Wednesday, May 25, 2016

यात्रा वृत्तान्त - 22 सांप,मेंढक और कुत्तों के मांस का बाजार,महिलाएं करती हैं व्यापार

(नागालैण्ड और मणिपुर यात्रा 6 जनवरी से 20 जनवरी 2016)

उत्तर पूर्वी राज्यों की यात्रा का यह तीसरा मौका था। इस बार की यात्रा में हमने अरुणाचल के दूरस्थ क्षेत्रों,अनीनी की दिशा में जाने की योजना बनाई थी। साथ ही रहस्यमय माने जाने वाले नागालैण्ड व मणिपुर को भी इस यात्रा में जोडा था। पिछली अरुणाचल तवांग यात्रा के अनुभवों से सबक लेते हुए इस बार हम पर्याप्त समय लेकर चले थे,ताकि गडबड ना हो। हम २१ जनवरी की सुबह लौटे। इस यात्रा में हम केवल तीन व्यक्ति शामिल थे। मेरे साथ दशरथ पाटीदार व हिमांशु जोशी इस यात्रा में शामिल थे।

6 जनवरी 2016 (रात 9.30)
हापा-जम्मूतवी एक्सप्रेस (कोच न. बी-1/14,15,16)
आखिरकार यह यात्रा शुरु हुई। जिस यात्रा में कुल पांच लोगों ने सहमति दी थी,उनमें से मात्र तीन यात्रा पर रवाना हुए। इस यात्रा में मेरे साथ दशरथ जी पाटीदार और हिमांशु जोशी शामिल है। हम तीनों लोग अरुणाचल के दूरस्थ क्षेत्रों के साथ नागालैण्ड और मणिपुर की यात्रा करना चाहते है। इन इलाकों में अभी कल ही भूकंप आया है।
बहरहाल,इस यात्रा की योजना सितम्बर 2015  की चारधाम यात्रा के बाद अक्टूबर में बनना शुरु हुई थी। 24-25 दिसम्बर को बैंगलुरु में अधिवक्ता परिषद की राष्ट्रीय अधिवेशन की योजना थी और हम उसमें जाने की इच्छा रखते थे। लेकिन इस अधिवेशन में वकील बडी संख्या में शामिल होने लगे। मुझे लगा कि अब हमारे जाने की जरुरत नहीं है। मैने मित्रों से पूछा कि क्यों न हम कुछ और योजना बनाए। हमने नागालैण्ड मणिपुर जाने की योजना बनाई। इस यात्रा के लिए पांच लोगों ने सहमति दी थी। मेरे अलावा दशरथ जी,हिमांशु,टोनी और आशुतोष ये सभी लोग राजी हुए थे। संतोष त्रिपाठी जी ने शुरुआत में ही इंकार कर दिया था।
बहरहाल पांच लोगों के एयर टिकट बुक कराए। फिर सभी से बात करके ट्रेन के टिकट बुक कराए। लेकिन यात्रा की तारीख निकट आते आते गडबडियां शुरु हुई। सबसे पहले टोनी ने कहा कि उसका साल भर का प्रोग्राम आ गया है और अब उसका जाना संभव नहीं है। फिर मन्दसौर से आशुतोष की बातें आई कि बहुत समस्याएं है। आखिरकार इस लम्बी और कठिन यात्रा में हम तीन लोग ही जा रहे है।उदित जहां व्यावसायिक कारणों से रुका हैं,वहीं आशुतोष झूठे बहाने बनाकर इस योजना से दूर हुआ है। उसने कई बहाने बनाकर प्रदर्शित किया कि वह आना तो चाहता है,लेकिन समस्याएं अधिक  है। उसने अपने घर में बन रहे शौचस्थान का हवाला दिया और सर्दी जुकाम का भी हवाला दिया। दोनो ही कारण प्रथम दृष्टया झूठे नजर अता है। उसकी कथित समस्याएं ऐसी थी,जिन्हे निपटाया जा सकता था,लेकिन उसकी इच्छा ही बदल गई थी,इसलिए वह नहीं आया। बहरहाल अब हम तीन लोग ट्रेन में सवार है और सुबह सवेरे 4.30 पर दिल्ली पंहुचेंगे।

7 जनवरी 2016 गुरुवार (दोपहर 1.30)
गुवाहाटी एयर पोर्ट
आज का अब तक का दिन बेहद रोचक और सुखद रहा। हम फ्लाइट चूकने की कगार पर थे,लेकिन फ्लाइट मिल गई। लेकिन हमारा सामान अब तक नहीं पंहुचा है और हम सामान के इंतजार में बैठे है।
ट्रेन सही समय पर पंहुच गई थी। रिटायरिंग रुम में डारमेट्री के बिस्तर पहले ही बुक करवा रखे थे। वहीं पंहुचे। थोडी देर नींद ली। सुबह आठ बजे तक स्नान इत्यादि से निवृत्त हो गए। रात को सााथ लाए सूरण की सब्जी आदि का भोजन किया।
एयरपोर्ट पर जाने के लिए हिमांशु का सुझाव था कि हम ओलाकैब से जाएं क्योकि उसे औलाकैब कंपनी से 195 रु.लेना थे। उसका हिसाब बराबर होने वाला था। स्टेशन से बाहर आए और ठेले पर चाय पीते पीते औलाकैब की टैक्सी बुलवाई। ये एक छोटी मारुति वैगन आर थी,जिसमें सामान लेकर बैठना काफी कठिन था। बहरहाल हम यहां से करीब नौ बजे रवाना हुए। इस टैक्सी ड्रायवर को एयरपोर्ट का रास्ता नहीं मालूम था। इतना ही नहीं किसी के भी मोबाइल में जीपीआरएस चालू नहीं हो पा रहा था,क्योंकि धुंध बहुत थी। नतीजा यह हुआ कि ड्राइवर हमें लेकर इधर उधर भटकता रहा। रास्ते में टैक्सी वालों से रास्ता पूछा,किसी ने इधर बताया,किसी ने उधर। नतीजा यह हुआ कि 9.40 हो गए और फ्लाइट छूटने का खतरा मण्डराने लगा। एक आटो वाले को रोका और टैक्सी छोडकर आटो में सवार हुए। आटो वाले ने भी पूरी ताकत लगाकर टर्मिनल थ्री से एक किमी पहले छोडा। यहां से आगे आटो नहीं जा सकता था। यहां फिर एक टैक्सी की और भाागते दौडते गेट पर पंहुचे। गेट के सुरक्षाकर्मी से मिन्नतें कर जल्दी से भीतर पंहुच गए। लेकिन जैसे ही एयर इण्डिया के काउण्टर पर पंहुचे,उन्होने बोर्डिंग पास देने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि हम लेट हो चुके है। सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी है, अब विमान पर जाने की अनुमति नहीं मिलेगी। हिमांशु ने कहा कि फ्लाइट का टाइम 10.50 है और अभी सिर्फ दस बजे है। काउण्टर पर मौजूद कर्मचारी को टिकट दिखाया,जिसमें समय 10.50 लिखा हुआ था। हांलाकि फ्लाइट 20 मिनट पहले के समय पर तय हो चुकी थी और यह हमें भी मालूम था,लेकिन मौके पर दबाव बनाने के लिए हमने 10.50 का सहारा लिया। कर्मचारी ने भीतर बात की और हमें बोर्डिंग पास जारी कर दिए। अब बारी आई सामान की। उसने कहा कि या तो  आप साथ ले जाएं या लगेज अगले किसी प्लेन से भेजेंगे। हम सहमत हो गए। हमारा पंहुचना जरुरी था। सामान के लिए हम इंतजार कर सकते थे। बहरहाल हम गुवाहाटी पंहुच गए। अब खबर मिली है कि हमारा लगेज शाम तक पंहुचेगा।
सर्किट हाउस पर बात हो चुकी है। हमारी बुकींग कन्फर्म है। अब हम वहीं पंहुच रहे है।
7 जनवरी (शाम 5.00)
गुवाहाटी सर्किट हाउस (रुम न.44)
एयरपोर्ट पर हिमांशु की एयर इण्डिया वालों से चर्चा हुई। एयर लाइंस वालों ने गलती स्वीकार करते हुए हमारा लगेज अगली फ्लाइट से मंगराकर सर्किट हाउस पंहुचाने पर सहमति दी,तब हम वहां से रवाना हुए। प्रीपेड बूथ से 530 रु. में सर्किट हाउस के लिए टैक्सी की। हम करीब 3 बजे सर्किट हाउस पंहुचे। फ्लाइट में एयर लाइंस की ओर से नाश्ता दिया गया था। लेकिन फिर भी अब भूख लग आई थी। सर्किट हाउस पर पूछताछ की तो पता चला कि केन्टीन से भोजन आ जाएगा। हमने झटपट खाना मंगवाया। भोजन में चावल,दाल,कद्दू और मटर की सब्जी थी। रोटी नहीं थी। भूख लगी थी,तो भोजन स्वादिष्ट लगा।
भोजन के बाद थोडी देर आराम। इस बीच ट्रेवल एजेंसी संगीता डेका को फोन किया। जैसे ही उसने सुना,हम गुवाहाटी में सर्किट हाउस पर है। वह खुद ही यहां आने को बोली। फिलहाल उसी का इंतजार कर रहे है। शाम को नदी किनारे चल रहे कुछ कार्यक्रमों को देखने का इरादा है।
7 जनवरी (रात 11.00)
सर्किट हाउस गुवाहाटी
शाम करीब छ: बजे संगीता डेका सर्किट हाउस पर आई। उसे रतलाम की सेव खिलाई,तो तेज मिर्ची से वह घबरा गई। जब उसे पता चला कि हम सीधे डिब्रूगढ जाने वाले है,तब वह थोडी निराश हुई,लेकिन जल्दी ही उसने हमारे सामने एक नया प्रस्ताव रखा कि वह इन्दौर में अपना आफिस खोलना चाहती है और इसके लिए जनवरी के अंत में रतलाम आना चाहती है।हमने उसे प्रोत्साहित किया। हम चाय पी रहे थे कि तभी एयरपोर्ट से हमारा लगेज भी आ गया।  खुशी की बात यह थी कि एयर इण्डिया ने टैक्सी का किराया भी खुद ही भुगता था। इधर हमारा सामान आया और उधर संगीता हमसे बिदा हुई। सामान को कमरे में टिका कर हम क्रूज पर जाने के लिए निकले। क्रूज यहां से करीब तीन किमी दूर ब्रम्हपुत्र के किनारे पर है। सर्किट हाउस भी नदी के किनारे पर ही है और यहां से नदी के बीच टापू पर स्थित उमानन्दा मन्दिर ठीक सामने है।
हम लोग क्रूज पर पंहुचे। यहां प्रति व्यक्ति एक हजार रु.का टिकट है। इसमें 2 घण्टे क्रूज की सवारी,लोकनृत्य व संगीत तथा शाम का भोजन सम्मिलित है। लोकनृत्य बेहद अच्छे थे। क्रूज की सवारी का आनन्द लेते हुए लोक नृत्य संगीत का आनन्द लिया। यहां भोजन स्वादिष्ट था।  रात सवा दस बजे क्रूज से उतरे। सड़कों पर आवाजाही बेहद कम हो गई थी। पैदल ही सर्किट हाउस पंहुचे। अब सोने की तैयारी। कल मां कामाख्या के दर्शन,इनर लाइन परमिट बनवाने के साथ संग्रहालय देखने का इरादा है। शाम को डिब्रूगढ की ट्रेन है।

8 जनवरी 2016 शुक्रवार(दोपहर तीन बजे)
गुवाहाटी सर्किट हाउस रुम.न. 44
रात को लम्बी दूरी तय करते पैदल ही सर्किट हाउस पंहुचे थे। आज सुबह की शुरुआत साढे छ: बजे हुई। सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्यायाम सूर्यनमस्कार किया। सुबह उठने के वक्त कोहरा कुछ कम था,लेकिन आठ साढे आठ तक कोहरा घना हो गया। सामने नदी के बीच स्थित उमान्दा टापू इस कोहरे में गुम हो गया था।
स्नानादि के बाद सर्किट हाउस में ही ब्रेड बटर का नाश्ता करके निकले। बस में सवार हो कर कामाख्या मन्दिर पंहुचे। इस बार भी मन्दिर में वीआईपी टिकट पांच सौ एकरु. का लिया। मन्दिर में इधर उधर घूमे,फोटो लिए। वीआईपी लाइन में लगकर जल्दी ही मां के दर्शन भी कर लिए। करीब साढे ग्यारह बजे वापसी की बस में बैठे और करीब 45 मिनट बस की सवारी करने के बाद रिजर्व बैंक चौराहे पर उतरे। यहां से हमे इनरलाइन परमिट के लिए अरुणाचल के आफिस में जाना था।इनरलाइन परमिट आफिस में दोपहर दो बजे तक परमिट बनाए जाते है। इंटरनेट से आफिस का पता ढूंढा था। अरुणाचल के सरकारी पोर्टल पर आफिस के जो नम्बर थे सभी गलत थे। पता भी गलत था। पोर्टळ पर आफिस का पता आरजी बरुआ रोड दिया गया था। रिजर्व बैंक से आरजी बरुआ रोड के लिए 150 रु.में आटो किया। फिर आटो वाले से वापसी की बात भी की। 250 में आना जाना तय हुआ। आरजी बरुआ रोड पंहुच गए,आफिस ढूंढना शुरु किया,तो पता चला कि यह आफिस यहां से भी करीब दस किमी आगे चला गया है। घडी अब एक बजा रही थी और भूख भी तेज लग आई थी। यही तय किया कि यहीं से लौट जाए और इनर लाइन परमिट डिब्रूगढ से लिया जाए। बहरहाल उसी आटो से वापस उसी चौराहे पर लौटे और दोपहर दो बजे वहीं एक होटल में भोजन किया। सामने ही असम का सरकारी संग्रहालय है। यह देखने की इच्छा तो पहले से ही थी। पांच पांच रु.के टिकट पर संग्रहालय में घुसे और करीब 45 मिनट तक म्यूजियम में प्राचीन मूर्तियां,असम की लोक संस्कृति से परिचित हुए। वहां से आटो पकड कर सर्किट हाउस आ गए। रात आठ बीस पर डिब्रूगढ की ट्रेन है,जो हमें सुबह डिब्रूगढ पंहुचा देगी। ट्रेन में आराम का इरादा है।

9 जनवरी 2016 शनिवार (रात 9.15)
सर्किट हाउस डिब्रूगढ
भारत के पूर्वांचल में अंतिम रेलवे स्टेशन डिब्रूगढ के सरकारी सर्किट हाउस में यह पहली रात है। इस वक्त हम बाजार से भोजन करके आ चुके है और सोने की तैयारी है।
कल रात गुवाहाटी सर्किट हाउस से ठीक समय पर निकल गए थे। ट्रेन के आने का समय 7.45 था,लेकिन यह लेट हो रही थी। जब हम स्टेशन पंहुचे थे,तब तक यही तय नहीं था कि ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएगी। दशरथ जी और हिमांशु को भूख लग आई थी। रेलवे के जनआहार रेस्टोरेन्ट में वे भोजन करने बैठ गए। भोजन सस्ता और अच्छा था। मात्र 35 रु.की थाली। दोनो ने भोजन किया। मैं बाहर घूमने निकल गया। इन दोनो का भोजन हो चुका था ,उन्होने मेरे लिए भी पैक करवा लिया। ट्रेन करीब एक घण्टे की देरी से आई। हम ट्रेन में सवार हुए। ट्रेन में गंदगी थी तो हिमांशु ने क्लीन माय कोच वेबसइट पर शिकायत दर्ज कराई। करीब एक घण्टे तक सफाई कर्मी सक्रीय रहे। बहरहाल हम सो गए।
सुबह करीब एक घण्टे की देरी से ट्रेन डिब्रूगढ पुहंची। हम साढे नौै बजे डिब्रूगढ पंहुचे थे।सर्किट हाउस पर बुकींग थी। हम सीधे सर्किट हाउस पंहुचे। स्नानादि से निवृत्त होकर तैयार होते होते सवा ग्यारह हो गए।
कल हम गुवाहाटी से अरुणाचल का इनरलाइन परमिट नहीं ले पाए थे। सोचा था,डिब्रूगढ से ले लेंगे। यहां आकर सबसे पहले इसी पर ध्यान लगाया। इंटरनेट से आईएलपी आफिस का नम्बर लेकर फोन किया,लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। यहां सर्किट हाउस बुक करने वाले नाजिर अक्षय शर्मा से फोन पर बात की। अक्षय शर्मा ने कहा कि वह एक घण्टे में सर्किट हाउस पंहुचेगा और समस्या हल करेगा।  अक्षय शर्मा के इंतजार में हम अगले नुक्कड तक चले गए,जहां हमने मैदे के पराठे और सब्जी खाई।  हम करीब साढे बारह बजे सर्किट हाउस लौट आए,लेकिन अक्षय शर्मा अब तक नहीं आए थे। हम इंतजार करते रहे। करीब एक बजे मैने फिर अक्षय शर्मा को फोन किया,तब उन्होने कहा कि वे शासकीय कार्य में व्यस्त हो गए हैं ,वे इनरलाइन परमिट के लिए अरुणाचल के रेजीडेन्ट कमिश्नर का नम्बर दे देंगे।  उन्होने कुछ समय बाद नम्बर दे दिया। इस दौरान हमें पता चल चुका था कि शनिवार रविवार को इनर लाइन परमिट नहीं मिल सकता। यह हमारे लिए परेशानी की बात थी।आईएलपी नहीं मिलने की स्थिति में हमारी यात्रा 2 दिन के लिए टल सकती थी। इसी चिंता में अरुणाचल  के रेजीडेन्ट कमिश्नर के मोबइल पर फोन लगाया,लेकिन वह दो बार नो रिप्लाय  हो गया।
हमें आगे की यात्रा की योजना बनाना थी। इसके लिए वाहन भी तय करना था। हम सर्किट हाउस से यह सोच कर निकले थे कि मुख्य बाजार में कहीं ना कहीं ट्रेवल्स वाले होंगे,उनसे बात करेंगे। एक पान वाले से मैने पूछा कि टैक्सी कहां मिल सकती है,उसने कहा कि मैं खुद टैक्सी करवा दुंगा। उसने फौरन एक टैक्सी वाले को फोन लगाकर मेरी बात करवाई।  टैक्सी वाले ने कहा कि उसके पास इण्डिगो गाडी है और वह शाम तक आकर सब बातें तय कर लेगा।
 यह बात करके हम मुख्य बाजार जाने के लिए एक आटो में सवार हुए। अभी हम आटो में ही थे कि अरुणाचल के रेजीडेन्ट कमिश्नर का फोन आ गय। रेजीडेन्ट कमिश्नर श्री राय ने कहा कि वे सोमवार से पहले आईएलपी नहीं दे सकते,लेकिन उन्होने यह भी कहा कि यदि हम परशुराम कुण्ड जाएंगे तो एन्ट्रीगेट पर इनर लाइनपरमिट अस्थाई तौर पर मिल जाएगा। यह बहुत राहत की बात थी।
हम लोग मुख्य बाजार पंहुचे। काफी देर इधर उधर भटकते रहे। आखिरकार एक टैक्सी ड्राइवर से बत हुई। उसने तीन दिन का पूरा कार्यक्रम बनाकर बताया। हम तीनो को यह व्यक्ति ठीक लगा।  इसका नाम नाजिर हुसैन था। हमने तीन दिन के कार्यक्रम की खुलकर बात की और उसने तीन दिन के कार्यक्रम के लिए ग्यारह हजार रु.की मांग की। हमने उससे कहा कि हम शाम 6-7 बजे तक तय करेंगे और उसे बताएंगे कि हम जाएंगे या नहीं।  शाम करीब चार बजे हम सर्किट हाउस लौटे। दोपहर में जिस ड्राइवर से बात हुई थी,उसने शाम पांच-साढे पांच तक आने को कहा था। शाम करीब छ: बजे वह ड्राइवर आया। उसने जो भाव बताए वे काफी ज्यादा थे। बहरहाल हमने उसे टाला और नाजिर हुसैन को बुलाया। वह भी सर्किट हाउस पर आया। हमने अगली यात्रा नाजिर हुसैन के साथ तय कर ली।
दोपहर में बाजार में घूमते समय मारवाडी पट्टी में माधुरी होटल नामक दुकान के संचालक से भी बात हुई। वह भी जयपुर राजस्थान का था। उसकी होटल में हमने आलू पराठा भी खाया।
शाम को उसी की होटल में भोजन करने का वादा करके हम लौटे थे। शाम को नाजिर के साथ अगली यात्रा तय करने के बाद हम भोजन के लिए बाजार जाने को निकले तो बूंदाबांदी शुरु हो गई थी। हम लोग आटो में सवार हो गए। बारिश अचानक तेज हो गई। हम भूल चुके थे कि माधुरी होटल कहां है? आटो से हम बरसते पानी में नीचे उतर गए। माधुरी होटल ढूंढने के दौरान दूसरी होटल नजर आ गई,जो शुध्द शाकाहारी भोजन वाला होटल था। यहीं भोजन करने पंहुच गए। भोजन किया। बिल आया,तो पता चला कि यह बहुत महंगा होटल था। तीन लोगों के भोजन का बिल 680 रु.बना था। खैर भोजन किया। इस दौरान  बारिश भी बन्द हो गई। एक आटो पकड कर सर्किट हाउस लौटे।
यहां शाम छ: बजते बजते पूरा अंधेरा हो जाता है और नौ साढे नौ तक तो सबकुछ बन्द हो जाता है। सवा नौ तक तो हम भोजन करके सर्किट हाउस आ चुके थे।
भोजन हो चुका है। इस वक्त रात के नौ पैंतालिस हुए है। रतलाम में होते तो यह समय धमाल मस्ती का होता। लेकिन यहां तो अब आंखों पर नींद का हमला हो चुका है। सुबह आठ बजे तीन दिन की यात्रा पर निकलने की योजना है। इस यात्रा में हम परशुराम कुण्ड,तेजू और रोइंग आदि स्थानों पर जाएंगे।
सुबह आठ बजे निकलना है। अब नीन्द आ रही है। दशरथ जी तो सो भी चुके हैं।

10 जनवरी 2016 रविवार (सुबह 6.30/7.45)
डिब्रूगढ सर्किट हाउस
आज सुबह की शुरुआत बेहद अच्छी रही। छ: बजे उठकर आज सूर्यनमस्कार भी हो गए। कल ही हमने परशुराम कुण्ड जाने के लिए वाहन इण्डिगो तय कर लिया था। ड्राइवर से सुबह आठ पर चलने की बात ती। हम तैयार हो चुके है। दशरथ जी स्नान कर रहे हैं। ड्राइवर आ चुका है।
आज हम यहां से परशुराम कुण्ड होकर तेजू पंहुचेंगे। वहीं रात्रि विश्राम करेंगे। कल तेजू से रोइंग जाएंगे। परसों रोइंग से निकलकर वापस डिब्रूगढ आएंगे। अब निकलने की तैयारी।
10 जनवरी 2016 रविवार (रात 9.15)
होटल ताबूका तेजू
अरुणाचल के सीमान्त कस्बे तेजू में ताबूका नाम के इस होटल में हम आज का रैन बसेरा कर रहे हैं। रात के सवा नौ बजे है और सोने की तैयारी है।
आज सुबह सवा आठ पर डिब्रूगढ के सर्किट हाउस से निकल पडे थे। मेरी स्लीपर वहीं छूट गई है। इसका पता मुझे यहां आकर लगा। ड्राइवर नाजिर हुसैन साढे सात पर आ गया था।  हम लोग निकले,गाडी में तय हुआ कि नाश्ता एक घण्टे बाद करेंगे। एक घण्टे में हम तिनसुकिया पंहुच गए। पूरे रास्ते में सड़क और  रेलवे लाइन साथ साथ चलते रहे। तिनसुकिया के एक रेस्टोरेन्ट में ड्राइवर ने गाडी रोकी,जहां हमने मैदे के पराठे और सब्जी का नाश्ता किया। मैने कल सोचा था कि अब मैदे की रोटी नहीं खाउंगा,लेकिन भूख इतनी जोर की लगी थी कि नाश्ता कर ही लिया।
यहां से आगे बढे। अरुणाचल की सीमा पर बडी आसानी से तीस रु.में तीन लोगों की एन्ट्री की रसीद बन गई। हमारा लक्ष्य था परशुराम कुण्ड। कहते कि पिता जमदग्रि की आज्ञा से परशुराम ने माता रेणुका का सिर अपने परशु से काट दिया था। मातृ हत्या के पाप का प्रायश्चित्त करने के लिए परशुराम ने यहीं स्नान किया था। गंगा में स्नान करना और इस कुण्ड में डुबकी लगाना एक समान है।
परशुराम कुण्ड पर हर मकर संक्रान्ति पर मेला भरता है। मेले में अभी कुछ दिन बाकी है।यह कुण्ड,कुण्ड नहीं है,बल्कि नदी में एक स्थान है,जिसे परशुराम कुण्ड कहा जाता है। काफी कठिन चढाई और उतराई के बाद इस कुण्ड पर पंहुचा। इस पानी का आचमन किया,मुंह धोया। स्नान नहीं किया। यहां ठण्ड बहुत थी। यहां फोटो लिए और फिर खडी चढाई चढ कर बाहर निकले।
यहां से करीब तीन तीस पर रवाना हुए। आगे पहाड की पूरी ऊं चाई पर चढ कर नीचे उतरे और करीब साढे पांच बजे तेजू पंहुच गए। यहां पंाच बजे सूरज डूब जाता है और अंधेरा छा जाता है। तेजू में पहले सर्किट हाउस पंहुचे,लेकिन सर्किट हाउस पूरा भरा हुआ था। फिर इस होटल में रुम लिया। पौने नौ बजे भोजन किया। हिमांशु और दशरथ जी अलग रुम में है।
इस होटल में विष्णुदास मैनेजर है। होटल अभी,कुछ दिन पहले ही शुरु हुआ है। मैनेजर विष्णु अभी हाल ही में यहां आया है। वह कई बडे होटल्स में काम कर चुका है,लेकिन चूंकि यहां का रहवासी है,इसलिए यहां नौकरी कर रहा है। मैने उसे बताया  कि यदि वह चाहे तो बडी आसानी से पर्यटन का बडा व्यवसाय जमा सकता है। वह उत्साहित हुआ और मुझसे और जानकारियां लेना चाहता है।
 तेजू एक छोटा सा कस्बा है। 3-4 होटल है,जहां अच्छी सुविधाएं नहीं है। पर्यटन विकसित करने के लिए सुविधाएं जरुरी है। इस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए तो इन्हे अच्छे पर्यटक स्थलों के रुप  में विकसित किया जा सकता है।
कल हमें यहां से रोइंग जाना है। रात्रि विश्राम रोइंग में ही करेंगे।
11 जनवरी 2016 सोमवार (रात 8.45)
होटल मी मु-रोइंग (अरुणाचल)
रात पौने नौ बजे अरुणाचल के इस अंतिम कोने रोइंग में सोने का समय हो चुका है। बेहद घटिया और हद से ज्यादा महंगे इस होटल में अब सोने से पहले डायरी लिख रहा हूं।
आज सुबह तेजू से ठीक साढे सात पर निकल गए थे। एक मुस्लिम होटल में चाउमीन का नाश्ता करके आगे बढे।
आठ बजे हम लोग तेजू से निकले। हमें रोइंग आकर आगे जाना था। हम लोग साढे नौ पर रोइंग पंहुच गए। रोइंग छोटा सा कस्बा है। यहां एटीएम से पैसे निकालने थे,लेकिन एटीएम बन्द थे। तेजू से यहं पंहुचने में तीन नदियों को पार किया। इन नदियों पर पुल बन रहे हैं लेकिन आधे अधूरे है।
रोइंग से 50-55 किमी दूर मायोडिया पास है। एटीएम बन्द थे इसलिए सीधे मायोडिया पास निकल गए। रोइंग तो जमीन पर है,यहां से आगे सीधे पहाड चालू हो जाता है। रास्ते की शुरुआत में नदी थी,जिसका पुल अभी बन रहा है। नदी के पत्थरों में से आगे निकले। गाडी में हर कोई सो रहा था। नदी पार करने के बाद
ऊं चे पहाड,घनघोर घना जंगल । सड़क पर आवाजाही सिर्फ नाम की। घने पहाडी जंगल में सोते जागते करीब डेढ बजे मायोडिया पास के क्षेत्र में आए। सड़क पर बर्फ जमी हुई थी। बर्फीले इलाके के फोटो लिए। मायोडिया पास के टाप पर शंकर जी का मन्दिर है। यहां फोटो खींचे। आगे बढे। एक घरेलू होटल में मेगी का नाश्ता किया। करीब तीन बजे वापस लौटे। अब सिर्फ ढलान थी। लेकिन यह ढलान पार करने में भी ढाई घण्टे लगे। करीब सवा पांच बजे रोइंग वापस लौटे। पूरे रास्ते में मोबाइल नेटवर्क नदारद था। यहां नेटवर्क में आए,तो पहले डीसी आफिस फोन किया। यहां से एडीसी का नम्बर मिला। यह महिला थी। उससे बात हुई,उसने सर्किट हाउस पर रुम भी बुक करवा दिया। हम सर्किट हाउस पंहुचे। अभी साढे छ: हो रहे थे। अंधेरा पूरी तरह कब्जा जमा चुका था। सर्किट हाउस में रुम बुक था,लेकिन वहां सिर्फ दो बेड थे। हम कुल चार थे। तीन हम,एक ड्राइवर। हमने तय किया,होटल जाना होगा। यहां रोइंग में तीन होटल है। इस होटल को देखने के बाद दो होटल और देखे। आखिरकार यहां 720 का एक डबल बैड के हिसाब से दो डबल बेड कमरे लिए। भोजन किया। होटल बेहद घटिया है और किराया बहुत ज्यादा। मजबूरी है,इसलिए यहां रुके। कल सुबह जल्दी यहां से डिब्रूगढ के लिए रवाना होंगे।

12 जनवरी 2016 मंगलवार (रात 8.50)
सर्किट हाउस डिब्रूगढ
आज की रात फिर डिब्रूगढ सर्किट हाउस में। कल रात हम रोइंग में थे। एक बेहद घटिया होटल मी मु में। डबल बेड का किराया 720 रु. था। कमरे में टीवी तो था,लेकिन हिलने डुलने तक की जगह नहीं थी।टायलेट थी,लेकिन सीटिंग वाली नहीं थी। बाथरुम में गीजर भी नहीं था। गर्म पानी की बाल्टी 50 रु. की थी। हमने रात में ही तय कर लिया था कि  बिना नहाए जाएंगे। हमने दो डबल बेड लिए थे। एक में हिमांशु और दशरथ जी सोये,दूसरे में मै और ड्राइवर। बिस्तर में कबल इतना घटिया था कि ठण्ड ही नहीं मिट रही थी।जैसे तैसे सुबह हुई। तय किया था कि सुबह सात बजे निकल जाएंगे। ठीक सवा सात बजे होटल से उतर गए। सामने के एक होटल में फ्राइड राइस खाए और आगे निकलने को तैयार हुए।
होटल से चलते वक्त मैने होटल का एक तौलिया बेग में रख लिया था। यह काम होटल के प्रति मेरी नाराजगी के चलते किया था। अभी हम नाश्ता ही कर रहे थे कि होटल वाले का फोन ड्राइवर के मोबाइल पर आया कि एक तौलिया मिल नहीं रहा है। उसने बात कर ली। अभी हम नाश्ता करके होटल के नीचे खडी कार के पास पंहुचे थे कि होटल का एक लडका आ गया कि आपका सामान देख लो,एक तौलिया नहीं मिल रहा है। अब बात तनाव वाली थी,मैं उस लडके के साथ उपर चढकर होटल के रिसेप्शन पर पंहुचा,होटल मालिक से मिलने। होटल मालिक वहां नहीं था,मैने उसे फोन किया और फोन पर बात करते हुए नीचे उतर आया।  गाडी स्टार्ट करवाई और हम रवाना हो गए। होटल मालिक कह रहा था कि एक बार आप अपना सामान चैक करवाइए,मैने कहा कि क्या हम चोर है? मैने तौलिये की कीमत पूछी तो उसने पूरी बेशर्मी से उस घटिया तौलिये की कीमत चार सौ रु. बताई। बहरहाल हम वह तौलिया साथ लिए डिब्रूगढ पंहुच गए।
 शुरुआती रास्ता बेहद कठिन था। रास्ता था ही नहीं। पूरा कच्चा रास्ता। हम करीब 9.45 पर हडियाघाट पंहुचे। सामने ब्रम्हपुत्र नद है। यहां से वाहन भी नाव में रख कर ले जाना पडता है। पुल बन रहा है,गत सात आठ सालों से,लेकिन अब तक बना नहीं है। नद को पार करना भी, न सिर्फ खर्चीला है,बल्कि समय भी खाता है।
हम हडियाघाट पंहुचे ही थे,कि एक बोट रवाना हो गई। अगली नाव ग्यारह बजे चलने वाली थी। अगला सवा घण्टा हमे सिर्फ इंतजार करना था। डेढ हजार रु.चुका कर हम नाव पर गाडी समेत सवार हुए। हडियाघाट पर हमने उबले चने खाए। ठीक ग्यारह बजे नाव चली तो करीब पचास मिनट बाद हम दूसरे किनारे ढोला घाट पर पंहुचे। फिर यहां से गाडी में सवार होकर चले। शुरुआती रास्ता फिर बेहद घटिया था। करीब पच्चीस किमी बाद स्टेट हाई वे आया। साथ में रेलवे लाइन चल रही थी।
एक कस्बे में मजेदार दृश्य था। रेलवे लाइन पर ही हाट चल रहा था। जब ट्रेन आती है,लोग पटरी से दूर हट जाते है। ट्रेन के गुजरते ही बाजार फिर से शुरु हो जाता है। बहरहाल फिर से तिनसुकिया होते हुए करीब तीन बजे हम डिब्रूगढ पंहुच गए। यहां आने से पहले ही सर्किट हाउस प्रभारी अक्षय शर्मा से बात हो गई थी। यहीं ठहरना तय था। डिब्रूगढ में घुसे तो चाय भी खरीदना थी। हमारा ड्राइवर चाय की दुकान पर ले गया,जहां एक दुकान पर भाव पूछकर हमने दूसरी दुकान से चाय ली। सभी ने करीब एक एक किलो चाय खरीदी।
शाम करीब चार बजे सर्किट हाउस पंहुचे। यहां पंहुचकर डिमापुर जाने के लिए ट्रेन के टिकट बुक करवाए। फिर सर्किट हाउस का नम्बर ढूंढ कर सर्किट हाउस भी बुक करवा लिया।
सर्किट हाउस पर प्रभारी अक्षय शर्मा भी आ गए थे। उनसे मुलाकात हुई। बुजुर्ग आदमी है,सज्जन व्यक्ति है। उनसे मुलाकात के बाद भोजन के लिए बाजार जाने को तैयार हुए। इससे पहले तौलिया व कपडे धोकर स्नान कर चुके थे।
शाम करीब सवा सात बजे यहां से बाहर निकले और आटो पकड कर मारवाडी पट्टी बाजार पंहुचे। दो दिन पहले जिस माधुरी होटल के संंचालक से मुलाकात हुई थी,वहीं भोजन करने पंहुचे। होटल संचालक तरुण शर्मा से मुलाकात हुई। भोजन अच्छा था,लेकिन महंगा था।
डिब्रूगढ का बाजार भी हमारे बाजारों जैसा ही है। चाट पकौडी की दुकाने हैं,लोग चाट खा रहे थे। बाजार में अच्छी खासी भीड थी। यहां ठण्ड नदारद है। भोजन करने के बाद आटो से सर्किट हाउस लौट आए। कल सुबह ट्रेन में रिजर्वेशन है। गडबड यह हुई कि जिस आसाम अवध ट्रेन का रिजर्वेशन करवाया है,वह न्यू तिनसुकिया से चलेगी,जबकि नेट पर ट्रेन हमने डिब्रूगढ से ढूंढी थी। टिकट बुक करवने के बाद पता चला कि ट्रेन न्यू तिनसुकिया से चलेगी। बहरहाल कल सुबह हम बस से न्यू तिनसुकिया जाएंगे,वहां से ट्रेन पकडेंगे।

13 जनवरी 2016 बुधवार (सुबह 8.50)
न्यू तिनसुकिया रेलवे स्टेशन
कल योजना बनाई थी कि चूंकि ट्रेन न्यू तिनसुकिया से पकडना है,डिब्रूगढ से जल्दी निकला जाए। ट्रेन 10.40 पर है। हम लोग सुबह 7.30 पर डिब्रूगढ सर्किट हाउस से स्नान आदि करके निकल गए। सर्किट हाउस से निकलते ही तिनसुकिया के लिए टाटा विंगर गाडी मिल गई। इस इलाके में मिनीबस के रुप में टाटा विंगर क ही प्रयोग होता है। इस गाडी ने 40-45 मिनट में न्यू तिनसुकिया रेलवे स्टेशन के सामने उतार दिया। यहां तक का किराया चालीस रु. प्रति व्यक्ति था। हमारे सामान की वजह से ड्राइवर छ: लोगों का किराया ले रहा था। थोडे विवाद के बाद उसने दो लोगों का अतिरिक्त किराया लिया। हम भीतर आए,तो आइआरटीसी का अच्छा रेस्टोरेन्ट नजर आया,जहां इस वक्त नाश्ता करने के बाद मैं डायरी लिख रहा हूं।
सुबह 10.00
ट्रेन का समय 10.40 है। हम न्यू तिनसुकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन क इंतजार कर रहे है। स्टेशन के बाहर रेलवे का हैरिटेज पार्क है,जिसमें उत्तर पूर्व रेलवे पुराने इंजन व स्टेशन आदि दर्शाए गए है। लेकिन यह तीन बजे खुलता है।
अब याद आ रहा है डिब्रूगढ। रेलवे का इस ओर का आखरी स्टेशन। पूरे आसाम में सर्वाधिक चाय का उत्पादन यहीं होता है। डिब्रूगढ से तिनसुकिया तक पूरे रास्ते में दोनो ओर चाय के बागान है। यह मौसम चाय का नहीं है। मार्च में चाय की नई कोंपले आती है,जिन्हे तोडकर सुखाया जाता है और फिर वह चाय पत्ती बनती है,जो हम पीते हैं। कल जब हम डिब्रूगढ में चाय खरीद रहे थे,चाय वाला बता रहा था कि हमारे इलाके में जो भी महंगी चाय मिलती है,वह भी आसाम में मिलने वाली
चाय से कमजोर होती है। मैने तो नहीं,बााकी दोनो साथियों ने चाय की दुकान पर हर तरह की चाय का स्वाद लिया था। खरीदी हुई चाय कैसी है इसका पता तो घर पंहुचकर ही चलेगा। वैसे डिब्रूगढ बडा शहर है और व्यापार व्यवसाय में हर जगह मारवाडियों का कब्जा है। असम में तो बाहर का व्यक्ति संपत्ति भी बना सकता है इसलिए यहां बडी तादाद में राजस्थान के लोग है। बाजार में पूरी मारवाडी पट्टी ही बसी हुई है। हमें उत्तर प्रदेश के लोग भी यहं धंधा करते हुए मिल गए।
 अब तक की यात्रा में रोइंग का अनुभव ही बुरा रहा है,जहां घटिया होटल में रात गुजारना पडी और फिर तौलिये का विवाद भी हुआ। पर्यटन उद्योग को लेकर यहां की सरकारें सक्रिय नहीं है। डिब्रूगढ से मायोडिया जाने के लिए वाहन बेहद महंगे है। तीन दिन में हमने मात्र करीब साढे पांच सौ किमी की यात्रा की। इसमें से पहाडी सड़क तो मात्र सौ किमी थी। रोइंग से मायोडिया और वापसी। मात्र इन तीन दिनों के लिए हमने वाहन के लिए ग्यारह हजार रु.का भुगतान किया। ड्राइवर का खाना और ठहरना भी हमारे जिम्मे था। जो कि करीब सात सौ रु.प्रतिदिन का पडा। इस तरह हमें मायोडिया जाने पर काफी खर्चा करना पडा। रोइंग जैसे कस्बे में अरुणाचल सरकार को पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाना चाहिए,जिससे कि बाहर के पर्यटक यहां आ सके। रोइंग कस्बे की हालत यह है कि यहां सिर्फ दो एटीएम है और सोमवार शाम को दोनो ही एटीएम पर तगडी भीड थी। आधे घण्टे कतार में लगने के बाद हम रुपए निकाल सके।
बहरहाल यात्रा अब आगे बढ रही है। शाम को चार बजे तक हम नागालैण्ड में होंगे। डिमापुर नागालैण्ड की व्यावसायिक राजधानी है। नागालैण्ड में देखते है कि क्या होता है?
13 जनवरी 2016 बुधवार (रात 9.45)
डिमापुर सर्किट हाउस डिमापुर (नगालैण्ड)
हम लोग नागालैण्ड में आ चुके हैं। नागालैण्ड की व्यावसायिक राजधानी डिमापुर के सर्किट हाउस में इस वक्त सोने की तैयारी है।
 हम करीब सवा चार बजे डिमापुर रेलवे स्टेशन पर उतरे थे। यहां के सर्किट हाउस की बुकींग कल ही डिब्रूगढ से कर ली थी,इसलिए स्टेशन से बाहर आते ही एक आटो पकड कर सीधे सर्किट हाउस आए। हमारा अंदाजा था कि यहां शाम पांच सवा पांच तक अंधेरा हो जाता है,इसलिए आते ही भोजन की पूछताछ की। पता चला कि शाकाहारी भोजन यहीं उपलब्ध हो जाएगा,इसलिए यहीं भोजन का आर्डर दिया। शाम को आठ बजे भोजन लगाने का निर्देश दिया। दशरथ जी और हिमांशु कमरे में सैटल हुए तब तक मैं नीचे उतरा और बाहर निकला। सामने ही डिमापुर की थोक सब्जी मण्डी नजर आई। सब्जी मण्डी में सब्जी कम और सूखी मछलियां ज्यादा बिक रही थी। अंधेरा होने लगा था इसलिए लोग अपनी दुकानें समेट रहे थे। नागालैण्ड पूर्णत: ड्राय स्टेट यानी शराब बन्दी वाला प्रदेश है। सर्किट हाउस के सामने ही खुले आम शराब बिक रही थी। सामने बनी दुकानों में खुलेआम बार चल रहे थे,जहं लडकियां शराब परोस रही थी।






ये दृश्य देखकर मैं कमरे पर लौटा। साढे पांच हुए थे। फ्रैश हुआ। फिर मै और दशरथ जी घूमने निकले। हिमंाशु ने बाहर निकलने से इंकार कर दिया। दशरथ जी ने बताया कि वह अब बोर होने लगा है। घर जाना चाहता है।
हम लोग सर्किट हाउस से निकले। सब्जी मण्डी देखते हुए अगले चौराहे तक गए। रास्ते के एक होटल में रुम तलाश किए। हजार रु.में डबलबेड रुम था। इस रुम में टीवी तो था,लेकिन बाथरुम में गीजर नहीं था। घूमते घूमते चौराहे तक पंहुचे। एक फेरी वाले से उबले चने लिए,खाए। वापस लौटे। कमरे तक आते आते पौने सात हो गई थी। दुकानें लगभग सभी बन्द हो गई थी,इक्का-दुक्का दुकाने खुली थी। सड़क पर आवाजाही कम हो चुकी थी। समझ में आया कि शाम आठ बजते बजते यहंा जिन्दगी थम जाती है। भोजन सर्किट हाउस में ही बन रहा था,इसलिए कोई चिन्ता नहीं थी। आठ बजे कर्मचारी ने आकर बताया कि भोजन तैयार है। हम फौरन भोजन करने पंहुचे। अब तक की पूरी यात्रा में पहली बार मैदे की बजाय आटे की रोटियङ्क्ष मिल गई। मैने तो जम कर खाई। साथियों ने भी भरपेट भोजन किया। भोजन के बाद मैने एक चक्कर बाहर का लगाया और अब कमरे में आ चुका हूं।अनोखी बात यह नजर आई कि डिमापुर सर्किट हाउस में सूचना लगी है कि साढे नौ बजे सर्किट हाउस बन्द कर दिया जाएगा। यह नई बात थी।क्योकि आमतौर पर सर्किट हाउस में आने जाने के समय पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। पर शायद यहां अंधेरा पांच  बजे ही हो जाता है,इसलिए सर्किट हाउस के दरवाजे भी साढे नौ पर बन्द कर दिए जाते है। बहरहाल हम लोगों ने भोजन किया और भोजन के बाद अब सिर्फ सोने की कोशिश। दशरथ जी तो गहरी नींद में सौ चुके है। हिमंाशु दूसरे कमरे में है। मैं भी अब सोने ही वाला हूं।
14 जनवरी 2016 गुरुवार (सुबह 7.30)
डिमापुर सर्किट हाउस
सुबह इस वक्त स्नानादि से निवृत्त होकर अब नाश्ते का इंतजार कर रहे हैं। सर्किट हाउस में पुडी सब्जी का नाश्ता बन रहा है। नाश्ता करके निकलेंगे। आज हमें नागालैण्ड का इनर लाइन परमिट लेना है,जो कि बताया गया है कि डिस्ट्रीक्ट कोर्ट में बनता है। इसके साथ ही आज डिमापुर शहर घुमेंगे और यहां से कोहिमा जाने की योजना बनाएंगे। यहां से कोहिमा के लिए बस या टैक्सी आदि के बारे में जानकारी भी लेंगे।

दोपहर 4.20
सुबह आठ बजे सर्किट हाउस से पूडी सब्जी का नाश्ता करके पौने नौ बजे यहां से निकले। सबसे पहले आटो पकड कर दुर्गा मन्दिर पंहुचे,यहां दर्शन किए। दर्शन के बाद डिमापुर की सड़कों पर भटकते रहे। हिमांशु हैण्डीक्राफ्ट्स खरीदना चाहता था। बाजार में भटकते भटकते एक पुलिस कर्मी से पूछताछ की तो उसने बताया कि ऐसी वस्तुएं सुपर मार्केट में मिलती है। पता चला कि यह मार्केट वही है,जहां से हम निकले थे,यानी सर्किट हाउस के नजदीक।  बाजार अभी खुला नहीं था। साढे नौ हो रहे थे।
उसी आटो से डीसी आफिस के लिए चल पडे। डीसी आफिस स्टेशन की दूसरी ओर काफी दूर है। पौने दस,दस पर हम डीसी आफिस पंहुच गए। यहां अभी कोई नहीं आया था। आफिस के सामने ही एक वकील व नोटरी का बोर्ड नजर आ गया। एडवोकेट राज के सिंह। हम उनसे मिलने पंहुच गए। पन्द्रह मिनट तक परिचय के साथ अन्य बातें हुई। उनके साथ चाय पी। अब आफिस के कर्मचारी आने लगे थे। हांलाकि आइएलपी ब्रान्च में फिलहाल कोई नहीं आया था। तभी मैं डीसी के कक्ष की ओर गया। डीसी केसोन्यू योहमे अभी बस आए ही थे। मैने अपना कार्ड भेजा। उन्होने मिलने बुला लिया। वे 2007 बैच के युवा आईएएस आफिसर है। कोहिमा के ही है। हिन्दी अच्छी बोलते है। वे काफी मिलनसार थे।उनसे कई बातों पर चर्चा हुई। उनसे चर्चा के आधार पर खबर भी बन गई। यह खबर यहीं से इ खबरटुडे पर अपलोड भी कर दी। अब फिर सुपर मार्केट जा रहे हैं।

रात 9.30
डीसी श्री योम्हे से हुई मुलाकात से प्रसन्न होकर हम वापस स्टेशन की ओर लौटे। हमारा लक्ष्य था,कोहिमा जाने वाली गाडियों की तलाश। स्टेशन की डीसी आफिस वाली साईड में कुछ ट्रेवल एजेंसियों के आफिसों में गए। कुछ ने साफ इंकार कर दिया,कुछ ने ऐसे भाव बताए कि चक्कर आ गए। कोहिमा यहां से मात्र 75 किमी है। एक ने कहा कि यदि आप प्राइवेट गाडी बुक करेंगे तो चार हजार में छोडेेंगे। उधर से स्टेशन की दूसरी तरफ यानी सर्किट हाउस की तरफ आए। स्टेशन के ठीक बाहर प्रीपेड बूथ है। जहां से कोहिमा के लिए लगातार गाडियां चलती है। प्रति व्यक्ति मात्र 220 रु. और यदि छोटी गाडी पूरी बुक करेंगे तो डेढ हजार रु.।
जब स्टेशन के दूसरी ओर गाडियां तलाश रहे थे,तभी वहां एक शुध्द शाकाहारी मारवाडी भोजनालय नजर आया था। तभी तय कर लिया था कि भोजन यहीं करेंगे।  इस तरफ टैक्सी के प्रीपेड बूथ पर भाव ताव समझ कर फिर से स्टेशन के दूसरी ओर गए। मारवाडी भोजनालय में भोजन किया। भोजन अच्छा थ। भोजन करने के बाद दशरथ जी और हिमांशु दोनो ने ही नींद निकालने का इरादा जाहिर किया। नतीजतन हम एक आटो पकड कर सर्किट हाउस लौट आए।
 मुझे यात्रा के दौरान दोपहर में कमरे में रहना या सोना कतई स्वीकार नहीं है। डीसी श्री योम्हे से हुई चर्चा के दौरान उन्होने सरकारी अस्पताल के कायाकल्प की कहानी सुनाई थी। मेरी इच्छा थी कि खबर लिखने से पहले मैं स्वयं अस्पताल देखकर आउं।  सर्किट हाउस पंहुचने पर जब दोनो साथी सोने की तैयारी में लगे तो मैं फिर बाहर निकला। पता चला कि सिविल हास्पिटल भी स्टेशन के नजदीक ही है। यानी वापस उधर ही जाना था,जहां से हम आए थे। मैं एक साइकिल रिक्शा पर सवार हुआ,फिर चौराहेसे पैदल चलकर सिविल हास्पिटल पंहुचा। वहां मैने फोटो लिए। इस वक्त करीब 2.30 हो रहे थे। कमरे पर आकर मैने खबरें लिखी। खबर और फोटो अपलोड करते करते चार बज गए। सिविल हास्पिटल जाते वक्त रास्ते में सुपर मार्केट में कुछ दुकाने पारंपरिक वस्तुओं की नजर आई थी। हिमांशु सुबह से ऐसी वस्तुएं खरीदना चाह रहा था। उसे उठाकर मैने बताया कि वह चाहे तो चलकर इन वस्तुओं को देख सकता है। करीब साढे चार पर हम फिर कमरे से निकले,हांलाकि कोई वस्तु खरीदने लायक नहीं दिखी। करीब पौने छ: बजे कमरे में लौट आए।
सुबह डीसी से मुलाकात के वक्त मैने उनसे आग्रह किया था कि यदि वे कोहिमा में सर्किट हाउस में हमारे ठहरने का इंतजाम करवा देंगे तो बहुत अच्छा रहेगा। शाम को डीसी श्री योम्हे का मैसेज आ गया कि हमारे कमरे बुक हो चुके है। यह सन्देश बडा खुशी देने वाला था। नागालैण्ड में ऐसी मदद मिल जाने से अच्छा और क्या हो सकता है? अब अगले दो दिनों की कोई चिंता नहीं है। कल हम कोहिमा पंहुच जाऐंगे।
यह यात्रा पिछली कुछ यात्राओं से अधिक लम्बी है। मै और दशरथ जी तो उत्तर पूर्वी इलाके को देखने समझने की उत्सुकता को लेकर आए है। हमे तो पर्याप्त आनन्द आ रहा है,लेकिन हिमांशु के लिए यह अब जरुरत से ज्यादा लम्बी यात्रा हो चुकी है। उसे अब मजा कम आ रहा है। उसकी खीज नजर आने लगी है। वह बात बात में खीज उतारने के प्रयास कर रहा है।  कल रात को तो एक बार उसने यहीं से लौट जाने का इरादाा भी जाहिर किया था,लेकिन बाद में उसने यह इरादा छोड दिया। लेकिन उसकी झुंझलाहट बढती जा रही है। अगले चार पांच दिनों में यह और बढेगी। देखते है कि क्या होता है?
डिमापुर आकर एक तथ्य और समझ में आया। डिमापुर नागालैण्ड की व्यावसायिक राजधानी है। नागालैण्ड का नाम सुनकर अन्य क्षेत्रों के भारतीयों को एक अजीब सा डर महसूस होता है। नागालैण्ड को बडा विचित्र प्रदेश माना जाता है,जहां नागा लोग सांप और कुत्ते तक खा जाते है। रेलवे स्टेशन के इस ओर से उस ओर जाने के दौरान ये नजर भी आ गया। रेलवे पटरी पर  ही कुछ महिलाएं जिन्दा मछलियां बेच रही थी। वहीं एक महिला के पास कटा हुआ कुत्ता तक नजर आ गया। लेकिन जो तथ्य समझ में आया ,वह यह कि मारवाडी और बिहारी पूरे देश में एकता का एहसास करवाते है। आप चाहे शिलांग जाए या डिब्रूगढ या और आखिर में रोइंग चले जाए। मारवाडियों का बाजार में दखल देखने को मिलेगा। इसी तरह बिहारी आप को हर जगह मिलेंगे। वहां असम के डिब्रूगढ में बिहारी आटो चला रहे थे। यहां डिमापुर में भी,आटो चालकों में बिहारियों का बहुमत नजर आ रहा है। साइकिल रिक्शा भी बिहारी चला रहे है। मारवाडी तो है ही। बिहारी भी बडी तादाद में है। बिहारी और मारवाडी है इसलिए सब जगह हिन्दी भी छाई हुई है। हांलाकि पता चला है कि कोहिमा में हिन्दी नहीं चलती। वहां अंग्रेजी ही काम आएगी।

15 जनवरी 2016 मकर संक्रान्ति (सुबह 9.30०)
डिमापुर सर्किट हाउस
डिमापुर में हमारा आखरी दिन। सारा सामान लगभग पैक कर चुके है। नीचे सब्जी पराठे का नाश्ता तैयार हो चुका है।
डिमापुर में दो दिन गुजारना ज्यादा रोमांचक नहीं रहा। हांलाकि यहां के डीसी श्री योम्हे से मुलाकात रोचक रही,लेकिन उसके बाद सारा दिन बोरियत भरा रहा। यहंा करने को कुछ नहीं था। न हीं कुछ घूमने देखने की जगह है। यह बस नागालैण्ड की व्यावसायिक राजधानी और बडा शहर है। शहर में मात्र एक सिनेमाहाल है। यह पूरी तरह इसाई राज्य है। गनीमत है कि यहां डिमापुर में एक मंदिर भी है।
सर्किट हाउस काफी बडा है। सर्किट हाउस के ठीक सामने ऐतिहासिक महत्व क एक द्वार बना हुआ है,लेकिन यह किसने बनाया,कितनाा पुराना है,ऐसी कोई जानकारी यहां उपलब्ध नहीं है। सड़क के दूसरी ओर सब्जी मण्डी है। टीन के शेड बने हुए है। सामने की ओर तो फल और सब्जियां बिकती है,लेकिन पीछे मुर्गा,मांस,मछली आदि की दुकानें है। आज सुबह सर्किट हाउस से निकला तो साहस का काम करते हुए इस सब्जी मण्डी में घुस गया। हर ओर मांस और मुर्गे की बदबू फैली हुई थी। बडी मुश्किल से मैने इसे पार किया। मण्डी पर करने के बाद महज वक्त गुजारने के लिए एक साइकिल रिक्शा पर सवार होकर,फिर से स्टेशन की ओर जा पंहुचा। कुछ देर इधर उधर टहल कर एक रेस्टोरेन्ट में समोसा खाया और चाय पी।  फिर साइकिल रिक्शा से सर्किट हाउस आ गया। साढे नौ पर सब्जी पराठे का स्वादिष्ट नाश्ता तैयार था। यह एक तरह से भोजन ही था। नाश्ता करने के बाद चाय पी। अब एक घण्टे में यहंा से कोहिमा के लिए निकलेंगे।

15 जनवरी 2016 मकर संक्रांति (रात 9.15)
कोहिमा सर्किट हाउस
ठीक बारह घण्टे बाद डायरी के साथ। सुबह ग्यारह बजे हम रेलवे स्टेशन के सामने प्रीपेड  टैक्सी स्टैण्ड पर पंहुच गए। बाारह सौ रुपए में कोहिमा के लिए टैक्सी बुक कर ली। आल्टो 800 टैक्सी से डिमापुर से रवाना हुए। डिमापुर से 15-16 किमी बाद पहाड शुरु हो जाता है। कोहिमा करीब पांच साढे पांच हजार फीट की ऊं चाई पर स्थित है। यहां जबर्दस्त ठण्ड है। हम करीब डेढ बजे शहर में प्रविष्ट हुए। सर्किट हाउस खोजने में आधा घण्टा लगा। यहं पंहुचे। डीएम डिमापुर ने पहले ही बुकींग करवा दी थी। कमरे पर पंहुचे। चाय के साथ ब्रेड खाई  और करीब ढाई बजे मै और दशरथ जी शहर घूमने निकल पडे। हिमांशु आने को तैयार नहीं हुआ। कमरे से बाहर निकलते ही सर्किट हाउस के परिसर में ही एक लोकल टैक्सी मिल गई। टैक्सी वाले का नाम था इथो। इथो ने हमें कोहिमा टाउन के मुख्य बाजार में उतारा। यही सुपर बाजार भी है। मुख्यत: कपडों का बाजार है। टाउन के बाजार में हर ओर भटक लिए। फिर फूलबाडी के लिए पैदल चले। एकाध किमी दूर फूलबाडी  इलाका था। इससे पहले रास्ते में एनएससी नागालैण्ड स्टेट ट्रांसपोर्ट बस स्टैण्ड था। पता चला कि इम्फाल के लिए इकलौती बस सुबह साढे छ: पर है। फिर फूलबाडी पंहुचे। बाजार में घूमने के दौरान एक दुकानदार से बात की। उसने बताया कि यहां कोई समस्या या डर नहीं है। बिहार का व्यक्ति पिछले बीस सालों से यहीं व्यवसाय कर रहा है। साल में दो तीन बार बिहार भी जाता है।
बहरहाल,फूलबाडी से पूछताछ करते हुए एक सिटी बस में सवार हुए और बीएसई नामक स्थान पर पता चला कि इम्फाल की बस यहीं से जाती है। पूछताछ की तो पता चला कि इम्फाल कोई गाडी नहीं जाती। टाटा सूमो चलती है,जो माओ नामक गांव तक जाती है,जो करीब तीस किमी है। माओ से इम्फाल की बसें मिलेगी। हमने तय किया कि इस बारे में कल और तलाश करेंगे। बहरहाल 3.45 हो रहे थे। माहौल ऐसा था जैसे शाम हो गई हो। वैसे भी यहां पांच बजे अंधेरा शुरु हो जाता है और सवा पांच साढे पांच तक तो पूरा अंधेरा घिर आता है। बीएसई से एक टैक्सी की,जिसने सौ रुपए लेकर हमें सर्किट हाउस छोडा। डिनर का आर्डर हम पहले ही दे चुके थे। रोटी सब्जी,दाल और चावल का भोजन था। अंधेरा होने के साथ ठण्ड बढने लगी थी। हाथ पैर ठण्डे पडने लगे थे। आठ बजे डिनर का टाइम था। ठीक आठ बजे भोजन तैयार होने की खबरें आ गई। भोजन किया। ठण्ड अब बहुत बढ गई थी।
सर्किट हाउस का कमरा बेहद शानदार है। कमरे में कार्पेट बिछा है। टीवी है। सोफा है। रुम हीटर था,एक हम और ले आए। अब रात आराम से कटेगी। कल कोहिमा शहर घुमेंगे और इम्फाल जाने की व्यवस्था तलाशेंगे।
16 जनवरी 2016 शनिवार (शाम 5.20)
कोहिमा सर्किट हाउस
कल सर्किट हाउस से जिस टैक्सी में निकले थे,इस ड्राइवर का नाम था इथो। 22-23 साल का लडका बातचीत में अच्छा लगा था। कल ही उसका नम्बर ले लिया था। आज कोहिमा घुमने के लिए उसे बुलाया। वह सुबह सवा आठ तक आया। हम लोग नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करके निकलते-निकलते करीब सवा नौ हो गए थे। सबसे पहले कोहिमा से करीब बीस किमी दूर एशिया का पहला ग्रीन विलेज कहलाने वाले खोनामा विलेज गए। यहां द्वितीय विश्व युध्द के समय नागा सेना का कैम्प था।  वहां कुछ सैनिकों के स्मारक थे। सामने एक चर्च में उनका धार्मिक सम्मेलन चल रहा था,इसलिए उन्होने हमें भीतर जाने से मना कर  दिया। कोई व्यक्ति युवा लडके लडकियों को नागामीस भाषा में प्रवचन दे रहा था। खोनामा विलेज का रास्ता बेहद खराब था। दोनो ओर घना जंगल।
यहां से लौटते लौटते साढे ग्यारह हो गए। पहले जाफू पीक पर जाने की योजना थी,लेकिन जाफू पीक को रद्द करते हुए हम पहले कोहिमा के चिडीयाघर (झू) में पंहुचे। झू का रास्ता भी कच्चा और बेहद खराब था। इस छोटे से झू में हार्नबिल,उल्लू,साही,हिरण आदि जीव जंतु है। करीब आधे घण्टे में यहां से निकले,तो रास्ते में नागालैण्ड के स्टेट म्यूजियम में पंहुचे। संग्रहालय में तल मंजिल पर नागाओं के फोटो लगाए गए हैं। संग्रहालय भी छोटा ही है। करीब चालीस मिनट में यहां से फ्री हो गए। अब करीब सवा एक बजा था। ड्राइवर इथो ने हमें कोहिमा के सरकारी बस स्टैण्ड पर छोड दिया। हमें यहां से इम्फाल जाने की व्यवस्था तलाश करना थी। कोहिमा से इम्फाल एकमात्र सरकारी बस चलती है,जो सुबह साढे सात बजे निकलती है,लेकिन यह रविवार को नहीं जाती। कल रविवार है। कल बस नहीं जाएगी। अभी हम हिम्मत नहीं हारे थे। आगे तलाश करने से पहले हम यहीं से नजदीक द्वितीय विश्व युध्द की वार सिमेट्री देखने पंहुचे। द्वितीय विश्व युध्द में जापान की फौज के साथ नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द सेना ने इम्फाल पर कब्जा कर लिया था और इम्फाल कोहिमा मार्ग को अवरुध्द कर दिया था। जापानी फौज और अंग्रेजी सेना में हुए युध्द में जापान की हार हुई थी। इस युध्द में मारे गए अंग्रेज सेना के सिपाहियों का यह स्मारक है। यहां हजारों सैनिकों के स्मृति चिन्ह बनाए गए है। बीचो बीच में एक बडा सा क्रास लगाया गया है। वार सिमेट्री देखकर निकले। हमारा अगला लक्ष्य था,इम्फाल जाने की व्यवस्था जुटाना। हम सिटी बस में सवार होकर बीओसी जंक्शन पंहुचे। यहां से थोडी ही आगे,माओ जाने वाली टैक्सियां यानी टाटा सूमो मिलती है। इस टैक्सी स्टैण्ड पर पूछताछ की,तो यहां भी यही जवाब मिला कि रविवार को गाडी नहीं जाती। सीधे इम्फाल के लिए वैसे भी टैक्सी नहीं मिलती। यहां से टाटा सूमो में माओ जाना पडता है। माओ यहां से पैंतीस किमी है और मणिपुर की सीमा पर है। वहां से मणिपुर की गाडियां इम्फाल जाती है। नागालैण्ड से मणिपुर के भीतर गाडियां नहीं जाती। बहरहाल,अब एक विचार यह आया कि जो जोनल टैक्सियां चलती हैं,उनसे पूछताछ की जाए। फिर से सिटी बस में सवार होकर वापस टाउन में आए। बस स्टैण्ड के पास ही टैक्सी स्टैण्ड है। कोई टैक्सी वाला राजी नहीं हुआ। अचानक एक लोकल टैक्सी वाला इम्फाल जाने को राजी हुआ,लेकिन उसने छ: हजार की मांग की। आखिर चार हजार में सौदा पटा। हांलाकि यह बहुत ही महंगा है,लेकिन यह सोचा कि कोहिमा रुकने की बजाय इम्फाल पंहुचकर घूमना ज्यादा ठीक रहेगा,भले ही तीन हजार रु.अधिक लग जाए। उस टैक्सी वाले से बात की,उसका नम्बर भी ले लिया। उसने कहा है कि वह सुबह आठ बजे आ जाएगा और हमें इम्फाल ले जाएगा। चूंकि लोकल परमिट की गाडियों को इम्फाल जाने की अनुमति नहीं होती,अब देखना है कि वह लडका लोकल टैक्सी लेकर मणिपुर कैसे जाएगा। कल सुबह यहां से निकलेंगे।
 इम्फाल से सर्किट हाउस की व्यवस्था नहीं जम पाई है। वहां अब होटल ही देखना है।

17 जनवरी 2016 रविवार (रात 9.00)
होटल ताम्फा,इम्फाल (मणिपुर)
सुबह 8.35 पर कोहिमा सर्किट हाउस से निकल गए। रात को इस उहापोह में थे कि इम्फाल जा पाएंगे या नहीं? लेकिन सुबह आठ बजे टैक्सी ड्राइवर को फोन लगाया,वह फौरन सर्किट हाउस आ गया। सर्किट हाउस में पूडी सब्जी का भोजन जैसा नाश्ता किया और निकल पडे। 8.35 पर चले। एक घण्टे में माओ पंहुच गए। माओ से निकलने के कुछ ही देर बाद हम मणिपुर राज्य में प्रवेश कर गए। पूरे रास्ते भर सेना के जवान हाइ-वे पर लगे हुए थे। करीब एक बजे हमने इम्फाल को छू लिया। रास्ते में एक जगह एटीएम से रुपए निकाले। इम्फाल में घूसे तभी पुलिस वालों ने गाडी रोकी और ड्राइवर से पांच सौ रुपए झटक लिए। टैक्सी वाले ने वहां से करीब पांच सात किमी आगे आकर हमें उतार दिया। वहां से एक आटो पकड कर चले। होटल ढूंढना शुरु किए और यहां एओसी पाइंट पर होटल ताम्फा में कमरा ठीक किया।
यहां करीब आधे घण्टे रुक कर बाजार के लिए निकले। यहां मुख्य बाजार थांगल बाजार है। आटो पकड कर पंहुचे। पूरा बाजार महिलाएं चला रही है। भूकंप ने कई बाजार तोड दिए है,महिलाएं सड़क पर दुकानें लगा कर बैठी है। ज्यादातर कपडों की दुकानें है। यहां सड़क पर मछलिया बेची जा रही है। करीब एक घण्टे तक बाजार में इधर उधर घूमे। सामने ही इम्फाल का स्टेडियम है,जहां महिलाओं का पोलो टूर्नामेन्ट चल रहा था।थोडी देर पोलो का खेल देखा। फिर पता चला कि स्टेट म्यूजियम स्टेडियम के पीछे ही है। पैदल ही स्टेट म्यूजियम पंहुचे। टिकट लिए। म्यूजियम मैने तो पूरे इतमिनान से देखा। दशरथ जी और हिमांशु मुझसे आधे घण्टे पहले बाहर आ गए थे। मैं जब बाहर निकला,हिमांशु नाराज नजर आया। बाहर निकले तो मैने और दशरथ जी ने पानी पताशे खाए। यहां पानी पताशों का अंदाज अलग है। प्लेट में पताशे दिए जाते है। पताशे में गर्म छोले और पानी डाले जाते है। स्वादिष्ट थे,लेकिन कुछ अलग अंदाज के। यहां से निकले,किसी नई जगह जाने के लिए। गोविन्द जी मंदिर जाने के लिए आटो ले रहे थे कि तभी हिमांशु ने कहा कि वह होटल जाएगा। वह होटल चला गया। हम आटो पकड कर गोविन्द जी मन्दिर पंहुचे। वहां से लौटे। शाम साढे चार होते होते ठण्ड बढ गई थी। हम करीब पांच बजे होटल वापस लौटे। होटल आए। भोजन का आर्डर दिया। कल की यात्रा के बारे में पूछताछ की। आठ बजे भोजन किया। अब टीवी पर फिल्म देखते हुए सोने की तैयारी है।

रात 10.15
मणिपुर में आकर नागालैण्ड और मणिपुर का अंतर समझ में आ रहा है।वहां नागालैण्ड में जितनी भी महिलाएं नजर आती थी,सभी जीन्स टीशर्ट,लांग बूट और खुले बालों वाली। नब्बे-पच्चानवे प्रतिशत लडकियां महिलाएं लिपस्टिक लगाए हुई। रंग गोरा। लेकिन दूर से सुन्दर दिखती ये लडकियां नजदीक से सुन्दर नहीं दिखती। लेकिन यहां मणिपुर में अधिकांश महिलाएं,लडकियां,पारंपरिक परिधान में है। यहां बडी संख्या हिन्दू महिलाओं की है। यहां महिलाएं तिलक लगाती है। माथे से लेकर नाक तक। पूरे डिजाइनर तिलक। रंग यहां भी गोरा है। सुन्दरता नागालैण्ड से अधिक है। बहरहाल यहां आकर कुछ अपनापन लगा। बाजार में मछलियां तो बेची जा रही है,लेकिन मेंढक और कुत्ते नहीं है। यहां महौल बदला बदला है। अशांति के चलते पूरे बाजार में चप्पे चप्पे पर सीआरपी के हथियारधारी जवान नजर आते है। अच्छी बात यह है कि डिमापुर के बाद कोहिमा  और यहां इम्फाल में हिन्दी से बिन्दास काम चल जाता है। हिन्दी लोग कम समझते है,लेकिन कामचलाउ हिन्दी सभी को आती है। यहां आकर समझ में आया कि भारत के हर कोने तक हिन्दी का असर है। हिन्दी सब जगह चलती है।

18 जनवरी 2016 सोमवार (शाम 6.45)
होटल ताम्फा इम्फाल
आज सुबह करीब साढे तक नहा धोकर होटल से निकले। कल जब इम्फाल में आए और जिस आटो से यहां पंहुचे थे,उसका नम्बर ले लिया था,उसने कहा था कि वह हमे पूरा इम्फाल घूमा देगा। सुबह उसी को फोन किया। उसने एक दूसरे आटो वाले सुरेश को भेज दिया। बारह सौ रुपए में आटो तय हुआ। हमें खासतौर पर यहां से 40 किमी दूर मोइरांग और उससे करीब बीस किमी आगे लोकटाक लेक जाना था। मणिपुर में यही दो खास जगहें घूमने जैसी है। मोइरांग वह स्थान है,जहां द्वितीय विश्व युध्द के दौरान नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने सबसे पहले तिरंगा झण्डा फहराया था। यहां आईएनए का संग्रहालय भी है। लोकटाक लेक पूरे नार्थ ईस्ट में साफ पानी की सबसे बडी झील है,जिसमें कई टापू है,जिन पर लोग रहते है। यह बडी मनोरम झील है।
लेकिन जब सुबह पैपर पढ रहा था,तब पता चला कि मोइरांग में रैंज का नाम बदलने का विवाद चल रहा है और आन्दोलनकारियों ने अनिश्चितकालीन बंद की घोषणा कर रखी है। मोइरांग जाने वाले सारे रास्ते बंद है। सुबह मोइरांग पुलिस स्टेशन का नम्बर लेकर बात की तो वहां के अधिकारी ने बताया कि दोपहर बारह बजने तक बन्द समाप्त हो जाने की पूरी उम्मीद है। आप उसके बाद आईए। आटो वाले को बताया। उसने कहा कि ठीक है,हम वहां उसी वक्त के आसपास पंहुचेंगे।
हम होटल से चले। आटोवाला सबसे पहले झू ले गया। लेकिन यह सोमवार को बन्द रहता है। यहां से निकले तो करीब दस किमी दूर सिंगडा डेम देखने पंहुचे। इसी डेम से इम्फाल को पानी मिलता है। पहाड पर बना यह डेम देखा,फोटो लिए।  यहां से लौटे। करीब साढे दस बजे डेम से लौटे और मोइरांग के लिए चले। करीब सवा बारह बजे विष्णुपुर जिला मुख्यालय से करीब पांच किमी आगे पंहुचे और एक छोटे से कस्बे में रुके। यहां पता चला कि मोइरांग में आन्दोलन अभी जारी है। फिर से पुलिस अधिकारी को फोन किया,तो उसने कहा कि आन्दोलनकारियों से चर्चा जारी है। थोडी देर में नतीजा आ जाएगा। आटो चालक सुरेश को भूख लग रही थी। उसने कहा पहले भोजन कर लेते है,यदि तब तक रास्ता खुल गया तो फिर चल पडेंगे। उस कस्बे में तो हृोटल नहीं था। फिर लौटकर विष्णुपुर आए। यहां भी सारे होटल नानवेज थे। ड्राइवर तो मजे से खाने में लग गया। हम ने भोजन नहीं किया। विष्णुपुर को मणिपुर की एतिहासिक,सांस्कृतिक और धार्मिक राजधानी माना जाता है। यहां प्राचीन महत्व की कई सारी चीजे भी है,लेकिन यहां के लोगों को इसकी कोई जानकारी नहीं है।
मैने एक बार फिर मोइरांग फोन किया। लेकिन इस बार पुलिस अधिकारी ने कहा कि मामला अभी सुलझा नहीं है। रास्ता नहीं खुला है। अब मजबूरी थी,वापस लौटने की। लौटे और करीब ढाई बजे इम्फाल पंहुच गए। यहां भी सबकुछ ठीक नहीं था। थांगल बाजार में महिलाओं के जो बाजार भूकंप से नष्ट हो गए,उनके स्थान पर अस्थाई शेड बनाए जा रहे है। एक वर्ग इसके स्थान के खिलाफ है। बाजार की महिलाओं ने आज से बाजार बन्द की घोषणा कर दी है। यह भी अनिश्चितकालीन है।
बन्द के इस माहौल में हमें एक शुध्द शाकाहारी मारवाडी होटल मिल गया,जहां तीन बजे हम पंहुचे। भोजन मिला और बडा स्वादिष्ट भोजन था। डट के खाया। इतना खाया कि अब शाम को कोई भोजन करना नहीं चाहता। शाम चार बजे होटल लौट आए। अब कोई काम नहीं था। कांगला फोर्ट देखने की इच्छा थी,लेकिन उसका गेट दूर था। पांच बजे यहां भी अंधेरा हो जाता है। कमरे में आ गए। तभी से टीवी देख रहे है।
19 जनवरी 2016 मंगलवार (सुबह 8.35)
होटल ताम्फा,इम्फाल मणिपुर
यात्रा का आज अंतिम दिन। दोपहर को फ्लाईट है,जो शाम तक दिल्ली पंहुचाएगी और कल सुबह हम रतलाम में होंगे।
कल शाम को होटल में आने के बाद से अब तक कोई काम नहीं है। कल शाम से यहां का महिलाओं का बाजार इमा कैथल थांगल बाजार बन्द है। यह आज भी बन्द रहेगा। आज के अखबारों में खबर है कि कल पुलिस के साथ झडप में कई महिलाएं घायल हो गई,जिनमें से कुछ को अस्पताल भर्ती कराया गया है। बाजार बन्द होने से खरीददारी करने का भी अवसर नहीं बचा है।
रोज की आदत के मुताबिक आज भी सुबह छ: बजे नींद खुल गई। काफी देर तक करवटें बदलने के बाट उठा। धीरे धीरे सब करते हुए भी इस वक्त स्नान करके तैयार बैठा हूं। बैग पैक कर लिया है। अब सोच रहा हूं कि समय का सदुपयोग करते हुए सामने कांगला फोर्ट देख आऊ ं।

दोपहर 12.15
हम होटल से चैक आउट कर रहे है। मैं सुबह करीब साढे पर एक साइकिल रिक्शा और आटो की मदद से कांगला फोर्ट के मुख्य द्वार पर पंहुचा। एक गेट तो यहां होटल के सामने वाले तिराहे पर ही है। लेकिन इधर से प्रवेश नहीं है।
कांगला फोर्ट सदियों तक मणिपुर घाटी का मुख्य केन्द्र रहा है।आजादी के बाद से असम राइफल्स द्वारा इसका उपयोग किया जा रहा था। बाद में इसे जनता को समर्पित कर दिया गया। अब यहां मणिपुर के इतिहास पर आधारित संग्रहालय बना दिया गया है।यह संग्रहालय साढे दस पर खुलने वाला है। अभी एक घण्टा बाकी था। मैं आगे बढा तो दाहिनी ओर बडा ही सुन्दर बगीचा नजर आया। फिर पता चला कि यह हैलीपैड है। इसके आगे चौराहे पर दाहीनी ओर पुराना कांगला फोर्ट है,जिसके बाहर दो विशालकाय हाथी बने है। इन्हे मणिपुर को सुरक्षित रखने वाले ड्रेगन माना जाता है। सामने ही पत्थर पर उत्कीर्ण कांगला फोर्ट का इतिहास है। बाई ओर थोडी आगे एक अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है,जो राधा कृष्ण का मन्दिर है,लेकिन देवी देवता का स्थानीय भाषा में नाम कुछ अटपटा है।  मङ्क्षन्दर में दर्शन कर निकला तो,मुख्य चौराहे से सीधा आगे बढा। आगे दाहीनी ओर एक महाराजा की समाधि है। उससे आगे एक सुन्दर गुलाब उद्यान है।

दोपहर 1.15 इम्फाल एयरपोर्ट
हम एयरपोर्ट पर आ चुके है,और बोर्डिंग पास भी ले चुके है। हमारी उडान ठीक दो घण्टे बाद है। चूंकि होटल में कोई काम नहीं था,इसलिए
सोचा था कि एयरपोर्ट ही चले जाए। कल जिस आटो वाले सुरेश के साथ घूमे थे,उसी को मोबाइल किया। वह आया और उसने यहां छोड दिया।
कांगला फोर्ट बहुत बडे इलाके में फैला है। गुलाब उद्यान देखकर मै लौटा। जहां दो बडे हाथी बने थे,उसके पीछे पुराना किला सा नजर आया। उसे देखा,फिर आगे बढा तो श्री गोविन्द जी मंदिर नजर आया। वहां ताला लगा हुआ था। गोविन्द जी मंदिर से लौटा। तब तक 10.25 हो रहे थे। संग्रहालय अभी खुला नहीं था। ठीक साढे दस पर एक व्यक्ति आया और उसने ताला खोला। यहां एक गैलेरी है,जसिमें मणिपुर के अब तक के तमाम राजाओं के चित्र और उनका वर्णन है। कई पुराने चित्र है। लंदन के अखबार में मणिपुर के बारे में छपी रिपोर्ट भी है। 1891 में मणिपुर ने अंग्रजों के साथ युध्द किया था,जिसमें मणिपुर की हार हुई और थांगल राजा को फांसी दे दी गई। बलिदानी राजा और उसके वीर सेनापति की याद में थांगल बाजार में शहीद मीनार बनाई गई है,जिसमें हमने पहले दिन देखा था। संग्रहालय देखने से यह भी पता चला कि 16 वी सदी में मणिपुर के राजा ने चीनी सेना को शिकस्त दी थी और इसी वजह से उसे चीन विजेता की उपाधि दी गई थी। मणिपुर चौदहवी सदी से हिन्दू राज्य है। यह भी यहीं आकर पता चला कि मणिपुर में हिन्दुओं की बहुलता है। इम्फाल में श्री गोविन्द जी के बडे मन्दिर है। भगवान विष्णु के नाम पर विष्णुपुर जिला है।
उत्तर पूर्व की इस तीसरी यात्रा के बाद अब मै यह कहने में सक्षम हूं कि यह क्षेत्र भी देश के बाकी क्षेत्रों जैसा ही है। हमारे इलाके में जब भी उत्तर पूर्व की चर्चा सुनते है,हमे लगता है कि यह अति दुर्गम क्षेत्र है। पता नहीं यहां कैसे लोग होंगे? पंहुचेंगे कैसे,रह पाएंगे भी या नहीं? घूमना खाना हो सकेगा या नहीं। लेकिन यहां पर्याफ्त समय गुजारने के बाद समझ में आया कि जिस तरह इस क्षेत्र के बारे में नकारात्मक प्रचार किया गया है,वैसा यह है नहीं। हो सकता है डेढ दो दशक पहले ऐसा रहा हो,लेकिन अब सबकुछ बदल गया है।
रतलाम से चलते वक्त नागालैण्ड और मणिपुर को लेकर मुझे बडी उत्सुकता थी,क्या होगा,कैसा होगा? लेकिन जब डिमापुर पंहुचे तो लगा चेहरे मोहरे,वेशभूषा और खान पान में कुछ अन्तर है,लेकिन फिर भी यह भारत ही है। सड़कों पर मेंढक,मछलिया यहां तक कि कटे हुए कुत्ते भी बेचे जा रहे थे,लेकिन हिन्दी पर्याप्त बोली जा रही थी। लोगो का रवैया बडा ही सहयोगात्मक है। आप कहीं का पता पूछिए तो दुकान से उतरकर समझाने आ जाएंगे। हमारे जैसे नहीं कि अनसुनी कर दें।
डिमापुर के डीसी श्री योहमे से मुलाकात ने भी कई सारी चीजें स्पष्ट कर दी। कोहिमा को लेकर कुछ धुकधुकी थी। यहां निश्चित तौर पर चीजें बदली हुई थी,लेकिन बाजार में बिहारियों और अन्य हिन्दी भाषियों की बडी तादाद देखकर सुकून मिलता है। यहां शुध्द शाकाहारी होटल एक भी नहीं है। यह एक बडी समस्या है,लेकिन यहंा के नागा लोग भी बडा ही सहयोगात्मक रवैया रखते है और इमानदार है।
 मणिपुर तो कई सदियों से हिन्दू राज्य है। इसलिए यहां कोई बडी समस्या नहीं है। शुध्द शाकाहारियों के लिए जरुर यहां समस्या है। हिन्दी भी लोग टूटी फूटी बोलते है। लहजा अलग है,लेकिन काम चल जाता है।
बहरहाल अब इस क्षेत्र में मिजोरम और त्रिपुरा बाकी है। देखते है कि कब योग बनता है।

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