रतलाम से तिरुवनन्तपुरम(त्रिवेन्द्रम)
7 अगस्त 2013 से 13 अगस्त 2013
केरल की राजधानी और पदमनाभ स्वामी के मन्दिर के लिए प्रसिध्द त्रिवेन्द्रम की यात्रा का योग मलय की वजह से बना। मलय को इसरो के कालेज में प्रवेश मिल चुका था और उसे प्रवेश दिलाने के लिए प्रतिमा ताई के साथ त्रिवेन्द्रम जाने का कार्यक्रम बनाया। यह यात्रा पूरी तरह ट्रेन की यात्रा थी,जिसमें चार दिन हमने ट्रेन में गुजारे थे।
दिनांक 9 अगस्त 2013 (सुबह 9.30)
त्रिवेन्द्रम रेलवे रिटायरिंग रुमत्रिवेन्द्रम सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन की उपरी मंजिल पर रेलवे रिटायरिंग रुम के एसी डोरमैट्री में मौजूद मैं पिछले दो दिनों की यात्रा पर नजर डाल रहा हूं। मलय तो आई आई एस टी में दाखिल कराने की योजना बनी तो हमने त्रिवेन्द्रम राजधानी के तीन टिकट बडौदा से बुक कराए। मा. प्रभाकर जी 7 अगस्त को बडौदा में मिलने वाले थे।
7 अगस्त 2013- रतलाम से सुबह 6 बजे जनता पकडना थी। इससे पहले 5 बजे अवन्तिका पर ज्ञानेश दादा से मिलना था। इसलिए सुबह 4 बजे उठकर तैयार हुआ। हरीश स्टेशन पर छोडने आया था। अवंतिका पर मुलाकात के बाद जनता में सवार हुए। ग्यारह बजे बडोदरा पंहुच गए। डांडिया बाजार में ही वृन्दावन होटल में प्रभाकर जी की प्रेस कान्फ्रेन्स थी। घर पंहुचकर स्नान आदि करके मै और मलय वृन्दावन होटल जा पंहुचे। भोजन भी वहीं था। प्रेस कान्फ्रेन्स के बाद दोपहर दो बजे प्रभाकर जी के साथ घर लौटे। वहां से रणू नामक गांव जाने का कार्यक्रम था,जहां तुलजा भवानी का मन्दिर है। करीब तीन बजे कार से रणू के लिए निकले। हम पांच लोग,मै,मलय,प्रभाकर जी,प्रतिमा और आरती वहिनी। रणू में दर्शन कर लौटने में करीब 6 बज गए। जाते वक्त हमने सिके भुट्टे खाए थे। आते वक्त उबले हुए अमेरिकन भुट्टे खा लिए। शायद यही आगे चलकर परेशानी का कारण बना। शाम को घर लौटे। मैने प्रभाकर जी की प्रेस कान्फ्रेन्स की खबर बनाई। आठ बजे भोजन करने बैठे। साढे आठ पर मैं और नारायण उन्हे छोडने स्टेशन गए। हमारी ट्रेन रात 10.35 पर थी। आरक्षण हो चुका था,इसलिए निश्चिन्त थे। लौट कर फिर से स्टेशन जाने की तैयारी में लग गए। इधर मुझे पेट में गडबड महसूस होने लगी। एक उल्टी भी हो गई। खैर। रात को सही समय पर स्टेशन पंहुचे और ट्रेन में सवार हो गए।
8 अगस्त 2013(त्रिवेन्द्रम राजधानी ट्रेन में)राजधानी एक्सप्रेस में मेरा पहला सफर। रात तो आराम से कटी। सुबह मालूम हुआ कि पेट साथ नहीं दे रहा है। अपच की समस्या है। भोजन में दही भात खाया। उम्मीद थी कि शाम तक ठीक हो जाउंगा पर ऐसा नहीं हुआ। पूरा दिन ट्रेन कोंकण के पहाडी रास्तों से गुजरती रही।रास्ते भर पहाडी सुरंगे,उंचे नीचे पहाड,जंगल,नदियां,तालाब नजर आते रहे। शाम को भी पेट का मामला ठीक नहीं हुआ। त्रिवेन्द्रम में रुकने के लिए पीडब्ल्यूडी के नेदूमंगड रेस्ट हाउस की बुकींग करवाई थी। वहां से कहा गया था कि 7 अगस्त को कन्फरमेशन देंगे लेकिन कोई फोन नहीं आया। 8 अगस्त को दो-तीन बार पीडब्ल्यूडी को फन किया,लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। रात को ट्रेन भी खाली हो गई। त्रिवेन्द्रम आखरी स्टेशन है। सुबह नौ बजे यहां उतरे। सोचा,यहीं रिटायरिंग रुम देखें जाए। यहां हमें कमरे और पलंग मिल गए। प्रतिमा को एसी हट मिली है,जबकि हम दोनो(मै और मलय) डोरमैट्री में हैं। यहां स्नान आदि करने के बाद आईआईएसटी के बारे में जानकारी लेंगे।
10 अगस्त 2013 शनिवार (रात साढे नौ बजे)
त्रिवेन्द्रम रिटायरिंग रुम
9 अगस्त को सुबह नौ बजे तिरुवनन्तपुरम स्टेशन उतरने और रिटायरिंग रुम में स्नान आदि करने के बाद करीब ग्यारह बजे हम तैयार होकर यहां से निकले। स्टेशन के प्रीपैड आटो बूथ से मात्र 24 रु.में पदमनाभ स्वामी मन्दिर के लिए आटो किया और मन्दिर पंहुचे।मन्दिर स्टेशन से काफी नजदीक है। मन्दिर की खासियतें बुहत सारी है। शेषशायी विष्णु की मूर्ति है,जिसकी नाभि में से कमल निकला है और कमल पर ब्रम्हा जी विराजित है। मन्दिर में यह मूर्ति तीन दरवाजों के पीछे है। मै सिर्फ मध्य और पैरों का हिस्सा देख पाया। मुख्य मन्दिर के स्तंभ सोने के पतरे से मंढे हुए है। इस विशाल मन्दिर में जाने के लिए धोती(बिना सिले वस्त्र) अनिवार्य है। महिलाओं के लिए साडी अनिवार्य है। बडी मशक्कत के बाद धोतियां किराये पर मिली। फिर मन्दिर में गए। दर्शन के बाद बाहर आकर पास ही के एक होटल में भोजन किया। मेरा पेट अभी गडबड ही था। मैने ज्यूस पिया और फ्रूट सलाद खाई।
यहां से कोवलम बीच जाने वाली बसें नजर आई। एसी बस में बैठकर कोवलम बीच पंहुच गए। कोवलम बीच का बहुत नाम सुना था। अच्छा साफ सुथरा बीच है। बीच पर कुछ समय गुजारने के बाद नारियल पानी पिया और फिर बस में सवार हो कर रेलवे स्टेशन पहुंच गए। शाम हो चुकी थी। मैं दिनभर में पुदीन हरा की तीन गोलियां खा चुका था,लेकिन पेट साथ देने को राजी ही नहीं था। शाम के भोजन के लिए उतरे तो प्रतिमा ने दवाई लेने की सलाह दी। मैने फौरन डॉ.पाठक सा. को फोन लगाया। उन्होने दवा बताई। लेकिन साढे आठ बज चुके थे। यहां त्रिवेन्द्रम के बाजार जल्दी बन्द हो जाते है। मेडीकल स्टोर करीब एक घण्टे तक ढूंढा,लेकिन सब बन्द मिले। थक हार कर लौटे। सुबह आठ बजे आईआईएसटी की बस पकडना थी। आए और करीब साढे दस पर सो गए।
10 अगस्त 2013- सुबह 6 बजे उठे। 8 बजे बस पकडना थी। जल्दी जल्दी तैयार हुए और मलय का सामान लेकर स्टेशन से थोडी ही दूर आरएमएस आफिस पंहुच गए,जहां बस मिलने वाली थी। यहां आईआईएसटी के कई छात्र व उनके परिजन मौजूद थे। कुछ ही देर में एक बस आई। जल्दी ही दूसरी बस भी आ पंहुची। दोनो बसें भर गई। हमें तीसरी बस में जगह मिली। पूरा त्रिवेन्द्रम शहर घुमाते हुए बस करीब एक घण्टे में आईआईएसटी के परिसर में पंहुची। यह परिसर कई एकड में फैला है। बस सीधे होस्टल एरिया में पंहुची,जहां आद्र्रा नामक होस्टल भवन में हम उतरे। वहां छात्रों का सामान रखा जा रहा था। सामान रखने के बाद फिर बस में बैठाकर एकेडैमिक ब्लाक में ले जाया गया। यहां मलय के साथ प्रतिमा एडमिशन की प्रक्रिया पूरी करने चली गई ,मुझे एक क्लास रुम में इन्तजार करने को कहा गया। यहां कई सारे लोग और भी थे। करीब एक घण्टे के इंतजार के बाद सुरक्षाकर्मी ने अल्पाहार की सूचना दी। मैने जाकर एक वडा और कुछ चिप्स खाए। काफी पी। डर यह था कि पेट दगाबाजी न कर दे। करीब एक बजे सुरक्षाकर्मी ने भोजन तैयार होने की सूचना दी। तभी प्रतिमा का फोन आया कि प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है। आईआईएसटी प्रबन्धन ने भोजन के लिए एक पाण्डाल लगाया था,जहां सादा भात,पुलाव,सांभर,रायता और इमरती भोजन के लिए उपलब्ध थी। कुछ ही देर में मलय व प्रतिमा भी वहां आ गए। मैने थोडे से चावल खाए। भोजन के बाद मलय के मोबाइलक कनेक्शन और बैंक खाते के लिए फिर भीतर गए। दोनो काम करीब एक घण्टे में पूरे हुए। यह प्रक्रिया निपटने के बाद फिर एक वाहन में बैठाकर होस्टल बिल्डिंग में लाया गया,जहां मलय को आद्र्रा बिल्डिंग में 307 नम्बर का कक्ष आवंटित कर दिया गया।हमने मलय का सामान वहां पंहुचाया। कमरा देखा। हम कमरे में दो छात्रों के रहने की व्यवस्था है। 2 पलंग,2अलमारी,टेबल कुर्सी आदि है। मलय का रुम पार्टनर अभी तय नहीं हुआ है। त्रिवेन्द्रम की बस रवाना होने वाली थी। हम नीचे आए और बस में सवार हो गए। मलय से बिदा ली और करीब पौने पांच बजे फिर से त्रिवेन्द्रम स्टेशन आ गए। हम अपने साथ एक बडा लिफाफा लेकर आए थे,जिसमें आईआईएसटी का बाण्ड था,जो भरकर पुन: आईआईएसटी को भेजना है। स्टेशन पर उतरे तो रुम में जाने की बजाय पहले दवा खरीदने का विचार बना। नजदीक के पहले मेडीकल स्टोर पर ओ टू तो मिल गई,लेकिन स्पोरलेक नहीं मिली। अगली मेडीकल शाप पर स्पोरलेक नहीं थी,लेकिन लैक्टिक एसिड की दूसरी गोली मिल गई। लौटते समय रास्ते में एक ठेले पर काफी पी और स्टेशन पर आए। फ्रैश होने के बाद प्रतिमा ने कहा हम म्यूजियम देख सकते है। आटो पकड कर म्यूजियम देखने गए,लेकिन म्यूजियम बन्द हो चुका था। करीब सात बजे वहां से लौटे,तो सीधे पदमनाभ मन्दिर चले गए। पदमनाभ मन्दिर के आस पास थोडी खरीददारी की और भोजन कर आटो से स्टेशन लौटे। अभी सवा आठ हुए थे। उपर आए,कि प्रतिमा ने उस लिफाफे के बारे में पूछा जो हम आईआईएसटी से लाए थे। लिफाफा कहीं नहीं था। लगा कि मेडीकल स्टोर पर भूले होंगे। भागते हुए मेडीकल स्टोर पंहुचे। लेकिन लिफाफा वहां नहीं था। मुझे हांलाकि लग रहा था कि इतनी बडा गडबड़ तो नहीं हो सकती। फिर काफी वाले के यहां पंहुचे। वहां भी बात नहीं बनी। फिर उस पहले मेडीकल स्टोर पर पंहुचे जहां से ओ टू खरीदी थी। भगवान की कृपा थी कि लिफाफा वहीं था ौर सही सलामत था। लिफाफा लेकर स्टेशन पंहुचे। सुबह की ट्रेन की जानकारी ली। सुबह सात बजे कोंचूवेली के लिए पैसेंजर ट्रेन है। कोंचूवेली से ही मुंबई की गरीब रथ मिलेगी।
अब सोने का समय। कल सुबह फिर जल्दी उठना है। फिर 36 घण्टों का ट्रेन का सफर।
12 अगस्त 2013(सुबह नौ बजे)
गरीब रथ कोच न.एस-11
यात्रा का अंतिम दिन। दोपहर तक मुंबई पंहुचेंगे। वहां से रतलाम के लिए। कल की सुबह रतलाम में होगी।
कल यानी 11 अगस्त को सुबह पांच बजे उठे। 7 बजे कोंचूवेली से ट्रेन थी। समय पर टिकट लेकर प्लेटफार्म पर पंहुचे। पता चला कि ट्रेन आधा घण्टा लेट है। प्रीपैड बूथ से आटो लेकर कोंचूवेली स्टेशन पर पंहुचे। करीब बीस मिनट का रास्ता था। यहां गरीब रथ का करीब सवा घण्टा इंतजार किया। सुबह 9.50 पर ट्रेन चली। पिछले करीब चौबीस घण्टों से इसी ट्रेन में हैं। चाणक्य सीरीयल के कई सारे एपिसोड देख डाले।
तिरुवनन्तपुरम जाते समय पूरा कोंकण इलाका दिन भर दिखाई देता रहा था। आज कोंकण का अधिकांश हिस्सा रात में गुजर गया। सुबह करीब साढे सात पर ट्रेन रत्नागिरी पंहुची। यह भी कोंकण इलाका है। घना जंगल,पहाड,नदियां। थोडी थोडी देर में ट्रेन सुरंग में समा जाती है। पहाडी सुरंगे काफी लम्बाई की है। पनवेल के पहले तक कोंकण इलाका रहेगा। फिर मुंबई का असर दिखने लगेगा। शाम को मुंबई सेन्ट्रल से अगस्तक्रान्ति राजधानी में बैठना है। रात ढाई बजे रतलाम पंहुचेंगे।
7 अगस्त 2013 से 13 अगस्त 2013
केरल की राजधानी और पदमनाभ स्वामी के मन्दिर के लिए प्रसिध्द त्रिवेन्द्रम की यात्रा का योग मलय की वजह से बना। मलय को इसरो के कालेज में प्रवेश मिल चुका था और उसे प्रवेश दिलाने के लिए प्रतिमा ताई के साथ त्रिवेन्द्रम जाने का कार्यक्रम बनाया। यह यात्रा पूरी तरह ट्रेन की यात्रा थी,जिसमें चार दिन हमने ट्रेन में गुजारे थे।
दिनांक 9 अगस्त 2013 (सुबह 9.30)
त्रिवेन्द्रम रेलवे रिटायरिंग रुमत्रिवेन्द्रम सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन की उपरी मंजिल पर रेलवे रिटायरिंग रुम के एसी डोरमैट्री में मौजूद मैं पिछले दो दिनों की यात्रा पर नजर डाल रहा हूं। मलय तो आई आई एस टी में दाखिल कराने की योजना बनी तो हमने त्रिवेन्द्रम राजधानी के तीन टिकट बडौदा से बुक कराए। मा. प्रभाकर जी 7 अगस्त को बडौदा में मिलने वाले थे।
7 अगस्त 2013- रतलाम से सुबह 6 बजे जनता पकडना थी। इससे पहले 5 बजे अवन्तिका पर ज्ञानेश दादा से मिलना था। इसलिए सुबह 4 बजे उठकर तैयार हुआ। हरीश स्टेशन पर छोडने आया था। अवंतिका पर मुलाकात के बाद जनता में सवार हुए। ग्यारह बजे बडोदरा पंहुच गए। डांडिया बाजार में ही वृन्दावन होटल में प्रभाकर जी की प्रेस कान्फ्रेन्स थी। घर पंहुचकर स्नान आदि करके मै और मलय वृन्दावन होटल जा पंहुचे। भोजन भी वहीं था। प्रेस कान्फ्रेन्स के बाद दोपहर दो बजे प्रभाकर जी के साथ घर लौटे। वहां से रणू नामक गांव जाने का कार्यक्रम था,जहां तुलजा भवानी का मन्दिर है। करीब तीन बजे कार से रणू के लिए निकले। हम पांच लोग,मै,मलय,प्रभाकर जी,प्रतिमा और आरती वहिनी। रणू में दर्शन कर लौटने में करीब 6 बज गए। जाते वक्त हमने सिके भुट्टे खाए थे। आते वक्त उबले हुए अमेरिकन भुट्टे खा लिए। शायद यही आगे चलकर परेशानी का कारण बना। शाम को घर लौटे। मैने प्रभाकर जी की प्रेस कान्फ्रेन्स की खबर बनाई। आठ बजे भोजन करने बैठे। साढे आठ पर मैं और नारायण उन्हे छोडने स्टेशन गए। हमारी ट्रेन रात 10.35 पर थी। आरक्षण हो चुका था,इसलिए निश्चिन्त थे। लौट कर फिर से स्टेशन जाने की तैयारी में लग गए। इधर मुझे पेट में गडबड महसूस होने लगी। एक उल्टी भी हो गई। खैर। रात को सही समय पर स्टेशन पंहुचे और ट्रेन में सवार हो गए।
8 अगस्त 2013(त्रिवेन्द्रम राजधानी ट्रेन में)राजधानी एक्सप्रेस में मेरा पहला सफर। रात तो आराम से कटी। सुबह मालूम हुआ कि पेट साथ नहीं दे रहा है। अपच की समस्या है। भोजन में दही भात खाया। उम्मीद थी कि शाम तक ठीक हो जाउंगा पर ऐसा नहीं हुआ। पूरा दिन ट्रेन कोंकण के पहाडी रास्तों से गुजरती रही।रास्ते भर पहाडी सुरंगे,उंचे नीचे पहाड,जंगल,नदियां,तालाब नजर आते रहे। शाम को भी पेट का मामला ठीक नहीं हुआ। त्रिवेन्द्रम में रुकने के लिए पीडब्ल्यूडी के नेदूमंगड रेस्ट हाउस की बुकींग करवाई थी। वहां से कहा गया था कि 7 अगस्त को कन्फरमेशन देंगे लेकिन कोई फोन नहीं आया। 8 अगस्त को दो-तीन बार पीडब्ल्यूडी को फन किया,लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। रात को ट्रेन भी खाली हो गई। त्रिवेन्द्रम आखरी स्टेशन है। सुबह नौ बजे यहां उतरे। सोचा,यहीं रिटायरिंग रुम देखें जाए। यहां हमें कमरे और पलंग मिल गए। प्रतिमा को एसी हट मिली है,जबकि हम दोनो(मै और मलय) डोरमैट्री में हैं। यहां स्नान आदि करने के बाद आईआईएसटी के बारे में जानकारी लेंगे।
10 अगस्त 2013 शनिवार (रात साढे नौ बजे)
त्रिवेन्द्रम रिटायरिंग रुम
9 अगस्त को सुबह नौ बजे तिरुवनन्तपुरम स्टेशन उतरने और रिटायरिंग रुम में स्नान आदि करने के बाद करीब ग्यारह बजे हम तैयार होकर यहां से निकले। स्टेशन के प्रीपैड आटो बूथ से मात्र 24 रु.में पदमनाभ स्वामी मन्दिर के लिए आटो किया और मन्दिर पंहुचे।मन्दिर स्टेशन से काफी नजदीक है। मन्दिर की खासियतें बुहत सारी है। शेषशायी विष्णु की मूर्ति है,जिसकी नाभि में से कमल निकला है और कमल पर ब्रम्हा जी विराजित है। मन्दिर में यह मूर्ति तीन दरवाजों के पीछे है। मै सिर्फ मध्य और पैरों का हिस्सा देख पाया। मुख्य मन्दिर के स्तंभ सोने के पतरे से मंढे हुए है। इस विशाल मन्दिर में जाने के लिए धोती(बिना सिले वस्त्र) अनिवार्य है। महिलाओं के लिए साडी अनिवार्य है। बडी मशक्कत के बाद धोतियां किराये पर मिली। फिर मन्दिर में गए। दर्शन के बाद बाहर आकर पास ही के एक होटल में भोजन किया। मेरा पेट अभी गडबड ही था। मैने ज्यूस पिया और फ्रूट सलाद खाई।
यहां से कोवलम बीच जाने वाली बसें नजर आई। एसी बस में बैठकर कोवलम बीच पंहुच गए। कोवलम बीच का बहुत नाम सुना था। अच्छा साफ सुथरा बीच है। बीच पर कुछ समय गुजारने के बाद नारियल पानी पिया और फिर बस में सवार हो कर रेलवे स्टेशन पहुंच गए। शाम हो चुकी थी। मैं दिनभर में पुदीन हरा की तीन गोलियां खा चुका था,लेकिन पेट साथ देने को राजी ही नहीं था। शाम के भोजन के लिए उतरे तो प्रतिमा ने दवाई लेने की सलाह दी। मैने फौरन डॉ.पाठक सा. को फोन लगाया। उन्होने दवा बताई। लेकिन साढे आठ बज चुके थे। यहां त्रिवेन्द्रम के बाजार जल्दी बन्द हो जाते है। मेडीकल स्टोर करीब एक घण्टे तक ढूंढा,लेकिन सब बन्द मिले। थक हार कर लौटे। सुबह आठ बजे आईआईएसटी की बस पकडना थी। आए और करीब साढे दस पर सो गए।
10 अगस्त 2013- सुबह 6 बजे उठे। 8 बजे बस पकडना थी। जल्दी जल्दी तैयार हुए और मलय का सामान लेकर स्टेशन से थोडी ही दूर आरएमएस आफिस पंहुच गए,जहां बस मिलने वाली थी। यहां आईआईएसटी के कई छात्र व उनके परिजन मौजूद थे। कुछ ही देर में एक बस आई। जल्दी ही दूसरी बस भी आ पंहुची। दोनो बसें भर गई। हमें तीसरी बस में जगह मिली। पूरा त्रिवेन्द्रम शहर घुमाते हुए बस करीब एक घण्टे में आईआईएसटी के परिसर में पंहुची। यह परिसर कई एकड में फैला है। बस सीधे होस्टल एरिया में पंहुची,जहां आद्र्रा नामक होस्टल भवन में हम उतरे। वहां छात्रों का सामान रखा जा रहा था। सामान रखने के बाद फिर बस में बैठाकर एकेडैमिक ब्लाक में ले जाया गया। यहां मलय के साथ प्रतिमा एडमिशन की प्रक्रिया पूरी करने चली गई ,मुझे एक क्लास रुम में इन्तजार करने को कहा गया। यहां कई सारे लोग और भी थे। करीब एक घण्टे के इंतजार के बाद सुरक्षाकर्मी ने अल्पाहार की सूचना दी। मैने जाकर एक वडा और कुछ चिप्स खाए। काफी पी। डर यह था कि पेट दगाबाजी न कर दे। करीब एक बजे सुरक्षाकर्मी ने भोजन तैयार होने की सूचना दी। तभी प्रतिमा का फोन आया कि प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है। आईआईएसटी प्रबन्धन ने भोजन के लिए एक पाण्डाल लगाया था,जहां सादा भात,पुलाव,सांभर,रायता और इमरती भोजन के लिए उपलब्ध थी। कुछ ही देर में मलय व प्रतिमा भी वहां आ गए। मैने थोडे से चावल खाए। भोजन के बाद मलय के मोबाइलक कनेक्शन और बैंक खाते के लिए फिर भीतर गए। दोनो काम करीब एक घण्टे में पूरे हुए। यह प्रक्रिया निपटने के बाद फिर एक वाहन में बैठाकर होस्टल बिल्डिंग में लाया गया,जहां मलय को आद्र्रा बिल्डिंग में 307 नम्बर का कक्ष आवंटित कर दिया गया।हमने मलय का सामान वहां पंहुचाया। कमरा देखा। हम कमरे में दो छात्रों के रहने की व्यवस्था है। 2 पलंग,2अलमारी,टेबल कुर्सी आदि है। मलय का रुम पार्टनर अभी तय नहीं हुआ है। त्रिवेन्द्रम की बस रवाना होने वाली थी। हम नीचे आए और बस में सवार हो गए। मलय से बिदा ली और करीब पौने पांच बजे फिर से त्रिवेन्द्रम स्टेशन आ गए। हम अपने साथ एक बडा लिफाफा लेकर आए थे,जिसमें आईआईएसटी का बाण्ड था,जो भरकर पुन: आईआईएसटी को भेजना है। स्टेशन पर उतरे तो रुम में जाने की बजाय पहले दवा खरीदने का विचार बना। नजदीक के पहले मेडीकल स्टोर पर ओ टू तो मिल गई,लेकिन स्पोरलेक नहीं मिली। अगली मेडीकल शाप पर स्पोरलेक नहीं थी,लेकिन लैक्टिक एसिड की दूसरी गोली मिल गई। लौटते समय रास्ते में एक ठेले पर काफी पी और स्टेशन पर आए। फ्रैश होने के बाद प्रतिमा ने कहा हम म्यूजियम देख सकते है। आटो पकड कर म्यूजियम देखने गए,लेकिन म्यूजियम बन्द हो चुका था। करीब सात बजे वहां से लौटे,तो सीधे पदमनाभ मन्दिर चले गए। पदमनाभ मन्दिर के आस पास थोडी खरीददारी की और भोजन कर आटो से स्टेशन लौटे। अभी सवा आठ हुए थे। उपर आए,कि प्रतिमा ने उस लिफाफे के बारे में पूछा जो हम आईआईएसटी से लाए थे। लिफाफा कहीं नहीं था। लगा कि मेडीकल स्टोर पर भूले होंगे। भागते हुए मेडीकल स्टोर पंहुचे। लेकिन लिफाफा वहां नहीं था। मुझे हांलाकि लग रहा था कि इतनी बडा गडबड़ तो नहीं हो सकती। फिर काफी वाले के यहां पंहुचे। वहां भी बात नहीं बनी। फिर उस पहले मेडीकल स्टोर पर पंहुचे जहां से ओ टू खरीदी थी। भगवान की कृपा थी कि लिफाफा वहीं था ौर सही सलामत था। लिफाफा लेकर स्टेशन पंहुचे। सुबह की ट्रेन की जानकारी ली। सुबह सात बजे कोंचूवेली के लिए पैसेंजर ट्रेन है। कोंचूवेली से ही मुंबई की गरीब रथ मिलेगी।
अब सोने का समय। कल सुबह फिर जल्दी उठना है। फिर 36 घण्टों का ट्रेन का सफर।
12 अगस्त 2013(सुबह नौ बजे)
गरीब रथ कोच न.एस-11
यात्रा का अंतिम दिन। दोपहर तक मुंबई पंहुचेंगे। वहां से रतलाम के लिए। कल की सुबह रतलाम में होगी।
कल यानी 11 अगस्त को सुबह पांच बजे उठे। 7 बजे कोंचूवेली से ट्रेन थी। समय पर टिकट लेकर प्लेटफार्म पर पंहुचे। पता चला कि ट्रेन आधा घण्टा लेट है। प्रीपैड बूथ से आटो लेकर कोंचूवेली स्टेशन पर पंहुचे। करीब बीस मिनट का रास्ता था। यहां गरीब रथ का करीब सवा घण्टा इंतजार किया। सुबह 9.50 पर ट्रेन चली। पिछले करीब चौबीस घण्टों से इसी ट्रेन में हैं। चाणक्य सीरीयल के कई सारे एपिसोड देख डाले।
तिरुवनन्तपुरम जाते समय पूरा कोंकण इलाका दिन भर दिखाई देता रहा था। आज कोंकण का अधिकांश हिस्सा रात में गुजर गया। सुबह करीब साढे सात पर ट्रेन रत्नागिरी पंहुची। यह भी कोंकण इलाका है। घना जंगल,पहाड,नदियां। थोडी थोडी देर में ट्रेन सुरंग में समा जाती है। पहाडी सुरंगे काफी लम्बाई की है। पनवेल के पहले तक कोंकण इलाका रहेगा। फिर मुंबई का असर दिखने लगेगा। शाम को मुंबई सेन्ट्रल से अगस्तक्रान्ति राजधानी में बैठना है। रात ढाई बजे रतलाम पंहुचेंगे।
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