यात्रा वृत्तान्त-27/पंचगंगा का उद्गम-महाबलेश्वर
मुंबई-पूणे के सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल महाबलेश्वर की यात्रा पारिवारिक यात्रा थी,जो महाबलेश्वर के खास सीजन मई के महीने में की। यह यात्रा 22 मई से 28 मई तक की संक्षिप्त यात्रा थी,जिसमें मै,वैदेही और चिंतन के अलावा अभिभाषक मित्र प्रकाशराव पंवार,उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कीर्ति और बालिकाएं संस्कृति और प्रकृति शामिल थी। यह यात्रा रतलाम से मुंबई तक ट्रेन से और फिर मुंबई से महाबलेश्वर तक मारुति अर्टिगा से पूरी की थी।
24 मई 2018 गुरुवार शाम 4.30
होटल मधुमति,महाबलेश्वर
करीब चार हजार सात सौ फीट की उंचाई पर,यहां महाबलेश्वर में इस वक्त बेहतरीन सुकून देने वाली ठण्डी हवाएं चल रही है। मुंबई की परेशान कर देने वाली उमस का दूर दूर तक पता नहीं है। हम दोपहर तीन बजे यहां पंहुचे थे। हरी भरी पहाडियों पर बसे महाबलेश्वर के इस नए होटल में ट्रिपल बेड के दो रुम हमने दो-दो हजार रु.प्रतिदिन के किराये पर लिए है। हम शाम पौने चार बजे इन कमरों में आकर रुके।
अफजल खान की वधस्थली-प्रतापगढ
24 मई 2018 रात 11.30इस वक्त रात के साढे ग्यारह बज रहे है। हम महाबलेश्वर का बाजार घूम घाम कर कमरे में सोने के लिए आ चुके है। होटल मालिक श्री ढेबे ने बताया कि अगर आपको अच्छे से घूमना है तो सुबह सात बजे रवाना हो जाईएगा। इसके लिए हमें सुबह पांच बजे उठना होगा।
आज का दिन बढिया रहा। शाम को पौने चार बजे कमरे में आने के बाद होटल मालिक से चर्चा में पता चला कि आज के बजे समय में प्रतापगढ जाना ही सबसे ठीक रहेगा। मेरी बडी इच्छा थी प्रतापगढ देखने की। शिवाजी महाराज ने इसी किले से उतरकर अफजल खां का वध किया था।
हम पौने पांच पर निकले और साढे पांच तक प्रतापगढ की तलहटी में पंहुच गए। गाडी पार्क करने में काफी मशक्कत हुई,लेकिन आखिरकार अच्छी जगह मिल ही गई।
अब चले प्रतापगढ किले पर। अब तक पढी हुई सारी कहानियां आंखों में घूमने लगी। शिवाजी महाराज ने कैसे योजना बनाई होगी,कैसे वे किले से उतरकर जावली में अफजल खां से मिलने गए होंगे और कैसे उसे मारा होगा? किले पर चढने लगे। यह किला काफी कुछ ध्वस्त हो चुका है। पहला दरवाजा पार कर आगे बढे। प्रतापगढ की माची आ गई। मुख्य किला अभी और उपर है। माची पर भगवा ध्वज लहरा रहा था। माची पर उपर चढे। ढेर सारे फोटो लिए। इस माची का उपयोग जावली के जंगल में दूर दूर तक नजर रखने और शत्रु पर उपर से हमला करने के लिए होता था। इस माची से कई किलोमीटर दूर की हलचल भी नजर आ जाती है। अब माची से लौट कर मुख्य किले की तरफ बढे। मुख्य किला अब सिर्फ परकोटा ही बचा है। एक दो दरवाजे बचे है। किले के भीतर रिहाईश भी है। शिवाजी की कुलदेवी भवानी माता का मन्दिर यथावत है। मन्दिर के दर्शन कर आगे बढे। कुछ उपर चलने पर केदारेश्वर मन्दिर आया। यह स्वयंभू शिवलिंग किले के निर्माण के दौरान शिवाजी महाराज को लिा था और उन्होने तुरंत ही मन्दिर का निर्माण करवा कर प्राणप्रतिष्ठा की थी। अफजल खां से मिलने से पहले शिवाजी महाराज ने इसी केदारेश्वर मन्दिर पर रुद्राभिषेक किया था। फिर तुलजा भवानी के दर्शन किए और फिर निकले थे अफजल खां का हिसाब करने। इतिहास बताता है कि कैसे शिवाजी ने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए उस दैत्याकार अफजल खान का वध किया था और युध्द को जीता था।
फिर हम पंहुचे,शिवाजी की प्रतिमा स्थल पर। 1957 में जवाहरलाल नेहरु ने इसका उद्घाटन किया था। अश्वारुढ शिवाजी महाराज की विशालकाय प्रतिमा यहां स्थापित की गई है। आसपास में सुन्दर उद्यान बनाया गया है। किले के महल इत्यादि अब बचे नहीं है। शाम करीब सात बजे किले से उतरे। गाडी स्टार्ट की और करीब 8.10 पर महाबलेश्वर लौट आए। यहां सडक़ों पर जबर्दस्त भीड थी। बडी मुश्किल से इस भीड को चीर कर गाडी से होटल तक पंहुचे। रात सवा नौ बजे यहीं होटल के कमरे में भोजन किया। फिर घूमने निकले। सडक़ों पर दुकानों में भारी भीड। घूमते घामते रात करीब सवा ग्यारह बजे वापस लौटे। अब सोने का समय,लेकिन यात्रा है तो वर्णन लिखना भी जरुरी है। हमारी यह यात्रा 22मई को शुरु हुई थी।
22 मई 2018
यात्रा की शुरुआत शाम साढे छ: बजे घर से हुई थी। हमारी ट्रेन अवन्तिका एक्सप्रेस शाम 7.40 पर थी। घर से 6.45 पर निकले। हिमांशु जोशी,ताई के घर से कार और रोचन को लेकर निकला। 6.50 पर वह घर पंहुचा। हम यानी मैं,वैदेही और चिन्तन तैयार थे। ठीक सात बजे हम स्टेशन पर थे।
इस यात्रा में हमारे साथ अभिभाषक मित्र प्रकाश राव पंवार,उनकी पत्नी कीर्ति,दोनो बेटियां प्रकृति और संस्कृति भी साथ है। रतलाम से हम आठ लोग चले। रोचन बोरीवली में उतर जाएगी।
23 मई 2018
सुबह सात बजे प्रकाश का छोटा भाई आकाश हमें लेने पंहुच गया था। आकाश के मार्गदर्शन में हम 7 और चार अन्य कुल ग्यारह लोग मुंबई सेन्ट्रल से दो जगह लोकल ट्रेन बदलते हुए करीब पौने नौ बजे खारघर में सेक्टर 15 के घरकुल अपार्टमेन्ट में ग्यारहवें माले पर आकाश के फ्लैट में पंहुचे। स्नान आदि करके साढे ग्यारह बजे मै,वैदेही और चिन्तन औला कैब से विकास दादा के डोंबिवली इस्ट के नजदीक पलावा सिटी के लिए रवाना हुए। दोपहर करीब सवा बारह बजे विकास दादा के फ्लैट पर पंहुचे। यहां अभी सिर्फ नीता वहिनी है। विकास दादा नौकरी पर और कुमुद काकी नागपुर में है। घर पंहुचे और भोजन किया। अब हमें शाम तक रुकना था। विकास दादा का इन्तजार करना था। इस दौरान दो घण्टे नींद निकाली। सोनू के टीटू की स्वीटी नामक फिल्म देख डाली। गार्डन में वाकिंग कर पौने आठ बजे वापस लौट आए। लेकिन विकास दादा नहीं आया। वह रात साढे आठ बजे आया। मुंबई का ट्रैफिक जाम। विकास दादा के आने के दस मिनट बाद हम निकल पडे। पहले वडा पाव खाया,फिर अम्बल होटल में डोसा और कुट्टू पराठा खाया। फिर गए नैचुरल आईसक्रीम खाने। रात के दस बज गए थे। वहीं से औला कैब पकडी और रात पौने ग्यारह बजे खारघर में आकाश के घर पंहुच गए। सुबह सात बजे महाबलेश्वर के लिए निकलने की योजना बनाई।
24 मई 2018
योजना सुबह सात बजे निकलने की थी,लेकिन निकले साढे नौ पर। प्रकाश जी ड्राइविंग सीट पर सवार हुए। अभी आधा किलो मीटर ही चले थे कि एक संकरे मोड पर गाडी में स्क्रैच लग गया। खैर। मुंबई-पूना एक्सप्रेस वे पर गाडी चलाते हुए वहां से रवाना हुए। शानदार एक्सप्रेस हाईवे। जबर्दस्त ट्रैफिक। छ: लेन का रोड होने के बावजूद अत्यधिक ट्रैफिक की वजह से ट्रैफिक जाम की नौबत बनती रहती है।
दोपहर पौने दो बजे हम हाई वे से दाहीनी ओर महाबलेश्वर रोड के लिए मुडे। यहां नुक्कड के एक होटल में खालिस महाराष्ट्रीयन थाली का शानदार भोजन किया। यहां से महाबलेश्वर की दूरी मात्र 48 किमी है। अब पूरा रास्ता पहाडी रास्ता है। यहां से ड्राइविंग मैने सम्हाली और दोपहर ठीक 2.45 पर हम महाबलेश्वर आ गए। एक दलाल की मार्फत हम इस होटल में ठहरे हैं। कल सुबह सात बजे निकलने की इच्छा है। देखते है क्या होता है...?
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