29 जून- यानी आज की सुबह हम करीब साढे छ: बजे उठे। देर रात को यह तय हुआ था कि श्रीनगर की लोकल साइट सीइंग यात्रा समिति द्वारा कराई जाएगी। सुबह साढे सात पर नाश्ता करके सुबह आठ बजे बस से निकलना था। हम जल्दी तैयार हुए और पोहे व ब्रेड पडा का नाश्ता करके साढे आठ पर बस में सवार हो गए।
आज बकरीद का दिन है,इसलिए श्रीनगर के तमाम बाजार बंद है। सडकों पर आटो भी कम चल रहे हैं। बस ड्राइवर युवराज ने शंकराचार्य पहाडी के नजदीक पार्किंग में बस खडी कर दी और हम से कहा कि आटो से शंकराचार्य पहाडी पर चले जाए। थोडी मशक्कत के बाद साढे पांच सौ रु.प्रति आटो के हिसाब से चार आटो लेकर हम शंकराचार्य पहाडी पर पंहुच गए। यह साढे पांच किमी लम्बा पहाडी रास्ता था,जो हमने आटो से तय किया।
आटो के स्टाप से करीब पांच सौ मीटर पैदल चलने के बाद मंदिर की सीढियां शुरु होती है। करीब 380 सीढियां चढना पडती है। आदि शंकराचार्य ने यहां आकर तपस्या की थी। यह मन्दिर छठी सातवीं शताब्दी में बना है या उसका नवनिर्माण हुआ होगा। तथ्यात्मक इतिहास के मुताबिक वर्तमान मन्दिर सौलहवीं शताब्दि में बना है। मंदिर के दर्शन करके नीचे उतरे।
मंदिर में एक मजेदार घटना हुई। दर्शन की कतार में मेरे आगे खडी लडकी को भीड की वजह से मेरा हाथ लग गया होगा,तो पलटकर मुझसे बोलीआप थोडा स्पेस रखिए। मुझे गुस्सा आ गया। मैने कहा इतनी सुपीरिटी दिखाना है,तो ऐसी भीडभाड में नहीं आना चाहिए। मैने वैदेही को मेरे पीछे से आगे किया। फिर मैने उस पर कमेन्ट किया कि सुपीरिटी कम कर लो। हमारे साथ चल रहे सेवाराम माखीजा ने भी लडकी पर कमेन्ट किया कि हमारे साथ डेढ हजार लोग है,किसी को शिकायत नहीं हुई। अब लडकी परेशान हो गई। बोली आप बोले जा रहे हो,चुप हो जाओ,फिर हाथ जोडने लगी।
हम दर्शन करके नीचे उतरे। आटो से बस पार्किंग में पंहुच गए। बस में सवार होकर मुगल गार्डन,बोटानिकल गार्डन,चस्मेशाही इत्यादि के लिए रवाना हो गए। मुगल गार्डन बोटानिकल गार्डन का 24 रु. प्रति व्यक्ति टिकट लेकर भीतर गए। करीब आधा घण्टा यहां गुजार कर बस पर लौट आए। चश्मे शाही के लिए यहां से आटो करके उपर जाना पडता है। अधिकांश लोग वहां नहीं गए। केवल राजेन्द्र अग्रवाल (धार) अपने परिवार के साथ वहां गए। चूंकि वे चश्मेशाही गए थे,इसलिए वे निर्धारित समय पर लौट नहीं पाए। चूंकि उन्हे देर हो रही थी, बस के तमाम यात्री उन्हे वहां छोडकर आगे निकलने का दबाव बनाने लगे। मैं एक बार फिर अग्रवाल परिवार को देखने गया। लेकिन जब वे नहीं आए तो उन्हे छोडकर ही बस आगे बढा दी। मुझे लगा कि वे इस पर नाराजगी जताएंगे।
हम वहां से निशात बाग पंहुचे। दोपहर की एक बज गई थी। सभी को निशात बाग देखने के लिए 1 घण्टे का वक्त दिया गया था। सभी लोग निशात बाग देखकर एक घण्टे में बस में लौट आए। दो बज गए थे। सभी को भूख लग आई थी। इसलिए अब बस होटल के लिए चल पडी। यहां पंहुचकर भोजन किया और अपने होटल में लौटे। हम अब एकाध घण्टा आराम करना चाहते थे। यहां लौटे तो राजेन्द्र अग्रवाल मिल गए। वे कतई नाराज नजर नहीं आ रहे थे और उनका गुमा हुआ बैग भी मिल गया था। अब हम डल झील के लिए निकलने वाले है।
29 जून 2023 (रात11.30)
हम लोग तैयार हुए तो डल झील घूमने के लिए निकले। डल झील होटल से करीब डेढ किमी दूर थी। हम निकले,वैदेही ने कहा कि पैदल नहीं चलेंगे। लेकिन आटो भी नहीं मिल रहा था और हम रपैदल पैदल चलते हुए डल झील के घाट न.1 पर पंहुच गए। इस वक्त 7.20 हो रहे थे। मेरी बात पंचकुला के रमेश गोयल जी से हो चुकी थी। बात ये थी कि जो पहले डल झील पर पंहुचेगा वह दूसरे को खबर करेगा। एसी ही बात राजेन्द्र अग्रवाल से भी हुई थी। मैने उनको भी फोन लगाया लेकिन वह अभी निशात बाग में ही थे। हम उन दोनो का इंतजार कर रहे थे,तभी हमारे सिंधी भाई सेवाराम और लालचंद नजर आ गए। उनके साथ बैंगलुरु वाला दिलीप भी था। वैदेही ने कहा कि हम पांचों साथ में शिकारे पर चलते है। सेवाराम ने हां तो कहा लेकिन वे तीनो निकल लिए।
इसके बाद हमने तय किया कि हम दोनो ही शिकारे की सैर कर आते है।इसी बीच राजेन्द्र अग्रवाल का फोन आ गया कि हमें आटो मिल गया है। मैने उसे बताया कि हम घाट न.3 पर खडे है। आप यहां आ जाईए। इसी दौरान एक शिकारे वाला जावेद वहां आया। हमारी बात हुई तो वह छ: सौ रुं में हम दोनो को और आठ सौ रु. में हम सभी को ले जाने को तैयार था। हमने 10-15 मिनट उनका इंतजार किया,फिर हम दोनो ही शिकारे में सवार हो गए। करीब 50 मिनट की शिकारा राइड में जावेद ने अपना प्रवचन शुरु कर दिया।
वही घिसा पिटा प्रवचन,इस्लाम शांति का धर्म है। किसी कश्मीरी पण्डित पर अत्याचार नहीं हुआ है। आतंकवाद के कारण हिन्दुओं से ज्यादा मुसलमान मरे है। सारी हत्याएं सरकार करवाती है। हमें आजादी चाहिए। 370 हटने से कोई पर्क नहीं पडा है। इन सारे घिसे पिटे तर्को के तमाम उत्तर मेरे पास थे,लेकिन मैने कोई बहस नहीं की। उसके प्रवचन से वैदेही को गुस्सा आ गया। बोली,सारी राइड का इसने कचरा कर दिया। लौटते समय जावेद ने बताया कि उसका एक भाई डाक्टर है,एमडी है। एक भाई पुलिस विभाग में है। वो खुद पोस्ट ग्रेज्यूएट है। लेकिन उसके दिमाग में जहर भरा हुआ है। बहरहाल,हम शिकारे की यात्रा करके लौटने लगे। आटो मिला नहीं,पैदल ही वापस लौटे।
वापस लौटे तो वैदेही ने यात्रा समिति की भोजन व्यवस्था की बजाय होटल में भोजन किया। भोजन करके लौटे,तो खबर मिली कि पूजा काजी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो चुकी है। दिल दहलाने वाली खबर थी। मैने वासिफ को फोन लगया। बात हुई। अब सोने का वक्त। सूचना आ चुकी है,कि सुबह 7 बजे निकलना है। 5 बजे उठना पडेगा। अब सोने की समय....। शुभ रात्रि.....
30 जून 2023 शुक्रवार (सुबह 5.45)
होटल लोटस श्रीनगर
अब श्रीनगर से रवाना होने की तैयारी है। सुबह 6 बजे बस लगने की सूचना है। हम 5.15 बजे उठ गए थे। वैदेही स्नान करने गई है। मैं इंतजार कर रहा हूं। कल हम निशात बाग गए थे। निशात बाग में लगाए गए शिलालेख पर इसका इतिहास वर्णित है। इस इतिहास से मेरी यह बात प्रमाणित होती है कि इस्लाम आतंकवाद का मजहब है। इस्लाम कभी भी कला संस्कृति या निर्माण नहीं सिखाता। यह केवल विध्वंस सिखाता है।
निशात बाग का निर्माण मुस्लिम शासकों ने सौलहवीं सदी में कराया था। बाद में सत्रहवीं सदी में जब यहां अफगानी मुस्लिमों ने आक्रमण किया तो इस सुन्दर उद्यान तक को नष्ट कर दिया। फिर बाद में डोगरा राजाओं ने इसका पुननिर्माण कराया। अब बताईए,अपगानी मुस्लिमों को एक उद्यान से क्या दुश्मनी रही होगी। लेकिन चूंकि वे इस्लाम के अनुयायी थे,इसलिए कोई भी कलात्मक सुन्दर वस्तु वे रहने नहीं देना चाहते थे,इसलिए उन्होने एक सुन्दर उद्यान का विध्वंस कर दिया था। बहरहाल अब श्रीनगर से निकलने की की तैयारी है।
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