पीताम्बरा पीठ के दर्शन के साथ घर वापसी
03 सितम्बर 2021 शुक्रवार(सुबह 8.15)
होटल मस्कट इन,उन्नाव (उप्र)
कल लगातार चलते ही रहे थे। घर पंहुचने तक अब लगातार चलना ही है। लेकिन कल समय ज्यादा हो गया था,इसलिए अयोध्या के बारे में कम लिख पाया। अब अयोध्या की सूरत पूरी तरह बदल गई है। जैसी अयोध्या में हम थे,उसका अयोध्या का तो कहीं अता पता ही नहीं है। लखनऊ से अयोध्या का शानदार फोरलेन एनएचएआई का है। फैजाबाद को बायपास कर दिया गया है। हम रोजाना दो से तीन बार जानकीघाट से रामजन्मभूमि तक जाते थे,सारे रास्ते मालूम थे,लेकिन अब मुख्य सड़क थोडी सी पहचान में आ पाई।
श्रीराम जन्म भूमि क्षेत्र तो पूरा बदल गया है। इस परिसर के निर्माण के लिए काफी बडा क्षेत्र कवर किया गया है। कुछ ही सालों में अयोध्या अन्तर्राष्ट्रिय पर्यटन स्थल बन जाएगा।
लेकिन हम अयोध्या में मात्र दो सवा दो घण्टे ही रुके थे। पहले सोचा था कि चम्पतराय जी से मिलेंगे। लेकिन श्री राम जन्म भूमि क्षेत्र में गए तो फिर केवल हनुमानगढी जाने की इच्छा बची। वहां भीड तो थी,लेकिन 10-15 मिनट में दर्शन हो गए और फिर वहां से तत्काल निकल जाने की इच्छा होने लगी। कुछ ही देर में हम वहां से निकल भी पडे।
इससे पहले मैैं तीन बार अयोध्या गया हूं और हर बार कई कई दिन तक वहां रुका था। यह पहला मौका था जब महज दो घण्टे में अयोध्या से निकल गए।
4 सितम्बर 2021 शनिवार (सुबह 8.30)
होटल रेडस्टोन बारां (राजस्थान)
इस वक्त राजस्थान के बारां में हम यहां से मन्दसौर निकलने की तैयारी में है।यह यात्रा का आखरी दिन है। हम मन्दसौर से करीब तीन सौ किमी दूर है,जबकि रतलाम से 400 किमी। शाम तक रतलाम पंहुच जाएंगे।
कल उन्नाव से निकलने के बाद कानपुर के बाहर से निकलते निकलते करीब एक घण्टा लग गया। वहां से आगे बढकर एक होटल में आलू पराठे का नाश्ता किया। अब हमे शिवपुरी कोटा होते हुए जाना था। इस रास्ते में हम झांसी होते हुए म.प्र. में प्रवेश कर सकते थे। दूसरा रास्ता दतिया होकर जाने का था। दतिया में बगुलामुखी का सिध्द पीठ है। दोनो रास्ते लगभग बराबर है,बल्कि दतिया वाला रास्ता छोटा है। इसलिए दतिया होते हुए,पीताम्बरा माई के दर्शन करते हुए जाने का ही निर्णय लिया।
रास्ते में गाडी से चलते हुए घर पर वैदेही से बात की। वैदेही का स्वास्थ्य पिछले दो तीन दिन से खराब है। डेंगू की आशंका के चलते पहले उसका ब्लड टेस्ट कराने के लिए भूपेन्द्र श्रेष्ठ से बात की। ग्यारह बजे मलय घर पर पंहुचा हुआ था। मलय से बात करके वैदेही को डा.पाठक सा. को दिखाने को कहा। लेकिन वह दिखाने नहीं गई। उसने एजीथ्रोमाइसिन लेना शुरु किया था। उसका कहना था कि रिपोर्ट आने के बाद ही डाक्टर को दिखाएगी।
इसी दौरान लखनऊ के सब इन्स्पेक्टर की खोजबीन करते रहे। जहां हमें रोका गया था उस जगह की खोज गूगल अर्थ से की तो पता चला कि वह इंजीनियरिंग चौराहा था। वहां गुडम्बा थाने का बोर्ड नजर आया। गुडम्बा थाने का नम्बर लेकर वहां एसआई के बारे में पूछताछ की,लेकिन वहीं पंकज कुमार नाम का कोई एसआई नहीं था। उन्होने कहा कि विकास नगर थाने में हो सकता है। फिर विकास नगर थाने पर फोन लगाया,लेकिन वहां भी कोई पंकज कुमार नहीं था। उन्होने कहा मडिया थाने पर हो सकता है। यानी इंजीनियरिंग चौराहा एसी जगह थी,जहां कम से कम तीन थानों की सीमाएं मिलती है। फिर मडिया थाने फोन लगाया,तो वहां पंकज कुमार नामक का एसआई तो मिला,लेकिन फओन पर बात करने के दौरान वह कहने लगा कि वह तो आफिस वर्क करता है। फिर उसने फोन काट दिया। दोबारा जब उस थाने के एसएचओ और सीओ से बात की तो दोनो ने थाने में किसी पंकज कुमार के होने से ही इंकार कर दिया।एसएचओ ने कहा कि जानकी पुरम थाने में देखिए वहां कोई पंकज कुमार हो सकता है। जानकीपुरम थाने वालों ने भी इंकार कर दिया। हमे लगा कि शायद नाम में कुछ गडबड हुई होगी। लेकिन उस स्थान पर दो तारीख को किसकी ड्यूटी थी यह हम पता कर लेंगे और उसकी खबर लेंगे। पूरे रास्ते में मोबाइल पर इंटरनेट की मदद से उसी एसआई को खोजने में मैं व्यस्त रहा। लखनऊ एसरपी का नम्बर भी ट्राय किया,लेकिन वह नम्बर नो रिप्लाय होता रहा।
इसी बीच दोपहर करीब सवा दो बजे हम पीताम्बरा पीठ दतिया पंहुच गए। यहांकोई भीडभाड नहीं थी। फौरन दर्शन किए। यहां एक संग्रहालय भी है,जो तीन बजे खुलने वाला था और घडी इस वक्त 2.40 बता रही थी। बीस मिनट इंतजार किया,लेकिन तीन बजे भी संग्रहालय नहीं खुला। ट्र्स्ट वालों से भी पूछताछ की लेकिन किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया कि यह खुलेगा भी या नहीं।
हमने यहां से प्रसाद लिया और कोटा के लिए निकल पडे। शानदार फोरलेन,ट्रैफिक भी ना के बराबर। शाम सात बजे से हाईवे पर होटल की तलाश श्ुरु की। दतिया निकलने के बाद हमे रास्ते में ढाबा तक नजर नहीं आया था। गूगल सर्च से दिख रहा था कि होटल बारां में ही मिलेंगे। वह भी शहर की भीतर। बारां के भीतर पंहुचते पंहुचते 8 बज गए। बस स्टैण्ड पर कुछ होटल है। आखिरकार इनमें से इस रैड स्टोन को पसन्द किया। जहां ढाई हजार रु. में तीन एसी कमरे लिए।
होटल पंहुचकर फिर वैदेही से बात की। उसकी रिपोर्ट आ गई थी। उसे टाइफाइड हो गया है। वैदेही को कल डाक्टर सा. को दिखाने को कहा। भोजन करते कराते रात के बारह बज गए। फिर सोए।
4 सितम्बर शनिवार
आज की सुबह देर से हुई। मैं साढे सात पर उठा। इधर अनिल के घर से फोन आया कि उसके पिता जी बाथरुम जाते वक्त अचानक लडखडाने लगे। उनकी जुबान भी लडखडाने लगी। अनिल ने फोन पर ही एक लोकल डाक्टर को घर पंहुचकर उनका बीपी चैक करने को कहा। अंदाजा था कि उनका बीपी लो हुआ होगा। गनीमत यह रही कि कुछ देर बाद उनकी स्थिति सामान्य हो गई। इस वक्त लगभग सभी लोग तैयार हो गए हैं। अगले आधे पौने घण्टे में हम यहां से निकल पडेंगे।
यात्रा का अंतिम दिन है इसलिए यात्रा व्यय की चर्चा भी हुई। पूरी यात्रा का हिसाब रखने की जिम्मेदारी प्रकाश की है। प्रकाश ने बताया कि अब तक 85 हजार रु.खर्च हो गए है। मन्दसौर रतलाम पंहुचने तक अधिकतम दस हजार रु. और खर्च हो सकते है। इस तरह यह यात्रा एक लाख रु. में पूरी होगी। हमारा शुरुआती अनुमान 20 से 25 हजार रु. प्रति व्यक्ति के व्यय का था। हम अनुमान से कम खर्च में यात्रा करने में सपल रहे हैं।
सुबह 10.30
हम बारां से सुबह 1 बजे निकल पाए। आज आखरी दिन था इसलिए मेरी खुद की नींद देर से खुली। नहाते धोते साढे नौ हो गए। बाहर निकले। गाडी पर सामान बान्धाष गाडी के पिछले पहिये में हवा कम हो गई थी। सामने ही पैट्रोल पंप था। वहां हवा भरवाई। निकले तो कोटा हाईवे पर चले।अभी करीब तीन किमी चले थे कि आशुतोष ने कहा झालावाड होकर चलना है। इसलिए हाईवे से पलटे। फिर साढे तीन किमी पीछे जाकर झालावाड रोड पकडा। इस सड़क की हालत बेहद खराब थी। दो किमी चलने पर ही आशुतोष कहने लगा कि उसी रास्ते से चलना ठीक रहेगा। फिर पलटे और कोटा हाईवे पर आ गए। हाईवे पर पांच दस किमी ही चले थे कि राधाकृष्ण ढाबा नजर आ गया। तो यहां भोजन के लिए रुक गए।
इस वक्त भोजन का आर्डर देकर भोजन का इंतजार कर रहे है। इस यात्रा में हम अपने टार्गेट काफनी या पिण्डारी ग्लोसियर तो नहीं जा पाए। इस बार कुल ट्रेकिंग भी महज पन्द्रह सौलह किमी की ही हो पाई। लेकिन बागेश्वर के उपर दूरस्थ पहाडी इलाके की खतरनाक सडकों पर जीप सफारी का भरपूर आनन्द,तेज बारिश के बीच हमने लिया। धाकुडी की शानदार लोकेशन पर दिन गुजारा। पहाडों का आनन्द थोडा कम ले पाए फिर भी यह भरपूर था। इसके अलावा अयोध्या श्री राम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण को हमने देख लिया। इसकी बहुत ज्यादा उत्सुकता थी। हांलाकि वहां पंहुचकर कोई खास अनुभूति नहीं हुई,पता नहीं क्यो?कृष्ण जन्मभूमि पर बनी मस्जिद भी देखी और पीताम्बरा पीठ दतिया के दर्शन भी कर लिए।
इस यात्रा में करीब तीन हजार किमी से कुछ ज्यादा गाडी चलेगी। अब तक हम करीब छब्बीस सौ किमी चल चुके है। इस यात्रा में एक नया साथी पंकज साहू साथ में रहा,जो सबसे छोटा है और हमारे मित्र सम्राट का बेटा है।
इस यात्रा का रास्ता भी नया था और मित्रों के साथ पहली बार कुमाउं की पहाडियों पर घूमने का मौका मिला। उत्तराखण्ड के आईजी संजय गुंजियाल जी और जगजीत से बात तो हुई लेकिन मुलाकात का मौका नहीं लिा,क्योंकि वे हमसे बहुत दूर देहरादून में थे। केएमवीएन के मैनेजर गिरधर मण्डाल औ ्र ट्रेकिंग मैनेजर रमेश कपकोटी ने हमें बहुत सहयोग दिया,लेकिन उन दोनो से भी फोन पर ही बातें होती रही। मुलाकात नहीं हो पाई।
5 सितम्बर 2021 रविवार (रात 9.35)
इ खबरटुडे आफिस रतलाम
यात्रा का समापन शनिवार की रात साढे दस बजे घर पंहुचकर हुआ था। रतलाम से हमे लेने टोनी,नायडू,संतोष त्रिपाठी और किशोर मन्दसौर पंहुेचे थे। मन्दसौर में सम्राट की जग्गाखेडी स्थित बेकरी पर समापन समारोह आयोजित था। छ: हम थे,4 रतलाम से आए थे और 4-6 मन्दसौर के थे। इस तरह वहां बडा मजमा लग गया था।
अब बात वहां से जहां से डायरी लिखना छोडा था। हम राधाकृष्ण ढाबे पर भोजन का इंतजार कर रहे थे। वहीं से भोजन करके करीब बारह बजे निकले। अब सीधे सिंगोली,रतनगढ होकर मन्दसौर पंहुचना था। दूरी करीब 225 किमी की थी और पांच घण्टे का वक्त लगना था। गाडी नानस्टाप चलती रही। यात्रा पर जाते वक्त रतनगढ में संदीप जाट से मुलाकात हुई थी। आते वक्त उसका रतनगढ में ही भोजन करने का निमंत्रण था। लेकिन हमने इंकार किया और चाय पीकर जाने की बात कही। जाते वक्त रतनगढ के पान बन्धवा कर दिए थे। पान की बडी तारीफे की गई थी,इसलिए लौटते वक्त भी चाय के बाद एक एक पान खाने और एक एक बन्धवाने की बात तय हुई थी। संदीप जाट संघ के स्वयंसेवक है और पुलिस विभाग में रतनगढ थाने पर पदस्थ है। रतनगढ में चाय पीकर पान बन्धवाकर मन्दसौर के लिए चले। करीब सवा पांच बजे जग्गाखेडी सम्राट की फैक्ट्री पर पंहुच गए। टोनी और रतलाम के मित्र भी पंहुच गए थे। यहां मेल मुलाकातों और बातों का सिलसिला आठ बजे तक चला। मन्दसौर से रवाना हुए तो जावरा से पिपलौदा होते हुए सैलाना पंहुचे। अनिल को छोडा। फिर प्रकाश को अल्कापुरी में उसके घर उतारा। दशरथ जी ने मुझे साढे दस बजे घर पर उतारा और वे नगरा के लिए रवाना हो गए।
इस तरह हमारी पिण्डारी काफनी ग्लेसियर की अधूरी यात्रा धाकुडी टाप और चीलठा माई के दर्शनों के साथ साथ श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा,गोकुल वृन्दावन, मेहन्दीपुर बालाजी,श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या और पीताम्बरा माई दतिया के दर्शनों के साथ पूरी हुई।
समाप्त।
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