Tuesday, December 30, 2014

फिल्म पीके का विरोध कितना जायज?

-तुषार कोठारी
 विधु विनोद चौपडा,राजू हीरानी और आमिर खान इन दिनों बेहद खुश होंगे। उनकी फिल्म पीके पहले ही हफ्ते में पीके दो सौ करोड के क्लब में शामिल तो हो ही गई थी। अब हर दिन फिल्म को लेकर चल रहे विरोध के कारण नया प्रचार मिल रहा है और हो सकता है कि अब पीके कमाई के नए रेकार्ड बना दे। धार्मिक भावनाओं को आहत करना ,धार्मिक परंपराओं पर आघात करना और देवी देवताओं को अपमानित करना भारत के तथाकथित बुध्दिजीवी और प्रगतिशील लोगों का पुराना शौक रहा है।
चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन हो या फिल्मकार राजू हीरानी,बुध्दिजीविता के नाम पर सनातन धर्म पर प्रहार करने में कोई पीछे रहना नहीं चाहता। लेकिन समस्या यह नहीं है। सनातन धर्म की सेहत पर इस तरह के हजारों आक्षेपों से भी कोई फर्क नहीं पडता। लेकिन समस्या  धर्म नहीं देश विरोधी भावना है। समस्या फिल्म की कथावस्तु या धार्मिक मान्यताओं का मखौल बनाने की नहीं,बल्कि इसके पीछे काम कर रही मानसिकता है। पीके फिल्म को बेहिचक प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए,लेकिन इसलिए नहीं कि उसने धार्मिक भावनाएं आहत की है। उसे प्रतिबन्धित इसलिए किया जाना चाहिए क्योकि उसने भारतीयों को नीचा दिखाने के साथ पाकिस्तानी युवक को उच्च आदर्शों वाला श्रेष्ठ व्यक्ति दिखाया है।
  पीके को लेकर शुरु हुए विवादों में मानसिकता का यह मुद्दा गौण हो गया है और सारे विरोध प्रदर्शन धार्मिक मान्यताओं पर किए गए प्रहारों पर केन्द्रित हो गए है। वास्तव में विरोध प्रदर्शन निर्देशक और निर्माता की मानसिकता का होना चाहिए लेकिन जो हो रहा है,उससे ऐसा जताया जा रहा है मानो यह विरोध आमिर खान का हो रहा हो। चूंकि आमिर खान मुसलमान है,इसलिए इस मुद्दे को और हवा मिल रही है।सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आमिर समर्थक तथाकथित प्रगतिशील लोगों ने यह तर्क दिया है कि जब परेश रावल ओ माय गाड में धार्मिक परंपराओं पर प्रहार करते है,तो उन्हे पुरस्कृत कर सांसद बना दिया जाता है,लेकिन यही काम आमिर करते है,तो उनका विरोध किया जाता है।
   फिल्म पीके की कहानी में धार्मिक पंरपराओं पर प्रहार करने के साथ साथ धर्मगुरुओं के फर्जीपन पर भी कटाक्ष है। धार्मिक परंपराओं पर व्यंग्य करने के साथ आगे बढती फिल्म की कथा आखिरकार नायिका और नायक की प्रेमकहानी पर आ टिकती है। नायिका भारत की हिन्दू युवती है। नायक शांति के स्वर्ग और  दुनिया के महान सज्जन लोगों से भरे पडे देश पाकिस्तान का निवासी है। भारतीय नायिका का पिता जिसे अपना गुरु मानता है,वह संत ढोंगी है। नायिका के माता पिता जिस धर्म को मानते है,उसमें लोग डर की वजह से मन्दिर जाते है और देवी देवताओं की पूजा करते है। पाकिस्तानी नायक भारतीय नायिका से कहता है कि चूंकि वह पाकिस्तानी है,इसलिए नायिका उसे नकार देगी। लेकिन नायिका अत्यन्त प्रगतिशील है। वह जानती है कि पाकिस्तान अत्यन्त सज्जन लोगों का देश है जहां प्रेम और सद्भाव की अधिकता है। इसलिए वह नायक को स्वीकार कर लेती है। लेकिन उनके बीच नायिका के पिता का ढोंगी गुरु आ जाता है,जो षडयंत्र पूर्वक पाकिस्तानी युवक को धोखेबाज सिध्द कर देता है। दूसरे ग्रह से आया प्राणी पीके मन ही मन नायिका से प्रेम करने लगता है,लेकिन जब उसे ज्ञात होता है कि नायिका पहले से पाकिस्तानी युवक से प्रेम करती है,वह अपने सारी शक्ति उन्हे मिलाने पर लगा देता है। आखिरकार दूसरे ग्रह से आया पीके सारी दुनिया के सामने यह सिध्द कर देता है कि नायिका के माता पिता नासमझ है,धर्मगुरु ढोंगी है,धार्मिक मान्यताएं और पंरपराएं हास्यास्पद और छोड देने के काबिल है। भारत के लोग सिर्फ चोरी चकारी और ठगी करते है। क्योकि दूसरे ग्रह से आए पीके के साथ पहली घटना ही चोरी की होती है। एक व्यक्ति उसका रिमोट चुरा लेता है। यदि कुछ अच्छा और सही है,तो वह पाकिस्तान का युवक अच्छा है। जिसने भारतीय नायिका को धोखा नहीं दिया था। आखिर में नायिका का पाकिस्तानी नायक से मिलन हो जाता है। इसमें नायिका के माता पिता भी राजी हो जाते है।
 यह तो हुई पीके की कहानी। हांलाकि फिल्म  पीके में यह नहीं बताया गया है कि मिलन के बाद नायिका जगतजननी पाकिस्तानी नायक सरफराज के साथ पाकिस्तान गई या नहीं। 
 
अब क्या भारत के लोगों का इतना हक नहीं बनता कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर शत्रु देश के लोगों के महिमामण्डन पर वे सवाल खडे कर सके। लेकिन भारत में यह सब कुछ चल सकता है। पाकिस्तान से आए आतंकवादी भारत के निर्दोष लोगों की हत्या करते रहे,भारत के हमारे प्रगतिशील लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। वे तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सेक्यूलरिज्म की दुहाई देते ही रहेंगे।
मुंबई की फिल्म नगरी में व्यावसायिकता इतनी हावी हो चुकी है कि इसके सामने ना तो रिश्तो नातों की कोई अहमियत है और ना देश या समाज की और ना ही किसी अन्य वस्तु की। फिल्म नगरी की व्यावसायिकता में  यदि कोई वस्तु महत्वपूर्ण है तो वह है धन। रुपए कमाने के लिए फिल्मों से जुडे लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते है। एक धर्म का मजाक बनाकर अगर कमाई हो सकती है,तो उन्हे इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। पीके की टीम तो पहले ही हफ्ते में दो सौ करोड रुपए कमा चुकी है। देश में विरोध प्रदर्शन जितना अधिक होगा,कमाई उतनी ही बढेगी। वैसे भी अब फिल्मों का प्रदर्शन सिर्फ भारत में ही नहीं होता,बल्कि दुनियाभर में होता है। विदेशों में विवादों की चर्चा होगी तो वहीं भी कमाई बढेगी।
 सड़कों पर विरोध तो फिल्म को अप्रत्यक्ष तौर पर लाभ ही पंहुचाता है। यदि सचमुच विरोध करना हो,तो बहिष्कार कीजिए। न्यायालय में प्रकरण दर्ज करवाईए जिससे कि कम से कम भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्तियां न हो।

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