिंग मेरे लिए कुछ ज्यादा ही चुनौती भरी है। सब कुछ ठीक चल रहा था,लेकिन राखी से एक ही दिन पहले २५ अगस्त को घूमने के लिए केदारेश्वर चले गए थे। बस उसी दिन गडबड हो गई। बाएं घुटने में दर्द शुरु हो गया था। यह दर्द खत्म ही नहीं हो रहा था। अब तक स्थिति ठीक नहीं हुई है। इधर पिछले तीन दिनों के कार के सफर से अनिल की पीठ और पसलियों में दर्द होने लगा है। बाकी दोनो दशरथ जी और प्रकाश जी इस वक्त तक ठीक है।
घुटने का दर्द होते हुए भी मैं ट्रेकिंग पर चल ही पडा। कनखू से चीडबासा के रास्ते में दो तीन जगहों पर तेज बहाव वाले नालों को पार करने के लिए बल्लियों के पुल बनाए गए है। तीन सीधी बल्लियों पर लकडी के डण्डे बांध कर पुल बनाए गए है। इन पुलों के नीचे से खतरनाक शोर करता हुआ तेज बहाव का पानी नजर आता है। इन पुलों को पार करने में एक बार तो हिम्मत साथ छोड देती है। लकडियों के इस पुल से कहीं गलती से पैर फिसल गया तो उस व्यक्ति को खोजा नहीं जा सकता। तेज बहाव का पानी उसे,भागीरथी के प्रचण्ड वेग में कहां ले जाएगा,कोई नहीं जान सकता। खैर राम राम करते हुए हमने इन पुलों को पार किया।
ठीक डेढ बजे हम चीडबासा पंहुच गए। इस क्षेत्र में चीड के कई पेड है,शायद इसीलिए इसे चीडबासा कहा जाता है। चीडबासा की दुकान पर यात्रियों की सुविधा के लिए लेटने की भी व्यवस्था है। हम वहां पंहुचे और हममें से प्रत्येक व्यक्ति वहां लेट गया। पांच दस मिनट कमर सीधी की। फिर यहां आलू का एक पराठा बनवया जो मैने और दशरथ जी ने आधा आधा खाया। प्रकाश जी ने मीठा दूध पीेने की इच्छा जताई और बोटल वाला मीठा दूध पिया। फिर हमने चाय पी। करीब आधे घण्टे यहां थकान उतारने के बाद हम आगे बढ गए।
यहां से भोजबासा पांच किमी दूर है। हमारा अंदाजा था कि हम चार बजे तक भोजबासा पंहुच जाएंगे। चीड़बासा तक पंहुचते पंहुचते ही आक्सिजन का स्तर काफी कम हो चुका था। आक्सिजन का स्तर तो गंगौत्री में भी कम है,लेकिन जैसे जैसे हम उपर चढ रहे थे आक्सिजन और भी कम होती जा रही थी। एक तो पहाड की खडी चढाई,उपर से आक्सिजन की कमी। शरीर की ताकत तेजी से कम होने लगती है। आगे पांच किमी और उपर चढना है। आक्सिजन और कम होने वाली है। फिर भी चूंकि कम आक्सिजन में ट्रैकिंग का पूर्व अनुभव हम चारों को ही है,इसलिए वैसे तो कोई समस्या नहीं थी,लेकिन अब मेरे पैर जवाब देने लगे थे। कमर में अकडन आने लगी थी। लेकिन अब कोई चारा नहीं था। भोजबासा तक तो पंहुचना ही था। करीब डेढ घण्टे चलते रहे। रास्ते में कई स्थानों पर लैण्ड स्लाईडिंग वाले पहाड है। वहां रास्ता भी बेहद संकरा है। पहाड की तरफ देखों तो लगता है कि बडे बडे पत्थर बस लुढकने ही वाले है। इन स्थानों को तेजी से पार करना ही अच्छा होता है। चीडबासा से भोजबासा के बीच में भी बल्लियों के बने दो खतरनाक पुल है,जिन्हे हमने पार किया। हम भागीरथी नदी के साथ साथ चलते रहे।
चलते चलते साढे तीन बज गए थे,कि अचानक हलकी बूंदाबांदी शुरु हो गई। अब तो रुक कर सुस्ताने का भी समय नहीं था। करीब पैंतालिस मिनट तक लगातार चलते रहे। पहाडी रास्ता पहले तो कुछ ठीक भी था,लेकिन अब बडे बडे पत्थरों पर चलना था। पत्थरों पर चढ उतर कर हम आगे बढते रहे।
कुछ आगे बढने पर करीब सवा चार बजे सामने नीचे की ओर भोजबासा नजर आने लगा। भोजबासा दिखाई देते ही राहत सी मिली। लगा कि बस कष्टों का अंत अब जल्दी ही आने वाला है।
यहां भोजबासा में एक दो आश्रम है,जहां ायत्रियों के रुकने व भोजन की सशुल्क व्यवस्था है। फारेस्ट का रेस्ट हाउस है। जीएमवीएन का रेस्ट हाउस भी है। यहां वायरलैस से हमारे आने की सूचना थी। स्थानीय पुलिसकर्मियों ने बताया कि वे हमारी व्यवस्था आश्रम में करवा देंगे,क्योंकि वहां उनके लिए निशुल्क व्यवस्था हो जाएगी,लेकिन हमने जीएमवीएन की सशुल्क व्यवस्था को चुना क्योकि हम पूरा आराम चाहते थे।
आखिरकार हम जीएमवीएन रेस्टहाउस में आ गए। यहां डोरमैट्रियां बनी हुई है। हमारे सिवाय यात्री अधिक नहीं है। हमारे साथ आया आदित्य तो रुकने के लिए सामने के टेण्ट में चला गया। हम लोग यहां आकर बिस्तरों पर पडे हैं। जरा भी हिलने डुलने का मन नहीं हो रहा है। आरएच वाले को भोजन का आर्डर दे दिया है। सुबह सात बजे यहां से निकल कर गौमुख और संभव हुआ तो तपोवन तक जाने की इच्छा है।
यहां कडाके की ठण्ड है। इस वक्त शाम के 5.50 बजे है। कमरे में भी हम लोग गरम कपडे पहन चुके है।
भोजबासा ( जीएमवीएन रेस्ट हाउस)
रात 8.30
हम लोग भोजन कर चुके हैं। बाहर जबर्दस्त ठण्ड है। इनर,जर्किन के साथ खडे रहने के बावजूद ठिठुरन भरा रही है। बाहर घुप्प अंधेरा है। यहां लाईट भी नहीं है। मैं अपनी हेडलाईट
की रोशनी में डायरी लिख रहा हूं। भोजन में हमने लौकी की सब्जी,दाल रोटी और चावल खाए थे। अब सीधे सोने की तैयारी है। सुबह जल्दी उठना है। जल्दी निकलना है। सुबह साढे चार पर उठने की योजना है।
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8 सितम्बर 2018 शनिवार/ शाम पांच बजे
जीएमवीएन गेस्ट हाउस,भोजवासा (गौमुख मार्ग)
चौदह किमी का बेहद कठिनाईभरा ट्रैक पूरा करके हम शाम करीब साढे चार बजे भोजवासा पंहुचे। सभी की सभी की हालत बेहद खराब हो चुकी है। इस वक्त सभी लोग जीएमवीएन(गढवाल मण्डल विकास निगम) के रेस्ट हाउस में बिस्तरों के हवाले है। अभी अभी गर्मागर्म चाय पी है। सभी की हालत ऐसी है कि कोई भी बिस्तर से हिलना तक नहीं चाहता है।
करीब दो मिकी आगे कनखू नामक स्थान पर फारेस्ट विभाग का चैकपोस्ट है। हम करीब आधे घण्टे में कनखू पंहुच गए थे। लुधियाना का एक बन्दा आदित्य भी गौमुख जाना चाहता था,लेकिन वह अकेला था,इसलिए उसे परमिट नहीं दिया जा रहा था। वह भी हमारे साथ हो गया था। कनखू तो हम आधे ही घण्टे में पंहुच गए थे। कनखू पोस्ट पर पुलिस द्वारा हमारे लिए मैसेज भेज दिया गया था इसलिए हमें कोई औपचारिकता नहीं करना पडी। वैसे यह क्षेत्र गौमुख अभयारण्य घोषित है,इसलिए यहां प्रत्येक व्यक्ति को फारेस्ट विभाग से परमिट लेना पडता है। एक दिन में अधिकतम कुल डेढ सौ व्यक्तियों को ही परमिट दिया जाता है। हमने पता किया तो मालूम चला कि एक दिन में पूरे ढेढ सौ परमिट जारी होने की घटना बरसों में कभी हुई होगी। बहरहाल यहां कुछ देर रुके।
इस बार की ट्रैकिंग मेरे लिए कुछ ज्यादा ही चुनौती भरी है। सब कुछ ठीक चल रहा था,लेकिन राखी से एक ही दिन पहले २५ अगस्त को घूमने के लिए केदारेश्वर चले गए थे। बस उसी दिन गडबड हो गई। बाएं घुटने में दर्द शुरु हो गया था। यह दर्द खत्म ही नहीं हो रहा था। अब तक स्थिति ठीक नहीं हुई है। इधर पिछले तीन दिनों के कार के सफर से अनिल की पीठ और पसलियों में दर्द होने लगा है। बाकी दोनो दशरथ जी और प्रकाश जी इस वक्त तक ठीक है।
घुटने का दर्द होते हुए भी मैं ट्रेकिंग पर चल ही पडा। कनखू से चीडबासा के रास्ते में दो तीन जगहों पर तेज बहाव वाले नालों को पार करने के लिए बल्लियों के पुल बनाए गए है। तीन सीधी बल्लियों पर लकडी के डण्डे बांध कर पुल बनाए गए है। इन पुलों के नीचे से खतरनाक शोर करता हुआ तेज बहाव का पानी नजर आता है। इन पुलों को पार करने में एक बार तो हिम्मत साथ छोड देती है। लकडियों के इस पुल से कहीं गलती से पैर फिसल गया तो उस व्यक्ति को खोजा नहीं जा सकता। तेज बहाव का पानी उसे,भागीरथी के प्रचण्ड वेग में कहां ले जाएगा,कोई नहीं जान सकता। खैर राम राम करते हुए हमने इन पुलों को पार किया।
ठीक डेढ बजे हम चीडबासा पंहुच गए। इस क्षेत्र में चीड के कई पेड है,शायद इसीलिए इसे चीडबासा कहा जाता है। चीडबासा की दुकान पर यात्रियों की सुविधा के लिए लेटने की भी व्यवस्था है। हम वहां पंहुचे और हममें से प्रत्येक व्यक्ति वहां लेट गया। पांच दस मिनट कमर सीधी की। फिर यहां आलू का एक पराठा बनवया जो मैने और दशरथ जी ने आधा आधा खाया। प्रकाश जी ने मीठा दूध पीेने की इच्छा जताई और बोटल वाला मीठा दूध पिया। फिर हमने चाय पी। करीब आधे घण्टे यहां थकान उतारने के बाद हम आगे बढ गए।
यहां से भोजबासा पांच किमी दूर है। हमारा अंदाजा था कि हम चार बजे तक भोजबासा पंहुच जाएंगे। चीड़बासा तक पंहुचते पंहुचते ही आक्सिजन का स्तर काफी कम हो चुका था। आक्सिजन का स्तर तो गंगौत्री में भी कम है,लेकिन जैसे जैसे हम उपर चढ रहे थे आक्सिजन और भी कम होती जा रही थी। एक तो पहाड की खडी चढाई,उपर से आक्सिजन की कमी। शरीर की ताकत तेजी से कम होने लगती है। आगे पांच किमी और उपर चढना है। आक्सिजन और कम होने वाली है। फिर भी चूंकि कम आक्सिजन में ट्रैकिंग का पूर्व अनुभव हम चारों को ही है,इसलिए वैसे तो कोई समस्या नहीं थी,लेकिन अब मेरे पैर जवाब देने लगे थे। कमर में अकडन आने लगी थी। लेकिन अब कोई चारा नहीं था। भोजबासा तक तो पंहुचना ही था। करीब डेढ घण्टे चलते रहे। रास्ते में कई स्थानों पर लैण्ड स्लाईडिंग वाले पहाड है। वहां रास्ता भी बेहद संकरा है। पहाड की तरफ देखों तो लगता है कि बडे बडे पत्थर बस लुढकने ही वाले है। इन स्थानों को तेजी से पार करना ही अच्छा होता है। चीडबासा से भोजबासा के बीच में भी बल्लियों के बने दो खतरनाक पुल है,जिन्हे हमने पार किया। हम भागीरथी नदी के साथ साथ चलते रहे।
चलते चलते साढे तीन बज गए थे,कि अचानक हलकी बूंदाबांदी शुरु हो गई। अब तो रुक कर सुस्ताने का भी समय नहीं था। करीब पैंतालिस मिनट तक लगातार चलते रहे। पहाडी रास्ता पहले तो कुछ ठीक भी था,लेकिन अब बडे बडे पत्थरों पर चलना था। पत्थरों पर चढ उतर कर हम आगे बढते रहे।
कुछ आगे बढने पर करीब सवा चार बजे सामने नीचे की ओर भोजबासा नजर आने लगा। भोजबासा दिखाई देते ही राहत सी मिली। लगा कि बस कष्टों का अंत अब जल्दी ही आने वाला है।
यहां भोजबासा में एक दो आश्रम है,जहां ायत्रियों के रुकने व भोजन की सशुल्क व्यवस्था है। फारेस्ट का रेस्ट हाउस है। जीएमवीएन का रेस्ट हाउस भी है। यहां वायरलैस से हमारे आने की सूचना थी। स्थानीय पुलिसकर्मियों ने बताया कि वे हमारी व्यवस्था आश्रम में करवा देंगे,क्योंकि वहां उनके लिए निशुल्क व्यवस्था हो जाएगी,लेकिन हमने जीएमवीएन की सशुल्क व्यवस्था को चुना क्योकि हम पूरा आराम चाहते थे।
आखिरकार हम जीएमवीएन रेस्टहाउस में आ गए। यहां डोरमैट्रियां बनी हुई है। हमारे सिवाय यात्री अधिक नहीं है। हमारे साथ आया आदित्य तो रुकने के लिए सामने के टेण्ट में चला गया। हम लोग यहां आकर बिस्तरों पर पडे हैं। जरा भी हिलने डुलने का मन नहीं हो रहा है। आरएच वाले को भोजन का आर्डर दे दिया है। सुबह सात बजे यहां से निकल कर गौमुख और संभव हुआ तो तपोवन तक जाने की इच्छा है।
यहां कडाके की ठण्ड है। इस वक्त शाम के 5.50 बजे है। कमरे में भी हम लोग गरम कपडे पहन चुके है।
भोजबासा ( जीएमवीएन रेस्ट हाउस)
रात 8.30
हम लोग भोजन कर चुके हैं। बाहर जबर्दस्त ठण्ड है। इनर,जर्किन के साथ खडे रहने के बावजूद ठिठुरन भरा रही है। बाहर घुप्प अंधेरा है। यहां लाईट भी नहीं है। मैं अपनी हेडलाईट
की रोशनी में डायरी लिख रहा हूं। भोजन में हमने लौकी की सब्जी,दाल रोटी और चावल खाए थे। अब सीधे सोने की तैयारी है। सुबह जल्दी उठना है। जल्दी निकलना है। सुबह साढे चार पर उठने की योजना है।
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वाह क्या बात है तुषार जी, आपने तो 20 मिनिट में अद्भुत आनंद से अभिभूत कर दिया।
ReplyDeletethanks
Deleteवाह क्या बात है तुषार जी, आपने तो 20 रोमांचक यात्रा करवाकर अदभुत आनंद से अभिभूत कर दिया। बधाई।
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