Thursday, September 24, 2015

Mahadev Of Trishuls यात्रा वृत्तान्त-14 त्रिशूलों वाले चौरागढ महादेव के पास

पचमढी यात्रा (3 जून 2013 से 8 जून 2013)
पचमढी की यह यात्रा परिवार के साथ की। विवाह के तत्काल बाद मै और वैदेही पचमढी आए थे,तभी से इच्छा थी कि एक बार यहां फिर आएंगे। इस बार विवाह की वर्षगांठ पचमढी में मनाना तय किया और वैदेही,चिन्तन और मलय को साथ लेकर मै इस यात्रा पर निकल पडे।

3 जून 2013 (रात 9.30)
न्यू होटल पचमढी

विवाह की वर्षगांठ मनाने के लिए इस बार पहले से तय किया था कि पचमढी में मनाई जाएगी। विवाह के तत्काल बाद भी हम यहां आए थे और कहा जा सकता है कि हंसी मजाक में चौरागढ पर महादेव को त्रिशूल भेंट करने का वादा कर चुके थे। पिछले ग्यारह वर्षों में कई बार यह विषय निकला कि चौरागढ जाकर त्रिशूल चढाना है। आखिरकार हम पचमढी पंहुच गए।
इस बार व्यवस्थाओं की पहले से चिन्ता की। एसएडीए(साडा)के न्यू होटल में पहले से कक्ष आरक्षित करवा लिए। 2 जून की रात या रेलवे के लिहाज से 3 जून को 1.40 बजे राजकोट-भोपाल ट्रेन में सवार हुए। टोनी ने हमे स्टेशन छोडा था। सुबह नौ बज मलय हबीबगंज पर हमारा इंतजार कर रहा था। मलय ट्रेन में चढा और दोपहर साढे बारह पर पिपरिया स्टेशन पर उतरे। पिपरिया स्टेशन से बाहर निकल कर तीन सौ रु.में पचमढी के लिए एक गामा में बैठे और दोपहर ढाई बजे न्यू होटल पंहुचे। स्नान इत्यादि से निवृत्त हुए तब तक 3.20 हो गए। भोजन मलय ले आया था। सब्जी पूरी खाने के बाद 4 बजे होटल से निकले।
साडा का न्यू होटल पचमढी बस स्टैण्ड से करीब दो किमी दूर है। मुख्य बाजार पचमढी से सबसे नजदीक का स्थान जटाशंकर है। पिछली बार भी सबसे पहले वहीं गए थे। इस बार शाम 4 बजे पैदल ही जटाशंकर के लिए निकले।
रास्ते में प्राकृतिक सौन्दर्य और बंदरों की मस्ती का मजा लेते हुए बस स्टैण्ड के नजदीक पंहुचे ही थे,कि एक जिप्सी चालक ने आवाज लगाई। मुझे लगा कि हम पौदल जटाशंकर पंहुच तो जाएंगे,लेकिन वापस होटल में आना बहुत कठिन हो जाएगा। दो सौ रु. में तय करके जिप्सी में बैठे और कुछ ही मिनटों में जटाशंकर गुफा तक पंहुच गए। जटाशंकर काफी नीचे है। वहां पैदल  ही जाना होता है। धमाल मस्ती करते हुए जटाशंकर के दर्शन किए और वापस लौटे। वापसी में सीधे होटल नहीं आते हुए होटल से कुछ दूर मुख्य उद्यान पर उतर गए। इस उद्यान में कुछ देर गुजारने के बाद हम लोग होटल पंहुचे। शाम घिरने लगी थी। यहां खबर अपलोड करने के बाद भोजन किया और अब कल की तैयारी। कल हमें जिप्सी से बी-फाल समेत अन्य स्थानों पर जाना है।

4 जून 2013
न्यू होटल पचमढी

आज का पूरा दिन भागदौड से भरा रहा। जीपचालक साजिद ने बीती रात,आज सुबह नौ-साढे नौ पर आने को कहा था। हम साढे नौ बजे ,आलू के पराठे खाकर तैयार थे। वाहन चालक,आखिरकार दस बजे होटल पर आया। आते ही सीधे पाण्डव गुफा के लिए रवाना हुए।पाण्डव गुफा,होटल से बेहद नजदीक है। पाण्डव गुफाएं पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान उपयोग की थी। पाण्डव गुफा से निकल कर अप्सरा विहार और रजत प्रपत पर पंहुचे। अप्सरा विहार देखने के लिए लम्बा टेढा मेढा और कठिन रास्ता पार किया। थकहार कर उपर  आए। ड्राइवर ने कहा कि अब बी फाल जाना है,जहां हम स्नान कर सकेंगे। बी-फाल का रास्ता और कठिन था। काफी कठिन पहाडों से उतर कर बी-फाल पंहुचे,जहां आठ सौ मीटर की ऊं चाई से गिरता झरना सीधे शरीर पर आता है। पानी की चोट मधुमक्खियों के डंक का एहसास कराती है,इसीलिए इसका नाम बी-फाल रखा गया है। बी-फाल से उपर आने तक दोपहर के तीन बज गए थे। यहां से भोजन के लिए अपने ही होटल पर आए। जीप ड्राइवर ने हमे साढे चार का वक्त दिया था। हम भोजन करके निवृत्त हुए तब तक ड्राइवर आ चुका था।
दोपहर के भोजन के बाद रीछगढ के लिए रवाना हुए। रीछगढ,रीछ की गुफाएं है। यहां भी काफी चलना पडता है। इन गुफाओं से मिलने के बाद धूपगढ पंहुचे। धूपगढ,मध्यप्रदेश का सबसे उंचा बिन्दु है,जो करीब पांच हजार फीट उंचा है। यहां सनसेट और सनराइज देखने हजारों पर्यटक आते है।शाम साढे पांच हो चुके थे,लेकिन सूरज को बादलों ने ढंक रखा था। इसलिए सनसेट(सूर्यास्त) देखने का तो मुद्दा ही नहीं था। साढे छ: तक यहां रहे। सब थक कर चूर हो गए थे। सात बजे वापस लौटे। हमारे होटल पर चाय नहीं थी। चाय पीने के लिए बाहर सड़क पर स्थित दुकान पर पंहुचे।
शाम को फ्रैश होकर भोजन की तैयारी में थे कि अचानक लाइट चली गई। बारिश भी शुरु हो चुकी थी। लाइट जाने से रेस्टोरेन्ट के लडकों ने भी सामान समेट लिया। हांलाकि भूख ज्यादा नहीं थी,लेकिन फिर भी खाना खाना था। साढे नौ पर लाइट आई तब मैनेजर ने कहा कि कमरे में ही भोजन आएगा। सारे लोग दाल चावल खाने पर सहमत थे। दाल चावल जल्दी आ गया। रात दस बजे भोजन से निवृत्त हुए। अब सोने की तैयारी। कल सुबह फिर दस बजे पर्यटन के लिए रवाना होंगे।
5 जून 2013
न्यू होटल पचमढी

आज का दिन भागदौड कम थी,लेकिन शाम चुनौती भरी साबित हुई। सुबह बडे आराम से उठे और पोहे समोसे का देशी नाश्ता करके दस बजे रवाना हुए। सबसे पहले हाण्डी खो गए,जिसे सुसाईड पाइन्ट भी कहते है। हाण्डी खो सिर्फ दृश्यावली देखने का स्थान है,जहां सैकडों फीट गहरी खाई है। यदि कोई यहां से कूद जाए तो शर्तिया मौत तय है।
हाण्डी खो से महादेव और गुप्त महादेव के रास्ते पर रवाना हो गए। दोनो स्थान चौरागढ के रास्ते में है। पचमढी से ये स्थान नौ किमी दूर है। उंची पहाडियों के टेढे मेढे रास्ते। महादेव काफी नीचे है। कहते है विष्णु जी ने भस्मासुर को यहीं भस्म किया था। यहां महादेव का प्राकृतिक शिवलिंग है। गुफा में पानी रिसता रहता है,जिससे कुण्ड भरा रहता है। इसी गुफा में शिवलिग स्थित है। नजदीक में पार्वती गुफा है। यहीं से थोडी दूर चौरागढ के रास्ते में 30 फीट लम्बाई वाली बेहर संकरी गुफा है,गुफा के भीतर महादेव है। इसे गुप्त महादेव कहते है। गुप्त महादेव से हम लोग अम्बे माता मन्दिर और बेगम पैलेस
पंहुचे। दोनो ही महत्वहीन स्थान है। यहां से भोजन करने पचमढी के मुख्य बाजार में आए। भोजन के बाद राजेन्द्र गिरी उद्यान पंहुचे। यह भी बनाया हुआ स्थान है।प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र
प्रसाद की प्रतिमा है और उन्ही के नाम पर उद्यान बनाया गया है। राजेन्द्र गिरी से झील पर नौका विहार के लिए पंहुचे। झील में पानी कम है,लेकिन नौका विहार चालू है। यहां हम चार बजे पंहुच गए और धूप काफी थी। एक घण्टा इंतजार के बाद पांच बजे नौका विहार करने पंहुचे। आधे घण्टे पैडलबोट चलाकर छ: बजे होटल लौट आए।
होटल आने पर डीएसपी एचएस परमार के परिचित गोपाल को फोन किया,जो थोडी देर बाद होटल आ गया। उनसे मुलाकात के बाद जल्दी भोजन करके सोने का इरादा था,लेकिन आसमान पर बादल छाने लगे थे और तेज हवाएं शुरु हो गई थी। इसी बीच बिजली गुल हो गई। बिजली गुल होने पर कल होटल में स्थिति बेहद खराब हो गई थी और भोजन व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई थी। कल के अनुभव से सबक लेते हुए यहां से कुछ दूर रसोई ढाबे पर जाने का फैसला किया। अब बिजलियां कडकने लगी थी।रसोई ढाबा भी अन्धेरे में डूबा हुआ था।वहां भी भोजन के लिए काफी इंतजार करना पडा। इसी बीच बारिश शुरु हो गई। चिंतन डर रहा था।बूंदाबांदी के बीच घुप्प अंधेरे में पैदल चलकर होटल पंहुचे। सुखद आश्चर्य,आज यहां जनरेटर चालू है। सोने की तैयारी। सुबह आठ बजे चौरागढ की कठिन यात्रा पर जाना है।
7 जून 2013 (सुबह आठ बजे)
न्यू होटल पचमढी

सफर का आखरी दिन। घर लौटने की तैयारी। ग्यारह बजे यहां से निकलना है। ढाई बजे पिपरिया से ट्रेन है। स्नान भोजन करके निकलना है। कल का दिन यात्रा का लक्ष्य पूरा करने का दिन था,यानी चौरागढ महादेव को त्रिशूल अर्पित करने का दिन।
6 जून- हमारे ड्राइवर ने चौरागढ जाने के लिए सुबह छ बजे निकलने की सलाह दी थी,लेकिन हमने आठ बजे जाना तय किया। आज ड्राइवर साजिद नहीं था बल्कि रवि नामक एक अधेड व्यक्ति था। हम अल्पाहार से निवृत्त हो गए,तब आठ बजे थे। ड्राइवर करीब पौने नौ बजे पंहुचा। हम नौ बजे होटल से रवाना हुए। चौरागढ यहां से करीब दस किमी दूर है। यह रास्ता महादेव पर समाप्त होता है और यहां से पैदल यात्रा शुरु होती है। चौरागढ का रास्ता साढे तीन किमी लम्बा है। इस दूरी में करीब पन्द्रह सौ सीढीयां है। 3 पहाड चढकर उतरना पडते है और तब चौरागढ का पहाड आता है। सीधी खडी चढाई और कई बार नीचे उतरना। बेहद कठिन रास्ता। चिन्तन तो दौड दौड कर चढा,लेकिन वैदेही राम राम करते चढी। कई जगह बैठने के बाद हम करीब साढे बारह बजे चौरागढ मन्दिर पंहुचे। यहां त्रिशूल अर्पित किया। पता नहीं कब यहां रखे लाखों त्रिशूलों में से एक घर ले जाने की इच्छा वैदेही को हुई और हमने एक छोटा त्रिशूल ढूंढा। चौरागढ महादेव का त्रिशूल लेकर लौटे। वापसी अपेक्षाकृत आसान थी। हम करीब पौने तीन बजे नीचे आए।
चौरागढ की चढाई शुरु करने से पहले गुप्त महादेव की गुफा के दर्शन किए। यह गुफा करीब तीस फीट गहरी औव बेहद संकरी है। एक बार में केवल एक ही व्यक्ति इसमें चल सकता है। इस गुफा में दर्शन के बाद हम चौरागढ के लिए चले थे।
करीब तीन बजे होटल लौटे। भोजन किया और थकान से चूर होने के कारण आराम का फैसला किया। सभी के पैर बुरी तरह दर्द कर रहे थे। पैरों पर बाम लगाकर दो-तीन घण्टे होटल के कमरे में बिताए। रात करीब नौ बजे भोजन किया और थकान का ही असर था कि जल्दी नींद आ गई।

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