Wednesday, November 21, 2012

क्या सचमुच हम सॉफ्टस्टेट नहीं है?

सन्दर्भ-अजमल कसाब को फांसी
(तुषार कोठारी)

सुबह सवेरे टीवी पर खबरें शुरु हुई कि दुर्दान्त आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को पुणे के येरवडा जेल में फांसी दे दी गई। टीवी चैनलों ने फौरन ही विभिन्न नेताओं और विशेषज्ञों को बुलाकर उनकी प्रतिक्रियाएं और चर्चाएं प्रसारित करना भी शुरु कर दिया। देश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के तमाम नेताओं ने देर आये दुरुस्त आए कि टिप्पणी प्रस्तुत की और इससे आगे बढकर संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु को भी फांसी देने की मांग कर डाली। एक टीवी चैनल पर एक विद्वान वक्ता यह कहते हुए भी दिखाई दिए कि कसाब को फांसी देकर भारत ने दिखा दिया है कि भारत सॉफ्ट स्टेट नहीं है। क्या वाकई?

 आतंकवाद से जूझते इस एक सौ दस करोड से अधिक के देश को दुनिया में साफ्टस्टेट माना जाता रहा है। इसी वजह से विदेशी आतंकवादियों के लिए हम शुरु से ही आसान टार्गेट रहे हैं। संसद पर हमला हो या मुंबई का 26/11 का हमला। हमारे नेता बडी बडी बातें करते है। निपटने और निपटा देने की घोषणाएं होती है। प्लेन का हाईजैक हो जाए तो आतंकियों को रिहा कर प्लैन को छुडवाने का बहादुरी भी दिखा दी जाती है। इसके बाद 166 निर्दोष लोगों की क्रूरतम और जघन्य हत्या करने के आरोपी को घटना के चार साल गुजर जाने के बाद चोरी छुपे गुपचुप तरीके से फांसी दे दी जाती है। फांसी दिए जाने के एक डेढ घण्टे बाद राज्य और केन्द्र सरकार अधिकारिक तौर पर घोषणा करती है कि कसाब को फांसी दे दी गई है। तमाम टीवी चैनलों पर फांसी की खबरें और भारत की बहादुरी के किस्से शुरु हो जाते है।
 अब बात करें,विश्व के अन्य देशों की। अभी हाल ही में अमेरिका ने सद्दाम हुसैन पर मुकदमा चलाया। अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को उसके अंजाम तक चोरी छुपे नहीं पंहुचाया बल्कि खुले तौर पर प्रदर्शित किया। पूरी दुनिया को दिखाया कि अपराधियों का हश्र क्या होता है?इसराइल  गाजा पट्टी में बेहिचक अपनी ताकत दिखा रहा है और अपने एक एक नागरिक की जान के बदले दस दस विरोधियों की जान ले रहा है। वहां के बुध्दिजीवी अपने देश के निर्णय पर कोई उंगली नहीं उठाते क्योकि वे साफ्ट स्टेट नहीं है। वे अपने हितों की सुरक्षा के मामले में दुनिया के दूसरे देशों की चिन्ता नहीं करते। उन्हे अपने विरोधियों को खत्म करने में न तो कोई हिचक महसूस होती है और ना शर्म। दुनिया के  अन्य देश भी अमेरिका इस्त्राइल के कदमों पर टिका टिप्पणी नहीं करते।
लेकिन यहां भारत में 166 लोगों के क्रूर हत्यारे को फांसी चोरी छुपे दी जाती है और उपर से बेशरमी से अपनी बहादुरी के किस्से सुनाए जाते है। इतना ही नहीं सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबन्द की जाती है। पुलिस को हाई एलर्ट पर रखा जाता है।
 हमारे देश के नेताओं को इस बात की आशंका भी सताती है कि खुले आम 166 निर्दोष लोगों को भून देने वाले नरपिशाच को फांसी दिए जाने से कहीं कोई नाराज भी हो सकता है। इसी नाराजी की आशंका से बचने के लिए पुलिस के इंतजाम किए जाते है। क्या ऐसा होता है मजबूत देश?
 इतना ही नहीं दुर्दान्त आतंकवादी को बेहद गोपनीय तरीके से फांसी दिए जाने के बाद देश  के नेताओं में इसका श्रेय लेने की होड सी मच गई। सबसे पहले केन्द्रीय गृहमंत्री ने बयान दिया कि हमने सबकुछ बेहद गोपनीय तरीके से अंजाम दिया। इतने गोपनीय तरीके से कि इसकी जानकारी संप्रग अध्यक्ष और प्रधानमंत्री तक को नहीं दी गई। हांलाकि बाद में गलती महसूस होने पर उन्होने इसे ठीक कर लिया और कहा कि प्रधानमंत्री को मामले की पूरी जानकारी थी। लेकिन हमारे देश के नेता इस फांसी को गोपनीय तरीके से दिए जाने को अपनी उपलब्धि बताते रहे। जैसे कभी पोखरण में भारत ने बेहद गोपनीय तरीके से परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया था और पूरे विश्व से इस परीक्षण को छुपा कर रखा गया था। वह गोपनीयता जरुरी थी,लेकिन एक आतंकवादी को फांसी देने में गोपनीयता की क्या जरुरत थी? किससे डर रही थी सरकार? आतंकवादियों से या उनके समर्थकों से? क्या हमारी सरकार को यह डर था कि कहीं आतंकवादी कसाब को छुडा ले जाएंगे,या कि पडोसी देश नाराज होकर हमला कर देगा? डर आखिर किससे और क्यो? और अगर डर नहीं था तो गोपनीयता की जरुरत क्या थी?
   कसाब की फांसी के बाद अखबारों में मुंबई हमले के पीडीतों में से कुछ के बयान छपे है। एक पीडीत का बयान यह भी है कि यह अच्छा हुआ कि कसाब को गोपनीय तरीके से फांसी दी गई वरना मानवाधिकार वादी इस फांसी में अडंगा लगा सकते थे। हम भारतीयों में इस तरह का दब्बूपन कोई नई बात नहीं है। हमारे सैकडों लोग मार दिए जाते है लेकिन दोषी को मारने में हमे घबराहट होती है। नरपिशाचों को मृत्युदण्ड देने के मामले में भी हमारे नेता,और यहां तक कि सामान्य जनता का भी बडा हिस्सा घबराहट महसूस करता है। उन्हे लगता है कि दुनिया का कोई देश या समूह इस पर आपत्ति न उठा दे। हमे अपने निर्णयों पर दूसरों की टिका टिप्पणी से अधिक डर लगता है। इसके बावजूद अपने आपको मजबूत,साहसी और ताकतवर बताने का कोई मौका हम छोडते नहीं है।
 यदि देश वाकई में साफ्ट स्टेट नहीं होता तो कसाब का प्रकरण कैसे पूरा होता। कल्पना कीजिए। कसाब की हत्या के प्रकरण की सुनवाई के बाद उसकी मर्सी पिटीशन को तेज गति से निपटाया जाता। मर्सी पिटीशन खारिज होने के साथ ही उसकी फांसी का दिन मुकर्रर किया जाता और पूरे देश को इसकी जानकारी दी जाती कि कसाब को फलां दिन फांसी दी जाएगी। निश्चित दिन उसे फांसी दे दी जाती। देश के नेता इस बात की चिन्ता में नहीं पडते कि कहीं फांसी देने से शान्ति भंग न हो जाए।  बल्कि इस बात को इस मौके के रुप में देखा जाता कि अगर कहीं कोई कसाब का समर्थन करता पाया जाएगा तो वह सामने आ जाएगा और कसाब के साथ साथ उसका भी सफाया हो जाएगा।
 देश का कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो कसाब के अंजाम से इत्तफाक न रखता हो। यदि कहीं कोई ऐसा व्यक्ति इस देश में मौजूद है जो कसाब की फांसी का विरोध करता है,तो  उसे भी कसाब जैसे अंजाम तक पंहुचाने की ताकत और हिम्मत हमारे में होना चाहिए।  लेकिन फिलहाल भारत में ऐसा होता नजर नहीं आता। अभी हमे अमेरिका,चीन,इसराइल  और यहां तक कि पाकिस्तान जैसे देशों की कतार में आने में काफी समय लगेगा। संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु को जल्दी फांसी देने की मांग विपक्ष करें और सत्तापक्ष पहले प्रक्रियाओं का हवाला दे और बाद में कभी किसी दिन चोरी छुपे फांसी भी देदे। यह तो भारत में ही हो सकता है। इसके विपरित किसी देश के दुश्मन को रेकार्ड समय में मुकदमा चलाकर खुले आम दण्डित करने जैसा कलेजा अभी शायद हिन्दुस्तान के पास अभी नहीं है। हांलाकि हमे झूठ बोलने में शर्म नहीं आती इसलिए चोरी छुपे फांसी देने के बाद हम कहने लगते है कि हम साफ्ट स्टेट नहीं है और हमने बडी बहादुरी का काम किया है। ऐसा कहते समय हम भूल जाते है कि संसद हमले का दोषी अफजल गुरु अब भी जेल में बिरयानी उडा रहा है। कहा यह भी जा सकता है कि अगले किसी चुनाव के मौके पर शायद अफजल गुरु का भी नम्बर लग जाएगा।

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