30 जून 2023 शु्क्रवार (रात 11.55)
होटल वरमन लाज (जम्मू)
इस वक्त मैं जम्मू की वरमन लाज में अब सोने की तैयारी में हूं और सोने से पहले आज का घटनाक्रम लिख रहा हूं। मेरा अंदाजा था कि सुबह 8 बजे गाडियां श्रीनगर से निकल जाएगी। 8.20 पर गाडियां रवाना हो गए। गाडियां चली और थोडी ही देर बाद मुझे नींद आ गई। एकाध घण्टे बाद जब नींद खुली,तो पता चला कि सिन्धु दर्शन यात्रियों का बाकायदा कानवाय चल रहा है। बाकी का सारा ट्रैफिक रोका हुआ था। सिन्धु दर्शन की बसें और कारें निकाली जा रही थी। श्रीनगर से निकलने पर अनन्तनाग तक आतंकवाद का डर बताया जाता है,हांलाकि अब ये सब नदारद हो चुका है,लेकिन चूंकि एक जुलाई से अमरनाथ यात्रा प्रारंभ हो रही है। सुरक्षा बल सिन्धु यात्रा के बहाने सुरक्षा व्यवस्था की रिहर्सल कर रहे थे।
करीब साढे दस पर अनन्तनाग से बाहर होने के बाद एक स्थान पर कानवाय रुका। मुझे बहुत जोर से मूत्र विसर्जन की जरुरत थी,लेकिन मैं मन मसोसकर बैठा हुआ था। मैं सोच रहा था कि बस में और भी कई लोग होंगे,जो इस समस्या से जूझ रहे होंगे। कानवाय रुका हुआ था। आगे की एक महिला ने अपनी समस्या बताई और लघुशंका के निकल पडी। बस फिर क्या था? अपना काम हो गया। अपन भी उतरे फ्री होकर आ गए। कानवाय आगे बढा। काजीगुण्ड से बनिहाल पंहुचने के लिए भी टनल बन गई है। बनिहाल,घाटी में ही है। बनिहाल से आगे बढे। रामबन आ गया। रामबन से आगे चाननी नाशरी टनल है। रामबन पार करते ही टनल से पहले एक ढाबे पर भोजन की व्यवस्था थी।
इस वक्त 1.15 हो चुका था और हर आदमी भूख से बेहाल हो रहा था। व्यवस्था पर्याप्त थी,लेकिन अचानक टूट पडी भीड से सबकुछ अव्यवस्थित हो गया। आसमान से बूंदा बांदी हो रही थी। भोजन के काउण्टरों पर लम्बी कतारें लगी हुई थी। मैने वैदेही से कहा कि लाइन में से हट जा। कुछ देर इंतजार करेंगे तो सबकुछ आराम से हो जाएगा। इंतजार का वक्त हमने आइस्क्रीम खाकर गुजारा। फिर काउण्टर खाली हो गए। आराम से भोजन किया। अब वक्त था कानवाय के आगे बढने का। पब्लिक टायलेट के महिला विंग में ल्बी लाइने लगी थी। मैने वैदेही से कहा आराम सेहल्की हो जा,तब चलेंगे। तब तक बस आगे बढ गई थी। 10-15 मिनट के इंतजार के बाद वैदेही टायलेट से बाहर आई और हम दौडकर बस में पंहुचे। बस चली।
चाननी नाशरी टनल से बस निकली और अब हम जम्मू रीजन में आ गए थे। जम्मू रिजन में आने के बाद अब लगातार ढलान वाला रास्ता था। कटरा बैण्ड पर कटरा जाने वालो को उतारा। उज्जैन के आदर्श सेठी अपनी पत्नी और बेटी को बस में छोडकर कटरा जाने के लिए उतर गए। कुछ ही समय के बाद हमारे बस ड्राइवर ने हमे जम्मू के एक गुरुद्वारे के सामने उतार दिया। मैं सब सहयात्रियों को इस होटल का पता बता चुका था। मैं बस से उतरते ही अपना बैग लेकर होटल देखने चला। होटल गुरुद्वारे के ठीक पीछे था। मैं वहां तक पंहुचता तब तक हमारे चतुर सहयात्रियों ने वहां जाकर कमरों पर कब्जा भी कर लिया।
मेरा कमरा भी मेरे कब्जे में आ चुका था,लेकिन आदर्श सेठी जी की पत्नी और बालिका भी हमारे साथ थी। उन्हे भी कमरा दिलाना था। थोडी मशक्कत के बाद उनका कमरा भी तय हो गया। सद्गारे सहयात्री जैसे तैसे कमरों में एडजस्ट हो गए। अब मैं और वैदेही पैदल घूमने निकले। पहले गलत दिशा में गए फिर रघुनाथ मन्दिर की तरफ चले। रघुनाथ मंदिर पंहुचे। मन्दिर की त्रिस्तरीय परिक्रमा की। कुछ देर बाजार में घूमे। वैदेही ने कुछ खरीददारी भी की। फिर वापस लौटे। रास्ते में बुचके परिवार के लोग भी मिल गए। वैदेही के लिए फ्राइड राइस पैक करवाए थे। होटल आए। अब वैदेही सौ चुकी है और मैं सोने की तैयारी में हूं।
1 जुलाई शानिवार (रात 23.56)
सर्किट हाउस जम्मू
तारीख बदलने में अब कुछ ही वक्त बाकी है। जम्मू के सर्किट हाउस में हम सोने की तैयारी में है। कल सुबह हमें रतलाम के लिए ट्रेन पकडना है। अब आज की बातें। कल रात को सोते समय ही तय कर लिया था कि इस वरमन लाज में अगली रात नहीं गुजारेंगे। मैने सकिट हाउस की आनलाइन बुकींग की थी। मैसेज ये आया था कि कन्फर्मेशन एक दिन पहले या सैम डे मिलेगा। कल तो कन्फर्मेशन मिला नहीं था।
सुबह 7.30 पर उठे। करीब नौ बजे वैदेही को चाय पीना थी। इसलिए बगल वाले ठेले पर पंहुचे। वहां वैदेही ने चाय पी। ठेले वाले से पूछा तो उसने कहा कि पराठे तो खिलाएगा,लेकिन उसके घर में लड्डू गोपाल की पूजा होती है,इसलिए बिना प्याज लहसन वाला पराठा होगा। इसके बावजूद मुझे पता था कि घर के बने पराठे होटल से तो अच्छे ही होंगे। हमने योजना ये बनाई थी कि या तो हमारा होटल वाला पांच छ: सौ रु. में रुम देदे और रुम में टीवी वाईफाई चले तो इस होटल में रुकेंगे वरना सबसे पहले सर्किट हाउस जाकर बुकींग का पता करेंगे।नहीं होने पर कोई और होटल तलाशेंगे।
हम कमरे से स्नान इत्यादि करके नाश्ता करने नीचे ठेले पर पंहुचे,तब तक सर्किट हाउस की कन्फर्मेशन आ गई। इसी बीच उज्जैन वाले आदर्श सेठी का पोन आया कि उनकी पत्नी और बालिका को जम्मू स्टेशन जाने का संदेश दे दूं। हम पराठे खाने बैठे थे। मैने आयुषी को व्हाट्स एप काल की। ंिरंग जाने लगी,तभी वो मां बेटी होटल से बाहर निकलते दिखी। मैने उन्हे आवाज लगाई। वो नाश्ता करने ही बाहर जा रही थी। हमने उन्हे भी पराठे खाने का प्रस्ताव दिया। आयुषी को उसके पिता जी का संदेश दिया। उसी वक्त आदर्श सेठी का दोबारा फोन आ गया। आयुषी की उस के पिता जी से बात करवाई। नाश्ते चाय का भुगतान करके मैं और आयुषी आटो लेने निकल गए। आयुषी को स्टेशन जाना था,मुझे सर्किट हाउस। दो आटो किए। उन्हे स्टेशन रवाना किया और हम सर्किट हाउस के लिए निकल गए।
दोपहर करीब साढे बारह पर हम आटो से सर्किट हाउस पंहुच गए। भव्य और विशाल सर्किट हाउस। रिसेप्शन पर मैने अपनी बुकींग होने की जानकारी दी। अब नई समस्या सामने थी। रिसेप्शन पर मौजूद कर्मचारी ने कहा कि आपकी बुकींग तो कन्फर्म है,लेकिन अथारिटी लेटर चाहिए। मैने कहा कि मैं राज्यस्तरीय अधिमान्य पत्रकार हूं और म.प्र.शासन द्वारा जारी रपरिचय पत्र मेरे पास है। अब कौन से अथारिटी लैटर की जरुरत है। उसने सर्किट हाउस मैनेजर का नम्बर दिया। मैनेजर महिला थी,उसे फोन लगाया। उसने आधी अधूरी बात की,फोन रख दिया। मामला हल नहीं हुआ था,लेकिन हम अपने कमरे में आ गए। तेज धूप जानलेवा गर्मी। हमने पहले ही तय किया था कि शाम 5 बजे घूमने निकलेंगे। भोजन करके एकाध घण्टे नींद निकाल ली।
शाम करीब सवा पांच बजे बाहर निकले। सर्किट हाउस से अगले चौराहे पर एक आटो वाले से बात हुई। वह पांच सौ रुपए में बावे वाली माता,बाग ए बाहू,और हरि पैलेस घुमाने को राजी हो गया। उसके साथ निकलेष सबसे पहले बावे वाली माता के दर्शन को पंहुचे। बावे वाली मां बाहू फोर्ट पर स्थित है। बाहू फोर्ट जम्मू के राजा बाहूलोचन का किला है,जो कि जम्मू की सबसे उंची पहाडी पर है। दर्शन करके लौटे। नीचे बाग ए बाहू में गए। 48 से रु. का टिकट लेकर इस उद्यान में गए। यहां रात 8 बजे से 9 बजे के बीच म्यूजिकल फाउन्टेन और लाइट एण्ड साउण्ड शो होता है। लेकिन हम तो 6.10 पर यहां पंहुचे थे। ये बाग देखकर हरि पैलेस के लिए निकले। हरि पैलेस जम्मू काश्मीर के राजा हरिसिंह का महल है,जो कि काफी दूर है। रास्ते में जामवन्त की गुफा भी आई। हम वहां तक गए,लेकिन मन्दिर में जाने की बजाय हरि पैलेस जाना हमने ज्यादा जरुरी समझा।
काफी लम्बा रास्ता तय करके हम हरि पैलेस पंहुच गए। इस वक्त 7.30 हो चुके थे। यहां इस वक्त अभी अंधेरा हुआ नहीं था,लेकिन बस होने ही वाला था। हरि पैलेस में एक म्यूजियम लाइब्रेरी है। महाराजा गुलाब सिंह की प्रतिमा भी है। हरि पैलेस के एक हिस्से को होटल बना दिया गया है। महाराज गुलाब सिंह जम्मू कश्मीर राज्य के संस्थापक है। गुलाब सिंह महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति थे। उन्होने जम्मू कश्मीर लद्दाख,गिलगित और बाल्टिस्तान जीता था। इसलिए रणजीत सिंह ने उन्हे जम्मू काश्मीर का राजा घोषित किया था। गुलाब सिंह के सेनापति जोरावर सिंह ने न सिर्फ लद्दाख बल्कि तिब्बत और कैलाश मानसरोवर को भी मुक्त कराया था। सेनापति जोरावर सिंह की समाधि तिब्बत में है,जबकि जोरावर फोर्ट लेह में है।
बहरहाल हरिपैलेस का म्यूजियम हमारे वहां पंहुचने से पहले ही बन्द हो चुका था। हम वहां से लौटे। रास्ते में वैदेही ने केले,आलूबुखारे और मशरुम खरीदे। हम करीब पौने नौ बजे सर्किट हाउस पंहुचे। वैदेही ने भोजन किया। कल सुबह हमे ट्रेन पकडना है। जिस आटो से घूम कर आए थे,उसी को सुबह साढे दस पर बुलाया है। सुबह सर्किट हाउस से पराठे पैक करवा कर निकल जाएंगे। सर्किट हाउस की मैनेजर को शाम को दोबारा फोन किया। मैने कहा कि म.प्र. शासन द्वारा जारी आई कार्ड ही हमारा अथारिटी लैटर है। उसने कहा कि वह सुबह कार्ड देखेगी,फिर किराये का निर्धारण होगा। हांलाकि इस बीच में मैने रतलाम पीआरओ शकील खान से एक लैटर भी मंगवा लिया। अब कल देखते है,कैसे क्या होता है? अब रात के सवा बारह बज चुके है। तारीख भी बदल चुकी है। सुबह रतलाम के लिए रवाना होना है।
02 जुलाई 2023 रविवार (शाम 6.00)
जम्मूतवी जामनगर एक्सप्रेस कोच न. बी-1 (06-08)
हमारी ट्रेन रतलाम की ओर तेजी से दौड रही है,और सुबह 6.30 पर हमारी ये बेहद लम्बी यात्रा रतलाम पंहुचकर समाप्त हो जाएगी। कल यानी सोमवार को पूर्व निर्धारित व्यस्तताएं है। आज की सुबह करीब 6.30 पर जम्मू के शानदार और भव्य सर्किट हाउस में हुई थी। यह सर्किट हाउस किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं है। लेकिन कमी ये है कि सुबह 6.30 पर किचन नहीं खुलता इसलिए चाय नहीं मिलती। खैर हम सुबह 9 बजे स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर डाइनिंग हाल में पंहुच गए। पुडी चने की सब्जी का नाश्ता था। नाश्ता किया। नाश्ता करके लौटे तो सर्किट हाउस का हिसाब करना था। सर्किट हाउस के लिए अथारिटी लैटर मैं मंगवा चुका था,लेकिन मैने वह दिया नहीं। फिर सर्किट हाउस रिसेप्शन पर मौजूद कर्मचारी मेरा कार्ड लेकर मैनेजर से मिलने गया।
आखिरकार मेरे कार्ड से ही मामला निपट गया और शासकीय दर 900 रु. का बिल बनाया गया,जो कि आनलाइन भुगतान करना था। किचन का बिल 621 रु. भी आनलाइन भुगतान किया। तब तक आटो वाला आ चुका था,उसको मैने कहा कि रास्ते में भोजन पैक करवाना है,तो उसका कहना था कि हमें निकल पडना चाहिए। हमारे बैग लगभग तैयार थे। सर्किट हाउस से निकलते ही पहलवान मिठाई की बडी सी दुकान थीी। ये जम्मू का बडा ब्राण्ड है। टैक्सी वाले ने यहीं से खाना पैक करवाने को कहा।
यह बहुत बडी दुकान थी। मैने सादे पराठे का पूछा,तो उसने आलू पराठे की बात की। फिर मैने उसे आलू की बजाय मैथी पराठे पैक करने को कहा। मैने पूछा कि पराठे का साइज क्या है? तो उसने कहा मीडीयम। लेकिन जब बिल काटा तो 4 पराठे के 480 रु. लिए। गडबड तो हो ही चुकी थी। मैने आनलाइन भुगतान किया। पराठे पैक होकर आ गए। भोजन की थैली लेकर आटो में सवार हुए। करीब बीस मिनट की यात्रा के बाद जम्मू स्टेशन पंहुच गए। 15 मिनट की देरी से ट्रेन आई। हम ट्रेन में सवार हुए। करीब डेढ बजे जब भोजन के लिए पराठे खोले तो वही हुआ जिसका डर था। हम दोनो केवल डेढ पराठा खा पाए। बाकी के पराठे अभी भी रखे हुए हैं।
ट्रेन चल रही है,लेकिन समझिए कि यात्रा समाप्त हो चुकी है। इसलिए डायरी को यहीं विराम देता हूं। समाप्त।
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