Friday, February 10, 2017

राजस्थान से सबक सीखना चाहिए मध्यप्रदेश को

-तुषार कोठारी

हिन्दुओं के गौरव महाराणा प्रताप द्वारा हल्दीघाटी में लडे गए विश्वविख्यात युध्द के बारे में फैलाए गए महाराणा की पराजय के भ्रम को अब राजस्थान सरकार दूर करने वाली है। राजस्थान के पाठ्यक्रम में अब विद्यार्थियों को यह पढाया जाएगा कि हल्दीघाटी के युध्द में महाराणा की पराजय नहीं हुई थी,बल्कि अकबर की सेनाओं को भारी क्षति हुई थी और उन्हे पीछे हटना पडा था। राजस्थान सरकार द्वारा किए जा रहे इस स्तुत्य प्रयास से राजस्थान के पडोसी मध्यप्रदेश को भी सबक सीखने की जरुरत है।

 आजादी के बाद से भारत के विद्यालयों और विश्व विद्यालयों में अंग्रेजों का लिखा वह इतिहास पढाया जाता रहा है,जो भारत के गौरव गाथाओं को छुपाता है और हमें हर समय दीन हीन और पराजित ही दिखाता है। आजादी के बाद आई अंग्रेज परस्त सरकारों ने अंग्रेजों द्वारा लिखे गए इतिहास पर तो आंख मूंद कर भरोसा किया ही था,स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास को भी अपने निहित स्वार्थों के लिए तथ्यों से दूर किया गया।
 स्कूली किताबों में लम्बे समय तक १८५७ के स्वातंत्र्य समर को गदर ही पढाया जाता रहा। १८५७ के बाद के बाद के करीब नौ दशकों तक चले स्वतंत्रता संग्राम को भी मात्र कांग्रेस का आन्दोलन निरुपित कर दिया गया था। इन नौ दशकों में स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस के आन्दोलन से कई गुना अधिक तीव्रता के अन्य प्रयासों को तो भुला ही दिया गया था। पूरे देश में सक्रिय क्रान्तिकारी आन्दोलन और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज के गठन जैसे अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयासों को पुस्तकों में मात्र कुछ पंक्तियों में ही वर्णन किया जाता रहा है। जिन कांग्रेस नेताओं ने अंग्रेजों की नजरबन्दी वाली सर्वसुविधायुक्त जेलों में समय गुजारा उन जेल यात्राओं के वर्णन जहां पूरे विस्तार से लिखे गए,वहीं अण्डमान में कालापानी की अमानवीय सजा भुगतने वाले वीर सावरकर और उनके जैसे हजारों अनाम क्रान्तिकारी देशभक्तों को तो पूरी तरह गायब ही कर दिया गया था।  पूरी की पूरी पाठ्य पुस्तकें गांधी जी और उनके अनुयायियों के लिए समर्पित कर दी गई थी।
  इतिहास से छेडछाड का यह अक्षम्य अपराध राजनैतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए ही किया जाता रहा है,और निश्चित रुप से कांग्रेस ने इसका लम्बे समय तक लाभ भी उठाया है। लेकिन समय बदलने के साथ साथ वास्तविक तथ्य जनता की समझ में आने लगे हैं। हांलाकि पाठ्यपुस्तकों में अब भी वास्तविक इतिहास पूरी तरह नहीं पढाया जा रहा है,लेकिन लोगों को अन्य ोतों से सत्य की जानकारी मिलने लगी है।
स्कूल में जाने वाले हर बच्चे को अपने देश का वास्तविक इतिहास जानने का हक है। वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य भी इसके अनुकूल है। यही कारण है कि राजस्थान सरकार अब वास्तविक तथ्यों वाले इतिहास को पाठ्यक्रम में लाने की दिशा में आगे बढ रही है। राजस्थान के पडोसी राज्य होने के चलते मध्यप्रदेश को भी इससे प्रेरणा लेना चाहिए। लेकिन मध्यप्रदेश में शायद इस दिशा में अब तक कोई विचार नहीं किया गया है।
 ऐतिहासिक किलों व अन्य धरोहरों के सम्बन्ध में भी यही स्थिति है। अब यह पूर्णत: साबित तथ्य है कि जिन विशालकाय किलों और महलों को मुगलों द्वारा बनाया हुआ बताया जाता है,उनका वास्तविक निर्माण पूर्ववर्ती हिन्दू राजाओं ने करवाया था। युध्द में विजय के बाद मुगल शासकों ने इन भवनों के हिन्दू चिन्ह यथाशक्ति मिटाकर इन पर कुरआन की आयतें लिख कर शिलालेख लगा दिए और इन भवनों को मुगल काल का निर्माण बताने की शुरुआत कर दी थी। मुगल शासकों के दरबारी इतिहास लेखकों ने चापलूसी भरे इतिहास लेखन में इन भवनों को मुगल शासकों द्वारा निर्मित बताया और बाद के अंग्रेज परस्त इतिहासकारों ने दरबारी लेखकों के लिखे हुए वर्णनों पर आंख मूंद कर भरोसा किया। इसीलिए यही भ्रामक तथ्य इतिहास के पाठ्यक्रमों में पढाए जाने लगे।
 मध्यप्रदेश का ही उदाहरण लें,तो विश्वविख्यात माण्डव गढ (माण्डू) के जहाज महल समेत तमाम महल देखें जा सकते है। उदाहरण के लिए माण्डू की कथित जामी मस्जिद वास्तविक रुप से परमार राजाओं का वह भवन था,जहां दरबार लगा करता था। आज भी इस इमारत में अनेक स्थानों पर अत्यत कलात्मक कमल और इस तरह के अन्य हिन्दू प्रतीक दिखाई देते है।  
राजस्थान में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के ठीक सामने एक भवन है,जिसे ढाई दिन का झोंपडा कहा जाता है। पहले बताया जाता था कि इस मस्जिद को मुगल शासकों ने मात्र ढाई दिन में तैयार कर दिया था। इसलिए इसे ढाई दिन का झोंपडा कहा जाता है। वास्तविकता यह थी कि यह मुगल काल से पहले एक संस्कृत विद्यालय था,जिसे बाद में मुगलों ने हस्तगत कर इसे मस्जिद में बदल दिया। यह सारी कार्यवाही ढाई दिन में संपन्न हुई थी,इसलिए इसे ढाई दिन का झोंपडा नाम दे दिया गया। प्रशंसनीय तथ्य यह है कि अब इस ढाई दिन के झोपडे के मुख्यद्वार पर इसका वास्तविक इतिहास लिख दिया गया है। मुख्यद्वार पर लगे लेख में बताया गया है कि यह वास्तव में एक संस्कृत विद्यालय था,जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया। इस लेख की वजह से यहां आने वाले पर्यटकों को वास्तविकता पता चल जाती है।
इसी तरह की पहल करने की जरुरत मध्यप्रदेश समेत देश की तमाम एतिहासिक इमारतों में है। दिल्ली की तथाकथित कुतुब मीनार हो,यहां माण्डू की जामी मस्जिद। इनके बाहर इतिहास की जानकारी देने वाले लेखों में इनके वास्तविक इतिहास का वर्णन होना चाहिए। कुतुब मीनार पर लिखा जाना चाहिए कि यह स्तंभ वास्तव में ज्योतिषीय अध्ययनों के लिए हिन्दू राजाओं ने बनाया था,जिसे अपनी जीत के बाद कुतुबुद्दीन एबक ने अपना नाम देकर कुतुब मीनार कर दिया। माण्डू में भी यह लिखा जाना चाहिए कि जामी मस्जिद से पहले यह भवन परमार राजाओं का महल था,जिसे मुगल शासकों ने मस्जिद बना दिया।
 गलत तथ्यों का उपयोग चाहे जितने लम्बे समय से किया जा रहा हो,जब भी वास्तविक तथ्य सामने आ जाएं,गलत तथ्यों को छोड देना ही समझदारी होती है। पिछले सत्तर सालों से स्कूल बच्चे,इतिहास के विद्यार्थी और सामान्य जन गलत तथ्यों पर आधारित इतिहास ही जानते रहे है। लेकिन अब जहां जहां वास्तविक  तथ्य सामने आ चुके है,वहां पुराने गलत तथ्यों को तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश में पिछले तेरह सालों से राष्ट्रवादी कही जाने वाली भाजपा की सरकार है। राजस्थान ने पहल की है,तो मध्यप्रदेश को भी पीछे नहीं रहना चाहिए।

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