Sunday, June 14, 2015

यात्रा वृत्तान्त-9 गोवा कुलस्वामिनी के दरबार में

गोवा की यह यात्रा 29 जनवरी 2010 को शुरु हुई थी। यह पारिवारिक मित्रों की यात्रा थी,जिसमें मै,वैदेही,चिन्तन,नरेन्द्र शर्मा,श्रीमती सुनीता शर्मा और उदित अग्रवाल(टोनी) शामिल थे। इस यात्रा में गोवा के साथ साथ हम शिवाजी के प्रसिध्द सिंधु दुर्ग तक पंहुचे थे।

 दिनांक 30 जनवरी 2010 दोपहर 3.00 बजे
ब्लेसिंग होटल (पंजिम)
गोवा की राजधानी पणजी(पंजिम) के मुख्य बाजार एम जी रोड पर स्थित होटल ब्लेसिंग में,यात्रा की शुरुआत। यह मेरी गोवा की चौथी यात्रा है। एक बार बहुत बचपन में आई दादा के साथ आया था। उस यात्रा के बारे में मुझे अब कुछ भी याद नहीं है। दूसरी यात्रा करीब साढे तीन साल पहले हुई थी। यह सपरिवार यात्रा थी,जिसकी वापसी में मैं अकेला था। तब रतलाम में डीईओ संजीव दुबे पर हमला हो गया था और मुझे फौरन अकेले लौटना पडा था। इसके बाद मैं नरेन्द्र के साथ,उसकी सीएलआई टीम के साथ आया था और इस बार पारिवारिक मित्रों के साथ की यात्रा है। मै,वैदेही ,चिन्तन नरेन्द्र,सुनीता और उदित। हम छ: लोग यात्रा में है।
कल शाम रतलाम से मरुसागर एक्सप्रेस से हम निकले थे। नरेन्द्र की किस्मत ने साथ दिया,वरना उसे पर्याप्त देरी हो गई थी। पता नहीं क्या हुआ ,सिग्रल होने के बावजूद 15 मिनट तक ट्रेन खडी रही और ये दोनो ट्रेन में आ गए। ट्रेन में रात करीब आठ बजे भोजन किया और पौने बारह पर सो गए। सुबह कोंकण रेलवे की सुरंगों से भरा रेलवे ट्रैक देखते,बातें करते करते मडगंाव की तरफ तेजी से बढ रहे थे। इसी बीच कारवार से महेश साखरकर का फोन आया। रास्ते में ही हमने तय कर लिया कि मडगांव से काफी पहले थिवि (थिविम) स्टेशन पर उतरा जाए। इस तरह हमने डेढ घण्टा बचा लिया।
यहां विजू पिल्लै ने ब्लैङ्क्षसग होटल में कमरे बुक करवाए है। उसके दो सहायक होटल में पंहुच गए थे। इस वक्त हम नहा धोकर सफर की फटकार को दूर कर रहे हैं।
31 जनवरी 2010 होटल ब्लैसिंग पणजी (सुबह 10.00)
कल दोपहर को यहां पंहुचने के बाद शाम करीब 4 बजे मिरामार बीच पर पंहुचे। मिरामार सबसे नजदीकी बीच है। यहां रेत में हाथ पांव खराब करने के बाद बस पकड कर डोनापाला बीच पंहुच गए। समुद्र लो टाइड पर थान,इसलिए डोनापाला पर लहरों की टकराहट,शोर कुछ भी नहीं था। यहां ऊं चाई से फोटो लेने के बाद वापस लौटे। रात सवा आठ बजे हमें क्रूज पर जाना था। क्रूज के किट विजू ने मंगवा लिए थे। क्रूज पर एक घण्टे की सवारी में डीजे साउण्ड के साथ लोगों का डांस देखा। सवा नौ बजे रात को होटल पंहुचे और रात बारह बजे सो पाए। अभी होटल से निकलने की तैयारी है। लोकमत वालों की बदौलत हमारे पास तीन मोटर साइकिल आ चुकी है और आज हम इसी से घूमेंगे।
1 फरवरी 2010 सोमवार-श्री शांतादुर्गा
(सुबह 6.45 )
आज सुबह कुलस्वामिनी श्री शांतादुर्गा के मंदिर में,मै और वैदेही देवी के अभिषेक की तैयारी में लगे है।
 कल होटल से निकलते निकलते ग्यारह बजगए थे। होटल से निकले,फोरी बोट में एक्टिवा स्कूटर लेकर चढे और दूसरे किनारे पर उतरे। वहां से कलागुंट बीच के लिए रवाना हुए। कलागुंट बीच पर पंहुच कर टोनी के जोर डालने पर पैरासेलिंग की। इस बीच पर कई तरह के वाटर स्पोर्ट्स होते है। पैरासैलिंग के लिए बोट में बैठ कर समुद्र के बीच में गए। वहां दूसरी बोट में बठकर सबने पैरासैङ्क्षलग की। लौटे तब तक दो बज गए थे। सबको जोर की भूख लग आई थी। बीच से निकल कर एक उडुपी होटल में भोजन किया और बागा बीच के लिए रवाना हुए।  बागा बीच उसी बीच का एक्सटेंशन था। यहां ज्यादा देर नहीं रुकते हुए सेंट फ्रान्सिस्को चर्च देखने निकले।
4 फरवरी खारघर (दोपहर 2.00 बजे)
1 फरवरी की शाम के बाद आज समय मिल पाया। 1 फरवरी की शाम के बाद लगातार भागदौड जारी रही। इतना समय ही नहीं मिल पाया कि यात्रा वृत्तान्त लिखा जा सके। मै खारघर में नाना काका के पास हूं और यादें पीछे ले जा रहा हूं ताकि यात्रा का पूरा विवरण लिख सकूं।
31 जनवरी को  शाम को सेंट फ्र ान्सिस्को चर्च और म्यूजियम देखने ओल्ड गोवा पंहुचे। कहते हैं सेन्ट फ्रान्सिस्को का साढे तीन सौ साल पुराना शव यहां रखा हुआ है। इस शव के नाखून आज भी बढते है और साल में एकाध बार इसे खोलकर दिखाया भी जाता है। बाकी दिनों में सिर्फ ताबूत ही देखा जा सकता है। मै यह सब पहले देख चुका था। इस बार नए लोग थे,इसलिए फिर चला गया था। चर्च देखा,लेकिन म्यूजियम बन्द हो चुका था। शाम के साढे छ: बज चुके थे। हमे रात को ही श्री शांतादुर्गा संस्थान पंहुचना था,जो पणजी से करीब 35 किमी दूर है। ओल्ड गोवा से पणजी करीब 10 किमी दूर है। इस तरह हमें 45 किमी की यात्रा करना थी। चुनौती यह भी थी कि वहां रात नौ बजे से पहले पंहुचना था। इससे पहले पणजी में होटल पंहुच कर बैग उठाना था। बहुत तेजी से पणजी पंहुचे। होटल से बैग उठाकर तेजी से रवाना होने की इच्छा थी। इधर जैसे ही होटल से नीचे उतरे श्रीमती शर्मा की तबियत चाय न मिलने की वजह से खराब होने लगी। शर्मा जी ने जैसे तैसे उन्हे स्कूटर पर बैठाकर मेरे पीछे चले। टोनी पणजी में ही में रुक गया था। लगातार तेज गाडी चलाते हुए मै रात साढे आठ पर श्री शांतादुर्गा पंहुच ही गया। फोण्डा के बाद हम एक जगह रास्ता भी भटके लेकिन गनीमत रही कि समय पर मन्दिर में पंहुच गए। वरना रात को कमरा मिलने की दिक्कत आ सकती थी। मन्दिर पंहुचकर कमरा लिया। शर्मा दम्पत्ति भी जल्दी  ही वहां पंहुच गए। वहां केन्टीन में भोजन करने के बाद सो गए,क्योङ्क्षक सुबह जल्दी उठकर देवी का अभिषेक करना था।
1 फरवरी 2010 (श्री शांतादुर्गा)
सुबह मन्दिर में 6 बजे उठकर स्नान के बाद मै और वैदेही अभिषेक के लिए मन्दिर पंहुचे। पुरोहित वीनू पेण्डसे ने अभिषेक करवाया और पेण्डसे गुरुजी के घर पर भोजन आदि करते करते दोपहर दो बज गए। यहां के सारे प्रसिध्द धर्मस्थल देखकर पुन: पणजी पंहुचने का कार्यक्रम था। स्कूटरों से देवस्थान देखने निकले। नागेशी,महालक्ष्मी,गणपति मन्दिर आदि तो नजदीक है,लेकिन श्री मंगेश मन्दिर 10 किमी दूर है। पता चला कि मंगेश पणजी के रास्ते पर ही है। अब हमे पौण्डा भी नहीं जाना है। वापस मन्दिर लौटे,बैग उठाए और मंगेश महादेव के दर्शन करते हुए शाम करीब साढे छ: बजे फिर होटल पंहुच गए। शाम का भोजन विजू पिल्लई के घर पर करना था। विजू के घर रात नौ बजे पंहुच पाए और साढे दस बजे तक फिर से होटल पंहुच पाए।
2 फरवरी पणजी-कारवार
वैसे तो 2 फरवरी की शाम को वापसी का आरक्षण था,लेकिन कल ही यह तय हो गया था कि कार्यक्रम को 1 दिन आगे बढाकर ३ फरवरी को वापसी करना है। 2 फरवरी को पणजी से कारवार जाने की योजना थी जहां भानूमामा रेगे की छोटी लडकी सविता रहती है। उसके पति महेश साखरकर कोंकण रेलवे में रीजनल पर्सनल आफिसर है। उन्ही के कहने पर कि 3 फरवरी का आरक्षण हो जाएगा,हमने कार्यक्रम आगे बढाया था। इधर विजू का आग्रह था कि हम उसके बॉस संदीप विश्नोई से मिलकर जाए। संदीप विश्नोई,लोकमत गोवा के मुद्रक प्रकाशक और एमडी है। संदीप विश्नोई से मिलते मिलाते दोपहर बारह बज गए। यहां से हम विजू और उसके असिस्टेण्ट कल्पेश के साथ पणजी के बस स्टैण्ड पर पंहुचे। बस स्टैण्ड पर पता चला कि टोनी की तबियत ज्यादा खराब हो रही है। उसे हायपर एसिडीटी हो रही थी और बिना इंजेक्शन उसका उध्दार संभव नहीं था। कल्पेश अपनी कार से उसे अस्पताल ले गया,जहां उसकी पत्नी नर्स है। पणजी बसस्टैण्ड पर ही रेलवे का रिजर्वेशन काउण्टर भी है। यहां आसानी से हमारे टिकट रद्द हो गए। डेढ बजे पणजी से सीधे कारवार के लिए बस थी। इसी टाइम में टोनी को इंजेक्शन भी लगवा लिया और डेढ बजे की बस में हम कारवार के लिए रवाना हो गए। कारवार पणजी से 110 किमी दूर है। शाम सवा 4 बजे हम कारवार में थे। अब टोनी की तबियत भी ठीक हो गई थी। कारवार बस स्टैण्ड पर महेश जी हमे लेने आ गए थे। रेलवे स्टेशन यहां से करीब 7 किमी दूर है। उनके घर पंहुचने के बाद शाम आठ बजे हमने नया रिजर्वेशन करवाया। टोनी और शर्मा दम्पत्ति को रात्रि विश्राम के लिए स्टेशन के रिटायरिंग रुम में जगह मिल गई थी। सुबह 6 बजे हमें कुडाल के लिए रवाना होना था,क्योंकि सिंधुदुर्ग जाने का रास्ता कुडालसे ही होकर है।
5 फरवरी कारवार-कुडाल
सविता के घर से रेलवे स्टेशन नजदीक ही है। हम सुबह पैदल ही स्टेशन पंहुचे। 6 बजे की ट्रेन से हम साढे सात बजे मडगांव पंहुचे।

7 मार्च 2010 (रात 12.30)
चित्तौडगढ
चित्तौडगढ के पीडब्ल्यूडी रेस्टहाउस में 1 महीने 4 दिन बाद डायरी से जुडने का मौका मिला। आज मै,नरेन्द्र,भारत,टोनी और राजेश घोटीकर के साथ फिर से लम्बी यात्रा पर निकला हूं। शाम साढे 4 बजे रतलाम से चले थे,10.30 पर चित्तौडगढ पहुंचे। वास्तविक चित्तौडगढ देखकर अभी नीचे उतरे है। अभी की कहानी शुरु करने से पहले पिछली गोवा की कहानी पूरी कर ली जाए।
3 फरवरी 2010
कारवार-कुडाल-मालवण
मडगांव से कुडाल की ट्रेन में बैठे और करीब साढे आठ बजे कुडाल पंहुच गए। यहां संगीता रहती है,सविता की बडी बहन। महेश जी साखरकर ने कल रात ही संगीता को फोन पर खबर कर दी थी कि हम पंहुचने वाले है। हम स्टेशन पर पंहुचे तो कुडाल स्टेशन के रिटायरिंग रुम में ही नित्यकर्म से निवृत्त हुए। इस बीच संगीता के पतिदेव ढूंढते हुए वहां पंहुच गए। उनके साथ संगीता के घर पंहुच गए। स्नान और नाश्ता वहीं किया। पता चला कि संगीता और उसके वो दोनो साईकियाट्रिस्ट है। उन्ही की मारुति वैन से दोपहर करीब 11 बजे कुडाल से मालवण के लिए चले। मालवण कुडाल से 20 किमी दूर है। मालवण से ही नाव में बैठकर सिंधुदुर्ग जाना होता है। बरसों पुरानी इच्छा यहां आकर पूरी हुई। नाव में बैठकर सिन्धुदुर्ग पंहुचे।
सिन्धु दुर्ग में जो कुछ देखा,उस पर पूरा लेख लिख चुका हूं। यह लेख गुरु एक्सप्रेस में छप भी चुका है। हो सकता है यूएनआई से भी जारी  हो जाए।
बहरहाल,हम मालवण से कुडाल शाम को लौटे। यहां से कोंकण कन्या ट्रेन में हमारा रिजर्वेशन कन्फर्म था। सुबह 6 बजे( 4 फरवरी) को मुंबई रिजन में पंहुच गए। साढे छ: बजे तक खारघर में नाना काका विकास दादा के घर पंहुच गए और सौ गए। दिन भर नाना काका,कुमुद काकी के साथ गुजारा। शाम को विकास दादा ने रेलवे स्टेशन छोडा और लोकल ट्रेन पकड कर रात आठ बजे मुंबई सेन्ट्रल पंहुच गए। यहां टोनी भी पंहुच गया। हमारी पांचो सीटें कन्फर्म हो चुकी थी। सूरत से शर्मा दम्पत्ति   भी सवार हो गए। 5 फरवरी 2010 की सुबह हम सब रतलाम पंहुच गए।

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