Saturday, January 26, 2019

Mahabaleshwar Journey-2/

शिवाजी महाराज ने यहां किया था जीजा माता का तुलादान


25 मई 18 शुक्रवार (रात 11.15)
होटल मधुमति महाबलेश्वर

कल रात तय किया था कि सुबह 7 बजे निकल जाएंगे। मैं ठीक पांच बजे उठ गया। फ्रैश होकर सबको उठाया,लेकिन आखिरकार सुबह आठ बजे निकल पाए। होटल मालिक ढेबे ने समझाया था कि जल्दी जाओगे तो ही ठीक रहेगा,लेकिन हम एक घण्टा लेट हो चुके थे। तय किया कि पहले तो महाबलेश्वर महादेव के दर्शन करेंगे फिर नाश्ता करेंगे। निकल गए और महाबलेश्वर मन्दिर पंहुच गए।
वैसे तो कथा लाखों साल पुरानी है। नई कथा यह है कि यह मन्दिर आठ सौ वर्ष पहले बना था। शिवाजी महाराज ने इसी मन्दिर में जीजा माता का तुलादान किया था। फिर अतिबलेश्वर मन्दिर और फिर पंचगंगा मन्दिर के दर्शन किए। यहां एक स्थान से पांच नदियों(कृष्णा,वेण्णा,सरस्वती,कोयना और भागीरथी) का उदगम माना जाता है। इनमें सरस्वती और भागीरथी गुप्त रुप में है।
बहरहाल सारे मन्दिरों के दर्शनों के बाद अब भूख महसूस हो रही थी। मन्दिर के बाहर निकले । तीनों मन्दिरों के दर्शन के बाद वहीं के एक रेस्टोरेन्ट में मिसल पाव का नाश्ता किया। अब चले आर्थर सीट पाइन्ट,सावित्री पाइन्ट,इको पाइन्ट आदि देखने। आर्थर पाइन्ट से पहले सावित्री पाईन्ट आता है। यहां भारी भीड जमा थी। गाडी पार्क करने की जगह नहीं थी। यहीं से तीन किमी आगे आर्थर सीट पाइन्ट था। इसी आर्थर सीट पाइन्ट में कई सारे पाइन्ट समाहित है। इन दिनों यहां महाबलेश्वर में टूरिस्ट सीजन चल रहा है। हर कहीं भारी भीड जमा थी।

26 मई 2018 शनिवार (सुबह 7.15)
होटल मधुमति महाबलेश्वर

रात को डायरी लिख रहा था कि अचानक लाइट चली गई। लाइट जाते ही डायरी बन्द करना मजबूरी था। नींद तो हमला कर ही रही थी।
बहरहाल,कल जब मन्दिरो से नाश्ता करते चले तो सावित्री पाइन्ट पर भारी भीड लग चुकी थी। गाडी पार्क करने की जगह तक नहीं थी। संकरे पहाडी रास्तो पर दोनो तरफ गाडियां पार्क करने के बाद बीच में वाहन चलाने की जगह बेहद कम बचती है। वाहनों की जबर्दस्त भीड। आर्थर सीट यहां से तीन किमी आगे था। यहां जगह नहीं मिली तो हम आगे बढ गए। वाहनों की भीड में फंसते फंसाते आखिरकार आर्थर सीट पाइन्ट के बाहर गाडी पार्क करने की जगह मिल ही गई। बाकी के सारे लोग पहले ही उतर कर पैदल जा चुके थे। मैने गाडी पार्क की और यह पाइन्ट देखने चला। पता चला कई सारे पाइन्ट यहीं थे। इको पाइन्ट,मैल्कम पाइन्ट,टाइगर स्प्रिंग आदि। वास्तव में ये सारे पाइन्ट एक ही पहाडी के अलग अलग स्थानों से सामने की गहराईयों को देखने के स्थान है। कहीं दूर दूर तक पहाडी खाईयां नजर आती है,तो कहीं सामने गहराई में डैम,नदी,खेत गांव आदि दिखाई देते है। किसी अंग्रेज अधिकारी आर्थर के नाम पर इसका नाम रखा गया है। वो इस पाइन्ट पर बैठकर अपनी पत्नी व बच्चों को याद करता था।
ये सारे पाइन्ट घूमने तक मुझे मेरे दल का कोई व्यक्ति नहीं मिला। मैं लौटने लगा,पार्किंग के पास पहुंचने के पहले वैदेही और कीर्ति नजर आए। लेकिन प्रकाश और तीनो बच्चे नहीं मिले। काफी देर तक उनका इंतजार करने के बाद हम बाहर निकलने लगे। गाडी के पास पंहुचे,हमारे साथी पहले से वहां मौजूद थे।
यहां से वापसी भी एक बडी चुनौती थी। इंच इंच सरकती गाडियों की लम्बी कतारें। हम भी इसी कतार में चलते रहे। हमारी अगली मंजिल थी कैट्स पाइन्ट। इधर सबको भूख भी लग रही थी,लेकिन मैने कहां कि पहले कैट्स पाइन्ट देख लेते हैं फिर भोजन करेंगे। कैट्स पाइन्ट पंहुचे तो पता चला कि हाथी मत्था भी यहीं है। यहां की एक चट्टान साइड एंगल से हाथी के माथे जैसी नजर आती है। यहां कई सारे फोटो खींचे। यहीं इको पाइन्ट भी है,लेकिन शोरगुल  और पर्यटकों की भीड के कारण इको का असर नजर नहीं आया। ये पाइन्ट देखने के बाद अब महाबलेश्वर के सारे पाइन्ट्स हम देख चुके थे। रास्ते के एक होटल में रुक कर महंगा भोजन किया। हमारी योजना अब पंचगनी जाने की थी,ताकि वहां के पाइन्ट्स भी आज ही देख लें।
पंचगनी यहां से बीस किमी पूना की तरफ है। लौटते समय भी पंचगनी लगेगा ही। लेकिन फिर भी हम पंचगनी चल पडे। यहां सिर्फ दो पाइन्ट है। पारसी पाइन्ट। यह मुख्य सडक़ पर ही है। इस पाइन्ट से पहाड के नीचे बसे गांवों और खेतों के एरियल व्यू देखे जा सकते है।  यहां थोडा ही समय लगा। अब चले टेबल लैण्ड देखने। यह बढिया जगह है। काफी उंचाई पर जाकर एकदम समतल मैदान बने हुए है।  यह हिस्सा ऐसा लगता है,जैसे पहाडों के उपर चेबल सा रख दिया हो। शायद इसीलिए इसे टेबल लैण्ड कहते है। यहां घोडा और घोडा गाडी दौडाते है। एक ओर पाण्डव कालीन गुफाएं है। काफी दूरी तय करके मैं और प्रकाश यहां पहले पंहुच गए। दोनो महिलाएं और बच्चे  पीछे आ रहे थे। पहाड से काफी नीचे उतर कर  विशालकाय गुफाएं है। हम तो नीचे उतर कर गुफा देख आए। एक गुफा देखने के बाद जब हम लौटने लगते है तो रास्ते में सामने एक दूसरी गुफा टाइगर कैव का रास्ता नजर आता है। हम इस पर चल पडे। पहाडी जंगल में काफी देर चलने के बाद यह गुफा भी वैसी ही निकली जैसी कि पहले वाली गुफा थी। हम लौट कर पहाडी पर उपर चढ आए।  बाकी की टीम नजर नहीं आ रही थी। प्रकाश उन्हे देखने के लिए फिर गुफा के लिए नीचे उतरा,तो सभी मिल गए। पता चला कि चिन्तन के सिर पर एक बन्दर चढ गया था। थोडी देर चिन्तन के सिर पर तबला बजाने के बाद वह उतर गया। इसी बात का आनन्द लेते हुए हम लौटने लगे।












शाम के करीब पांच बजे थे। लौटते समय सडक़ किनारे एक निजी कंपनी द्वारा बनाए गए बच्चों के मनोरंजन स्थल पर रुके। चिन्तन  पेन्ट बाल नामक एक खेल खेलने की जिद पकडे हुए था। इसी चक्कर में हम यहां पंहुचे थे। मैने कहा था कि ज्यादा महंगा होगा तो नहीं करना। पता चला ढाई सौ रु.प्रति व्यक्ति चार्ज था। वैसे तो यह काफी महंगा था लेकिन मै राजी हो गया।टिकट लेने गए तो टिकट देने वाले ने ही चिन्तन की उम्र कम बताते हुए टिकट देने से इंकार कर दिया। अब चिंतन गो कार्टिंग की जिद पकडने लगा था। मोटे मोटे चार पहियों वाली मोटर साइकिलें चलाने के लिए एक छोटा सा ट्रैक बनाया गया था,जिसके तीन चक्कर लगाने के लिए तीन सौ रु. देना पडते है। इसी समय गुजरात के लडके लडकियों के एक ग्रुप ने पांच छ: मोटर साइकिलें ली और रेस करने लगे। जो लडका सबसे तेज चला रहा था,तीसरे चक्कर में उसकी मोटर साइकिल पलटी खा गई और उसे हाथ पैर में काफी चोटें आई। ये हादसा देखकर चिन्तन ने जिद छोड दी।
अब बारी थी वैक्स म्यूजियम देखने की। यहां बाहर मार्केट की उपरी मंजिल पर वैक्स म्यूजियम था। यहां कुल पैंतीस पुतले थे,जिन्हे देखने की कीमत सौ रुपए थी। सात सौ रु. चुका कर हम भीतर गए। स्वामी विवेकानन्द,भगतसिंह,सुभाष चन्द्र बोस के साथ यहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और शाहरुख सलमान रजनीकान्त भी थे। सारे लोगों ने कई सारे फोटो पुतलों के साथ लिए। यहां से निकलने के बाद महाबलेश्वर की ट्रिप लगभग पूरी हो चुकी थी। अब सिर्फ रात गुजारना थी। लैक में बोटिंग के लिए हमने अगले दिन सुबह का समय तय किया था।







कुल मिलाकर महाबलेश्वर की यात्रा पूरी हो चुकी थी। यहां का मौसम बिना शक शानदार था। पूरे दिन ठण्डी हवाएं चलती है। कमरों में एसी की जरुरत नही होती। झील में भरपूर पानी है। अच्छी दृश्यावलियां है। सबकुछ है,लेकिन बडी समस्या भीड की है। महाबलेश्वर अत्यधिक प्रसिध्द पर्यटन स्थल है। मुंबई,पूणे के नजदीक होने की वजह से यहां सीजन में जबर्दस्त भीड होती है। हम भी फुल सीजन में ही आए थे। यहां सबकुछ बेहद महंगा है। हमें होटल के कमरे दो-दो हजार में मिले। यही कमरे शनिवार रविवार को पांच पांच हजार के हो जाएंगे। हजारों पर्यटकों की हजारों गाडियां। सडक़ों पर कार चलाना किसी सजा से कम नहीं। पार्किंग ढूंढना भी बडी चुनौैती होती है। हर जगह भीड भडक्का। ठण्डक है लेकिन सुकून नहीं है। मुंबई जैसी दौड भाग यहां भी नजर आती है। शाम को झील पर इतनी भीड होती है कि पर्यटकों को बोटिंग के लिए लम्बा इंतजार करना पडता है। यहां पान मसाला के पाउच नहीं मिलते। इसकी बिक्री पर सख्ती से रोक है। ब्लैक में भी बडी मुश्किल से मिलते है। लेकिन इसके विपरित जुआ धडल्ले से चलता है। दुकानों पर खुले आम जुआ चलता है। पर्यटकों को खुलेआम लूटा जाता है। निश्चित रुप से पुलिस वाले इससे लाखों की उपरी कमाई करते होंगे। ये उपर तक बंटता होगा,वरना इस तरह खुले आम जुआ कैसे चलता।  दुकाने भी एक दो नहीं,ढेरों। नम्बर गेम सौ रु.के पांच शाट। नम्बर लगाओ,नम्बर लग गया तो दस गुना रकम मिलेगी। नम्बर किसी का नहीं लगता। खुली लूट चलती रहती है।










































































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