(अरुणाचल यात्रा 17 जनवरी से 26 जनवरी 2015)
17 नवंबर को तिरुपति से लौटे थे। इसके मात्र दो माह बाद फिर से यात्रा पर। ये यात्रा एयरलाइन्स के सस्ते टिकटों की वजह से हुई। करीब तीन महीने पहले ही हमने दिल्ली से गुवाहाटी की फ्लाइट आने जाने की बुक करवा ली थी। बुकींग छ: लोगों की थी।मैं,दशरथ पाटीदार जी,संतोष त्रिपाठी जी,हिमांशु जोशी,उदित अग्रवाल और सुदीप जैन(बंटी),इस यात्रा में जाने वाले थे। लेकिन अंत में बंटी की यात्रा रद्द हो गई और 17 जनवरी 2015 को हम अरुणाचल के लिए निकल पडे। हमने रतलाम से दिल्ली का रिजर्वेशन कराया,ज्लिी से गुवाहाटी हमारी फ्लाइट थी और गुवाहाटी से हमारा आरक्षण तीनसुकिया तक है।
18 जनवरी 15 रविवार (सुबह 10.00)
नई दिल्ली रेलवे रिटायरिग रुम
नई दिल्ली के रेलवे रिटायरिंग रुम में सारे लोग स्नान आदि से निवृत्त हो रहे हैं। रात को ट्रेंन आधे घण्टे लेट चली। सुबह छ: बजे हम नई दिल्ली पंहुच गए। आते ही रिटायरिंग रुम में सो गए। अब उठकर तैयार होकर नाश्ते के बाद निकलने की तैयारी है।
दोपहर 12.20
नई दिल्ली एयरपोर्ट टर्मिनल 1 डी
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से बाहर निकले,तो इरादा मेट्रो से एयरपोर्ट आने का था,लेकिन टैक्सी ड्राइवर एक सरदार जी ने बताया कि मेट्रो इंटरनेशनल टर्मिनल पर जाती है,डोमेस्टिक पर नहीं जाती। इसलिए टैक्सी से ही जाना ठीक होगा। बहरहाल हम उसी सरदार की टैक्सी पर सवार हो गए।
सुबह रिटायरिंग रुम में घर से लाइ पुडी,पराठे,थोडी सी सब्जी और चटनी के सथ डट कर नाश्ता कर लिया था। कमरे में पानी नहीं था। पानी भी पीना था और चाय भी। सरदार जी से हमने कहा कि कहीं अच्छी चाय पिलवा दें,तब हमें एयरपोर्ट ले चलें। रास्ते में एक जगह रुक कर पानी और चाय का दौर पूरा किया और जल्दी ही एयरपोर्ट पर पंहुच गए।
यहां हम फ्लाइट से दो घण्टे पहले आ गए थे। स्पाइसजेट के काउण्टर पर बोर्डिंग पास लेते वक्त पता चला कि फ्लाइट और लेट हो गई है। अब यह ढाई बजे चलेगी। गुवाहाटी से हमारी ट्रेन शाम साढे सात बजे है। अब खतरा यह है कि यदि उडान थोडी भी लेट हो गई तो ट्रेन की यात्रा संकट में पड जाएगी।
यहां एयरपोर्ट पर रेलवे स्टेशन जैसी भीड भाड है। हम सिक्योरिटी चैक से गुजर कर भीतर आ चुके हैं और यहां लगी कुर्सियों पर पसरे हुए हैं। मौसम की वजह से कई उडाने देरी से चल रही है। दिल्ली एयरपोर्ट पर आने का यह तीसरा मौका है। पहले जब सिक्कीम गए थे,तब भी इसी एयरपोर्ट से बागडोगरा उतरे थे। इस बार गुवाहाटी की फ्लाइट भी बागडोगरा होती हुई जाएगी। वहां करीब आधा घण्टा प्लेन रुकेगा। पहले यह फ्लाइट सीधे गुवाहाटी जाने वली थी,लेकिन रिशेड्यूल्ड होने के चक्कर में यह अब लम्बा चक्कर लगाएगी।
रात 10.15
होटल गीतांजली (गुवाहाटी)
नई दिल्ली एयरपोर्ट पर विमान का इंतजार काफी दुखदायी रहा। फ्लाइट देर करते करते आखिरकार साढे चार पर चलने की बात तय हुई। फ्लाइट चार बजे आ गई और पौने पांच बजे हम विमान में सवार हुए। गुवाहाटी से तीनसुकिया की हमारी ट्रेन छूटना तय हो गया।हमारी गाडी साढे सात पर थी। हम गुवाहाटी इससे पहले पंहुच ही नहीं सकते थे। हमारे थ्री एसी के टिकट कन्फर्म थे,लेकिन ट्रेन के समय तक पंहुच नहीं सकते थे। दिल्ली से विमान चला। बागडोगरा में हमें विमान से उतरने की इजाजत नहीं थी।प्लेन में बैठे रहे। सुबह साढे नौ बजे हमने नाश्ता किया था। तब से कुछ भी नहीं खाया था। दिल्ली एयरपोर्ट पर सौ रु. का वडापाव खाया था,जोकि नाकाफी था। भूखे प्यासे शाम साढे सात पर गुवाहाटी एयरपोर्ट पंहुचे। प्रीपेड पर पूछा तो गुवाहाटी के डेढ हजार रु.बताए। हम बाहर आ गए। साढे सात सौ रु.में एक मारुति वैन की और गुवाहाटी रेलवे स्टेशन आए। साढे आठ बज चुके थे।होटल की खोज गीताजंली पर आकर खत्म हुई। यहां बारह सौ रुपए में चार बेड का रुम मिल गया,जिसमें हम पांचों समा गए। कल कामाख्या के दर्शनों के बाद आगे की योजना बनाएंगे। अभी पौने बारह बजे होटल के रुम में भोजन का इन्तजार कर रहे हैं।
19 जनवरी 15 सोमवार (शाम साढे चार बजे)
गीतांजली होटल गुवाहाटी
कल होटल की खोज कठिन काम साबित हुआ था। बडी मुश्किल के बाद करीब एक दर्जन होट७ टटोलने के बाद इस होटल में चार बेड का यह रुम पसन्द आया था। इससे पहले,पिछली बार जिस होटल में रुके थे,आरती होटल भी गए,लेकिन उसकी हालत तो बेहद खराब थी। आखिरकार गीताजंली होटल के पांचवें माले पर रुके हैं। गनीमत है कि लिफ्ट है।
रात को सोए। दिन भर की परेशानी थी,इसलिए आज सुबह देर तक सो रहे थे। मैं सुबह करीब साढे सात पर उठा था। बाकी लोग सो रहे थे। मैं करीब पौने आठ बजे तैयार होकर बाहर निकल गया। मैने कामाख्या जाने और आगे की यात्रा के बारे में जानकारियां जुटाई। कामाख्या जाने के लिए बसें उपलब्ध थी,मात्र पांच रुपए में। तवांग की यात्रा के लिए टूरिज्म के आफिस में बात हुई,वहां संगीता नामक कर्मचारी ने सैतीस हजार रु.में तवांग आना जाना और ठहरना इसका पैकेज बताया। सब लोगों से विचार विमर्श करने और पहले कामाख्या के दर्शन करने के लिए मैं लौटा। मैं करीब सवा दस बजे होटल लौटा। अभी टोनी का स्नान बाकी था। बाकी लोग तैयार हो चुके थे। हम ग्यारह बजे होटल से निकले। हमारा होटल पलटन बाजार में है। पास ही में नेपाली मन्दिर हैं। यहीं से कामाख्या के लिए बसें मिलती है। नेपाली मन्दिर तिराहे पर हल्का फुलका नाश्ता किया। समोसे कचोरी खाए। हांलाकि उनमें कोई स्वाद नहीं था।पास के एक रेा में आलू के पराठे खाए। उसमें भी मजा नहीं आया। पांच लोगों में 2 पराठे मंगाए थे। आगे आर्डर नहीं दिया। यहंा से बस में सवार हुए,कामाख्या के लिए। 15 मिनट में कामाख्या के पहाड के नीचे पंहुच गए। फिर दूसरी बस में बैठे और उपर पंहुचे। मन्दिर में पंहुचे,तो पता चला कि बेहद लम्बी लाईन है। दर्शन में तीन-चार घण्टे लग सकते है। पिछली बार भी गर्भगृह के दर्शन नहीं कर पाए थे। लेकिन इस बार पता चला कि पांच सौ एक रु.में वीआईपी दर्शन की व्यवस्था है। सभी एकमत थे कि जल्दी दर्शन करना है। ढाई हजार रु.के पांच कूपन लिए। मात्र 15-20 मिनट बााद हम मन्दिर के मुख्य गर्भगृह के भीतर थे। कहते हैं यहां सती की योनि गिरी थी। 51 शक्तिपीठों में सबसे ज्याादा महत्वपूर्ण यही है। भीतर गर्भगृह में गए। देवी का स्वयंभू पिण्ड यहां है। यहां बलि देने की परंपरा है। भैंसे,कबूतर,मुर्गे,बकरे आदि की धडल्ले से बलि दी जाती है। कामाख्या अत्यन्त जागृत देवी है। 20 मिनट में दर्शन कर बाहर निकले। आगे हमारा लक्ष्य था ब्रम्हपुत्र नद के बीच टापू पर बना उमा नन्दा मन्दिर। कहते है यहां उमा महेश का मिलन हुआ था। कामाख्या मन्दिर से सीधी बस पकड कर उमानन्दा के किनारे पर आए। 1 हजार रु. में नाव की और उमानन्दा के लिए निकल पडे। नदी के बीच टापू पर ऊं चाई पर महादेव विराजित है। यहां हनुमान भी विराजित है। सबके दर्शन कर वापस नदी किनारे लौटे और स्टेशन के लिए बस पकडी। बस ने स्टेशन के दूसरे किनारे पान बाजार वाले इलाके में उतारा। रास्ते में ही असम टूरिज्म का आफिस था। वहीं जाकर सुबह मिली संगीता को ढूंढा,लेकिन वो नहीं थी। उसके नम्बर पर फोन लगाया लेकिन फोन पर भी बात नहीं हो पाई।
अभी दिन के तीन बज चुके थे। सुबह से हमने भोजन नहीं किया था। जब संगीता नहीं मिली,पान बाजार से पलटन बाजार तक आए और नेपाली मन्दिर के सामने स्थित एक होटल में भोजन किया। भोजन के बाद होटल लौटते लौटते चार बज गए। अब तक कल की यात्रा तय नहीं हो पाई थी। टूरिज्म वाली संगीता से बात नहीं हो पा रही थी। शाम ४ बजे उससे बात हुई। उसने आज गाडी भेजने से साफ इंकार कर दिया। वह कल गाडी भेजेगी,सुबह सात बजे। यह गाडी हमें बोमडिला और तवांग घुमा कर प्लेन के टाइम पर गुवाहाटी छोडेगी। शाम साढे छ: बजे उससे डील फाइनल तय करना है। आज की रात यहीं रुकेंगे और कल सुबह निकल पडेंगे।
रात 11.15
हाटल गीतांजली गुवाहाटी
शाम को साढे छ: बजे संगीता डेका ने मिलने का समय दिया था। आखिरकार सात बजे वह मिली। नए कार्यक्रम में तवांग के साथ काजीरंगा भी जोडा और पूरा कार्यक्रम 41 हजार में तय हु। टाटा सूमो में हमे जाना है। सुबह आठ बजे हम रवाना होंगे। अरुणाचल जाने के लिए इनरलाइन परमिट लगता है। इसके लिए 2 फोटो और आई डी की जरुरत होती है। मेरे पास तो फोटो थे,लेकिन अन्य लोगों के पास नहीं थे। संगीता ने अपनी इण्डिका भेजी। टोनी वहां से होटल पंहुचा। उसने दशरथ जी,संतोष जी और हिमांशु तीनों को होटल से उठाया और फोटो तैयार करवाकर वापस टूरिज्म आफिस लौटा। हमने सारे कागजात दिए। दो हजार रु.एडवान्स दिए और होटल लौटे। बुकिंग के दौरान पता चला कि तवांग में बर्फ बारी हो रही है और तापमान -6 है। संगीता ने कहा कि व्यवस्थित गर्म कपडे होना जरुरी है। दशरथ जी के पास जर्किन नहीं थी। वहंा से लौट कर पलटन बाजार में तिब्बती मार्केट में जाकर दशरथ जी के लिए जर्किन खरीदी। वहां से लौटे। भोजन किया। एटीएम से रुपए निकाले। हमें सुबह 39 हजार रु.तो यात्रा के लिए देना है। भोजन हमें हमारे खर्चे से करना है। सुबह जल्दी उठना है। अब सोने का वक्त।
20 जनवरी 2015 मंगलवार (सुबह 8.00)
गीतंजली होटल गुवाहाटी
वास्तविक यात्रा,अब शुरु होगी। आने वाले छ: दिनों में हम बोमडिला,तवांग,डिरांग और काजीरंगा जााएंगे।नार्थ इस्ट में घूमना बेहद कठिन है। मैने सोचा था कि इस बार पूरा अरुणाचल घूमेंगे लेकिन केवल तवांग आने जाने में चार दिन लगते है। ये अरुणाचल का बांया हिस्सा है। दाहिना हिस्सा तीनसुकिया के पास है,वह यहां से हजार किमी से भी ज्यादा दूर है। गुवाहाटी से पूरे नार्थ इस्ट की बसें चलती है। केवल शिलांग नजदीक है। बाकी इटानगर,इम्फाल,कोहिमा,सिलचर,आदि स्थानों के लिए आठ या ज्यादा घण्टे लगते है। बसों की एडवान्स बुकींग करना पडती है। इटानगर के लिए सीट शेअरिंग में जीपें,टाटा सूमो आदि भी मिलते है। नार्थ इस्ट के अगले हिस्सों के लिए छोटी बडी गाडियां आगे मिलती होगी।
बहरहाल हमारी गाडी अब तक आई नहीं है। सभी लोग लगभग तैयार है। गाडी आते ही निकलना है।
20 जनवरी 2015 मंगलवार (रात 11.00)
बोमडिला (अरुणाचल)
सुबह साढे आठ पर मेरे मोबाइल पर ड्राइवर का फोन आया। सब लोग तैयार हो चुके थे। नीचे गाडी आ गई थी। हमारा ड्राइवर गोपाल शर्मा था। गाडी पर सामान टिका कर टूरिज्म के आफिस पर पंहुचे। टूरिज्म के आफिस पर संगीता को यात्रा की राशि का भुगतान करना था। हमारा पैकेज 41 हजार रु. का था। 2 हजार रु.हम दे चुके थे। 39 हजार रु.हमने सुबह अदा किए। संगीता ने कहा कि नाश्ता यहीं कर लें। तब तक हमारे इनर लाइन परमिट आ जाएंगे। परमिट आए और सुबह साढे नौ पर हम गुवाहाटी से रवाना हुए। शुरुआती 150 किमी तो फोरलेन था। दोपहर तक ये रास्ता पार हो गया। दोपहर करीब दो बजे अरुणाचल की सीमा में यानी भालूकपोंग पर पंहुचे। परमिट चैक करवाकर भीतर आए। यहां से शुरु हुई यात्रा,उंचे पहाडों में थी। लगातार खडी चढाई और सर्पीले टूटे फूटे रास्ते। बोमडिला हम शाम पौने आठ पर पंहुचे। अरुणाचल की पहली खासियत जो नजर आई,वो ये थी कि शाम पांच बजे अंधेरा होने लगा और साढे छ: तक तक तो घुप्प अंधेरा हो गया। यहां पहाड में रात आठ-नौ बजे तक लोग सो जाते है। हम होटल पंहुचे,तब तक शहर में आधी रात हो चुकी थी। यहां ठण्ड भी खतरनाक थी। अंदाजा यह है कि तापमान दो डिग्री होगा। ठण्ड खतरनाक है। सुबह छ: बजे तवांग के लिए निकलना है। अभी हम नौ हजार फीट की उंचाई पर हैं। तवांग के रास्ते में 14 हजर फीट की उंचाई होगी। वहां बर्फबरी हो रही है । हम पंहुचेंगे या नहीं,पता नहीं। सुबह छ: पर इस कडाके की ठण्ड में उठकर देखेंगे कि क्या होता है?
21 जनवरी 2015 बुधवार (सुबह 6.15)
बोमडिला
ड्राइवर ने कहा था कि सुबह जल्दी निकलना है। कडाके की ठण्ड के बावजूद मैं और संतोष जी स्नान कर चुके है। हिमांशु स्नान का साहस जुटा रहा है,जबकि टोनी और दशरथ जी ने स्नान से साफ इंकार कर दिया है। अब हम यहां से तवांग के लिए निकलेंगे।
21 जनवरी (रात 10.20)
तवांग
रात के 10.20 हो रहे है। रतलाम में होते तो ये वक्त धमाल मस्ती और मिलने जुलने का का होता। लेकिन यहां भारत के पूर्वी छोर पर अंतिम हिस्से तवांग में आधी रात से उपर का माहौल हो चुका है। यहां शाम पौने छ: बजे सूरज डूब चुका था और साढे छ: बजे तक अंधेरा पूरी तरह छा गया था। सात बजने तक बाजार बंद हो गए थे। आमतौर पर यहां के लोगो का दिन शाम छ: बजे खत्म हो जाता है। आठ या साढे आठ तक लोग बिस्तर के हवाले हो जाते हैं। यहां सूर्योदय भी जल्दी होगा। लगभग साढे पांच पर। सूर्यास्त भी इसी समय हो जाता है।
बहरहाल,बोमडिला से हम सुबह साढे आठ तक निकल चुके थे। बोमडिला से तवांग का रास्ता करीब 170 किमी है। लेकिन इसे पार करने में पूरा दिन लग जाता है। रास्ता बेहद खराब है। बीच में तो रास्ता है ही नहीं। रास्ते में सर्वाधिक उंचाई सेला पास है। यहां एल्टीटूयूड 14 हजार फीट के करीब है। बोमडिला करीब नौ हजार फीट था। सेला पास पर बर्फ जमी हुई थी। यहां युध्द के शहीदों का स्मारक है। यहीं पर एक झील भी है,जो कि पूरी तरह जमी हुई थी। चारो ओर बर्फ जमी हुई थी। हमने यहां उतर कर फोटो लिए। धूप चमकीली थी। धूप की वजह से ठण्ड कम महसूस हो रही थी।
सेला पास से 18 किमी आगे,भारत-चीन युध्द के महानायक जसवन्तसिंह का स्मारक है। जसवन्त सिंह की वीरता की वजह से चीन के तीन सौ फौजी मारे गए थे। भारतीय सेना में जसवन्त सिंह अभी तक सेवा में है और जसवन्त सिंह का वेतन प्रमोशन,वर्दी सभी चीजों की चिन्ता की जाती है। जसवन्त सिंह के स्मारक पर ही सेना की दुकान है। अभी यहां मराठा रेजीमेन्ट तैनात है। सेना की दुकान पर जर्किन,जूते,टोपी आदि देखी और सभी लोगों की खरीददारी की इच्छा हो गई। यहां जमकर खरीददारी की।
जसवन्त गढ से आगे बढे। यहां से तवांग 50-55 किमी है। रास्ता हद से ज्यादा खराब है। उबड खाबड,गड्ढों में टेढे मेढे खतरनाक मोडों को पार करते हुए शाम करीब साढे चार बजे तवांग में आ गए। होटल के कमरे बढिया थे। यहां आए। फ्रैश हुए और बाजार घूमने निकले। अभी साढे पांच बज रहे थे और अंधेरा होने लगा। सवा छ: बजे तक पूरी तरह अंधेरा हो गया। बाजार भी बन्द होने लगा था। सात बजते बजते बाजार पूरी तरह बन्द हो गया। कमरे पर लौटे। लौटने के दौरान टोनी नाराज हो गया।एक डेढ घण्टा इसे मनाने में लगा। आखिरकार सवा नौ पर सबने भोजन किया। भोजन बहुत अच्छा था,लेकिन कुछ कम पड गया। बाद में दो राइस प्लेट और एक दाल उपलब्ध हो गई। सब का भोजन हो गया।
वैसे तो तवांग में एक ही दिन रुकना है,लेकिन दशरथ जी चाहते है कि चीन सीमा तक जाकर आए। इसके लिए सेना से अनुमति लेना पडती है। कल कोशिश करेंगे कि कुछ जम जाए। यदि जम गया तो सीमा तक जाएंगे।
22 जनवरी 2015 गुरुवार (सुबह 7.00)
तवांग
पहाडों पर लोग जल्दी सो जाते है। हम भी दस बजते बजते बिस्तर के हवाले हो गए थे। सुबह छ: बजे कडाके की ठण्ड में उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हुआ। आज स्नान नहीं हो पाया। यहां अभी बिजली बन्द है। गर्म पानी नहीं है। जितना गर्म पानी था,उससे मुंह धोकर काम चला लिया।
तवांग सीमा का आखरी बडा कस्बा है। यहां से करीब पैतीस किमी दूर बुमला नामक स्थान पर तिब्बत की सीमा लगती है। सीमा पर जाने के लिए डीसी (कलेक्टर) और कमाण्डेन्ट दोनो की अनुमति लगती है। परमिशन लेने में पूरा दिन लग जाता है। सीमा का रास्ता बेहद खराब है। वहां जाकर आने में करीब पांच घण्टे लगते है। अब देखना यह है कि हम सीमा तक जा पाते हैं या नहीं। वहां जाने के लिए अलग से गाडी करना पडती है।
22 जनवरी गुरुवार (शाम 5.30)
कन्ट्री गेस्ट हाउस तवांग
कल सुबह बोमडिला में हिमांशु फिसल कर गिर गया था। जिससे उसके बायें हाथ की कोहनी में मार लगी थी और कोहनी पर सूजन आ गई थी। शाम को जब तवांग पंहुचे,तो पता चला था कि इस गेस्ट हाउस में ही एक डाक्टर रहते है,जो तवांग के डीएमओ भी है। रात को वे करीब साढे आठ पर आए। उन्होने हिमांशु को चैक किया। उन्होने कहा था कि सुबह फिर चैक करेंगे और जरुरत हुई तो एक्सरे करवाएंगे। रात को ही मूर का स्प्रै लेकर आए थे। इसकी वजह से सुबह उसकी सूजन कम हो गई थी। डाक्टर को सुबह दिखाया,तो उन्होने कहा कि एक्सरे की जरुरत नहीं है। डाक्टर सा.ने बुमला जाने का परमिट दिलाने में मदद करने की बात कही। बाद में पता चला कि उनकी पत्नी वहीं कलेक्टोरेट में काम करती थी। हम जब कलेक्टोरेट पंहुचे,उनकी पत्नी मिल गई। मात्र आधे घण्टे में हमें डीसी आफिस की अनुमति मिल गई। इसी दौरान पता चला कि हम जिस गेस्ट हाउस में रुके है,वह उन डाक्टर सा.का ही है।
बहरहाल,सुबह की शुरुआत पीटीसू लेक देखने से हुई। तवांग शहर करीब दस हजार फीट की उंचाई पर है। पीटीसू लेक करीब तेरह हजार फीट की उंचाई पर है। झील के चरों ओर बर्फ जमी हुई थी। झील का पानी भी जमा हुआ था,लेकिन दूर से देखने पर पानी ही नजर आ रहा था। जबर्दस्त ठण्ड थी,लेकिन अद्भूत नजारा था। यहां कई सारे फोटो खींचे। इससे आगे एक और झील थी। ड्राइवर गोपाल का कहना था कि यदि उस झील पर जाएंगे तो आने में डेढ-दो बज जाएंगे। हमें बुमला का परमिट लेना था। बुमला का रास्ता भी यही था। यानी बुमला जाने के दौरान ये झीलें देखने को मिलती। इसलिए हम आगे की झील पर जाने की बजाय वापस लौटे और पहले डीसी आफिस गए। जहां जल्दी ही हम फारिग हो गए। यहां से हम बौध्द मानेस्ट्री के लिए रवाना हो गए।
यह मानेस्ट्री विश्व में दूसरे नम्बर की बडी मानेस्ट्री है। भगवान बुध्द की विशाल की प्रतिमा यहां स्थापित है। भगवान के दर्शन किए। यह मन्दिर अत्यन्त विशाल है। पूछताछ करने पर पता चला कि यहां के प्रमुख गुरु रिनपोचे है। उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की। वे भोजन कर रहे थे। लेकिन मिलने को राजी हो गए। उन्होने इश मन्दिर के बारे में कई जानकारियां दी। उन्होने बताया कि इस मन्दिर का निर्माण 1680 में पांचवे लामा के समय हु। यह मानेस्ट्री पहले भूटान में बनने वाली थी,लेकिन फिर यहां बनी। ता वांग का अर्थ होता है घोडे की पसन्द। ता का अर्थ घोडा और वांग का अर्थ पसन्द। जो गुरु मन्दिर स्थापित करना चाहते थे,वे जगह खोजते खोजते यहां पंहुचे। उनका घोडा वहां जा पंहुचा जहां आज मौनेस्ट्री खडी है। इसलिए इसे तावांग कहा गया है।
गुरु रिनपोछे ने बताया कि मानेस्ट्री में 520 से अधिक भिक्षु व अन्य लोग रहते है। यहां करीब दो सौ बच्चे रहते है,जो भविष्य के भिक्षु है। इन्हे धार्मिक शिक्षा के साथ कक्षा आठवीं तक यहां पढाया जाता है,फिर आगे की पढाई के लिए वे अन्य स्थानों पर चले जाते है। पढाई पूरी करने के बाद ये भिक्षु वापस तवांग लौटते है और धर्म के काम में जुट जाते है। राज्य शासन की पर्याप्त मदद भी इस विद्यालय को मिलती है।
गुरु रिनपोछे का कहना है कि तिब्बत को स्वतंत्र किया जाना चाहिए। यह मानवता के हित में है। तिब्बत स्वतंत्र होकर रहेगा। गुरु रिनपोछे ने कहा कि अरुणाचल में इसाई मिशनरीज की गतिविधियां बढ रही है। यह चिन्ताजनक है।
मानेस्ट्री में बने संग्रहालय को देखकर हम वापस लौटे और वार मेमोरियल पर पंहुचे। 1962 युध्द के दो हजार से अधिक शहीदों की स्मृति में बौध्द परपंरा के अनुरुप यह स्मारक बनाया गया है। यहीं पर बुमला परमिट के लिए आवेदन भी देना था। डीसी से परमिट के बाद सेना से परमिट लेने के लिए यहां आवेदन देना पडता है। वे शाम सात बजे के बाद अनुमति जारी करते है।
हमारे बगल के कक्ष के टूरिस्ट आज सुबह बुमला के लिए रवाना हुए थे। ये कोलकाता के दो अधेड दम्पत्ति है। जिनमें से एक सज्जन इंजीनियरिंग कालेज के इलेक्ट्रानिक्स के प्रोफेसर हैं। हम लोग इन्ही के इंतजार में थे,कि वे आएं तो बुमला के बारे में जानकारी मिले।
वार मेमोरियल से लौटे,तब तक तीन बज चुके थे। अब भूख सताने लगी थी। बाजार के एक होटल में भोजन किया। और करीब 3.45 पर वापस लौटे। वापस लौटने के दौरान कोलकाता के प्रोफेसर मिल गए। उन्होने बताया कि वे बुमला नहीं पहुच पाए,क्योंकि बुमला में बर्फ बहुत ज्यादा है। हमने अब बुमला जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया है। जो पहले तय किया था,अब कल सुबह यहां से डिरांग के लिए निकलेंगे। डिरांग में रात गुजार कर अगली सुबह काजीरंगा के लिए रवाना होंगे।
फिलहाल शाम के 5.45 हुए है। अंधेरा छा चुका है। ठण्ड कहर बरपा रही है। हर चीज ठण्डी है। यहां पानी भी गर्म पीना पड रहा है। लाइट भी ज्यादा समय बन्द रहती है। शाम छ:-साढे छ: तक बाजार बन्द हो जाते है।हम लोग फिलहाल कमरे में बन्द है।
23 जनवरी 2015 ,शुक्रवार (सुबह 6.30)
कंट्री गेस्ट हाउस,तवांग
शाम को एक बार कमरे में बन्द हुए तो फिर बाहर नहीं निकल पाए। जब तक लाइट रही,टीवी देखा। आखिरकार रात दस बजे बिस्तर के हवाले हो गए। रात को जब इतनी जल्दी सोना है,तो नींद भी सुबह जल्दी खुलेगी। 4 बजे नींद खुल गई। करीब एक घण्टे तक करवटें बदलने के बाद आखिर पांच बजे रजाई से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई। बाथरुम में देखा तो गीजर में गर्म पानी मिल गया। संतोष जी भी तैयार हो चुके है। बाकी तीनों अभी उठे है और तैयार होने में जुटे है।
हम यहां से निकलेंगे और करीब 175 किमी दूर डिरांग में रात गुजारेंगे।
23 जनवरी 15 शुक्रवार (रात 9.30)
होटल स्नो लायन डिरांग
सुबह 7.30 पर तवांग के बाजार में जाकर फ्लास्क खरीदे और वहां से निकल पडे। सुबह चमकीली धूप निकल गई थी इसलिए बडी राहत महसूस हो रही थी। तवांग से निकलने के बाद जंग नामक कस्बा पडता है। सुबह तवांग में अल्पाहार नहीं किया था। इच्छा जंग में नाश्ता करने की थी,ड्राइवर ने जंग से करीब 6 किमी पहले एक होटल पर गाडी रोक दी। उसी होटल पर मैगी का नाश्ता किया और चाय पी। यहां से चले और धूप नदारद होने लगी। तवांग से 50 किमी पर सेला पास है। जब इस रास्ते से गए थे,तब बर्फ कम थी,लेकिन आज बर्फ बेहद ज्यादा है। सेला पास पर तो बर्फ ही बर्फ थी। जंग से जसवन्त गढ पर सेना की दुकान पर रुके। यहां भी हर ओर बर्फ थी। सेला पास पर रुक कर ढेर सारे फोटो खींचे। हड्डियों को जमा देने वाली ठण्ड थी। ठण्ड के बावजूद बर्फ में फोटो लिए। वहां से चले। हमें डिरांग में रुकना था। डिरांग,तवांग से करीब 180 किमी है। शाम करीब चार बजे डिरांग पंहुचे। यहां होटल स्नो लायन में हमारी व्यवस्था थी। यहां आए। सामान उतारा। सेला पास के नजदीक तवांग से चली एक सूमो खराब हो गई थी। हमारे ड्राइवर गोपाल ने कहा कि वह हमें डिरांग में होटल पर छोडकर वापस सेला पास जाएगा और रात दस बजे तक उस गाडी की सवारियों को लेकर आएगा। गोपाल पांच बजे तक डिरांग से निकल गया। हमने होटल में सामान को उतार कर नए सिरे से व्यवस्थित किया। मैने नए खरीदे बैग में सारा सामान जमा दिया। पुराने बैग को खाली कर दिया। इसी होटल में मिक्स वैज,दाल और रोटी का भोजन किय। अब सोने की तैयारी है।
गुवाहाटी से तवांग करीब चार सौ किमी है। रास्ता इतना खरीब है कि तवांग पंहुचने में दो दिन लग जाते है। रास्ते में एक रात कहीं न कहीं बोमडिला या डिरांग में रुकना पडता है। अगर सड़क अच्छी हो तो पर्यटक एक दिन में तवांग पंहुच सकते है। यही नहीं,तवांग और डिरांग में बिजली की व्यवस्था बेहद खराब है। दिनभर में मात्र 4 घण्टे बिजली आती है। मोबाइल नेटवर्क,इन्टरनेट थ्री जी जैसी सुविधाएं सभी यहां से बहद दूर है।यही कारण है कि पूर्वोत्तर मुख्यधारा से बाहर है। आधारभूत सुविधाएं यदि पर्याप्त हो जाए,तो यहां पर्यटन उद्योग तेजी से पनप सकता है। गुवाहाटी से पूर्वोत्तर के किसी भी स्थान पर जाना बेहद कठिन है। केवल शिलांग आसानी से पंहुच सकते हैं। लेकिन मणिपुर,अरुणाचल,नागालैण्ड,त्रिपुरा के किसी शहर तक पंहुचना बेहद कठिन है। गाडियां बेहद महंगी है।सभी स्थानों के लिए बसें तो है,लेकिन उनकी संख्या अत्यन्त कम है। दूरस्थ क्षेत्रों तक जाने वाली बसें सिर्फ सुबह रवाना होती है। इसके बाद बसें नहीं मिलती। निजी टैक्सियां बेहद महंगी है। ये गाडियां छ: हजार रु.प्रतिदिन के हिसाब से मिलती है।
बहरहाल,आज हम डिरांग में है। ड्राइवर गोपाल की खबर नहीं है कि वह आया या नहीं। हांलाकि उसने यहां से सुबह सात बजे चलने को कहा था। हम तो सोने की तैयारी में है। वह सुबह कितनी बजे चलता है,पता चलेगा।
24 जनवरी 2015 रात 9.45
अरण्य टूरिस्ट लाज-काजीरंगा नेशनल पार्क
आज पूरा दिन गाडी में गुजरा। डिरांग से सुबह सात बजे निकलना था,लेकिन ड्राइवर हमें छोड कर फिर से सेला पास तक गया था और रात करीब नौ बजे वापस लौटा था। मै रोज की तरह सुबह 6.15 पर स्नान आदि से निवृत्त होकर तैयार हो चुका था। डिरांग का बाजार बंद था। कमरे से बाहर निकला तो पहाडों पर बादलों ने कब्जा जमाया हुआ था। मैने फोटो लिए। होटल स्नो लायन में एक काले कुत्ते से दोस्ती हो गई। थोडी देर उसके साथ खेला। बाजार घूम कर आया। करीब साढे सात तक सब लोग तैयार हुए। लेकिन ड्राइवर गोपाल शर्मा ने कहा था कि कल उसने कोई पार्ट खरीदा था,जो उसे लौटाना था। दुकान खुलेगी,तब पार्ट लौटाने के बाद हम निकलेंगे। हम लोग डिरांग में उसी संजय होटल में नाश्ता करने पंहुचे,जहां जाते वक्त नाश्ता किया था। साढे नौ पर डिरांग से रवाना हुए। डिरांग से करीब डेढ सौ किमी पहाडी रास्ते की यात्रा थी। भालूकपोंग पर अरुणाचल की सीमा समाप्त होती है और पहाड भी। इस दौरान नाग मन्दिर नामक स्थान पर भोजन किया। शाम करीब चार बजे पहाड खत्म हो गए। अब हमें करीब 120 किमी मैदानी इलाके में चलकर काजीरंगा पंहुचना था। शाम साढे सात बजे काजीरंगा पंहुचे। हमारी व्यवस्था पर्यटन विभाग के होटल अरण्य में थी। शानदार होटल निश्चय ही महंगा होगा,लेकिन हम लोग पैकेज में थे। समस्या यह हुई कि हम पांच थे और यहां कमरे सिर्फ दो थे,यानी चार लोगों की व्यवस्था। टोनी के कमरे का टीवी नहीं चल रहा था। उसने मैनेजर से बहस की और कमरा बदलवा लिया। दशरथ जी और टोनी वहां चले गए। हमने नौ बजे भोजन किया और अब सोने की तैयारी है।
कल सुबह छ: बजे हम काजीरंगा में हाथियों पर सवार होकर गेण्डे देखने जाएंगे। करीब नौ बजे यहां से निकलेंगे और शाम को पांच बजे गुवाहाटी से दिल्ली की फ्लाइट है। यह फ्लाइट शाम सवा आठ पर दिल्ली पुहंचेगी और वहां से रात 9.50 पर ट्रेन है। चुनौती यह है कि ट्रेन मिलेगी या नहीं। अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा सुबह दिल्ली पंहुचेेंगे। वहां खतरनाक सुरक्षा इंतजाम है। दिल्ली हवाई अड्डे पर पंहुचने के बाद स्टेशन पंहुच पाएंगे या नहीं,ये कल पता चलेगा।
पहाड की इस यात्रा में कुछ ने अनुभव भी हो रहे है। यात्रा के साथी छोटी-छोटी बातों में नाराज हो रहे है।पहले टोनी नाराज हुआ,फिर हिमांशु। संतोष जी के मजे लेने के चक्कर में उन्होने संतोष जी को भी नाराज कर दिया। कुल मिलाकर लोग छोटी छोटी बातों को नजर अंदाज नहीं कर पाते और अपने बडे आनन्द को इस चक्कर में गंवा देते है। अगर लम्बी यात्रा करना हो तोलोगों का मन बडा होना बेहद जरुरी है। मेरी शुरुआती यात्राओं में ऐसी समस्याएं नहीं थी,लेकिन अब काफी बढ गई है। इस पर गंभीरता से विचार जरुरी है।
25 जनवरी 2015 शाम 6.00 बजे
गुवाहाटी-नई दिल्ली विमान में
आज का दिन सुबह चार बजे काजीरंगा के अरण्य टूरिस्ट लाज में शुरु हुआ। हमें सुबह 6.30 पर हाथी की सवारी के लिए पंहुचना था। हमारे होटल से एलीफेन्ट सफारी का स्थान करीब तेरह किमी दूर था। हमारे टिकट यात्रा आयोजक द्वारा बुक करवाए जा चुके थे।
काजीरंगा में हाथी की सवारी सिर्फ एक घण्टे की होती है। वह भी सुबह। यहां हमारे अलावा बडी संख्या में अन्य पर्यटक भी थे। एक हाथी पर महावत के अलावा चार लोग बैठ सकते है। हम पांच थे। मेरे अलावा चारों साथी एक हाथी पर सवार हो गए। मै एक दूसरे हाथी पर सवार हुआ।
काजीरंगा नेशनल पार्क गेण्डे के लिए प्रसिध्द है। शायद पूरे एशिया में एक सिंग वाले गेण्डे यहीं पाए जाते है। पर्यटकों और वन विभाग का फोकस भी गेण्डे देखने दिखाने पर ही होता है। व्यवस्था इतनी बढिया है कि हर पर्यटक को बडी आसानी से गेण्डा दिखा दिया जाता है। हमारी एलीफेन्ट सफारी तो महज पैंतालिस मिनट में निपट गई। मादा गेण्डे का दूध पीता गेण्डे का बच्चा भी इस दौरान नजर आया।जंगली भैंसे,हिरण आदि भी दिखाई दिए। आठ बजते बजते तो हम होटल लौट आए। हमारी फ्लाईट पांच बजे गुवाहाटी से थी। गुवाहाटी यहां से करीब दो सौ किमी था,जिसमें से डेढ सौ किमी तो फोरलेन था। हमारे पास पर्याप्त समय था। अरण्य लाज से पुडी सब्जी का नाश्ता करके हम साढे नौ पर होटल से निकल गए। होटल से निकल कर बाहर सोवेनियर शाप पर कुछ देर रुके और सीधे गुवाहाटी के लिए चल पडे।
पूरा रास्ता,समतल था। पहाड हम पीछे छोड आए थे। काजीरंगा से गुवाहाटी के रास्ते पर आज कुछ विशेष दृश्य देखने को मिल रहे थे। लडकियां,साडी पहने हुए सजी संवरी नजर आ रही थी। बडी लडकियां ही नहीं नन्ही बालिकाएं भी साडी पहन कर मेकअप करी हुई दिखाई दे रही थी। फिर ध्यान दिया तो पता चला कि ये सरस्वती पूजा का असर है। सड़क किनारे जितने स्कूल नजर आए,वहां सरस्वती पूजा का उत्सव नजर आया। सड़कों पर दिख रही लडकियां इन्ही उत्सवों में जा रही थी। आखिरकार रास्ते में एक स्कूल पर गाडी रुकवा कर वहां पंहुचे। यह कक्षा दसवीं तक का सरकारी स्कूल था,जहां करीब डेढ सौ बच्चे पढते हैं। करीब 21 लोगों का स्टाफ है। शिक्षिकाएं वहां मौजूद थी। उन्हे अपना परिचय दिया और उत्सव की जानकारी ली। यह असम की पुरानी परंपरा है। सारे निजी और सरकारी स्कूलों में सरस्वती पूजा बेहद धूमधाम से मनाई जाती है। स्कूलों में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर दो दिनों तक पूजा चलती है। आज पूजा का दूसरा दिन यानी अंतिम दिन था। पूजा अत्यन्त विधिविधान से पण्डित को बुलवा कर की जाती है। पूजा के समापन पर स्कूल के बच्चों और अभिभावकों का स्नेह भोज होता है। शिक्षिकाओं ने बताया कि उनके गांव के लोगों के सहयोग से यह उत्सव मन रहा है और गांव के लोग भी स्नेह भोज में शामिल होंगे। यह बडा सुखद अनुभव था। बाद में चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि यदि मध्यप्रदेश में ऐसा किया जाए तो फौरन सांप्रदायिकता के आरोप लग जाएंगे। बहरहाल,शिक्षिकाओं ने हमे चाय पिलाई और तिल गुड की एक विशेष मिठाई खिलाई जो बिहू के मौके पर बनाई जाती है।
रास्ते में घांस से बनाए गए विशालकाय बाज और गैण्डे के फोटो लिए। हमारे ड्राइवर ने बताया कि ये कलाकृतियां बिहू के उपलक्ष्य में बनाई गई है। बिहू असम का विशेष पर्व है,जो संक्रान्ति के मौके पर मनाया जाता है। काजीरंगा से गुवाहाटी का सफर बडी आसानी से बेहद जल्दी कट गया। हम करीब पौने दो बजे गुवाहाटी के नजदीक पंहुच गए। भोजन बाकी था,इसलिए गुवाहाटी से करीब तीस किमी पहले एक शुध्द शाकाहारी ढाबे पर भोजन किया। पूरे सफर में यह पहला ढाबा था,जो पूरी तरह शुध्द शाकाहारी था। गुवाहाटी के बाहर का यह क्षेत्र भी अनूठा है। यहां सड़क का एक किनारा असम में आता है,जबकि दूसरा किनारा मेघालय में लगता है। असम और मेघालय आमने सामने होते हैं।
रास्ते में हमें फ्लाइट के 40 मिनट लेट होने की सूचना मिल गई थी। चिंता का विषय अब नई दिल्ली से रतलाम की ट्रेन पकडना है,जो 9.50 पर चलेगी। हम लेट हो रहे है। इसी चिंता में हम दोपहर 3.30 पर गुवाहाटी एयरपोर्ट पंहुच गए। गाडी से सामान उतारकर ड्राइवर गोपाल शर्मा से बिदा ली। गोपाल युवा लडका था,जिसकी एक छोटी बालिका थी। वह करीब 12 साल से ड्राइवरी कर रहा है। गोपाल का मोबाइल नम्बर लेने के बाद उससे बिदा ली।
अब हमारे सामने था विमान का इंतजार। जो फ्लाइट 40 मिनट लेट थी वह 10 मिनट और बढ गई थी। अब यह छ: बजे चलने वाली थी। यदि यह ढाई घण्टे में नई दिल्ली पंहुची,तो हमारे पास स्टेशन पंहुचने के लिए मात्र एक घण्टा और बीस मिनट का समय होगा। देखते है क्या होता है?जिस दिन गुवाहाटी पंहुचे थे,विमान की देरी की वजह से तीनसुकिया की ट्रेन चूक गए थे और तीनसुकिया की बजाय तवांग घूम आए। लेकिन आज उम्मीद है कि जैसे भी होगा ट्रेन मिल जाएगी और सुबह हम रतलाम में होंगे। हवाई जहाज अभी हजारों फीट की ऊं चाई पर है और उडते हुए करीब एक घण्टा हो गया है। अब देखना है कि ट्रेन पकड पाते है या नहीं?
25 जनवरी 2015 (रात 11.40)
जम्मूतवी एक्सप्रेस (जाम जाट) कोच बी-4/7
हमारे लिए ये ट्रेन पकडना बडा चैलेंज था। रात 9.07 पर हमारा विमान दिल्ली में उतरा था। दौडते भागते बाहर निकले। समझदारी ये की कि मेट्रो की बजाय दो टैक्सी की रसीदें सात सौ रु. में कटवाई। एक माारुति वैन पकडी। सारा सामान और सारे लोग उसी में लद गए। किस्मत अच्छी थी कि 9.45 पर दिल्ली प्लेटफार्म पर पंहुच गए। ट्रेन हम पकड चुके है। भोजन कर चुके है। ट्रेन में रमेश मिश्रा जी व बाबू भी मिल गए। वे अगले कोच में हैं। किस्मत अच्छी थी कि आज ये ट्रेन हमारी पकड में आ गई।
अरुणाचल की यात्रा यहां समाप्त होती है। सुबह अपने घर में होगी। अगली यात्रा की योजना भविष्य में बनेगी।
No comments:
Post a Comment