(2 फरवरी 2015 से 13 फरवरी 2014)
लम्बे अरसे से अण्डमान निकोबार,जिसे अंग्रेजों के जमाने में कालापानी कहा जाता था,जाने की इच्छा थी। यह इच्छा स्पाइसजेट द्वारा सस्ती हवाई यात्रा की योजना सामने आने पर पूरी हुई। हमने करीब दो महीने पहले टिकट बुक करवाई। आमतौर पर अण्डमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के लिए चैन्ने से हवाई जहाज चलते है,लेकिन इस स्कीम के तहत हमें हैदराबाद से टिकट लेना पडे। हैदराबाद से लिए हुए टिकट चैन्ने की तुलना में सस्ते थे और खासियत यह थी कि प्लेन हैदराबाद से चैन्ने होकर ही जाने वाला था। इस यात्रा में मेरे साथ दशरथ जी पाटीदार,संतोष जी त्रिपाठी और मन्दसौर से आशुतोष नवाल थे। यह यात्रा 2 फरवरी 2014 से प्रारंभ होकर 13 फरवरी 2014 तक चली।
5 फरवरी 2014 बुधवार (सुबह 7.20)
साउथ पाइन्ट सर्किट हाउस,पोर्ट ब्लेयर,अण्डमान
पोर्टब्लेयर के साउथ पाइन्ट सर्किट हाउस के यूबी-4 कमरे में हम अब पोर्ट ब्लेयर देखने के लिए तैयार हो रहे हैं। मेरे इस सफर के साथी आशुतोष नवाल,दशरथ पाटीदार और संतोष त्रिपाठी धीरे धीरे नींद से जागकर तैयार हो रहे हैं। मैं सुबह 5 बजे उठ गया था।
हमारा ये सफर 2 फरवरी को रतलाम से शुरु हुआ था। दोपहर चार बजे हम टोनी की जायलो गाडी से इन्दौर पंहुचे थे,जहां बाम्बे हास्पिटल में हिमांशु की माताजी का इलाज चल रहा था। हम वहां हिमांशु और उसकी माताजी से मिले। हिमांशु जोशी भी इस यात्रा में हमारे साथ आने वाला था,लेकिन माताजी के अचानक अस्वस्थ हो जाने के कारण उसकी यात्रा रद्द हो गई।
हमे उज्जैन से ट्रेन पकडना थी,लेकिन इन्दौर में देर हो जाने से,हम इन्दौर से ही ट्रेन पर सवार हो गए। उज्जैन रेलवे स्टेशन पर भगत जी ने भोजन की व्यवस्था की थी। 24 घण्टे का ट्रेन का सफर बातें करते,कम्प्यूटर पर बाबा मौर्य का कार्यक्रम देखते हुए पूरा किया। हमे हैदराबाद पंहुचना था।
हैदराबाद में विनय कोटिया हमारे लिए मौजूद थे। हम रात करीब साढे दस बजे काछीगुडा स्टेशन पंहुचे थे। काछीगुडा स्टेशन पर उतरने के बाद हमने विनय के साथ भोजन किया और टैक्सी से एयरपोर्ट पंहुचे। हम करीब रात एक बजे एयरपोर्ट पंहुचे। हमारी फ्लाइट सुबह छ: बजे थी। एयरपोर्ट के लाउंज में उंघते जागते जैसे तैसे सुबह हुई और हम प्लेन में सवार हुए। सुबह 7.10 पर हमारा प्लेन चैन्ने उतरा। यहां हमे तीन घण्टे इंतजार करना था। यहां से हमें 11.35 पर अण्डमान के लिए रवाना होना था। ठीक समय पर हमारा प्लेन उडा। यह बडा प्लेन था,जिसमें करीब दो सौ यात्री थे। प्लेन निर्धारित समय से करीब बीस मिनट पहले पोर्टब्लेयर के वीर सावरकर हवाईअड्डे पर पंहुच गया। एयरपोर्ट से बाहर आकर पोर्टब्लेयर के प्रोटोकाल आफिसर धर्मराज से बात की। उन्होने सीधे साउथब्लाक सर्किट हाउस जाने को कहा।
सर्किट हाउस पंहुचकर स्नान आदि किया और करीब सवा चार बजे हम पोर्टब्लेयर घूमने निकले। पोर्टब्लेयर के आबेरडीन बाजार में पैदल घूमते रहे। यहां का बाजार सामान्य बाजारों जैसा है। करीब चार घण्टे तक हम बाजार में घूमते रहे। भोजन किया। एक होटल शालीमार देखकर आए,ताकि सर्किट हाउस छोडकर हम वहां जा सके। सर्किट हाउस काफी महंगा है,हमे सस्ता कमरा चाहिए।
बीती सारी रात हम नींद नहीं ले पाए थे,रात को नौ बजे हम नींद के हवाले हो गए। भरपूर नींद लेने के बाद आज सुबह पांच बजे उठा। नीम की तलाश में सर्किट हाउस का एक पूरा चक्कर लगाया। यहां हरियाली पेड पौधों की भरमार है। लेकिन नीम का पेड मुझे कहीं नजर नहीं आया। सर्किट हाउस के पीछे समुद्र का शानदार नजारा होता है।
आज का दिन हम टैक्सी से पोर्टब्लेयर देखेंगे। जिसमें वीर सावरकर के कारण प्रसिध्द और कभी कुख्यात रही सैल्यूलर जेल भी शामिल होगी।
5 फरवरी 2014 (शाम 8.15)
होटल शालीमार
आज का दिन बेहद व्यस्त और थका देने वाला रहा। सुबह नौ बजे सर्किट हाउस पर आलू की सब्जी और दो-दो पराठे खाकर निकले। गाडीवाला सुभाष राय सर्किट हाउस आ गया था। सुबह के समय पोर्टब्लेयर के विभिन्न म्यूजियम देखने में व्यस्त रहे। साइंस सेन्टर,कला म्यूजियम,नेवल म्यूजियम आदि देखे। इन सब को देखने में जो मुद्दे की बात समझ में आई,वह यहां के वनवासी समाज के बारे में थी,जो आज भी सभ्य समाज से सीमित सम्पर्क रखते हैं,या रखते ही नहीं है। जारवा,शोमेन,सेनिटलरीज आदि वनवासी आज भी निर्व रहते है। इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। इनकी जीवनशैली दर्शाने वाले फोटो,जानकारियां आदि बेहद रोचक है। आन्थ्रोपालीजिकल म्यूजियम भी देखा।
विभिन्न प्रकार के म्यूजियम देखते दोपहर हो गई। हमारे ड्राइवर ने कहा कि आप साइंस सेन्टर देखलें फिर बीच पर जाएंगे। साइंस सेन्टर देखा और फिर पंहुचे बीच पर। इस बीच पर बीच की अन्य खासियतों के अलावा बडी खासियत यह थी कि जापानियों द्वारा समुद्र किनारे बनाए बंकर भी यहां मोजूद थे। इन बंकरों को देखा,फोटो लिए।
बीच से निकले,यात्रा का सबसे बडा आकर्षण सेल्यूलर जेल। पता चला कि चार बजे के बाद टिकट नहीं मिलता। हम पौने चार वहां पंहुच गए,टिकट भी आसानी से मिल गए। सैल्यूलर जेल को आंखों से देखना अपने आप में जीवन पर्यन्त की उपलब्धि है।
6 फरवरी 2014 (सुबह 6.15)
शालीमार होटल,पोर्ट ब्लेयर
आज हमें मड वोल्कानो,जंगल और जारवा आदिवासी देखने जाना है। ड्राइवर सुभाष ने कल ही बता दिया था कि सुबह छ:बजे चलना पडेगा। पूरे दिन की यात्रा है। हम सुबह चार बजे उठ गए और अब स्नान आदि से निवृत्त होकर जाने के लिए एकदम तैयार हैं।
कल का दिन,जीवन का खास दिन था। सेल्यूलर जेल को देखना,वहां स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 7 गुणा 13 फीट की वह कोठरी,जिसमें उन्होने दस साल गुजारे। यातनाओं की इन्तिहा थी,लेकिन उनका साहस नहीं टूटा। जेल अधिकारियों ने उन्हे तोडने के लिए तीसरी मंजिल की आखरी की कोठरी दी। जेल का फांसीघर इसी कोठरी के सामने है। हर मंजिल पर 35 से अधिक कोठरियां है।
अब सैल्यूलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक बना दिया गया है। अण्डमान आने वाला प्रत्येक व्यक्ति सैल्यूलर जेल जरुर आता है। जेल के मुख्यद्वार की इमारत पहले,जेलर और अन्य अधिकारियों का कार्यालय थी,अब यहां सैल्यूलर जेल में लाए गए क्रान्तिकारियों के चित्रों की प्रदर्शनी बना दी गई है। सैल्यूलर जेल और अण्डमान के पुराने फोटो भी यहां प्रदर्शित किए गए हैं। जेल में कैदियों को कोल्हू में बैल की जगह जोता जाता था और तेल निकलवाया जाता था। जेल में इस तरह की सभी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है।
सैल्यूलर जेल में हर शाम सैल्यूलर जेल का इतिहास बताने के लिए लाइट एण्ड साउण्ड शो होता है। हम सब जेल से बाहर निकले,इस शो के टिकट मिलना बन्द हो गए थे। हम निराश हो गए,लेकिन भगवान ने हमारी सुनी। एक व्यक्ति ने हमें भीतर प्रवेश करवा दिया। एक घण्टे की इस गाथा में सैल्यूलर जेल का इतिहास अत्यन्त प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
7 फरवरी 2014 (सुबह 4.15)
शालीमार होटल पोर्ट ब्लेयर
कल का पूरा दिन साउथ अण्डमान के जंगल,जारवा और मड वोल्कानो देखने में गजरा। टैक्सी चालक सुभाष सुबह साढे छ: पर आ गया और हमारी यात्रा शुरु हुई। करीब पचास किमी की यात्रा के बाद हम पोलिस चैक पोस्ट पर पंहुचे। यहां से जारवा आदिवासियों का क्षेत्र शुरु होता है। इसे जिरकीटांग कहा जाता है। यहां से पुलिस सुबह नौ बजे वाहनो के कानवाय बनाकर पुलिस सुरक्षा में रवाना करती है। एक घण्टे में हमने यहीं अल्पाहार किया। नौ बजे कानवाय मडवोल्कानो और बाराटांग के लिए रवाना हुआ। बेहद घना जंगल,ऊं चे पेड,सघन वन में दृश्यता अत्यन्त कम हो जाती है। जारवा वनवासियों को देखने की उत्सुकता थी,लेकिन ठण्डी हवा के झोंको से पलके भारी हो रही थी। उंघते जागते,गाडी से नजर बाहर निकालते रहे,लेकिन कहीं जारवा नजर नहीं आए। बाराटांग का सफर समुद्र किनारे जाकर खत्म हुआ। यहां से सामने स्थित द्वीप पर जाने के लिए जहाज चलते हैं। वाहन सहित इस जहाज पर सवार होकर मड वोल्कानो के द्वीप पर पंहुचे। यहां से पन्द्रह-बीस मिनट का सफर पूरा कर,वहां पंहुचे,जहां कीचड का ज्वालामुखी याने मड वोल्कानो है। यहां पंहुचे अधिकतर लोग इसे देखकर निराश हुए थे। जमीन में से पतला काला कीचड निरन्तर निकलता रहता है। इसकी खोज 2003 में हुई। अब तक करीब बारह मड वोल्कानो खोजे जा चुके हैं। अण्डमान में जीवित ज्वालामुखी भी है,पर इसे पर्यटकों के लिए बन्द कर दिया गया है।
मड वोल्कानो देखकर लौटे तो नजदीक ही एक बीच पर पंहुचे। यहां कुछ समय गुजार कर एक स्थानीय होटल में चावल का भोजन किया और वापसी की यात्रा शुरु हुई। जारवा देखने की उत्सुकता अभी तक बाकी थी। अचानक एक जारवा दम्पत्ति सड़क पर नजर आए। वे हमसे आगे की ओर जा रहे थे। जारवा निर्व रहते हैं। सरकारी निर्देशों के मुताबिक जारवा से न तो बात की जा सकती है ना गाडी रोकी जा सकती है। बस हम जारवा की झलक देख पाए,लेकिन यह भी बडी बात थी। महिला पुरुष दोनो ही लगभग निर्व थे। हमने गाडी की पिछली खिडकी से इन्हे देखा। गहरे काले रंग के महिला पुरुष तीर कमान लिए चल रहे थे। जल्दी ही वे नजरों से ओझल हो गए।
यह बडे शोध का विषय है कि आज के युग में भी ऐसे आदिम मानव समूह कैसे विद्यमान है,जो आधुनिक सभ्य समाज से पूरी तरह कटे हुए है। हांलाकि इनकी जनसंख्या लगातार कम हो रही है। फिलहाल केवल करीब पांच सौ जारवा मौजूद है। शोम्पैन और सेन्टिनलीज जैसे आदिवासी तो और भी कम है। जारवाओं का प्रशासनिक लोगों से थोडा सम्पर्क जरुर है,लेकिन शोम्पैन व सैन्टिनलीज सभ्य समाज से कोई सम्पर्क नहीं रखते। हमारा सफर शाम करीब छ: बजे हमारे होटल पर आकर खत्म हुआ।
आज भी सुबह जल्दी हेवलाक द्वीप के लिए क्रूज से रवाना होना है। इसलिए कल जल्दी से भोजन आदि करके सो गए थे। इस वक्त 4.45 हो रहे हैं। छ: बजे हमें हैवलाक बीच के लिए रवाना होना है।
9 फरवरी 2014 (सुबह 7.30)
शालीमार होटल पोर्टब्लेयर
अण्डमान से बिदा लेने का दिन आ चुका है। आदतन सुबह छ: बजे नींद खुल गई। स्नान आदि के बाद अपना सामान भी समेट चुका हूं। होटल से हम ग्यारह बजे निकलेंगे। एक बजे हमारी फ्लाइट है,जो रात ग्यारह बजे हैदराबाद पंहुचाएगी।
परसों यानी 7 फरवरी को हम सुबह नियत समय से पहले ही जेट्टी पर पंहुच गए। क्रूज से
हेवलाक जाना काफी महंगा है। हमे जाने के लिए प्रति व्यक्ति आठ सौ रुपए और वापसी के लिए साढे नौ सौ रुपए देना पडे। बहरहाल हम क्रूज की यात्रा का आनन्द लेते हुए साढे नौ बजे हैवलाक पंहुचे। हैवलाक की जेट्टी से आटो करके हम शहर में पंहुचे। यहां हमने चार सौ रुपए प्रति वाहन के हिसाब से दो एक्टिवा स्कूटर किराए पर लिए। यहां हैवलाक में दो-तीन प्रसिध्द समुद्र तट है।
पहले हम सबसे सुन्दर राधानगर समुद्रतट पर पंहुचे। यहां का समुद्र देखते ही मन प्रसन्न हो गया। साफ नीला पानी,लहरे मार रहा था। काफी लम्बा किनारा,जिस पर नारियल,सुपारी और अन्य कई प्रकार के बडे पेड लगे हुए हैं। जहां तक नजर जाती है किनारा दिखाई देता है।
मैने कई जगह समुद्र देखा है,लेकिन इतना स्वच्छ साफ समुद्र पहली बार देखा। ये नजारा देखते ही सबका स्नान करने का मन हो आया। समुद्र स्नान के बाद शरीर पर चिपकने वाली रेत के खतरे के बावजूद हम करीब एक घण्टे तक समुद्र स्नान का आनन्द लेते रहे। आश्चर्य की बात यह थी कि यहां रेत भी शरीर को नहीं चिपकी थी।
राधानगर बीच पर मस्ती करने के बाद हम काला पत्थर बीच पर पंहुचे। यहां भी कई किलोीटर लम्बा समुद्रतट है। समुद्र के नीचे पत्थर है,जिनकी वजह से दूर से देखने पर समुद्र कहीं नीला तो कहीं काला दिखाई देता है। शायद यही वजह होगी कि इसे कालापत्थर बीच कहा जाता है। इन दोनो ही समुद्र तटों पर पर्यटकों की संख्या बेहद कम है। इसी वजह से यहां गंदगी बिलकुल नहीं है।
यहां से कुछ और आगे बढे। आगे कालापत्थर गांव है। गांव से पहले ही एख झोंपडी में रहने वाले किसान शिवकांत मजूमदार और उनकी पत्नी से मुलाकात की। शिवकान्त खेतिहर मजदूर है।हमारे पानी मांगने पर वे काफी दूर से मीठा पानी लेकर आए। उनकी पत्नी को हिन्दी नहीं आती। कुछ देर शिवकान्त से गांव खेती आदि के बारे में चर्चा की।
हमें ढाई बजे फिर से जेट्टी पर पंहुचना था। अब लौटने का समय होने लगा था। हमने स्कूटर लौटाए। वहां से आटो पकड कर फिर जेट्टी पर पंहुचे। सुबह से हमने कुछ नहीं खाया था। जेट्टी के बाहर एक बंगाली परिवार द्वारा चलाए जा रहे छोटे से होटल पर राइस थाली,भजिए और समोसे का आनन्द लिया।
ठीक तीन बजे हमारा क्रूज पोर्टब्लेयर के लिए रवाना हुआ। वापसी में यह नील द्वीप होता हुआ पोर्टब्लेयर पंहुचे। जेट्टी से पैदल ही होटल आए।
अगला दिन यानी आठ फरवरी हमने पोर्ट ब्लेयर में ही रहने के लिए रखा था। सुबह जल्दी उठने का झंझट नहीं था। रात करीब ग्यारह बजे हम सोए।
8 फरवरी 2014-
हमने सोचा था कि सैल्यूलर जेल को फिर से इतमिनान के साथ देखें। हम सुबह करीब साढे नौ बजे सैल्यूलर जेल जा पंहुचे। इस बार हमने जेल के इतिहास से सम्बन्धित प्रदर्शनी को पूरे ध्यान से पढा। यहां एक पुस्तकालय भी है,जिसमें करीब दो हजार पुस्तकें हैं। इनमें से अधिकांश स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित है। पुस्तकालय की प्रभारी सुनीता नामक महिला से बात करने पर ज्ञात हुआ कि पर्यटन के पीक सीजन में करीब एक हजार पर्यटक प्रतिदिन जेल देखने आते हैं। अन्य दिनों में यह संख्या बेहद कम हो जाती है। विदेशी पर्यटक तो और भी कम आते है। इस लिहाज से अण्डमान अभी विदेशी पर्यटकों के ज्यादा नजदीक नहीं पंहुचा है। देशी पर्यटक भी अधिक नहीं आते। साल में करीब दो लाख पर्यटक यहां पंहुचते हैं,जोकि बेहद कम संख्या है।
हम करीब ग्यारह बजे तक जेल में रहे। फिर आबरदीन बाजार में पंहुचकर हमने भोजन किया। दोपहर तीन बजे से सौलह देशों की जल सेनाओं की इन्टरनेशनल सिटी परेड होना थी। यह चार साल में एक बार होती है। इसे मिलन 2014 नाम दिया गया था। हमने पहले ही इसे देखने का निश्चय किया था। करीब ढाई बजे जब परेड देखने के लिए चले तो लगा कि जैसे पूरा पोर्टब्लेयर ही वहां उमड पडा हो। इस परेड में थाईलैण्ड,बांग्लादेश,श्रीलंका,इण्डोनेशिया,आदि सौलह देशों के ट्रूप शामिल थे। परेड के दौरान भारतीय नौसेना ने समुद्र में फंसे लोगों के बचाव अभियान का प्रदर्शन किया। वहीं पैराशूट से आसमान में तिरंगे का प्रदर्शन किया।पैराशूट जम्पिंग के कई कारनामे यहां दिखाए गए। इस परेड में शामिल होना बेहद रोमांचक रहा। महम लोग शाम करीब सात बजे होटल वापस लौटे और अब जाने की तैयारी।
11 फरवरी 2014 मंगलवार (सुबह 8.00)
हमारी ट्रेन अब तिरुपति पंहुचने वाली है। आड तिरुपति बालाजी के दर्शन कर कल वापसी का सफर शुरु करेंगे।
रविवार यानी 9 फरवरी को शालीमार होटल से आटो करके वीर सावरकर अन्तर्राष्ट्रिय हवाई अड्डे पंहुच गए। हमारी फ्लाइट निर्धारित समय पर शुरु हुई और हम दोपहर ढाई बजे चैन्ने उतरे। हमारी अगली फ्लाईट रात 9.50 पर थी। हमारे पास काफी वक्त था। हवाई अड्डे से बाहर आकर एक आटो किया और निकल पडे चैन्ने घुमने। आटोवाले से हमने किी शापिंग माल में ले जाने को कहा था। चैन्ने का मरीना बीच यहां से बेहद नजदीक था। शापिंग माल में एक-डेढ घण्टे घूमने के बाद बीच पर जा पंहुचे। बीच पर शाम की छ: बज गई। यहां से एक सिटी बस में सवार होकर फिर से हवाई अड्डे आ गए। चैन्ने से 9.50 पर उडे तो रात ग्यारह बजे हैदराबाद पंहुचे। बाहर आते आते साढे ग्यारह हो गए। विनय व्यस्त था। उसने एक होटल तो बुक कर दिया था,लेकिन वह नहीं आया था। हम थक चुके थे। रास्ते में एक होटल से खाना पैक करवा कर काछीगुडा स्टेशन के सामने त्रिवेणी होटल में आए। भोजन किया और सो गए। इस होटल के कमरे बेहद घटिया थे,लेकिन और कोई चारा नहीं था।
10 फरवरी-हैदराबाद में हमें रामोजी फिल्म सिटी घूमना थी। रामोजी फिल्म सिटी के लिए बस सुबह साढे नौ बजे निकलने वाली थी,लेकिन इसकी बुकींग सुबह साढे सात पर करवाना जरुरी था।प्रति व्यक्ति दो सौ पच्चीस रुपए के हिसाब से यह बस रामोजी सिटी ले जाने का काम करती है। हम जल्दी उठे,जल्दी जल्दी तैयार हुए और फिल्म सिटी जाने वाली बस में सवार हो गए। फिल्म सिटी में आने का यह मेरा दूसरा मौका था। पहले इ टीवी का इंटरव्यू देने आया था। इस बार फिल्म सिटी घूमने ही आया। यहां प्रति व्यक्ति आठ सौ रुपए प्रवेश शुल्क है। इसमे बस में एक गाईड एक घण्टे तक आपको फिल्म सिटी घूमाता है। फिल्म सिटी में फिल्मों की शूटिंग के लिए नकली रेलें,स्टेशन,हवाई अड्डा,अस्पताल,चर्च,मन्दिर,गांव,शहर,विदेशी शहर जैसे तमाम स्थाई सेट्स है। कई सारे गार्डन है। गाईड के बताने पर कई फिल्मे ध्यान में आई,जिनकी शूटिंग यहां हुई। फिल्म सिटी में पर्यटकों के लिए पांच शो किए जाते हैं। इनमें फिल्म निर्माण कैसे होता है,इस पर आधारित एक शो बेहद उपयोगी था। इसमें यह बताने की कोशिश की गई है कि पर्दे पर जो दिखता है,उसके पीछे कई सारे लोगों की मेहनत होती है। इसके अलावा एक शो में पूरे रामोजी फिल्म सिटी को पुतलों के जरिये दिखाया गया है। पर्यटकों को एक गाडी में बिठाकर यहां घूमाते है। स्टंट शो में स्टंट सीन का जीवन्त प्रदर्शन किया जाता है। इसी तरह एक सांस्कृतिक नृत्य गीत का कार्यक्रम भी दिखाया जाता है।
फिल्म सिटी पांच बजे बन्द हो जाती है। साढे पांच पर वापसी के लिए बस में बैठे। जबर्दस्त ट्रैफिक में फंसी बस हमारी धडकनें बढा रही थी। हमारी ट्रेन वेंकटाद्री एक्सप्रेस 8.05 पर रवाना होने वाली थी। हम जैसे तैसे शाम 7.20 पर होटल पंहुचे। हमारे इंतजार में विनय वहीं मौजूद था। जल्दी जल्दी सामान बटोरा। सामने ही स्टेशन है। स्टेशन पंहुच गए और ट्रेन में सवार हो गए। अब ट्रेन तिरुपति पंहुचने वाली है।
12 फरवरी 2014 (सुबह 6.15)
एपी सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस
हम अण्डमान यात्रा के अंतिम चरण में अब तिरुपति से भोपाल के लिए ट्रेन के एस 3 कोच में सवार हैं। ट्रेन कल सुबह भोपाल पंहुचेगी और शाम तक हम रतलाम में होंगे।
कल यानी 11 फरवरी की सुबह ट्रेन करीब डेढ घण्टे की देरी से तिरुपति पंहुची थी। स्टेशन पर दशरथ जी का छोटा भाई रमेश मौजूद था। रमेश बैंगलोर में रहता है और दशरथ जी के बुलाने पर एक दिन की छुट्टी लेकर तिरुपति आया था। रमेश ने पहले से होटल में कमरा ले रखा था। स्टेशन से हम सीधे होटल पंहुचे। होटल स्टेशन के ठीक सामने ही था। होटल पंहुचकर स्नान आदि से निवृत्त हुए और करीब साढे दस पर तिरुमाला का लिए निकले। टैक्सी लेकर बीस किमी का पहाडी सफर पूरा करके उपर तिरुमला पंहुचे,जहां वैंकटेश स्वामी या तिरुपति बालाजी का प्रमुख मन्दिर है। मैं दूसरी बार यहां पंहुचा था। पहली बार मैं बिना दर्शन किए लौट आया था। इस बार यात्रा की शुरुआत में ही मन बन गया था कि इस बार दर्शन भी करना है और बाल भी देना है।
टैक्सी वाले ने गाडी वहीं रोकी,जहां बाल काटने की व्यवस्था है। लाइन में लग कर बाल कटाने ेके चार टोकन लिए। यहां दस रुपए में बाल कटाने के टोकन मिलते हैं। भीतर पंहुचे तो देखा कि सैंकडों महिला पुरुष बाल कटवा रहे हैं। मैने सुना था कि यहां बाल कटाने के लिए घण्टो इंतजार करना पडता है,लेकिन हम लोग तो पन्द्रह-बीस मिनट में ही बाल कटा कर निवृत्त हो गए।
सुबह से कुछ खाया नहीं था। दोपहर की बारह बज चुकी थी। नजदीक की एक दुकान में इडली वडा खाया और फिर नहाने के लिए मन्दिर के पीछे बने सरोवर में पंहुच गए। कपडे हम साथ ले गए थे।स्नान के बाद धुले हुए कपडे पहने और दर्शनों की चिन्ता शुरु की। तीन सौ रुपए वाले दर्शन की लाइन में हम 1.20 पर लगे। बडी आसानी से दर्शन के टोकन मिल गए। मैने सुना था कि यहां दर्शन में दो-तीन दिन लग जाते हैं,लेकिन तिरुपति बलाजी ने मेरी सुन ली। हमने केवल पौने दो घण्टे में दर्शन कर लिए। हम 2.45-2.50 पर मन्दिर के भीतर थे। मन्दिर की सारी धार्मित प्रक्रियाएं निपटा कर करीब साढे तीन पर बाहर आए।
मन्दिर परिसर से हम बदले हुए स्वरुप में बाहर आए। करीब एक घण्टे तक तिरुमला के बाजार को देखते हुए बस स्टैण्ड पंहुचे। बस स्टैण्ड से टाटा सूमो तय करके उसमें सवार होकर शाम करीब छ: बजे नीचे तिरुपति पंहुचे। होटल में पंहुचकर फ्रैश हुए।
तिरुपति में स्थित एक दो मन्दिरों के दर्शन के बाद करीब साढे नौ बजे भोजन किया। रमेश की बस रात बारह बजे थी। उसे वापस बैंगलुरु जाना था। होटल से उसे छोडने पैदल ही बस स्टैण्ड पर गए। आशुतोष कमरे में सो रहा था। मैं,दशरथ जी और संतोष जी रमेश को छोडने गए थे। होटल लौटते-लौटते रात करीब पौने एख बज गई। सुबह पौने छ: पर भोपाल के लिए एपी सम्पर्क क्रान्ति में सवार होना था,इसलिए चार बजे का अलार्म लगा कर सो गए।
13 फरवरी 2014 ( प्रात: ग्यारह बजे)
सीपीए सर्टिट हाउस भोपाल
यात्रा का अंतिम दिन। हम भोपाल पंहुच चुके हैं और सीपीए सर्किट हाउस में नहा धोकर तैयार हो रहे हैं। रतलाम के लिए दोपहर पौने तीन बजे ट्रेन है।शाम सवा सात तक हम रतलाम में होंगे।
कल यानी बारह फरवरी को रात को देर से सोने के कारण सुबह चार की बजाय पौने पांच पर नींद खुली। जल्दी जल्दी स्टेशन पर पंहुचने के लिए तैयार हुए। मैं दंतमंजन स्नान भी नहीं कर पाया। ट्रेन पकडना जरुरी था। वहीं के एक मारवाडी भोजनालय से सुबह पांच बजे सब्जी पराठे पैक करवा लिए थे। ट्रेन ठीक समय पर रवाना हो गई। ट्रेन का मार्ग देखा तो पता चला कि यह फिर से हैदराबाद होकर ही जाएगी। विनय को फोन लगाया कि शायद वह स्टेशन आ सके,लेकिन उसने किसी शापिंग माल में मैनेजर की नौकरी कर ली हैऔर कल उसका पहला दिन था। हमने ट्रेन की पैन्ट्री कार का ही भोजन किया और सो गए। शाम को ही भोपाल में प्रकाश भटनागर जी से बात हो गई थी और सीपीए सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था हो चुकी थी। स्टेशन से सीधे यहां आए। अब भोपाल में थोडा बहुत मिलने जुलने के बाद रतलाम के लिए रवाना होंगे।
लम्बे अरसे से अण्डमान निकोबार,जिसे अंग्रेजों के जमाने में कालापानी कहा जाता था,जाने की इच्छा थी। यह इच्छा स्पाइसजेट द्वारा सस्ती हवाई यात्रा की योजना सामने आने पर पूरी हुई। हमने करीब दो महीने पहले टिकट बुक करवाई। आमतौर पर अण्डमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के लिए चैन्ने से हवाई जहाज चलते है,लेकिन इस स्कीम के तहत हमें हैदराबाद से टिकट लेना पडे। हैदराबाद से लिए हुए टिकट चैन्ने की तुलना में सस्ते थे और खासियत यह थी कि प्लेन हैदराबाद से चैन्ने होकर ही जाने वाला था। इस यात्रा में मेरे साथ दशरथ जी पाटीदार,संतोष जी त्रिपाठी और मन्दसौर से आशुतोष नवाल थे। यह यात्रा 2 फरवरी 2014 से प्रारंभ होकर 13 फरवरी 2014 तक चली।
5 फरवरी 2014 बुधवार (सुबह 7.20)
साउथ पाइन्ट सर्किट हाउस,पोर्ट ब्लेयर,अण्डमान
पोर्टब्लेयर के साउथ पाइन्ट सर्किट हाउस के यूबी-4 कमरे में हम अब पोर्ट ब्लेयर देखने के लिए तैयार हो रहे हैं। मेरे इस सफर के साथी आशुतोष नवाल,दशरथ पाटीदार और संतोष त्रिपाठी धीरे धीरे नींद से जागकर तैयार हो रहे हैं। मैं सुबह 5 बजे उठ गया था।
हमारा ये सफर 2 फरवरी को रतलाम से शुरु हुआ था। दोपहर चार बजे हम टोनी की जायलो गाडी से इन्दौर पंहुचे थे,जहां बाम्बे हास्पिटल में हिमांशु की माताजी का इलाज चल रहा था। हम वहां हिमांशु और उसकी माताजी से मिले। हिमांशु जोशी भी इस यात्रा में हमारे साथ आने वाला था,लेकिन माताजी के अचानक अस्वस्थ हो जाने के कारण उसकी यात्रा रद्द हो गई।
हमे उज्जैन से ट्रेन पकडना थी,लेकिन इन्दौर में देर हो जाने से,हम इन्दौर से ही ट्रेन पर सवार हो गए। उज्जैन रेलवे स्टेशन पर भगत जी ने भोजन की व्यवस्था की थी। 24 घण्टे का ट्रेन का सफर बातें करते,कम्प्यूटर पर बाबा मौर्य का कार्यक्रम देखते हुए पूरा किया। हमे हैदराबाद पंहुचना था।
हैदराबाद में विनय कोटिया हमारे लिए मौजूद थे। हम रात करीब साढे दस बजे काछीगुडा स्टेशन पंहुचे थे। काछीगुडा स्टेशन पर उतरने के बाद हमने विनय के साथ भोजन किया और टैक्सी से एयरपोर्ट पंहुचे। हम करीब रात एक बजे एयरपोर्ट पंहुचे। हमारी फ्लाइट सुबह छ: बजे थी। एयरपोर्ट के लाउंज में उंघते जागते जैसे तैसे सुबह हुई और हम प्लेन में सवार हुए। सुबह 7.10 पर हमारा प्लेन चैन्ने उतरा। यहां हमे तीन घण्टे इंतजार करना था। यहां से हमें 11.35 पर अण्डमान के लिए रवाना होना था। ठीक समय पर हमारा प्लेन उडा। यह बडा प्लेन था,जिसमें करीब दो सौ यात्री थे। प्लेन निर्धारित समय से करीब बीस मिनट पहले पोर्टब्लेयर के वीर सावरकर हवाईअड्डे पर पंहुच गया। एयरपोर्ट से बाहर आकर पोर्टब्लेयर के प्रोटोकाल आफिसर धर्मराज से बात की। उन्होने सीधे साउथब्लाक सर्किट हाउस जाने को कहा।
सर्किट हाउस पंहुचकर स्नान आदि किया और करीब सवा चार बजे हम पोर्टब्लेयर घूमने निकले। पोर्टब्लेयर के आबेरडीन बाजार में पैदल घूमते रहे। यहां का बाजार सामान्य बाजारों जैसा है। करीब चार घण्टे तक हम बाजार में घूमते रहे। भोजन किया। एक होटल शालीमार देखकर आए,ताकि सर्किट हाउस छोडकर हम वहां जा सके। सर्किट हाउस काफी महंगा है,हमे सस्ता कमरा चाहिए।
बीती सारी रात हम नींद नहीं ले पाए थे,रात को नौ बजे हम नींद के हवाले हो गए। भरपूर नींद लेने के बाद आज सुबह पांच बजे उठा। नीम की तलाश में सर्किट हाउस का एक पूरा चक्कर लगाया। यहां हरियाली पेड पौधों की भरमार है। लेकिन नीम का पेड मुझे कहीं नजर नहीं आया। सर्किट हाउस के पीछे समुद्र का शानदार नजारा होता है।
आज का दिन हम टैक्सी से पोर्टब्लेयर देखेंगे। जिसमें वीर सावरकर के कारण प्रसिध्द और कभी कुख्यात रही सैल्यूलर जेल भी शामिल होगी।
5 फरवरी 2014 (शाम 8.15)
होटल शालीमार
आज का दिन बेहद व्यस्त और थका देने वाला रहा। सुबह नौ बजे सर्किट हाउस पर आलू की सब्जी और दो-दो पराठे खाकर निकले। गाडीवाला सुभाष राय सर्किट हाउस आ गया था। सुबह के समय पोर्टब्लेयर के विभिन्न म्यूजियम देखने में व्यस्त रहे। साइंस सेन्टर,कला म्यूजियम,नेवल म्यूजियम आदि देखे। इन सब को देखने में जो मुद्दे की बात समझ में आई,वह यहां के वनवासी समाज के बारे में थी,जो आज भी सभ्य समाज से सीमित सम्पर्क रखते हैं,या रखते ही नहीं है। जारवा,शोमेन,सेनिटलरीज आदि वनवासी आज भी निर्व रहते है। इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। इनकी जीवनशैली दर्शाने वाले फोटो,जानकारियां आदि बेहद रोचक है। आन्थ्रोपालीजिकल म्यूजियम भी देखा।
विभिन्न प्रकार के म्यूजियम देखते दोपहर हो गई। हमारे ड्राइवर ने कहा कि आप साइंस सेन्टर देखलें फिर बीच पर जाएंगे। साइंस सेन्टर देखा और फिर पंहुचे बीच पर। इस बीच पर बीच की अन्य खासियतों के अलावा बडी खासियत यह थी कि जापानियों द्वारा समुद्र किनारे बनाए बंकर भी यहां मोजूद थे। इन बंकरों को देखा,फोटो लिए।
बीच से निकले,यात्रा का सबसे बडा आकर्षण सेल्यूलर जेल। पता चला कि चार बजे के बाद टिकट नहीं मिलता। हम पौने चार वहां पंहुच गए,टिकट भी आसानी से मिल गए। सैल्यूलर जेल को आंखों से देखना अपने आप में जीवन पर्यन्त की उपलब्धि है।
6 फरवरी 2014 (सुबह 6.15)
शालीमार होटल,पोर्ट ब्लेयर
आज हमें मड वोल्कानो,जंगल और जारवा आदिवासी देखने जाना है। ड्राइवर सुभाष ने कल ही बता दिया था कि सुबह छ:बजे चलना पडेगा। पूरे दिन की यात्रा है। हम सुबह चार बजे उठ गए और अब स्नान आदि से निवृत्त होकर जाने के लिए एकदम तैयार हैं।
कल का दिन,जीवन का खास दिन था। सेल्यूलर जेल को देखना,वहां स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 7 गुणा 13 फीट की वह कोठरी,जिसमें उन्होने दस साल गुजारे। यातनाओं की इन्तिहा थी,लेकिन उनका साहस नहीं टूटा। जेल अधिकारियों ने उन्हे तोडने के लिए तीसरी मंजिल की आखरी की कोठरी दी। जेल का फांसीघर इसी कोठरी के सामने है। हर मंजिल पर 35 से अधिक कोठरियां है।
अब सैल्यूलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक बना दिया गया है। अण्डमान आने वाला प्रत्येक व्यक्ति सैल्यूलर जेल जरुर आता है। जेल के मुख्यद्वार की इमारत पहले,जेलर और अन्य अधिकारियों का कार्यालय थी,अब यहां सैल्यूलर जेल में लाए गए क्रान्तिकारियों के चित्रों की प्रदर्शनी बना दी गई है। सैल्यूलर जेल और अण्डमान के पुराने फोटो भी यहां प्रदर्शित किए गए हैं। जेल में कैदियों को कोल्हू में बैल की जगह जोता जाता था और तेल निकलवाया जाता था। जेल में इस तरह की सभी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है।
सैल्यूलर जेल में हर शाम सैल्यूलर जेल का इतिहास बताने के लिए लाइट एण्ड साउण्ड शो होता है। हम सब जेल से बाहर निकले,इस शो के टिकट मिलना बन्द हो गए थे। हम निराश हो गए,लेकिन भगवान ने हमारी सुनी। एक व्यक्ति ने हमें भीतर प्रवेश करवा दिया। एक घण्टे की इस गाथा में सैल्यूलर जेल का इतिहास अत्यन्त प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
7 फरवरी 2014 (सुबह 4.15)
शालीमार होटल पोर्ट ब्लेयर
कल का पूरा दिन साउथ अण्डमान के जंगल,जारवा और मड वोल्कानो देखने में गजरा। टैक्सी चालक सुभाष सुबह साढे छ: पर आ गया और हमारी यात्रा शुरु हुई। करीब पचास किमी की यात्रा के बाद हम पोलिस चैक पोस्ट पर पंहुचे। यहां से जारवा आदिवासियों का क्षेत्र शुरु होता है। इसे जिरकीटांग कहा जाता है। यहां से पुलिस सुबह नौ बजे वाहनो के कानवाय बनाकर पुलिस सुरक्षा में रवाना करती है। एक घण्टे में हमने यहीं अल्पाहार किया। नौ बजे कानवाय मडवोल्कानो और बाराटांग के लिए रवाना हुआ। बेहद घना जंगल,ऊं चे पेड,सघन वन में दृश्यता अत्यन्त कम हो जाती है। जारवा वनवासियों को देखने की उत्सुकता थी,लेकिन ठण्डी हवा के झोंको से पलके भारी हो रही थी। उंघते जागते,गाडी से नजर बाहर निकालते रहे,लेकिन कहीं जारवा नजर नहीं आए। बाराटांग का सफर समुद्र किनारे जाकर खत्म हुआ। यहां से सामने स्थित द्वीप पर जाने के लिए जहाज चलते हैं। वाहन सहित इस जहाज पर सवार होकर मड वोल्कानो के द्वीप पर पंहुचे। यहां से पन्द्रह-बीस मिनट का सफर पूरा कर,वहां पंहुचे,जहां कीचड का ज्वालामुखी याने मड वोल्कानो है। यहां पंहुचे अधिकतर लोग इसे देखकर निराश हुए थे। जमीन में से पतला काला कीचड निरन्तर निकलता रहता है। इसकी खोज 2003 में हुई। अब तक करीब बारह मड वोल्कानो खोजे जा चुके हैं। अण्डमान में जीवित ज्वालामुखी भी है,पर इसे पर्यटकों के लिए बन्द कर दिया गया है।
मड वोल्कानो देखकर लौटे तो नजदीक ही एक बीच पर पंहुचे। यहां कुछ समय गुजार कर एक स्थानीय होटल में चावल का भोजन किया और वापसी की यात्रा शुरु हुई। जारवा देखने की उत्सुकता अभी तक बाकी थी। अचानक एक जारवा दम्पत्ति सड़क पर नजर आए। वे हमसे आगे की ओर जा रहे थे। जारवा निर्व रहते हैं। सरकारी निर्देशों के मुताबिक जारवा से न तो बात की जा सकती है ना गाडी रोकी जा सकती है। बस हम जारवा की झलक देख पाए,लेकिन यह भी बडी बात थी। महिला पुरुष दोनो ही लगभग निर्व थे। हमने गाडी की पिछली खिडकी से इन्हे देखा। गहरे काले रंग के महिला पुरुष तीर कमान लिए चल रहे थे। जल्दी ही वे नजरों से ओझल हो गए।
यह बडे शोध का विषय है कि आज के युग में भी ऐसे आदिम मानव समूह कैसे विद्यमान है,जो आधुनिक सभ्य समाज से पूरी तरह कटे हुए है। हांलाकि इनकी जनसंख्या लगातार कम हो रही है। फिलहाल केवल करीब पांच सौ जारवा मौजूद है। शोम्पैन और सेन्टिनलीज जैसे आदिवासी तो और भी कम है। जारवाओं का प्रशासनिक लोगों से थोडा सम्पर्क जरुर है,लेकिन शोम्पैन व सैन्टिनलीज सभ्य समाज से कोई सम्पर्क नहीं रखते। हमारा सफर शाम करीब छ: बजे हमारे होटल पर आकर खत्म हुआ।
आज भी सुबह जल्दी हेवलाक द्वीप के लिए क्रूज से रवाना होना है। इसलिए कल जल्दी से भोजन आदि करके सो गए थे। इस वक्त 4.45 हो रहे हैं। छ: बजे हमें हैवलाक बीच के लिए रवाना होना है।
9 फरवरी 2014 (सुबह 7.30)
शालीमार होटल पोर्टब्लेयर
अण्डमान से बिदा लेने का दिन आ चुका है। आदतन सुबह छ: बजे नींद खुल गई। स्नान आदि के बाद अपना सामान भी समेट चुका हूं। होटल से हम ग्यारह बजे निकलेंगे। एक बजे हमारी फ्लाइट है,जो रात ग्यारह बजे हैदराबाद पंहुचाएगी।
परसों यानी 7 फरवरी को हम सुबह नियत समय से पहले ही जेट्टी पर पंहुच गए। क्रूज से
हेवलाक जाना काफी महंगा है। हमे जाने के लिए प्रति व्यक्ति आठ सौ रुपए और वापसी के लिए साढे नौ सौ रुपए देना पडे। बहरहाल हम क्रूज की यात्रा का आनन्द लेते हुए साढे नौ बजे हैवलाक पंहुचे। हैवलाक की जेट्टी से आटो करके हम शहर में पंहुचे। यहां हमने चार सौ रुपए प्रति वाहन के हिसाब से दो एक्टिवा स्कूटर किराए पर लिए। यहां हैवलाक में दो-तीन प्रसिध्द समुद्र तट है।
पहले हम सबसे सुन्दर राधानगर समुद्रतट पर पंहुचे। यहां का समुद्र देखते ही मन प्रसन्न हो गया। साफ नीला पानी,लहरे मार रहा था। काफी लम्बा किनारा,जिस पर नारियल,सुपारी और अन्य कई प्रकार के बडे पेड लगे हुए हैं। जहां तक नजर जाती है किनारा दिखाई देता है।
मैने कई जगह समुद्र देखा है,लेकिन इतना स्वच्छ साफ समुद्र पहली बार देखा। ये नजारा देखते ही सबका स्नान करने का मन हो आया। समुद्र स्नान के बाद शरीर पर चिपकने वाली रेत के खतरे के बावजूद हम करीब एक घण्टे तक समुद्र स्नान का आनन्द लेते रहे। आश्चर्य की बात यह थी कि यहां रेत भी शरीर को नहीं चिपकी थी।
राधानगर बीच पर मस्ती करने के बाद हम काला पत्थर बीच पर पंहुचे। यहां भी कई किलोीटर लम्बा समुद्रतट है। समुद्र के नीचे पत्थर है,जिनकी वजह से दूर से देखने पर समुद्र कहीं नीला तो कहीं काला दिखाई देता है। शायद यही वजह होगी कि इसे कालापत्थर बीच कहा जाता है। इन दोनो ही समुद्र तटों पर पर्यटकों की संख्या बेहद कम है। इसी वजह से यहां गंदगी बिलकुल नहीं है।
यहां से कुछ और आगे बढे। आगे कालापत्थर गांव है। गांव से पहले ही एख झोंपडी में रहने वाले किसान शिवकांत मजूमदार और उनकी पत्नी से मुलाकात की। शिवकान्त खेतिहर मजदूर है।हमारे पानी मांगने पर वे काफी दूर से मीठा पानी लेकर आए। उनकी पत्नी को हिन्दी नहीं आती। कुछ देर शिवकान्त से गांव खेती आदि के बारे में चर्चा की।
हमें ढाई बजे फिर से जेट्टी पर पंहुचना था। अब लौटने का समय होने लगा था। हमने स्कूटर लौटाए। वहां से आटो पकड कर फिर जेट्टी पर पंहुचे। सुबह से हमने कुछ नहीं खाया था। जेट्टी के बाहर एक बंगाली परिवार द्वारा चलाए जा रहे छोटे से होटल पर राइस थाली,भजिए और समोसे का आनन्द लिया।
ठीक तीन बजे हमारा क्रूज पोर्टब्लेयर के लिए रवाना हुआ। वापसी में यह नील द्वीप होता हुआ पोर्टब्लेयर पंहुचे। जेट्टी से पैदल ही होटल आए।
अगला दिन यानी आठ फरवरी हमने पोर्ट ब्लेयर में ही रहने के लिए रखा था। सुबह जल्दी उठने का झंझट नहीं था। रात करीब ग्यारह बजे हम सोए।
8 फरवरी 2014-
हमने सोचा था कि सैल्यूलर जेल को फिर से इतमिनान के साथ देखें। हम सुबह करीब साढे नौ बजे सैल्यूलर जेल जा पंहुचे। इस बार हमने जेल के इतिहास से सम्बन्धित प्रदर्शनी को पूरे ध्यान से पढा। यहां एक पुस्तकालय भी है,जिसमें करीब दो हजार पुस्तकें हैं। इनमें से अधिकांश स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित है। पुस्तकालय की प्रभारी सुनीता नामक महिला से बात करने पर ज्ञात हुआ कि पर्यटन के पीक सीजन में करीब एक हजार पर्यटक प्रतिदिन जेल देखने आते हैं। अन्य दिनों में यह संख्या बेहद कम हो जाती है। विदेशी पर्यटक तो और भी कम आते है। इस लिहाज से अण्डमान अभी विदेशी पर्यटकों के ज्यादा नजदीक नहीं पंहुचा है। देशी पर्यटक भी अधिक नहीं आते। साल में करीब दो लाख पर्यटक यहां पंहुचते हैं,जोकि बेहद कम संख्या है।
हम करीब ग्यारह बजे तक जेल में रहे। फिर आबरदीन बाजार में पंहुचकर हमने भोजन किया। दोपहर तीन बजे से सौलह देशों की जल सेनाओं की इन्टरनेशनल सिटी परेड होना थी। यह चार साल में एक बार होती है। इसे मिलन 2014 नाम दिया गया था। हमने पहले ही इसे देखने का निश्चय किया था। करीब ढाई बजे जब परेड देखने के लिए चले तो लगा कि जैसे पूरा पोर्टब्लेयर ही वहां उमड पडा हो। इस परेड में थाईलैण्ड,बांग्लादेश,श्रीलंका,इण्डोनेशिया,आदि सौलह देशों के ट्रूप शामिल थे। परेड के दौरान भारतीय नौसेना ने समुद्र में फंसे लोगों के बचाव अभियान का प्रदर्शन किया। वहीं पैराशूट से आसमान में तिरंगे का प्रदर्शन किया।पैराशूट जम्पिंग के कई कारनामे यहां दिखाए गए। इस परेड में शामिल होना बेहद रोमांचक रहा। महम लोग शाम करीब सात बजे होटल वापस लौटे और अब जाने की तैयारी।
11 फरवरी 2014 मंगलवार (सुबह 8.00)
हमारी ट्रेन अब तिरुपति पंहुचने वाली है। आड तिरुपति बालाजी के दर्शन कर कल वापसी का सफर शुरु करेंगे।
रविवार यानी 9 फरवरी को शालीमार होटल से आटो करके वीर सावरकर अन्तर्राष्ट्रिय हवाई अड्डे पंहुच गए। हमारी फ्लाइट निर्धारित समय पर शुरु हुई और हम दोपहर ढाई बजे चैन्ने उतरे। हमारी अगली फ्लाईट रात 9.50 पर थी। हमारे पास काफी वक्त था। हवाई अड्डे से बाहर आकर एक आटो किया और निकल पडे चैन्ने घुमने। आटोवाले से हमने किी शापिंग माल में ले जाने को कहा था। चैन्ने का मरीना बीच यहां से बेहद नजदीक था। शापिंग माल में एक-डेढ घण्टे घूमने के बाद बीच पर जा पंहुचे। बीच पर शाम की छ: बज गई। यहां से एक सिटी बस में सवार होकर फिर से हवाई अड्डे आ गए। चैन्ने से 9.50 पर उडे तो रात ग्यारह बजे हैदराबाद पंहुचे। बाहर आते आते साढे ग्यारह हो गए। विनय व्यस्त था। उसने एक होटल तो बुक कर दिया था,लेकिन वह नहीं आया था। हम थक चुके थे। रास्ते में एक होटल से खाना पैक करवा कर काछीगुडा स्टेशन के सामने त्रिवेणी होटल में आए। भोजन किया और सो गए। इस होटल के कमरे बेहद घटिया थे,लेकिन और कोई चारा नहीं था।
10 फरवरी-हैदराबाद में हमें रामोजी फिल्म सिटी घूमना थी। रामोजी फिल्म सिटी के लिए बस सुबह साढे नौ बजे निकलने वाली थी,लेकिन इसकी बुकींग सुबह साढे सात पर करवाना जरुरी था।प्रति व्यक्ति दो सौ पच्चीस रुपए के हिसाब से यह बस रामोजी सिटी ले जाने का काम करती है। हम जल्दी उठे,जल्दी जल्दी तैयार हुए और फिल्म सिटी जाने वाली बस में सवार हो गए। फिल्म सिटी में आने का यह मेरा दूसरा मौका था। पहले इ टीवी का इंटरव्यू देने आया था। इस बार फिल्म सिटी घूमने ही आया। यहां प्रति व्यक्ति आठ सौ रुपए प्रवेश शुल्क है। इसमे बस में एक गाईड एक घण्टे तक आपको फिल्म सिटी घूमाता है। फिल्म सिटी में फिल्मों की शूटिंग के लिए नकली रेलें,स्टेशन,हवाई अड्डा,अस्पताल,चर्च,मन्दिर,गांव,शहर,विदेशी शहर जैसे तमाम स्थाई सेट्स है। कई सारे गार्डन है। गाईड के बताने पर कई फिल्मे ध्यान में आई,जिनकी शूटिंग यहां हुई। फिल्म सिटी में पर्यटकों के लिए पांच शो किए जाते हैं। इनमें फिल्म निर्माण कैसे होता है,इस पर आधारित एक शो बेहद उपयोगी था। इसमें यह बताने की कोशिश की गई है कि पर्दे पर जो दिखता है,उसके पीछे कई सारे लोगों की मेहनत होती है। इसके अलावा एक शो में पूरे रामोजी फिल्म सिटी को पुतलों के जरिये दिखाया गया है। पर्यटकों को एक गाडी में बिठाकर यहां घूमाते है। स्टंट शो में स्टंट सीन का जीवन्त प्रदर्शन किया जाता है। इसी तरह एक सांस्कृतिक नृत्य गीत का कार्यक्रम भी दिखाया जाता है।
फिल्म सिटी पांच बजे बन्द हो जाती है। साढे पांच पर वापसी के लिए बस में बैठे। जबर्दस्त ट्रैफिक में फंसी बस हमारी धडकनें बढा रही थी। हमारी ट्रेन वेंकटाद्री एक्सप्रेस 8.05 पर रवाना होने वाली थी। हम जैसे तैसे शाम 7.20 पर होटल पंहुचे। हमारे इंतजार में विनय वहीं मौजूद था। जल्दी जल्दी सामान बटोरा। सामने ही स्टेशन है। स्टेशन पंहुच गए और ट्रेन में सवार हो गए। अब ट्रेन तिरुपति पंहुचने वाली है।
12 फरवरी 2014 (सुबह 6.15)
एपी सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस
हम अण्डमान यात्रा के अंतिम चरण में अब तिरुपति से भोपाल के लिए ट्रेन के एस 3 कोच में सवार हैं। ट्रेन कल सुबह भोपाल पंहुचेगी और शाम तक हम रतलाम में होंगे।
कल यानी 11 फरवरी की सुबह ट्रेन करीब डेढ घण्टे की देरी से तिरुपति पंहुची थी। स्टेशन पर दशरथ जी का छोटा भाई रमेश मौजूद था। रमेश बैंगलोर में रहता है और दशरथ जी के बुलाने पर एक दिन की छुट्टी लेकर तिरुपति आया था। रमेश ने पहले से होटल में कमरा ले रखा था। स्टेशन से हम सीधे होटल पंहुचे। होटल स्टेशन के ठीक सामने ही था। होटल पंहुचकर स्नान आदि से निवृत्त हुए और करीब साढे दस पर तिरुमाला का लिए निकले। टैक्सी लेकर बीस किमी का पहाडी सफर पूरा करके उपर तिरुमला पंहुचे,जहां वैंकटेश स्वामी या तिरुपति बालाजी का प्रमुख मन्दिर है। मैं दूसरी बार यहां पंहुचा था। पहली बार मैं बिना दर्शन किए लौट आया था। इस बार यात्रा की शुरुआत में ही मन बन गया था कि इस बार दर्शन भी करना है और बाल भी देना है।
टैक्सी वाले ने गाडी वहीं रोकी,जहां बाल काटने की व्यवस्था है। लाइन में लग कर बाल कटाने ेके चार टोकन लिए। यहां दस रुपए में बाल कटाने के टोकन मिलते हैं। भीतर पंहुचे तो देखा कि सैंकडों महिला पुरुष बाल कटवा रहे हैं। मैने सुना था कि यहां बाल कटाने के लिए घण्टो इंतजार करना पडता है,लेकिन हम लोग तो पन्द्रह-बीस मिनट में ही बाल कटा कर निवृत्त हो गए।
सुबह से कुछ खाया नहीं था। दोपहर की बारह बज चुकी थी। नजदीक की एक दुकान में इडली वडा खाया और फिर नहाने के लिए मन्दिर के पीछे बने सरोवर में पंहुच गए। कपडे हम साथ ले गए थे।स्नान के बाद धुले हुए कपडे पहने और दर्शनों की चिन्ता शुरु की। तीन सौ रुपए वाले दर्शन की लाइन में हम 1.20 पर लगे। बडी आसानी से दर्शन के टोकन मिल गए। मैने सुना था कि यहां दर्शन में दो-तीन दिन लग जाते हैं,लेकिन तिरुपति बलाजी ने मेरी सुन ली। हमने केवल पौने दो घण्टे में दर्शन कर लिए। हम 2.45-2.50 पर मन्दिर के भीतर थे। मन्दिर की सारी धार्मित प्रक्रियाएं निपटा कर करीब साढे तीन पर बाहर आए।
मन्दिर परिसर से हम बदले हुए स्वरुप में बाहर आए। करीब एक घण्टे तक तिरुमला के बाजार को देखते हुए बस स्टैण्ड पंहुचे। बस स्टैण्ड से टाटा सूमो तय करके उसमें सवार होकर शाम करीब छ: बजे नीचे तिरुपति पंहुचे। होटल में पंहुचकर फ्रैश हुए।
तिरुपति में स्थित एक दो मन्दिरों के दर्शन के बाद करीब साढे नौ बजे भोजन किया। रमेश की बस रात बारह बजे थी। उसे वापस बैंगलुरु जाना था। होटल से उसे छोडने पैदल ही बस स्टैण्ड पर गए। आशुतोष कमरे में सो रहा था। मैं,दशरथ जी और संतोष जी रमेश को छोडने गए थे। होटल लौटते-लौटते रात करीब पौने एख बज गई। सुबह पौने छ: पर भोपाल के लिए एपी सम्पर्क क्रान्ति में सवार होना था,इसलिए चार बजे का अलार्म लगा कर सो गए।
13 फरवरी 2014 ( प्रात: ग्यारह बजे)
सीपीए सर्टिट हाउस भोपाल
यात्रा का अंतिम दिन। हम भोपाल पंहुच चुके हैं और सीपीए सर्किट हाउस में नहा धोकर तैयार हो रहे हैं। रतलाम के लिए दोपहर पौने तीन बजे ट्रेन है।शाम सवा सात तक हम रतलाम में होंगे।
कल यानी बारह फरवरी को रात को देर से सोने के कारण सुबह चार की बजाय पौने पांच पर नींद खुली। जल्दी जल्दी स्टेशन पर पंहुचने के लिए तैयार हुए। मैं दंतमंजन स्नान भी नहीं कर पाया। ट्रेन पकडना जरुरी था। वहीं के एक मारवाडी भोजनालय से सुबह पांच बजे सब्जी पराठे पैक करवा लिए थे। ट्रेन ठीक समय पर रवाना हो गई। ट्रेन का मार्ग देखा तो पता चला कि यह फिर से हैदराबाद होकर ही जाएगी। विनय को फोन लगाया कि शायद वह स्टेशन आ सके,लेकिन उसने किसी शापिंग माल में मैनेजर की नौकरी कर ली हैऔर कल उसका पहला दिन था। हमने ट्रेन की पैन्ट्री कार का ही भोजन किया और सो गए। शाम को ही भोपाल में प्रकाश भटनागर जी से बात हो गई थी और सीपीए सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था हो चुकी थी। स्टेशन से सीधे यहां आए। अब भोपाल में थोडा बहुत मिलने जुलने के बाद रतलाम के लिए रवाना होंगे।
No comments:
Post a Comment