Saturday, January 11, 2025

श्रीखण्ड महादेव कैलास यात्रा-9 /शानदार बुग्याल बागा सहरन की एक रात

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20 जुलाई 2024 शनिवार (रात10.40)

होटल एवलांच कच्ची घाटी शिमला


इस वक्त मैं शिमला के बाहरी इलाके कच्ची घाटी में होटल एवलांच में हूं और सुबह यहां से जल्दी निकलने की इच्छा के साथ इस वक्त डायरी लिख रहा हूं। 


कल शाम हम करीब 7.30 या 7.45 पर बागा सहरन पंहुच गए थे। चारों ओर उंचे पहाडों के बीच घांस का बडा बुग्याल। ऐसे बुग्याल बडे सुकून देने वाले होते हैं। ठीक ठाक रेट में यानी तीन हजार रु. में दो काटेज तय हो गए। हम रुक गए। अंधेरा हो चुका था। खा-पीकर सो गए। रात को तो डायरी भी नहीं लिख पाया था। सुबह उठकर लिखी।


सुबह साढ़े चार बजे  नींद खुल गई। इन काटेज में डबल बेड तो नीचे था,एक सिंगल बेड सीढी चढकर उपर था। प्रकाश राव ने उपर सोने की इच्छा जताई थी,लेकिन वह नीचे ही सौ गया। आखिरकार मुझे सीढी चढकर उपर जाना पडा। बिस्तर तो आरामदायक था,लेकिन लघुशंका के लिए सीढी से नीचे उतरना टेंशन का काम था। रात को तो जैसे तैसे एक बार उतरा,लेकिन सुबह जब उतरा तो फिर उपर चढकर सोने की हिम्मत नहीं हुई। सुबह लघुशंका के लिए नीचे उतरा तो फिर उपर नहीं चढा। यही तय किया कि अब जाग ही जाना चाहिए।जिस रिसोर्ट में हम रुके थे,काफी महंगा था। ब्रिटीश या वेस्टर्न स्टाइल में वुडन के काटेज बने थे तिकोने। नीचे डबल बेड और उपर सिंगल बेड।


सुबह सवेरे,जब बागा सहरन का नजारा देखा तो मन प्रसन्न हो गया। घांस का विशाल मैदान,चारों ओर उंची पहाडियां,जिन पर लम्बे लम्बे देवदार और चीड के पेडलगे हुए. शानदार शांति सुकून। काफी देर तक रुम में बैठकर इसका आनन्द लेते रहे। धीरे धीरे तैयार हुए। 14 जुलाई के बाद आज ही ठीक से नहाए थे। नए धुले हुए कपडे पहलने। होटल में सब्जी पराठे का आर्डर दे दिया था। सब्जी पराठे खाए। इसके बाद पूरे मैदान का चक्कर लगाना था। कच्ची सी सडक़ घांस के मैदान के किनारे किनारे बनी थी। गाडी में सवार होकर पूरे बुग्याल का चक्कर लगाया। बुग्याल के आखरी छोर पर पंहुचे तो घ्यान में आया कि गाडी के एक पहिए में हवा कम है। मैने सुझाव दिया कि दशरथ जी और नवाल सा.बस अड्डे पर जाकर पंचर सुधारने वाले या हवा भरने के पंप वाले की तलाश करें,तब तक मैं प्रकाश राव और आदित्य पैदल बुग्याल पार करके बस अड्डे तक पंहुचते हैं। ये दोनो गाडी लेकर गए। हम पैदल चले। पूरा बुग्याल चल कर पार किया। बुग्याल के इस कोने पर बागा सहरन का सरकारी हायर सेकेण्डरी स्कूल था। सुबपह जब उठे थे तो स्कूल के बच्चों की सामूहिक प्रार्थना ने मन प्रसन्न कर दिया था। आदित्य ने कहा कि उसे स्कूल देखना है। स्कूल के भीतर गए। वहां के शिक्षकों से चर्चा हुई। छठी से बारहवीं तक का स्कूल। कुल 130-150 बच्चे। 11 वीं और 12 वीं को मिलाकर कुल 20 बच्चे। विषय केवल आर्ट्स। सब शिक्षकों से चर्चा चल रही थी,इस दौरान प्रकाश राव और आदित्य कक्षाओं में जाकर माहौल देख रहे थे। तभी दशरथ जी का फोन आया कि स्कूल में हवा भरने का पंप हो सकता है। मैने पूछा तो शिक्षकों ने कहा कि गाडी स्कूल के सामने ले आइए। स्कूल में फुटबाल में हवा भरने का पंप मौजूद था।


पंप से गाडी में हवा भरना थी,तभी वैदेही का फोन आया कि तुमने विडीयो काल करने को कहा था अभी तक किया नहीं। मैने विडीयो काल लगाई,आई और वैदेही को यहां के दृश्य दिखाए। गाडी में हवा भरी और यहां से चले।


बागा सहरन से वापस बागीपुल,निरमण्ड होते हुए रामपुर बुशहर के पुल तक जाना था,जो कि करीब 40 किम का रास्ता था। अचानक आदित्य को याद आया कि श्रीखण्ड की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती,जब तक कि एक मन्दिर ----के दर्शन ना कर लिए जाए। ये मन्दिर गूगल के हिसाब से इसी रोड पर था,जिस पर हम चल रहे थे। रास्ता कभी ठीक कभी खराब था। निरमण्ड पार हो गया। आदित्य गूगल मैप पर मन्दिर की लोकेशन देखता हुआ चल रहा था। गूगल मैप पर मन्दिर अभी डेढ किमी आगे बता रहा था,वहीं रास्ते में एक व्यक्ति से पूछा तो उसने बताया कि वह मन््िदर तो 5 किमी पीछे छूट चुका है। ऐसी स्थिति में हममें से कोई पीछे लौटने को तैयार नहीं था। रामपुर का पुल आते ही आदित्य ने कहा कि,आप लोग मुझे उतार दीजिए क्योकि उस मन्दिर के दर्शन किए बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा। उसी वक्त यात्रा का हिसाब किया और उसे पुल के इस ओर उतारा। सब गले मिल कर बिदा हुए। उसी वक्त निरमण्ड की बस भी आ गई और आदित्य उसमें सवार हो गया।


अब हम चार लोग बडे आराम से आगे बढे। शिमला यहां से सौ किमी दूूर था। हमें अ्ंदाजा था कि शिमला पंहुचते पंहुचते अंधेरा हो जाएगा और  हमें यहीं रुकना पडेगा।


इस इलाके में मधुमक्खी पालन बहुत होता है। हाईवे के किनारे पर मधुमक्खी पालने वाले सौ सौ बक्से लगाकर बैठे रहते हैं। शहर भी बेचते है। एक शहर विक्रेता के पास रुके तो उसने चार सौ रु. किलो में शुध्द शहद  दिया। पता चला कि वह हरियाणा का निवासी है और यहां बक्से लगाकर मधुमक्खी पालता है। बडा काम है। दशरथ जी ने उससे एक किलो शहद खरीदा। 


यहां से आगे बढे तो सडक़ किनारे सब्जी की दुकान लगाकर बैठी दो महिलाओं की दुकान पर रुके। यहा ं पहाडी पत्तागोभी लाल रंग की होती है। सब्जी वाली से 3-4 खीरा ककडी खरीद कर कटवाई नमक जीरावन लगाकर खाई। पिर गोभी ली और आधी कटवा कर खाई। टमाटर भी खाए। आखिर में पत्ता गोभी और टमाटर लेकर आगे बढे. इस पत्तागोभी और टमाटर का उपयोग यहां होटल में आकर किया। 

अब सभी लोग सौ चुके है। मेरा भी आज का कथानक पूरा हो चुका है। एवलांच होटल कच्चीघाटी में इस वक्त रात के सवा ग्यारह बज चुके है। कल सुह जल्दी निकलने की इच्छा है ताकि हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सकें और परसों मन्दसौर रतलाम पंहुच सकें। 

तब तक शुभ रात्रि....।

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