Wednesday, January 11, 2017

Kailash Mansarovar Yatra -3 कैलाश मानसरोवर यात्रा- 3 (23 अगस्त-26 अगस्त 2016)

23 अगस्त 2016 मंगलवार

केएमवीएम बुधी / रात 9.15


आज के दिन का समापन बेहद शानदार रहा। हमारे ग्रुप के एलओ संजय गुंजियाल जी ने आज हमें बडा सम्मान दिया। उन्होने अगले वर्ष बद्रीनाथ के उपर स्वर्ग आरोहिणी की ट्रैकिंग के लिए आमंत्रित भी किया। यह बडा आनन्ददायी समापन था।
सुबह की शुरुआत 3.20 पर जागरण से हुई थी। बताया गया था कि हमें 21 किमी पैदल चलना है। लेकिन यह ट्रैक वास्तव में 18 किमी का था। यह भी बताया गया था कि 4444 सीढियां उतरना है।

सुबह ठीक 5.15 पर मैं और आशुतोष यात्रा पर रवाना हुए। हमारे गाइड पोर्टर प्रतीक ने रात को कहा था कि वह करीब डेढ किमी आगे रुका है। उसने कहा था कि मैं बैग लेकर वहां तक पंहुच जाउं। शेष सारे पोर्टर कैम्प पर आ गए थे,लेकिन प्रतीक रुका हुआ था। शुरुआती डेढ किमी तो मैं बैग और कैमरा लेकर चला। कोई दिक्कत नहीं आई। डेढ किमी के बाद प्रतीक मिला। उसने बैग सम्हाल लिया।
ट्रैकिंग के शुरुआती दौर में पहला गांव पदरमा था व दूसरा समरी। गाला से एक डेढ किमी आगे ही वह ढलान शुरु हो गई,जिसे 4444 सीढियां बताया जा रहा था। यहां सीढियां बनी तो थी,लेकिन कहीं कहीं। यह तीखी ढलान करीब पांच किमी की थी। पूरे रास्ते में पत्थर डाले गए थे। सीढियां भी अनियमित थी। इन पत्थरों पर चलते चलते जूते पहने होने के बावजूद ऐसा लगने लगा था,जैसे पांव में कुछ ना पहने हो। लगातार ढलान,नुकीले पत्थरों पर पैर टिका टिका कर करीब तीन घण्टे तक लगातार उतरते रहे। नीचे हमारे दाई ओर काली नदी प्रचण्ड वेग से बह रही थी। हमें वहीं तक नीचे उतरना था। ढलान खत्म ही नहीं हो रही थी। करीब तीन घण्टे बाद सुबह करीब ८.४० पर खानडेरा नामक स्थान पर हमने पुडी सब्जी का गर्मागर्म नाश्ता किया। अभी ढलान खत्म नहीं हुई थी। करीब चार-पांच किमी की लगातार ढलान के बाद रास्ता उंचा नीचा हो गया। थोडी देर उपर चढो,फिर ढलान आ जाती। दोपहर करीब 11.40 पर हम मालपा पंहुच गए। यहां भी गर्मागर्म पुडी सब्जी का भोजन था। जब मैं मालपा पंहुचा,आशुतोष मुझे इंतजार करता मिला।  मालपा में 1998 में हुए लैण्ड स्लाइड में कई कैलाश यात्री व पौनी पोर्टर वालों की मृत्यु हो गई थी। जिस स्थान पर यह हादसा हुआ वहां इसे चिन्हित किया गया है और मालपा के शहीदों की जानकारी दी गई है।
मालपा गाला से 9 किमी की दूरी पर है। यानी कि बिलकुल सेन्टर। यहां से अभी नौ किमी और जाना है। मालपा से करीब बारह बजे आगे बढा। ये कहा गया था कि अब आगे रास्ता आसान है,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ढलान पहले जैसी लम्बी नहीं थी,ना ही चढाई भी पहले जैसी थी,लेकिन पत्थरों ये पूरा पथरीला रास्ता था,जिसपर चलना बेहद कठिन था।
बहरहाल,मालपा में भोजन करने के बाद मै आगे बढा। मालपा से पहले तक पैरों की हालत खराब हो चुकी थी। भोजन के दौरान जूते मोजे खोलकर पैरों को थोडा आजाद किया। फिर पैर चलने लायक हो गए। यहां से आगे बढा।
आगे का पूरा रास्ता बेहद रोमांचक और खतरनाक था। मेरी दाई ओर काली नदी प्रचण्ड वेग से बह रही थी।  काली नदी की लहरों का शोर इतना तेज है कि आपस में बात करने के लिए भी चिल्लाना पडता है। रास्ता कहीं कहीं बेहद संकरा है। डेढ से दो फीट की चौडाई का फिसलन भरा रास्ता है। तनिक सा पैर फिसला कि व्यक्ति नीचे बह रही काली नदी की लहरों में समा सकता है। बचाव का कोई साधन ही नहीं।
इतना ही नहीं दाई ओर प्रचण्ड वेग से बहती काली नदी और बाई ओर पहाड में से तेज गति से गिरते झरने। इन झरनों के कारण पूरे मार्ग पर बारिश जैसा माहौल। नीचे रास्ते में जबर्दस्त फिसलन और कीचड। काफी देर तक यही दृश्य चलता रहा। इस खतरनाक रास्ते से बचकर आगे बढे तो दोपहर करीब एक बजे प्रकृति के सौन्दर्य का अद्भूत नजारा देखने को मिला। मेरी दाई ओर तो नदी बह ही रही थी। बाई ओर पहाड पर से एक अत्यन्त सुन्दर और अद्भूत झरना नीचे गिर रहा था। झरने के कारण पानी के बादल बन कर उडते हुए नजर आ रहे थे। झरने के नजदीक हलकी फुहारें बारिश का एहसास करा रही थी। इस झरने का नाम पेलेसिती झरना था। इस दृश्य को कैमरे में कैद किया। यहां से आगे बढे।
मालपा से करीब पांच किमी आगे लामारी गांव था। लामारी से बुधी 4 किमी दूर है। मालपा में भोजन के बाद जब चले थे,तो आशुतोष मेरे से आगे चल रहा था। लेकिन मैने उसे पीछे करते हुए आगे बढना शुरु किया। कुछ आगे जाने पर फिर एक गजब का झरना दिखाई दिया। यह झरना भी अद्भुत दृश्यावली उत्पन्न कर रहा था।

24 अगस्त 2016 बुधवार

केएमवीएन बुधी/ सुबह 5.30


कल रात को थकान बहुत ज्यादा हो गई थी। इसलिए जल्दी नींद आ गई। नींद के असर में  कल डायरी भी नहीं लिख पाया।
लामारी से पहले करीब एक बजे मुझे फिर से प्रकृति का अद्भुत नजारा थकती झरने के रुप में नजर आया।  इस झरने ने भी मन मोह लिया। इसका विडीयो बनाकर मैं आगे बढा।  करीब दो बजे मैने लामारी गांव को टच किया। लामारी के बाहर ही आईटीबीपी की ओर से गर्मागर्म चाय की व्यवस्था थी। यहां पानी और चाय पीकर आगे बढा। लामारी गांव से करीब एक किमी चलने पर गुम फू नामक स्थान पर दो लडके पहाडी धारा में नहा रहे थे। रास्ते के बाई ओर थोडी उंचाई पर पानी की धाराओं को पाइप के जरिये व्यवस्थित किया गया था। यहां  दो पाइप से पानी निकल रहा था।  सौरभ नाम का पोर्टर स्नान कर रहा था। उसने मुझे बताया कि ये गर्म पानी की धाराएं है। पानी को छूते ही मेरा भी मन स्नान का हो गया। मैने भी तुरंत कपडे उतारे और नहाने की तैयारी की। इसी समय मेरा गाइड प्रतीक भी बैग लेकर आ गया। गर्म पानी की धाराओं का आनन्द लेना शुरु ही किया था कि हल्की बूंदाबांदी शुरु हो गई। इसी समय आशुतोष भी वहां पंहुचा,लेकिन बूंदाबांदी की वजह से उसने स्नान नहीं किया। मैने भी फौरन कपडे पहने और फिर आगे बढ चला। गाला करीब साढे सात हजार फीट की उंचाई पर था,जबकि बुधी इससे आठ सौ फीट अधिक उंचा है। लामारी के बाद चढाई शुरु हो गई। एक एक कदम रखते रखते उस उंचाई को पार किया तो फिर ढलान आई। ढलान,काली नदी के पास जाकर खत्म हुई। अब नदी पार करना थी। पहली बार हमने काली नदी को पार किया। पुल पार करते ही फिर से खडी चढाई। रास्ता घुम गया था। नदी बाई तरफ होने की बजाय फिर से दाई तरफ ही चल रही थी। ठीक पौने चार बजे मैं बुधी के केएमवीएन टीआरएच पर पंहुचा। यह बहुत सुन्दर है। प्रवेश द्वार पर ही सुन्दर फूल लगे है। भीतर टीन के गोलाई वाले शेड है,जिनमें आठ आठ पलंग लगाए गए हैं। एक शेड में जाकर मैने सामान टिकाया। करीब बीस मिनट बाद आशुतोष भी आ गया।
अब बारी थी आराम की और पैरों पर मालिश की। कराबी आधे घण्टे तक पैरों की मरम्मत करते रहे। इसी समय हमारे एलओ आईजी गुंजियाल सा. आ गए। उनसे कई विषयों पर चर्चा होती रही। उनसे स्वर्गारोहिणी ट्रैकिंग की बात हुई तो उन्होने तुरंत सारे इंतजाम करवा देने का प्रस्ताव रखा। काफी देर तक चर्चा चलती रही। उन्होने यहां के विशीष्ट पेय चकती के बारे में बताया। यहां के ग्रामीण गेंहू से चकती बनाते है। हर शुभ अवसर पर चकती का उपयोग किया जाता है। शाम को फ्रैश होकर बाहर निकले तो गुंजियाल सा.स्वयं ही हमें लेकर गए,एक स्थानीय होटल में उन्होने चकती मंगवाई । हम लोगों ने चकती चखी। यह बडा आनन्ददायी अनुभव रहा। बडी बात यह भी थी कि यह सम्मान हमें स्वयं गुंजियाल साहब ने दिया था। आज तो उन्ही के गांव गुंजी पंहुचना है। आज केवल सात किमी का ट्रैक है। जिसमें तीन किमी उंचाई है। इस छोटे ट्रैक की वजह से आज निकलने का समय देरी का तय है। आज साढे सात पर निकलने का समय है। इसलिए पांच बजे उठा,फ्रैश हुआ। अब निकलने की तैयारी।

24 अगस्त 2016 बुधवार
केएमवीएन गुंजी (10500 फीट)/ रात 10.25


पहाडों में इस समय आधी रात हो जाती है। हमारे यात्रादल के सभी लोग गहरी नींद में है। मैं अभी अपने टेण्ट में पंहुचा हूं। आज की शाम बडी अद्भूत थी। दिन का वर्णन बाद में। पहले आज की शाम। आज की शाम आईजी गुंजियाल सा. की मौसी,मौसाजी और केएमवीएन के एमडी धीरजसिंह गर्भयान के साथ गुजरी। यहां पहाडों में खासतौर पर कुमाउं के लोगों में आपस में कोई हिचक झिझक नहीं है। शाम करीब सात बजे मैं और आशुतोष टेण्ट से निकले और एलओ साहब को ढूंढने लगे। वे अपने मौसाजी और मौसी के साथ बैठे थे। उनकी मौसी डाक्टर है और मौसाजी अमेरिका में सैटल है। मौसा जी 80 किमी की दूरी 11 घण्टे में पैदल चलने का रेकार्ड बना चुके है। हम वहां पंहुचे,सभी ने दिल खोल कर  न सिर्फ स्वागत किया बल्कि सम्मानित भी किया। थोडी ही देर में राजस्थान के आईपीएस हिंगलाज दान और उनके साथी लखन दान भी आ गए। आईजी सा.के साथी जगजीत व हमारा यात्रा साथी तनु मित्तल भी वहीं मौजूद थे। थोडी ही देर में केएमवीएन के एमडी धीरजसिंह जी और वहां के सिविल सर्जन सा. भी आ गए। करीब तीन घण्टे यह महफिल चली। केएमवीएन के एमडी सा.ने इस पूरे क्षेत्र की परंपराओं और संस्कृति पर पुस्तक लिखी है,वे इसके बारे में बताते रहे। मैने सुझाव दिया कि पोर्टर का नाम बदलकर गाइड कर दें। उन्होने इस सुझाव की सराहना की।
जो अद्भुत जानकारी मिली वह यह थी कि कुमाउं के गावों में हर दो साल में एजीएम होती है। आमतौर पर एजीएम बडी कारपोरेट कंपनियों में होती है। इधर कुमाउ क्षेत्र में एजीएम का मतलब उस क्षेत्र के सभी लोगों के मिलन समारोह के रुप में होता है। जिस गांव में एजीएम होती है वहां दुनियाभर में पंहुचे हुए लोग अपने सारे काम छोडकर पंहुचते है। कोई अमेरिका से कोई लन्दन से,सारी दुनिया में बसे हुए यहां के बाशिन्दे एजीएम में आते है। हर व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार इसमें आर्थिक सहयोग देता है। यह तीन दिन का उत्सव होता है,जिसमें पीना,खाना,नृत्य,खेल मनोरंजन सभी कुछ होता है। सबसे अद्भुत तथ्य यह है कि कुमाउं क्षेत्र का व्यक्ति चाहे जिस स्तर पर पंहुच चुका हो,वह एजीएम में आकर अपनी जडों से जुड जाता है। वह अपना सारा स्तर पद आदि भुलाकर अपने गांव अपने क्षेत्र का बन जाता है। हमारे इलाके में किसी समुदाय का व्यक्ति यदि किसी उंचे स्थान पर पंहुच जाता है तो अपने ही समुदाय से कटने लगता है,दूरी बनाने लगता है। लेकिन यहां स्थिति एन उलट है। ये लोग अपनी परंपरा,अपनी संस्कृति का पूरा सम्मान करते हैं। कई सारी जानकारियां और भी मिली। यह महफिल भोजन के साथ समाप्त हुई। नतीजा यह है कि अभी रात के ग्यारह बज चुके है।
आज की सुबह 7.10 पर बुधी से चले थे। गांव से निकलते ही तीन किमी की खडी चढाई थी। जो हमने तीन घण्टों में पूरी की। उपर छियालेख घाटी है। इसे फूलों की घाटी भी कहा जाता है।अद्भुत सौन्दर्य। वातावरण महका हुआ। फूल कई तरह के थे। यहीं सब्जी पुडी का नाश्ता किया। इसके बाद लगातार ढलान थी। बडा आसान रास्ता था। 4 किमी की ढलान के बाद एलओ साहब के प्रभाव से गर्भयान से गुंजी तक के ग्यारह किमी के लिए वाहन की व्यवस्था थी। वाहन दो थे। एक तो बन्द ट्रक था,जिसमें महिलाएं व बुजुर्ग रवाना किए गए। दूसरा वाहन खुला ट्रक था,जिसमें यात्री व पोर्टर चढे। यह काफी विकट यात्रा थी। खतरनाक उतराई और चढाई वाले इस रास्ते में खुले ट्रक में बिना किसी आधार के टिक कर जाना था। करीब चार किमी के बाद सीती नामक स्थान पर दोपहर का भोजन हुआ। सीती में भोजन के बाद फिर  से वाहन में सवार हुए। हम लोग दोपहर ढाई बजे गुंजी गांव पंहुचे। यह आदर्श गांव है और हमारे एलओ संजय गुंजियाल जी इसी गांव के हैं। यहां पंहुचते ही गांव के लोगों ने पारंपरिक परिधान में नृत्य के साथ हमारा स्वागत किया और सभी लोग नृत्य करते हुए पंचायत भवन तक पंहुचे। यहां स्वागत समारोह आयोजित था। जिसमें गढवाल के आयुक्त चन्द्र सिंह नपलचा विशेष रुप से मौजूद थे। ( श्री नपलचा,यहीं नजदीक स्थित नपलचा गांव के है।) स्वागत समारोह में ग्रामीण महिला पुरुषों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। लोकनृत्य भी किया। कुट्टु की रोटी और मिर्ची की चटनी का प्रसाद वितरित किया गया। कुट्टु का यहा ंरोटी बनाने में उपयोग होता है। हमारे क्षेत्रों में इसका उपयोग उपवास के समय किया जाता है। इस अद्भुत स्वागत समारोह के दौरान हमारे यात्रा दल की ओर से ग्यारह हजार रु.की राशि गांव को भेंट की गई। कार्यक्रम स्थल से हमारा कैम्प काफी दूर था। कैम्प तक पैदल आए। यहां आकर इस टेण्ट में सामान रखा। आज थकान भी कम थी। पैरों में दर्द भी नहीं था। फिर भी एक घण्टे अच्छी नींद निकाली। कल मेडीकल होना है। इसके अलावा कल आराम का दिन है। परसों यहां से नावीढांग के लिए निकलना है। अब सोने का समय। शुभरात्रि 11.20।

25 अगस्त 2016 गुरुवार (जन्माष्टमी)

केएमवीएन गुंजी / सुबह 9.30

आज का दिन गुंजी में आराम करने का दिन है। इसलिए यात्रादल के तमाम लोगों ने अपने कपडे आदि धोए। आराम से गरम पानी से स्नान किया। अभी दस बजे सभी का मेडीकल चैकअप होना है।
मेरी नींद सुबह तीन बजे खुली थी। फिर उंघते जागते सुबह सात बजे मैं उठा। शेविंग की। पोहे का नाश्ता किया। मैने भी अपनेे अण्डर वियर्स धोए। क्योंकि अब सीधे तकलाकोट (तिब्बत) में ही इसका मौका मिलेगा।
हमारे यात्रा दल में बडे अनोखे लोग है। मैनपुरी से एक आशुतोष मुकर्जी आए हैं। मुकर्जी बाबू सन्यासी जैसे है। एक डेढ घण्टे पूजा पाठ करते हैं। बडे ही कर्मकाण्डी हैं। अब तक तो धोती कुर्ता ही पहने हैं। आगे ठण्ड में शायद उनके कपडे बदलेंगे। बैंगलोर से तनु मित्तल है,जो कि व्यवसायी है। अगली फरवरी में उसका विवाह होने वाला है। लडकी जाट समाज की है और एमपी में देवास की है। मैने पूछा कि अंतरजातीय क्यों? उसका जवाब था,जाति से ज्यादा गुण जरुरी है। दिल्ली के बैंककर्मी अमित सिंघल है,जो दोबारा जा रहे हैं। उन्होने ही सबसे पहले व्हाट्सएप पर केएमव्हाय ग्रुप बनाया था। नासिक के पार्थसारथी जी आठवीं बार जा रहे हैं। उन्हे डिप्टी एलओ बनाया गया है। उनके पुत्र फणिराज भी हैं,जो सीए है। भुवनेश्वर के पांच लोग है। दु:खबन्धु जी है,जो दोबारा जा रहे हैं। उनके साथ तुषार रंजन परिदा और किशोर भोईदार सपत्नीक जा रहे है। चैन्ने से मुरुगा पूपति है। ये इंजीनियर है,ये भी दोबारा जा रहे है। नासिक से ही रतन भावसार जी है,जो बिजली विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर है। आजकल वकालात करते है। राजस्थान के आईपीएस हिंगलाज दान अपने साथी लखन दान के साथ है। आगरा से शिवप्रसाद पाण्डेय है। अलमोडा की कामिनी कश्यप जी है,जो वकील है और पिछले कई सालों से लगातार जा रही है। दिल्ली की मार्केटिंग स्पेशलिस्ट रुपा है,जो अकेली आई है और ज्यादातर पैदल ही चल रही है। बंगाल कोलकाता से एक उम्रदराज महिला रेखारानी पंहुची है,जो अकेली आई है। दिल्ली के एक और सज्जन कृष्णकांत शर्मा है। डॉक्टर कर्मबीर राणा भी दिल्ली से ही आए हैं। बैंककर्मी
धनंजय झा हैं।
मेडीकल के लिए बुलावा आ चुका है। केएमवीएन के प्रबन्धक गिरधर मण्डाल अभी सूचना दे गए हैं कि मेडीकल के लिए जाना है।

25 अगस्त 2016
दोपहर 1.30

आईटीबीपी का मेडीकल टेस्ट दस बजे शुरु हुआ,उसे खत्म होते होते सवा बारह बज गए। मेडीकल टेस्ट में पहले एक मशीन से पल्स रेट और रक्त में आक्सिजन के प्रतिशत को नापा गया। मेरा पल्स रेट 95 और आक्सिजन प्रतिशत भी 95 ही निकला। आशुतोष का पल्स रेट भी लगभग यही था और आक्सिजन प्रतिशत भी यही था। इसके बाद यात्रियों को उनके क्रम से बुलाया गया और दो डाक्टरों ने उनका बीपी चैक किया। क्रम में आशुतोष का पांचवा नम्बर था। पहले उसका चैकअप हुआ। उसका बीपी बढा हुआ था। उसका बीपी 160 आया। डाक्टर ने उसे चार बजे पुन: बुलाया। मेरा नम्बर आखरी से एक पहले यानी 37 वां था। मेरा बीपी 142 आया,सामान्य से दो बिन्दु बढा हुआ। डाक्टर ने पूछा नींद ठीक आ रही है,भूख अच्छी लग रही है। मैने कहा सबकुछ ठीक है। फिर मैने डाक्टर से कहा कि वह मेरी पल्स चैक करे। मुझे मशीन का रिजल्ट ठीक नहीं लग रहा। डाक्टर ने चैक किया और मुझे बताया कि मेरी पल्स 84 पर चल रही है। यानी मशीन गलत बता रही थी। डाक्टर ने मुझे फिट करार दे दिया। लेकिन टेस्ट से लौटने के बाद तनु मित्तल एक लिस्ट लेकर आया,जिसमें उन यात्रियों के नाम थे,जिन्हे दोबारा चैकअप के लिए बुलाया गया था। मैं आश्चर्यचकित रह गया,जब इस लिस्ट में मेरा नाम भी नजर आया।जिन्हे फिर से बुलाया गया था,उन्हे सलाह दी गई कि वे भोजन करके सो जाए और चार बजे उठकर चैकअप के लिए जाएं। पर्याप्त नींद होने से बीपी नार्मल आएगा। साढे बारह बजे लंच परोसा गया। भोजन लगते ही जम कर भोजन किया। अब कोई काम नहीं है। झपकी भी आ रही है।

25 अगस्त 2016
रात 9.35

शाम चार बजे फिर से मेडीकल के लिए बुलाया गया था। भोजन के बाद मैं एक डेढ घण्टे सोया। लेकिन तभी हमारा पोर्टर प्रतीक ,उसके दोस्त सौरभ,लोकेश,विक्रम आदि आ गए। ये सब पढने वाले लडके हैं। उनसे कई विषयों पर बातें होती रही। बातों ही बातों में चार बज गई। फिर पता चला कि मेडीकल पांच बजे होगा। आशुतोष फ्रैश होने चला गया। मैं भी फ्रैश हो आया। सवा पांच बजे मैं आईटीबीपी के कैम्प में पंहुचा। काफी इंतजार के बाद मेरा नम्बर आया। मुझसे पहले आशुतोष का बीपी चैक किया गया। सुबह उसका बीपी 170 था अब घट कर 150 पर आ चुका था। मेरा नम्बर  आया। सुबह मेरा बीपी 142 था,डाक्टर ने बताया कि अभी यह 150 हो चुका था। मैं फिर से हैरान था। डाक्टर ने कहा कि यह सामान्य है। आपने आराम नहीं किया,नींद नहीं ली। मैने कहा मैं पर्याप्त आराम कर चुका हूं। नींद भी ले चुका हूं। डाक्टर ने कहा नाभिढांग में फिर से चैक करेंगे।
मेडीकल से लौटे तो बैग पैक करने की चिन्ता में लगे। इसी समय एलओ साबह का सन्देश आ गया कि वे ब्रीफींग करेंगे। ब्रीफींग में बताया गया कि कल सुबह 7.30 बजे बस से कालापानी तक बस से जाना है,वहां से 9 किमी पैदल चलना है।
आज सुबह से मेरा दाहीना घुटना ज्यादा परेशान कर रहा है। इसे देखते हुए मैने लिपूलेख यात्रा के लिए 2 घोडे करने का तय कर लिया। यह भी तय किया कि लिपूलेख पैदल ही पार करेंगे,फिर भी अतिरिक्त सावधानी बतौर घोडे ले लिए।
आज जन्माष्टमी है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव। पिछले वर्ष इस दिन हम सपरिवार गंगौत्री पर थे,जहां हमने उत्सव मनाया था। आज यहां गुंजी में आईटीबीपी के परिसर में स्थित मन्दिर पर भजन कीर्तन का आयोजन रखा गया था। हमारे कई सारे यात्री वहां पंहुचे थे। हमने भी वहां पंहुच कर भजन कीर्तन का आनन्द लिया। फिर लौटे। अब सोने की तैयारी।
 कल,नाभीढांग पंहुचकर परसों लिपूलेख दर्रा पार करके तिब्बत सीमा में प्रवेश करना है। बैग पैक कर दिए है। ये हमें नाबीढांग में वापस मिलेंगे।

26 अगस्त 2016 शुक्रवार

केएमवीएन कैम्प कालापानी / सुबह 10.00

हमें गुंजी से नाभीढांग जाना था। यह करीब 18 किमी का ट्रेक है। अच्छी बात यह रही कि गुंजी से यहां कालापानी आने के लिए वाहनों की व्यवस्था कर दी गई थी।  दो वाहनों में सवार होकर हम करीब पौन घण्टे में कालापानी पंहुच गए। कालापानी काली नदी का उद्गम स्थल है।  यहीं कालीमाता का मन्दिर बना हुआ है। सामने काफी उंचाई पर एक गुफा नजर आती है। यह व्यास गुफा है। कहते हैं महामुनि वेदव्यास ने यहीं तपस्या की थी। इस पूरी घाटी को व्यास घाटी कहा जाता है। हांलाकि एक व्यास गुफा उधर गढवाल में बद्रीनाथ से आगे माणा गांव में है। उधर कहते है कि व्यास जी ने महाभारत की रचना वहीं बैठ कर की थी।
वाहनों का रास्ता बेहद उबड खाबड और उतार चढाव भरा था। हमारी दाई ओर काली नदी बह रही थी। हम गुंजी में करीब 10500 फीट की उचंाई पर थे। अब उंचाई बढती जा रही है। रास्ते में पैड पौधे कम होते जा रहे थे और बिना हरियाली वाले पत्थरों के पहाड प्रकट होते जा रहे थे।  यहां कालापानी में अब सिर्फ घांस नजर आ रही है। बडे पेड पौधे नदारद हो चुके है। आगे नाभीढांग पंहुचते पंहुचते ये घांस भी नदारद हो जाएगी। आज की रात हमें नाभीढांग से लिपूलेख पास के लिए निकलना है।

दोपहर 1.30/ केएमवीएन नाभीढांग
हमारे यात्रादल के एलओ श्री गुंजियाल साहब के प्रभाव के चलते कालापानी से नाभीढांग तक का 9 किमी का कठिन सफर भी वाहन से ही हो गया। हम लोग खुले ट्रक में सवार होकर अपने हाथों से शरीर का संतुलन बनाते हुए यहां पंहुचे। यहां 11.30 पर पंहुचे। कल एलओ साहब ने बताया था कि नाभीढांग में पंहुचने के बाद सभी को दो-तीन सौ फीट उपर जाकर एकाध घण्टा गुजारना चाहिए ताकि शरीर इस उंचाई का अभ्यस्त हो जाए। हम कैम्प में आते ही पीछे कुछ उंचाई पर बने मन्दिर पर पंहुचे। मन्दिर के पट अभी बन्द थे।  मन्दिर के पीछे एक दुर्घटनाग्रस्त हैलीकाफ्टर पडा है। उसे देखा। इसी कैम्प से ओम पर्वत का नजारा होता है,लेकिन आज मौसम सुबह से ठण्डा है। चारों ओर पहाडों के उपर बादलों का डेरा है। सूर्य देवता का कहीं अता पता नहीं है। यहां आते ही बर्फीली हवाओं का हमला भी झेला। सुबह जब निकले थे,तभी से टोपी लगाकर निकला था। यहां नाभीढांग में तो कडाके की ठण्ड,बर्फीली तेज हवाएं चल रही थी।मैने आज सिर्फ जर्किन पहनी है। सुबह जब लिपूलेख के लिए निकलेंगे तब भीतर अपर और लोअर दोनो इनर पहनकर निकलुंगा।
मन्दिर से उपर घूम कर नीचे आए। फिर जहां हमे ट्रक ने उतारा था,वहां पंहुचे। यहां कुछ दुकानें थी,जहां पोर्टर पोनी वाले रुकते हैं। इन्ही होटलों की तरफ पंहुचे। एलओ साहब वहीं मिल गए। उन्होने चकती लेने की सलाह दी। हमने भी चकती को चखा। फिर आकर भोजन किया। इसी दौरान रतलाम में वैदेही को फोन करके अपनी लोकेशन की जानकारी भी दे दी।
अब रात दो बजे लिपूलेख पास के लिए रवाना होना है। लिपू पास के दूसरी ओर चीनी अधिकारी प्रवेश की औपचारिकताएं पूरी करके तिब्बत में प्रवेश देंगे। फिर वहां से बस या कोई वाहन हमें तकलाकोट ले जाएगा। कल शाम तक हम तकलाकोट पंहुच जाएंगे।

शाम 4.30 नाबीढांग
भोजन के बाद दो बजे से साढे तीन तक डेढ घण्टे की अच्छी नींद निकाली। हमारे बैग्स आ चुके थे। बैग्स में से लिपूलेख की चढाई करने से सम्बन्धित करने से सम्बन्धित सामग्री बाहर निकाल ली। मैने जो सेना की डिजाईन वाला पेन्ट पहना था,वह भी निकालकर बैग में धर दिया और जीन्स पहन ली। हम हमारे बैग्स फिर से पैक कर चुके है। सामान सैट हो चुका है। अभी एलओ साहब ब्रीफींग के लिए बुला रहे है।

शाम 7.15 /नाबीडांग
शाम के मात्र सवा सात बजे है। यात्रा दल के सभी लोग भोजन कर चुके  है और अब सोने की तैयारी है। शाम को एलओ श्री गुंजियाल सा. ने ब्रीफींग में बताया था कि हमें रात दो बजे यहां से लिपूलेख पास के लिए रवाना होना है। रात एक बजे केएमवीएन वाले चाय देंगे। 1.45 पर कार्नफ्लेक्स का हलका नाश्ता दिया जाएगा। हम अपनी तैयारियां पूरी कर चुके है। सुबह पहनने के सारे कपडे तैयार है।
अभी टेण्ट के बाहर का मौसम बेहद खतरनाक हो चुका है। जो बादल दोपहर तक पहाडों के उपर डेरा जमाए हुए थे,वे अब हमारे कैम्प तक उतर चुके हैं। बाहर कडाके की ठण्ड है। हल्की फुहार सी भी चल रही है। मैने जूते उतार दिए हैं। मोजे पहनने के बावजूद पैर ठण्डे हो रहे हैं। शाम को ब्रीफींग के बाद से हम लोग करीब एक घण्टा इधर उधर घूमते रहे ताकि हमारा शरीर कम आक्सिजन के वातावरण में पर्याप्त अनुकूल हो सके।  कल तो और भी कम आक्सिजन के वातावरण में जाना है। जहां अधिक शक्ति लगना है। हमारा पोर्टर प्रतीक घोडे वाले को हमारी जिम्मेदारी सौंप कर गया है। वह कल हमारे साथ उपर नहीं आएगा। घोडे वाला पंकज ही पोर्टर का काम करेगा।
अभी टेण्ट में सभी लोग सोने की तैयारी रहे हैं। मेरी डायरी लिखने की आदत पर भुवनेश्वर के किशोर भोईदार जी,दुखबन्धु प्रधान और ड़ा.कर्मवीर टिप्पणियां कर रहे हैं। इसलिए सभी का जिक्र इसमें है। अब शाम को ही शुभरात्रि। मेरे डायरी लिखते हुए आशुतोष फोटो खींच रहा है इसलिए बन्द किए हुए पेन को फिर से खोल लिया है।

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(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे )  12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)  साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43   अयोध्या की यात्रा अब समाप्...