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11 मार्च 2024 सोमवार,रात 9.15
जानकी महल अयोध्या धाम
आज के व्यस्ततम दिन का समापन होने को है। मैं डायरी के साथ हूं और बाकी लोग भोजन कर रहे हैं।
कल हमें बताया गया था कि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपतराय जी सुबह 8 और 8.30 के बीच मिल सकते है। उन्हे राम शिला भेंट करना थी,इसलिए सुबह 8 बजे यहां से निकलने का इरादा था। लेकिन प्रतिमा ताई,रोचन,वैदेही और नलू आत्या सुबह 6 बजे मन्दिर के पट खुलते ही रामलला का फिर से दर्शन करना चाहते थे। इसलिए ये चारो सुबह पौने छ: बजे दर्शन करने के लिए रवाना हो गईं। उम्मीद थी कि ये लोग आठ बजे के पहले लौट आएंगी। लेकिन मन्दिर के पट 6 बजे नहीं बल्कि सात बजे खुलते है,इसलिए ये सभी साढे आठ बजे दर्शन करके वापस लौटी।
हम लोग यहां से कारसेवक पुरम जाने के लिए सुबह नौ बजे निकले। एक टेम्पो तय किया,जो हम सभी को कारसेवक पुरम के बाद नन्दी ग्राम,भरत कुण्ड,और सूर्यकुण्ड आदि स्थानों के दर्शन कराने ले जाने वाला था। मैं चिन्तन और वैदेही थोडी देर से निकले थे। बाकी के लोग टेम्पो में सवार होकर कारसेवक पुरम पंहुच गए थे। हम पैदल ही वहां पंहुचे। योग अच्छे थे,कि राम शिला लेने के लिए चम्पतराय जी स्वयं मौजूद थे। उन्होने सभी से परिचय प्राप्त किया। दादा से राम शिला ग्रहण की। आई दादा दोनो के लिए यह क्षण जबर्दस्त था। चम्पतराय जी ने अल्पाहार करके जाने को कहा। हम सभी अल्पाहार करने पंहुचे। अल्पाहार करके सवा दस बजे कारसेवक पुरम से आगे बढे।
नन्दीग्राम अयोध्या से करीब पच्चीस किमी दूर है। नन्दी ग्राम वह स्थान है,जहां से भरत जी ने चौदह वर्षों तक अयोध्या का शासन चलाया था। भगवान के वनवास की शुरुआत में जैसे ही भरत को वनवास का पता चला तो वे भगवान को वापस अयोध्या लाने के लिए वन में गए। श्री राम ने उन्हे पिता के आदेश का पालन करने की बात कही तो भरत जी ने भगवान के खडाउ मांग लिए। उन्होने कहा कि अयोध्या के सिंहासन पर भगवान के खडाउ आसीन होंगे। इतना ही नहीं भरत जी ने स्वयं भी अयोध्या नहीं जाने का संकल्प लिया और इसी नन्दीग्राम में चौदह वर्ष तक वनवासी का जीवन व्यतीत करते हुए अयोध्या का शासन चलाया।
लंका युध्द के दौरान जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे,तब इसी स्थान से भरत जी ने उन्हे जाते देखा। उन्हे लगा कि कोई निशाचर जा रहा है। उन्होने हनुमान जी पर बाण चलाया। बाण हनुमान जी को लगा और वे हे राम करते हुए मूच्र्छित होकर आसमान से जमीन पर आ गिरे। तब भरत जी को लगा कि ये तो कोई रामभक्त है। भरत जी ने हनुमान जी की मूर्छा दूर की और जब सारी कथा का पता चला तो उन्होने अपने बाण पर हनुमान जी को तत्काल युध्द क्षेत्र में भेजने का प्रस्ताव रखा। हांलाकि हनुमान जी स्वयं ही सूर्योदय से पूर्व युध्दक्षेत्र में पंहुच गए थे और इस तरह उन्होने लक्ष्मण जी की प्राण रक्षा की थी। वनवास से लौटने पर राम और भरत का मिलाप भी इसी नन्दी ग्राम में ही हुआ था।
इसी नन्दी ग्राम में हम पंहुच गए। यहां अति सुन्दर कुण्ड है,जो भरत कुण्ड कहलाता है। कहते है कि भरत जी प्रतिदिन यहां स्नान करते थे। भरत कुण्ड के किनारे पर श्री राम मन्दिर बना हुआ है। प्रतिदिन शाम को भरत कुण्ड की आरती भी की जाती है। कुण्ड से कुछ दूरी पर दो मन्दिर स्थित है,जिनमें से एक के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण विक्रमादित्य ने करवाया था। इसी मन्दिर में वह स्थान है,जहां राम भरत मिलाप हुआ था। यहां राम और भरत की आलिंगनबध्द प्रतिमा स्थापित है। यहीं वह स्थान भी बताया जाता है,जहां हनुमानजी को भरत का बाण लगा था। भरत गुफा भी यहां बताई जाती है,जहां भरत जी तपस्या किया करते थे। नजदीक के मन्दिर में भरत और हनुमान जी के मिलने का दृश्य है यानी भरत जी और हनुमान जी की आलिंगनबध्द प्रतिमा है। यहां भी भरत गुफा बनी हुई है। इनमें से कौन सी वास्तविक है कोई नहीं जानता। दोनो के वास्तविक होने का दावा किया जाता है। श्रध्दालु दोनो ही मन्दिरों में शीश नंवाते है।
यहां से लौटते वक्त रास्ते में सूर्य कुण्ड पडता है। यह भी अत्यन्त सुन्दर कुण्ड है। कहते है कि एक रघुवंशी राजा का कुष्ठ रोग इस कुण्ड में स्नान करने से ठीक हो गया था। एक कथा यह भी है कि भगवान राम का जब जन्म हुआ तो सूर्य देव प्रभू के दर्शन करने के लिए यहां आए और तेरह दिनों तक यहीं रहे। इसी कुण्ड में जन्म के तेरहवें दिन प्रभू को स्नान करवाया गया था,तब सूर्यदेव ने प्रभू के दर्शन किए थे। इस परिसर में भगवान राम और शिव के मन्दिरों के साथ सूर्यदेव और शनिदेव के भी मन्दिर है। यह स्थान भी अत्यन्त दर्शनीय और सुन्दर है।
यहां से लौटे तो दोपहर के दो बज चुके थे। जानकी महल में भोजन का समय समाप्त हो चुका था और सभी को तेज भूख लग आई थी। मुझे ध्यान आया कि कारसेवक पुरम के ठीक सामने एक ठीक ठाक होटल नजर आया था। मैने सभी को वहीं चलने की सलाह दी। वहां पंहुचे तो वहां भी भोजन समाप्त हो चुका था,लेकिन होटल मालिक ने भोजन तैयार कर खिलाने की बात कही। करीब आधे घण्टे में भोजन तैयार हुआ। भूख तेज थी,इसलिए भोजन स्वादिष्ट लगा। भोजन करते करते साढे तीन बज चुके थे।
आज की एक खास बात यह थी कि आज सुबह से जानकी महल की बिजली गुल थी,इसलिए लिफ्ट बन्द थी। हमारे कमरे तीसरी मंजिल पर थे। उतरते समय तो माता जी हिम्मत करके सहारा लेकर उतर गई,लेकिन सीढियां चढ पाना उनके बस की बात नहीं थी। जब हम घूम घाम कर वापस लौटे,बिजली तब भी गुल थी। उन्हे नीचे ही बैठे रहना था। लेकिन जब भोजन करके आए,तब तक बिजली चालू हो गई थी और माता जी लिफ्ट से उपर कमरे में पंहुच गई थी।
करीब चार बजे मैने जानकी घाट बडा स्थान के रसिक पीठाधीश्वर महंत जनमेजय शरण जी को फोन लगाया। उनसे भेट करने की कोशिश कल भी की थी,लेकिन मुलाकात हो नहीं पाई थी। आज फोन पर बात हो गई। उन्होने तुरंत मिलने को बुला लिया। सारे लोग कमरो में जा चुके थे। केवल मै और वैदेही नीचे चाय पीने के लिए रुके हुए थे। हम दोनो तुरंत चल पडे। पैदल ही जानकी घाट बडा स्थान पंहुचे।
यह वही स्थान है,जहां कारसेवा के दिनों में हम रहा करते थे। महन्त जी के साथ लिया गया उस वक्त का फोटो मोबाइल में मौजूद था। महन्त जी के पास पंहुच कर,उन्हे वो घटनाक्रम स्मरण कराया,फोटो भी दिखाया। वे भी बडे प्रसन्न हुए। उन्होने हम दोनो को कई उपहार भेंट किए। गुरुमंत्र की दीक्षा भी दी। रामनामी चादर हमे औढाई। नम्बरों का आदान प्रदान हुआ। मैने सारे फोटो और कारसेवा आंखो देखी का पूरा मैटर इमेल पर साझा किया। वहां से लौटते हुए वैदेही ने रास्ते में एक दुकान से राम नाम लिखे कपडे खरीदे। हम जानकी महल लौटे,तब तक 5.45 हो रहे थे।
यहां पंहुचे तो पता चला कि रोचन और प्रतिमा ताई गुप्तार घाट जाने की तैयारी कर रहे है। हम भी चलने को तैयार हो गए। गुप्तार घाट अयोध्या केन्ट यानी फैजाबाद में है और यहां से करीब 15 किमी दूर है। अंधेरा घिरने लगा था फिर भी एक इ रिक्शा पकड कर हम छ: लोग वहां के लिए रवाना हुए। गुप्तार घाट वह स्थान है,जहां से अश्वमेध यज्ञ करने के बाद अपने दोनो पुत्रों लव और कुश को साम्राज्य का कामकाज सौंप कर भगवान ने निजधाम की वापसी की थी। गुप्तार घाट बडा सुन्दर बना हुआ है।
हम जब वहां पर पंहुचे,अंधेरा पूरी तरह घिर आया था। फोटो विडीयो बनाना संभव नहीं था,लेकिन फिर भी घाय की सुन्दरता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। सरयू मैया घाट से काफी नीचे बह रही थी। हम घाट से उतर कर सरयू मैया तक गए। सरयू जल के छींटे सिर पर मारे। यहां भी करीब पांच सौ वर्ष पुराना मन्दिर है। इस राम मन्दिर में दर्शन किए और फिर वापसी के लिए आटो पर सवार हो गए। पूरा रास्ता बेहद ठण्डा था। चौदह कोसी परिक्रमा के लिए नया मार्ग बनाया जा रहा है। जिसके दोनो ओर तालाब है। इसी वजह से ठण्डक बहुत थी। हम करीब सवा आठ बजे वापस जानकी महल लौटे। भोजन शुरु ही होने वाला था। सभी ने बारी बारी भोजन किया। आज का दिन अब पूरा हो चुका है। अब सोने की तैयारी।
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