Thursday, May 12, 2022

काफनी पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा-6

 29 सालों के बाद अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि दर्शन


02 सितम्बर 2021 गुरुवार (सुबह 6.45)

होटल संजय पैलेस सीतापुर


कल सुबह डीनापानी के टीआरएच में सब्जी पुडी का नाश्ता करते हुए यह तय हुआ ति मुक्तेश्वर जाने की बजाय अयोध्या श्री रामजन्मभूमि के दर्शन करते हुए लौटा जाए। हांलाकि अयोध्या जाने में 500 किमी की यात्रा बढ रही थी। डीनापानी से अयोध्या लगभग 550 किमी दूर थी,और वहां से मन्दसौर या रतलाम 1000 किमी। इस तरह कुल दूरी 1500किमी हो रही थी,जबकि डीनापानी से सीधे रतलाम जाते तो यह दूरी 1000 किमी ही थी। लेकिन सारे लोग अयोध्या जाने को अड गए।

जब अयोध्या जाने का निर्णय हुआ तो यह भी तय हुआ कि मुक्तेश्वर को छोड दिया जाए। तो डीनापानी से सीधे काठगोदाम के लिए चल पडे। डीनापानी से काठगोदाम 95 किमी दूर था। डीनापानी से निकलते हुए हमें दस बज गए थे। काठगोदाम पंहुचने के दौरान एक जगह डीजल डलवाने रुके तो पता चला कि गाडी का पिछला पहिया पंचर हो गया है। पंचर ठीक करवाने में करीब एक घण्टा लग गया।  इस तरह हमे काठगोदाम पंहुचने में ही काफी देर हो गई।  हम करीब दो बजे काठगोदाम पंहुच पाए।  गूगल मैप की मदद से अयोध्या का रास्ता पकडा,तो हमे हलद्वानी भी नहीं जाना पडा। अयोध्या का यह रास्ता सीधे सितारगंज होते हुए सीतापुर तक आ  गया।


पूरा रास्ता टू लेन था। बीच बीच में बेहद खराब। लेकिन सितारगंज के बाद शानदार टू लेन आ गया। यह पूरा रास्ता एमडीआर (मेजर डिस्ट्रीक्ट रोड) वाला था। कोई टोल नहीं। लगातार चलते रहे। दोपहर करीब तीन बजे एक स्थान पर चाय पीने के लिए रुके थे,लेकिन फिर वहीं भोजन भी कर लिया।  भोजन के बाद आगे बढे। आगे करीब एक घण्टे तक खराब रास्ता था।  फिर सितारगंज के बाद शानदार रास्ता आया। इस वक्त करीब पांच बज चुके थे। अब सितारगंज से आगे बढे। यह रास्ता सितारपुर होते हुए लखनऊ का है। अब शानदार रास्ता था। इच्छा थी कि सात बजने के बाद कहीं होटल देखकर रुक जाएंगे।  लेकिन काठगोदाम से यहां तक ना तो कोई ठीक ढाबा दिखा और ना ही होटल। अयोध्या अब भी तीनसौ किमी दूर थी।  होटल देखते हुए चलते रहे।  करीब सौ किमी और चल लिए। सीतापुर पंहुच गए। शाम के सवा आठ बज चुके थे। सीतापुर से अयोध्या करीब दो सौ किमी है। सीतापुर जिला मुख्यालय है। यहां रेलवे स्टेशन भी है। यहां शहर में कई सारे होटल भी है। होटलों में कमरे देखते होचल तय करते करते रात के नौ बज गए। 


इस संजय पैलेस होटल में बारह सौ रु. प्रति कमरे के हिसाब से दो एसी कमरे मिले। इनमें अतिरिक्त बिस्तर लगवाकर सोने की व्यवस्था की। भोजन करते कराते रात के साढे ग्यारह बज गए और रात करीब साढे बारह बजे मैैं नीन्द के हवाले हुआ।  रात को डायरी लिख ही नहीं पाया।


इस वक्त सुबह के करीब सात बजे है। हम लोग उठ चुके है। पास के कमरे में दशरथ जी आशुतोष और पंकज है। उन्हे भी जगा दिया है। एक डेढ घण्टे में हम यहां से निकल जाएंगे।  अयोध्या पंहुचने में करीब चार घण्टे लगेंगे।  आज का दिन अयोध्या में गुजार कर या तो वहां से आगे बढ जाएंगे या फिर रात वहीं रुक कर कल आगे निकलेंगे।


02-03 सितम्बर 2021 गुरु-शुक्र रात 12.35

होटल मस्कट इन


कैलेण्डर के हिसाब से तारीख बदल चुकी है। लेकिन सोने जागने के के हिसाब से देखें तो तारीख 2 ही है,3 तारीख कल सुबह होगी।


हम इस वक्त उन्नाव (उप्र) के हाईवे के इस होटल मस्कट इन में रुके है। भोजन हो चुका है। सारे लोग सौ चुके है। सुबह आठ बजे यहां से निकलना है। इसलिए जल्दी उठना है। सभी को जगाने की जिम्मेदारी मेरी है। इसलिए मुझे और जल्दी साढे पांच या छ: बजे उठना है।


अब बात आज के दिन की। मैैं सुबह साढे पांच बजे उठ गया था। फ्रैश हुआ तब तक अनिल भी उठ गया था। दूसरे कमरे के तीन लोग अभी उठे नहीं थे। फिर उन्हे भी जगाया। हम लोग करीब नौ बजे सीतापुर से चले। यहां से अयोध्या की दूरी 4 घण्टे की थी। गूगल मैप हमारे अयोध्या पंहुचने का टाइम दोपहर एक बजे का बता रहा था। शानदार फोरलेन हाईïवे था। हम जल्दी ही करीब ग्यारह बजे लखनऊ शहर के बाहर पंहुच गए थे। लखनऊ महानगर है,इसलिए बाहरी सड़कों पर भी जबर्दस्त ट्रैफिक था। सीतापुर से गाडी प्रकाश चला रहा था। एक ट्रैफिक सिग्नल पर हमें लगा कि हम सिग्नल जम्प कर गए है। ट्रैफिक का एक सिपाही दौडता हुआ हमे रोकने भी आया लेकिन भीड अधिक होने की वजह से हम आगे निकल गए। उसी हाईवे पर कुछ दूर आगे एक चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के एक एसआई ने हमारी गाडी रुकवाई।  गाडी को चौराहे पर आगे जाकर रोका। एसआई -पंकज कुमार-ने हमे कहा कि आपकी गाडी के सारे कागजात ठीक है,केवल फिटनेस नहीं है और गाडी पर बम्पर लगा हुआ है। इसका साढे दस हजार का चालान बनेगा।  उसने अपने मोबाइल के एप में मुझे आनलाइन दिखाया कि फिटनेस एक्सपायर हो गई है। हम कुछ तनाव में आ गए। उसको समझाने की कोशिश करने लगे। लेकिन वह नहीं माना। उसने कहा कि आप तो आराम से जाइए,चालान आपके घर पर पंहुच जाएगा। उसने बताया कि बम्पर के खिलाफ तो यूपी में अभियान चल रहा है। हमने तो बम्पर के लिए ही रोका था,लेकिन फिटनेस नहीं है तो चालान तो काटना पडेगा। बडी जद्दोजहद के बाद डेढ हजार रु. की रिश्वत लेकर वह माना। 


इस चक्कर में हमारा आधा पौना घण्टा भी खराब हो गया। अब आगे बढे,तो सभी ने अपना अपना दिमाग लगाया कि प्राइवेट गाडी में फिटनेस की जरुरत ही नहीं होती। आशुतोष ने आरटीओ आफिस के किसी कर्मचारी को फोन मिलाया,तो मैने रतलाम आरटीओ को फोन लगाया। दशरथ जी ने भी किसी परिचित एजेन्ट को फोन लगाया। रतलाम आरटीओ ने निर्विवाद रुप से स्पष्ट किया कि प्राईवेट गाडी में फिटनेस नहीं लगती। हम समझ गए कि हम विद्वान लोगों को दो कौडी का सब इन्स्पेक्टर चूना लगा चुका है। उसका ठीक इलाज करने की योजना बनाते हुए हम आगे बढे। अयोध्या अब करीब चालीस किमी था,जब एक ढाबे पर रुककर हमने भोजन किया। शानदार भोजन था। एक बजे की बजाय हम लोग सवा दो बजे अयोध्या के बाहर पंहुचे। रास्ते भर कारसेवा और आन्दोलन की बातें होती रही। इस यात्रा के छ: लोगों में से हम चार कारसेवक थे। मै,अनिल आशुतोष और दशरथ जी।  अयोध्या के हाईवे पर ही गाइड बने लडके आ गए। एक गाइड तय किया जिसने डेढ सौ रु.मे ंपूरी अयोध्या घूमाने की बात कही। उसे साथ लिया। वह मोटर सायकिल से आगे आगे चल रहा था। बिना ट्रेफिक वाले रास्ते से वह हमें सरयू के घाट पर ले गया। कहने को तो ये सरयू का रामघाट था। यहां से मैने फेसबुक लाइव करके दादा को दिखाया। सबकुछ इतना बदला बदला था कि कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि हमने इसी अयोध्या में महीनों गुजारे है और रोज सरयू पर आकर स्नान भी किया है। वहां से गाइड हमें निर्माण कार्यशाला पर लेकर गया। यहां से यू ट्यूब लाइव किया और मलय और दादा को दिखाया।  आगे बढे गाइड हमें जानकी घाट बडा स्थान लेकर गया। ये वही स्थान था जहां कारसेवा के दिनों हम पूरा समय रुके थे। यहां के महन्त जनमेजय शरण हुआ करते थे। 


जिस जगह हम कई हफ्ते रुके थे,वह स्थान और इलाका इतना बदल चुका था कि पहचान में ही नहीं आ रहा था। मुझे अचानक याद आया कि पास में एक मन्दिर के द्वार पर हनुमान जी की बहुत बडी मूर्ति थी। पूछताछ की तो पता चला कि वह स्थान बगल में ही है। वह जगह देखी तब यकीन आया कि हम यहीं रुके थे। ये सबकुछ ऐसा था जैसे किसी को पिछला जन्म याद आ रहा हो। लेकिन तब भी जानकीघाट बडा स्थान भी पूरी तरह बदल चुका था। महन्त जी विश्राम कर रहे थे और हमारे पास भी ज्यादा समय नहीं था। यहां से आगे बढे। मैनरोड पर चलते हुए गाइड एक पार्किंग में ले गया। मेनरोड देखते ही याद आ गई। लेकिन पार्किंग की जगह से सारा नजारा बदला हुआ था। पार्किंग के पीछे से जन्मस्थान जाने का रास्ता था। गाइड उस रास्ते पर हमे ले गया। उसने कहा कि मोबाइल,घडी,चाबी कुछ भी भीतर अलाउ नहीं है। सब कुछ भीतर जाने से पहले जमा कराना पडेगा।जहां रोज दो दो बार जाया करते थे,वह रास्ता समझ में ही नहीं आया। कोई भी पुरानी चाज अपनी जगह नहीं थी। हम मेनरोड पर चलकर हल्का सा दाए मुडते थे। दाए मुडने वाली सडक सीधे हनुमान गढी को जाती थी। हनुमान गढी से दाई ओर आगे बढते थे तो रास्ते में कनक महल आता था। फिर आगे बढते थे,तब हाई ओर सीतारसोई थी,बाई ओर मानस भवन और सामने बाबरी ढांचा,जन्मस्थान मन्दिर। अब कुछ भी नहीं था। पार्किग से निकल कर पीछे की ओर गाइड हमे वहां तक ले गया,जहां से राम जन्मभूमि का रास्ता था।


बाहर ही एक दुकानवाले ने कहा मोबाइल जमा करा दो। यहां कई दुकानदारों ने प्राइवेट लाकर बना रखे है। हम सभी ने अपना सारा सामान लाकर में रखा। बहुत लम्बे रास्ते में तीन बार एयरपोर्ट जैसी चैकिंग कराते हुए वहां पंहुचे,जहां रामलला का अस्थाई मंदिर बना हुआ है। वहीं से नए मन्दिर निर्माण के दृश्य दिखाई देते है,जहां फिलहाल एक प्लेटफार्म के अलावा कुछ नहीं दिखता है।


अस्थाई मन्दिर में दर्शन किए। प्रसाद लिया। फिर से बेहद लम्बे रास्ते से पार्किंग की तरफ लौटे। वहीं से हनुमान गढी का रास्ता भी था। इस नए रास्ते से हनुमानगढी जाने के लिए ज्यादा सीढियां नहीं चढनी पडती।  हनुमानगढी पंहुचा तो दादा को पूरी हनुमानगढी  विडीयो काल पर दिखाता रहा।


हनुमानगढी के दर्शन के लिए आशुतोष नहीं आया। वह बेहद थक चुका था। हम लोग हनुमानगढी का दर्शन करके आए तब तक सवा चार बज चुके थे।अयोध्या भ्रमण पूरा हो चुका था। जिस उत्साह के साथ यहां पांच सौ किमी चल कर आए थे,वह लगभग नदारद था। अब यहां से निकलने की बारी थी।


अब गाडी पंकज ने सम्हाल ली थी। अब हमे कानपुर,झांसी वाले हाईवे पर बढना था। शुरुआती 90 किमी तो फोरलेन पर फटाफट निकल गए। फिर से लखनऊ के नजदीक थे। हाईवे लखनऊ के बाहर से ही निकल रहा था,लेकिन आउटर लखनऊ में भी जबर्दस्त ट्रेफिक था। इच्छा लखनऊ छोडकर आगे कहीं रुकने की थी। भारी ट्रैफिक से गुजरते हुए हमने करीब साढे सात पर लखनऊ छोड दिया। कानपुर हाईवे पर पहले नवाबगंज आया,यहां चन्द्रशेखर आजाद के नाम पर बर्ड सेंचुरी बनी हुई है। यहां टूरिज्म रेस्टहाउस है। हम आठ बजे वहां पंहुचे,लेकिन उनके रेट ज्यादा थे। फिर एफआरएच पर रुकने की कोशिश की,लेकिन यहां भी काम नहीं बना। करीब साढे आठ बजे उन्नाव पंहुच गए। यहां होटल की तलाश रात नौ बजे खत्म हुई। महंगा और घटिया होटल। ग्यारह सौ रु. प्रति रुम। गर्मी बहुत थी इसलिए एसी रुम जरुरी था। रुम तो एसी है पर  व्यवस्थाएं घटिया है। जैसे तैसे इस होटल में एडजस्ट किया।


फिलहाल भोजन हो चुका है। घर पर वैदेही से बात होती रही। उसकी तबियत खराब है।चिंता है। लेकिन अब तो वापसी के रास्ते पर हैैं। परसों तक रतलाम पंहुच जाएंगे। कल सुबह जल्दी साढे आठ तक निकलने की योजना है,ताकि जल्दी पंहुच सके।

---शुभ रात्रि...।


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