(हिमाचल यात्रा 1 जून 2014 से 11 जून 2014)
2 जून 2014 (शाम 6.35)
सिमरन गेस्ट हाउस बिलासपुर
चण्डीगढ से कुल्लू के रास्ते में,बिलासपुर जिला मुख्यालय है। हम शाम करीब सवा पांच बजे बस स्टैण्ड पंहुचे थे। बस स्टैण्ड के नजदीक ही इस सिमरन गेस्ट हाउस में पंहुचे और दो दिन की थकाउ यात्रा के बाद यहां स्नानादि कर रहे हैं।
हिमाचल की ये दूसरी यात्रा है। पहली यात्रा मारुति वैन से करीब बारह-तेरह साल पहले की थी। इस बार करीब डेढ महीने पहले अचानक योजना बनी और यूथ होस्टल्स के फेमिली कैम्पिंग के लिए हम तीन मित्र तैयार हो गए।
तो इस यात्रा में मेरे साथ वैदेही,चिन्तन,आशुतोष,उसका बालक अक्षत और पत्नी,नरेन्द्र शर्मा और सुनीता है। मलय भी इस यात्रा में हमारे साथ है। मलय के आने का फैसला आखिर में तब हुआ जब मेरी मनाली में यूथ होस्टल्स वालों से चर्चा हो गई और उन्होने कहा कि मलय भी आ सकता है। आखिर में उसका टिकट करवाया।
यात्रा की शुरुआत 1 जून को हुई। 1 जून को सुबह गुना गाडी से मैं,मलय,वैदेही और चिन्तन उज्जैन पंहुचे। बडी आसानी से जगह मिल गई। उज्जैन से मालवा एक्सप्रेस में बैठना था। नरेन्द्र सीधे इन्दौर से ट्रेन में सवार हुआ,जबकि आशुतोष उज्जैन में ही मिल गया। सफर का पहला झटका 1 जून को सुबह तब लगा,जब यह पता चला कि आरक्षण कन्फर्म नहीं हुआ है। जिस दिन टिकट लिए थे,आरएसी मिली थी। मुझे उम्मीद थी कि रिजर्वेशन हो ही जाएगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब हम आठ लोगों के पास चार बर्थ थी और हमें बीस घण्टे की यात्रा करना थी। स्लीपर डब्बे में सारा दिन गर्म लू के थपेडे झेलते और सीटों पर उंघते,उंघते रात कटी। हम करीब साढे नौ बजे अम्बाला पंहुचे।हमे बताया गया था कि अम्बाला से चण्डीगढ पंहुच जाए, क्योकि चण्डीगढ से कुल्लू के लिए लगातार बसें मिलती है। हम करीब 11 बजे चण्डीगढ के सेक्टर 17 के आईएसबीटी पंहुचे। यहां भोजन जैसा तगडा नाश्ता किया. यहां हमे पता चला कि कुल्लू के लिए बस,सेक्टर 43 के बसस्टैण्ड से मिलेगी। हम सिटी बस में सवार होकर सेक्टर 43 पंहुचे। यहां पता चला कि कुल्लू तक का सफर दस से बारह घण्टों का है। ये हमे पहले भी पता था। गूगल मैप पर देखकर सरकाघाट नामक स्थान पर पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस बुक करवाया था। लेकिन चण्डीगढ पंहुचकर पता चला कि चण्डीगढ-कुल्लू मेन रोड से हटकर जाना पडेगा और वहां का रास्ता बेहद कठिन है। बस के कण्डक्टर ने हमें कहा कि हम बिलासपुर तक पंहुच जाए,वहां से सरकाघाट की बस मिल जाएगी। लेकिन बिलासपुर से सरकाघाट का रास्ता करीब तीन घण्टों का बताया गया। हमने फौरन तय कर लिया कि हम सरकाघाट नहीं जाएंगे। बिलासपुर ही रुक जाएंगे,ताकि सुबह यहां से सीधे 15 माईल्स बेस कैम्प के लिए निकल जाएंगे,जहां हमें सात जून तक रहना है। बिलासपुर रुकने का दूसरा फायदा यह भी है हम ठीक समय पर यहां पंहुचे और अब अच्छा आराम कर सकते हैं,जिससे कि दो दिनों के सफर की थकान मिट सके।
4 जून 2014 (शाम 7.15)
15 माईल्स यूथ होस्टल्स कैम्प
कल का सारा दिन व्यस्तता में गुजरा। बिलासपुर में रात गुजारने का निर्णय सही रहा। मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों की जानलेवा गर्मी की तुलना में हिमाचल का यह निचला हिस्सा दिन में चाहे गर्म हो,लेकिन शाम और रात पर्याप्त सुकून देने वाली है। गेस्ट हाउस से अल्पाहार के लिए करीब नौ बजे निकले। अल्पाहार के बाद करीब ग्यारह बजे पंजाब रोड ट्रांसपोर्ट की मनाली की बस में सवार हुए। हिमाचल की खुबसूरत वादियों,पहाडों और टेढे-मेढे रास्तों से गुजरना अपने आप में आनन्द दायक होता है। जैसे जैसे बस ऊं चाई पर पंहुच रही थी,मौसम सुहावना होता जा रहा था। धूप में तीखापन था,लेकिन हवा में पर्याप्त ठण्डक थी। बिलासपुर से मण्डी और कुल्लू होते हुए हमारी बस पतली कुहल पंहुची। पतली कुहल कुल्लू जिले का हिस्सा है। बस यहीं से करीब 2 किमी आगे मनाली की तरफ यूथ होस्टल्स का पन्द्रह माइल बेस कैम्प है। बेस कैमप पर शाम करीब सवा पंाच पर पंहुचे। यहां पंहुचते ही हमें चाय पीने को कहा गया। कैम्प में एन्ट्री की औपचारिकताएं पूरी करने में करीब एक घण्टा पूरा हो गया। हमे टेण्ट दे दिए गए हैं। टेण्ट अत्यन्त व्यवस्थित है। इनमें दो गद्दे लगे है। तकिए और कम्बल भी दे दिए गए हैं। टेण्ट में सिर्फ दो गद्दे लग सकते है। इस कैम्प में करीब साठ टेण्ट लगे हैं। मलय के लिए भी एक अतिरिक्त टेण्ट लिया। यहां चाय अल्पाहार और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। हमें बताया गया कि सुबह पांच बजे उठकर सुबह सात बजे तैयार होना पडेगा।
रात को कैम्प फायर हुआ,जिसमें लोग शरमाते सकुचाते रहे। आखिर में मलय ने मोर्चा सम्हाला। एक गाना सुनाया,संचालन किया,एक दो जोक भी सुनाए। फिर थोडा कुछ मैने बोला। सुबह जल्दी उठना था इसलिए साढे दस तक सो गए।
4 जून। हमारे विवाह की वर्षगांठ। सुबह श्रीमती रश्मि नवाल ने बधाई दी,तो याद आया कि आज 4 जून है। सुबह सही समय पर उठे और छोले भटूरे का नाश्ता करने के बाद लंच बाक्स में आलू की सब्जी और पराठे पैक कर लिए। चार दिन के भ्रमण के लिए कल ही गाडी बुक कर ली थी। सुबह आठ बजे गाडी आ गई। आज मणिकर्ण जाना था,जो करीब 75 किमी दूर है।
मणिकर्ण प्राचीन धार्मिक स्थल है,जहां गर्म पानी के ोत कुण्ड आदि है। यहीं प्रसिध्द गुरुनानक देव का गुरुद्वारा,श्रीराम मन्दिर,शिवमन्दिर आदि है। चून्क मणिकर्ण जाना था,इसलिए कैम्प में स्नान नहीं किया था। मणिकर्ण में ही नहाने का इरादा था।
बेस कैम्प से निकले और पतली कुहल से कुछ ही आगे वैष्णो देवी मन्दिर पर ड्राइवर ने गाडी रोक दी। सात मंजिले इस मन्दिर में चौथी मंजिल पर वैष्णो देवी की गुफा की प्रतिकृति बनाई गई है। सबसे अच्छी बात यह लगी कि इस मन्दिर में स्वामी विवेकानन्द,उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस व गुरु माता सारदा मां की मूर्तियां भी हैं। पांचवी मंजिल पर भी मन्दिर और छठीं व सातवीं मंजिल पर भी मन्दिर हैं।
इस मन्दिर द्वारा धर्मशाला और निशुल्क लंगर भी चलाया जाता है।
मन्दिर के दर्शन कर मणिकर्ण के लिए रवाना हुए। दृश्यावली अत्यन्त सुन्दर थी,लेकिन मुझे नींद आ रही थी और मै झपकी लेता रहा। मणिकर्म पंहुचने के बाद ही नींद खुली। श्रीराम मन्दिर के पास ही गर्म पानी का एक कुण्ड था। मुझे लगा था कि कुण्ड में भारी भीड होगी,लेकिन कुण्ड खाली पडा था। हांलाकि लोग यहां साबुन लगा कर नहाते नजर आए। एक-दो लोगों को मैने डांटा भी लेकिन दुख यह हुआ कि ऐसे मूर्खों को रोकने की कोई अच्छी व्यवस्था प्रशासनिक स्तर पर नहीं है। कुड्ड का पानी बहुत ज्यादा गर्म था,इसलिए इसमें उतर कर तो नहा नहीं पाए,लेकिन मग्गे से पानी लेकर नहाए। नहाने के बाद श्री राम मन्दिर का दर्शन किया। आगे बढे तो नदी के किनारे पर बने शिव मन्दिर पंहुचे। कहते है पार्वती जी की मणि यहां गिर गई थी,इसलिए यह मणिकर्ण कहलाता है। बाद में तक्षक ने मणि लौटाई तो उसकी फुफकार से गर्म पानी की धाराएं फूट पडी। गर्म पानी बहुत ज्यादा गर्म होता है,उसमें त्वचा झुलस सकती है। इस पानी के कुण्ड में चावल फौरन पक जाते है। इसी चावल को प्रसाद के रुप में बांटा जाता है। शिवमन्दिर में पहले तो शर्बत पिया फिर चावल का प्रसाद लिया। मन्दिर परिसर में भी गर्म पानी की धाराएं है। मन्दिर में दर्शन के बाद गुरुद्वारे पंहुचे। यहां लंगर भी चल रहा था,लेकिन हम भोजन लेकर आए थे,इसलिए लंगर का आनन्द नहीं ले पाए।
दर्शन करते करते ढाई बज गए। अब भूख लग आई थी। यहां से निकलना भी था। ड्राइवर से कहा कि किसी ऐसी जगह रोकें जहां नदी हो,छाया हो,ताकि भोजन किया जा सके। ड्राइवर ने एक छोटी पुलिया के नजदीक गाडी रोकी। यहां नदी की धारा पतली थी,लेकिन बहाव बेहद तेज था। बस इसी के किनारे भोजन किया। सभी को वास्तविक पिकनिक का मजा आया। नदी में से ही बाटले भर कर प्यास बुझाई। बेस कैम्प पर लौटने से पहले पतली कुहल पर आशुतोष ने इनर और बर्तन खरीदे। शाम छ: बजे बेस कैम्प पंहुचे।
कल सुबह रोहतांग जाना है। इसके लिए सुबह तीन बजे उठना पडेगा और पांच बजे निकलना पडेगा। वहां बर्फ है,इसलिए ठण्ड भी ज्यादा है। देखते है क्या होता है?
5 जून 2014 (शाम 6.45)
सुबह पांच बजे रोहतांग के लिए रवाना होना था। तीन बजे उठ भी गए,लेकिन निकलते निकलते साढे पांच बज गए। रात को शर्मा जी को बुखार आ गया था। गोली खिलाई। उनकी तबियत सुबह तक ठीक भी हो गई।
रोहतांग मनाली से करीब पचास किमी है और यहां से करीब सत्तर किमी। टूरिस्ट सीजन की वजह से रोड पर जाम लग जाता है। भीडभाड की वजह से रोहतांग पर जाने की अनुमति भी नहीं है। रोहतांग से करीब ५ किमी पहले मढी तक पर्यटकों को ले जाते है। यहां भी बर्फ की ऊ ंचाईयां है। रास्ते में 250 रु.प्रति व्यक्ति के हिसाब से स्नो सूट जूते आदि लिए। तब लगा कि जर्किन बेवजह ही लाए। ठण्ड है तो,लेकिन इतनी भी नहीं कि इतना वजह उठाना जरुरी हो।
मढी पर बर्फीले मैदान से काफी नीचे ही ड्राइवर ने उतार दिया। उसका कहना था कि केवल सौ मीटर चलने पर आप पाइन्ट पर पंहुच जाएंगे। चट्टान की चढाई एकदम खडी थी। वैदेही तो शुरुआत में ही हिम्मत हार गई। फिर जैसे तैसे आधे रास्ते पर आई। उसकी सांस फूल रही थी। सिर भारी हो रहा था और घबराहट हो रही थी। मैने उससे नीचे लौट जाने को कहा,लेकिन कुछ देर बाद हिम्मत जुटाकर वह जैसे तैसे उपर की सड़क पर आई। उपर सड़क पर पंहुचने के बाद करीब ढाई सौ मीटर पैदल चलने के बाद बर्फीला मैदान आया। मलय और चिन्तन यहां पहले ही पंहुच गए थे। जब हम वहां पंहुचे हमें चिन्तन व मलय नहीं मिले। वे घूमने के लिए आगे निकल गए थे। करीब दो घण्टे हम बर्फ पर रहे। हिमाचली वेशभूषा पहन कर फोटो भी खिंचाई। फिर उपर चढे। तब तक मलय और चिन्तन का पता नहीं था,लेकिन फिर वे भी वहां पंहुच गए। बर्फ के पहाड पर फिसल कर नीचे जाने का सबसे ज्यादा मजा उन दोनो ने ही लिया। एक बार नीचे जाने के बाद उपर आने में हमें कठिनाई हो रही थी,लेकिन ये दोनो आठ-दस बार उपर नीचे हो आए।
मढी से हम ढाई बजे निकले। हमारा लक्ष्य था,सोलंग घाटी। यहां कुछ नहीं है। सिर्फ रोप वे है। जिसका शुल्क पांच सौ रु.है। लेकिन चिन्तन की जिद्द पर चिन्तन,मलय और अक्षत को उपर भेजा। बेसकैम्प से लाए खाना भी सोलंग घाटी में पेडों के नीचे बैठकर खाया। वां से निकलते निकलते साढे तीन हो गए थे। आशुतोष,अक्षत और रश्मि तो रोपवे पर पहले ही जा चुके थे। पहाडी इलाके में टूरिस्ट सीजन में सड़कों पर जाम लगना बडी समस्या है। नार्थईस्ट में गुवाहाटी से शिलांग जाने में दो-तीन घण्टे जाम में फंसना पडता है। यहां भी रोहतांग से लौटते समय मनाली में जाम लगना आम बता है। हांलाकि हमें जाम में ज्यादा देर नहीं लगी। करीब साढे पांच पर हम बेस कैम्प लौटे।
लेकिन रास्ते में ही वैदेही को उल्टी हो गई। अब उसकी तबियत खराब होने लगी है। उसे सिरदर्द हो भी हो रहा है। पुदीन हरा की गोली खाकर वह सोई है। नींद कम होने की वजह से समस्या हुई है। नींद पूरी होने पर दिक्कत स्वत: समाप्त हो जाएगी। कुल हमें बिजली महादेव जाना है। इसका रास्ता कुल्लू से होकर है।
7 जून 2014 (सुबह 8.25)
15 माईल्स बेसकैम्प
कैम्प से जाने की तैयारी। बीता दिन भारी मशक्कत वाला रहा। 5 जून की रात वैदेही की तबियत खराब हो गई थी। नरेन्द्र को दो दिन से रात रात को बुखार आ रहा था। 6 जून की सुबह हमें बिजली महादेव जाना था। चंूकि उससे पहले रोहतांग गए थे,इसलिए कल सुबह कुछ आराम से उठे। धीरे धीरे तैयार हुए और करीब नौ बजे बिजली महादेव के लिए रवाना हुए। बिजली महादेव कुल्लू से आगे एक बेहद ऊं ची पहाडी पर है। ये पहाडी,कुल्लू,मनाली,भुंतर और नग्गर में सबसे ऊं ची है। पहाड पर काफी उपर तक गाडी जाती है और फिर तीन किमी की दूरी खडी चढाई है,जिसमें सीढीयां बनी हुई है।
हमने ठीक दस बजे चढना शुरु किया। हमारे ड्राइवर दुनीचंद ने कहा कि भोजन साथ ही ले जाईए। भोजन वाला बैग मैने अपने कन्धे पर टांग लिया। मलय और चिन्तन आदत के मुताबिक सबसे पहले चढने लगे। इनके पीछे आशुतोष,अक्षत और रश्मि थे। पीछे नरेन्द्र और सुनीता,फिर मै और सबसे पीछे वैदेही थी। वैदेही थोडा ही चढने के बाद थकने लगी थी। मैने सोच लिया कि वैदेही को साथ ही लेकर जाना है। ये तीन किमी की खडी चढाई पार करने में हमें साढे चार घण्टे लग गए। मलय और चिन्तन हमसे दो घण्टे पहले ही पंहुच गए थे। जबकि आशुतोष और रश्मि करीब एक घण्टे पहले पंहुचे। नरेन्द्र और सुनीता हमारे साथ चल रहे थे। राम राम करके उपर पंहुचे। पहाडी के शिखर पर बिजली महादेव के दर्शन कर और पहाडों की अद्भुत दृश्यावलियां देखकर जैसे थकान मिट गई।
पिछली हिमाचल यात्रा के दौरान हम शमशी के फारेस्ट रेस्ट हाउस में रुके थे। उस समय भी हमे बिजली महादेव जाना था। हम गाडी लेकर चले भी थे,लेकिन पहाडी सड़क इतनी खडी चढाई थी कि हमारी गाडी ही उपर नहीं चढ पाई थी और हमे आधे रास्ते से वापस लौटना पडा था। तब से बिजली महादेव जाने की बडी इच्छा थी। जो इस बार पूरी हुई।
बहरहाल उपर पंहुचने के बाद बिजली महादेव के दर्शन किए। तेज भूख लग चुकी थी। मलय ने तो हमारे पंहुचते ही भोजन शुरु कर दिया था। भोजन रोज की तुलना में कुछ कम ले गए थे। मलय के भोजन के दौरान चिन्तन के हाथ से सब्जी का डब्बा ढुल गया और बहुत सारी सब्जी गाय खा गई। इस बात पर नरेन्द्र ने चिन्तन को कहा कि थोडी देर इन्तजार कर लेता तो खाना गाय नहीं खा पाती। चिन्तन नाराज हो गया और रोने लगा। फिर बिना कुछ खाए पिए वहां से भाग गया। तब तक हम लोग भी भोजन कर चुके थे। चिंतन भागा तो मैने मलय को उसके पीछे भेजा। वैदेही भी गई और चिन्तन को डांटा। चिंतन और नाराज हो गया। तभी मैं पंहुचा। मैने उसे समझाने के लिए अपने साथ लिया और हम उतरने लगे। हम शाम करीब पांच बजे नीचे सड़क पर पंहुचे,जहां गाडी खडी थी। नीचे पंहुचने वालों से सबसे पहले हम थे। छ: बजे तक सारे लोग नीचे आ गए। सारे लोग बुरी तरह थक चुके थे। कैम्प पर पंहुचते पंहुचते आठ बज गए। हमने रास्ते में सोचा था कि कैम्प फायर करेंगे। कैम्प के अधिकांश लोग बुरी तरह थके हुए थे,लेकिन हमने कैम्प फायर किया। मैं मलय नरेन्द्र और चिन्तन ने कैम्प फायर किया और यह अच्छा खासा जमा। नरेन्द्र ने एक दूजे के लिए नाम का कार्यक्रम प्रस्तुत किया,जिसमें मुझसे और वैदेही से एक दूसरे की तारीफ करने को कहा गया। फिर दो जोडे और आए। चिन्तन ने शानदार चुटकुला सुनाया। कैम्प फायर साढे दस तक चला। उसके बाद हम सोने के लिए अपने टेण्टों में चले गए। आज यहां से मनाली घूमेंगे फिर मण्डी जाकर रात्रिविश्राम करेंगे।
8 जून 2014 (रात 1.20)
सिमरन गेस्ट हाउस बिलासपुर
कभी ना भूलने वाला वाकया। सुबह जब यूथ होस्टल्स केम्प से चले थे,अंदाजा भी नहीं था कि इतनी दिक्कतें झेलना पडेगी। सोचा था,बडी आसानी से मण्डी पंहुचकर रुक जाएंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ढेर सारी दिक्कतों को पार कर अंत में बिलासपुर में वहीं पंहुचे,जहां पहली रात रुके थे।
सुबह कैम्प से देरी से निकले। निकलते वक्त साढे नौ हो चुके थे। हमारा ड्राइवर दुनीचंद गाडी लेकर आ चुका था। आज मनाली घूमने का कार्यक्रम था। कैम्प से निकले। मनाली में सीधे वशिष्ठ मन्दिर पंहुचे। पिछली बार जब आए थे,यहां सिर्फ मन्दिर था। न भीड थी,ना मार्केत। अब यहां मार्केट बन चुका है। भारी भीड होती है। पिछली बार गर्म कुण्ड में घण्टों नहाए थे। इस बार सिर्फ दर्शन किए।
वशिष्ठ मन्दिर से हिडिम्बा मन्दिर पंहुचे। यहां भी नजारा बदला हुआ था। दर्शन के लिए लम्बी कतार थी। किसी ने भी कतार में लग कर दर्शन करने की इच्छा नहीं दिखाई। बाहर से दर्शन किए। यहां से बौध्द मन्दिर गए। पिछली बार नहीं गए थे। यहां के केन्टीन में महिला बच्चों को भोजन कराया।
9 जून 2014 (सुबह 8.20)
सत्कार होटल ,लक्कड बाजार शिमला
7 जून को मनाली में दोपहर का भोजन करने के बाद वहां के बाजार और वन विहार आदि में घूमे। अंदाजा यह था कि मनाली से ढाई तीन घण्टे में मण्डी पंहुच जाएंगे और वहीं रात्रि विश्राम करेंगे। मनाली से शाम 4 बजे निकले,तो मण्डी के लिए सीधी बस नहीं मिली। बस ने कुल्लू उतार दिया। हांलाकि वहां फौरन मण्डी की बस मिल गई,फिर भी मण्डी पंहुचते,पंहुचते रात की आठ बज गई। अन्धेरा पसर चुका था। मण्डी बस स्टैण्ड पर सामान आदि रखकर होटल ढूंढने निकले। बाजार बस स्टैण्ड से काफी दूर था। होटल ढूंढना शुरु किया तो पता चला कि किसी होटल में कमरे उपलब्ध नहीं थे। किसी शासकीय नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा का केन्द्र मण्डी था,इसलिए पूरे हिमाचल के लडके लडकियां यहां पंहुचे हुए थे। होटलों में भारी भीड,कमरे नहीं,रात ज्यादा हो रही थी। हम चिन्ताग्रस्त थे कि महिला बच्चों के साथ रात कहां गुजारेंगे? विचार आया कि मण्डी से कुछ आगे निकल कर रुक जाए। शिमला का रास्ता फिर से बिलासपुर होकर ही था,जहां हम एक रात रुक चुके थे। मण्डी से 20 किमी आगे सुन्दर नगर था। हमने सोचा कि सुन्दर नगर पंहुचकर कोई लाज होटल खोजें। रात के साढे नौ बज चुके थे। किसी ने भी भोजन नहीं किया था। बस दस बजे आने वाली थी। पंजाब रोडवेज ी बस पंहुची और हम बस में सवार हो गए। इसी बीच नरेन्द्र ने सुझाव दिया कि बिलासपुर में जिस गेस्ट हाउस में रुके थे,वहीं बात करके तय करलें तो ज्यादा आसानी होगी। बडी मुश्किलों से बिलासपुर के सिमरन गेस्ट हाउस का नम्बर खोजा और बडी दिक्कतों से बात हुई। लेकिन यहां दो कमरे तय हो गए। अब हम सुन्दर नगर की बजाय सीधे बिलासपुर जा रहे थे। रास्ते में बस एक ढाबे पर रुकी,जहां सबने भोजन किया। रात करीब बारह बजे बिलासपुर पंहुचे और तनावभरे समय का सुखद अन्त हुआ। कमरे दो ही थे,लेकिन अतिरिक्त बिस्तर मिल गए थे और रात अच्छी कटी।
8 जून- सुबह बिलासपुर बस स्टैण्ड के पास बने लक्ष्मीनारायण मन्दिर में दर्शन करने के बाद आलू पराठे का नाश्ता किया। शिमला की बस बारह बजे थी। हम बस स्टैण्ड पंहुचे और बस में सवार हुए। बस ने हमे सवा तीन बजे शिमला के लक्कड बाजार बस स्टैण्ड पर उतारा। यहां फिर दिक्कतें आई। होटल बुक था,लेकिन बसस्टैण्ड से काफी दूर था। बस स्टैण्ड नीचे था,जबकि होटल पहाडी के उपर। दो टैक्सियां की,लेकिन बीच में रास्ता बन्द होने से उन्होने ज्यादा किराये की मांग की। इस बात पर विवाद हुआ और वे हमें फिर से बसस्टैण्ड पर छोड गए। होटल तक पंहुचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। बस स्टैण्ड के क्लाक रुम पर भारी सामान जमा करवा कर पैदल ही होटल पंहुचने का निर्णय लिया। मै,आशुतोष और मलय ने अपने अपने बैग कन्धे पर टांगे,बाकी सामान क्लाक रुम में रखा। खडी चढाई चढ कर काफी देर करीब एक घण्टे बाद होटल पंहुचे। होटल सत्कार यूथ होस्टल्स से सम्बध्द होटल है। यहां आकर सारी थकान मिट गई।
कुछ देर आराम करने के बाद लक्कड बाजार,रिज और माल रोड घूमने निकल पडे। यहां पर्यटकों की जबर्दस्त भीड है। यहीं एक ढाबे पर भोजन किया और रात करीब ग्यारह बजे सो गए।
9 जून-यहां से कालका तक नैरोगेज की विश्वविख्यात ट्रेन में जाना है। अभी इस ट्रैन की जानकारी लेकर आगे की तैयारी करना है।
10 जून 2014 (शाम 5.00)
कोच न. एस-8 मालवा एक्सप्रेस
वापसी का सफर शुरु हो चुका है। शाम चार बजे अम्बाला से ट्रेन चली है,जो कल सुबह ग्यारह बजे तक उज्जैन उतारेगी और वहां से रतलाम पंहुचना है।
9 जून- 9 जून की सुबह शिमला के सत्कार होटल से नौ बजे निकले। लेकिन होटल से निकलते ही चिन्तन फिसल कर गिरा और उसके घुटने में हल्की चोट आ गई। नतीजा यह हुआ कि चिन्तन और वैदेही को छोडकर हम सभी लोग होटल से आधा किमी आगे एक रेस्टोरेन्ट पर नाश्ता करने बैठे थे। दोनो की गैरहाजरी में ही हमने नाश्ता किया और शिमला कालका ट्रेन की जानकारी लेने निकल पडे। टूरिज्म के काउण्टर के साथ ही रेलवे का भी काउण्टर था। वहां हमे बताया गया कि दोपहर दो बीस की ट्रेन में बैठने के लिए साढे बारह तक स्टेशन पंहुचना होगा,तभी जगह मिल सकेगी। हमने सोचा था कि एक बार स्टेशन देख आए। काफी दूर तक चले गए लेकिन स्टेशन नजर नहीं आया। पहले सोचा था कि होटल से स्टेशन तक पैदल चले जाएंगे लेकिन जब खुद चलकर देखा तो लगा कि दूरी बहुत ज्यादा है। महिलाओं और बच्चों के लिए यह ठीक नहीं होगा। मैने,मलय,नरेन्द्र और आशुतोष को होटल के लिए भेज दिया,जिससे कि वे स्टेशन रवाना होने की तैयारी कर सके। इनके पीछे जब मैं लौट रहा था,रास्ते में यूएनआई का बोर्ड देखा,तो उसी नम्बर पर फोन किया। फोन के जवाब में यूएनआई के फोटोग्राफर ठाकुर खुद बाहर आ गए। मैने आफिस में जाकर उनसे संक्षिप्त मुलाकात की,तभी मलय का फोन आ गया। अब हमें होटल से निकलना था। मै फौरन होटल पंहुचा। होटल वालो ने पांच सौ रुपए में स्टेशन तक गाडी का इंतजाम किया था। इस स्कोर्पियो में सवार होकर हम शिमला रेलवे स्टेशन पंहुचे। स्टेशन हमे साढे बारह तक पंहुचना था,हम पन्द्रह मिनट की देरी से पंहुचे, तब तक गाडी भरा चुकी थी।महिलाओं के डिब्बे में जगह थी। फौरन सारा सामान,तीनो महिलाओं और दोनो बच्चों को इस डिब्बे में बैठा दिया।
ट्रेन खचाखच भरी थी। जनरल डिब्बो में घुस पाना भी कठिन था। जैसे तैसे सबसे आगे वाले जनरल कोच में घुसे और खडे हो गए। शिमला से कालका का सफर छ: घण्टो का सफर है। छ: घण्टे खडे खडे सफर करना संभव ही नहीं था। शिमला से ट्रेन चली तो दो स्टेशन गुजरे,ट्रेन तारादेवी स्टेशन पंहुची। तब देखा ट्रेन का एकमात्र रिजर्व कोच खाली था। हम उसी कोच में घुस गए। यह सोचा था कि टीसी आएगा तो जुर्माना भर देंगे। यह कोच पूरी तरह खचाखच नहीं था। हम बडे आराम से बैठ गए। सफर के दौरान ट्रेन के और कई सुरंगों के फोटो लिए,विडीयो बनाए। रात 8.20 पर ट्रेंृन कालका पंहुची। कालका के पीडब्ल्यूडी रेस्टहाउस पर बुकींग थी। फौरन आटो करके रेस्ट हाउस पंहुचे। रेस्ट हाउस पंहुच कर मन प्रसन्न हो गया। शानदार कमरे,अच्छी साज सज्जा। अच्छा भोजन। सफर की अंतिम रात बेहद शानदार रही। रात को ही तय कर लिया था कि सुबह साढे आठ बजे अल्पाहार करेंगे और नौ बजे काली माता मन्दिर के लिए रवाना हो जाएंगे।
पूर्व निधॢरित योजना के मुताबिक सुबह करीब नौ बीस पर रेस्ट हाउस से निकले और एक बडे आटो में सवार होकर मन्दिर पहुंचे। अत्यन्त प्राचीन और विख्यात इस काली माता मन्दिर में ही एक गुरुद्वारा भी है।
कालिका माता के दर्शन के बाद गुरुद्वारे में दर्शन किए और रेस्टहाउस वापस लौटे। वहीं एक आटो वाले से बात कर ली। एक ही बडे आटो में सामान लाद कर पौने ग्यारह बजे बसस्टैण्ड पंहुचे। यहां अम्बाला की गाडी खडी थी। बस में पर्याप्त जगह मिल गई। बस में लू के खतरनाक थपेडे झेलते हुए एक बजे अम्बाला केन्ट पंहुचे। अब हमें ढाई घण्टे ट्रेन का इन्तजार करना था। महिलाओं को रिटायरिंग रुम में छोडकर हम चारो बाहर निकले। हम इधर उधर भटक रहे थे कि वैदेही का फोन आ गया। हम स्टेशन पर बने भोजनालय में भोजन कर रहे थे। मलय और नरेन्द्र थोडी देर में वहां पंहुचे। भोजन लगभग समाप्त हो गया। तभी किसी बात पर आशुतोष ने मजाक में नरेन्द्र को एक चपत लगा दी। इस पर नरेन्द्र नाराज हो गया और उसने जवाब में जोर से हाथ चलाया। कुछ ही क्षणों में दोनो एक दूसरे को मारने पर उतारु हो गए। अगर मै बीचबचाव नहीं करता तो विवाद और बढ जाता। केन्टीन के सारे लोग इन दोनो को देखने लगे। बडी मुश्किल से इन दोनो की लडाई रुकवाई। इसके बाद हम सभी अपनी अपनी सीट पर चले गए। ट्रेन चल निकली और हम कल सुबह उज्जैन पंहुच जाएंगे।
हिमाचल प्रदेश की यह दूसरी यात्रा थी। पहली यात्रा मैने मित्रों के साथ निजी वाहन मारुति वैन से की थी,जिसमें हम मनाली के रास्ते लेह (लद्दाख) तक गए थे। इस बार की यात्रा पारिवारिक यात्रा थी,जो कि यूथ होस्टल्स के फेमिली केम्पिंग में की। यह यात्रा ग्यारह दिनों की थी। इस यात्रा में हमने कुल्लू मनाली शिमला के साथ साथ शिमला कालका ट्रेन का सफर भी किया।
2 जून 2014 (शाम 6.35)
सिमरन गेस्ट हाउस बिलासपुर
चण्डीगढ से कुल्लू के रास्ते में,बिलासपुर जिला मुख्यालय है। हम शाम करीब सवा पांच बजे बस स्टैण्ड पंहुचे थे। बस स्टैण्ड के नजदीक ही इस सिमरन गेस्ट हाउस में पंहुचे और दो दिन की थकाउ यात्रा के बाद यहां स्नानादि कर रहे हैं।
हिमाचल की ये दूसरी यात्रा है। पहली यात्रा मारुति वैन से करीब बारह-तेरह साल पहले की थी। इस बार करीब डेढ महीने पहले अचानक योजना बनी और यूथ होस्टल्स के फेमिली कैम्पिंग के लिए हम तीन मित्र तैयार हो गए।
तो इस यात्रा में मेरे साथ वैदेही,चिन्तन,आशुतोष,उसका बालक अक्षत और पत्नी,नरेन्द्र शर्मा और सुनीता है। मलय भी इस यात्रा में हमारे साथ है। मलय के आने का फैसला आखिर में तब हुआ जब मेरी मनाली में यूथ होस्टल्स वालों से चर्चा हो गई और उन्होने कहा कि मलय भी आ सकता है। आखिर में उसका टिकट करवाया।
यात्रा की शुरुआत 1 जून को हुई। 1 जून को सुबह गुना गाडी से मैं,मलय,वैदेही और चिन्तन उज्जैन पंहुचे। बडी आसानी से जगह मिल गई। उज्जैन से मालवा एक्सप्रेस में बैठना था। नरेन्द्र सीधे इन्दौर से ट्रेन में सवार हुआ,जबकि आशुतोष उज्जैन में ही मिल गया। सफर का पहला झटका 1 जून को सुबह तब लगा,जब यह पता चला कि आरक्षण कन्फर्म नहीं हुआ है। जिस दिन टिकट लिए थे,आरएसी मिली थी। मुझे उम्मीद थी कि रिजर्वेशन हो ही जाएगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब हम आठ लोगों के पास चार बर्थ थी और हमें बीस घण्टे की यात्रा करना थी। स्लीपर डब्बे में सारा दिन गर्म लू के थपेडे झेलते और सीटों पर उंघते,उंघते रात कटी। हम करीब साढे नौ बजे अम्बाला पंहुचे।हमे बताया गया था कि अम्बाला से चण्डीगढ पंहुच जाए, क्योकि चण्डीगढ से कुल्लू के लिए लगातार बसें मिलती है। हम करीब 11 बजे चण्डीगढ के सेक्टर 17 के आईएसबीटी पंहुचे। यहां भोजन जैसा तगडा नाश्ता किया. यहां हमे पता चला कि कुल्लू के लिए बस,सेक्टर 43 के बसस्टैण्ड से मिलेगी। हम सिटी बस में सवार होकर सेक्टर 43 पंहुचे। यहां पता चला कि कुल्लू तक का सफर दस से बारह घण्टों का है। ये हमे पहले भी पता था। गूगल मैप पर देखकर सरकाघाट नामक स्थान पर पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस बुक करवाया था। लेकिन चण्डीगढ पंहुचकर पता चला कि चण्डीगढ-कुल्लू मेन रोड से हटकर जाना पडेगा और वहां का रास्ता बेहद कठिन है। बस के कण्डक्टर ने हमें कहा कि हम बिलासपुर तक पंहुच जाए,वहां से सरकाघाट की बस मिल जाएगी। लेकिन बिलासपुर से सरकाघाट का रास्ता करीब तीन घण्टों का बताया गया। हमने फौरन तय कर लिया कि हम सरकाघाट नहीं जाएंगे। बिलासपुर ही रुक जाएंगे,ताकि सुबह यहां से सीधे 15 माईल्स बेस कैम्प के लिए निकल जाएंगे,जहां हमें सात जून तक रहना है। बिलासपुर रुकने का दूसरा फायदा यह भी है हम ठीक समय पर यहां पंहुचे और अब अच्छा आराम कर सकते हैं,जिससे कि दो दिनों के सफर की थकान मिट सके।
4 जून 2014 (शाम 7.15)
15 माईल्स यूथ होस्टल्स कैम्प
कल का सारा दिन व्यस्तता में गुजरा। बिलासपुर में रात गुजारने का निर्णय सही रहा। मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों की जानलेवा गर्मी की तुलना में हिमाचल का यह निचला हिस्सा दिन में चाहे गर्म हो,लेकिन शाम और रात पर्याप्त सुकून देने वाली है। गेस्ट हाउस से अल्पाहार के लिए करीब नौ बजे निकले। अल्पाहार के बाद करीब ग्यारह बजे पंजाब रोड ट्रांसपोर्ट की मनाली की बस में सवार हुए। हिमाचल की खुबसूरत वादियों,पहाडों और टेढे-मेढे रास्तों से गुजरना अपने आप में आनन्द दायक होता है। जैसे जैसे बस ऊं चाई पर पंहुच रही थी,मौसम सुहावना होता जा रहा था। धूप में तीखापन था,लेकिन हवा में पर्याप्त ठण्डक थी। बिलासपुर से मण्डी और कुल्लू होते हुए हमारी बस पतली कुहल पंहुची। पतली कुहल कुल्लू जिले का हिस्सा है। बस यहीं से करीब 2 किमी आगे मनाली की तरफ यूथ होस्टल्स का पन्द्रह माइल बेस कैम्प है। बेस कैमप पर शाम करीब सवा पंाच पर पंहुचे। यहां पंहुचते ही हमें चाय पीने को कहा गया। कैम्प में एन्ट्री की औपचारिकताएं पूरी करने में करीब एक घण्टा पूरा हो गया। हमे टेण्ट दे दिए गए हैं। टेण्ट अत्यन्त व्यवस्थित है। इनमें दो गद्दे लगे है। तकिए और कम्बल भी दे दिए गए हैं। टेण्ट में सिर्फ दो गद्दे लग सकते है। इस कैम्प में करीब साठ टेण्ट लगे हैं। मलय के लिए भी एक अतिरिक्त टेण्ट लिया। यहां चाय अल्पाहार और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। हमें बताया गया कि सुबह पांच बजे उठकर सुबह सात बजे तैयार होना पडेगा।
रात को कैम्प फायर हुआ,जिसमें लोग शरमाते सकुचाते रहे। आखिर में मलय ने मोर्चा सम्हाला। एक गाना सुनाया,संचालन किया,एक दो जोक भी सुनाए। फिर थोडा कुछ मैने बोला। सुबह जल्दी उठना था इसलिए साढे दस तक सो गए।
4 जून। हमारे विवाह की वर्षगांठ। सुबह श्रीमती रश्मि नवाल ने बधाई दी,तो याद आया कि आज 4 जून है। सुबह सही समय पर उठे और छोले भटूरे का नाश्ता करने के बाद लंच बाक्स में आलू की सब्जी और पराठे पैक कर लिए। चार दिन के भ्रमण के लिए कल ही गाडी बुक कर ली थी। सुबह आठ बजे गाडी आ गई। आज मणिकर्ण जाना था,जो करीब 75 किमी दूर है।
मणिकर्ण प्राचीन धार्मिक स्थल है,जहां गर्म पानी के ोत कुण्ड आदि है। यहीं प्रसिध्द गुरुनानक देव का गुरुद्वारा,श्रीराम मन्दिर,शिवमन्दिर आदि है। चून्क मणिकर्ण जाना था,इसलिए कैम्प में स्नान नहीं किया था। मणिकर्ण में ही नहाने का इरादा था।
बेस कैम्प से निकले और पतली कुहल से कुछ ही आगे वैष्णो देवी मन्दिर पर ड्राइवर ने गाडी रोक दी। सात मंजिले इस मन्दिर में चौथी मंजिल पर वैष्णो देवी की गुफा की प्रतिकृति बनाई गई है। सबसे अच्छी बात यह लगी कि इस मन्दिर में स्वामी विवेकानन्द,उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस व गुरु माता सारदा मां की मूर्तियां भी हैं। पांचवी मंजिल पर भी मन्दिर और छठीं व सातवीं मंजिल पर भी मन्दिर हैं।
इस मन्दिर द्वारा धर्मशाला और निशुल्क लंगर भी चलाया जाता है।
मन्दिर के दर्शन कर मणिकर्ण के लिए रवाना हुए। दृश्यावली अत्यन्त सुन्दर थी,लेकिन मुझे नींद आ रही थी और मै झपकी लेता रहा। मणिकर्म पंहुचने के बाद ही नींद खुली। श्रीराम मन्दिर के पास ही गर्म पानी का एक कुण्ड था। मुझे लगा था कि कुण्ड में भारी भीड होगी,लेकिन कुण्ड खाली पडा था। हांलाकि लोग यहां साबुन लगा कर नहाते नजर आए। एक-दो लोगों को मैने डांटा भी लेकिन दुख यह हुआ कि ऐसे मूर्खों को रोकने की कोई अच्छी व्यवस्था प्रशासनिक स्तर पर नहीं है। कुड्ड का पानी बहुत ज्यादा गर्म था,इसलिए इसमें उतर कर तो नहा नहीं पाए,लेकिन मग्गे से पानी लेकर नहाए। नहाने के बाद श्री राम मन्दिर का दर्शन किया। आगे बढे तो नदी के किनारे पर बने शिव मन्दिर पंहुचे। कहते है पार्वती जी की मणि यहां गिर गई थी,इसलिए यह मणिकर्ण कहलाता है। बाद में तक्षक ने मणि लौटाई तो उसकी फुफकार से गर्म पानी की धाराएं फूट पडी। गर्म पानी बहुत ज्यादा गर्म होता है,उसमें त्वचा झुलस सकती है। इस पानी के कुण्ड में चावल फौरन पक जाते है। इसी चावल को प्रसाद के रुप में बांटा जाता है। शिवमन्दिर में पहले तो शर्बत पिया फिर चावल का प्रसाद लिया। मन्दिर परिसर में भी गर्म पानी की धाराएं है। मन्दिर में दर्शन के बाद गुरुद्वारे पंहुचे। यहां लंगर भी चल रहा था,लेकिन हम भोजन लेकर आए थे,इसलिए लंगर का आनन्द नहीं ले पाए।
दर्शन करते करते ढाई बज गए। अब भूख लग आई थी। यहां से निकलना भी था। ड्राइवर से कहा कि किसी ऐसी जगह रोकें जहां नदी हो,छाया हो,ताकि भोजन किया जा सके। ड्राइवर ने एक छोटी पुलिया के नजदीक गाडी रोकी। यहां नदी की धारा पतली थी,लेकिन बहाव बेहद तेज था। बस इसी के किनारे भोजन किया। सभी को वास्तविक पिकनिक का मजा आया। नदी में से ही बाटले भर कर प्यास बुझाई। बेस कैम्प पर लौटने से पहले पतली कुहल पर आशुतोष ने इनर और बर्तन खरीदे। शाम छ: बजे बेस कैम्प पंहुचे।
कल सुबह रोहतांग जाना है। इसके लिए सुबह तीन बजे उठना पडेगा और पांच बजे निकलना पडेगा। वहां बर्फ है,इसलिए ठण्ड भी ज्यादा है। देखते है क्या होता है?
5 जून 2014 (शाम 6.45)
सुबह पांच बजे रोहतांग के लिए रवाना होना था। तीन बजे उठ भी गए,लेकिन निकलते निकलते साढे पांच बज गए। रात को शर्मा जी को बुखार आ गया था। गोली खिलाई। उनकी तबियत सुबह तक ठीक भी हो गई।
रोहतांग मनाली से करीब पचास किमी है और यहां से करीब सत्तर किमी। टूरिस्ट सीजन की वजह से रोड पर जाम लग जाता है। भीडभाड की वजह से रोहतांग पर जाने की अनुमति भी नहीं है। रोहतांग से करीब ५ किमी पहले मढी तक पर्यटकों को ले जाते है। यहां भी बर्फ की ऊ ंचाईयां है। रास्ते में 250 रु.प्रति व्यक्ति के हिसाब से स्नो सूट जूते आदि लिए। तब लगा कि जर्किन बेवजह ही लाए। ठण्ड है तो,लेकिन इतनी भी नहीं कि इतना वजह उठाना जरुरी हो।
मढी पर बर्फीले मैदान से काफी नीचे ही ड्राइवर ने उतार दिया। उसका कहना था कि केवल सौ मीटर चलने पर आप पाइन्ट पर पंहुच जाएंगे। चट्टान की चढाई एकदम खडी थी। वैदेही तो शुरुआत में ही हिम्मत हार गई। फिर जैसे तैसे आधे रास्ते पर आई। उसकी सांस फूल रही थी। सिर भारी हो रहा था और घबराहट हो रही थी। मैने उससे नीचे लौट जाने को कहा,लेकिन कुछ देर बाद हिम्मत जुटाकर वह जैसे तैसे उपर की सड़क पर आई। उपर सड़क पर पंहुचने के बाद करीब ढाई सौ मीटर पैदल चलने के बाद बर्फीला मैदान आया। मलय और चिन्तन यहां पहले ही पंहुच गए थे। जब हम वहां पंहुचे हमें चिन्तन व मलय नहीं मिले। वे घूमने के लिए आगे निकल गए थे। करीब दो घण्टे हम बर्फ पर रहे। हिमाचली वेशभूषा पहन कर फोटो भी खिंचाई। फिर उपर चढे। तब तक मलय और चिन्तन का पता नहीं था,लेकिन फिर वे भी वहां पंहुच गए। बर्फ के पहाड पर फिसल कर नीचे जाने का सबसे ज्यादा मजा उन दोनो ने ही लिया। एक बार नीचे जाने के बाद उपर आने में हमें कठिनाई हो रही थी,लेकिन ये दोनो आठ-दस बार उपर नीचे हो आए।
मढी से हम ढाई बजे निकले। हमारा लक्ष्य था,सोलंग घाटी। यहां कुछ नहीं है। सिर्फ रोप वे है। जिसका शुल्क पांच सौ रु.है। लेकिन चिन्तन की जिद्द पर चिन्तन,मलय और अक्षत को उपर भेजा। बेसकैम्प से लाए खाना भी सोलंग घाटी में पेडों के नीचे बैठकर खाया। वां से निकलते निकलते साढे तीन हो गए थे। आशुतोष,अक्षत और रश्मि तो रोपवे पर पहले ही जा चुके थे। पहाडी इलाके में टूरिस्ट सीजन में सड़कों पर जाम लगना बडी समस्या है। नार्थईस्ट में गुवाहाटी से शिलांग जाने में दो-तीन घण्टे जाम में फंसना पडता है। यहां भी रोहतांग से लौटते समय मनाली में जाम लगना आम बता है। हांलाकि हमें जाम में ज्यादा देर नहीं लगी। करीब साढे पांच पर हम बेस कैम्प लौटे।
लेकिन रास्ते में ही वैदेही को उल्टी हो गई। अब उसकी तबियत खराब होने लगी है। उसे सिरदर्द हो भी हो रहा है। पुदीन हरा की गोली खाकर वह सोई है। नींद कम होने की वजह से समस्या हुई है। नींद पूरी होने पर दिक्कत स्वत: समाप्त हो जाएगी। कुल हमें बिजली महादेव जाना है। इसका रास्ता कुल्लू से होकर है।
7 जून 2014 (सुबह 8.25)
15 माईल्स बेसकैम्प
कैम्प से जाने की तैयारी। बीता दिन भारी मशक्कत वाला रहा। 5 जून की रात वैदेही की तबियत खराब हो गई थी। नरेन्द्र को दो दिन से रात रात को बुखार आ रहा था। 6 जून की सुबह हमें बिजली महादेव जाना था। चंूकि उससे पहले रोहतांग गए थे,इसलिए कल सुबह कुछ आराम से उठे। धीरे धीरे तैयार हुए और करीब नौ बजे बिजली महादेव के लिए रवाना हुए। बिजली महादेव कुल्लू से आगे एक बेहद ऊं ची पहाडी पर है। ये पहाडी,कुल्लू,मनाली,भुंतर और नग्गर में सबसे ऊं ची है। पहाड पर काफी उपर तक गाडी जाती है और फिर तीन किमी की दूरी खडी चढाई है,जिसमें सीढीयां बनी हुई है।
हमने ठीक दस बजे चढना शुरु किया। हमारे ड्राइवर दुनीचंद ने कहा कि भोजन साथ ही ले जाईए। भोजन वाला बैग मैने अपने कन्धे पर टांग लिया। मलय और चिन्तन आदत के मुताबिक सबसे पहले चढने लगे। इनके पीछे आशुतोष,अक्षत और रश्मि थे। पीछे नरेन्द्र और सुनीता,फिर मै और सबसे पीछे वैदेही थी। वैदेही थोडा ही चढने के बाद थकने लगी थी। मैने सोच लिया कि वैदेही को साथ ही लेकर जाना है। ये तीन किमी की खडी चढाई पार करने में हमें साढे चार घण्टे लग गए। मलय और चिन्तन हमसे दो घण्टे पहले ही पंहुच गए थे। जबकि आशुतोष और रश्मि करीब एक घण्टे पहले पंहुचे। नरेन्द्र और सुनीता हमारे साथ चल रहे थे। राम राम करके उपर पंहुचे। पहाडी के शिखर पर बिजली महादेव के दर्शन कर और पहाडों की अद्भुत दृश्यावलियां देखकर जैसे थकान मिट गई।
पिछली हिमाचल यात्रा के दौरान हम शमशी के फारेस्ट रेस्ट हाउस में रुके थे। उस समय भी हमे बिजली महादेव जाना था। हम गाडी लेकर चले भी थे,लेकिन पहाडी सड़क इतनी खडी चढाई थी कि हमारी गाडी ही उपर नहीं चढ पाई थी और हमे आधे रास्ते से वापस लौटना पडा था। तब से बिजली महादेव जाने की बडी इच्छा थी। जो इस बार पूरी हुई।
बहरहाल उपर पंहुचने के बाद बिजली महादेव के दर्शन किए। तेज भूख लग चुकी थी। मलय ने तो हमारे पंहुचते ही भोजन शुरु कर दिया था। भोजन रोज की तुलना में कुछ कम ले गए थे। मलय के भोजन के दौरान चिन्तन के हाथ से सब्जी का डब्बा ढुल गया और बहुत सारी सब्जी गाय खा गई। इस बात पर नरेन्द्र ने चिन्तन को कहा कि थोडी देर इन्तजार कर लेता तो खाना गाय नहीं खा पाती। चिन्तन नाराज हो गया और रोने लगा। फिर बिना कुछ खाए पिए वहां से भाग गया। तब तक हम लोग भी भोजन कर चुके थे। चिंतन भागा तो मैने मलय को उसके पीछे भेजा। वैदेही भी गई और चिन्तन को डांटा। चिंतन और नाराज हो गया। तभी मैं पंहुचा। मैने उसे समझाने के लिए अपने साथ लिया और हम उतरने लगे। हम शाम करीब पांच बजे नीचे सड़क पर पंहुचे,जहां गाडी खडी थी। नीचे पंहुचने वालों से सबसे पहले हम थे। छ: बजे तक सारे लोग नीचे आ गए। सारे लोग बुरी तरह थक चुके थे। कैम्प पर पंहुचते पंहुचते आठ बज गए। हमने रास्ते में सोचा था कि कैम्प फायर करेंगे। कैम्प के अधिकांश लोग बुरी तरह थके हुए थे,लेकिन हमने कैम्प फायर किया। मैं मलय नरेन्द्र और चिन्तन ने कैम्प फायर किया और यह अच्छा खासा जमा। नरेन्द्र ने एक दूजे के लिए नाम का कार्यक्रम प्रस्तुत किया,जिसमें मुझसे और वैदेही से एक दूसरे की तारीफ करने को कहा गया। फिर दो जोडे और आए। चिन्तन ने शानदार चुटकुला सुनाया। कैम्प फायर साढे दस तक चला। उसके बाद हम सोने के लिए अपने टेण्टों में चले गए। आज यहां से मनाली घूमेंगे फिर मण्डी जाकर रात्रिविश्राम करेंगे।
8 जून 2014 (रात 1.20)
सिमरन गेस्ट हाउस बिलासपुर
कभी ना भूलने वाला वाकया। सुबह जब यूथ होस्टल्स केम्प से चले थे,अंदाजा भी नहीं था कि इतनी दिक्कतें झेलना पडेगी। सोचा था,बडी आसानी से मण्डी पंहुचकर रुक जाएंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ढेर सारी दिक्कतों को पार कर अंत में बिलासपुर में वहीं पंहुचे,जहां पहली रात रुके थे।
सुबह कैम्प से देरी से निकले। निकलते वक्त साढे नौ हो चुके थे। हमारा ड्राइवर दुनीचंद गाडी लेकर आ चुका था। आज मनाली घूमने का कार्यक्रम था। कैम्प से निकले। मनाली में सीधे वशिष्ठ मन्दिर पंहुचे। पिछली बार जब आए थे,यहां सिर्फ मन्दिर था। न भीड थी,ना मार्केत। अब यहां मार्केट बन चुका है। भारी भीड होती है। पिछली बार गर्म कुण्ड में घण्टों नहाए थे। इस बार सिर्फ दर्शन किए।
वशिष्ठ मन्दिर से हिडिम्बा मन्दिर पंहुचे। यहां भी नजारा बदला हुआ था। दर्शन के लिए लम्बी कतार थी। किसी ने भी कतार में लग कर दर्शन करने की इच्छा नहीं दिखाई। बाहर से दर्शन किए। यहां से बौध्द मन्दिर गए। पिछली बार नहीं गए थे। यहां के केन्टीन में महिला बच्चों को भोजन कराया।
9 जून 2014 (सुबह 8.20)
सत्कार होटल ,लक्कड बाजार शिमला
7 जून को मनाली में दोपहर का भोजन करने के बाद वहां के बाजार और वन विहार आदि में घूमे। अंदाजा यह था कि मनाली से ढाई तीन घण्टे में मण्डी पंहुच जाएंगे और वहीं रात्रि विश्राम करेंगे। मनाली से शाम 4 बजे निकले,तो मण्डी के लिए सीधी बस नहीं मिली। बस ने कुल्लू उतार दिया। हांलाकि वहां फौरन मण्डी की बस मिल गई,फिर भी मण्डी पंहुचते,पंहुचते रात की आठ बज गई। अन्धेरा पसर चुका था। मण्डी बस स्टैण्ड पर सामान आदि रखकर होटल ढूंढने निकले। बाजार बस स्टैण्ड से काफी दूर था। होटल ढूंढना शुरु किया तो पता चला कि किसी होटल में कमरे उपलब्ध नहीं थे। किसी शासकीय नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा का केन्द्र मण्डी था,इसलिए पूरे हिमाचल के लडके लडकियां यहां पंहुचे हुए थे। होटलों में भारी भीड,कमरे नहीं,रात ज्यादा हो रही थी। हम चिन्ताग्रस्त थे कि महिला बच्चों के साथ रात कहां गुजारेंगे? विचार आया कि मण्डी से कुछ आगे निकल कर रुक जाए। शिमला का रास्ता फिर से बिलासपुर होकर ही था,जहां हम एक रात रुक चुके थे। मण्डी से 20 किमी आगे सुन्दर नगर था। हमने सोचा कि सुन्दर नगर पंहुचकर कोई लाज होटल खोजें। रात के साढे नौ बज चुके थे। किसी ने भी भोजन नहीं किया था। बस दस बजे आने वाली थी। पंजाब रोडवेज ी बस पंहुची और हम बस में सवार हो गए। इसी बीच नरेन्द्र ने सुझाव दिया कि बिलासपुर में जिस गेस्ट हाउस में रुके थे,वहीं बात करके तय करलें तो ज्यादा आसानी होगी। बडी मुश्किलों से बिलासपुर के सिमरन गेस्ट हाउस का नम्बर खोजा और बडी दिक्कतों से बात हुई। लेकिन यहां दो कमरे तय हो गए। अब हम सुन्दर नगर की बजाय सीधे बिलासपुर जा रहे थे। रास्ते में बस एक ढाबे पर रुकी,जहां सबने भोजन किया। रात करीब बारह बजे बिलासपुर पंहुचे और तनावभरे समय का सुखद अन्त हुआ। कमरे दो ही थे,लेकिन अतिरिक्त बिस्तर मिल गए थे और रात अच्छी कटी।
8 जून- सुबह बिलासपुर बस स्टैण्ड के पास बने लक्ष्मीनारायण मन्दिर में दर्शन करने के बाद आलू पराठे का नाश्ता किया। शिमला की बस बारह बजे थी। हम बस स्टैण्ड पंहुचे और बस में सवार हुए। बस ने हमे सवा तीन बजे शिमला के लक्कड बाजार बस स्टैण्ड पर उतारा। यहां फिर दिक्कतें आई। होटल बुक था,लेकिन बसस्टैण्ड से काफी दूर था। बस स्टैण्ड नीचे था,जबकि होटल पहाडी के उपर। दो टैक्सियां की,लेकिन बीच में रास्ता बन्द होने से उन्होने ज्यादा किराये की मांग की। इस बात पर विवाद हुआ और वे हमें फिर से बसस्टैण्ड पर छोड गए। होटल तक पंहुचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। बस स्टैण्ड के क्लाक रुम पर भारी सामान जमा करवा कर पैदल ही होटल पंहुचने का निर्णय लिया। मै,आशुतोष और मलय ने अपने अपने बैग कन्धे पर टांगे,बाकी सामान क्लाक रुम में रखा। खडी चढाई चढ कर काफी देर करीब एक घण्टे बाद होटल पंहुचे। होटल सत्कार यूथ होस्टल्स से सम्बध्द होटल है। यहां आकर सारी थकान मिट गई।
कुछ देर आराम करने के बाद लक्कड बाजार,रिज और माल रोड घूमने निकल पडे। यहां पर्यटकों की जबर्दस्त भीड है। यहीं एक ढाबे पर भोजन किया और रात करीब ग्यारह बजे सो गए।
9 जून-यहां से कालका तक नैरोगेज की विश्वविख्यात ट्रेन में जाना है। अभी इस ट्रैन की जानकारी लेकर आगे की तैयारी करना है।
10 जून 2014 (शाम 5.00)
कोच न. एस-8 मालवा एक्सप्रेस
वापसी का सफर शुरु हो चुका है। शाम चार बजे अम्बाला से ट्रेन चली है,जो कल सुबह ग्यारह बजे तक उज्जैन उतारेगी और वहां से रतलाम पंहुचना है।
9 जून- 9 जून की सुबह शिमला के सत्कार होटल से नौ बजे निकले। लेकिन होटल से निकलते ही चिन्तन फिसल कर गिरा और उसके घुटने में हल्की चोट आ गई। नतीजा यह हुआ कि चिन्तन और वैदेही को छोडकर हम सभी लोग होटल से आधा किमी आगे एक रेस्टोरेन्ट पर नाश्ता करने बैठे थे। दोनो की गैरहाजरी में ही हमने नाश्ता किया और शिमला कालका ट्रेन की जानकारी लेने निकल पडे। टूरिज्म के काउण्टर के साथ ही रेलवे का भी काउण्टर था। वहां हमे बताया गया कि दोपहर दो बीस की ट्रेन में बैठने के लिए साढे बारह तक स्टेशन पंहुचना होगा,तभी जगह मिल सकेगी। हमने सोचा था कि एक बार स्टेशन देख आए। काफी दूर तक चले गए लेकिन स्टेशन नजर नहीं आया। पहले सोचा था कि होटल से स्टेशन तक पैदल चले जाएंगे लेकिन जब खुद चलकर देखा तो लगा कि दूरी बहुत ज्यादा है। महिलाओं और बच्चों के लिए यह ठीक नहीं होगा। मैने,मलय,नरेन्द्र और आशुतोष को होटल के लिए भेज दिया,जिससे कि वे स्टेशन रवाना होने की तैयारी कर सके। इनके पीछे जब मैं लौट रहा था,रास्ते में यूएनआई का बोर्ड देखा,तो उसी नम्बर पर फोन किया। फोन के जवाब में यूएनआई के फोटोग्राफर ठाकुर खुद बाहर आ गए। मैने आफिस में जाकर उनसे संक्षिप्त मुलाकात की,तभी मलय का फोन आ गया। अब हमें होटल से निकलना था। मै फौरन होटल पंहुचा। होटल वालो ने पांच सौ रुपए में स्टेशन तक गाडी का इंतजाम किया था। इस स्कोर्पियो में सवार होकर हम शिमला रेलवे स्टेशन पंहुचे। स्टेशन हमे साढे बारह तक पंहुचना था,हम पन्द्रह मिनट की देरी से पंहुचे, तब तक गाडी भरा चुकी थी।महिलाओं के डिब्बे में जगह थी। फौरन सारा सामान,तीनो महिलाओं और दोनो बच्चों को इस डिब्बे में बैठा दिया।
ट्रेन खचाखच भरी थी। जनरल डिब्बो में घुस पाना भी कठिन था। जैसे तैसे सबसे आगे वाले जनरल कोच में घुसे और खडे हो गए। शिमला से कालका का सफर छ: घण्टो का सफर है। छ: घण्टे खडे खडे सफर करना संभव ही नहीं था। शिमला से ट्रेन चली तो दो स्टेशन गुजरे,ट्रेन तारादेवी स्टेशन पंहुची। तब देखा ट्रेन का एकमात्र रिजर्व कोच खाली था। हम उसी कोच में घुस गए। यह सोचा था कि टीसी आएगा तो जुर्माना भर देंगे। यह कोच पूरी तरह खचाखच नहीं था। हम बडे आराम से बैठ गए। सफर के दौरान ट्रेन के और कई सुरंगों के फोटो लिए,विडीयो बनाए। रात 8.20 पर ट्रेंृन कालका पंहुची। कालका के पीडब्ल्यूडी रेस्टहाउस पर बुकींग थी। फौरन आटो करके रेस्ट हाउस पंहुचे। रेस्ट हाउस पंहुच कर मन प्रसन्न हो गया। शानदार कमरे,अच्छी साज सज्जा। अच्छा भोजन। सफर की अंतिम रात बेहद शानदार रही। रात को ही तय कर लिया था कि सुबह साढे आठ बजे अल्पाहार करेंगे और नौ बजे काली माता मन्दिर के लिए रवाना हो जाएंगे।
पूर्व निधॢरित योजना के मुताबिक सुबह करीब नौ बीस पर रेस्ट हाउस से निकले और एक बडे आटो में सवार होकर मन्दिर पहुंचे। अत्यन्त प्राचीन और विख्यात इस काली माता मन्दिर में ही एक गुरुद्वारा भी है।
कालिका माता के दर्शन के बाद गुरुद्वारे में दर्शन किए और रेस्टहाउस वापस लौटे। वहीं एक आटो वाले से बात कर ली। एक ही बडे आटो में सामान लाद कर पौने ग्यारह बजे बसस्टैण्ड पंहुचे। यहां अम्बाला की गाडी खडी थी। बस में पर्याप्त जगह मिल गई। बस में लू के खतरनाक थपेडे झेलते हुए एक बजे अम्बाला केन्ट पंहुचे। अब हमें ढाई घण्टे ट्रेन का इन्तजार करना था। महिलाओं को रिटायरिंग रुम में छोडकर हम चारो बाहर निकले। हम इधर उधर भटक रहे थे कि वैदेही का फोन आ गया। हम स्टेशन पर बने भोजनालय में भोजन कर रहे थे। मलय और नरेन्द्र थोडी देर में वहां पंहुचे। भोजन लगभग समाप्त हो गया। तभी किसी बात पर आशुतोष ने मजाक में नरेन्द्र को एक चपत लगा दी। इस पर नरेन्द्र नाराज हो गया और उसने जवाब में जोर से हाथ चलाया। कुछ ही क्षणों में दोनो एक दूसरे को मारने पर उतारु हो गए। अगर मै बीचबचाव नहीं करता तो विवाद और बढ जाता। केन्टीन के सारे लोग इन दोनो को देखने लगे। बडी मुश्किल से इन दोनो की लडाई रुकवाई। इसके बाद हम सभी अपनी अपनी सीट पर चले गए। ट्रेन चल निकली और हम कल सुबह उज्जैन पंहुच जाएंगे।
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