Saturday, February 21, 2015

क्या सचमुच आ गए अच्छे दिन….?

- तुषार कोठारी
करीब साढे सात साल जेल में गुजार कर जमानत पर रिहा हुए गुजरात के आईपीएस पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा ने कहा कि अब अच्छे दिन आ गए है। लेकिन क्या सचमुच अच्छे दिन आ गए है। डीजी वंजारा के लिए तो जरुर अच्छे दिन आ गए है,लेकिन साध्वी प्रज्ञा और उन जैसे कई लोग है जो वोट बैंक की घृणित राजनीति की सूली पर चढाए गए और आज तक कष्ट झेलने को मजबूर है।

राष्ट्र की सुरक्षा और देशहित को वोट बैंक की घृणित राजनीति के कारण दांव पर लगा देने वाली राजनीतिक पार्टियां और नेता निश्चित ही राजनीति के कूडेदान में फेंके जा चुके है,लेकिन उनके द्वारा निरपराध लोगों पर किए गए अत्याचार अब भी जारी है। वास्तव में अच्छे दिन तो तब आएंगे जब कभी भगवा आतंकवाद और कभी फर्जी एनकाउण्टर के नाम पर जेलों में फंसाए गए तमाम निरपराध लोगों को न सिर्फ जेल से छुटकारा मिलेगा,बल्कि उन्हे उनका सम्मान भी वापस मिलेगा। इतने भर से भी अच्छे दिन नहीं आ जाएगें। वास्तव में अच्छे दिन तब आएंगे,जब एक समुदाय के वोट पाने की हवस में आतंकियों और अलगाववादी तत्वों की मदद करने वाले नेताओं को दण्डित करने के लिए कोई व्यवस्था बनाई जाएगी।
याद कीजिए कि पिछले साढे सात साल तक जिन पुलिस अधिकारियों को जेल में बंद किया गया उन्हे किस तरह की यातनाएं दी गई। मानवाधिकारों के नाम पर आतंकवादियों को मदद दी जाती रही और देशद्रोहियों से लडने वाले बहादुर सिपाहियों के मानवाधिकारों का हनन किया जाता रहा। इशरत जहां के कथित तौर पर फर्जी एनकाउण्टर के पूरे मामले में कभी ये प्रश्न नहीं उठाया गया कि अगर पुलिसकर्मियों ने इशरत जहां और उसके तीन साथियों की हत्या की थी,तो इसका उद्देश्य क्या था? किसी भी आपराधिक प्रकरण के अनुसंधान में अपराध का उद्देश्य सामने आना सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।
फर्जी एनकाउण्टर मामले की सुनवाई के दौरान किसी मानवाधिकार वादी ने यह प्रश्न नहीं पूछा कि यदि इशरत जहां और उसके साथी सचमुच मासूम थे,तो एनकाउण्टर करने वाले पुलिस अधिकारियों का उन्हे मारने का उद्देश्य क्या था? क्या कोई आपसी रंजिश थी या धन लूटने या बलात्कार करने जैसे किसी उद्देश्य से उनकी हत्या की गई? यह प्रश्न भी कभी नहीं उठाया गया कि मुंबई की कथित तौर पर एक निहायत मासूम १९ वर्षीय खुबसूरत मुस्लिम युवती मुंबई से सैकडों किमी दूर अहमदाबाद में तीन गैर मर्दो के साथ क्या करने गई थी? क्या वह पिकनिक मनाने गई थी? और उसके साथ जो तीन व्यक्ति थे,क्या वे उसके रिश्तेदार थे ? तत्कालीन जांच एजेंसियों के चतुर सुजान अधिकारियों के दिमागों पर उनके राजनीतिक आकाओं ने ताले जड रखे थे। वरना उनमें से किसी को यह नहीं सूझा कि हत्या जैसा गंभीर अपराध बिना किसी उद्देश्य के नहीं होता और जब तक उद्देश्य (मोटिव) सामने नहीं आता,अभियोजन संदिग्ध ही रहता है। साढे सात साल के अनुसंधान में आज तक हत्या का उद्देश्य सामने नहीं लाया गया। देश के तथाकथित मानवाधिकार वादी संस्थाओं और छद्म सेक्यूलर कार्यकर्ताओं को पाकिस्तानी आतंकियों के साथ मुंबई से अहमदाबाद जा पंहुची इशरत जहां का मानवाधिकार तो नजर आया,लेकिन पिछले साढे सात सालों से जेलों में बन्द पुलिस अधिकारियों के मानवाधिकार उन्हे नजर नहीं आए।
इतना ही नहीं,अल्पसंख्यक समुदाय के वोट हासिल करने की हवस में पिछली सरकार के नेता और मंत्री इतना पगला चुके थे,कि उन्हे देश की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाने में भी कोई शर्म या हिचक महसूस नहीं हुई। देश की आजादी के बाद से अब तक केन्द्रीय गुप्तचर ब्यूरो (आईबी) की क्षमता और निष्ठा पर कभी सवालिया निशान नहीं लगे। लेकिन पिछली यूपीए सरकार ने अपने स्वार्थ के कारण देश की सर्वोच्च गुप्तचार संस्था को भी संदिग्ध बनाने और यहां तक अपराधी घोषित करने में कसर नहीं छोडी।
इशरत जहां और उसके साथ अहमदाबाद पंहुच रहे आतंकियों के बारे में गुजरात पुलिस को अधिकृत सूचना आईबी ने ही दी थी। आईबी के इन्टैलिजेन्स इनपुट के आधार पर ही गुजरात पुलिस के आतंक निरोधी दस्ते ने इशरत और उसके साथियों को घेरने की योजना बनाई थी। इतना ही नहीं इशरत जहां के साथ मारे गए उसके साथियों के बारे में जम्मू काश्मीर पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस ने भी यह जानकारी दी थी कि वे आतंकवादी है।
पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चलाए गए फर्जी एनकाउण्टर प्रकरण के दौरान जब पुलिस अधिकारियों ने यह तथ्य उजागर किया कि इशरत जहां के बारे में प्रथम सूचना आईबी ने दी थी और आईबी की सूचना के आधार पर ही पुलिस ने कार्यवाही की। तब आतंकियों के इन सहयोगियों को लगा कि मामला उल्टा पड सकता है। वोटों के लिए देश तक को दांव पर लगाने को आतुर तत्कालीन सरकार के मंत्रियों ने सीबीआई को आईबी अधिकारियों के विरुध्द कार्यवाही करने तक के निर्देश दे दिए।
यदि किसी देश की प्रमुख गुप्तचर संस्था के अधिकारियों को आतंकियों की सूचना देने पर जेल भेजने जैसे पुरस्कार दिए जाने लगे तो उस देश की सुरक्षा व्यवस्था का क्या होगा? इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। नौबत यहां तक आ गई थी कि सीबीआई अपनी मातृसंस्था आईबी के अधिकारियों पर ही दबाव बनाने लगी थी। आईबी और सीबीआई जैसी प्रमुख संस्थाओं के आमने सामने आने से गुप्तचर संस्थाओं व अन्य सुरक्षा बलों में काम कर रहे निष्ठावान,कत्र्तव्यनिष्ठ और साहसी अधिकारियों में काम करने की बजाय मक्कारी करने के भाव उत्पन्न होने लगे। यदि कोई देश अपने गुप्तचर अधिकारियों को ही अपने ही देश में सुरक्षा नहीं दे सकता,तो उस देश में देशविरोधी गतिविधियों को रोकेगा कौन?
यही नहीं,साध्वी प्रज्ञा के बहाने भगवा आतंकवाद की झूठी कहानी रचने का षडयंत्र भी उन्ही दिनों किया गया। सत्ताधारी दल को जब लगने लगा कि अल्पसंख्यक वोट का आधार खिसकने लगा है,खुद ददको अल्पसंख्यकों का मसीहा बनाने के लिए झूठे भगवा आतंकवाद का ताना बाना बुना गया। जिन धमाकों में पहले इण्डियन मुाजहिदीन और लश्करे तैय्यबा जैसे आतंकी संगठनों के लिप्त होने के सबूत मिले थे,उन सबूतों को रफा दफा कर झूठे प्रमाण गढे गए और येन केन प्रकारेण भगवा आतंकवाद का हौवा खडा किया जाने लगा।
तत्कालीन सरकार के कुछ नेताओं को यह भी डर तेजी से सता रहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुस्लिमों से संवाद अल्पसंख्यकों को संघ के नजदीक ला रहा है। उन्हे यह डर सता रहा था कि अल्पसंख्यकों के मन से आरएसएस का डर समाप्त हो जाएगा। और यदि ऐसा हो गया तो उनके वोट हासिल करना असंभव सा हो जाएगा। संघ के मुस्लिमों से संवाद की कमान आरएसएस के वरिष्ठ नेता इन्द्रेश कुमार के हाथों में थी। इसलिए खासतौर पर इन्द्रेश कुमार को निशाना बनाया गया। एनआईए से जानबूझ कर इस आशय की खबरें लीक करवाई गई कि कथित भगवा आतंकवाद को इन्द्रेश कुमार का आशिर्वाद है।
बहरहाल वह दौर अब गुजर चुका है। लेकिन वास्तविक अच्छे दिन तो तभी आएंगे,जब मानवाधिकारों की आड में या सत्ता के दुरुपयोग के द्वारा राष्ट्रवादी ताकतों को प्रताडित करने और इस माध्यम से आतंकवादियों और अलगाववादियों की मदद करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के विरुध्द कडी कार्यवाही होगी। किसी समय सत्ता के महत्वपूर्ण पद पर रहे जिन व्यक्तियों ने अपने पदों का दुरुपयोग राष्ट्रद्रोही तत्वों की मदद करने में किया है,उन्हे तो बेहद सख्त सजा दी जाना चाहिए। यदि ऐसा न किया गया तो वोटों की हवस में देश की सुरक्षा को दांव पर लगाने वाले तत्व राजनीति की मुख्य धारा में सक्रिय बने रहेंगे और यह देश के लिए हमेशा खतरनाक साबित होगा। देश के लिए अच्च्छे दिन तो तभी होंगे,जब देश द्रोही तत्वों को बचाने वाले दण्डित होंगे और देश के खातिर खतरे उठाने वालों को सम्मान मिलेगा।

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