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12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)
साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43
अयोध्या की यात्रा अब समाप्ति पर है। हम रतलाम लौट रहे हैं और इस वक्त साबरमती एक्सप्रेस रतलाम की ओर दौड रही है।
आज की शुरुआत बेहद खास रही।ये दिन बडा खास रहा और इसकी जानकारी कल रात ही मिल गई थी। कारसेवक पुरम में कल सुबह गए थे। वहां कई लोगों से परिचय हुआ था। रात को कारसेवक पुरम से अभिनव नामक युवक का फोन रोचन के पास आया कि क्या आप लोग सुबह आरती में शामिल होना चाहते है? अन्धा क्या चाहे? दो आंखे। कौन इंकार कर सकता था। उन्होने सभी के आधार साफ्ट कापी में मंगवाए और रोचन से कहा कि आपलोग सुबह पांच बजे मन्दिर के मुख्य द्वार पर पंहुच जाएं।
इस वक्त रात के दस बज चुके थे। सुबह पांच बजे स्नान करके अगर मन्दिर पंहुचना था,तो तीन साढे तीन बजे उठना था। तुरंत सोने का उपक्रम किया। सुबह ठीक 4.45 पर हम सात लोग स्नानादि से निवृत्त होकर तैयार होकर जन्मस्थान मन्दिर के लिए निकल पडे। बाहर मुख्य सडक पर पंहुचते ही इ रिक्शा भी मिल गया और हम 5 बजे के ठीक पहले मुख्यद्वार पर पंहुच गए।
सुबह की आरती 6 बजे होती है। साढे पांच बजे के करीब अभिनव हमारे पास लेकर आ गया। कुल आठ लोगों का इ पास था। 7 हम 1 अभिनव। कल भारी भीडभाड में इंतजार करते मन्दिर गए थे और कुछ ही पलों में बाहर कर दिए गए थे। आरती के लिए गिने चुने लोग लगभग सिर्फ एक सौ लोगों को ही प्रवेश मिला था। पूरा मन्दिर परिसर खाली पडा था। भगवान की पूजा चल रही थी। इस आरती को श्रृंगार आरती कहा जाता है। कुछ ही मिनटों में परदा हटा और भगवान श्रीराम की मनोहारी मूर्ति प्रकट हो गई। करीब आधे घण्टे तक आरती चलती रही। गर्भगृब में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति भक्तिभाव से भरा हुआ था। आरती हुई। फिर बालभोग का प्रसाद वितरण हुआ।
अभिनव के सौजन्य से सबके फोटो भी मन्दिर के भीतर लिए गए। अयोध्या के जन्मस्थान मन्दिर ेक दर्शन के लिए देश के कोने कोने से हर दिन दो से तीन लाख श्रध्दालु पंहुच रहे है। हर कोई रामलला की एक झलक भर पाना चाहता है। ऐसे में भगवान की श्रृंगार आरती में शामिल हो पाना बहुत बडे सौभाग्य का विषय है। पुण्यों का फल है।
मन्दिर परिसर में मोबाइल पर सख्ती से प्रतिबन्ध है। चिंतन फोटो लेना चाहता था,इसलिए मोबाइल लेकर आया था। मन्दिर में प्रवेश के पहले अभिनव से डरा दिया,इसलिए चिंतन ने मोबाइल अपने जूतों के भीतर रख दिया था। जूते हम बाहर की खोल कर गए थे। लेकिन भीतर कई सारे लोग मोबाइल लेकर भी पंहुचे थे और बेहिचक फोटो विडीयो बना रहे थे। अभिनव का कहना था कि ये वीवीआईपी लोग है,इसलिए मोबाइल भीतर लेकर आ पाए है। चिंतन गुस्से मे था। उसने मुझसे कहा कि देखना एक दिन मैं सबको लेकर आउंगा और कैमरे से फोटोग्राफी करुंगा।
बहरहाल हम सभी बेहद खुश थे और खुशी खुशी जानकी महल लौट कर आ गए। हम लोग करीब साढे आठ पर जानकी महल लौट आए थे। मेरी इच्छा थी कि एक बार सरयू स्नान करना है। पिछली दोतीन अयोध्या यात्रा में कभी ऐसी इच्छा नहीं हुई थी। कारसेवा के दिनों में जरुर रोज ही सरयू स्नान करते थे। चिंतन भी सरयू स्नान करना चाहता था। हम लोग मैं चिंतन और वैदेही करीब साढे नौ बजे सरयू स्नान के लिए निकले। रोचन,प्रतिमा ताई और नलू आत्या शापिंग के लिए बाजार जा रहे थे। लेकिन वे भी पहले हमारे साथ आ गए। सरयू पर पंहुच कर मैने और चिंतन ने डुबकियां लगाई। वैदेही कपडे सम्हाल रही थी। मैने घाट का एक विडीयो भी बनाया। ये तुलसीदास घाट था। तब तक रोचन आदि बाजार निकल गए।
लौटते वक्त रास्ते में एक बाटी चोखा की दुकान नजर आ गई। पिछली अयोध्या यात्रा में हमने लखनऊ से अयोध्या जाते वक्त रास्ते में बाटी चोखा खाया था। आनन्द आ गया था। बिहार में इसी को लिट्टी चोखा कहते है,इधर यूपी में इसे बाटी चोखा कहते है। पहले एक प्लेट ली,जिसमें दो बाटी और चोखा था,साथ में हरी मिर्ची की चटनी। वैदेही और चिंतन को भी मजा आ गया। एक एक करके हम तीन प्लेट खा गए। यानी दो दो बाटी सभी ने सूत दी।
वैदेही की तबियत कल शाम गुप्तार घाट से लौटते समय से खराब होने लगी थी। उसे खांसी उठ रही थी। लेकिन अब वो बढने लगी थी और सरयू से लौटते समय बहुत ज्यादा बढ गई थी। उसे एन्टी बायोटिक एन्टी एलर्जिक सभी दवाएं दे दी थी। पहला डोज था। असर नहीं हुआ था और खांसी बढती गई। बुखार भी आ गया। दोपहर होते होते उसकी हालत खस्ता हो गई।
इधर ट्रेन शाम 6 बजे थी। पहले तय किया था कि 4 बजे निकल चलेंगे। इससे पहले सभी के लिए भोजन की व्यवस्था करना थी। लता मंगेशकर चौक के एक होटल से मैने पराठे और आलू की सब्जी का आडऱ्र दिया,जो चार बजे लेना था। ट्रेन की स्थिति चैक की तो पता चला कि ट्रेन डेढ घण्टे लेट है। फिर भी हम पाच बजे जानकी महल से निकल गए। दो आटो में सामान चढा कर सवार हुए। दो तीन बार जाम में फंसे लेकिन फिर भी पौने छ: बजे तक अयोध्या धाम स्टेशन पर पंहुच गए।
अयोध्याधाम स्टेशन को एयरपोर्ट की तरह विकसित किया जा रहा है। एकदम जगमग करता सर्वसुविधा युक्त स्टेशन। लेकिन अभी सारी व्यवस्थाएंं पूरी नहीं हुई है। आटो से उतरे तो दो व्हील चैयर चाहिए थी। व्हील चैयर के लिए स्टेशन की नई बिल्डिंग में पंहुचे तो वहां ताला लगा था। सहायता वाले काउण्टर सूने पडे थे। आखिरकार स्टेशन अधीक्षक का कक्ष दिख गया। उसके पास पंहुचा तो उसने कहा कि हेड टीसी को उसी ने बुलाया था। हेड टीसी के कमरे से दो व्हील चेयर लेकर आए। आई दादा को एसी वेटिंग रुम में बैठाया,लेकिन यहां का एसी खराब था। ट्रेन दो घण्टे लेट थी और आठ बजे आने वाली थी।
स्टेशन अधीक्षक ने कहा था कि आप कुली तय कर लेना,जो यात्रियों को ट्रेन में छोडकर व्हील चैयर वापस ले आएगा। कुली ढूंढने लगे तो पता चला कि स्टेशन पर सिर्फ दो ही कुली है। दोनो अलग अलग शिफ्ट में आते है। कुली को काफी ढूंढा लेकिन नहीं मिला। लेकिन बाद में संयोग से मिल गया और अपने साथ एक साथी भी लेकर आया। साढे सात बजे दोनो बुजुर्गो को लेकर प्लेटफार्म न.2 पर पंहुच गए,लेकिन ट्रेैन 8.20 पर आई। थोडी सी मशक्कत के बाद दोनो बुजुर्ग और लगेज कोच में चढा दिए गए। गाडी चल पडी।
गाडी के चलते ही भोजन की बारी आई और सभी ने पराठे सब्जी की तारीफ की। हांलाकि पराठे बडी साईज के थे इसलिए आधे पराठे बच गए। जिन्हे कल निपटाया जाएगा। ट्रेन दौड रही है। कल शाम तक हम रतलाम में होंगे।
13 मार्च 2024 बुधवार (शाम 5.20)
साबरमती एक्सप्रेस
ट्रेन ने अभी अभी उज्जैन स्टेशन छोडा है। डेढ दो घण्टे बाद अयोध्या की ये यात्रा समाप्त हो जाएगी। कल जब ट्रेन में चढे थे,उससे पहले से वैदेही की तबियत खराब हो गई थी। उसकी हालत खस्ता ही बनी हुई थी। सुबह उसे फिर दवाईयां खिलाई। दोपहर तक भी उसकी हालत ठीक नहीं हो पाई थी। हमारी ट्रेन करीब बारह बजे गुना पंहुची थी। गुना में राधेश्याम जी पारिख अपनी बेटी के साथ भोजन लेकर आए थे। ट्रेन के सफर में घर का बेहतरीन स्वादिष्ट भोजन मिला। आनन्द आ गया। दबा के खाया। वैदेही ने भी थोडा भोजन किया। अब उसके स्वास्थ्य में थोडा सुधार नजर आने लगा था। रोचन सुबह करीब नौ बजे बीना स्टेशन पर उतर गई थी। उसे वहीं से भोपाल निकल जाना था। नलू अत्या अभी उज्जैन स्टेशन पर उतर गई है। रतलाम में हम छ: लोग उतरेंगे। मैं वैदेही,चिंतन,प्रतिमा ताई, आई और दादा। नारायण और वहिनी इसी ट्रेन से सीधे वडोदरा चले जाएंगे।
इस तरह अयोध्या की ये यात्रा अब पूर्णता की ओर है।
समाप्त।
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