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मित्रों से मुलाकात के बाद वापसी का सफर
05 अक्टूबर 2020 सोमवार (दोपहर 2.00)
इ खबरटुडे आफिस रतलाम
मैैं बीती रात करीब एक बजे घर पंहुचा था। हमारी यात्रा का समापन समारोह रविवार को मन्दसौर में हुआ था। रतलाम से प्रकाशराव पंवार और संतोष त्रिपाठी मन्दसौर आ गए थे,जिन्होने मुझे और अनिल को छोडा था।
पिछले तीन चार दिनों का कार्यक्रम इतना टाइट था कि एक बार का पूरा घटनाक्रम लिखने का मौका ही नहीं मिल पाया था। इसीलिए बाद की यात्रा की कहानी आफिस में पूरी करना पड रही है।
बहरहाल 1 अक्टूबर की रात को हम हेमकुण्ड साहिब की यात्रा पूरी करके गोविन्दघाट आ चुके थे और जल्दी ही सौ गए थे। 2 अक्टूबर की सुबह छ: बजे निकलने की बात थी,लेकिन होटल से साढे छ: बजे निकल पाए। निकलते ही बगल के एक रेस्टोरेन्ट में आलू गोभी पनीर आदि के पराठे खाए। 1 अक्टूबर को पूरे दिन मैने तो भोजन किया ही नहीं था। सुबसुबह सवेरे जम कर नाश्ता ह सवेरे करने के बाद ठीक साढे सात पर हम गोविन्दघाट से निकल पडे।
गोविन्दघाट गुरुद्वारा मुख्य सडक़ से काफी नीचे उतर कर अलकनन्दाके किनारे बना हुआ है। यहां कुछ होटलें और दुकाने भी है। गुरुद्वारे से मुख्य सडक़ तक आने का कच्चा रास्ता कच्चा,संकरा और बेहद खतरनाक है। लेकिन दिन का वक्त था इसलिए हमने इसे आसानी से पार कर लिया। गाडी मनीष चला रहा था। आते समय भी पूरे वक्त गाडी उसी ने चलाई थी,लेकिन वह गोविन्दघाट पर दो दिन अच्छा आराम कर चुका था। गोविन्दघाट से देहरादून की दूरी तीन सौ बीस किमी से अधिक है। तीनसौ बीस किमी की दूरी वैसे सुनने में तो कम लगती है,लेकिन बात अगर पहाडी रास्तों की हो तो ये बेहद कठिन और थकाने वाली हो जाती है। गूगल मैप के हिसाब से इतनी दूरी तय करने में करीब बारह घण्टे का वक्त लगता है। रास्ते में भोजन आदि के लिए रुकने का समय अलग। फिर भी हम उम्मीद कर रहे थे कि हम सात साढे सात तक देहरादून पंहुच जाएंगे। इन दिनों उत्तराखण्ड में चार धाम परियोजना का काम जोरों पर है इसलिए रास्ते में जगह जगह पहाड तोडने का काम चल रहा है और इस वजह से बार बार ट्रैफिक जाम मिल रहा था।
इसके अलावा हरिद्वार से बद्रीनाथ के सीधे रास्ते को बन्द कर के हरिद्वार से चम्बा टिहरी होते हुए बद्रीनाथ जाना पड रहा है। जिससे करीब सौ किमी की दूरी भी बढ गई है।
गोविन्द घाट से निकले तो हमेंभी तीन चार जगह ट्रैफिक जाम में अटकना पडा। लेकिन आज मनीष गाडी तेजी से चला रहा था। हमने करीब डेढ बजे रुद्रप्रयाग को टच कर लिया। इसी दौरान जगजीत और गुंजियाल सर को मैसेज भी कर दिया कि हम छ: या सात बजे तक देहरादून पंहुच जाएंगे।
हम करीब 5.40 पर चम्बा पंहुच गए। हमें उम्मीद थी कि दो ढाई घण्टे में हम देहरादून में होंगे।जगजीत का मैसेज भी मिल गया था कि हमं देहरादून मेंआईपीएस पुलिस आफिसर मैस में रुकना है और वहीं हमारी मुलाकात होगी।
जगजीत ने चम्बा से देहरादून आने के लिए एक नया रास्ता बताया था। यह नया रास्ता चम्बा से सुरकण्डा माता होते हुए धनौल्टी के पास से था। इस रास्ते पर चलते हुए हम बिना मसूरी गए सीधे देहरादून पंहुच सकते थे। इस रास्ते से देहरादून की दूरी करीब 78 किमी थी। यह रास्ता छोटा था,लेकिन उतना ही परेशान करने वाला था। इस रास्ते पर ट्रैफिक भी बेहद कम था,लेकिन ये बेहद संकरा सिंगल रोड था। रात का अंधेरा भी जल्दी ही हो गया। अंधेरे में पहाड की ड्राइंविंग आसान नहींहोती। गाडी की गति अब दस-पन्द्रह किमी प्रति घण्टा की रह गई थी। मनीष बेहद धीमी गति से गाडी चला रहा था। लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था। मेरे हाथ पांव गाडी चलाने की इजाजत नहीं दे रहे थे। धीमी गति से चलती गाडी मेंगूगल मैप देहरादून पंहुचने का टाइम रात पौने दस का बता रहा था। हमेंकिसी भी हाल में देहरादून नौ के पहले पंहुच जाना चाहिए था। लेकिन अब कोई चारा नहीं था। इस दौरान जगजीत के दो-तीन बार फोन आ गए। अंधेरे संकरे रास्ते पर चलते हुए हम ठीक दस बजे देहरादून आईपीएस आफिसर मैस में पंहुच गए। आईजी संजय जी गुंजियाल और जगजीत जी उनियाल को हमारा काफी इंजतार करना पडा। हम लोगों ने जाते ही देरी के लिए क्षमायाचना की। फिर मुलाकात और बातों का सिलसिला आधी रात के बाद तक चलता रहा। पिछली मुलाकातों की यादें ताजा होती रही। आधी रात के बाद आईजी सर और जगजीत भाई बिदा हुए और हम छत से उतर कर नीचे कमरों में सोने पंहुचे। इरादा सुबह देर तक सोने का था।
3 अक्टूबर 2020
सुबह देर तक सोने का इरादा था लेकिन सुबह साढे आठ पर नींंद खुल गई। स्नानादि निपटा कर वहीं दही पराठे का शानदार नाश्ता किया और वहां से चल पडे। हमें यहां से ऋषिकेश जाना था,क्योंकि मनीष को गंगाजल लेकर जाना था। ऋषिकेश यहां से 59 किमी है। वहां जाकर गंगाजली भर कर निकले,तब तक दोपहर के दो बज चुके थे। ऋषिकेश से अब सीधे वापसी का सफर था। ऋषिकेश से चले तो दिल्ली के इस्टर्न पैरिफैरल अक्सप्रेस वे पर करीब सवा सौ किमी चल कर दिल्ली पार की और जयपुर से करीब 150 किमी पहले हाईवे पर ही एक ओयो होटल में रैन बसेरा किया।
4 अक्टूबर 2020
हाईवे के होटल लक्ष्य रेसिडेन्सी से सुबह नौ बजे निकल पडे। गूगल मैप पर रास्ता देखते हुए चले तो गूगल ने एक नए रास्ते पर पंहुचा दिया। वैसे जयपुर से अजमेर भीलवाडा,चित्तौड होते हुए मन्दसौर पंहुचते है,लेकिन गूगल मैप हमें जयपुर से कोटा वाले हाईवे पर ले गया,जहां टोंक,और बूंदू होते हुए बूंदी से स्टेट हाईवे पर पंहुचा दिया। इस स्टेट हाईवे से हम सिंगोली,रतनगढ के रास्ते पर चले। हांलाकि ये नेशनल हाईवे नहींथा,लेकिन गूगल का यह रास्ता छोटा था। रतनगढ मेंआशुतोष के एक परिचित ने वहां रोक लिया। करीब आधा घण्टा वहां लग गया। इसके बावजूद करीब 625 किमी की दूरी पार कर हम शाम सवा सात बजे मन्दसौर पंहुच गए। मन्दसौर मेंसम्राट की बेकरी पर समापन समारोल का शानदार आयोजन था। यह आयोजन भी आधी रात के बाद तक चलता रहा,लेकिन हम वहां से रात साढे दस पर निकल गए। मुझे और अनिल को लेने रतलाम से अभिभाषक मित्र प्रकाश राव पंवार और संतोष त्रिपाठी आए थे। साढे दस पर मन्दसौर से निकले। सैलाना मेंअनिल को छोडते हुए रतलाम आए। प्रकाश ने मुझे घर छोडा और इस तरह रात की डेढ बजे हमारी हेमकुण्ड यात्रा समाप्त हुई।
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